रस का अर्थ, परिभाषा, प्रकार, नियम, उदाहरण और प्रश्नोत्तर (Ras ke bhed)

रस किसे कहते है? रस के अंग? रस के प्रकार
ras-रस-का-अर्थ-परिभाषा-प्रकार-नियम-उदाहरण-और-प्रश्नोत्तर-(Sentiments)
रस का अर्थ, परिभाषा, प्रकार, नियम, उदाहरण और प्रश्नोत्तर
 

रस (Sentiments) 

रस का शाब्दिक अर्थ है आनंद। 

 

What is Ras in Hindi? 

रस किसे कहते है? (ras in hindi)

काव्य को पढ़ने या सुनने से जिस आनंद की अनुभूति होती है, उसे रस कहा जाता है।
  • रस को काव्य की आत्मा कहा कहा जाता है।
  • शृंगार रस को 'रसराज/रसपति' कहा जाता है।
  • मूलतः रसों की संख्या 9 मानी जाती है, जिन्हें नवरस कहा जाता है 
  • नाटक में आठ ही रस माने जाते हैं क्योंकि वहाँ शान्त को रस नहीं गिना जाता। 
  • भरतमुनि ने रसों की संख्या 8 माना है।

      रस के अवयव या अंग 


      रस के चार अवयव या अंग है :
      1. स्थायी भाव
      2. विभाव
      3. अनुभाव 
      4. संचारी भाव / व्यभिचारी भाव

      स्थायी भाव

      स्थायी भाव का अर्थ है : प्रधान भाव 
      प्रधान भाव वही हो सकता है जो रस की अवस्था तक पहुँचता है। काव्य या नाटक में एक स्थायी भाव शुरू से आखिर तक होता है। 

      स्थायी भावों की संख्या 9 है। स्थायी भाव ही रस का आधार है। एक रस के मूल में एक स्थायी भाव रहता है अतः रसों की संख्या भी 9 हैं, मूलतः नवरस ही माने जाते हैं। बाद के आचार्यों ने 2 और भावों (वात्सल्य व भगवद् विषयक रति) को स्थायी भाव की मान्यता दी। इस प्रकार, स्थायी भावों की संख्या 11 तक पहुँच गयी और रसों की संख्या भी 11 तक पहुँच जाती है।

      2. विभाव

      स्थायी भाव के उद्बोधक कारणों को विभाव (जन्म देने वाले कारक) कहते हैं।
      विभाव 2 प्रकार के होते हैं : 
      1. आलंबन विभाव 
      2. उद्दीपन विभाव

      आलंबन विभाव 

      जिसका आलंबन या सहारा पाकर स्थायी भाव जगते हैं आलंबन विभाव कहलाता है, जैसे नायक, नायिका ।
      आलंबन विभाव के भी दो भाग है : 
      I. आश्रयालंबन : जिसके मन में भाव जगे वह आश्रयालंबन कहलाता है।
      II. विषयालंबन : और जिसके प्रति या जिसके कारण मन में भाव जगे वह विषयालंबन कहलाता है।

      उदाहरण: यदि राम के मन में सीता के प्रति रति का भाव जगता है तो राम आश्रय होंगे और सीता विषय ।

      उद्दीपन विभाव

      जिन वस्तुओं या परिस्थितियों को देखकर स्थायी भाव उद्दीप्त होने लगता है उद्दीपन विभाव कहलाता है; जैसे : चाँदनी, कोकिल कूजन, एकांत स्थल, रमणीक उद्यान, नायक या नायिका की शारीरिक चेष्टाएँ आदि

      3. अनुभाव

      मनोगत भाव को व्यक्त करनेवाले शरीर विकार अनुभाव कहलाते हैं। 
      अनुभावों की संख्या 8 मानी गई है :
      1. स्तंभ
      2. स्वेद
      3. रोमांच
      4. स्वर - भंग
      5. कम्प
      6. विवर्णता (रंगहीनता)
      7. अश्रु
      8. प्रलय (संज्ञाहीनता/निश्चेष्टता)

