कक्षा कक्ष में सम्प्रेषण, घटक व रुकावटें | Communication in the Classroom

कक्षा कक्ष में शिक्षण को प्रभावशाली बनाने के लिये शिक्षक और छात्रों के बीच सम्प्रेषण होना अति आवश्यक है।
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Communication in the Classroom

कक्षा कक्ष में शिक्षण को प्रभावशाली बनाने के लिये शिक्षक और छात्रों के बीच सम्प्रेषण होना अति आवश्यक है। शिक्षक और छात्र के मध्य सम्प्रेषण शाब्दिक एवं अशाब्दिक दोनों प्रकार का होता है। कक्षा कक्ष में बैठकर छात्र व्यवस्थित तथा उद्देश्यपूर्ण शिक्षा प्राप्त करता है। शिक्षण को सफल एवं उद्देश्यपूर्ण बनाने के लिये आवश्यक है कि शिक्षक छात्रों की समस्याओं का समाधान करे। छात्र भी अपनी बात निःसंकोच रख सकें जिससे शिक्षक और छात्रों के बीच विचारों, भावनाओं की बिना रुकावट के अन्तः क्रिया होगी, सम्प्रेषण अच्छा होगा। 

 कक्षा कक्ष में सम्प्रेषण Communication in the Classroom

सम्प्रेषण के सन्दर्भ में कक्षा कक्ष में ध्यान रखने योग्य बिन्दु निम्नलिखित हैं :

बाधाओं एवं अवरोधों को दूर करना : शिक्षक को सम्प्रेषण मार्ग में आने वाली बाधाओं एवं अवरोधों को दूर करना चाहिये।

ज्ञान का विस्फोट (Explosion of knowledge) : शिक्षक को ज्ञान प्राप्ति के लिये ऐसे उपाय अपनाने चाहिये जिससे कम समय में अधिक ज्ञान प्राप्त हो सके। 

व्यक्तिगत विभिन्नताएँ (Individual differences) : शिक्षक को कक्षा सम्प्रेषण में सभी छात्रों की व्यक्तिगत विभिन्नताओं को ध्यान में रखना चाहिये। शिक्षण कार्य ऐसा करना चाहिये कि सभी छात्रों की आवश्यकताएँ पूर्ण हो सकें।

नवीन सामग्री (New material) : नयी सामग्री या नवीन उपकरण जो विज्ञान ने हमें दिये हैं, उनका प्रयोग करके सम्प्रेषण कम खर्चे में सहज एवं प्रभावी बनाया जा सकता है।

शिक्षण सामग्री (Teaching material) : कक्षा कक्ष में सम्प्रेषण के समय प्रयुक्त शिक्षण सामग्री जैसे- भाषा संकेत एवं चित्र आदि छात्रों के अनुकूल होनी चाहिये। चित्रण तथा सम्प्रेषण पूर्ण ज्ञान पर आधारित होना चाहिये।

प्रभावी सम्प्रेषण के तरीके Methods of Effective Communication 

शिक्षाविदों के मतानुसार सम्प्रेषण प्रक्रिया को कक्षा में प्रभावी बनाने के लिये निम्नलिखित तरीकों पर ध्यान देना चाहिये :

उद्देश्यपूर्ण (Purposeful) : प्रभावी सम्प्रेषण प्रक्रिया की यह विशेषता है कि उसमें शिक्षण के उद्देश्य तथा विशिष्ट उद्देश्य होने चाहिये।

निर्देशनात्मक (Subjective) : सम्प्रेषण, आदेशात्मक नहीं होना चाहिये अपितु निर्देशात्मक होना चाहिये। अंतः कक्षा का वातावरण कठोरता तथा नीरस से युक्त न होकर सरलता, सौहार्द्रता, स्नेह तथा सहानुभूति युक्त होना चाहिये। 

प्रेरणास्पद (Inspired) : सम्प्रेषण पूर्णतः प्रेरणाप्रद होना चाहिये। वह बालकों के अनुभवों पर आधारित होना चाहिये, साथ ही उनकी रुचियों एवं प्रवृत्तियों को विकसित करने वाला होना चाहिये।

बाल केन्द्रित (Child centred) : आजकल यह प्रचलित है और शिक्षाशास्त्रियों ने भी यह स्वीकार किया है कि सम्प्रेषण बाल केन्द्रित होना चाहिये अर्थात् बालक की वैयक्तिक विभिन्नताओं (आदतों, रुचियों एवं योग्यताओं) को ध्यान में रखते हुए अध्यापन किया जाता चाहिये ।

