व्यक्तिगत एवं सामूहिक सम्प्रेषण के उद्देश्य एवं गुण दोष

कक्षा सम्प्रेषण के प्रकारों के लिये शिक्षा में वैयक्तिक शिक्षण एवं सामूहिक शिक्षण के अर्थ, गुण-दोष एवं प्रयोग आदि को इस पोस्ट में पढेंगे -

 व्यक्तिगत एवं सामूहिक सम्प्रेषण (Individual and Collective Communication)

कक्षा में जो भी क्रियाएँ होती हैं वे सभी सम्प्रेषण में आती हैं तथा शिक्षण कार्य पूर्ण करती है। 
कक्षा सम्प्रेषण के प्रकारों के लिये शिक्षा में वैयक्तिक शिक्षण एवं सामूहिक शिक्षण के अर्थ, गुण-दोष एवं प्रयोग आदि को इस पोस्ट में पढेंगे -

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Individual and Collective Communication

वैयक्तिक सम्प्रेषण (Individual Communication) 

जब शिक्षक प्रत्येक बालक को अलग-अलग शिक्षण देता है तो इसे वैयक्तिक सम्प्रेषण कहते हैं। ए. जी. मेलबिन के अनुसार - विचारों के आदान-प्रदान अथवा व्यक्तिगत वार्तालाप द्वारा बालकों को अध्ययन में सहायता, आदेश तथा निर्देश प्रदान करने के लिये शिक्षक का प्रत्येक बालक से पृथक्-पृथक् साक्षात्कार करना वैयक्तिक सम्प्रेषण कहलाता है।

वैयक्तिक सम्प्रेषण के उद्देश्य (Aims of individual communication)

वैयक्तिक शिक्षण के निम्नलिखित उद्देश्य हैं- 

(1) छात्रों में व्यक्तिगत विभिन्नताएँ होती हैं, उनकी रुचियों, अभिरुचियों, आवश्यकताओं तथा मानसिक योग्यताओं को ध्यान में रखा जाता है। 

(2) बालकों की विशिष्ट योग्यताओं और व्यक्तित्व का विकास करना व्यक्तिगत सम्प्रेषण का उद्देश्य है। 

(3) साधारण बालकों के लिये व्यक्तिगत शिक्षण आवश्यक है। 

(4) वैयक्तिक सम्प्रेषण बालकों को क्रियाशीलता का अवसर देता है।

वैयक्तिक सम्प्रेषण के गुण (Merits of individual communication) 

वैयक्तिक सम्प्रेषण में निम्नलिखित गुण विद्यमान रहते हैं 
  • इस विधि के अनुसार शिक्षा का केन्द्र बालक होता है। अतः यह विधि मनोवैज्ञानिक है। 
  • इस विधि में बालक स्वयं करना सीखता है। 
  • यह विधि बालक को क्रियाशील बनाती है। इससे बालक अधिक ज्ञान अर्जित करने में समर्थ होता है। 
  • इस विधि में बालक को ज्ञान अर्जित करने के लिये प्रेरित किया जाता है। 
  • व्यक्तिगत सम्प्रेषण में शिक्षक, बालक पर अपने व्यक्तित्व का प्रभाव डालने में समर्थ रहता है। 
  • यह विधि रोचक है। इस विधि के अनुसार शिक्षा व्यक्तिगत भिन्नताओं के अनुसार दी जाती है। 
  • सीखना व्यक्तिगत कार्य है। यह विधि इस सिद्धान्त का समर्थन करती है। 
  • इस विधि में शिक्षक, बालक पर व्यक्तिगत ध्यान दे सकता है। 
  • शिक्षक इसके द्वारा यह जान जाता है कि बालक को कौन-सा विषय किस विधि से पढ़ाया जाना चाहिये ? 
  • यह विधि बालक की प्रकृति के अनुसार शिक्षा देने की व्यवस्था करती है। 
  • वैयक्तिक शिक्षण शिक्षक के उत्तरदायित्व को बढ़ाता है। अतः उसे अधिक परिश्रम करना पड़ता है। 
  • इस विधि की एक विशेषता यह है कि यह विधि प्रखर बुद्धि तथा मन्द बुद्धि दोनों प्रकार के छात्रों के लिये समान रूप से उपयोगी है।

वैयक्तिक सम्प्रेषण के दोष (Demerits of individual communication) 

वैयक्तिक सम्प्रेषण के दोष इस प्रकार से हैं-
  • यह विधि व्ययपूर्ण है। प्रत्येक समाज इसकी व्यवस्था नहीं कर सकता। 
  • क्या यह सम्भव है कि प्रत्येक छात्र के लिये एक शिक्षक का प्रबन्ध किया जा सके? किसी देश में भी ऐसा नहीं किया जा सकता। 
  • इस विधि के द्वारा बालक में सामाजिकता के गुण उत्पन्न नहीं किये जा सकते। बालक समाज से अलग रहता है। 
  • इस विधि से शिक्षक अपने और बालक के समय को नष्ट करता है। इस प्रकार समय और शक्ति का अपव्यय होता है। 
  • कुछ विषय एक साथ पढ़ाये जाते हैं। संगीत, गायन आदि विषय सामूहिक रूप से पढ़ाये जाने पर अधिक रोचक होते हैं। 
  • यह विधि अव्यावहारिक है। 
  • इस विधि से बालकों में उत्तम गुणों का विकास नहीं किया जा सकता। बालकों में प्रेम, सहयोग तथा आत्म-त्याग की भावना का उदय नहीं हो पाता है। 
  • जिन शिक्षण पद्धतियों की रचना इस विधि के आधार पर की गयी है उनको आंशिक सफलता ही मिल सकी है। 
  • इस विधि में प्रेरणा प्रोत्साहन और प्रतिस्पर्द्धा का सदैव अभाव रहता है। 
  • यह विधि प्रत्येक बालक के लिये उपयोगी नहीं हो सकती।