      4. संचारी / व्यभिचारी भाव 

      मन में संचरण करनेवाले (आने-जाने वाले) भावों को संचारी या व्यभिचारी भाव कहते हैं। संचारी भावों की कुल संख्या 33 मानी गई है, जो इस प्रकार है :
      1.हर्ष12.उत्सुकता23.श्रम
      2.विषाद13.चपलता24.आलस्य
      3.त्रास (भय/व्यग्रता)14.उग्रता25.स्वप्न
      4.लज्जा15.दीनता26.निद्रा
      5.ग्लानि16.जड़ता27.मद
      6.चिंता17.आवेग28.स्मृति
      7.शंका18.निर्वेद (अपने को कोसना या धिक्कारना)29.उन्माद
      8.असूया (दूसरे के उत्कर्ष के प्रति असहिष्णुता),19.धृति (इच्छाओं की पूर्ति, चित्त की चंचलता का अभाव)30.अवहित्था (हर्ष आदि भावों को छिपाना)
      9.अमर्ष (विरोधी का अपकार करने की अक्षमता से उत्पन्न दुःख)20.मति31.अपस्मार (मूच्छा)
      10.मोह21.बिबोध (चैतन्य लाभ)32.व्याधि (रोग)
      11गर्व22.वितर्क33.मरण

      रस : एक नजर में

      रस : एक नजर में
      1.स्थायी भाव हैं: प्रधान भाव
      2.स्थायी भाव की संख्या है: 9
      3.मूलतः रसों की संख्या है: 9
      4.स्थायी भाव की मान्यता है: 11
      5.विभाव के कितने भेद हैं: 2,
      1. आलंबन विभाव,
      2. उद्दीपन विभाव
      6.आलंबन विभाव के कितने भेद हैं: 2,
      I. आश्रयालंबन
      II. विषयालंबन
      7.उद्दीपन विभाव के भेद हैं: 4,
      1.आलम्बन के गुण, 2. आलम्बन की चेष्टाएं,
      3. आलम्बन का अलंकार, 4. तटस्थ
      8.अनुभाव का अर्थ हैं: विभावों के उपरांत जो भाव उत्पन्न हो
      9.अनुभाव के कितने भेद हैं: 4,
      1. कायिक, 2. वाचिक
      3. आहार्य, 4. सात्विक
      10सात्विक अनुभाव के कितने भेद हैं: 8,
      1. स्तंभ. 2. स्वेद, 3. रोमांच, 4. स्वरभंग,
      5. कम्प, 6. वैवर्ण्य, 7. अश्रु, 8. प्रलय

      रस के प्रकार

      1. शृंगार रस

      स्थायी भाव : रति/ प्रेम
      शृंगार रस के दो भेद हैं, संयोग शृंगार, वियोग शृंगार : नायक नायिका के मिलने के प्रसंग में संयोग शृंगार तथा उनके विरह में वियोग शृंगार होता है।

      इसके अवयव इस प्रकार हैं :
      आश्रय: नायक। 
      आलम्बन: नायिका। 
      उद्दीपन: नायिका की चेष्टाएँ हाव-भाव, तिरछी चितवन, मुस्कान। 
      अनुभाव: कटाक्ष, आलिंगन, चुम्बन आदि। 
      संचारी भाव: लज्जा, हर्ष, चपलता।

      उदाहरण - 1
      बतरस लालच लाल की मुरली धरी लुकाया। 
      सौंह करे, भौंहनि हँसै, दैन कहै, नटि जाय॥ ... (बिहारी) संभोग शृंगार
      उदाहरण - 2
      तरनि-तनुजा तट तमाल तरुवर बहु छाये। 
      झके कूल सों जल परसन हित मनहुँ सुहाये ॥
      उदाहरण - 3
      सदा रहति पावस ऋतु हम पे जब ते स्याम सिधारे। ... (सूरदास) वियोग शृंगार

      2. हास्य रस

      स्थायीभाव: हास्य। (Fun)
      किसी व्यक्ति के विकृत आकार, वेष-भूषा, वाणी और चेष्टा आदि से हास्य रस उत्पन्न होता है।
      इसके अवयव इस प्रकार हैं :
      आलम्बन: दूसरे की विकृति आकार, वेष भूषा, वाणी, और चेष्टा आदि। 
      उद्दीपन: हास्य उत्पन्न करने वाली चेष्टाएँ। 
      अनुभाव: ओंठ, नाक आदि का स्फुरण, मुख का विकसित होना। 
      संचारी: आलस्य, निद्रा आदि ।

      उदाहरण - 1
      तंबूरा ले मंच पर बैठे प्रेमप्रताप,
      साज मिले पंद्रह मिनट, घंटा भर आलाप।
      घंटा भर आलाप, राग में मारा गोता, 
      धीरे-धीरे खिसक चुके थे सारे श्रोता । ... (काका हाथरसी)
      उदाहरण - 2
      विन्ध्य के वासी उदासी, तपोव्रत धारी महा बिनु नारि दुखारे, 
      गौतम तीय तरी तुलसी सो कथा सुनि भे मुनिवृंद सुखारे । 
      ह्रै हैं शिला सब चन्द्रमुखी परसे पद मंजुल कंज तिहारे, 
      कीन्हीं थली रघुनायक जू करुना करि कानन को पगु धारे।

