शिक्षण अधिगम सामग्री का अर्थ, आवश्यकता, महत्त्व, प्रकार, विशेषताएँ तथा रखरखाव Teaching Learning Material

शिक्षण अधिगम सामग्री का अर्थ, आवश्यकता, महत्त्व, प्रकार, विशेषताएँ तथा रखरखाव Teaching Learning Material
 
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Teaching Learning Material

शिक्षण अधिगम सामग्री (Teaching Learning Material)

शिक्षण अधिगम सामग्री की अवधारणा

Concept of Teaching Learning Material 
शिक्षक, ज्ञान को जिस प्रकार जिज्ञासु विद्यार्थियों तक पहुँचाता है, उसे शिक्षण की संज्ञा दी जाती है। शिक्षण का कार्य जितना सरल समझा जाता है, यथार्थतः उतना है नहीं। कुछ बातें सरलता से विद्यार्थियों की समझ में आ जाती हैं तो कुछ नहीं भी। ऐसी स्थिति में विषयवस्तु से सम्बन्धित क्लिष्ट या कठिन अंशों को विद्यार्थियों को समझाने हेतु तरह-तरह की अलग-अलग युक्तियों का आश्रय लेना पड़ता है। 

कभी उदाहरण देने होते हैं तो कहीं दृष्टान्तों का सहारा लेना होता है। कहीं-कहीं सूक्तियों, लोकोक्तियों तथा मुहावरों से काम चल जाता है तो कभी कोई लघुकथा भी सुनानी पड़ सकती है। यही नहीं, कहीं विभिन्न प्रकार के पत्थरों, मिट्टियों, पौधों आदि को वास्तविक रूप में दिखाना आवश्यक हो जाता है तो शरीर के आन्तरिक भागों तथा प्रति दूरी पर अवस्थित इमारतों आदि को बताने हेतु उनके प्रतिरूप अथवा चित्रों द्वारा भी समझाना होता है। 

इन सभी उदाहरण, दृष्टान्त, लघुकथा, अन्तर्कथा, लोकोक्तियाँ, मुहावरे, मिट्टी, पत्थर अथवा पौधों के वास्तविक रूप अथवा इमारतों आदि के प्रतिरूप या चित्र आदि को शिक्षण के सहायक साधन अथवा निदर्शन साधन या शिक्षण अधिगम सामग्री कहा जाता है। अत: स्पष्ट है कि-

पाठ्यांश से सम्बन्धित किसी अनसमझी तथा क्लिष्ट विषयवस्तु को समझाने हेतु जिन दृश्य (मूर्त) अथवा शृव्य (अमूर्त) अथवा दोनों के ही सम्मिलित रूप का उपयोग किया जाता है उसे शिक्षण अधिगम सामग्री कहते हैं। 

शिक्षण अधिगम सामग्री का अर्थ एवं आवश्यकता

Need and Meaning of Teaching Learning Material 
जो सामग्री पाठ को रोचक तथा सुबोध बनाने और किसी संकल्पना अथवा प्रत्यय विशेष के अर्थ को सुनिश्चित रूप से अधिक स्पष्ट करने में सहायक सिद्ध होती है, उसे शैक्षणिक सहायक सामग्री (Teaching aid) या शिक्षण अधिगम सामग्री कहा जाता है। 

पाठ्यवस्तु सामग्री को सजीव तथा सरल बनाने में सहायता देने के कारण ही उसे सहायक सामग्री/शैक्षणिक सहायक सामग्री कहते हैं, शैक्षणिक सहायक सामग्री में सामान्यत: कक्षाध्यापन के समय प्रयोग में लाये जाने वाले सभी दृश्य-शृव्य उपकरण/उपादान अथवा पदार्थ आदि की गणना की जा सकती है। झाड़न (Duster), खड़िया (Chalk), संकेतक (Pointer), खड़ियापट्ट / श्यामपट्ट और पाठ्य पुस्तक आज के युग में अध्यापन की एक प्रकार से अनिवार्य सामग्री हैं।

शिक्षण अधिगम सामग्री का महत्त्व

Importance of Teaching Learning Material
शिक्षण अधिगम सामग्री के महत्त्व को निम्नलिखित प्रकार से देखा जा सकता है :
  • पाठ्यांश से सम्बन्धित तथ्यों को समझाना : प्रत्येक विषय में कुछ न कुछ क्लिष्ट अंश ऐसे होते ही हैं, जिन्हें विद्यार्थी सरलता से नहीं समझ पाते; यथा दर्शनशास्त्र एवं हिन्दी के कुछ पाठों में आये हुए शब्दों - आत्मा, मन, संवेदनशीलता, भावुकता आदि को उदाहरण देकर समझाना तो भूगोल एवं सामाजिक अध्ययन जैसे विषयों में अलग-अलग स्थानों की अलग जलवायु के आधार पर वहाँ के लोगों के खान-पान, वेश-भूषा तथा रहन-सहन को स्पष्ट करना।  
  • समझी हुई विषयवस्तु को आत्मसात् करना : किसी बात को समझना एक बात है। और उसे आत्मसात् करना एक अलग बात है। समझना बुद्धि का विषय है तो आत्मसात् करने का आशय उसे इस प्रकार ग्रहण करना है कि वह बात आचरण का एक अंग बन जाय। शिक्षा एवं शिक्षण का उद्देश्य भी यही है। इस उद्देश्य की पूर्ति में शिक्षण अधिगम सामग्री अत्यन्त महत्त्वपूर्ण सिद्ध होती है।
  • पाठ्यांश को रुच्यात्मक बनाना : पढ़ाते समय किसी पाठ्यवस्तु को समझाते समय इस ढंग से बताया जाय कि विद्यार्थी उस बात को जानने और समझने में रुचि लेने लगे। पाठ्यांश में रुचि कैसे पैदा की जाय यही काम है शिक्षक का। पढ़ाने से पूर्व उसे सोचना है कि पाठ्यांश से सम्बन्धित हर छोटी से छोटी बात को वह किस ढंग से बताये कि हर कठिन से कठिन बात भी विद्यार्थियों द्वारा समझने की दृष्टि से, उन्हें इतनी सरल और रुचिकर लगने लगे कि उनका मन उन बातों को समझने में रम जाय।  
  • पाठ्यांश को समझने में विद्यार्थियों का ध्यान केन्द्रित कराना : सहायक सामग्री के माध्यम से न केवल पाठ को समझने में विद्यार्थियों की रुचि ही उत्पन्न कराई जा सकती है अपितु किसी भी बात को समझने हेतु उस बात पर उनका ध्यान भी केन्द्रित कराया जा सकता है। 

शिक्षण अधिगम सामग्री की उपयोगिता

Utility of Teaching Learning Material 
शैक्षिक सहायक सामग्री की उपयोगिता इस प्रकार है :
  • इसके द्वारा अध्यापनीय सामग्री को सरस तथा सरल रूप प्राप्त हो जाता है। 
  • विषय-वस्तु की स्पष्टता बढ़ जाती है। 
  • अध्येय सामग्री रोचक शैली में प्रस्तुत होने के कारण अधिक बोधगम्य बन जाती है। 
  • प्रत्यक्ष अनुभव हो रहने के कारण स्वयं सीखने की प्रवृत्ति को प्रेरणा तथा बढ़ावा मिलता है। 
  • विद्यार्थी की विचार शृंखला में क्रमिक स्थायित्व आने लगता है। 
 

शिक्षण अधिगम सामग्री का वर्गीकरण / प्रकार

Classification of Teaching Learning Material 
जिस सामग्री का उपयोग या प्रदर्शन किया जाना है उसकी छाँट विवेचनात्मक दृष्टि से की जाय तथा उसका उपयोग या प्रदर्शन करने से पाठ या इकाई की सामान्य तथा अनिवार्य परिस्थिति में ही एक सामग्री का प्रयोग एक से अधिक बार किया जाय चिन्तन प्रक्रिया को और अधिक विस्तार प्रदान करने की दृष्टि से किसी सामग्री का पुनः प्रयोग किया सकता है। 

विद्यार्थी के समक्ष सामग्री प्रस्तुतीकरण के स्वरूप के आधार पर समस्त शैक्षणिक सहायक सामग्री को मुख्यत: दो वर्गों में बाँटा जा सकता है : 
  1. प्रक्षेपित (Projected) सामग्री तथा 
  2. अप्रक्षेपित (Unprojected) सामग्री

प्रक्षेपित सामग्री के अन्तर्गत ऐसी सामग्री की गणना की जाती है, जिसके प्रदर्शन के समय विभिन्न विद्युत यन्त्रों की आवश्यकता पड़ती है। सिनेमा, मूक फिल्म, दूरदर्शन, वीडियो आदि इस वर्ग की सामग्री हैं। अप्रक्षेपित सामग्री के अन्तर्गत ऐसी सामग्री उपकरणों की गणना की जाती है, जिनके प्रदर्शन के समय विभिन्न विद्युत यन्त्रों या प्रक्षेपण यन्त्रों की आवश्यकता नहीं होती। विभिन्न प्रकार की वस्तुएँ, वस्तुओं के नमूने, कार्टून, चित्र, रेखाचित्र, पोस्टर, फ्लैश कार्ड आदि की गणना अप्रक्षेपित सामग्री/उपकरणों/ उपादानों में की जाती है।

इन्द्रिय ज्ञान के माध्यम के आधार पर शैक्षणिक सहायक सामग्री को तीन वर्गों में बाँटा जा सकता है - 
  1. शृव्य साधन। 
  2. दृश्य साधन।
  3. शृव्य-दृश्य साधन।  

1. श्रव्य साधन

शिक्षण के शृव्य साधन वे हैं, जिनको सुनकर किसी बात को समझने में सहायता मिले, जैसे : रेडियो, उदाहरण आदि। ये भी दो प्रकार हैं :

I. मौखिक 

शिक्षक द्वारा, दृष्टान्त, उदाहरण आदि के माध्यम से पठितांश को समझाना, मौखिक (Verbal) सहायक साधनों के अन्तर्गत आते हैं। 

II. यान्त्रिक

जो किसी उद्देश्य विशेष को लेकर बनाये गये हों; यथा रेडियो, टेप रिकार्डर, सी.डी. प्लेयर आदि। 

2. दृश्य साधन

शिक्षण में सहायक दृश्य साधन वे हैं, जिन्हें दिखाकर पाठ्यवस्तु को समझाने में सहायता मिलती है; जैसे: पौधे, फूल, फल तथा पंत्तियाँ, विविध प्रकार की मिट्टियों एवं पत्थर आदि। ये तीन प्रकार हैं :

I. नैसर्गिक या प्राकृतिक

इसके अन्तर्गत वे प्राणी या पदार्थ आते हैं; जो स्वत: ही प्रकृति में उपलब्ध हैं; यथा- विविध प्रकार के प्राणी, पौधे, फूल, फल तथा पत्तियाँ आदि।

II. मौलिक या उद्भूत

इनके अन्तर्गत वे रूप, चित्रादि, पाण्डुलिपियाँ, कविताएँ आदि आते हैं जो मनुष्यों की भौतिक कल्पना के आधार पर बनाये जाते हैं और अपने मूल रूप में उपलब्ध हों। 

III. मानवकृत / कृत्रिम

शिक्षण के वे सहायक साधन हैं जो मनुष्य द्वारा स्वतः ही बनाये जाते हैं या बनाये जा सकते हैं; जैसे : विविध प्रकार की मूर्तियाँ, चित्र आदि।

