शिक्षण प्रविधि का अर्थ परिभाषा प्रकार एवं महत्त्व | Teaching Techniques

किसी विषय के शिक्षण में प्रविधि का वही महत्त्व है जो किसी निर्दिष्ट स्थान तक पहुँचने के लिये सही मार्ग का होता है।

शिक्षण प्रविधियां Techniques of Teaching

शिक्षण एक गतिशील तथा सुनियोजित प्रक्रिया है। शिक्षण का उद्देश्य है कि विद्यार्थी अधिक से अधिक सीखने के अनुभव प्राप्त करें। शिक्षण विधियों का सम्बन्ध सीधा शिक्षण के उद्देश्य से होता है। 

अतः प्रत्येक शिक्षण विधि शिक्षण की दिशा तथा गति को निर्धारित करती है। इसके विपरीत शिक्षण प्रविधि का सम्बन्ध शिक्षण के उद्देश्य से सीधा न होकर केवल शिक्षण की विधि से होता है।  

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शिक्षण प्रविधि का अर्थ एवं महत्त्व Meaning and Importance of Teaching Technique 

शिक्षण नीति अथवा शिक्षण प्रविधि शिक्षक द्वारा शिक्षण के सतत् अभ्यास द्वारा विकसित व अधिकतम अच्छाइयों वाला मार्ग है, जिस पर चलकर शिक्षण के उद्देश्य और लक्ष्य प्राप्त किये जा सकते हैं। शिक्षण प्रविधि का विकास एक-दो प्रयासों से नहीं हो जाता। यह एक विशेष दिशा में किये गये निरन्तर प्रयत्नों का परिणाम है। 

प्रत्येक प्रविधि में कुछ अच्छे पक्ष होते हैं, जो उस प्रविधि की विशेषताएँ, लाभ अथवा धनात्मक बिन्दुओं के रूप में माने जाते हैं। शिक्षण प्रविधि का आशय इस तथ्य से लगाया जाता है कि किसी विषय के ज्ञान को छात्रों तक किस प्रकार पहुँचाया जाय? 

किसी विषय के शिक्षण में प्रविधि का वही महत्त्व है जो किसी निर्दिष्ट स्थान तक पहुँचने के लिये सही मार्ग का होता है। कुशल अध्यापन में शिक्षण प्रविधियों का महत्त्व इस प्रकार है- 
  • शिक्षण प्रविधियाँ वैज्ञानिक एवं वस्तुनिष्ठ होती हैं, इसलिये अध्यापन में प्रभावशाली हैं। 
  • ये प्रविधियाँ शिक्षक को वांछनीय ज्ञान कराती हैं। 
  • इनके द्वारा विद्यार्थियों में सामाजिकता की भावना का विकास किया जाता है। 
  • प्रविधियाँ विद्यार्थियों को अध्यापन कला में प्रशिक्षित कर सकती हैं। 
  • शिक्षण प्रविधियाँ विद्यार्थियों को सहभागिता के लिये विभिन्न अवसर प्रदान करती हैं। 
  • प्रविधियाँ विद्यार्थियों में प्रेम, सहयोग, सहानुभूति एवं कर्त्तव्यनिष्ठता की भावना उत्पन्न करती हैं। 
  • विद्यार्थियों में चिन्तन-शक्ति का विकास करती हैं एवं उन्हें अध्ययन हेतु प्रोत्साहित करती हैं। 
  • शिक्षण प्रविधियाँ रोचक एवं उद्देश्यपूर्ण होती हैं।

शिक्षण प्रविधियों की आवश्यकता Need of Teaching Techniques

शिक्षण प्रविधियों की आवश्यकता निम्नलिखित कारणों से है-
  • छात्रों के उद्देश्यपूर्ण ढंग से सीखने तथा उन्हें प्रोत्साहित किये जाने हेतु। 
  • छात्रों में उन कुशलताओं के विकास हेतु, जो उन्हें प्रजातन्त्र के लिये जागरूक बनाये रखती हैं। 
  • छात्रों में विषय के प्रति रुचि उत्पन्न करने एवं कतिपय सामाजिक अभिवृत्तियों का विकास करने के लिये। 
  • छात्रों के ज्ञान में अभिवृद्धि करने एवं उनके चिन्तन की प्रक्रिया को प्रोत्साहित करने हेतु।

शिक्षण की विभिन्न प्रविधियाँ (Various Techniques of Teaching)

  1. प्रश्नोत्तर प्रविधि (Question-Answer Technique)
  2. विवरण प्रविधि (Narration Technique)
  3. वर्णन प्रविधि (Description Technique)
  4. व्याख्यान या भाषण प्रविधि (Lecture Technique)
  5. स्पष्टीकरण प्रविधि (Clarification Technique)
  6. कहानी कथन प्रविधि (Story Telling Technique)
  7. निरीक्षण या अवलोकन प्रविधि (Observation Technique)
  8. उदाहरण प्रविधि (Example Technique)
  9. खेल / गतिविधि प्रविधि (Play Technique)
  10. समूह परिचर्चा प्रविधि (Group Discussion Technique)
  11. प्रयोगात्मक कार्य प्रविधि (Practical Work Technique)
  12. वाद-विवाद प्रविधि (Discussion Technique)
  13. कार्यशाला प्रविधि (Workshop Technique)
  14. भ्रमण प्रविधि (Excursion or Field Trip Technique)

प्रश्नोत्तर प्रविधि (Question-Answer Technique)

यह प्रविधि शिक्षण क्षेत्र में अपना महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है। इस प्रविधि का जन्मदाता प्रसिद्ध विद्वान् सुकरात था। इस प्रविधि में अध्यापक विद्यार्थियों से प्रश्न पूछकर अपने पाठ का विकास करता है। वह पूर्व ज्ञान से सम्बन्धित प्रश्न पूछता है तथा शिक्षण बिन्दुओं के साथ भी प्रश्न पूछता हुआ आगे बढ़ता है। 

इस प्रविधि में प्रश्नों एवं उत्तरों की प्रधानता होने के कारण ही इसे प्रश्नोत्तर प्रविधि कहा जाता है। इस प्रविधि में अध्यापक प्रश्न इस प्रकार से पूछता है कि छात्रों में रुचि एवं जिज्ञासा बनी रहे। वह कक्षा के सहयोग से ही उत्तर ढूँढने का प्रयास करता है एवं छात्रों की शंका का समाधान करता है।

प्रश्नोत्तर प्रविधि के गुण (Merits of question answer technique) 