सामूहिक सम्प्रेषण (Collective Communication)

सामूहिक सम्प्रेषण का अर्थ कक्षा शिक्षण से है। विद्यालय में एक सी मानसिक योग्यता वाले छात्रों के अनेक उपसमूह बना लिये जाते हैं। साधारणतया इनको कक्षा कहते हैं। ये कक्षाएँ सामूहिक इकाइयाँ होती हैं। शिक्षक इन कक्षाओं में जाते हैं और सभी छात्रों को एक साथ शिक्षा देते हैं। इस प्रकार सामूहिक शिक्षण में शिक्षक सामूहिक सम्प्रेषण द्वारा ज्ञान प्रदान करते हैं। इस विधि में एक कक्षा के सभी छात्रों के लिये सामूहिक शिक्षण विधि का प्रयोग किया जाता है।

सामूहिक सम्प्रेषण के गुण (Merits of collective communication)

सामूहिक सम्प्रेषण के गुण निम्नलिखित हैं :

(1) यह विधि सरल तथा सस्ती है। इसी कारण यह विधि व्यावहारिक है। 

(2) यह विधि छात्रों को व्यवहार कुशल बनाती है। बालक अनेक बालकों के सम्पर्क में आने के कारण अच्छे गुण ग्रहण करते हैं। 

(3) इस विधि से शिक्षा देने में बालकों की तर्क शक्ति, कल्पना और चिन्तन शक्ति का विकास होता है। 

(4) यह विधि छात्रों में नेतृत्व के गुणों का विकास करती है। इसमें बालकों के लिये पाठ्यक्रम सहगामी क्रियाओं का आयोजन किया जाता है। 

(5) इस विधि से शिक्षण देने से बालकों में प्रतियोगिता की भावना का उदय होता है। 

(6) यह विधि बालकों में सद्गुणों का विकास करती है। बालक सामूहिक कार्य करते हैं तथा शिक्षक के आदर्श का अनुकरण करते हैं। 

(7) यह विधि इतिहास, भूगोल, संगीत, कला तथा कविता के पार्टी के लिये उपयोगी होती है। 

(8) इस विधि से शिक्षण देने से बालकों में अनुकरण की भावना उत्पन्न होती है। बालक अनुकरण करके ही सीखते हैं। 
(9) रायबर्न के अनुसार- यह विधि छात्रों को सुझाव और नवीन ज्ञान प्रदान करती है।

(10) यह विधि छात्रों में पढ़ने के लिये उत्साह पैदा करती है। बालक सीखने के लिये व्यक्तिगत प्रयास करते हैं। 

(11) यह विधि लज्जाशील तथा संकोची बालकों के लिये अधिक उपयोगी है। ऐसे बालक कक्षा में बैठकर चुपचाप ज्ञान अर्जित करते रहते हैं। अन्य बालकों को प्रश्नों का उत्तर देते हुए देखकर उनमें भी प्रश्नों का उत्तर देने की प्रवृत्ति उत्पन्न हो जाती है। 

(12) कक्षा शिक्षण से बालकों में विचारों का आदान-प्रदान होता है। इस प्रकार बालकों की कार्यकुशलता बढ़ती है।

(13) यह विधि छात्रों को योग्य नागरिक बनाने का प्रशिक्षण देती है। वे अपने भावी जीवन की तैयारी करते हैं।

सामूहिक सम्प्रेषण के दोष Demerits of Collective Communication 

सामूहिक सम्प्रेषण के प्रमुख दोष इस प्रकार हैं- 
(1) इस विधि को मनोवैज्ञानिक नहीं कहा जा सकता। इसमें बालकों की रुचियों और आवश्यकताओं की अवहेलना की जाती है। 

(2) यह विधि कक्षा केन्द्रित है जबकि शिक्षा बाल केन्द्रित होनी चाहिये। 

(3) यह विधि समय सारणी के अनुसार शिक्षक और छात्रों को एक संकुचित क्षेत्र में बाँध देती है। शिक्षक पाठ्यक्रम में निर्धारित विषयवस्तु में ही जूझता रहता है। फलस्वरूप बालक का विकास रूक जाता है। 

(4) इस विधि में शिक्षक और छात्रों के मध्य सम्पर्क नहीं बन पाता। एक शिक्षक अनेक कक्षाओं को पढ़ाता है। इस प्रकार बालकों से व्यक्तिगत सम्पर्क नहीं बन पाता। 

(5) इस विधि से शिक्षक बालकों की व्यक्तिगत कठिनाइयों को दूर नहीं कर पाता। अत: बालक का विकास रूक जाता है। 

(6) इस विधि में शिक्षक तो सक्रिय रहता है लेकिन बालक निष्क्रिय रहते हैं। उन्हें कक्षा में किसी प्रकार का कार्य करने का अवसर नहीं मिलता वे किसी प्रकार की क्रिया नहीं करते। 

(7) कक्षा में सभी बालकों को एक साथ तथा एक ही विधि से पढ़ाने में बालक का हित नहीं होता। मन्द बुद्धि वाले बालक पीछे रह जाते हैं और प्रखर बुद्धि वाले बालकों का भी कोई हित नहीं होता। 

(8) इस प्रकार से शिक्षा देने में बालकों के व्यक्तिगत भेदों की ओर कोई ध्यान नहीं दिया जाता। सभी बालकों को एक समान शिक्षा दी जाती है।

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