3. श्रृव्य दृश्य साधन

शिक्षण के इन साधनों के अन्तर्गत वे सहायक साधन आते हैं, जिनमें किसी भी पाठ्यांश को समझने हेतु सुनना तथा देखना- दोनों साथ-साथ चलते रहते हैं; जैसे : टेलीविजन, चलचित्र आदि।


उत्तम शिक्षण अधिगम सामग्री की विशेषताएँ

Characteristics of Best Teaching Learning Material
शिक्षण अधिगम सामग्री का प्रयोग वर्तमान समय में शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में अनिवार्य हो गया है। इसके प्रयोग से शिक्षण अधिगम के उद्देश्यों को प्राप्त करने में सफलता उस अवस्था में प्राप्त हो सकती है, जब यह सामग्री विभिन्न विशेषताओं से युक्त हो । शिक्षण अधिगम सामग्री को उन्नत बनाने वाली ये विशेषताएँ निम्नलिखित प्रकार हैं :

बिना लागत के प्राप्त सामग्री

बिना लागत के प्राप्त सामग्रियों का प्रयोग व्यापक रूप से किया जा सकता हैं क्योंकि इन सामग्रियों के लिये हमको धन की आवश्यकता नहीं होती। इस प्रकार की सामग्री के अन्तर्गत प्रकृति प्रदत्त वस्तुएँ एवं प्रयोग रहित सामग्री आती है।  

अल्प लागत की सामग्री

उत्तम शिक्षण अधिगम सामग्री की द्वितीय विशेषता यह है कि इसके निर्माण में कम से कम लागत होनी चाहिये। कम लागत वाली सामग्री भारतीय परिस्थिति में सर्वोत्तम मानी जाती है क्योंकि सरकार आर्थिक रूप से पूर्णत: सक्षम नहीं है कि प्रत्येक विद्यालय को धन उपलब्ध करा सके।  

बहुउद्देशीय सामग्री

इस प्रकार की सामग्री में उन शिक्षण अधिगम सामग्रियों की गणना की जाती है जो अनेक उद्देश्यों की पूर्ति करती है; जैसे मानचित्र या किसी चार्ट को छात्रों के समक्ष प्रस्तुत करते हैं तो हमको उसके आकार, रंग एवं कलात्मकता पर पूर्ण विचार करना चाहिये क्योंकि उस शिक्षण अधिगम सामग्री का प्रत्येक पक्ष छात्रों को अनिवार्य रूप से सूचना प्रदान करता है। इसके द्वारा छात्रों को रंग भरने, कला बनाने तथा आकार आदि का ज्ञान होगा जिसका प्रयोग वह आवश्यकता के अनुरूप कर सकता है। 

एक से अधिक कक्षाओं में प्रयोग

शिक्षण अधिगम सामग्री का निर्माण करते समय यह तथ्य ध्यान रखना चाहिये कि उसका प्रयोग एक से अधिक कक्षाओं में किया जा सके क्योंकि प्रत्येक कक्षा के लिये पृथक् रूप से शिक्षण अधिगम सामग्री निर्मित करने पर धन एवं समय का अपव्यय होगा। विभाग से उपलब्ध विज्ञान किट एवं गणित किट दोनों ही इस प्रकार की सामग्री का उदाहरण हैं।  

एक से अधिक विषयों में प्रयोग

शिक्षण सामग्री का निर्माण करते समय यह ध्यान रखना चाहिये कि उसका प्रयोग एक से अधिक विषयों में किया जा सके; जैसे-वनस्पति विज्ञान की शिक्षण अधिगम सामग्री का प्रयोग हमारा परिवेश एवं पर्यावरणीय अध्ययन में सरलता से किया जा सकता है तथा हिन्दी से सम्बन्धित शिक्षण अधिगम सामग्री का प्रयोग संस्कृत शिक्षण में भी किया जा सकता है।

एक से अधिक पाठों में प्रयोग

उत्तम शिक्षण अधिगम सामग्री उसको माना जाता है जो कि एक से अधिक पाठों में प्रयुक्त की जा सके। भूगोल के शिक्षण में मानचित्र का प्रयोग इस प्रकार करना चाहिये जिससे कि वह प्रमुख औद्योगिक क्षेत्र, गेहूँ उत्पादक क्षेत्र, चावल उत्पादक क्षेत्र एवं नदियों को प्रदर्शित कर सके। इसके लिये हमें विभिन्न रंग एवं संकेतों का प्रयोग एक ही मानचित्र में करके भिन्न वस्तुओं को प्रदर्शित करना चाहिये। इससे जिस पाठ को हम छात्रों को पढ़ा रहे हैं उसमें उस मानचित्र का प्रयोग किया जा सके।  

विषय वार पाठ के अनुरूप

शिक्षण अधिगम सामग्री का निर्माण करते समय यह ध्यान रखा जाय कि वह पाठ के अनुरूप तथा विषय से सम्बन्धित होनी चाहिये। इसके लिये यह आवश्यक है कि शिक्षक को सम्पूर्ण पाठ का अध्ययन करने के पश्चात् यह निर्धारित करना चाहिये कि इस पाठ में प्रमुख रूप से किस प्रकार की शिक्षण अधिगम सामग्री का प्रयोग आवश्यक है? इसके पश्चात् ही शिक्षण अधिगम सामग्री का निर्माण करना चाहिये। शिक्षण सामग्री का प्रमुख उद्देश्य उस पाठ की अवधारणा से छात्रों को अवगत कराना है जिसके लिये उसका निर्माण किया गया है। इसलिये हमारा पूर्ण ध्यान उस पाठ के अनुसार ही शिक्षण सामग्री निर्मित करने पर होना चाहिये।

शैक्षिक उपयोगिता

शिक्षण अधिगम सामग्री का निर्णय उसकी शैक्षिक उपयोगिता को ध्यान में रखकर करना चाहिये अर्थात् इन सामग्रियों का उद्देश्य विषयवस्तु को स्पष्ट रूप से छात्रों के लिये बोधगम्य रूप में प्रस्तुत करना है।

रुचि, आयु एवं मानसिक स्तर के अनुरूप

शिक्षण अधिगम सामग्री की उत्तमता के लिये यह आवश्यक है कि यह छात्रों को रुचि, आयु एवं मानसिक स्तर के अनुकूल होनी चाहिये। रुचि के सन्दर्भ में यह ध्यान रखना चाहिये कि शिक्षण अधिगम सामग्री छात्रों का प्रिय लगनी चाहिये तथा आकर्षक होनी चाहिये। 

कक्षा व्यवस्था के अनुसार

उत्तम शिक्षण अधिगम सामग्री के निर्माण हेतु यह आवश्यक है कि उसके तैयार करने से पूर्व जिस कक्षा में उसे प्रयुक्त किया जाना है उसके आकार एवं छात्र संख्या पर विचार कर लिया जाय। यदि छात्र संख्या कम तथा कक्षा-कक्ष का आकार छोटा है तो शिक्षण अधिगम सामग्री का आकार भी छोटा हो सकता है परन्तु अधिक छात्र संख्या एवं बड़े कक्षा-कक्ष के लिये शिक्षण अधिगम सामग्री का आकार भी बड़ा होना चाहिये। 

सरलता से उपयोग में लाये जाने योग

शिक्षण अधिगम सामग्री का निर्माण करते समय यह तथ्य ध्यान देने योग्य होता है कि उसका प्रयोग कक्षा-कक्ष में सरल रूप में किया जा सके। शिक्षण अधिगम सामग्री के प्रयोग कक्षा-कक्ष में सरल रूप में किया जा सके। शिक्षण अधिगम सामग्री के प्रयोग में अधिक समय एवं धन का अपव्यय नहीं होना चाहिये तथा उसके निर्माण में किसी विशेष व्यवस्था का आयोजन नहीं करना चाहिये। 

बालकों के लिये हानि रहित

शिक्षण अधिगम सामग्री की प्रमुख एवं अन्तिम विशेषता यह है कि इससे छात्रों को किसी भी प्रकार की हानि नहीं पहुँचनी चाहिये। प्राय: छात्र वीडियो रिकॉर्डिंग एवं चलचित्र से सम्बन्धित कार्यक्रमों को शिक्षण अधिगम सामग्री के रूप में अधिक पसन्द करते हैं। इनके प्रयोग करने से पूर्व ध्यान देना चाहिये कि छात्रों की आँखों को इससे कोई हानि न पहुँचे।  

इन्द्रिय जनित अधिगम कराने हेतु सामग्री 

Material for Sensery Experience
बालकों के सीखने की प्रक्रिया पर अनेक शिक्षाशास्त्रियों एवं मनोवैज्ञानिकों ने पृथक् पृथक् रूप से अपने विचार प्रस्तुत किये हैं। इन सभी विचारों एवं अवधारणाओं के आधार पर बालकों की सीखने की प्रक्रिया को इन्द्रियजनित करने तथा उन्नत एवं सार्थक बनाने के लिये विभिन्न सामग्री का उपयोग किया जाता है। इनमें छोटे स्तर के बालकों को देखने, सुनने, स्पर्श करने, चखने से सम्बन्धित पदार्थों का सामग्री के रूप में प्रयोग किया जाता है। बालकों के सीखने क निम्नलिखित प्रकार है : 

मॉडल एवं मूर्तियाँ

मॉडल एवं मूर्तियों के अन्तर को वैसे तो सभी समझते हैं; फिर भी किसी सजीव का उसी अनुपात में बनाया हुआ प्रतिरूप मूर्ति कहलाती है तो मकान आदि निर्जीव का सानुपातिक प्रतिरूप मॉडल। शिक्षण की दृष्टि से किसी सजीव के मूलरूप तथा निर्जीव की मौलिक कृति को दिखाना जितना प्रभावी रहता है, उतना तो नहीं, लेकिन उससे कुछ कम मॉडल एवं मूर्तियाँ शिक्षण की दृष्टि से प्रभावी सिद्ध होते हैं, जैसे: विद्यार्थियों को विभिन्न पक्षियों, पृथ्वी पर या समुद्र में रहने वाले प्राणियों तथा ताजमहल, कुतुबमीनार, चित्तौड़ का विजय स्तम्भ आदि का मॉडल दिखाना। किसी भी प्राणी, पदार्थ अथवा वस्तु के वास्तविक रूप को कक्षा में दिखाना सम्भव न हो तो प्रतिरूप के माध्यम से उसे समझाया जा सकता है।

मानचित्र एवं छायाचित्र

किसी भी व्यक्ति या प्राणी अथवा कृति के मूलरूप को बताना सम्भव न हो तो उसके प्रतिरूप को बताकर भी पाठ को समझाया जा सकता है, किन्तु यदि किसी कारण से प्रतिरूप भी न मिले तो उसके छायाचित्र काम में लिये जा सकते हैं। चित्र में मोटाई, आदि को सानुपातिक रूप में प्रदर्शित करना सम्भव नहीं। चित्रों के माध्यम से प्राणियों के रूप को बताना भी सम्भव है तो पेड़-पौधों, वनस्पतियों, पहाड़ों, नदियों आदि को भी, परन्तु चित्रों के माध्यम से व्यक्तियों, पशु-पक्षियों आदि के रूप को जितना अधिक अच्छा काल्पनिक चित्र खिंचता है उतना अच्छा पेड़-पौधों तथा निर्जीव पदार्थों का नहीं। 

