हिंदी की बोलियाँ | भाषा का विकास क्रम | उत्तर प्रदेश की प्रमुख बोलियाँ

भाषा का विकास क्रम बोली 🠞 उपभाषा 🠞 भाषा का विकास, ठीक वैसा ही होता है, जैसे गाँव 🠞 कस्बा 🠞 शहर
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हिन्दी भाषा एवं बोलियाँ

भाषा वह साधन है जिसके द्वारा मनुष्य मन के भावों और विचारों को बोलकर और लिखकर प्रकट करता है। वह भाषा के द्वारा दूसरों के भावों और विचारों को सुनकर और पढ़कर जानता है।

हिंदी की बोलियाँ

हिन्दी भाषाSN.बोलीबोली - क्षेत्र
1. पश्चिमी हिंदी1बुंदेलीछतरपुर (मध्यप्रदेश व उ०प्र०)
(पश्चिमी उपभाषा)
शौरसेनी अपभ्रंश
2कन्नौजीकन्नौज (उत्तर प्रदेश)
3ब्रजभाषामथुरा, आगरा (उत्तर प्रदेश)
4खड़ी बोली (कौरवी)दिल्ली, मेरठ, सहारनपुर,बिजनौर (उत्तर प्रदेश)
5बांगरू (हरियाणवी)रोहतक (हरियाणा)
2. पूर्वी हिंदी6अवधीलखनऊ (उ०प्र०)
(पूर्वी उपभाषा)
अर्द्धमागधी अपभ्रंश
7बघेलीरीवा (मध्यप्रदेश, उ०प्र०)
8छत्तीसगढ़ीरायपुर (छत्तीसगढ़)
3. बिहारी हिंदी9मगहीगया (बिहार)
(बिहारी उपभाषा)
मागधी अपभ्रंश
10मैथिलीदरभंगा (बिहार)
11भोजपुरीबोलियाँ (पूर्वी उ०प्र०, बिहार)
4. पहाड़ी हिंदी12मंडियालीमंडी जिला (हिमाचल प्रदेश) (मंडियाली)
(पहाड़ी उपभाषा)
खस (शौरसेनी अपभ्रंश से प्रभावित)
13गढ़वालीटिहरी गढ़वाल (उत्तराखण्ड)
14कुमाऊंनीअल्मोड़ा, नैनीताल (उत्तराखण्ड)
5. राजस्थानी हिंदी15मेवाड़ीउदयपुर भीलवाड़ा, चित्तौड़गढ़
(राजस्थानी उपभाषा)
शौरसेनी अपभ्रंश
16मेवातीअलवर, भरतपुर, गुड़गांव, दिल्ली, करनाल का पश्चिमी क्षेत्र
17हाड़ौतीकोटा, बूँदी, बारां, झालावाड़
18मारवाड़ीजोधपुर, बीकानेर, जैसलमेर, पाली, नागौर, जालौर, सिरोही (राजस्थान)

भाषा का विकास क्रम

बोली 🠞 उपभाषा 🠞 भाषा का विकास, ठीक वैसा ही होता है, जैसे गाँव 🠞 कस्बा 🠞 शहर 

बोली

भाषा का क्षेत्रीय रूप 'बोली' कहलाता है।
किसी छोटे क्षेत्र में स्थानीय व्यवहार में प्रयुक्त होने वाली भाषा का वह अल्प - विकसित रूप बोली कहलाता है, जिसका कोई लिखित रूप अथवा साहित्य नहीं होता। 

उपभाषा 

क्षेत्रीय बोली का विकसित रूप ही उपभाषा कहलाती हैं। इसके अन्तर्गत साहित्यिक रचना भी की जाती है, एक उपभाषा क्षेत्र में एकाधिक बोलियाँ हो सकती हैं। 

भाषा 

भाषा का एक विशाल विस्तृत क्षेत्र में बोलने, लिखने, साहित्य-रचना करने तथा संचार माध्यमों के परस्पर आदान-प्रदान में प्रयुक्त होती हो, उसे भाषा कहते हैं।

भाषा परिवर्तन के कारण

कई पीढ़ियों के अंतर, स्थान विशेष की जलवायु, दैहिक भिन्नता, भौगोलिक विभिन्नता, जातीय और मानसिक अवस्था में अंतर रुचि और प्रवृत्ति में परिवर्तन एवं बदलाव तथा प्रयत्न साधन आदि कारणों से भाषा में परिवर्तन होते हैं।

