सम्प्रेषण के मुख्य सिद्धान्त व उद्देश्य | Principles of Communication
सजगता का सिद्धान्त, योग्यता का सिद्धान्त, सहभागिता का सिद्धान्त, उचित सामग्री का सिद्धान्त, सम्प्रेषण माध्यम का सिद्धान्त, पृष्ठ पोषण का सिद्धान्त
सम्प्रेषण के सिद्धान्त Principles of Communication
सम्प्रेषण के मुख्य सिद्धान्त हैं -
1. सजगता का सिद्धान्त (Principle and activeness)
1. सजगता का सिद्धान्त (Principle and activeness)
2. योग्यता का सिद्धान्त (Principle of ability)
3. सहभागिता का सिद्धान्त (Principle of sharing)
4. उचित सामग्री का सिद्धान्त (Principle of proper contents)
5. सम्प्रेषण माध्यम का सिद्धान्त (Principle of communication channel)
6. पृष्ठ पोषण का सिद्धान्त (Principle of feed back)
7. सहायक एवं बाधक तत्त्वों का सिद्धान्त (Principle of facilitators and barriers)
Principles of Communication |
सजगता का सिद्धान्त
सम्प्रेषण कर्त्ता (Communicator) और सम्प्रेषण ग्रहण करने वाला व्यक्ति (Receiver) सम्प्रेषण क्रिया के समय सजग रहते हैं। यदि इस क्रिया में कोई एक व्यक्ति सजग नहीं रहता है तो सम्प्रेषण क्रिया पूरी नहीं होगी।
योग्यता का सिद्धान्त
सम्प्रेषण क्रिया में यह आवश्यक है कि सम्प्रेषणकर्त्ता और सम्प्रेषण ग्रहण करने वाले व्यक्ति दोनों योग्य होने चाहिये; जैसे- यदि कोई अध्यापक अपने विषय में योग्यता नहीं रखता है तो वह कक्षा में सम्प्रेषण करते समय उचित भूमिका नहीं निभा सकता। कभी-कभी सम्प्रेषणकर्त्ता तो योग्य है परन्तु सम्प्रेषण ग्रहण करने वाला योग्य नहीं है तो भी सम्प्रेषण क्रिया पूरी नहीं होगी। अतः सम्प्रेषणकर्त्ता एवं सम्प्रेषण ग्रहण करने वाला (Receiver) दोनों ही योग्य और उचित अंतःक्रिया से सम्बन्धित आवश्यक योग्यता रखने वाले होने चाहिये।
सहभागिता का सिद्धान्त
सम्प्रेषण द्विपक्षीय प्रक्रिया है, अतः सम्प्रेषणकर्त्ता और ग्रहण करने वाले दोनों के मध्य सहभागिता होनी चाहिये जिससे सम्प्रेषण क्रिया पूरी की जा सके; जैसे- कक्षा में अध्यापक और शिक्षार्थी दोनों की सहभागिता होगी तो सम्प्रेषण प्रभावशील होगा।
उचित सामग्री का सिद्धान्त
सम्प्रेषणकर्त्ता को उचित सामग्री का ध्यान रखना चाहिये। जैसे अध्यापक योग्य है और उसमें सम्प्रेषण के लिये आवश्यक कौशल भी है परन्तु अगर जो सम्प्रेषण किया जा रहा है उसमें सामग्री या शिक्षण अधिगम अनुभव की कमी है तो सम्प्रेषण का उद्देश्य ही समाप्त हो जायेगा। अतः सामग्री के औचित्य की ओर ध्यान अवश्य ही दिया जाना चाहिये। सामग्री ऐसी होनी चाहिये जो सम्प्रेषण के उद्देश्यों, सम्प्रेषण परिस्थितियों तथा माध्यम से मेल खाती हो और विद्यार्थियों के स्तर, योग्यताओं, क्षमताओं तथा सम्प्रेषण कौशलों को ध्यान रखकर चलती हो।
सम्प्रेषण माध्यम का सिद्धान्त
सम्प्रेषणकर्त्ता और ग्राहक के बीच सम्प्रेषण की कड़ी को जोड़ने के लिये एक माध्यम होता है; जैसे दो ध्रुवों (Poles) के बीच विद्युत धारा को प्रवाहित करने के लिये जो कार्य विद्युत तार द्वारा किया जाता है वही भूमिका सम्प्रेषण माध्यम (Communication media) द्वारा निभाई जाती है। अतः सम्प्रेषण माध्यम जितना अधिक उपयुक्त और सशक्त होगा सम्प्रेषण धारा का प्रवाह उतना ही अच्छा रहेगा .