इस दृष्टि से प्राणियों के रूप को बताने में चित्र जितने प्रभावी सिद्ध होते हैं उतने वनस्पतियों आदि की वास्तविकता को बताने में नहीं। जहाँ तक मानचित्रों का सम्बन्ध है-'सृष्टि की जलीय, थलीय तथा आकाशीय स्थिति को सानुपातिक रूप में प्रदर्शित करना मानचित्र कहलाता है। 

रेखीय चित्र तथा रेखाचित्र

रेखाचित्र एवं छायाचित्रों में जो अन्तर होता है, वह मात्र इतना है कि छायाचित्रों में आकृति बहुत कुछ प्राणी या निर्जीव आकृति से काफी कुछ मिलती-जुलती होती है, जबकि रेखाचित्रों में, आकृतियाँ रेखाएँ मात्र होती हैं। यदि टेलीविजन पर देखा हो तो बहुत से अपराधी विशेषकर कुख्यात अपराधी जब अपराध करके कहीं लुप्त हो जाते हैं तो पुलिस उनके विषय में जो भी जानकारी प्राप्त करके जो काल्पनिक चित्र बनाकर टेलीविजन पर प्रसारित और प्रचारित करती है वह उनका वास्तविक चित्र न होकर रेखीय चित्र होता है, 

किन्तु यदि उस अपराधी का चित्र पुलिस के पास पहले से ही होता है, उसे पुलिस टेलीविजन पर दिखाती है तो वह उनका वास्तविक चित्र होगा। वे दोनों प्रकार के चित्र भी शिक्षण में बड़े सहायक सिद्ध होते हैं और कुछ नहीं तो शिक्षक आँख, कान, हृदय, आँतें, फेफड़े आदि का वास्तविक चित्र न मिलने पर रेखाचित्रों के माध्यम से भी विज्ञान के इन विषयों को अच्छी तरह समझा सकता है। 

विभिन्न प्राणियों के रेखीय चित्र भी श्यामपट्ट अथवा हरे पट्ट पर बनाकर समझाया जा सकता है। यदि रेखाचित्र को लिया जाय तो वह भी एक प्रकार का रेखीय चित्र ही है। अन्तर केवल इतना है कि ग्राफ में जो चित्र बनाये जाते वे सानुपातिक अधिक होते हैं; यथा ज्यामिति में पढ़ायी जाने वाली त्रिभुज, चतुर्भुज, बहुभुज आदि सभी आकृतियाँ रेखाचित्र की सहायता से अधिक सरलता से और सही रूप में बनायी जा सकती हैं। 

यदि यथार्थ में देखा जाय तो रेखाचित्रों के अभाव में ज्यामितीय आकृतियों की जानकारी सम्भव ही नहीं। इसीलिये सानुपातिक रेखाओं में बना ग्राफ पेपर इसीलिये अलग से आता है।

सारिणी/तालिकाएँ

तथ्यों को विहंगम दृष्टि से देखने, समझने तथा स्मरण रखने हेतु सारिणीकृत रूप में प्रस्तुत करना ही तालिका है। इस परिभाषा के अनुसार हर विषय को तालिकाओं के माध्यम से समझाना बड़ा सरल हो जाता है; यथा- शुद्ध विज्ञानों में-रसायन विज्ञान में विभिन्न प्रकार के लवणों को वर्गों में बाँटकर प्रस्तुत करना; भौतिक विज्ञान में मशीनों आदि की दृष्टि से उन्हें वर्गीकृत कर प्रस्तुत करना; वनस्पति विज्ञान में विभिन्न प्रकार की वनस्पतियों को गुणवत्ता के आधार पर तालिका रूप में प्रस्तुत करना तथा जीव विज्ञान में जीवों को गुणों के आधार या समरूपता अथवा समान गुणवत्ता के आधार पर प्रस्तुत करना आदि।

फ्लैनल बोर्ड तथा श्याम / हरे पट्ट

फ्लैनल बोर्ड को जानने के लिये आप उस तस्वीर का स्मरण कीजिये जो किसी चौखटे में मढ़ी हो, शीशा भले ही न हो, लेकिन चित्र को आधार देने की दृष्टि से पीछे गत्ते, प्लाईवुड, लकड़ी अथवा लोहे की चद्दर आदि किसी का चित्र के आकार का आधार अवश्य हो। फ्लैनल बोर्ड भी ठीक ऐसा ही होता है। अन्तर केवल इतना होता है कि वह आकार में मध्यम आकार का; अर्थात् न बहुत बड़ा और न ही बहुत छोटा होता है और चित्र के स्थान पर फलालेन का कपड़ा होता है। 

इस कपड़े की यह विशेषता होती है कि काँच के बारीक चूरे तथा गोंद आदि चुपकने वाली किसी वस्तु के साथ मिलाकर किसी मोटे कागज पर फैला दिया जाय तो सूखने पर वह मोटा कागज या इसका कोई टुकड़ा उस फलालेन के कपड़े पर चिपक जाता है और यदि उसी घोल को किसी चित्र के चारों कोनों पर लगा दिया जाय तो सूखने पर वह चित्र भी बोर्ड पर चिपक जाता है।  

अध्यापकों एवं बालकों द्वारा निर्मित सामग्री

Teachers and Students Made Material
अध्यापक अपने विषय के अध्यापन को सुगम एवं प्रभावी बनाते हेतु आसपास उपलब्ध हो सकने वाली तथा कुछ बेकार की वस्तुओं को एकत्रित कर प्रकरण से सम्बन्धित सम्प्रत्यों का शिक्षण करने हेतु सहायक समाग्री का निर्माण कर लेते हैं। इस प्रकार की सामग्री स्वरचित अधिगम सामग्री कहलाती है। जो सस्ती तथा अधिगम परिस्थितियों के अनुकूल होती है। स्वरचित सामग्री निम्नलिखित वस्तुओं के माध्यम से तैयार की जा सकती है घास-फूस, सरकण्डे, फटे-पुराने कपड़े, चिकनी मिट्टी, मिट्टी के दीवले, टूटे-फूटे मटके, सुराही एवं मिट्टी के पुराने खिलौने आदि। 

इसके अतिरिक्त सितारे, गत्ते, गोटा, रंगीन कागज, घंटी, आइस्क्रीम की लकड़ी, काँच आदि से भी कई प्रकार की सामग्री बनायी जा सकती है। इस प्रकार की सामग्री का निर्माण करने में छात्रों का भी सहयोग लेना अनिवार्य है। जब छात्र एवं अध्यापक इस प्रकार की सामग्री का मिलकर निर्माण करेंगे तो छात्र इसके प्रयोग में अधिक रुचि लेंगे। इनका निर्माण करने में छात्रों की सभी इन्द्रियों एवं माँसपेशियों का समुचित उपयोग होने से उनमें कौशल विकसित होगा तथा इससे सीखी हुई विषयवस्तु का ज्ञान स्थायी हो सकेगा।
दृश्य सामग्री के अन्तर्गत कुछ शिक्षण अधिगम सामग्री इस प्रकार की है जो कि शिक्षकों एवं छात्रों के द्वारा तैयार की जा सकती है तथा जिनका प्रयोग शिक्षण के समय किया जा सकता है। छोटे बालकों को मिट्टी के खिलौनों से एवं मिट्टी से खेलने में बहुत आनन्द आता है। अध्यापक द्वारा बालकों से कहा जाय कि आप अपने घरों से 10 मिट्टी की गोली बनाकर लायेंगे। यह मिट्टी की गोली बनाने में छात्रों को बहुत आनन्द आयेगा। 

इसके बाद अध्यापक गोलियों को अपने पास एकत्रित करके उनका प्रयोग गणित विषय में गिनती पढ़ाने के लिये कर सकता है। 2 से. 10 तक के पहाड़े सिखाने में भी इन मिट्टी की गोलियों का प्रयोग करके गणित जैसे दुरूह एवं नीरस विषय को रुचिपूर्ण विधि से प्रस्तुत किया जा सकता है। 

इसी प्रकार छात्रों से कागज की नाव, चार्ट एवं चित्र आदि बनाने को कहा जा सकता है। इसका प्रयोग शिक्षण को रुचिपूर्ण एवं प्रभावी बनाने में सरलतापूर्वक किया जा सकता है। शिक्षक द्वारा भी अनेक प्रकार की शिक्षण सामग्री का निर्माण किया जा सकता है, जैसे-गत्ते के चौकोर टुकड़ों पर हिन्दी वर्णमाला के सम्पूर्ण अक्षरों को लिखना। 

छात्रों से कहा जाय कि इस वर्णमाला के अक्षरों में से 'क' अक्षर का कार्ड निकालो। दूसरे छात्र से कहा जाय कि 'म' अक्षर का कार्ड निकालो। इसी प्रकार तीसरे छात्र से कहा जाय कि 'ल' अक्षर का कार्ड निकालो। तीनों कार्डों को एक लाइन में रखकर छात्रों से पूछा जाय कि क्या अक्षर निर्मित हुआ ? छात्रों द्वारा उत्तर दिया जायेगा कि 'कमल'।

इस प्रकार हिन्दी शिक्षण को रुचिपूर्ण एवं प्रभावी बनाया जा सकता है। अध्यापक द्वारा अंग्रेजी शिक्षण, गणित शिक्षण एवं विज्ञान शिक्षण आदि विषयों में चार्ट, पोस्टर, रेखाचित्र एवं वृत्त आदि के चित्र निर्मित करके तथा उनका प्रयोग करके शिक्षण अधिगम प्रक्रिया को सारगर्भित बनाया जा सकता है।

बाजार से क्रय सामग्री

Purchased Material from Market 
शिक्षण अधिगम सामग्री के निर्माण में समय की बचत के लिये बाजार से भी सामग्री  क्रय करके उसका प्रयोग किया जा सकता है। बाजार से क्रय सामग्री खरीदते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिये - 
  • बाजार से उस शिक्षण अधिगम सामग्री को क्रय किया जाय जिसके निर्माण में अधिक समय लगता है। 
  • बाजार से क्रय सामग्री की गुणवत्ता का परीक्षण करके ही उसका प्रयोग किया जाय। 
  • पाठ्यक्रम के अनुसार ही शिक्षण अधिगम सामग्री को बाजार से क्रय करना चाहिये जिससे कि उद्देश्य की पूर्ति की जा सके। 
  • सामग्री का आकार इस प्रकार का होना चाहिये जिससे कि सम्पूर्ण कक्षा के छात्रों को दृष्टिगोचर हो सके। 
  • बाजार से क्रय सामग्री क्रय करते समय उपलब्ध धन तथा बजट का भी ध्यान रखना चाहिये।

विभाग द्वारा प्रदत्त सामग्री

Teaching Aids given by Department 
उत्तर प्रदेश शिक्षा विभाग द्वारा भी शैक्षिक सामग्री उपलब्ध करायी जाती है। इसमें ऑपरेशन ब्लैक बोर्ड, गणित किट, विज्ञान किट, पाठ्य पुस्तकें, प्रशिक्षण साहित्य, अनुपूरक अध्ययन सामग्री तथा शिक्षक सन्दर्शिकाएँ आदि प्रमुख होती हैं। इन शिक्षण सामग्रियों द्वारा छात्रों का शिक्षण अधिगम स्तर पर्याप्त सरल हो जाता है।

