सम्प्रेषण (Communication) का अर्थ एवं परिभाषा

सम + प्रेषण अर्थात् समान रूप से भेजा गया। सम्प्रेषण को अंग्रेजी में Communication कहते हैं। इस शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के Communis से हुआ है

सम्प्रेषण का अर्थ Meaning of Communication

सूचनाओं तथा विचारों का आदान-प्रदान करना। सम्प्रेषण कहलाता है ।

सम्प्रेषण दो शब्दों से मिलकर बना है- सम + प्रेषण अर्थात् समान रूप से भेजा गया। सम्प्रेषण को अंग्रेजी में कम्यूनीकेशन (Communication) कहते हैं। कम्यूनीकेशन शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के कम्यूनिस (Communis) शब्द से मानी जाती है, जिसका अर्थ होता है- सामान्य बनाना (To make common)।
 
अतः सम्प्रेषण का अर्थ है परस्पर सूचनाओं तथा विचारों का आदान-प्रदान करना। सम्प्रेषण के संकुचित अर्थ में दो या दो से अधिक व्यक्तियों के बीच विचारों, सन्देशों एवं सूचनाओं का आदान-प्रदान करना है, चाहे व्यक्ति इन सूचनाओं को समझे या नहीं तथा विश्वास करे या नहीं। सम्प्रेषण का व्यापक अर्थ यह है कि दो या दो से अधिक व्यक्तियों के बीच विचारों, सन्देशों, सूचनाओं तथा तथ्यों को समझा जा सके।

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Meaning of Communication

सम्प्रेषण की परिभाषाओं को निम्नलिखित प्रकार से है -

पाल लीगन्स के अनुसार- संचार या सम्प्रेषण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा दो या दो से अधिक लोग विचारों, तथ्यों, आवश्यकताओं एवं प्रभावों आदि का इस प्रकार विनिमय करते हैं कि संचार प्राप्त करने वाला व्यक्ति संदेश के अर्थ, उद्देश्य तथा उपयोग को भली-भाँति समझ लेता है।

ई. जी. मेयर के शब्दों में : सम्प्रेषण से तात्पर्य एक व्यक्ति के विचारों तथा सम्मतियों से दूसरे व्यक्तियों को परिचित कराने से है।

डॉ. कुलश्रेष्ठ के अनुसार : सम्प्रेषण एक गत्यात्मक, उद्देश्यपूर्ण, द्विध्रुवीय प्रक्रिया है। इसमें सूचनाओं तथा विचारों का सम्प्रेषण एवं ग्रहण करना लिखित, मौखिक अथवा संकेतों के माध्यम से होता है।

लुईस ए, एलन के मत में : सम्प्रेषण अर्थों का एक पुल है जिसमें कहने, सुनने तथा समझने की व्यवस्थित तथा सतत् प्रक्रिया रहती है।

श्रीमती आर. के. शर्मा के शब्दों में : सम्प्रेषण विचार विमर्श की वह विद्या है जिसके माध्यम से व्यक्ति व्यवस्थित तथा तर्कसम्मत विचार एवं सम्मति को ग्रहण कर मार्गदर्शन प्राप्त करते हैं।

एडगर डेले के अनुसार : सम्प्रेषण विचार-विनिमय के मूड (Mood) में विचारों तथा भावनाओं को परस्पर जानने तथा समझने की प्रक्रिया है।

सम्प्रेषण की आवश्यकता एवं महत्त्व

विद्यालय प्रशासन में शिक्षण एवं अधिगम के प्रमुख रूप देखने को पाये जाते हैं जिनके विकास का आधार सम्प्रेषण ही माना जाता है। सम्प्रेषण के अभाव में हम शिक्षण एवं अधिगम के उद्देश्यों को प्राप्त नहीं कर सकते हैं। अतः शिक्षण एवं अधिगम में सम्प्रेषण के महत्त्व, योगदान एवं आवश्यकता का वर्णन निम्नलिखित शीर्षकों के माध्यम से करेंगे

व्यक्ति और समाज का लाभ

सम्प्रेषण के द्वारा समाज में होने वाले परिवर्तन का ज्ञान विद्यालय प्रशासन को होता है और विद्यालय के उद्देश्य एवं कार्य प्रणाली का ज्ञान समाज को होता है। अतः सम्प्रेषण के द्वारा व्यक्ति एवं समाज दोनों का हित सम्पन्न होता है।