पृष्ठ पोषण का सिद्धान्त
सम्प्रेषण क्रिया में सम्प्रेषण कर्ता को सम्प्रेषण के बारे में ग्राहक से उचित पृष्ठ पोषण (Feed Back) प्राप्त होता रहे तो सम्प्रेषण अधिक प्रभावशाली रहेगा; जैसे- कहानी कहने वाला व्यक्ति कहानी कहता है और सुनने वाला व्यक्ति अरुचि एवं अनिच्छा से कहानी सुनता है तो आभास होता है कि सम्प्रेषण प्रभाव मन्द अथवा बिल्कुल ही नहीं है। सम्प्रेषण की प्रभावशीलता में उचित पृष्ठ पोषण का सक्रिय सहयोग रहता है।
सहायक एवं बाधक तत्त्वों का सिद्धान्त
सम्प्रेषण क्रिया में ऐसे तत्त्व और परिस्थितियाँ कार्य करती हैं जो सहायक या बाधक भूमिका निभाने से जुड़ जाती हैं; जैसे- शोरगुल, प्रकाश की कमी, सुनने और देखने में आने वाली कमी आदि।
सम्प्रेषण के उद्देश्य Aims of Communication
सम्प्रेषण के उद्देश्य निम्नलिखित हैं
(1) भावों के आदान-प्रदान द्वारा उत्तेजित भावनाओं को शान्त कर समाज में शान्ति और सन्तुलन बनाये रखना। ऐसे ही समाज में संगठन और ताकत होती है जिसके सदस्य अपने भावों का आपस में आदान प्रदान करते रहते हैं।
(1) भावों के आदान-प्रदान द्वारा उत्तेजित भावनाओं को शान्त कर समाज में शान्ति और सन्तुलन बनाये रखना। ऐसे ही समाज में संगठन और ताकत होती है जिसके सदस्य अपने भावों का आपस में आदान प्रदान करते रहते हैं।
(2) सम्प्रेषण का उद्देश्य व्यक्ति द्वारा निर्भीकता से विचार प्रकटीकरण है। जो व्यक्ति निर्भीक होकर अपनी सम्मति अथवा विचार प्रकट कर सकता है, जो अपनी भावनाओं को दूसरों के समक्ष प्रकट कर उन्हें अपने वश में कर लेता है। लाखों की भीड़ ऐसे कुशल वक्ता की बात एकाग्रचित्त होकर सुनती है और उससे प्रभावित होती है।
सम्प्रेषण व्यक्ति की प्रधान आवश्यकता है और शिक्षा ऐसी सोद्देश्य क्रिया है जिसके द्वारा शिक्षक और विद्यार्थियों की आवश्यकताओं की सन्तुष्टि की जाती है। इसलिये शिक्षक को विद्यालय में छात्रों के समक्ष भाव प्रकाशन के सभी सम्भव साधन प्रस्तुत कर उनके व्यक्तित्व का विकास करना चाहिये। शिक्षक के सामने सम्प्रेषण से सम्बन्धित निम्नलिखित विशिष्ट उद्देश्य होने चाहिये
(1) बालकों में स्वाभाविक रूप से शुद्ध प्रवाहपूर्ण एवं प्रभावोत्पादक ढंग से वार्तालाप करने की योग्यता विकसित करना ताकि वे अपने मनोभावों को सरलता से दूसरों के सामने प्रकट कर सकें।
सम्प्रेषण व्यक्ति की प्रधान आवश्यकता है और शिक्षा ऐसी सोद्देश्य क्रिया है जिसके द्वारा शिक्षक और विद्यार्थियों की आवश्यकताओं की सन्तुष्टि की जाती है। इसलिये शिक्षक को विद्यालय में छात्रों के समक्ष भाव प्रकाशन के सभी सम्भव साधन प्रस्तुत कर उनके व्यक्तित्व का विकास करना चाहिये। शिक्षक के सामने सम्प्रेषण से सम्बन्धित निम्नलिखित विशिष्ट उद्देश्य होने चाहिये
(1) बालकों में स्वाभाविक रूप से शुद्ध प्रवाहपूर्ण एवं प्रभावोत्पादक ढंग से वार्तालाप करने की योग्यता विकसित करना ताकि वे अपने मनोभावों को सरलता से दूसरों के सामने प्रकट कर सकें।
(2) छात्रों में क्रमिक रूप से निरन्तर बोलते जाने की क्षमता पैदा करना।
(3) छात्रों में मधुर एवं रोचक भाषण देने की शक्ति विकसित करना।
(4) छात्रों में संकोच, झिझक और आत्महीनता की भावना को दूर करना।
Read More...
- सम्प्रेषण के प्रकार Types of Communication
- कक्षा कक्ष में सम्प्रेषण, घटक व रुकावटें | Communication in the Classroom
- व्यक्तिगत एवं सामूहिक सम्प्रेषण के उद्देश्य एवं गुण दोष
- शिक्षण के सिद्धान्त | Principles of Teaching - Teaching Exams
- शिक्षण के सूत्र का अर्थ, प्रकार | Maxims of Teaching
- शिक्षण का अर्थ, प्रकृति, विशेषताए, सोपान तथा उद्देश्य
Join the conversation