वर्णमाला अर्थ, परिभाषा, प्रकार Hindi Grammar

हिन्दी में उच्चारण के आधार पर 45 वर्ण (जिसमे 10 स्वर + 35 व्यंजन) एवं लेखन के आधार पर 52 वर्ण (जिसमे 13 स्वर + 35 व्यंजन + 4 संयुक्त व्यंजन) होते हैं.
hindi-varnmala-hindi-grammar
Hindi Varnmala Hindi Grammar

भाषा संस्कृत के भाष शब्द से बना है. जिसका (भाष) अर्थ है बोलना भाषा की सार्थक इकाई वाक्य कहलाती है. वाक्य से छोटी इकाई  को उपवाक्य, उपवाक्य से छोटी इकाई को पदबंध, पदबंध से छोटी इकाई को पद (शब्द), पद से छोटी इकाई को अक्षर (Syllable) और अक्षर से छोटी इकाई को ध्वनि या वर्ण (Letter) कहते है. राम शब्द में 2 अक्षर (राम) एवं 4 वर्ण (र आ म् अ) हैं.

अतः हम इसे इस तरह से भी समझ सकते है-
वाक्यउपवाक्य ➨ पदबंध ➨ पद(शब्द) ➨ अक्षर

वर्णमाला (Alphabet)

वर्ण की परिभाषा
भाषा की सबसे छोटी इकाई ध्वनि है. इस ध्वनि को वर्ण कहते हैं.

वर्णमाला की परिभाषा
वर्णों के व्यवस्थित समूह को वर्णमाला कहते हैं.

मानक हिन्दी वर्णमाला

मूलतः हिन्दी में उच्चारण के आधार पर 45 वर्ण (जिसमे 10 स्वर + 35 व्यंजन) एवं लेखन के आधार पर 52 वर्ण (जिसमे 13 स्वर + 35 व्यंजन + 4 संयुक्त व्यंजन) हैं.
स्वर: अ आ इ ई उ ऊ ऋ ए ऐ ओ औ (अं) (अ:)
[ कुल = 10 + (3) = 13]

varnmala-hindi-grammar-Alphabet
वर्णमाला: एक दृष्टि में

व्यंजन: 
क वर्ग - क ख ग घ ङ
च वर्ग च छ ज झ ञ
ट वर्ग ट ठ ड (ड़) ढ (ढ़) ण (द्विगुण व्यंजन - ड़ ढ़)
त वर्ग - त थ द ध न
प वर्ग - प फ ब भ म
अंतःस्थ - य र ल व
ऊष्म - श ष स ह
[कुल = 33 + (2) = 35]

संयुक्त व्यंजन - क्ष त्र ज्ञ श्र
[ कुल = 4] (क् + ष) (त् + र) (ज् + ञ) (श् + र)

परीक्षोपयोगी प्रश्नोत्तर!
  • हिंदी में मूलतः वर्णों की संख्या कितनी है. : 52
  • क्ष वर्ण किसके योग से बना है? : क् + ष्
  • कौन सा वर्ण उच्चारण की दृष्टि से दंत्य नहीं है? : 
  •  वर्ण उच्चारण की दृष्टि से क्या है? : कंठ्य
  • वह छोटी से छोटी ध्वनि जिसके टुकड़े नहीं हो सकते, उसे क्या कहते हैं? : वर्ण 
  • हिंदी वर्णमाला में स्वरों की कुल संख्या कितनी है : 11
  • कंठ्य ध्वनियाँ कौन-सी है? : क, ख
  • ए,  वर्ण क्या कहलाते हैं : कंठतालव्य
  • अयोगवाह वर्ण कौन से हैं? : अं अः
  • अघोष वर्ण कौन-सा है? : स (महाप्राण) 
  • य, र, ल, व किस प्रकार के व्यंजन हैं? : अन्तःस्थ

स्वर (Vowels)