1. ऑपरेशन ब्लैक बोर्ड 

Operation Black Board
ऑपरेशन से तात्पर्य यह है कि युद्ध स्तर पर अभियान चलाकर किसी कार्य को शीघ्रातिशीघ्र पूरा करना। ब्लैक बोर्ड विद्यालयों में आवश्यक उपकरणों का प्रतीक है। ऑपरेशन ब्लैक बोर्ड का उद्देश्य प्राथमिक विद्यालयों में पाठ्य-सामग्री तथा शिक्षक उपकरण जैसी न्यूनतम आवश्यक सुविधाओं की व्यवस्था को सुनिश्चित करना है। इस योजना के अन्तर्गत निम्नलिखित लक्ष्य रखे गये हैं-
  • प्रत्येक विद्यालय में कम से कम 2 कमरे बरामदा सहित वाले भवन उपलब्ध कराये जायें। 
  • शिक्षक उपकरण। 
  • खेल सामग्री एवं खिलौने। 
  • प्राथमिक विज्ञान किट। 
  • टू-इन-वन ऑडियो उपकरण। 
  • पुस्तकालय के लिये पुस्तकें। 
  • विद्यालय की घण्टी, चॉक, झाड़न तथा कूड़ादान।
  • वाद्य यन्त्र, ढोलक, तबला, मजीरा तथा हारमोनियम। 
  • श्यामपट्ट तथा फर्नीचर।
  • शिक्षक के पास आकस्मिक व्यय के लिये धन।
  • प्रसाधन-लड़के एवं लड़कियों के लिये अलग-अलग। 
  • पेयजल व्यवस्था ऑपरेशन ब्लैक बोर्ड योजना को सन् 1987.88 में लागू किया गया।

2. गणितीय किट 

Mathematical Kit
प्राथमिक स्तर पर दी जाने वाली गणित किट सन् 1983 में राज्य शैक्षिक अनुसन्धान एवं प्रशिक्षण संस्थान निर्मित की गयी। इस किट के अन्दर गणितीय यन्त्र रखे गये हैं। 'गणित किट' एक लकड़ी के आयताकार बॉक्स के अन्दर ताले सहित रखा यन्त्रों का संग्रह है, जो कि प्राथमिक स्तर के बालकों के लिये शिक्षण हेतु प्रयोग प्रदर्शन हेतु उपयुक्त रहता है। इसमें रखे विभिन्न उपकरणों में नाम निम्नलिखित हैं, जो कुल 45 छोटे-छोटे यन्त्र हैं :

1. आयत के प्रतिरूप

गणित किट बॉक्स में विभिन्न लम्बाई, चौड़ाई के 10 आयत के मॉडल हैं, जिन्हें कि आयत की परिभाषा एवं उसके क्षेत्रफल के लिये दिखाया जा सकता है। 

2. वर्ग के प्रतिरूप

विभिन्न मापों में तीन प्रतिरूप वर्ग के भी हैं, जिनके माध्यम से वर्ग का अर्थ एवं क्षेत्रफल निकालने में अवगत कराया जा सकता है।

3. त्रिभुज के मॉडल

यह त्रिभुज की परिभाषा एवं समकोण त्रिभुज, विषमबाहु त्रिभुज तथा समद्विबाहु त्रिभुज में अन्तर स्पष्ट करने हेतु उपयुक्त हैं। यह संख्या में तीन हैं।

4. भिन्न पट्ट

(ग्यारह हार्ड बोर्ड के टुकड़े) एक लकड़ी के आयताकार पट्टे पर आगे-पीछे खिसकने वाले छोटे-छोटे गुटके होते हैं। विभिन्न मापों के आधार पर निम्नलिखित भिन्नों के आधार पर बालकों को जानकारी दी जा सकती है-  भिन्न का अर्थ, तुल्य भिन्न संख्यांक, भिन्नों की तुलना, भिन्नों का योग एवं व्यवकलन आदि। दशमलव भिन्नों में योग, व्यवकलन एवं गुणा संक्रियाओं का बोध भी कराया जाता है। यह कक्षा ३ से ४ तक उपयोगी है ।

5. वृत्त का प्रतिरूप

वृत्त का ज्ञान कराने के लिये एक वृत्त का प्रतिरूप है।

6. एक परकार डेढ़ टाँग वाली (कम्पास)

एक लकड़ी एवं लोहे से बनी डेढ़ टाँग वाली 1 परकार भी चाक द्वारा श्यामपट्ट पर वृत्त खींचने अथवा चाप लगाने के लिये, कोण बनाने तथा ज्यामितीय रचनाओं में प्रयुक्त होती है। यह कक्षा 3-8 तक उपयोगी है। 

7. दो पैरों की परकार (डिवायडर)

एक दूरी नापने वाली परकार होती है। ग्राफ, चार्ट तथा रेखाचित्र पर बने दो विन्दुओं के मध्य दूरी नापने हेतु कक्षा 3 से 5 तक प्रयुक्त होती है।

8. हाफ मीटर स्केल

दूरी नापने के लिये 50 सेमी का पैमाना होता है। मिमी, सेमी इंच, मीटर सम्बन्धी एवं सरल रेखा खींचने में कक्षा 1 से 5 तक एवं आगे की कक्षाओं में प्रयुक्त होता है।

9. स्केल

रेखा खींचने या नापने, विभिन्न रैखिक आवृत्तियाँ (आयत, वर्ग तथा त्रिभुज) बनाने के लिये प्रयुक्त होता है। कक्षा 1 से 8 तक तथा आगे की कक्षाओं के लिये उपयोग में आता है।

10. तार

परिधि अथवा लपेट बताने के लिये प्रयुक्त होता है। कक्षा 1 से 8 तक कक्षाओं के लिये प्रयोग में लाया जाता है।

11. चाँदा

एल्यूमिनियम एवं लोह मिश्रित धातु से बना 180° अंकित चाँदा कोण बनाने एवं नापने के लिये प्रयुक्त होता है। प्रत्येक छोटे खाने का मान 1° होता है। वृत्त एवं अर्द्धवृत्त बनाने में भी इसका प्रयोग कर सकते हैं। प्रयोग सभी कक्षाओं में होता है।

12. घड़ी का प्रतिरूप (हार्डबोर्ड)

लकड़ी के डायल पर 12 अंकित हैं। एल्यूमिनियम की सुई घड़ी में समय का ज्ञान कराने एवं घड़ी द्वारा योग एवं व्यवकलन संक्रिया का ज्ञान कराया जाता है। इससे घण्टा, मिनट एवं सेकण्ड का सम्बन्ध, सुइयों की स्थिति ( विभिन्न समय दर्शाने के लिये) का बोध होता है।

13. गोले का प्रतिरूप

एक गोला ब्राउन रंग का गोले का ज्ञान कराने के लिये उसका आयतन एवं सम्पूर्ण पृष्ठ बताने के लिये प्रयोग में लाया जाता है। 

14. बेलन का प्रतिरूप

ठोस ज्यामिति में एक बेलन का ज्ञान उसका वक्र पृष्ठ, सम्पूर्ण पृष्ठ तथा आयतन ज्ञात कराने के लिये प्रयुक्त होता है।

15. घन विभिन्न मापों के दो घन

घन का प्रतिरूप घन का ज्ञान कराने, उसके तलों का उनका सम्पूर्ण पृष्ठ ज्ञात कराने के लिये प्रयुक्त होता है। घनाभों का भी आयतफल ज्ञात किया जाता है।

16. शंकु का प्रतिरूप

शंकु के आकार, उसके तल, वक्र पृष्ठ एवं आयतन का बोध कराने के लिये प्रयुक्त होता है। 
 

गणित किट का उपयोग तथा महत्त्व 

(Importance and use of math's kit) 
गणितीय किट के निम्नलिखित उपयोग हैं-
  • यह छात्रों के ज्ञान को स्थायी बनाती है। 
  • इसके द्वारा पाठ को रोचक, आकर्षक तथा गणितीय तथ्यों को सुस्पष्ट किया जाता है।
  • स्मरण शक्ति एवं निरीक्षण शक्ति का विकास होता है। 
  • रचनात्मक दृष्टिकोण उत्पन्न होता है। 
  • कौशलात्मक पक्ष प्रबल होता है। 
  • इसके प्रयोग से छात्रों का ध्यान पाठ पर केन्द्रित रहता है। 
  • निरीक्षण, कल्पना, तुलना एवं परीक्षण शक्ति का विकास होता है। 
 

3. विज्ञान किट

Science Kit
विज्ञान शिक्षण में प्रयोग तथा प्रदर्शन के लिये उपकरणों के संग्रह की आवश्यकता होती है। यह छोटे-छोटे उपकरणों का यह संग्रह विज्ञान किट कहलाता है। इससे छात्र को स्थायी एवं स्पष्ट ज्ञान दिया जा सकता है। इससे छात्र में अधिगम की प्रक्रिया तीव्र गति से होती है। यह लकड़ी के बक्से में रखा कुछ सामान होता है, जिससे दैनिक विज्ञान के प्रयोग आसानी से दिखाये जा सकते हैं। अपने देश में राष्ट्रीय अनुसन्धान एवं प्रशिक्षण संस्थान (N.C.E.R.T.) की कार्यशाला एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर यूनीसेफ (U.N.E.S.E.F.) के सहयोग से वर्ष 1970 में विज्ञान किट तैयार की गयी थी। 

पुनः राज्य स्तर पर राज्य शैक्षिक अनुसन्धान एवं प्रशिक्षण संस्थान (S.C.E.R.T.) ने प्राथमिक विद्यालयों के लिये वर्ष 1982 में किट तैयार की तथा इसे 7200 प्राथमिक विद्यालयों में बढ़िया शिक्षा के अन्तर्गत वर्ष 1984 में वितरित किया गया।

विज्ञान किट का उपयोग

किट पर चिपकी लिस्ट से पता चलता है कि इसमें ताले एवं बॉक्स सहित 45 प्रयोग नमूने हैं। समस्त सामग्री के बारे में चित्र एवं क्रिया से सम्बन्धित विवरण दिया गया है। एक निर्देश पत्र के साथ 42 सामग्रियों की क्रियाओं के बारे में उल्लिखित किया गया है। इस निर्देश तथा सामग्री के आधार पर ही विज्ञान किट का उपयोग किया जाता है, जिसे निम्नलिखित बिन्दुओं द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है-
गोल वस्तु को गोल छाया बनने की क्रिया कर समझाना। 
सूर्य ग्रहण के होने की क्रिया को प्रदर्शित करना।
चन्द्र ग्रहण के होने की क्रिया को प्रदर्शित करना। 
पृथ्वी की घूर्णन गति दिखलाना। 
चन्द्रमा की कलाएँ प्रदर्शित करना। 
पृथ्वी पर दिन-रात बनने की प्रक्रिया समझाना। 
पृथ्वी की सूर्य के चारों ओर परिक्रमा प्रदर्शित करना एवं इससे पृथ्वी की अलग-अलग स्थितियाँ दिखाना। 