हिन्दी प्रदेश, उपभाषाएँ तथा बोलियाँ

हिन्दी भाषा का क्षेत्र हिमाचल प्रदेश, पंजाब का कुछ भाग हरियाणा, राजस्थान, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड, छत्तीसगढ़, झारखण्ड, मध्य प्रदेश तथा बिहार के आसपास का क्षेत्र है। जिसे हिन्दी भाषी प्रदेश कहते हैं। इसे पूरे हिन्दी प्रदेश में हिन्दी को पाँच उपभाषाएँ और इनके अन्तर्गत 18 बोलियों का उल्लेख है -

पश्चिमी हिन्दी

खड़ी बोली

इसका दूसरा नाम कौरवी है कुछ लोग इसके अन्य नाम हिन्दुस्तानी नागरी, हिन्दी एवं सरहिन्दी भी मानते हैं। इसका उद्भव शौरसेनी अपभ्रंश के उत्तरी रूप से हुआ है। खड़ी बोली का प्रयोग दो अर्थों में किया जाता है - 

1. साहित्यिक हिन्दी

दिल्ली मेरठ के आस पास की लोक बोली
खड़ी बोली की दो प्रधान बोलियाँ हैं 
  1. बिजनौर की खड़ी बोली
  2. मेरठ की बोली
आज संस्कृत से युक्त खड़ी बोली ही भारत की राजभाषा है। खड़ी बोली का परिनिष्ठत रूप वर्तमान हिन्दी है, जो पत्र-पत्रिकाओं, शिक्षा, प्रशासन, व्यापार तथा सूचना संचार में प्रयुक्त की जाती है। 

खड़ी बोली का क्षेत्र

देहरादून का मैदानी भाग, सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, मेरठ, दिल्ली का कुछ भाग, बिजनौर, रामपुर, मुरादाबाद।

विशेषताएँ
  • हिन्दी की 'ए' 'औ' ध्वनियों के स्थान पर खड़ी बोली में 'ए' 'ओ' ध्वनियाँ मिलती है। जैसे - 'और' का 'ओर', 'है' के स्थान पर 'हे' । 
  • हिन्दी में 'न' ध्वनि के स्थान पर खड़ी बोली में 'ण' का प्रयोग मिलता है। यथा - सुनना - सुणणा
  • साहित्यिक हिन्दी की ड़, ढ़ ध्वनियों को खड़ी बोली में ड, ढ बोला-लिखा जाता है जैसे - बड़ा-बडा, चढ़ा - चढा।

ब्रजभाषा

ब्रज प्रदेश की भाषा को ब्रजभाषा कहा जाता है। प्राचीन काल में ब्रज शब्द का प्रयोग पशुओं, या गौओं का समूह या चरागाह के लिए होता था, इसका विकास शौरसेनी अपभ्रंश के मध्यवर्ती रूप से हुआ है। गंगा-यमुना के मध्य की भाषा होने के कारण डॉ. ग्रियर्सन ने इसे 'अन्तर्वेदी' नाम दिया इसके अन्य नाम है- ब्रजी, ब्रिज, ब्रिजकी, भाषा मणि-माधुरी एवं नागभाषा आदि।

ब्रजभाषा के क्षेत्र

मथुरा, अलीगढ़, आगरा, हाथरस, फिरोजाबाद, बुलन्दशहर एटा, बदायूँ, मैनपुरी, बरेली आदि ब्रजभाषा के क्षेत्र हैं।

विशेषताएँ
  • इनमें तीनो 'शू', 'ष', 'स्'  का केवल 'स' मिलता है।
  • ॠ के स्थान पर रि मिलता है। 
  • 'व' के स्थान पर 'म' का प्रचलन है - पायेंगे का पामेंगे।
  • 'ण' के स्थान पर 'न' मिलता है - प्रवीण का प्रवीन 
  • 'ड़'- 'ढ' 'ल' के स्थान पर 'र' का प्रयोग मिलता है कड़ी का करी, उलझ का उरझ 
  • खड़ी बोली हिन्दी के आकारान्त संज्ञाओं के स्थान पर औकारान्त संज्ञाएँ मिलती हैं। जैसे - हमारा के स्थान पर हमारौ, उनका के स्थान पर उनको।
साहित्य तथा लोक साहित्य के क्षेत्र में यह भाषा बहुत ही सम्पन्न है। इसके प्रमुख कवि हैं- अष्टछाप के समस्त कवि, रहीम, रसखान, बिहारी, देव, रत्नाकार, सत्यनारायण, 'कविरत्न'