स्वतंत्र रूप से बोले जाने वाले वर्ण स्वर कहलाते हैं. परंपरागत रूप से इनकी संख्या 13 मानी गई है. उच्चारण की दृष्टि से इनमें केवल 10 ही स्वर हैं - अ आ इ ई उ ऊ ए ऐ ओ औ

स्वरों का वर्गीकरण व उच्चारण स्थान

वर्ण नाम उच्चारण-स्थानहस्वस्वरदीर्घस्वरनिरानुनासिक / मौखिक स्वरअनुनासिक स्वर
कंठ्यकंठअ, आअँ, आँ
तालव्यतालु
(मुँह के भीतर की छत का पिछला भाग)
इँ
मूर्धन्यमूर्धा
(मुँह के भीतर की छत का अगला भाग)
कंठ + तालु (कंठतालव्य)
ओष्ठ + कंठ (कंठोष्ठय)


-
-


ए, ऐ
ओ, औ
ओष्ठ्यओष्ठ/ओंठ

मात्रा/उच्चारण: काल के आधार पर

ह्रस्व स्वर: जिनके उच्चारण में कम समय (एक मात्रा का समय) लगता है, वो है : (अ इ उ)
दीर्घ स्वर: जिनके उच्चारण में ह्रस्व स्वर से अधिक समय (दो मात्रा का समय) लगता है, वो है : (आ ई ऊ ए ऐ ओ औ आँ)
प्लुत स्वर: जिनके उच्चारण में दीर्घ स्वर से भी अधिक समय लगता है; किसी को पुकारने में या नाटक के संवादों में इसका प्रयोग किया जाता है जैसे: (रा ऽऽ म)

जीभ के प्रयोग के आधार पर

अग्र स्वर: जिन स्वरों के उच्चारण में जीभ का अग्र भाग काम करता है, वो है : (इ ई ए ऐ)
मध्य स्वर: जिन स्वरों के उच्चारण में जीभ का मध्य भाग काम करता है, वो है : (अ)
पश्च स्वर: जिन स्वरों के उच्चारण में जीभ का पश्च भाग काम करता है, वो है : (आ उ ऊ ओ औ ऑ)

मुख-द्वार (मुख-विवर) के खुलने के आधार पर 

विवृत (Open): जिन स्वरों के उच्चारण में मुख-द्वार पूरा खुलता है, वो है : (आ)
अर्ध-विवृत (Half-Open): जिन स्वरों के उच्चारण में मुख-द्वार आधा खुलता है, वो है : (अ, ऐ, ओ, आँ)
अर्थ-संवृत (Half-close): जिन स्वरों के उच्चारण में मुख-द्वार आधा बंद रहता है, वो है :  (ए, ओ)
संवृत (Close): जिन स्वरों के उच्चारण में मुख-द्वार लगभग बंद रहता है, वो है : (इ, ई, उ, ऊ)

varno-ke-ucharan-sthan
वर्णों के उच्चारण स्थान

ओंठो की स्थिति के आधार पर 

अवृतमुखी : जिन स्वरों के उच्चारण में ओंठ वृतमुखी या गोलाकार नहीं होते हैं, वो है : (अ आ इ ई ए ऐ)
वृतमुखी : जिन स्वरों के उच्चारण में ओंठ वृतमुखी या गोलाकार होते हैं, वो है : (उ ऊ ओ औ ऑ)

हवा के नाक व मुँह से निकलने के आधार पर

निरनुनासिक / मौखिक स्वर: जिन स्वरों के उच्चारण में हवा केवल मुँह से निकलती है, वो है : (अ आ इ आदि)
अनुनासिक स्वर: जिन स्वरों के उच्चारण में हवा मुँह के साथ-साथ नाक से भी निकलती है, वो है : (अँ आँ इँ)

घोषत्व के आधार पर

घोष का अर्थ है स्वरतंत्रियों में श्वास का कंपन. स्वरतंत्री में जब कंपन होता है तो सघोष ध्वनियाँ उत्पन्न होती हैं. सभी 
स्वर सघोष ध्वनियाँ होती हैं।