      3. करुण रस

      स्थायीभाव : शोक।
      शोक नामक स्थायीभाव विभावादि के संयोग से करुण रस में परिणत होता है। 
      इसके अवयव निम्न हैं:
      आलम्बन: प्रियजन का मृत शरीर, इष्टनाश ।
      संचारी: निर्वेद, ग्लानि, चिन्ता, मोह, विषाद, दैन्य ।
      अनुभाव: अश्रुपात, विलाप, वैवर्ण्य, शिथिलता, स्मृतिलोप ।

      उदाहरण - 1
      सोक बिकल सब रोवहिं रानी । 
      रूपु सीलु बलु तेजु बखानी ।।
      करहिं विलाप अनेक प्रकारा ।
      परिहिं भूमि तल बारहिं बारा ।। ... (तुलसीदास)
      उदाहरण - 2
      राधौ गीध गोद करि लीन्हों। 
      नयन सरोज सनेह सलिल 
      सुचि मनहुं अरघ जल दीन्हों ।। 

      यहाँ जटायु की मृत्यु का प्रसंग है। मृत जटायु आलम्बन है। राम आश्रय हैं, जटायु का शरीर उद्दीपन है, राम का आंसू बहाना अनुभाव है। चिन्ता, क्रोध, स्मृति संचारीभाव है। अतः राम का शोक करुण रस में परिवर्तित हुआ है। 

      उदाहरण - 3
      अभी तो मुकुट बंधा था माथ, 
      हुए कल ही हल्दी के हाथ, 
      खुले भी न थे लाज के बोल, 
      खिले थे चुम्बन शून्य कपोल। 
      हाय रुक गया यही संसार, 
      बिना सिंदूर अनल अंगार, 
      वातहत लतिका वट 
      सुकुमार पड़ी है छिन्नाधार ॥ ... (पंत)

      4. वीर रस 

      स्थायीभाव: उत्साह 
      उत्साह नामक स्थायीभाव ही वीर रस में परिणत हो जाता है। 
      इसके अवयव निम्नवत् हैं।
      आलम्बन: शुत्र। 
      आश्रय: नायक (वीर पुरुष)। 
      उद्दीपन: युद्ध के बाजे। 
      अनुभाव: अंगों का फड़कना रोमांच

      उदाहरण - 1
      वीर तुम बढ़े चलो, धीर तुम बढ़े चलो।
      सामने पहाड़ हो कि सिंह की दहाड़ हो ।
      तुम कभी रुको नहीं, तुम कभी झुको नहीं। ... (द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी)
      उदाहरण - 2
      साजि चतुरंग सैन अंग मैं उमंग धारि,
      सरजा सिवाजी जंग जीतन चलत हैं।

      5. रौद्र रस

      स्थायीभाव: क्रोध। 
      शत्रु अथवा आवनीत व्यक्ति की चेष्टाओं, गुरुजनों की निन्दा, अपमान आदि से उत्पन्न क्रोध विभावादि से संयुक्त होकर रौद्र में परिणत होता है। 
      इसके अवयव इस प्रकार हैं: 
      आलम्बन: शत्रु, विपक्षी, देशद्रोही, गुरुद्रोही, दुराचारी व्यक्ति । 
      उद्दीपन: कटुवचन, शत्रु के द्वारा किए गए अपराध 
      अनुभाव: नेत्रों का लाल होना, होंठ फड़कना, दांत भींचना।
      संचारी: अमर्ष, मोह, मद, जड़ता, गर्व, स्मृति ।

      उदाहरण - 1
      बोरौं, सबै रघुवंश कुठार की धार में बारन बाजि समरत्यहिं । 
      बान की वायु उड़ाय के लच्छन लच्छ करौं अरिहा समरत्यहिं॥
      यहाँ परशुराम आश्रय हैं, राम-लक्ष्मण आलम्बन है, शिव धनुष उद्दीपन है। परशुराम की गर्वोक्तियाँ अनुभाव है, गर्व एवं अमर्ष संचारी हैं अतः रौद्र की अभिव्यक्ति हुई है।

      उदाहरण - 2
      श्रीकृष्ण के सुन वचन अर्जुन क्षोभ से जलने लगे।
      सब शील अपना भूल कर करतल युगल मलने लगे ।
      संसार देखें अब हमारे शत्रु रण में मृत पड़े ।
      करते हुए यह घोषणा वे हो गए उठ कर खड़े ॥ ... (मैथिली शरण गुप्त)