हरियाणवी

इसका अन्य नाम वांगरू है। हरियाणवी का विकास उत्तरी शौरसेनी अपभ्रंश से हुआ है। कुछ लोग इसे 'हरियानी' या ‘हरियाणी’ कुछ देश भाषा के नाते 'देसाणी' भी कहते हैं। रोहतक व दिल्ली के जाटों के नाम पर यह जादू तथा बांगर प्रदेश के सम्बन्ध होने के कारण यह 'बांगरू' कहलाती है।

हरियाणवी भाषा का क्षेत्र

हरियाणा तथा दिल्ली का देहाती भाग, करनाल, रोहतक, हिसार, पटियाला, जींद, नाभा आदि।

विशेषताएँ
  • "न" के स्थान पर 'ण' का प्रयोग मिलता है। जैसे - अपना - अपणा,
  • 'ड़' ध्वनि का 'ड' हो जाता है। जैसे-बड़ा- बडा 
  • ध्वनिलोप की प्रवृत्ति अधिक है। अंगूठा में 'अं' का लोप हो जाता है केवल शेष 'गूठा' रहता है। इकत्तिस का 'कत्तिस'।
  • इसमें केवल लोक साहित्य ही उपलब्ध है।

बुंदेली

इसका विकास भी शौरसेनी अपभ्रंश से हुआ है। यह बुन्देल राजपूतों के क्षेत्र बुन्देलखण्ड की बोली है।

बुंदेली भाषा का क्षेत्र

उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश की सीमारेखा पर स्थित झाँसी, सागर, छतरपुर, जालौन, हमीरपुर, ग्वालियर, ओरछा, होशंगाबाद के आस-पास के क्षेत्र, बुंदेली भाषा का क्षेत्र है। इसमें लोक साहित्य की प्रचुरता काफी है। यह भी माना जाता है कि प्रसिद्ध लोक ग्रन्थ आल्हा मूलतः बुंदेली की एक उपबोली बनाफरी में लिखी गई है।

विशेषताएँ
प्यार सूचक के लिए या, वा प्रत्यय जोड़ने की परम्परा है बेटी को 'बिटिया', बेटा का 'बिटवा' 
'य', 'ज', 'म', 'व' के स्थान पर 'ब' हो जाता है। जैसे- यदि का जदि, विचार का बिचार 
सर्वनाम रूपों में मध्यम पुरुष व उत्तम पुरुष सम्बन्ध कारक में 'रो' के स्थान पर 'ओ' हो जाता है। जैसे- तुम्हारो, तुम्हाओ, हमारो-हमाओ।

कन्नौजी

कान्यकुब्ज प्राचीन काल में एक प्रदेश का नाम था। कन्नौजी भी शौरसेनी अपभ्रंश से निकली है। यह ब्रज के अत्यधिक समीप है। जिस कारण कुछ लोग इसे ब्रज की उपबोली मानते हैं। कन्नौजी में केवल लोक साहित्य प्राप्त है।

कन्नौजी भाषा का क्षेत्र

इटावा, फर्रूखाबाद, शाहजहाँपुर, कानपुर, हरदोई जिले इसके क्षेत्र में हैं। फर्रुखाबाद इस भाषा का केन्द्र है।

विशेषताएँ
इसकी वर्णमाला ब्रजभाषा से मिलती जुलती है। ऐ, औ के स्थान पर 'ए', 'ओ' का प्रयोग मिलता है- बडो, चलों
कन्नौजी बोली की प्रधान प्रवृत्ति है - शब्दों का ओकारान्त होना। जैसे हमारा - हमाओ, तुम्हारा -तुमाओ, मेरा-मेओ, बड़ा-बड़ो किया-करो, चला - चलो, गया - गओ यहाँ पहले दिए गए शब्द हिन्दी के हैं और दूसरा शब्द उसका कन्नौजी रूप है।

पूर्वी हिन्दी की उपबोली या विभाषा

अवधी

कुछ विद्वान इसे 'कौशली' व 'वैसवाडी' बोली भी कहते हैं। इस बोली का केन्द्र अयोध्या है। अयोध्या का विकसित रूप अवध है।

अवधी भाषा का क्षेत्र

लखनऊ, इलाहाबाद, फतेहपुर, मिर्जापुर, उन्नाव, रायबरेली, सीतापुर, फैजाबाद, गोंडा, बस्ती, सुल्तानपुर, प्रतापगढ़, बाराबंकी आदि।