अनिवार्य शिक्षा

व्यक्तिगत विचारों के आदान-प्रदान से छात्र की आर्थिक एवं सामाजिक समस्याओं का ज्ञान किया जाता है। इसके उपरान्त उनकी मानसिकता में परिवर्तन करके शिक्षा के महत्त्व से अवगत कराया जाता है; जैसे- बहुत से परिवारों में स्त्री शिक्षा पर कम ध्यान दिया जाता है और उनका कार्य क्षेत्र घर समझा जाता है। लेकिन सम्प्रेषण द्वारा ही साहित्य तथा महान् महिलाओं का उदाहरण देकर इस संकीर्ण भावना को विस्तृत रूप में परिवर्तित किया जाता है। इस प्रकार बालिकाओं को विद्यालय में शिक्षा ग्रहण करने के लिये भेजा जाता है।

छात्र का सर्वांगीण विकास

शिक्षा प्रशासन में होने वाले परिवर्तनों का पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से ज्ञान होता है। इसके लिये विद्वानों के विचारों को भी आमन्त्रित किया जाता है उसी के अनुरूप विद्यालय में शिक्षण विधियों एवं साधनों में समन्वय स्थापित किया जाता है; जैसे- पाठ्यक्रम सहगामी क्रियाओं का आयोजन सम्प्रेषण की ही देन माना जाता है।

सामाजिक, आर्थिक एवं राजनैतिक समायोजन 

विद्यालय में विभिन्न प्रकार की सामाजिक एवं आर्थिक पत्रिकाओं को अध्ययन के लिये उपलब्ध कराना, महान राजनैतिक एवं समाज सुधारकों के विचारों से अवगत कराना छात्र में ऐसे गुणों का विकास करते हैं जो समायोजन की क्षमता में महत्त्वपूर्ण कार्य करते हैं तथा अतः सम्प्रेषण के साधनों के माध्यम से आर्थिक, सामाजिक एवं राजनैतिक समायोजन की क्षमता उत्पन्न होती है।

शिक्षा अधिकारियों को निर्देश

प्रशासन में शिक्षा से सम्बन्धित अधिकारियों को आवश्यक निर्देश प्रदान किये जाते हैं जिसमें सम्प्रेषण की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। समय-समय पर निरीक्षण करके उसको उचित निर्देश प्रदान किये जाते हैं। यह निर्देश व्यक्तिगत लिखित एवं संचार माध्यमों की सहायता से प्रदान किये जाते हैं।

शैक्षिक सामग्री की उपलब्धता

शिक्षण कला में होने वाली नवीन विधियों एवं प्रविधियों का ज्ञान सम्प्रेषण के साधनों से ही होता है।
 

सहानुभूति एवं सहयोग का विकास

विचारों के आदान-प्रदान एवं सांस्कृतिक कार्यक्रमों को विद्यालय में आयोजित करना चाहिये ताकि प्रत्येक छात्र एक-दूसरे से निकटतम सम्पर्क स्थापित कर सकें और एक-दूसरे की सहायता कर सकें। विद्यालय प्रशासन में प्रधानाचार्य एवं शिक्षकों का व्यवहार भी छात्र के प्रति सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार का होना चाहिये।

शिक्षा नीतियों का उचित प्रयोग 

नीतियों के ज्ञान एवं निर्धारण के लिये सम्प्रेषण की आवश्यकता होती है क्योंकि नीति का निर्धारण करने से पूर्व विद्वानों द्वारा विचार-विमर्श किया जाता है। उससे सम्बन्धित समस्याओ का निराकरण भी किया जाता है। जब उस नीति का विद्यालय में क्रियान्वयन किया जाता है तो इससे पूर्व भी समिति द्वारा उसकी योजना एवं उससे सम्बन्धित साधनों पर विचार-विमर्श होता है। इसके उपरान्त शैक्षिक नीति को विद्यालय में प्रयोग किया जाता है। इस प्रकार सम्प्रेषण की भूमिका प्रमुख रूप में सामने आती है।

शिक्षा व्यवस्था पर नियन्त्रण 

शैक्षिक प्रशासक सम्पूर्ण शिक्षा प्रणाली पर नियन्त्रण भी रखता है। उदाहरण के लिये, प्रशासक विद्यालय में आर्थिक संसाधनों की समीक्षा करना चाहता है तो सर्वप्रथम उसको एक बैठक बुलानी होगी, जिससे वित्तीय व्यवस्था से सम्बन्धित सभी व्यक्ति उपस्थित होंगे। उसमें उनकी समस्याओं को सुनना एवं उनके विचार जाने जाते हैं। आवश्यकता के अनुसार उन सभी व्यक्तियों की समस्याओं का समाधान किया जाता है और अपने विचार प्रस्तुत करते हैं।

अपव्यय एवं अवरोधन की समाप्ति

अपव्यय एवं अवरोधन की समस्या के समाधान में सम्प्रेषण की महत्त्वपूर्ण भूमिका है क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति को समझाने के लिये शिक्षा हमारे जीवन का महत्त्वपूर्ण विषय है, विचारों का आदान-प्रदान बहुत आवश्यक है।

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