4. पाठ्य पुस्तकें 

Text Books
सामान्यत: पाठ्य पुस्तक इस प्रकार की होनी चाहिये जो कि छात्र की सभी प्रकार की आवश्यकताओं को पूर्ण कर सके तथा उसे अगले सोपान पर चढ़ने के लिए तैयार कर सके। आज के मनोवैज्ञानिक युग में, जबकि छात्र की रुचि, क्षमता, आयु आदि का ध्यान रखना अतिआवश्यक है, उसी प्रकार अच्छी पाठ्य पुस्तक का चुनाव करना और भी अधिक दुष्कर कार्य प्रतीत होता है। 
अतः अच्छी पुस्तक के चुनाव हेतु कुछ मानदण्डों का निर्धारण करना आवश्यक प्रतीत होता है। 6 अप्रैल सन् 1969 को तत्कालीन केन्द्रीय शिक्षा मन्त्री के निर्देशन में राष्ट्रीय स्तर पर एक गोष्ठी का आयोजन किया गया जिसका प्रमुख कार्य पाठ्य पुस्तकों के उचित स्तर का निर्धारण करना था तथा इस गोष्ठी में कुछ निर्णय लिये गये, जिनका विवरण संक्षेप में अग्रलिखित प्रकार से है
  • पाठ्य पुस्तकों का एक उचित स्तर होना चाहिये। 
  • पाठ्य पुस्तकों के लेखन में व्यापारिक दृष्टिकोण को ध्यान में नहीं रखा जाना चाहिये। 
  • पाठ्य-पुस्तकें छात्रों के लिए अधिक लाभकारी होनी चाहिये। 
  • उक्त बातों का ध्यान केन्द्र सरकार एवं राज्य सरकार दोनों को सावधानीपूर्वक रखना चाहिये। 
  • पाठ्य पुस्तकों के लेखन एवं उचित स्तर को बनाये रखने के लिए केन्द्र सरकार द्वारा एन. सी. ई. आर. टी (N.C.E.R.T.), नई दिल्ली को भी समुचित मार्गदर्शन देना चाहिये।
सामान्यत: एक अच्छी पाठ्य पुस्तक उसे कहा जा सकता है जो कि निम्नांकित बातों को ध्यान में रखकर लिखी गयी हो 
  • पुस्तकें बालकेन्द्रित : पुस्तक बालक को केन्द्र मानकर लिखी गयी हो अर्थात् वह बालक की रुचि, आयु, योग्यता एवं अन्य मनोवैज्ञानिक तथ्यों के अनुकूल होनी चाहिये तथा उसका सम्बन्ध बालक के दैनिक जीवन से भी होना चाहिये।
  • मानचित्रों एवं चित्रों का यथास्थिति उपयोग : मानचित्र भूगोल/पर्यावरण शिक्षण के अन्तर्गत पर्यावरणीय तथ्यों का ज्ञान प्राप्त करने का एक सशक्त साधन है। विषय-वस्तु की तीव्र ग्राह्मयता के लिए यह आवश्यक है कि मानचित्रों का प्रयोग भी आवश्यकतानुसार किया गया हो तथा साथ ही विभिन्न प्रकार के चित्रों का समावेश भी किया गया हो। 
  • ग्राफों एवं डाइग्रामों का उपयोग : विभिन्न वस्तुओं, स्थानों, मौसम आदि को दर्शाने हेतु विभिन्न प्रकार के ग्राफ्स् एवं डाइग्राम्स का सावधानीपूर्वक प्रयोग करना अति आवश्यक है ताकि सही स्थिति का ज्ञान शीघ्रता से कराया जा सके।
  • बहुविकल्पात्मक अभ्यास प्रश्नों का समावेश : प्रत्येक पाठ के अन्त में न केवल परम्परागत अभ्यास प्रश्न दिये जाने चाहिये बल्कि बहुविकल्पात्मक प्रश्नों का भी आवश्यकतानुसार प्रयोग करना चाहिये ताकि शिक्षार्थी में विविध प्रकार के प्रश्नों का उत्तर देने के कौशल का विकास किया जाना सम्भव हो सके। 
  • नवीनतम सत्य आँकड़ों तथा तथ्यों का समावेश : पर्यावरण अध्ययन की पाठ्य पुस्तक में दिये गये सभी तथ्य पूर्णत: सही हों तथा जो भी आँकड़ें दिये जायें वे नवीनतम होने चाहिये, साथ ही साथ आँकड़े प्राप्त करने का स्रोत (Source) भी विश्वसनीय होना चाहिये एवं आँकड़े पूर्ण रूप में ही देने चाहिये, अपूर्ण नहीं।
  • अन्तर्राष्ट्रीय शब्दावली का उपयोग : पर्यावरण अध्ययन की पुस्तक में मान्य अन्तर्राष्ट्रीय शब्दावली का प्रयोग भी करना चाहिये ताकि शिक्षार्थी उस शब्दावली से अवगत हो सकें और उसे समझ सकें।
  • स्पष्ट एवं सरल भाषा : पाठ्य पुस्तक की भाषा सरल एवं स्पष्ट होनी चाहिये। लम्बे एवं कठिन वाक्यों का प्रयोग करने से बचना चाहिये तथा व्याकरण सम्बन्धी नियमों का भी पालन किया जाना चाहिये तथा द्विअर्थीय  शब्दों के प्रयोग से पूर्णतः बचा जाना चाहिये एवं स्थानीय परिवेश से सम्बन्धित शब्दों को भी उचित स्थान दिया जाना चाहिये।
  • तर्कसंगत एवं क्रमबद्ध प्रकरण : पर्यावरणीय अध्ययन एक ऐसा विषय है जो कि विभिन्न प्रकार की राज्यीय, राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय परिस्थितियों एवं मानवीय क्रियाओं के साथ-साथ स्थानीय तत्त्वों को भी समाहित किये हुए है। यह विभिन्न प्रकार की संस्कृतियों से भी अवगत कराता है अर्थात् इसकी विषय सामग्री विस्तृत एवं जटिल हो जाती है।  
  • सीखने की अच्छी विधियों पर आधरित : विषय-वस्तु को सही प्रकार से शिक्षार्थियों को आत्मसात् कराने के लिए यह आवश्यक है कि सीखने की अच्छी एवं नवीन विधियों एवं तकनीकी पर आधारित पाठ्य पुस्तक होनी चाहिये। साथ ही पाठ के अन्त में सार-संक्षेप भी देना उपयोगी सिद्ध हो सकता है।  
  • अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग एवं भाई : चारे को प्रोत्साहन - पाठ्य पुस्तक इस प्रकार की होनी चाहिये कि वह विभिन्न प्रकार की परिस्थितियों एवं मानवीय क्रियाओं को शिक्षार्थियों के समक्ष इस प्रकार प्रस्तुत करे कि वह शिक्षार्थी में उनके प्रति घृणा, विद्वेष, भेदभाव जैसे कुत्सित विचार पैदा करने के स्थान पर मानवता, सहयोग एवं प्रेम की भावना का विकास करने में समर्थ हो सके और भारत 'विश्वबन्धुत्व' की दिशा में सक्रिय सहयोग दे सके।

5. प्रशिक्षण साहित्य 

Training Module
प्रशिक्षण साहित्य के रूप में प्रशिक्षण के समय शिक्षकों को विभिन्न पत्र-पत्रिकाएँ एवं पुस्तकें उपलब्ध करायी जाती हैं साथ ही इसके लिये विद्यालय पुस्तकालय का प्रयोग किया जाता है। विद्यालय में विज्ञान प्रभाग का पृथक् से 'बुक बँक' के अन्तर्गत एक पुस्तकालय होता है, जिसके द्वारा छात्रों में स्वतन्त्र रूप से वैज्ञानिक साहित्य पढ़ने की प्रवृत्ति का विकास हो सके। वे पुस्तकालय में पाठ्यपुस्तकों के अतिरिक्त दैनिक समाचार पत्र, विज्ञान की पत्र-पत्रिकाएँ एवं बुलेटिन आदि पढ़ने के लिये प्राप्त कर सकते हैं। 

इससे छात्रों का दृष्टिकोण वैज्ञानिक बनता है। अपने ज्ञान को वातावरण से जोड़ने के लिये उन्हें दैनिक विज्ञान का ज्ञान अर्जित करना पड़ता है। छात्रों की आयु को ध्यान में रखते हुए पुस्तकालय की पुस्तकों को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है :

I. छोटे छात्रों की दृष्टि से पुस्तकें एवं पत्रिकाएँ

यह छोटी आयु वर्ग के छात्रों के लिये उपयोगी हैं।

II. माध्यमिक कक्षाओं के लिये पुस्तकें

छात्रों में सेकण्डरी स्तर पर ज्ञान का स्तर ऊँचा होता है। वे प्रत्येक तथ्य को तार्किक ढंग से देखते हैं। इस स्तर की पाठ्यपुस्तकों तथा विज्ञान का इतिहास, प्रसिद्ध वैज्ञानिकों की खोजें एवं जीवन परिचय सम्बन्धी पुस्तकों एवं विज्ञान से सम्बन्धित पत्रिकाओं का अनुशीलन माध्यमिक छात्रों को करना चाहिये।

III. शिक्षकों की दृष्टि से पाठ्य सामग्री

पुस्तकालय में उच्चकोटि के लेखकों की पाठ्यपुस्तकें, वैज्ञानिक शोध साहित्य एवं अध्यापकों के मार्ग दर्शनार्थ रखना आवश्यक है। उन्हें विज्ञान की विषयवस्तु तथा विज्ञान शिक्षण की पुस्तकें दैनिक पाठ योजना को तैयार करने में सहायता करती हैं। इसके अतिरिक्त विज्ञान सम्बन्धी कोष, विश्व कोष, अन्य ग्रन्थ जो विज्ञान सम्बन्धी सूचना देते हैं तथा अध्यापक संदर्शिकाएँ भी इस पुस्तकालय में होनी चाहिये और इनका अनुशीलन शिक्षकों को करना चाहिये, जिससे शिक्षण में आधुनिक पद्धति का प्रयोग किया जा सके।

6. अनुपूरक अध्ययन सामग्री 

Simulated Study Material
ऑपरेशन ब्लैक बोर्ड किट, गणित किट, विज्ञान किट, शिक्षण अधिगम की पाठ्य पुस्तकें, शिक्षण प्रशिक्षण साहित्य एवं शिक्षक संदर्शिकाएँ विभाग द्वारा प्रदान की जाती हैं। इसके अन्तर्गत जो सामग्री शिक्षण अधिगम के लिये क्षेत्र तथा परिस्थिति के अनुसार आवश्यक होती है उसे अनुपूरक अध्ययन सामग्री के रूप में जाना जाता है, उसकी पूर्ति भी विभाग या स्थानीय साधनों द्वारा की जाती है। अनुपूरक सामग्री के अन्तर्गत शिक्षक प्रशिक्षण से सम्बन्धित समस्त वैकल्पिक सामग्री को समाहित किया जा सकता है।  

7. शिक्षक संदर्शिकाएँ

Teacher Module
शिक्षक संदर्शिकाएँ प्राथमिक कक्षाओं के शिक्षकों की सहायता के लिये लिखी जाती हैं। इनमें प्राथमिक कक्षाओं में शिक्षण विधि के तौर-तरीके सरल, रुचिपूर्ण और गतिविधि आधारित रूप में वर्णित होते हैं। अतः शिक्षकों को शिक्षक संदर्शिकाओं का प्रयोग अनिवार्य रूप से करना चाहिये। शिक्षक संदर्शिकाओं में कठिन शब्दावलियों, शिक्षकों के लिये अतिरिक्त जानकारी, कक्षा में बच्चों की जिज्ञासाएँ एवं उनके उत्तर शिक्षण से सम्बन्धित पाठ योजनाएँ दी जाती हैं। 