इस प्रविधि में निम्नलिखित गुण पाये जाते हैं- 
  • विद्यार्थी में विश्वास की भावना जागृत होती है तथा साथ ही उसकी संकोच करने की प्रवृत्ति भी समाप्त होती है। 
  • विद्यार्थी में रुचि एवं जिज्ञासा बनी रहती है, जिससे वह ज्ञान सरलता से प्राप्त कर सकता है। 
  • इस प्रविधि में अध्यापक छात्र से पूर्व ज्ञान से सम्बन्धित प्रश्न भी पूछता है। अतः वह पूर्व में पढ़ाये गये पाठों को भी याद करने का प्रयास करता है। 
  • इसमें अध्यापक छात्रों का मूल्यांकन साथ ही साथ करता जाता है। 
  • प्रश्नोत्तर प्रविधि से विद्यार्थी में सोचने-समझने एवं तर्क करने की क्षमता का विकास होता है। 
  • विद्यार्थी इस प्रविधि के माध्यम से अध्ययन अध्यापन प्रक्रिया में सक्रिय रूप से भाग लेते हैं। 
  • इसमें अधिक समय नष्ट नहीं होता। 
  • पाठ्यक्रम को नियत समय में सरलता से पूर्ण किया जा सकता है।

प्रश्नोत्तर प्रविधि के दोष (Demerits of question answer technique) 

इस प्रविधि के निम्नलिखित दोष हैं- 
  • इस प्रविधि का सबसे बड़ा दोष यही है कि विद्यार्थी को प्रश्न पूछने में शंका नहीं रहती। अंत: वह कभी-कभी विषय से हटकर व्यर्थ के प्रश्न पूछने लगता है। 
  • यह प्रविधि उच्च स्तर पर ही अधिक उपयोगी है। 

विवरण प्रविधि (Narration Technique)

कक्षा शिक्षण में शिक्षक के समक्ष कभी ऐसी परिस्थिति भी आती है, जब किसी तथ्य को प्रश्नों के माध्यम से नहीं समझाया जा सकता। उस समय शिक्षक विवरण का सहारा लेता है। विवरण कहानी कहने का एक रूप है। इस युक्ति का प्रयोग प्रमुख रूप से कहानी कहने, भूगोल और इतिहास की घटनाओं को सुनाने के लिये किया जाता है।

इस युक्ति में किसी घटना को इस प्रकार से प्रस्तुत किया जाता है कि छात्रों के मस्तिष्क में उस घटना या कहानी का एक चित्र सा बन जाता है। विवरण युक्ति में किसी घटना का सजीव चित्र उपस्थित किया जाता है। 

विवरण देने में सावधानियाँ (Precaution in narration)

विवरण देते समय निम्न सावधानियाँ रखनी चाहिये -
  • विवरण देने का ढंग रोचक होना चाहिये। 
  • विवरण देने की भाषा छात्रों के मानसिक स्तर के अनुसार होनी चाहिये। 
  • विवरण देने से पूर्व शिक्षक को अपने विचार का क्रम बना लेना चाहिये। 
  • विवरण अधिक लम्बा या अधिक छोटा नहीं होना चाहिये। 
  • विवरण में किसी उपदेश को सम्मिलित नहीं किया जाना चाहिये। प्रायः छात्र उपदेश पसन्द नहीं करते। 
  • विवरण देते समय चित्र और उदाहरणों की सहायता ली जा सकती है। 
  • विवरण देते समय बीच में यदि प्रश्न भी पूछ लिये जायें तो अच्छा रहता है। 
  • विवरण को नाटक के रूप में अभिनय करने के लिये छात्रों को प्रोत्साहित करना चाहिये ।

विवरण प्रविधि के उद्देश्य (Aims of narration technique)

  • इस युक्ति का उद्देश्य छात्रों के मस्तिष्क पर किसी घटना का स्पष्ट चित्र अंकित करना है। 
  • इस युक्ति का उद्देश्य छात्रों के समक्ष ज्ञान को और अधिक स्पष्ट करना है। 
  • इस युक्ति का उद्देश्य यह है कि छात्र ज्ञान को सरलतापूर्वक ग्रहण कर लें।

विवरण प्रविधि के गुण (Merits of narration technique) 

विवरण प्रविधि के निम्नलिखित गुण हैं- 
  • विवरण के द्वारा किसी घटना का सजीव चित्र छात्रों के समक्ष प्रस्तुत करना सम्भव हो जाता है। 
  • जब शिक्षक यह देखता है कि पाठ का विकास प्रश्नों के द्वारा नहीं किया जा सकता तो वह विवरण का सहारा लेता है। 
  • विवरण कक्षा में अनुशासन बनाये रखता है। 
  • विवरण शिक्षक के शिक्षण को अधिक प्रभावशाली बना देता है।

विवरण प्रविधि के दोष (Demerits of narration technique)

विवरण प्रविधि के निम्नलिखित दोष हैं- 
  • विवरण युक्ति का एक दोष यह है कि इसमें छात्र निष्क्रिय रहता है।
  • यदि विवरण रोचक नहीं होता है तो छात्र उसको ध्यान से नहीं सुनते। 
  • विवरण की एक विशेष शैली होती है जो प्रत्येक शिक्षक में नहीं पायी जाती।

वर्णन प्रविधि (Description Technique)

वर्णन प्रविधि और विवरण प्रविधि एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। वर्णन प्रणाली में किसी व्यक्ति या स्थान का वर्णन युक्ति द्वारा किया जाता है और विवरण युक्ति में किसी घटना का विवरण दिया जाता है। वर्णन स्पष्टीकरण का एक रूप होता है। वर्णन युक्ति का प्रयोग प्रायः सभी विषयों में किया जाता है। वर्णन के द्वारा शिक्षक किसी वस्तु का चित्र प्रस्तुत करता है। 

वर्णन शाब्दिक चित्र बनाने की प्रक्रिया है। वर्णन के द्वारा किसी वस्तु का विवरण दिया जाता है। इस प्रकार छात्र किसी वस्तु के प्रति उचित धारणा बना लेते हैं।

वर्णन प्रविधि के गुण (Merits of description technique)

वर्णन प्रविधि के प्रमुख गुण निम्नलिखित प्रकार हैं- 
  • वर्णन किसी तथ्य का स्पष्टीकरण करता है। 
  • वर्णन प्रविधि के द्वारा कक्षा में रोचकता उत्पन्न की जाती है। 
  • लगभग सभी विषयों में किसी न किसी मात्रा में वर्णन प्रविधि का प्रयोग किया जाता है। 
  • वर्णन प्रविधि शाब्दिक चित्र बनाने की प्रक्रिया है।

वर्णन प्रविधि के दोष (Demerits of description technique) 

वर्णन प्रविधि के प्रमुख दोष इस प्रकार हैं- 
  • प्राय: शिक्षक को उस वस्तु का पूर्ण ज्ञान नहीं होता, जिसका वह वर्णन करना चाहता है। 
  • सभी शिक्षक वर्णन के द्वारा रोचकता नहीं ला सकते जो कि शिक्षण के लिये एक आवश्यक है। 
  • यदि वर्णन करने में तथ्य छूट जाते हैं तो शिक्षण की उपयोगिता समाप्त हो जाती है। 
  • वर्णन युक्ति में छात्र निष्क्रिय रहते हैं। कभी-कभी वर्णन युक्ति के द्वारा शिक्षक अपने उद्देश्यों को प्राप्त नहीं कर पाता।

व्याख्यान या भाषण प्रविधि (Lecture Technique)