      6. भयानक रस

      स्थायीभाव: भय। 
      किसी भयप्रद वस्तु, व्यक्ति या स्थिति का ऐसा वर्णन जो मन में भय का संचार करें, भयानक रस है। 
      इसके अवयव निम्नांकित हैं :
      आलम्बन: भयानक दृश्य 
      उद्दीपन: आलम्बन की चेष्टाएँ, नीरवता, कोलाहल। 
      अनुभाव: कम्प, स्वेद, स्वरभंग, पलायन, मूर्च्छा। 
      संचारी: आवेग, शंका, दैन्य, चिन्ता । उदाहरण

      उदाहरण - 1
      उधर गरजी सिंधु लहरियाँ कुटिल काल के जालों सी। 
      चली आ रहीं फेन उगलती फन फैलाए ब्यालों सी। ... (जयशंकर प्रसाद)
      यहाँ प्रलयकालीन समुद्र का भयप्रद चित्रण किया गया है अतः भयानक रस है। प्रलय काल में समुद्र की ऊँची-ऊंची लहरें आलम्बन हैं, देवगण आश्रय है, भय स्थायीभाव है। अतः भयानक रस है।

      उदाहरण - 2
      आज बचपन का कोमल गात
      जरा का पीला पात!
      चार दिन सुखद चाँदनी रात 
      और फिर अन्धकार, आज्ञात! ... (पंत)
      उदाहरण - 3
      एक ओर अजगर हिं लखि एक ओर मृगराय। 
      बिकल बटोही बीच ही, परयौ मूरछा खाय।

      7. वीभत्स रस

      स्थायी भाव: जुगुप्सा। 
      घृणा नामक स्थायीभाव विभावादि से संयुक्त होकर वीभत्स रस में परिणत होता है। 
      इसके अवयव निम्नवत् हैं: 
      आलम्बन: मांस, रक्त, अस्थि, श्मशान, दुर्गन्ध । 
      उद्दीपन: रक्त, मांस आदि का सड़ना, कुत्ते-गिद्द आदि द्वारा शव नोंचना। 
      अनुभाव: थूकना, नाक-भौं सिकोड़ना, रोमांच । 
      संचारी: मोह, जड़ता, व्याधि।

      उदाहरण - 1
      सिर पर बैठो काग आँखि दोउ खात-निकारत। 
      खींचत जीभहिं स्यार अतिहि आनन्द उर धारत ॥ 
      यहाँ स्थायीभाव जुगुप्सा (घृणा) है, पाठक आश्रय है, आलम्बन श्मशान का दृश्य है, काग द्वारा आँख निकालना उद्दीपन है। इन सबसे पुष्ट होकर जुगुप्सा नामक स्थायीभाव वीभत्स रस में परिणत हुआ है।

      8. अद्भुत रस

      स्थायीभाव: विस्मय (आश्चर्य)।
      किसी असाधारण वस्तु या दृश्य को देखकर मन में विस्मय नामक स्थायीभाव ही विभावादि से संयुक्त होकर अद्भुत रस में परिणत हो जाता है। 
      इसके अलावा निम्नवत् हैं: 
      आलम्बन: अलौकिक या आश्चर्य उत्पन्न करने वाली वस्तु । 
      उद्दीपन: आलम्बन के गुण। 
      अनुभाव: नेत्र फैलना, रोमांच, संभ्रम 
      संचारी: वितर्क, भ्रान्ति, हर्ष, आवेग आदि।

      उदाहरण - 1
      अखिल भुवन चर-अचर सब हरि मुख में लखि मातु ॥ 
      चकित भई गद्गद् वचन विकसित दृग पुलकातु ॥ (सेनापति) 
      यहाँ माता कौशल्या आश्रय हैं, शिशु राम के मुख में सभी लोकों को देखना आलम्बन है, चकित होना, रोमांच, आंखें फैलना अनुभाव है। इन सबसे पुष्ट होकर विस्मय स्थायीभाव रस रूप में परिणत हो गया है।

      9. शान्त रस

      स्थायीभाव: निर्वेद 
      निर्वेद नामक स्थायीभाव विभावादि से संयुक्त होकर शान्त रस की निष्पत्ति करता है। 
      इसके अवयव निम्न हैं: 
      आलम्बन: ईश्वर चिन्तन, संसार की असारता। 
      आश्रय: ज्ञानी व्यक्ति ।
      उद्दीपन: सत्संग, दार्शनिक ग्रन्थों का पठन आदि। 
      संचारी: ग्लानि, उद्वेग, दैन्य, जड़ता।

      उदाहरण - 1
      मन रे तन कागद का पुतला 
      लागै बूँद विनसि जाय छिन में गरब करै क्यों इतना ।
      उदाहरण - 2 
      तपस्वी! क्यों इतने हो क्लान्त,
      वेदना का यह कैसा वेग? 
      आह! तुम कितने अधिक हताश 
      बताओ यह कैसा उद्वेग?