इन्हीं संदर्शिकाओं में एक प्रकरण के शिक्षण से सम्बन्धित लगभग तीन-तीन गतिविधियाँ, गतिविधियों के विकास हेतु सहायक-सामग्रियों की सूची तथा सम्बन्धित प्रकरण के सन्दर्भ में बच्चों की पूर्व जानकारी भी दी जाती है। अतः शिक्षक को कक्षा में शिक्षण के पूर्व शिक्षक संदर्शिका को अवश्य पढ़ना चाहिये।

प्रकृति से प्राप्त वस्तुएँ या सामग्री

Obtained Material from Nature
प्रकृति से प्राप्त अनेक वस्तुएँ ऐसी होती हैं जिसका प्रयोग सरलता से शिक्षण अधिगम सामग्री के रूप में किया जा सकता है। इस प्रकार की वस्तुओं को प्राप्त करने में किसी प्रकार का व्यय नहीं होता तथा वास्तविक रूप में वस्तुओं का ज्ञान होता है। प्रकृति से प्राप्त प्रमुख वस्तुओं का प्रयोग निम्नलिखित रूप में किया जा सकता है :
  • जड़ें : पौधों में जड़ें महत्त्वपूर्ण स्थान रखती हैं। शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में जड़ के कार्य एवं स्वरूप प्रकरण में हम वास्तविक रूप से पौधे की जड़ को कक्षा में ले जाकर प्रदर्शन कर सकते हैं।  
  • सींकें (Wick) : विभिन्न प्रकार की सींकों का प्रयोग भी शिक्षण अधिगम सामग्री के रूप में किया जा सकता है। गणित शिक्षण में समान्तर रेखा, वर्ग, आयत एवं तिर्यक रेखा आदि की आकृति को छात्रों को सींकों द्वारा बनाने के लिये दिया जा सकता है। इससे छात्रों का मनोरंजन भी होगा तथा छात्र गणित की उपरोक्त आकृतियों को सरलतापूर्वक बनाना भी सीख सकेंगे। सींक सरलता से उपलब्ध होने वाली वस्तु है।
  • पत्तियाँ : विभिन्न प्रकार के पेड़ एवं पौधों की पत्तियों को सरलतापूर्वक प्राप्त किया जा सकता है। छात्रों द्वारा प्रत्यक्ष रूप से पत्तियों को देखकर अधिगम स्तर में वृद्धि होगी। छात्रों को विभिन्न प्रकार की पत्तियों के संग्रह के लिये भी प्रेरित किया जा सकता है इससे उनकी विज्ञान विषय में रुचि उत्पन्न होगी।
  • टहनियाँ : यदि विज्ञान विषय में पौधों के भाग का वर्णन किया जा रहा है तो टहनी को दिखाकर उसे शिक्षण अधिगम सामग्री के रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है। विभिन्न प्रकार के पौधों की टहनियाँ सरलता से उपलब्ध हो जाती हैं। वनस्पति विज्ञान एवं कृषि विज्ञान में टहनियों का प्रयोग आवश्यक रूप से किया जा सकता है।
  • मिट्टी : छात्रों के समक्ष दोमट मिट्ट, बलुई मिट्टी एवं मटियार आदि मिट्टियों के नमूने प्रस्तुत किये जाने चाहिये जिससे कि छात्र मिट्टियों के रूप एवं रंग से परिचित हो सकें। इस प्रकार से प्रदत्त मिट्टी सम्बन्धी ज्ञान छात्रों को स्थायी रूप से होगा तथा शिक्षण अधिगम प्रक्रिया भी रोचक हो जायेगी। इसके अतिरिक्त क्ले मिट्टी का भी वर्तमान समय में विद्यालय में व्यापक प्रयोग किया जा रहा है जिसके माध्यम से छात्रों से विभिन्न प्रकार की वस्तुएँ और आकृतियाँ बनवाकर रचनात्मक कार्य कराये जाते हैं तथा उन्हें रुचिपूर्ण शिक्षण प्रदान किया जाता है।
  • कंकड़ : कंकड़ों का सर्वोत्तम प्रयोग छात्रों को प्राथमिक स्तर पर गिनती एवं पहाड़े सिखाने में किया जा सकता है। छात्रों को कंकड़ प्रदान करके उन्हें गिनने के लिये दिया जा सकता है। कंकड़ों के ढेर में निश्चित मात्रा में कंकड़ उठाकर लाने के लिये छात्रों को पृथक्-पृथक् निर्देश दिया जा सकता है। इससे छात्र खेल-खेल में ही गिनती सीख सकते हैं।
  • पत्थर : विभिन्न प्रकार के पत्थरों के टुकड़ों को भी शिक्षण अधिगम सामग्री के रूप में प्रयोग किया जा सकता है। भूगोल शिक्षण में चट्टानों के विविध प्रकार एवं उनका वर्गीकरण प्रकरण के अन्तर्गत विभिन्न प्रकार की चट्टानों से सम्बन्धित पत्थरों के टुकड़ों को प्रस्तुत किया जा सकता है। इससे छात्रों को विभिन्न प्रकार की चट्टानों के स्वरूप का ज्ञान होता है कि चट्टानों में किस प्रकार के पत्थर पाये जाते हैं।

शिक्षण के यान्त्रिक सहायक साधन

Mechanized Means of Teaching
शिक्षण के यान्त्रिक सहायक साधन वह हैं जो यन्त्रों के रूप में काम करते हैं; जैसे: रेडियो, भाषा यन्त्र, टेलीविजन, कम्प्यूटर, सी.डी. प्लेयर आदि। उपयोग की दृष्टि से ये तीन प्रकार के होते हैं- 
  1. श्रव्य : रेडियो, ग्रामोफोन, टेपरिकॉर्डर, भाषा यन्त्र, आदि ।
  2. दृश्य : परिचित्र दर्शी या चित्र विस्तारक, मूक चलचित्र, फिल्म स्ट्रिप्स, स्लाइड्स, चित्र प्रक्षेपी आदि ।
  3. श्रव्य-दृश्य : चलचित्र, टेलीविजन या दूरदर्शन कम्प्यूटर आदि ।
इस दृष्टि से उपरोक्त तीनों ही प्रकार के मुख्य यान्त्रिक सहायक साधन शिक्षण की दृष्टि से विशेष रूप से सहायक सिद्ध होते हैं इनका संक्षिप्त परिचय तथा शैक्षणिक उपादेयता का उल्लेख नीचे किया गया है।

शिक्षण के यान्त्रिक शृव्य साधन

Audio Mechanized Means
शृव्य उपकरण में वह शैक्षिक सहायक सामग्री सम्मिलित की जाती है, जिसके प्रयोग के समय विद्यार्थी मुख्यत: कानों के माध्यम से अपनी चिन्तन प्रक्रिया को और अधिक विकसित करने में सहायता प्राप्त करता है। शृव्य सामग्री में मुख्यत: रिकॉर्ड प्लेयर, टेप रिकॉर्डर तथा रेडियो की गणना की जाती है। शृव्य उपकरणों के माध्यम से भाषा की ध्वनियाँ (खण्डीय, खण्डेत्तर) ध्वनि-विश्लेषण, आक्षरिक संघटन शब्द, पदबन्ध, वाक्य, अनुतान आदि को ग्रहण किया जा सकता है। इन उपकरणों के प्रयोग के समय कक्षा में शान्त वातावरण होना आवश्यक है, इनका वर्णन इस प्रकार है :

ग्रामोफोन

जब टेप आदि का प्रचलन नहीं था, तब किसी बात को ऊँची आवाज में प्रचारित, प्रसारित करने हेतु इन्हीं का प्रयोग होता था। ग्रामोफोन में ध्वनि को टेप पर रिकॉर्ड न किया जाकर रासायनिक विधि से तैयार की हुई तबेनुमा एक सपाट किन्तु गोल प्लेट पर एक नुकीली सुई की सहायता से ध्वनि तरंगों को ठीक उसी प्रकार रिकॉर्ड कर लिया जाता है जिस प्रकार टेप में पुनः जब यान्त्रिक व्यवस्थानुरूप सुई को उसी प्लेट पर घुमाया जाता है, तब प्लेट पर ध्वनि तरंगों के अनुरूप बने रेखीय चिह्न पुनः मूल ध्वनि तरंगों में परिवर्तित हो जाते हैं जिन्हें सरलता से सुना जा सकता है। देखा जाय तो टेप, ग्रामोफोन का ही परिष्कृत रूप है। यदि ध्वनि को दूर-दूर तक प्रसारित करना हो तो उसके लिये तार द्वारा एक-दूसरे यन्त्र ध्वनि विस्तारक के साथ उसी प्रकार जोड़ दिया जाता है जिस प्रकार टेप को ध्वनि विस्तारक के साथ। 

रिकॉर्ड प्लेयर

रिकॉर्ड प्लेयर शिक्षक का एक प्रमुख साथी है, जिसमें वार्तालाप, गीत, कविता, भाषण, वाक्य-साँचे आदि अंकित रहते हैं। सिनेमा रिकॉर्डों की भाँति ही लिंग्वा रिकॉर्ड भी बनाये जाते हैं। लिंग्वा फोन पद्धति से विश्व की विभिन्न भाषाओं को पढ़ाने की ओर तीव्रता से प्रगति होती ही रही है। आजकल पाठ्य पुस्तक के पूरक के रूप में प्लास्टिक शीट पर भी भाषा- रिकॉर्ड मिलने लगे हैं। रिकॉर्ड को डिस्क रिकॉर्ड भी कहा जाता था। रिकॉर्ड प्लेयर पुराने ढंग के फोनोग्राफ का ही सुधरा हुआ विद्युत चालित रूप है।

टेप रिकॉर्डर

टेप रिकॉर्डर भी शिक्षक का एक साथी है, जिस पर रिकॉर्ड की भाँति वार्तालाप, गीत, कविता, भाषण, वाक्य-साँचे आदि बोलते समय अंकित किये जा सकते हैं तथा आवश्यकता न होने पर उसी समय मिटाये भी जा सकते हैं। एक टेप अनेक बार अंकित करने, अंकित सामग्री को मिटाने के काम आ सकता है। आजकल यह उपकरण पर्याप्त सस्ता है तथा चार सेलों से चलाया जा सकता है। वर्तमान टेप पुराने टेप वायर का एक सुधरा हुआ रूप है। टेप का उपयोग उच्चारण, भाषण आदि अंकित करने तथा उसे सुनने के लिये किया जा सकता है। धीरे-धीरे इसका स्थान सी. डी. प्लेयर ने ले लिया है।

रेडियो

आकाशवाणी से शिक्षण के कार्य में पर्याप्त सहायता ली जा सकती है। रेडियो पर प्रसारित होने वाले कार्यक्रमों-वार्तालाप, भाषण, निबन्ध, नाटक, एकांकी, गीत, कविता आदि के श्रवण से अध्येताओं की भाषा-दक्षता में वृद्धि होती है। आजकन रेडियो स्टेशनों से द्वितीय भाषा शिक्षण के कार्यक्रम भी प्रसारित होने लगे हैं। द्वितीय हिन्दी भाषा शिक्षक को चाहिये कि वह ऐसे कार्यक्रमों के प्रसारण के समय का पता लगाकर उनका अधिक से अधिक लाभ उठाये। रेडियो कार्यक्रमों को सुनने (घर पर, विद्यालय में) तथा उन पर परिचर्चा करने का आयोजन विद्यालय में होते रहना चाहिये। अध्यापक को छात्रों के सहयोग से प्रसारित कार्यक्रम की आवश्यक व्याख्या प्रश्नावली, परिचर्चा आदि की व्यवस्था करनी चाहिये। ऐसे समय छात्रों को प्रमुख बातें नोट करने के लिये प्रोत्साहित भी करना चाहिये ।