सुनियोजित (Well planned) - सम्प्रेषण सुनियोजित ढंग से किया जाना चाहिये । इसके लिये शिक्षक को घर से ही पाठ योजना बनाकर लानी चाहिये और उसके अनुरूप शिक्षण करना चाहिये।

प्रजातान्त्रिक पद्धति पर आधारित (Based on democratic pattern) : वर्तमान युग में सम्प्रेषण में प्रजातान्त्रिक दृष्टिकोण को महत्त्व दिया जाने लगा है ताकि कक्षा में प्रजातान्त्रिक वातावरण सृजित हो सके। अध्यापक का सभी बालकों साथ समान व्यवहार रहे चाहे वह निम्न या उच्च वर्ग का हो या किसी जाति अथवा लिंग का हो।

सक्रिय अध्यापन (Active teaching) : कक्षा में उचित वातावरण बनाया जाना चाहिये और छात्र एवं अध्यापक दोनों सक्रिय रहने चाहिये क्योंकि सम्प्रेषण को द्विमुखी क्रिया माना गया है। सम्प्रेषण के साथ सीखना होना चाहिये अन्यथा सम्प्रेषण व्यर्थ है। 

क्रमबद्ध विषयवस्तु (Systematic subject matter) : विषयवस्तु क्रमबद्ध रूप से प्रस्तुत की जाय, उसका क्रम टूटना नहीं चाहिये अन्यथा बालक भ्रम में पड़ सकते हैं। 

सहयोग की भावना का विकास (Development of the feeling of co operation) : सम्प्रेषण में छात्र एवं अध्यापक दोनों से सक्रियता अपेक्षित है। इसके लिये एक-दूसरे का सहयोग अपेक्षित है। 

पाठ की तैयारी (Readiness of lesson) - जिस पाठ या विषय को पढ़ाना हो, उसकी पूर्ण तैयारी अध्यापक को पूर्व में ही कर लेनी चाहिये । 

पूर्व ज्ञान से सम्बन्धित (Related with pre knowledge) : पाठ को पढ़ाने से पूर्व अध्यापक को यह तथ्य ध्यान में रखना चाहिये कि क्या छात्र विषय से पूर्व की जानकारियों से अवगत है या नहीं? अन्यथा सम्प्रेषण दोषपूर्ण हो सकता है।

सहायक सामग्री का समुचित प्रयोग (Proper use of material aid) : सम्प्रेषण में उचित स्थान पर सहायक सामग्री का प्रयोग करना चाहिये ताकि पाठ में रोचकता आ सके और बालक उसे सीख सके। 

स्वतन्त्र वातावरण (Diverted environment) : विषय का सम्प्रेषण अनुशासित होते हुए भी खेल के समान स्वतन्त्र वातावरण से पूरा हो ताकि छात्रों की रुचि का अधिकाधिक विकास हो सके।

आत्मविश्वास की जागृति (Awareness of self reliance) : सम्प्रेषण अध्यापक में आत्मविश्वास जाग्रत करता है। आत्मविश्वास के साथ पढ़ाया जाना बालक को पूर्ण ज्ञान प्रदान करता है।

अध्यापन उपचारपूर्ण होना चाहिये (Teaching should be remedial) : संचार के द्वारा हमें बालक की बहुत-सी भूलों के बारे में बोध होगा और पुन: उपचारात्मक शिक्षण द्वारा उनका धीरे-धीरे उपचार किया जायेगा।

सम्प्रेषण के घटक Components of Communication

सम्प्रेषण को प्रभावित करने वाले निम्नलिखित कारक या घटक हैं :
1. छात्र
2. शिक्षण के उद्देश्य
3. शिक्षक का व्यक्तित्व
4. विषयवस्तु का चयन
5. पाठ्य योजना का निर्माण
6. उचित शिक्षण विधि एवं सहायक सामग्री
7. वैयक्तिक विभिन्नताओं का ध्यान 
8. कक्षा का वातावरण 
9. मानसिक एवं शारीरिक स्वास्थ्य
10. सहसम्बन्ध पर आधारित
11. सिखाने हेतु अभिप्रेरणा

छात्र 

बाल केन्द्रित शिक्षण में प्रमुख तत्त्व छात्र स्वयं है। अतः छात्र/छात्राओं की आयु, मूल आकांक्षाएँ, बौद्धिक स्तर तथा आदतें या मनोभावनाएँ सम्प्रेषण को प्रभावित करते हैं।

शिक्षण के उद्देश्य

अध्यापकों को शिक्षण एवं विषय से सम्बन्धित शिक्षण के उद्देश्यों की जानकारी होनी चाहिये ताकि अपेक्षित उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु वह पर्याप्त साधन एवं सुविधाएँ शिक्षण हेतु जुटा सकें। अतः शिक्षण के उद्देश्य भी सम्प्रेषण प्रक्रिया को प्रभावित करते हैं।