यह एक प्राचीन प्रविधि है। इस प्रविधि में केन्द्रबिन्दु अध्यापक होता है। अध्यापक विषय-सामग्री को विद्यार्थियों के समक्ष भाषण के माध्यम से रखता है और विद्यार्थी उसके सामने बैठकर सुनते रहते हैं। इस प्रविधि में अध्यापक विषय-सामग्री को पहले घर पर तैयार करता है और ज्यों का त्यों कक्षा में जाकर उड़ेल देता है, 

अतः अध्यापक को मुख्यतः दो कार्य करने होते हैं-(1) विषयवस्तु का चयन कर तैयारी करना। (2) कक्षा में विषयवस्तु का भाषण के रूप में प्रस्तुतीकरण। 

इस प्रविधि में अध्यापक जहाँ एक अच्छा वक्ता होना चाहिये, वहीं विद्यार्थी में भी अच्छे श्रोता का गुण होना चाहिये तथा विद्यार्थी को भाषा या व्याख्यान नोट करते रहना चाहिये एवं आवश्यक हो तो प्रश्न भी पूछने चाहिये।

व्याख्यान प्रविधि के गुण (Merits of lecture technique) 

इस प्रविधि के निम्नलिखित गुण हैं- 
  • इस प्रविधि द्वारा ज्ञान तीव्र गति से दिया जा सकता है। 
  • यह प्रविधि अध्यापक के लिये सुविधाजनक है क्योंकि कक्षा में आते ही अध्यापक भाषण देने लगता है और भाषण पूरा कर कक्षा से चला जाता है। वह विद्यार्थियों की विभिन्न समस्याओं को हल करने से बच जाता है। 
  • इस प्रविधि के द्वारा पाठ्यक्रम सरलता से पूर्ण किया जा सकता है। 
  • भारतीय परिवेश में कक्षाएँ बड़ी होती हैं तथा शिक्षण सामग्री का अभाव-सा रहता है, यहाँ तक कि अनेक स्थानों पर श्यामपट्ट भी उपलब्ध नहीं होते, अतः यह प्रविधि अनुकूल रहती है। 
  • भाषण प्रविधि से विषय-सामग्री के साथ-साथ विद्यार्थी में भाषण (वाचन) सम्बन्धी योग्यता का भी विकास होता है।
  • यह प्रविधि व्ययकारी नहीं है।
  • इस प्रविधि के माध्यम से विद्यार्थियों में श्रवण कौशल का विकास होता है।

व्याख्यान प्रविधि के दोष (Demerits of lecture technique) 

उपर्युक्त गुणों के होते हुए भी यह प्रविधि दोष रहित नहीं है। इसमें निम्नलिखित दोष पाये जाते हैं - 
  • इस प्रविधि का प्रयोग केवल उच्च कक्षाओं में ही किया जा सकता है, निम्न स्तर पर नहीं। 
  • इस प्रविधि में विद्यार्थी के स्तर का ध्यान नहीं रखा जाता। वह सुनना चाहता हो या सुनना न चाहता हो, उसे भाषण सुनना ही पड़ता है। 
  • यह प्रविधि बालक को श्रोता बनाती है, अत: वह निष्क्रिय होता जाता है। 
  • इसके प्रयोग से कक्षा का वातावरण सजीव नहीं बन पाता है। 
  • यह प्रविधि रटने की प्रवृत्ति को बढ़ावा देती है।
  • सभी अध्यापक इस प्रविधि का अनुसरण नहीं कर सकते, क्योंकि सभी अध्यापकों को न तो विषय वस्तु का अच्छा ज्ञान ही होता है और न वे भाषण देने में निपुण ही होते हैं। 
इस प्रविधि के गुण-दोषों को देखने के बाद यह कहा जा सकता है कि यदि अध्यापक अपने विषय की जानकारी रखता है तथा साथ ही आवश्यक शिक्षण सामग्री का भी प्रयोग करना जानता है तो वह व्याख्यान प्रविधि द्वारा भी प्रभावपूर्ण ढंग से शिक्षण कार्य कर सकता है।

स्पष्टीकरण प्रविधि (Clarification Technique)

अध्यापन में स्पष्टीकरण प्रविधि को कथन के रूप में काम में लिया जाता है। चूँकि अध्यापक कथन को युगों से इतना अधिक उपयोग में लिया गया है कि अनेक व्यक्तियों को अब कथन प्रविधि या भाषण से बिल्कुल सन्तोष नहीं, स्पष्टीकरण प्रविधि भी यदि ढंग से आयोजित न हो तो निष्क्रियता तथा शिथिलता उत्पन्न करती है। इसमें छात्र का भाग- ग्रहण भी नहीं होता। 

अतः सीखने में भी पर्याप्त सहायता नहीं मिलती, यह सभी इसकी परिसीमाएँ हैं फिर भी स्पष्टीकरण प्रविधि उपयोगी प्रविधि है।

स्पष्टीकरण विधि को सरस, प्रभावोत्पादक एवं उपयोगी बनाने में अध्यापक की वाणी एवं व्यक्तित्व बड़ा सहायक होता है। यदि अध्यापक की वाणी स्पष्ट न हो, कर्कश हो या अध्यापक हकलाता हो तो इस प्रविधि की विशेष उपादेयता नहीं रहती। इस प्रविधि को उपादेय बनाने के लिये अध्यापक की वाणी स्पष्ट, मधुर एवं प्रभावोत्पादक हो, उसके कथन में उचित आरोह-अवरोह हो तथा समय एवं प्रसंग के अनुकूल इसमें परिवर्तन कर सकने की - सूझ एवं कौशल हो। 

कक्षाओं की आयु उनके मानसिक स्तर एवं उनकी बौद्धिक पृष्ठभूमि के अनुकूल हो। स्पष्टीकरण करते समय अध्यापक का ध्यान सतत् इस बात पर केन्द्रित रहे कि छात्रों का अवधान बना रहे, जब कभी अवधान भंग होने की आशंका हो उस समय अध्यापक को इस प्रविधि के साथ अन्य प्रविधियों का समन्वय करने की आवश्यकता है।

कथन की भाषा तथा शैली छात्रों के अनुकूल हो तथा प्रसंग के अनुकूल भी हो। जहाँ तक सम्भव बढ़ सके कथन बहुत लम्बे तथा थका देने वाले न हों। कथन छोटे तथा एक-दूसरे से सुसम्बन्धित हों।

कहानी - कथन प्रविधि (Story Telling Technique) 

यह प्रविधि भाषा शिक्षण की, प्राथमिक स्तर पर बड़ी उपयोगी प्रविधि है, क्योंकि छोटे बालकों को कहानी सुनने का बड़ा शौक होता है। वे छोटी अवस्था से ही अपने माता-पिता, दादा-दादी आदि से कहानी सुनते आये हैं। अत: कहानी के माध्यम से उन्हें कोई भी ज्ञान बड़ी सरलता से दिया जा सकता है। 