परीक्षोपयोगी प्रश्नोत्तर!
  • जिन वर्णों का उच्चारण बिना किसी अवरोध के तथा बिना किसी दूसरे वर्ण की सहायता से होता है, उन्हें क्या कहते हैं? : स्वर 
  • जिन स्वरों के उच्चारण में कम समय लगता है, उन्हें क्या कहते हैं? : ह्रस्व स्वर
  • जिन स्वरों के उच्चारण में ह्रस्व स्वरों से अधिक समय लगता है, कहलाते हैं? : दीर्घ स्वर
  • ह्रस्व स्वर होते हैं : अ, इ, उ, ऋ 
  • मूल स्वर होते हैं : अ, इ, उ, ऋ
  • दीर्घ स्वर होते हैं : आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ
  • आगत स्वर हैं :
  • अग्र स्वर हैं : इ, ई, ए, ऐ
  • मध्य स्वर हैं : 
  • पश्च स्वर हैं : आ, उ, ऊ, ओ, औ, ऑ 
  • संवृत स्वर हैं : ई, ऊ
  • अर्द्ध संवृत हैं : इ, उ 
  • विवृत हैं : आ, ऐ, औ
  • अर्द्ध विवृत हैं : ए, अ, ओ, ऑ
  • व्यंजनों की संख्या : 41
  • स्पर्श व्यंजनों की संख्या : 27
  • अंतःस्थ व्यंजनों की संख्या : 4 
  • ऊष्म व्यंजनों की संख्या : 4

व्यंजन (Consonants)

स्वर की सहायता से बोले जानेवाले वर्ण व्यंजन कहलाते हैं. प्रत्येक व्यंजन के उच्चारण में स्वर मिला होता है. अ के बिना व्यंजन का उच्चारण संभव नहीं है. परंपरागत रूप से व्यंजनों की संख्या 33 मानी जाती है. द्विगुण व्यंजन ड़ ढ़ को जोड़ देने पर इनकी संख्या 35 हो जाती है.

व्यंजनों का वर्गीकरण

स्पर्श व्यंजन

जिन व्यंजनों का उच्चारण करते समय हवा फेफड़ों से निकलते हुए मुँह के किसी स्थान विशेष जैसे कंठ, तालु, मूर्धा, दाँत या होंठ का स्पर्श करते हुए निकले. उसे स्पर्श व्यंजन कहते है.

उच्चारण - स्थान के आधार पर स्पर्श व्यंजन के वर्ग हैं : 
कवर्ग-कंठ्य, चवर्ग-तालव्य, टवर्ग-मूर्धन्य, तवर्ग-दन्त्य, तथा पवर्ग-ओष्ठ्य. स्पष्ट है कि स्पर्श व्यंजन में पीछे से आगे की ओर जाने का क्रम है : 
कंठ्य ➨ तालव्य  मूर्धन्य ➨ दन्तय  ओष्ठ्य 
अर्थात् कंठ्य पहले है तो ओष्ठ्य सबसे बाद में.

व्यंजनों का वर्गीकरण व उच्चारण स्थान
वर्ण का नाम उच्चारण स्थान अघोष अल्पप्राणअघोष महाप्राण सघोष अल्पप्राण सघोष महाप्राण सघोष अल्पप्राण नासिक्य
कंठ्यकंठ
तालव्यतालु (मुँह के भीतर की छत का पिछला भाग)ज ज़
मूर्धन्यमूर्धा (मुँह के भीतर की छत का अगला भाग)ढ ढ़
दंत्यऊपरी दाँतों के निकट से
ओष्ठ्यदोनों ओठों सेफ फ़
तालव्यतालु (मुँह के भीतर की छत का अगला भाग)
वर्त्स्यदंत + मसूड़ा (दंत मूल से)र, ल
दंत्योष्ठ्यऊपर के दाँत +निचला ओंठ-
मूर्धन्यमूर्धा (भीतर की छत का अगला भाग)-
स्वरयंत्रीयस्वर यंत्र (कंठ के भीतर स्थित)--
उत्क्षिप्तजिनके उच्चारण में जीभ ऊपर उठकर झटके के साथ नीचे को आये.--ढ़
आगत / गृहित ध्वनियाँ : क - स्पर्शी, ख़, ग़, ज़, फ़ - (ऊष्म / संघर्षी),
अयोगवाह : अनुस्वार (-), विसर्ग (:)


नोट: कुछ विद्वान च वर्ग को स्पर्श-संघर्षी भी मानते हैं.