शिक्षक का व्यक्तित्व

शिक्षक का व्यक्तित्व सम्प्रेषण को प्रभावी बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है; जैसे विषय पर उसका स्वामित्व, छात्रों के प्रति मृदु व्यवहार, ऊँची आवाज, निष्पक्षता, चरित्र तथा उसकी योग्यता की छाप बालक पर पड़े बिना नहीं रहती।

विषयवस्तु का चयन 

शिक्षार्थियों के लिये पठनीय, सरल पदों में क्रमबद्ध तरीके से सम्बद्ध विषय का अध्ययन शिक्षण को प्रभावी बनाता है और बालक रुचि के साथ विषय को समझते हैं। इस प्रकार सीखने का वातावरण सृजित होता है तथा आगे बढ़ने की प्रेरणा विकसित होती है। 

पाठ्य योजना का निर्माण 

यदि शिक्षण सम्प्रेषण में सुव्यवस्थित रूप से पाठ्य योजना का निर्माण कर लिया जाता है तो वह प्रभावकारी होता है क्योंकि उसमें शिक्षण सम्प्रेषण के उद्देश्य समाहित हैं।

उचित शिक्षण विधि एवं सहायक सामग्री 

कुशल शिक्षक सदैव विषय प्रकरण एवं कक्षा स्तर के अनुकूल शिक्षण विधि का प्रयोग करता है और शिक्षण को प्रभावी बनाने के लिये उचित सहायक सामग्री का सामंजस्य भी करता है। 

वैयक्तिक विभिन्नताओं का ध्यान

शिक्षक शिक्षण सम्प्रेषण के समय शिक्षार्थी की व्यक्तिगत विभिन्नताओं बुद्धि स्तर, अभिवृत्ति, रुचि, रुझान, आदत एवं आकांक्षाओं, आदि को ध्यान में रखकर शिक्षण प्रदान करता है।

कक्षा का वातावरण

जिस कक्षा में सम्प्रेषण प्रक्रिया चल रही हो उसका वातावरण भौतिक एवं सामाजिक रूप से व्यवस्थित होना चाहिये, जैसे- प्रकाश, वायु, ऊष्मा एवं सर्दी की उचित व्यवस्था तथा विद्यार्थियों में पारस्परिक मैत्री भाव ।

मानसिक एवं शारीरिक स्वास्थ्य

शिक्षण के प्रति रुचि उत्पन्न करने के लिये आवश्यक है कि बालक एवं शिक्षक का मानसिक एवं शारीरिक स्वास्थ्य अच्छा हो तभी सीखने का वातावरण सृजित हो सकता है।

सहसम्बन्ध पर आधारित

शिक्षण सम्प्रेषण में अन्य विषयों से सम्बन्ध जोड़ते हुए यदि शिक्षण प्रदान किया जाता है तो बहुत प्रभावोत्पादक हो जाता है। 

सिखाने हेतु अभिप्रेरणा

अभिप्रेरणा (Motivation) का प्रादुर्भाव चूँकि शिक्षण का प्रमुख उद्देश्य है और सीखना इसी पर अवलम्बित है। इसके लिये शिक्षक को उचित शिक्षण सम्प्रेषण हेतु अच्छी शिक्षण पद्धति, युक्ति विधि, सहायक सामग्री एवं विषय के सरल तत्त्वों का सम्प्रेषण करना आवश्यक होता है।

इसके साथ ही प्रबल इच्छा का भाव, आनन्दमय अनुभूति, प्रतियोगिता एवं स्पर्द्धा, लगातार अभ्यास, सरल सामग्री का सम्प्रेषण और बालकों का पर्याप्त सहयोग भी शिक्षण सम्प्रेषण को प्रभावी बनाने में सहायक होता है। शिक्षक को समय एवं परिस्थिति के अनुरूप यथासम्भव इनका आश्रय लेना चाहिये।

सम्प्रेषण की रुकावटें Obstructions of Communication

सम्प्रेषण की प्रभावशीलता में सम्प्रेषण परिस्थितियों तथा वातावरण का बहुत महत्त्वपूर्ण हाथ होता है; जैसे- यदि कक्षा में पढ़ाते समय बिजली चली जाती है तो परेशानी होती है तथा सम्प्रेषण की प्रभावशीलता कम हो जाती है। इसी प्रकार यदि वातावरण शोरगुल युक्त होता है तो सम्प्रेषण की प्रभावशीलता को बनाये रखना कठिन हो जाता है। 