शिक्षण के यान्त्रिक दृश्य साधन

Visual Mechanized Means of Teaching
वे शैक्षिक उपकरण या सामग्री जिनके प्रयोग के समय विद्यार्थी मुख्यत: आँखों के माध्यम से अपनी चिन्तन प्रक्रिया को और अधिक विकसित करने में सहायता प्राप्त करता है, उन्हें दृश्य सामग्री के अन्तर्गत गिना जाता है। शिक्षण अधिगम के समय दृश्य सामग्री प्रत्यय निर्माण की दृष्टि से प्रत्यक्ष अनुभूति के वातावरण की सृष्टि करती है।

पट्ट

शिक्षण अधिगम के क्षेत्र में पाठ्य पुस्तकों के बाद सर्वाधिक सुलभ शैक्षिक सहायक सामग्री के अन्तर्गत विविध प्रकार के पट्टों की गणना की जाती है। इन पट्टों में तीन प्रकार के पट्ट विशेष उल्लेखनीय हैं :
  1. खड़िया पट्ट 
  2. नमदा पट्ट  
  3. चुम्बकीय पट्ट  

चित्र

चित्र शिक्षण अधिगम में भी विशेष प्रभावकारी सिद्ध होते हैं। चित्रों के अनेक रूप होते हैं : चित्र तथा रेखाचित्र, छायाचित्र, व्यंग्यचित्र, दीवार चित्र, सारणी, मानचित्र तथा फ्लैश कार्ड। चित्र सभी आयु के विद्यार्थियों को रोचक लगते हैं- ऐतिहासिक वस्तुओं यथा दुर्ग, गढ़, किला, भवन, युद्ध, सिक्के आदि, प्राकृतिक दृश्यों, वैज्ञानिक यन्त्रों आदि के चित्र विभिन्न प्रकार के भाषा-साहित्य पाठों; यथा-कहानी, जीवनी, वार्तालाप, वर्णनात्मक तथा विवरणात्मक निबन्ध आदि को चित्र अधिक स्पष्ट, सहज और ग्राह्य बना देते हैं। इकरंगे, दुरंगे तथा बहुरंगे चित्र पुस्तकों, पत्र-पत्रिकाओं तथा बाजार में बड़ी आसानी से उपलब्ध हो सकते हैं।  

प्रक्षेपक

प्रक्षेपक (प्रोजेक्टर) स्वयं में दृश्य सामग्री नहीं है, वरन् इसकी सहायता से विविध प्रकार की सहायक सामग्री को प्रक्षेपित करते हुए दृश्य बनाया जाता है। ये अनेक प्रकार के होते हैं :
  • स्लाइड प्रोजेक्टर : स्लाइड प्रोजेक्टर के माध्यम से विविध प्रकार के दृश्यों, स्थानों, क्रियाओं, घटनाओं, वर्णों, शब्दों आदि के स्लाइडों को प्रदर्शित किया जाता है। 2" x 2" या 3" x 4" के श्वेत-श्याम या रंगीन स्लाइड पर अंकित बातें प्रदर्शन के समय पर्दे पर बड़े आकार की तथा स्पष्ट दिखायी देती हैं। इस प्रोजेक्टर में यदि सुविधा हो तो मूक चलचित्र की पट्टियाँ (Dumb film strips) भी पर्दे पर प्रदर्शित की जा सकती हैं।
  • ओवरहेड प्रोजेक्टर : ओवरहेड प्रोजेक्टर में लगी पारदर्शी शीट पर शिक्षक अध्यापन के समय आवश्यकतानुसार मोटी पेन्सिल से लिख तथा उसे मिटा सकता है। परदर्शी शीट पर लिखी सामग्री (रेखाचित्र, सारणी आदि) को वह एक हत्थे से घुमाकर लपेट तथा पुनः प्रदर्शित भी कर सकता है। इस प्रक्षेपक में ऐसा प्रावधान होता है कि अध्यापक के सिर के ऊपर से प्रकाश रश्मियाँ पर्दे पर जाकर विस्तृत होती हैं। 
  • एपिडाइस्कोप : एपिडाइस्कोप एक प्रकार का अपारदर्शी प्रक्षेपक (Opaque projector) होता है, जिसकी सहायता से छोटे-छोटे पदार्थ, पुस्तक या पत्रिकादि पर अंकित सामग्री को बड़े आकार में पर्दे पर प्रक्षेपित किया जा सकता है। इस प्रक्षेपक के उपयोग के समय कक्षा में पर्याप्त अँधेरा होना चाहिये। इसका ओवरहेड प्रोजेक्टर बल्व से अधिक शक्ति का होता है।

शिक्षण के यान्त्रिक शृव्य-दृश्य साधन

Audio-Visual Mechanized Means of Teaching
वे शैक्षिक उपकरण या सामग्री जिनके प्रयोग के समय विद्यार्थी मुख्यतः आँखों तथा कानों के माध्यम से अपनी चिन्तन-प्रक्रिया को और अधिक विकसित करने में सहायता प्राप्त करता है, उन्हें दृश्य-शृव्य सामग्री के अन्तर्गत गिना जाता है। दृश्य-शृव्य सामग्री में मुख्यत: चलचित्र (Cinema), दूरदर्शन (Television) तथा वीडियो (Video Tape) की गणना की जाती है। अभिनय (Drama), परिभ्रमण (Excursion) से भी कुछ बातों का ज्ञान-लाभ हो सकता है। ये दोनों माध्यम उस प्रकार की दृश्य - मृव्य सामग्री नहीं कहे जा सकते; जैसे कि उपर्युक्त तीनों उपकरण।

कम्प्यूटर 

शिक्षा के क्षेत्र में कम्प्यूटर का बहुत अधिक प्रभाव पड़ा है। शिक्षा के विभिन्न विभाग इसके प्रयोग से लाभान्वित हो रहे हैं। उदाहरण के लिये पुस्तकालय, परीक्षा, प्रयोगशाला, प्रबन्धन कार्य, अध्यापन तथा अध्ययन आदि कम्प्यूटर शिक्षा क्षेत्र में जानकारियों का स्रोत एवं भण्डारण स्थान के रूप में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका बनाये हुए है। यह शिक्षा प्रबन्धन में, अध्यापन में एवं एक नये विषय के रूप में अपना महत्त्वता बना चुका है। शिक्षा के अतिरिक्त यह शिक्षा संस्थान के अन्य कार्य जैसे- छात्रों की उपस्थिति का रिकॉर्ड, टाइमटेबल बनाना, छात्रों को पढ़ाना, नोट्स लिखना, रिपोर्ट कार्ड बनाना, फीस रिकॉर्ड का रखना, प्रोजेक्ट बनाने में, पुस्तकालय में किताबों का रिकॉर्ड रखना, यूनिवर्सिटीज का बजट बनाने में, इन्टरनेट से शिक्षा सम्बन्धी जानकारी प्राप्त करने में तथा समय-सारणी के निर्माण में सहायता करता है।

दूरदर्शन

दूरदर्शन में चलचित्र के सभी गुण पाये जाते हैं, किन्तु इसे बड़ी संख्या की कक्षा में प्रयोग में नहीं लाया जा सकता। भारत में पर्याप्त दूरदर्शन कार्यक्रम प्रसारित होते हैं। जहाँ सुविधा हो, विद्यालयों में दूरदर्शन कार्यक्रमों से लाभ उठाया जाना चाहिये। दूरदर्शन कार्यक्रमों का उपयोग भी केवल मनोरंजन के लिये ही न होकर भाषा कौशलों की क्षमता वृद्धि की दृष्टि से किया जाना चाहिये।

वीडियो

वीडियो एक व्यय साध्य किन्तु पर्याप्त मनोरंजक तथा उपयोगी उपकरण है। भारत के नगरों में वीडियो का उपयोग मनोरंजन के लिये करते हैं। में विद्यालयों में वीडियो का प्रयोग शिक्षण के लिये होता था परन्तु अब वीडियो का प्रचलन कम हो गया है और इसका स्थान डी.वी.डी. और वी.सी.डी. ने ले लिया है।

डीवीडी / वी.सी. डी.

ऑडियो सी.डी. के समान ही वी.सी.डी. एवं डी. वी. डी. भी शिक्षण के क्षेत्र में बहुत उपयोगी माध्यम हैं। इसमें आवाज के साथ-साथ चित्रित प्रदर्शन प्रस्तुत किया जाता है जिसे छात्र सरलता से हृदयंगम कर सकते हैं। इनका प्रयोग शिक्षण कार्य में व्यापक रूप से किया जाता है। शिक्षक एवं छात्र अपनी परियोजनाओं को रिकॉर्ड कर उनका अवलोकन एवं जाँच कर सकते हैं तथा विभिन्न अनुसन्धानों का अध्ययन कर सकते हैं। वर्तमान में पुस्तकों की भाँति भी इन्हें कार्य में लिया जाता है। पाठ्य पुस्तकों का मैटर इनमें संग्रहित किया जाता है जिसे आवश्यकतानुसार शिक्षक एवं छात्रों द्वारा पढ़ा जा सकता है। देश-विदेश के शिक्षाशास्त्रियों के विचार आसानी से वी.सी. डी. और डी.वी.डी. के माध्यम से प्राप्त किये जा सकते हैं।

शिक्षण अधिगम सामग्री के निर्माण में सावधानियाँ 

Precautions in Construction of Teaching Learning Maetrial 
शिक्षण अधिगम सामग्री का उचित एवं सारगर्भित निर्माण करना एक कठिन कार्य है क्योंकि इस सामग्री के निर्माण से पूर्व हमको अनेक बिन्दुओं पर ध्यान देना पड़ता है। आवश्यक तथ्यों को ध्यान में रखे बिना तथा सावधानियों को प्रयोग में लाये बिना निर्मित की सामग्री शिक्षण अधिगम प्रक्रिया को प्रभावी एवं बोधगम्य नहीं बना सकती। 