घोषत्व के आधार पर : घोष का अर्थ है स्वरतंत्रियों में ध्वनि का कंपन.
अघोष : जिन ध्वनियों के उच्चारण में स्वरतंत्रियों में कंपन न हो (हर वर्ग का 1 ला और 2 रा व्यंजन). 
सघोष /घोष : जिन ध्वनियों के उच्चारण में स्वरतंत्रियों में कंपन हो (हर वर्ग का 3रा, 4 था और 5 वाँ व्यंजन).

प्राणत्व के आधार पर : यहाँ प्राण का अर्थ हवा से हैं. 
अल्पप्राण : जिन व्यंजनों के उच्चारण में मुख से कम हवा निकले (हर वर्ग का 1ला, 3रा और 5वाँ व्यंजन). 
महाप्राण : जिन व्यंजनों के उच्चारण में मुख से अधिक हवा निकले, जिन व्यंजनों के उच्चारण में हकार की ध्वनि विशेष रूप से सुनाई दे (हर वर्ग का 2रा और 4था व्यंजन)

अल्पप्राण और महाप्राण याद करने की ट्रिक्स- 
alppran-mahapran-learning-trick
Alppran Mahapran Learning Trick

अन्तःस्थ व्यंजन 

जिन वर्णों का उच्चारण पारंपरिक वर्णमाला के बीच अर्थात् स्वरों व व्यंजनों के बीच स्थित हो, अन्तःस्थ व्यंजन कहलाते है.

वर्गउच्चारण स्थान
तालव्यतालु



सघोष, अल्पप्राण
वर्त्स्यदंतमूल/मसूढा
वर्त्स्यदंतमूल/मसूढा
दंतोष्ठ्यऊपर के दाँत + निचला ओंठ

नोट: 
  • य व : अर्द्धस्वर (ध्वनि जो कभी स्वर हो कभी व्यंजन) 
  • र : लुंठित (जिसके उच्चारण में जीभ तालु से लुढ़ककर स्पर्श करें)
  • ल : पार्श्विक (जिसके उच्चारण में हवा जीभ के पार्श्व / बगल से निकल जाए)

ऊष्म/संघर्षी

जिन व्यंजनों का उच्चारण करते समय वायु मुख में किसी स्थान विशेष पर घर्षण/रगड़ खा कर निकले और ऊष्मा/गर्मी पैदा करे.ऊष्म/संघर्षी व्यंजन कहलाते है.

वर्गउच्चारण स्थान
तालव्यतालु

सघोष, अल्पप्राण
मूर्धन्यमूर्धा
वर्त्स्यदंतमूल/मसूढा
स्वरयंत्रीयस्वरयंत्र (कंठ के भीतर स्थित)—सघोष, महाप्राण

उक्षिप्त (ड़ ढ़) : जिनके उच्चारण में जीभ पहले ऊपर उठकर मूर्धा को स्पर्श करे और फिर झटके के साथ नीचे की ओर आये.

नोट: इ ढ हिन्दी के विकसित व्यंजन हैं। ये संस्कृत में नहीं थे.
इ: मूर्धन्य, सघोष, अल्पप्राण
द: मूर्धन्य, सघोष, महाप्राण.