इस प्रकार बहुत से ऐसी परिस्थितियों तथा तत्त्वों की गिनती की जा सकती है जो सम्प्रेषण में रुकावट डालती हैं। सम्प्रेषण में यह रुकावटें इस प्रकार हैं
1. रुचि का अभाव (Lack of interest)
2. सम्प्रेषण सामग्री की कमी (Deficiency in communication material)
3. सम्प्रेषण माध्यम की कमिया (Deficiency in communication media) 
4. भाषा की कमी (Deficiency of language)
5. प्राप्तकर्ता सम्बन्धी कमिया (Deficiency relative the receiver)
6. वातावरणजन्य कमिया (Deficiencies concerning prevailing environment)

रुचि का अभाव

सम्प्रेषक तथा प्राप्तकर्त्ता- इन दोनों में से यदि एक की भी रुचि सम्प्रेषण क्रिया में नहीं है तो सम्प्रेषण की प्रक्रिया पूरी नहीं होंगी।

सम्प्रेषण सामग्री की कमी

सम्प्रेषण सामग्री प्राप्तकर्त्ता की रुचि तथा आवश्यकताओं के अनुकूल नहीं है अथवा योग्यताओं और क्षमताओं के अनुकूल नहीं है तो सम्प्रेषण का प्रभाव रुक सकता है।

सम्प्रेषण माध्यम की कमिया

स्रोत और प्राप्तकर्ता के बीच सम्प्रेषण बनाये रखने के लिये सम्प्रेषण माध्यम धारा प्रवाह का काम करता है। अगर धारा प्रवाह रुक जायेगा तो बिजली का बल्ब नहीं जलेगा। अतः माध्यम की कमी से सम्प्रेषण में रुकावट हो सकती है।

भाषा की कमी

जिस भाषा में आप बोल रहे हैं, जिन संकेतों का प्रयोग कर रहे हैं, अगर प्राप्तकर्त्ता को उनकी समझ नहीं है तो फिर सम्प्रेषण कार्य प्रारम्भ ही कैसे हो पायेगा। इसी तरह प्राप्तकर्त्ता समझ तो गया परन्तु उसमें भाषा या संकेत योग्यता नहीं है तो वह अपने विचार आप तक नहीं पहुँचा सकता सम्प्रेषण का क्रम टूट जायेगा.

प्राप्तकर्ता सम्बन्धी कमिया 

इन सभी कमियों के अलावा सम्प्रेषणकर्त्ता सम्प्रेषण के समय किस शारीरिक एवं मानसिक स्थिति से गुजर रहा है, इसका प्रभाव भी सम्प्रेषण में रुकावट खड़ी कर सकता है।

वातावरणजन्य कमिया

जिस वातावरण में सम्प्रेषण की क्रिया चल रही है वह वातावरण में मौसम की प्रतिकूलता, जैसे अधिक गर्मी, वर्षा, ठण्डा, आँधी, तूफान आदि सम्प्रेषण में बाधा डालते हैं। सुविधाओं का अभाव जैसे- प्रकाश, वायु, पानी, बिजली, बैठने व खड़े होने के उचित स्थान का अभाव सम्प्रेषण में रुकावट डालते हैं। शोरगुल, सम्प्रेषण में भाग लेने वाले अन्य साथियों का असहयोग और आवश्यक उत्साह की कमी से भी सम्प्रेषण में रुकावट हो सकती है।

सम्प्रेषण प्रक्रिया को उपयोगी बनाने के उपाय Means for Useful to Communication Process

बालकों के व्यक्तिगत भेदों को ध्यान में रखते हुए सम्प्रेषण को अग्रलिखित प्रकार से उपयोगी बनाया जा सकता है- 

(1) कक्षा में छात्रों की संख्या कम रखी जाय, कम छात्र होने से शिक्षक बालकों के व्यक्तिगत भेदों पर ध्यान दे सकेंगा। 

(2) विद्यालय में शिक्षकों की संख्या बढ़ायी जाय। इससे शिक्षक-छात्र अनुपात कम होगा। शिक्षक छात्रों के अधिक निकट आ सकेंगे। 

(3) बालकों की रुचियों और आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर शिक्षा दी जाय।

(4) बुद्धि परीक्षण द्वारा बालकों की बुद्धि का मापन किया जाय और उनका बुद्धि-लब्धि के अनुसार वर्गीकरण कर दिया जाय। 

(5) कक्षा निर्माण करते समय व्यक्तिगत भेदों को ध्यान में रखा जाय। रुचि, योग्यता और मानसिक क्षमता के आधार पर वर्गीकरण किया जा सकता है।

(6) शिक्षकों का कार्य भार (Work load) कम किया जाय।

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