अतः निर्माण से पूर्व उन समस्त तथ्यों पर विचार करना आवश्यक है जो कि इसको सर्वोत्तम, उद्देश्यपूर्ण एवं श्रेष्ठ सामग्री के रूप में विकसित करते हैं। इसलिये शिक्षण अधिगम सामग्री के निर्माण से पूर्व निम्नलिखित सावधानियों को ध्यान में रखना चाहिये :
  • उद्देश्य की पूर्ति : शिक्षण अधिगम सामग्री का निर्माण करने से पूर्व यह निश्चित कर लेना चाहिये कि जिस उद्देश्य की पूर्ति हेतु हम सामग्री का निर्माण कर रहे हैं वह उस उद्देश्य की पूर्ति करने में कितनी सक्षम है? जैसे-गिनती एवं पहाड़ों को सिखाने में चार्ट एवं शब्दों में लिखित गिनती चार्ट दोनों में किसका प्रयोग करना उचित एवं सार्थक होगा?
  •  लागत : शिक्षण अधिगम सामग्री के निर्माण में लागत से सम्बन्धित पक्ष पर विचार करना आवश्यक है। अधिक लागत वाली शिक्षण सामग्री के स्थान पर कम लागत वाली शिक्षण सामग्री का ही निर्माण उपयुक्त माना जाता है। निर्माण प्रक्रिया में उत्पादन लागत कम से कम आये। इस तथ्य पर विचार करना चाहिये तथा आवश्यक सावधानी बरतनी चाहिये।
  • प्रमुख बिन्दुओं का प्रदर्शन : शिक्षण अधिगम सामग्री के निर्माण में प्रमुख बिन्दुओं का प्रदर्शन आवश्यक है क्योंकि ये बिन्दु ही उस सामग्री के महत्त्व एवं उपयोगिता में वृद्धि करते हैं। इनके द्वारा ही शिक्षण अधिगम प्रक्रिया को प्रभावशाली बनाया जा सकता है। अतः जिन प्रमुख बिन्दुओं का छात्रों को ज्ञान कराना है उनका प्रदर्शन सामग्री में अनिवार्य रूप से होना चाहिये।
  •  प्रभावशीलता : शिक्षण अधिगम सामग्री का निर्माण करते समय यह ध्यान देना चाहिये कि सामग्री पूर्णत: प्रभाव उत्पन्न करने वाली हो। शिक्षण अधिगम सामग्री द्वारा प्रभावोत्पादकता उत्पन्न की जानी चाहिये अर्थात् शिक्षण अधिगम प्रक्रिया को प्रभावशाली बनाने वाली होनी चाहिये ।
  •  रंगों का प्रयोग : शिक्षण अधिगम सामग्री में शान्त एवं आँखों को प्रिय लगने वाले रंगों का प्रयोग करना चाहिये। रंगों का प्रयोग प्रस्तुत विषयवस्तु के अनुरूप होना चाहिये, जिससे कि चित्रों में सजीवता का समावेश हो। रंगों का प्रयोग अनावश्यक रूप से नहीं करना चाहिये। रेखाचित्र एवं ग्राफ पेपर पर काली पेन्सिल का ही प्रयोग करना चाहिये। रंगों के अधिक प्रयोग से भी शिक्षण अधिगम सामग्री शैक्षिक उद्देश्य को पूर्ण नहीं करती। अतः रंगों का प्रयोग विचार एवं विवेक के आधार पर निश्चित करना चाहिये।
  • वास्तविकता : शिक्षण अधिगम सामग्री का निर्माण करते समय यह ध्यान रखा जाये कि वह विषयवस्तु के वास्तविक स्वरूप को प्रस्तुत करे। उदाहरण के लिये यदि चार्ट पर आम के वृक्ष के चित्र का प्रदर्शन किया जा रहा है तो वह आम का वृक्ष ही प्रतीत होना चाहिये न कि अशोक का वृक्ष क्योंकि आम एवं अशोक के वृक्ष की पत्तियों में समानता पायी जाती है। अत: निर्मित शिक्षण अधिगम सामग्री वास्तविकता के समीप होनी चाहिये।
  • स्पष्टता  शिक्षण अधिगम सामग्री के निर्माण में प्रत्येक तथ्य स्पष्ट रूप से अंकित होना चाहिये जिससे कि प्रयोग के समय भ्रमपूर्ण स्थिति उत्पन्न न हो। अस्पष्ट शिक्षण अधिगम सामग्री से शिक्षण की व्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। 
  • प्राकृतिक वस्तुओं का प्रयोग : शिक्षण अधिगम सामग्री के निर्माण में प्राकृतिक वस्तुओं का प्रयोग करना चाहिये, जिससे कि वास्तविकता एवं सजीवता की स्थिति उत्पन्न हो; जैसे- कक्षा में विभिन्न प्रकार की पत्तियों के बारे में छात्रों को ज्ञान प्रदान करना है तो इसके लिये सभी प्रकार की पत्तियों को एक चार्ट पर एकत्रित करके ले जाया जा सकता है क्योंकि रंगों द्वारा पत्तियों के निर्माण में धन एवं समय अधिक व्यय होगा। इसलिये प्राकृतिक वस्तुओं का प्रयोग इस स्थिति में उचित माना जा सकता है।
  • अनुपयोगी पदार्थों का प्रयोग : शिक्षण अधिगम सामग्री के निर्माण में यह ध्यान रखना चाहिये कि अनुपयोगी तथा निरर्थक सामग्री का प्रयोग करके उपयोगी सामग्री तैयार की जाय; जैसे-वृत्त, त्रिभुज एवं आयत आदि को प्रदर्शित करने के लिये व्यर्थ पड़े हुए गत्ते के टुकड़ों को उक्त आकृति के आकार में काटकर शिक्षण में प्रयोग करना। इसी प्रकार अन्य शिक्षण सामग्री के निर्माण में भी अनुपयोगी वस्तुओं का प्रयोग किया जाय।
  • स्पष्ट लेखन : शिक्षण अधिगम सामग्री के निर्माण में लिखित सामग्री के लिये प्रत्येक अक्षर को स्पष्ट रूप से बनाना चाहिये, जिससे कि छात्रों द्वारा उसके वास्तविक अर्थ का ज्ञान किया जाय; जैसे- पौधे के भागों का वर्गीकरण एवं सद्विचार से सम्बन्धित चार्ट आदि।
  • छात्रों का स्तर : शिक्षण अधिगम सामग्री के निर्माण में छात्रों के मानसिक स्तर का आवश्यक रूप से ध्यान रखना चाहिये क्योंकि छात्रों के मानसिक स्तर से उच्च स्तर की तथा निम्न स्तर की शिक्षण अधिगम सामग्री के द्वारा शिक्षण अधिगम प्रक्रिया प्रभावशाली एवं सकारात्मक नहीं होती, जो शिक्षण अधिगम सामग्री विषयवस्तु के स्पष्टीकरण में उचित भूमिका का निर्वाह नहीं करती वह उत्तम शिक्षण सामग्री नहीं मानी जाती।
  • बहुउद्देशीय स्वरूप : शिक्षण अधिगम सामग्री का निर्माण करते समय यह ध्यान रखना चाहिये कि उसके उसके द्वारा विषयवस्तु के स्पष्टीकरण के साथ-साथ और दूसरे भी उद्देश्य पूर्ण होने चाहिये, जैसे- हमारे परिवेश में विभिन्न प्रकार के पौधों का चित्र एक चार्ट पर बनाया। इस चित्र में हमारा उद्देश्य हमारे परिवेश विषय को स्पष्ट करना की नहीं होना चाहिये वरन् रंगों का चुनाव, कला एवं सृजनात्मक प्रवृत्ति का विकास छात्रों में करना भी होना चाहिये। अतः शिक्षण अधिगम सामग्री बहुउद्देशीय स्वरूप में होनी चाहिये। 

शिक्षण अधिगम सामग्री का रखरखाव

Maintenance of Teaching Learning Material
शिक्षण अधिगम सामग्री के रखरखाव के लिये कुछ प्रमुख तथ्यों को ध्यान में रखना आवश्यक है क्योंकि सामग्री के निर्माण के पश्चात् उसका प्रयोग लम्बे समय तक होना चाहिये। इसके लिये प्रस्तुत प्रमुख सुझाव एवं सावधानियाँ निम्नलिखित हैं :
  • अच्छी वस्तुओं का प्रयोग : शिक्षण अधिगम सामग्री के निर्माण में गुणवत्तापूर्ण वस्तुओं का प्रयोग करना चाहिये, जिससे कि सामग्री लम्बे समय तक सुरक्षित रहे; जैसे- रंग, चार्ट, पेपर एवं अन्य आवश्यक वस्तुएँ आदि। अच्छी वस्तुओं से निर्मित सामग्री को अधिक समय तक सुरक्षित रखा जा सकता है। इसके विपरीत निम्न वस्तुओं से तैयार शिक्षण सामग्री को कम समय तक सुरक्षित रखा जा सकता है।
  • कीड़ों से बचाव : चार्ट, प्रतिरूप, चित्र एवं पोस्टर आदि को झींगुर, चीपा तथा अन्य कीड़ों से बचाना चाहिये क्योंकि ये कीड़े बॉक्स में प्रवेश करके शिक्षण अधिगम सामग्री को हानि पहुँचा सकते हैं। दीमक एवं कीड़ों के लिये एलड़िन नामक दवा का प्रयोग करना चाहिये। इस प्रकार कीड़ों से बचाव करके इस सामग्री को अधिक समय तक सुरक्षित रखा जा सकता है।
  • सफाई : जिस स्थान पर शिक्षण अधिगम सामग्री रखी हुई है, उस स्थान की एक माह में एक बार सफाई बहुत आवश्यक है क्योंकि गन्दगी से विभिन्न प्रकार के कीड़ों का जन्म होता है। अतः शिक्षण अधिगम सामग्री के संरक्षण के लिये निश्चित समय के बाद सफाई होना आवश्यक है।
  • पृथक् कक्ष : शिक्षण अधिगम सामग्री के संरक्षण हेतु यह "आवश्यक है कि सामग्री के लिये पृथक् कक्ष होना चाहिये तथा उस कक्ष का निर्माण इस कार्य को ध्यान में रखकर किया जाना चाहिये। इस कक्ष में पोस्टर, चार्ट एवं मॉडलों के रखने की उचित व्यवस्था होनी चाहिये। उसमें उचित प्रकाश की व्यवस्था भी हो, जिससे सीलन की अवस्था उत्पन्न न हो और कक्ष का वातावरण सूखा रहे। उसमें फिनाइल तथा अन्य कीटाणुनाशक दवाओं का छिड़काव कर दिया जाये, जिससे शिक्षण अधिगम सामग्री को हानि पहुँचाने वाले कीड़े नष्ट हो जायें।
  • मरम्मत : शिक्षण अधिगम सामग्री की समय-समय पर मरम्मत का कार्य करते रहना चाहिये, जैसे- कोई चार्ट किसी कोने से थोड़ा-सा फट जाता है तो उसको टेप लगाकर ठीक किया जा सकता है। इसी प्रकार अनेक प्रकार की छोटी-छोटी कमियों को समय-समय पर सुधार कर ठीक कर लेना चाहिये जिससे कि प्रयोग के समय असुविधा न हो।
  • प्रयोग में सावधानी : शिक्षण अधिगम सामग्री का प्रयोग करते समय यह ध्यान रखना चाहिये कि सामग्री को कोई हानि न पहुँचे। छोटे स्तर के छात्रों की पहुँच से भी इसे दूर रखना चाहिये क्योंकि कौतूहलवश इसे देखने पर कोई हानि पहुँच सकती है। प्रयोग करने के तुरन्त बाद इसको सुनिश्चित स्थान पर रख देना चाहिये। इस प्रकार शिक्षण अधिगम सामग्री को दीर्घ समय तक सुरक्षित रखा जा सकता है।

उपरोक्त विवेचन से यह स्पष्ट होता है कि शिक्षण अधिगम सामग्री के रखरखाव में पूर्णत: सावधानी बरतनी चाहिये। प्रत्येक शिक्षक को इसके रखरखाव से सम्बन्धित तथ्यों का पूर्ण ज्ञान होना चाहिये। अतः यह स्पष्ट हो जाता है कि शिक्षण अधिगम सामग्री के रखरखाव एवं संरक्षण में सावधानी रखना भारतीय विद्यालयों की दशा को देखते हुए परमावश्यक है। 


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