      10. वात्सल्य रस

      स्थायीभाव: वात्सल्य 
      वात्सल्य नामक स्थायीभाव की विभावादि के संयोग से वात्सल्य रस परिणत होता है। 
      इसके अवयव निम्न हैं:
      आलम्बन: पुत्र या सन्तान। 
      आश्रय: माता पिता। 
      उद्दीपन: सन्तान के क्रिया-कलाप।

      उदाहरण - 1
      किलकत कान्ह घुटरुवन आवत ।
      मनिमय कनक नंद के आंगन विम्ब पकरिवे घावत ॥ (सूरदास)
       उदाहरण - 2
      जसोदा हरि पालनें झुलावै । 
      हलरावै दुलरावै, मल्हावै जोइ सोई, कछु गावै।

      11. भक्ति रस 

      स्थायीभाव: भगवद् विषयक रति / अनुराग
       उदाहरण - 1
      राम जपु, राम जपु राम जपु बावरे ।
      घोर भव नीर निधि, नाम निज नाव रे (तुलसीदास)

      रस के महत्वपूर्ण उदाहरण 

      उदाहरण - 1
      हे खग मृग हे मधुकर श्रेनी । 
      तुम देखी सीता मृगनैनी । ... वियोग शृंगार रस
      उदाहरण - 2
      देखि सुदामा की दीनदसा,
      करूना करिके करुनानिधि रोये। ... करूण (सुदामा चरित, नरोत्तमदास)
      उदाहरण - 3
      केशव कहि न जाइ का कहिये।
      देखत तव रचना विचित्र अति समुझि मनहिं मन रहिये। ... अदभुत
      उदाहरण - 3
      जहँ-तहँ मज्जा माँस रूचिर लखि परत बगारे।
      जित-जित छिटके हाड़, सेत कहूँ, कहुँ रतनारे॥ ... बीभत्स रस
      उदाहरण - 4
      उधौ मोहि ब्रज बिसरत नाहीं। 
      हंससुता की सुन्दर कगरी और द्रुमन की छाँही।। ... शृंगार रस

      उदाहरण - 5
      उस काल मारे क्रोध के, तन काँपने उसका लगा। 
      मानो हवा के जोर से सोता हुआ सागर जगा।। ... रौद्र रस
      उदाहरण - 6
      शोभित कर नवनीत लिए 
      घुटरुनि चलत रेनु तन मण्डित 
      मुख दधि लेप किए ... वात्सल्य रस

      महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तरी

      परीक्षाओं में पूछे गये रस से संबंधित प्रश्नोत्तर
      • रससूत्र के जनक माने जाते हैं : भरतमुनि
      • रसराज किसे कहते है : शृंगार रस
      • रस कितने प्रकार के होते हैं : 9
      • हिंदी साहित्य का नौवाँ रस : शांत रस
      • रौद्र रस का स्थायी भाव : क्रोध
      • वीभत्स रस का स्थायी भाव : जुगुप्सा/घृणा
      • भरत मुनि के अनुसार रसों की संख्या : आठ
      • काव्य में कितने रस है? : 9
      • शृंगार रस का स्थायी भाव : रति
      • शांत रस का स्थायी भाव : निर्वेद
      • कवि बिहारी मुख्यतः किस रस के कवि हैं? : शृंगार रस
      • शोभित कर नवनीत लिए : वात्सल्य
      • रसोत्पत्ति में आश्रय की चेष्टाएँ क्या कही जाती हैं? : अनुभाव 
      • माधुर्य गुण का किस रस में प्रयोग होता है? : शृंगार 
      • प्रिय पति वह मेरा प्राण प्यारा कहाँ है? : शोक
      • विस्मय का स्थायी भाव किस रस में होता है। : अद्भुत
      • अति मलीन वृषभानुकुमारी। : विप्रलंभ शृंगार
      • किलक अरे मैं नेह निहारूँ। इन दाँतों पर मोती वांरूँ।। : वात्सल्य
      • सर्वश्रेष्ठ रस किसे माना जाता है? : शृंगार रस
      • किसी भाव की परिपक्व अवस्था को रस कहा जाता है :  स्थायीभाव

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