आगत / गृहीत ध्वनियाँ :
क़ : स्पर्शी, कण्ठ + जिह्वामूल, अघोष, अल्पप्राण
ख़ : ऊष्म/संघर्षी, कण्ठ + जिह्वामूल, अघोष, महाप्राण
ग़ : ऊष्म/संघर्षी, कण्ठ + जिह्वामूल, सघोष, अल्पप्राण 
ज़ : ऊष्म/संघर्षी, वर्त्स्य, सघोष, अल्पप्राण
फ़ : ऊष्म/संघर्षी, दंतोष्ठ्य, अघोष, महाप्राण

अयोगवाह

अनुस्वार या बिंदी (ं), विसर्ग (:) अनुस्वार को शीर्ष बिन्दु वाला वर्ण एवं विसर्ग को पार्श्व बिन्दु वाला वर्ण भी कहते हैं.

परंपरानुसार अनुस्वार (ं) और विसर्ग (:) को स्वरों के साथ रखा जाता है किन्तु ये स्वर ध्वनियाँ नहीं हैं क्योंकि इनका उच्चारण व्यंजनों के उच्चारण की तरह स्वर की सहायता से होता है. ये व्यंजन भी नहीं हैं क्योंकि इनकी गणना स्वरों के साथ होती है और उन्हीं की तरह लिखने में इनके लिए मात्राओं [क्रमशः (ं), ( : )] का प्रयोग किया जाता है. 
दूसरे शब्दों में, अनुस्वार और विसर्ग लेखन की दृष्टि से स्वर एवं उच्चारण की दृष्टि से व्यंजन होते हैं.
चूँकि इन दोनों का जातीय योग न तो स्वर के साथ और न ही व्यंजन के साथ होता है इसलिए इन्हें अयोग कहा जाता है, फिर भी ये अर्थ वहन करते हैं, इसलिए अयोगवाह (अयोग + वाह) कहलाते हैं.

परीक्षोपयोगी प्रश्नोत्तर!
  • आगत व्यंजनों की संख्या: 2 
  • संयुक्त व्यंजनों की संख्या : 4
  • क-वर्ग ध्वनियाँ हैं : क्, ख्, ग्, घ, ङ
  • च-वर्ग ध्वनियाँ हैं : च्, छ्, ज्, झ, ञ्
  • ट-वर्ग ध्वनियाँ हैं : ट, द्, ड्, ढ्, ण् (ड्, दू)
  • त-वर्ग ध्वनियाँ हैं : तू, थ्, द्, ध्, न् 
  • प-वर्ग ध्वनियाँ हैं : प्, फ्, ब्, भ्, म्
  • अन्तःस्थ व्यंजन हैं : य, र, ल, व
  • अर्धस्वर हैं : य, व
  • लुंठित व्यंजन हैं :
  • पार्श्विक व्यंजन हैं :  
  • ऊष्म-संघर्षी व्यंजन हैं : स, श, ष, ह
  • उत्क्षिप्त व्यंजन हैं : ड़, ढ़
  • अघोष व्यंजन हैं : प्रत्येक वर्ग के प्रथम और द्वितीय वर्ण तथा फ़, श, ष, स
  • सघोष व्यंजन हैं : प्रत्येक वर्ग के तृतीय, चतुर्थ, पंचम वर्ण तथा ड़, ढ, ज़, य, र, ल, व, ह (एवं सभी स्वर सघोष हैं) 
  • अल्पप्राण व्यंजन हैं : प्रत्येक वर्ग में प्रथम, तृतीय, पंचम वर्ण तथा अन्तःस्थ वर्ण
  • महाप्राण व्यंजन हैं : प्रत्येक वर्ग के द्वितीय व चतुर्थ वर्ण तथा ऊष्म वर्ण.
  • नासिक्य व्यंजन हैं : ङ, ञ, ण, न, म् 
  • कंठ व्यंजन है : क, ख, ग, घ, ङ

अन्य लेख पढ़ें !

इस Blog का उद्देश्य प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे प्रतियोगियों को अधिक से अधिक जानकारी एवं Notes उपलब्ध कराना है, यह जानकारी विभिन्न स्रोतों से एकत्रित किया गया है।