भाषा की विषयवस्तु का ज्ञान भी उन्हें कहानियों के माध्यम से दिया जा सकता है। अध्यापक को कहानी कहने एवं बनाने की कला में निपुण होना चाहिये। इस प्रविधि का उपयोग करते समय अध्यापक को निम्नलिखित सावधानियाँ बरतनी चाहिये -
  • कहानी बनाते समय उसके उद्देश्यों से अध्यापक को पूर्ण अवगत होना चाहिये। 
  • उसे छात्र के स्तर का ध्यान रखना चाहिये। 
  • कहानी की भाषा सरल एवं बालकों की आयु के अनुसार होनी चाहिये। 
  • अध्यापक की शैली प्रभावपूर्ण होनी चाहिये। 
  • कहानी इस प्रकार की हो कि विद्यार्थियों की जिज्ञासा बढ़े। 
  • प्रसंग के अनुसार उपलब्ध शिक्षण सामग्री का प्रयोग करना चाहिये।

कहानी कथन प्रविधि के गुण (Merits of story telling technique) 

इस प्रविधि में निम्नलिखित गुण पाये जाते हैं- 
  • इस प्रविधि से शिक्षण में बालकों की रुचि एवं जिज्ञासा बनी रहती है। 
  • इस प्रविधि से ज्ञान सरलता से दिया जाना सम्भव होता है। 
  • इस प्रविधि द्वारा नीरस एवं उबाऊ विषयवस्तु को भी प्रभावपूर्ण ढंग से पढ़ाया जा सकता है। 
  • इस प्रविधि में वास्तविक तथ्यों को ही छात्रों के सम्मुख रखा जाता है। 
  • छात्र कक्षा से भागना नहीं चाहते, बल्कि कहानी सुनने की प्रतीक्षा करते रहते हैं।

कहानी कथन प्रविधि के दोष (Demerits of story telling technique) 

कहानी कथन प्रविधि में इसमें निम्नलिखित दोष हैं- 
  • प्रत्येक अध्यापक कहानी बनाने एवं कहने की कला में प्रवीण नहीं होता। 
  • उच्च स्तर पर इसका उपयोग करना कठिन है।
उक्त आधार पर यह निष्कर्ष निकलता है कि इसमें अधिकांश गुण ही हैं। अच्छा कुशल कहानी कहने वाला अध्यापक न मिलना इस प्रविधि का दोष तो है नहीं, यह तो अच्छे अध्यापकों की कमी में आता है। यन्त्र का चलाना न आना किसी यन्त्र का दोष नहीं है। अतः कहा जा सकता है कि प्राथमिक स्तर पर कहानी प्रविधि बहुत उपयोगी है।

निरीक्षण या अवलोकन प्रविधि (Observation Technique)

यह प्रविधि शिक्षण में महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इसमें बालक किसी वस्तु, स्थान या व्यक्ति को देखकर ही उसके बारे में ज्ञान प्राप्त करता है। यह प्रविधि देखकर सीखना नामक सिद्धान्त पर आधारित है। इसके आधार पर किसी स्थान या वस्तु के बारे में ज्ञान कराकर उस पर छात्रों से निबन्ध लिखवाया जा सकता है। 

उदाहरणार्थ- छात्रों को ताजमहल दिखाकर उनसे उसके बारे में निबन्ध लिखवाना। निरीक्षण प्रविधि की सफलता के लिये यह आवश्यक है कि अध्यापक बालकों को जिस स्थान पर ले जाय, उसे वह पूर्व में ही देख लें तथा. उसके बारे में योजना बना लें।  

निरीक्षण प्रविधि की विशेषताएँ (Characteristics of observation technique) 

निरीक्षण प्रविधि की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं- 
  • यह मनोवैज्ञानिक प्रविधि है। इसके प्रयोग से छात्रों की ज्ञानेन्द्रियों का विकास होता है। 
  • इससे छात्रों की चिन्तन शक्ति एवं तर्क शक्ति का विकास होता है। 
  • निरीक्षण प्रविधि के प्रयोग से छात्र के ज्ञान के भण्डार में स्थायी वृद्धि होती है। 
  • यह प्रविधि छात्रों में विषय के प्रति रुचि तथा जिज्ञासा उत्पन्न करती है। 
  • स्थूल वस्तुओं का ज्ञान प्राप्त करने के लिये यह प्रविधि सर्वोत्तम है। 
  • इस प्रविधि द्वारा प्राप्त किया हुआ ज्ञान स्थायी होता है। 
  • यह प्रविधि बाह्य जगत् की जानकारी प्राप्त कराने में हमारी सहायता करती है।

निरीक्षण प्रविधि के लाभ (Merits of observation technique) 

निरीक्षण प्रविधि से निम्नलिखित लाभ होते हैं-
  • इस प्रविधि द्वारा प्राप्त ज्ञान स्थायी होता है। 
  • यह प्रविधि क्रियाशीलता के सिद्धान्त का पालन करती है। 
  • इसमें बालक वास्तविक स्थिति से ज्ञान प्राप्त करता है।
  • इस प्रविधि से छात्र में सीखने की जिज्ञासा एवं उत्सुकता बनी रहती है। 
  • छात्र में कल्पना शक्ति एवं तुलनात्मक शक्ति का विकास होता है।

निरीक्षण प्रविधि के दोष (Demerits of observation technique) 

निरीक्षण प्रविधि के दोष इस प्रकार हैं- 
  • इस प्रविधि द्वारा सीखने में बहुत समय नष्ट होता है।
  • बालकों को कक्षा से बाहर दूर ले जाने के लिये धन की आवश्यकता होती है। 
  • इस प्रविधि में बाहर जाकर छात्रों को अनुशासित रखने में भी कठिनाई आती है। 
  • अभिभावकों की स्वीकृति माँगना आवश्यक है और अनेक अभिभावक इसके लिये सहमत नहीं होते।
इस प्रविधि के गुण-दोष देखने पर ज्ञात होता है कि इसमें गुण ही गुण हैं और जो धन की व्यवस्था, अनुशासन या स्वीकृति दोष हैं, उनका निवारण एक योग्य शिक्षक सरलता से कर सकता है।

उदाहरण प्रविधि (Example Technique)

इस प्रविधि में छात्र विशिष्ट से सामान्य की ओर अग्रसर होते हैं। छात्र के सामने सर्वप्रथम अनेक उदाहरण रखे जाते हैं और फिर वह इन उदाहरणों के आधार पर कोई निष्कर्ष निकालता है। इस प्रविधि का अधिकांश प्रयोग व्याकरण शिक्षण के अन्तर्गत किया जाता है।

उदाहरण प्रविधि के गुण (Merits of example technique) 

इस प्रविधि में निम्नलिखित गुण पाये जाते हैं- 
  • यह प्रविधि मनोवैज्ञानिक है क्योंकि इसमें मूर्त से अमूर्त की ओर चलते हैं। 
  • कक्षा का वातावरण उदाहरणों द्वारा सजीव एवं रुचिकर बनाना सम्भव होता है। 
  • छात्र अध्ययन अध्यापन प्रक्रिया में रुचि लेते हैं तथा ध्यान से सुनते हैं। 
  • छात्रों की विचार शक्ति को प्रोत्साहन मिलता है। 
  • छात्र तर्क के आधार पर किसी निष्कर्ष पर पहुँचते हैं। 
  • छात्र एवं अध्यापक दोनों ही क्रियाशील रहते हैं। 

उदाहरण प्रविधि के दोष (Demerits of example technique) 

उदाहरण प्रविधि के दोष निम्नलिखित हैं- 
  • अध्यापक को उदाहरण देने की कला में प्रवीण होना अत्यावश्यक है।
  • किसी निष्कर्ष पर पहुँचने के लिये पर्याप्त उदाहरण देने पड़ते हैं। अत: बहुत समय नष्ट होता है। 
  • उच्च स्तर पर इस प्रविधि का प्रयोग करना अच्छा नहीं है।

खेल / गतिविधि प्रविधि (Play Technique)

खेल प्रविधि के जन्मदाता यूरोप के प्रसिद्ध शिक्षाशास्त्री श्री काल्डवेल कुक हैं। सुप्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक मैक्डूगल ने खेल को एक सामान्य स्वाभाविक प्रवृत्ति कहा है और लिखा है कि "खेल एक स्वाभाविक, आनन्ददायक एवं जन्मजात शक्ति है।" 

अतः पाठशालाओं में खेल का बड़ा महत्त्व है। खेल से शारीरिक एवं सामाजिक भावना का विकास और नेतृत्व शक्ति का विकास तो होता ही है, साथ ही छात्र अनुशासनप्रिय भी होता है तथा मानसिक तनावों से मुक्त होता है। खेल या खेल सम्बन्धी क्रियाओं के शिक्षात्मक पहलुओं एवं क्रियाओं द्वारा सीखने के सिद्धान्त से जो कुछ भी छात्र सीखता है, वह ज्ञान अधिक सुदृढ़ होता है तथा छात्र उसे शीघ्रता से नहीं भूलता।  

प्रारम्भिक चर्चाओं में पढ़ना-लिखना खेल द्वारा भली-भाँति सिखाया जा सकता है। छोटे बच्चे खेलों में रुचि लेते हैं। अतः अध्यापन में निन्मलिखित प्रकार के शिक्षा सम्बन्धी खेलों का बड़ा महत्त्व है- (1) शिक्षा को रोचक बनाने वाले खेल, (2) विविधता युक्त खेल तथा (3) सीखने की क्रिया में सहायक खेल।

खेल बालकों की नैसर्गिक प्रवृत्ति है। यदि इस प्रवृत्ति का शिक्षण में लाभ उठाया जाय और इसे शिक्षा में उचित स्थान दिया जाय तो बालक सहज ही में शिक्षा ग्रहण कर लेते हैं। खेल द्वारा कठिन से कठिन कार्य बालक आनन्द तथा उत्साह से करता है। खेल द्वारा भाषा शिक्षण रुचिकर एवं स्थायी होता है। 

खेल की भावना को नाटक, वाद-विवाद, सामूहिक चर्चा, लिखना, पढ़ना, वर्तनी, शब्द निर्माण आदि अनेक क्रियाओं के प्रयोग में लाया जा सकता है। वस्तुओं से खिलाते-खिलाते बालकों को नये शब्द सिखा दिये जाते हैं। गीत गवाते-गवाते वाक्य बनाना सिखाया जाता है। वर्तनी सिखाने के लिये वर्तनी के शब्द बनाना, अशुद्ध शब्दों को शुद्ध करना, विलोम शब्द सम्बन्धी प्रतियोगिताएँ आयोजित करना, वचन, लिंग, काल के बदलने के खेल खिलाना तथा रिक्त स्थान पूर्ति के खेल खिलाना आदि ऐसी क्रियाएँ हैं, जिनसे भाषा शिक्षण में खेल की भावना उत्पन्न की जाती है। 

खेल द्वारा की गयी क्रियाएँ बालकों को रुचिकर प्रतीत होती हैं। अरुचिकर क्रियाओं को भी शिक्षण की यह रीति रोचक बना देती है। खेल में बालक अपने उत्तरदायित्व को समझता है। इस प्रकार खेल द्वारा शिक्षा, रुचि, स्वतन्त्रता और उत्तरदायित्व के मनोवैज्ञानिक सिद्धान्तों पर आधारित होती है।

समूहपरिचर्चा प्रविधि (Group Discussion Technique)

सरल शब्दों में सामूहिक परिचर्चा का अर्थ है समूह के अन्तर्गत की जाने वाली पारम्परिक परिचर्चा या वाद-विवाद। गोष्ठी या विचारों के आदान-प्रदान के रूप में सामूहिक परिचर्चा व्यूहरचना को परिभाषित करते हुए यह कहा जा सकता है कि "सामूहिक परिचर्चा व्यूहरचना निर्धारित शिक्षण अधिगम उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु प्रयोग में लाई जाने वाली एक ऐसी प्रविधि है, जिसमें सामूहिक परिचर्चा अर्थात् विद्यार्थियों तथा शिक्षकों के मध्य या विद्यार्थियों में होने वाले पारस्परिक वाद-विवाद एवं विचारों के आदान-प्रदान को शिक्षण अधिगम प्रक्रिया का मुख्य आधार बनाने का प्रयत्न किया जाता है।" 

इस प्रकार की सामूहिक परिचर्चा, गोष्ठी या वाद-विवाद बिना किसी पूर्व योजना के यूं ही प्रसंगवश होता रहे ऐसी कोई बात नहीं है। शिक्षक एवं विद्यार्थी दोनों को ही इस परिचर्चा में पूरी तरह सक्रिय साझेदारी निभाकर परिचर्चा की गतिविधियों के नियोजन तथा संगठन पर इस तरह से ध्यान देना होता है कि उनके माध्यम से निर्धारित शिक्षण अधिगम उद्देश्यों को ठीक ढंग से प्राप्त किया जा सके।

सामूहिक परिचर्चा की प्रक्रिया Process of Group Discussion

सामूहिक परिचर्चा में किसी एक कक्षा के विद्यार्थी विषय अध्यापक के साथ मिलकर एक समूह का निर्माण करते हैं। समूह का नेतृत्व विषय अध्यापक के हाथ ही में होता है। विद्यार्थियों के साथ मिलकर सामूहिक परिचर्चा प्रविधि के संगठन और संचालन हेतु निम्नलिखित बातों पर ध्यान देना आवश्यक होता है।

नियोजन अवस्था

इस अवस्था में अध्यापक विद्यार्थियों को सामूहिक परिचर्चा की आवश्यकता एवं उपयोगिता का अनुभव कराने का प्रयत्न करता है। शिक्षण अधिगम उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए इस परिचर्चा प्रक्रिया को किस तरह आयोजित किया जायेगा, इन सभी बातों पर विचार करने का प्रयत्न करता है।

क्रियान्वयन अवस्था

इस अवस्था में सामूहिक परिचर्चा व्यूहरचना को नियोजन के आधार पर क्रियान्वित करने का प्रयत्न किया जाता है। अध्यापक समूह का नेतृत्व संभालते हुए यह प्रयत्न करता है कि समूह के उत्तरदायी सदस्यों के रूप में सभी विद्यार्थी सामूहिक परिचर्चा में पूरी सक्रियता से अपनी-अपनी भूमिका निभायें। इसमें विचारों के आदान-प्रदान का तरीका पूरी तरह जनतन्त्रात्मक (democratic) होता है।  

मूल्यांकन अवस्था

इस अवस्था में सामूहिक परिचर्चा व्यूहरचना के परिणामो का शैक्षिक उद्देश्यों के उपलब्धि के सन्दर्भ में मूल्यांकन करने का प्रयत्न किया जाता है। 

इस कार्य हेतु समूह सचिव जो विद्यार्थियों में से ही एक होता है, परिचर्चा की सारी कार्यवाही को नोट करता जाता है जैसे परिचर्चा में विद्यार्थियों की क्या-क्या गतिविधियाँ रहीं, क्या-क्या प्रश्न पूछे गये, किस तरह के सुझाव किन-किन बातों के लिये दिये गये, किसी एक निर्णय पर कैसे पहुँचा गया तथा अध्यापक द्वारा किस प्रकार का निर्देशन और परामर्श प्राप्त हुआ। 

इस तरह की सभी बातें रिकॉर्ड की जाती रहती है। इस तरह रिकॉर्ड की गई कार्यवाही के आधार पर यह देखा जाता है कि शिक्षण अधिगम उद्देश्यों की प्राप्ति के सन्दर्भ में क्या कुछ कमी रह गई है? इस कमी को पूरा करने के लिये वांछित सूचना, सामग्री, स्पष्टीकरण इत्यादि जैसी आवश्यकता हो, अध्यापक द्वारा विद्यार्थियों को प्रदान करने के प्रयत्न किये जाते हैं।

सामूहिक परिचर्चा के लाभ Advantages of Group Discussion 

सामूहिक परिचर्चा प्रविधि के लाभ इस प्रकार हैं- 
  • शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में छात्रों का सहयोग इस व्यूहरचना द्वारा शिक्षक को आसानी से प्राप्त हो सकता है
  • इसके द्वारा छात्रों का सामाजिक विकास करने तथा उन्हें जनतान्त्रिक जीवन जीने का ढंग सिखाने के भी उचित अवसर प्राप्त होते हैं। 
  • समूह के सदस्य के रूप में सभी की बातें सुनने के द्वारा छात्रों को एक अच्छा श्रोता बनने का प्रशिक्षण मिलता है।
  • इस प्रविधि के माध्यम से छात्रों में विविध प्रकार की योग्यताओं, क्षमताओं और कुशलताओं का सहज ही विकास हो जाता है। विचारों के संश्लेषण, विश्लेषण तथा मूल्यांकन करने की योग्यता, निष्कर्ष निकालने की क्षमता, समस्या समाधान की योग्यता, आलोचना तथा समालोचना क्षमता आदि इसी प्रकार के गुण हैं जिनका समावेश करने में यह प्रविधि सहयोगी सिद्ध हो सकती है।  
  • इस प्रविधि का उपयोग छात्रों को यह सीखने में सहायता कर सकता है कि किसी भी विचार को स्वीकार करने के लिये उसे तर्क की कसौटी पर परखकर अवश्य ही देखा जाना चाहिये।  
  • मौखिक अभिव्यक्ति और सशक्त सम्प्रेषण योग्यता का विकास करने हेतु इस प्रविधि से बहुत सहयोग प्राप्त हो सकता है तथा साथ ही सृजनात्मक एवं रचनात्मक चिन्तन को भी बढ़ावा देने में यह प्रविधि लाभप्रद सिद्ध हो सकती है। 
  • यह प्रविधि जनतान्त्रिक ढंग से खुलकर सभी बातों को सोचने, विचारों की समीक्षा करने तथा आलोचना करने का अवसर प्रदान करती है।  

सामूहिक परिचर्चा के दोष या सीमाएँ Draw backs or Limitations of Group Discussion 

सामूहिक परिचर्चा प्रविधि में निम्नलिखित दोष एवं सीमाओं की उपस्थिति पायी जा सकती है - 
  • समूह नेता होने के नाते अध्यापक सामूहिक परिचर्चा में अपना दबदबा बनाये रखने हेतु व्यर्थ ही समूह सदस्यों के सुझावों और बातों की अनदेखी करने का प्रयास कर सकता है।  
  • सामूहिक परिचर्चा अपने लक्ष्य से भटक सकती है और सदस्यगण व्यर्थ की बातों में अपना समय बर्बाद कर सकते हैं। 
  • समूह के सदस्य परिचर्चा के दौरान एक-दूसरे से उलझ सकते हैं। व्यक्तिगत आक्षेप और कटाक्षों से परिचर्चा का वातावरण खराव हो सकता है। 
  • समूह में से कोई एक या दो सदस्य पूरी परिचर्चा पर तरह से छाये रह सकते हैं कि दूसरों को कुछ कहने या करने का मौका ही नहीं मिले। 
  • समूह के जो सदस्य संकोची प्रकृति के या आगे बढ़कर सहज रहने वाले नहीं होते, समूह परिचर्चा में प्राय: उपेक्षित ही रह जाते हैं, फलस्वरूप परिचर्चा में उनका कोई भी योगदान देखने को नहीं मिलता।  

प्रयोगात्मक कार्य प्रविधि (Practical Work Technique)

प्रयोग विधि में छात्रों को स्वयं प्रयोग करने का अवसर प्राप्त होता है। छात्रों को आवश्यक निर्देश देकर उपकरण दे दिये जाते हैं, जिनकी सहायता से वे स्वयं निरीक्षण करते हैं, परीक्षण करते हैं। गणनाओं को लिखकर स्वयं परिणाम निकालते हैं अथवा उपकरण तथा जीव-जन्तु का चित्र खींचते हैं। यदि किसी छात्र को कोई शंका अथवा कठिनाई होती है तो शिक्षक उनका समाधान करते हैं और आवश्यक मार्गदर्शन करते हैं। 

इस विधि में छात्र अधिकतम सक्रिय रहता है, जबकि शिक्षक निरीक्षण करते रहते हैं। माध्यमिक शालाओं में सप्ताह में दो-तीन दिन प्रायोगिक कार्यों के लिये रखे जाते हैं, जिनमें दो लगातार खण्डों की व्यवस्था की जाती है। सम्पूर्ण सत्रभर के पाठ्यक्रम को सुविधानुसार बाँट लिया जाता है। शिक्षक प्रयोग से सम्बन्धित सैद्धान्तिक जानकारी अन्य कालखण्डों में छात्रों को दे देता है और समस्या का हल करने के लिये छात्र प्रयोगशाला में स्वयं प्रयोग करते हैं। 

प्रयोग विधि के गुण (Merits of experiment method)

प्रयोग विधि के गुण निम्नलिखित हैं-
  • यह समस्या हल करने की उत्तम विधि है। समस्या का हल प्रयोगों के आधार पर किया जाता है, इससे विषय रुचिकर और सार्थक बन जाता है। 
  • इसके द्वारा छात्रों में निरीक्षण, तर्क तथा निर्णय आदि गुणों का विकास होता है। 
  • छात्रों में उपकरणों को सावधानीपूर्वक उपयोग करने की क्षमता एवं प्रयोग की कुशलता आती है। 
  • छात्रों में आत्म विश्वास, आत्मनिर्भरता तथा आत्म-अनुशासन का विकास होता है। 
  • छात्र स्वयं अपने हाथों से कार्य करके सीखता है। इससे कार्य के प्रति आदर की भावना का संचार होता है और स्थायी ज्ञान प्राप्त होता है। 
  • छात्रों को विज्ञान सम्बन्धी नियमों और तथ्यों की जाँच करने का अवसर मिलता है, उसकी सत्यता वह स्वयं सिद्ध करता है।  

प्रयोग विधि के दोष (Demerits of experiment method) 

प्रयोग विधि के दोष निम्नलिखित हैं- 
  • इस विधि में व्यक्तिगत उपकरणों की व्यवस्था आवश्यक है। अतः यह एक खर्चीली विधि है। 
  • अनेक प्रयोग वास्तविक समस्याओं से सम्बन्धित नहीं होते, इसलिये प्रायोगिक कार्य नीरस हो जाता है। 
  • छात्रों के परिणाम एवं निष्कर्ष पर देखरेख आवश्यक है, अन्यथा वे नकल करते हैं। 
  • यह निश्चित नहीं है कि छात्र प्रयोग विधि से समस्याओं का हल करना सीख जायें। अतः बाद के जीवन में इसकी उपयोगिता संदिग्ध है। 
  • कुछ ऐसे तथ्य भी हैं, जिन्हें प्रयोग विधि की अपेक्षा प्रदर्शन-विधि से अधिक अच्छी तरह समझाया जा सकता है। 
  • छात्र प्रायोगिक कार्य में दक्ष नहीं होता, इसलिये अधिक समय नष्ट होता है। 
  • यदि शिक्षक निष्क्रिय हो तो यह विधि सफल नहीं होती। 
  • यदि उपकरण कमजोर हो तो छात्रों द्वारा उनके टूटने का भय रहता है। 
  • खतरनाक प्रयोगों में थोड़ी भी असावधानी दुर्घटनाओं का कारण बन सकती है।

वाद-विवाद प्रविधि (Discussion Technique)

वाद-विवाद प्रविधि को विचार विनिमय प्रविधि भी कहा जाता है। आजकल छात्र को एकमात्र निष्क्रिय श्रोता नहीं माना जाता, वरन् उससे यह आशा की जाती है कि वह स्वयं भी ज्ञान आदान-प्रदान की प्रक्रिया में सहयोग दे। 

यह मनोवैज्ञानिक सत्य है कि छात्र जिस ज्ञान को स्वयं सक्रिय होकर प्राप्त करता है, वह उसके मस्तिष्क में स्थायी हो जाता है। छात्र को ज्ञान प्राप्त करने में सक्रिय करने के लिये ही वाद-विवाद प्रविधि का प्रयोग किया जाता है।

वाद-विवाद प्रविधि शिक्षण की वह प्रविधि है, जिसमें अध्यापक और छात्र परस्पर मिल जुलकर किसी प्रकरण अथवा समस्या के सम्बन्ध में स्वतन्त्र वातावरण में विचारों का आदान-प्रदान करते हैं।

वाद-विवाद प्रविधि की विशेषताएँ (Characteristics of discussion technique) 

वाद विवाद प्रविधि में निम्नलिखित विशेषताएँ पायी जाती हैं -
  1. नेतृत्व का प्रशिक्षण - इस प्रविधि द्वारा नेतृत्व का प्रशिक्षण प्राप्त होता है। इस प्रविधि में प्रत्येक छात्र को अपनी भावनाओं तथा विचारों की अभिव्यक्ति का अवसर मिलता है।
  2. मानसिक विकास - वाद विवाद में विवेचना, आलोचना तथा वर्तमान भाषायी प्रश्नों के मूल्यांकन आदि द्वारा छात्रों में स्पष्ट विचार व्यक्त करने की शक्ति का विकास होता है।
  3. प्रेरणा की समस्या का हल - वाद विवाद प्रविधि में छात्र सम्पूर्ण कक्षा के साथ सामुदायिक कार्य करने में व्यस्त रहता है। प्रत्येक कार्य को अपना उत्तरदायित्व समझता है। कार्य करने में रुचि एवं उत्साह रहता है। कक्षा समूह में रहकर ही प्रत्येक छात्र व्यक्तिगत रूप से अच्छे से अच्छा कार्य करना चाहता है। 
  4. सम्बन्धों का स्वाभाविक विकास - इस प्रविधि से कक्षा में कृत्रिमता का कोई स्थान नहीं रह जाता तथा शिक्षक एवं विद्यार्थी के पारस्परिक सम्बन्ध स्वाभाविक रूप से विकसित होते हैं।
  5. आत्माभिव्यक्ति का विकास - वार्तालाप या वाद-विवाद प्रविधि की यह विशेषता है कि इसमें प्रत्येक छात्र को अपने विचारों को अभिव्यक्त करने का अवसर मिलता है। विचारों की अभिव्यक्ति के साथ-साथ सीखने की प्रक्रिया में भी इसका योगदान है।

वाद-विवाद प्रविधि के गुण (Merits of discussion technique) 

इस प्रविधि के निम्नलिखित गुण हैं- 
  • इस प्रविधि के द्वारा छात्र सीखने की प्रक्रिया में सक्रिय रूप से भाग लेने वाला बन जाता है। 
  • यह प्रविधि स्व-निर्देशन (Self-direction) पर बल देती है। 
  • यह छात्रों को मिल-जुलकर कार्य करने का प्रशिक्षण प्रदान करती है। 
  • यह छात्रों में सहिष्णुता एवं सहयोग की भावना विकसित करती है। 
  • विषयवस्तु का चयन एवं संगठन करना सिखाती है। 
  • यह छात्रों को अपने-अपने भावों एवं विचारों को सुव्यवस्थित रूप में अभिव्यक्त करना सिखाती है। 
  • यह छात्रों में स्वतन्त्र अध्ययन करने की आदत का विकास करती है। 
  • इसके द्वारा छात्रों की तर्क एवं निर्णय शक्तियों का विकास किया जाता है।

वाद-विवाद प्रविधि के दोष (Demerits of discussion technique) 

इस प्रविधि में निम्नलिखित दोष पाये जाते हैं- 
  • इस प्रविधि के द्वारा अध्यापन कराने के लिये समय की अधिक आवश्यकता है। 
  • इसके द्वारा छात्र निरर्थक वाद-विवाद में पड़कर समय नष्ट कर सकते हैं। 
  • इससे लज्जाशील एवं मन्द बुद्धि छात्र समुचित लाभ नहीं उठा पाते। 
  • सभी शिक्षक कुशलतापूर्वक इस प्रविधि का संचालन नहीं कर सकते। 
  • यह प्रविधि छोटी कक्षाओं में प्रयोग में नहीं लायी जा सकती।

कार्यशाला प्रविधि (Workshop Technique)

सेवारत शिक्षकों को नवीन प्रकार की परीक्षाओं की रचना, अनुदेशन के निर्माण, नवीन प्रकार की पाठ-योजनाओं की रचना तथा शिक्षण अधिगम उद्देश्यों को व्यावहारिक रूप में लिखने के लिये प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है, इसके लिये कार्यशाला प्रविधि का प्रयोग किया जाता है। कार्यशाला प्रविधि का प्रयोग क्रियात्मक पक्ष के विकास के लिये किया जाता है।

कार्यशाला प्रविधि का प्रमुख उद्देश्य नवीन प्रविधिों, विधियों एवं उपागमों से शिक्षकों को अवगत कराना एवं उनका प्रशिक्षण देना है, जिससे वह अपने कक्षा शिक्षण में इनका उपयोग कर सकें तथा अपने शिक्षण की प्रभावशीलता में वृद्धि कर सकें। कार्यशालाओं में भाग लेने वाले शिक्षकों को कुछ न कुछ कार्य करने का अवसर दिया जाता है, जैसे नवीन प्रकार की परीक्षाओं के लिये प्रश्नों की रचना करना, उद्देश्यों को व्यावहारिक रूप में लिखना, किसी प्रकरण पर अनुदेशन तैयार करना एवं नवीन प्रकार की पाठ-योजना के प्रतिमान तैयार करना आदि ।

कार्यशाला की विशेषताएँ (Advantage of workshop) 

कार्यशाला अनुदेशन एवं अधिगम परिस्थितियों को उत्पन्न करने की एक प्रभावशाली प्रविधि है। इस प्रविधि की अधोलिखित विशेषताएँ हैं
  • इस प्रविधि के द्वारा शिक्षा के ज्ञानात्मक एवं क्रियात्मक उच्च उद्देश्यों की प्राप्ति की जाती है। 
  • शिक्षा के नवीन उपागमों के सैद्धान्तिक तथा क्रियात्मक पक्षों का बोध कराया जाता है। 
  • इस विधि के उपयोग से व्यावसायिक क्षमताओं का विकास किया जाता है। 
  • शिक्षण कौशलों का विकास एवं सुधार किया जाता है। 
  • उच्च स्तरीय व्यक्तिगत क्रियाओं को प्रोत्साहित किया जाता है तथा उनके अभ्यास का अवसर दिया जाता है। 
  • इस प्रविधि के शिक्षण द्वारा समूह में कार्य करने तथा सहयोग की भावना का विकास होता है। 
  • इसमें व्यावसायिक समस्याओं के गहन अध्ययन का अवसर मिलता है। 
  • समस्याओं के समाधान एवं व्यावसायिक कौशलों के विकास के लिये सुझाव तथा निर्देशन भी दिया जाता है। 
  • कार्यशाला द्वारा नवीन प्रत्ययों एवं उपागमों से अवगत कराया जाता है तथा उनकी प्रभावशीलता के मूल्यांकन का अवसर मिलता है। 
  • इस प्रविधि के प्रयोग से व्यावसायिक एवं सामाजिक दृष्टिकोण व्यापक होता है।

भ्रमण प्रविधि (Field Trip Technique) 

क्षेत्र भ्रमण की संकल्पना का शिक्षण अधिगम के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण स्थान है। क्षेत्र भ्रमण के अन्तर्गत केवल शैक्षिक उद्देश्य की पूर्ति हेतु किये गये पर्यटन को ही लेते हैं, मनोरंजन के लिये किये गये पर्यटन को नहीं लेते। अतः क्षेत्र भ्रमण से आशय उन सभी यात्राओं से हो सकता है, जिन्हें करने से पूर्व निर्धारित शैक्षिक उद्देश्यों की पूर्ति होती है।

इस विधि द्वारा छात्र वास्तविक स्थिति से ज्ञान प्राप्त करता है। वह भ्रमण करके पर्यावरण सम्बन्धी ज्ञान प्राप्त करता है। छात्रों को भ्रमण के लिये कहाँ ले जाय तथा भ्रमण पर जाने से पूर्व किन-किन बातों का ध्यान अध्यापक को रखना चाहिए ?

भ्रमण प्रविधि के गुण Merits of Excursion Technique

भ्रमण प्रविधि में निम्नांकित गुण देखने को मिलते हैं 
  • विद्यार्थी स्वयं प्रत्यक्ष अनुभव द्वारा ज्ञान प्राप्त करते हैं। 
  • इस विधि द्वारा अर्जित ज्ञान स्थायी होता है। 
  • यह छात्र के क्रियाशीलता के सिद्धान्त पर आधारित है। 
  • यह विधि 'बाल केन्द्रित' है क्योंकि पर्यावरण शिक्षक तो केवल मार्गदर्शक होता है। 
  • यह छात्रों को आपस में सहयोग एवं मिलजुल कर रहने की प्रवृत्ति को प्रोत्साहन देती है। 
  • पर्यावरण अध्ययन की इस विधि द्वारा विद्यार्थी का शारीरिक, मानसिक एवं संवेगात्मक दृष्टि से विकास होता है।
  • छात्रों में प्रकृति के प्रति आकर्षण बढ़ता है, जिससे उनका प्राकृतिक वातावरण से सम्बन्ध स्थापित करना सरल एवं सहज होता है और धीरे-धीरे उनमें सौन्दर्यानुभूति (Esthetic Sence) का विकास होता है। 

भ्रमण प्रविधि के दोष Demerits of Excursion Technique

इस विधि में निम्नांकित दोष पाये जाते हैं-
  • यह विधि बहुत खर्चीली है। 
  • इस विधि द्वारा पाठ्यक्रम को पूरा नहीं किया जा सकता। 
  • इसमें पर्याप्त समय नष्ट हो जाता है। 
  • भ्रमण पर ले जाने हेतु छात्रों के अभिभावक आसानी से स्वीकृति नहीं देते हैं। 

उपर्युक्त गुण-दोषों के आधार पर कहा जा सकता है कि पर्यावरण अध्ययन में इस विधि का बहुत महत्त्व है। यदि कोई समस्या आती है तो एक कुशल अध्यापक अपने अनुभव एवं सूझबूझ के साथ आसानी से उस समस्या को दूर कर सकता है।

इस Blog का उद्देश्य प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे प्रतियोगियों को अधिक से अधिक जानकारी एवं Notes उपलब्ध कराना है, यह जानकारी विभिन्न स्रोतों से एकत्रित किया गया है।