विशेषताएँ
  • 'य', 'व' को 'अ' पढ़ा जाता है, जैसे-करिए को 'करिअ', 'छुवत' का 'छुअत' हो जाता है। 
  • 'ण' को 'न', 'ड' और 'र', 'य' को 'ज', 'व' को 'ब' का प्रयोग होता है, जैसे- प्राण को प्रान, यज्ञ का जग्य, ब्याह का ब्याउ,
  • ल् के स्थान पर 'र्' का पढ़ा जाता है, जैसे - फल का फर 
  • इसमें लोक साहित्य व साहित्य पर्याप्त मात्रा में है। इसके प्रसिद्ध कवि मुल्लादाउद, कुतुबन, जायसी, तुलसी उस्मान हैं।

बघेली

बघेली का उद्भव अर्द्धमागधी (अवधी के एक क्षेत्रीय रूप से) हुआ है। कुछ भाषा वैज्ञानिक इसको अवधी की एक बोली मानते हैं।

बघेली भाषा का क्षेत्र

इसका केन्द्र रीवां राज्य है। इसलिए इसे रीवाई भी कहते हैं। दमोह, जबलपुर, मण्डला, बालाघाट, फतेपुर, हमीरपुर, बांदा में इसका व्यवहार बुन्देली मिश्रित रूप मिलता है।

विशेषताएँ
अवधी के 'व' का 'ब' हो जाता है जैसे- आवा को आबा हो जाता है। 
'उ', 'ओ', 'इ', 'ए' स्वरों का क्रमशः 'या' तथा 'वा' हो जाता है। जैसे- खैत का ख्यात, तुमरे का त्वारे । 

छत्तीसगढ़ी

इसका अन्य नाम 'लरिया' 'खल्टाही' भी है। इसका विकास अर्धमागधी अपभ्रंश के दक्षिणी रूप से हुआ है। लोकगीतों की दृष्टि से यह भाषा सम्पन्न है। इसमें साहित्य का अभाव है। 

छत्तीसगढ़ी का क्षेत्र

सरगुजा, कौरिया, बिलासपुर, रायगढ़, खैरागढ़, रायपुर, दुर्ग, नंदगाँव, कांकेर आदि।

विशेषताएँ
  • संज्ञा सर्वनाम में 'ऐ' व 'औ' ध्वनियाँ का क्रमशः 'अइ' 'अठ' रूप मिलता है। जैसे-बैल का बइल, जोन का जउन 
  • इसमें शब्दों के मध्य में 'ड़' ध्वनि का लोप हो जाता है। जैसे-लड़का का लइका 
  • अल्पप्राण ध्वनियों का महाप्राण ध्वनियों में परिवर्तन की प्रवृत्ति है। जैसे- कचहरी को कछेरी 
  • 'स' के स्थान पर 'छ' का पाठ मिलता है। जैसे- सीता को छीता, सात को छात।

राजस्थानी हिन्दी

मारवाड़ी

यह प्राचीन मारवाड़ प्रान्त की बोली है। यह पश्चिमी राजस्थानी का रूप भी है। इसका विकास शौरसेनी अपभ्रंश से हुआ है। मारवाड़ी में साहित्य व लोक साहित्य दोनों पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है। मीरा के पद इसी भाषा में है।

मारवाड़ी का क्षेत्र

जोधपुर, अजमेर, किशनगढ़, मेवाड़, जैसलमेर, बीकानेर, सिरोही आदि।

मेवाती

यह उत्तरी राजस्थानी भाषा है। इसका विकास भी शौरसेनी अपभ्रंश से हुआ है। इसकी एक मिश्रित बोली अहीरवाटी है।

मेवाती का क्षेत्र

अलवर, गुड़गाँव, भरतपुर तथा दिल्ली, करनाल का पश्चिमी क्षेत्र आदि।

जयपुरी

स्थानीय लोग इसे 'ढूंढ़ाणी' या जयपुरिया भी कहते हैं। यह शौरसेनी अपभ्रंश से विकसित है। इसमें केवल लोक साहित्य उपलब्ध है। इसे पूर्वी राजस्थानी भी कहते हैं।

जयपुरी का क्षेत्र

जयपुर इसका प्रमुख केन्द्र है। अजमेर और किशनगढ़ में भी यह बोली जाती है।

मालवी

इसको दक्षिणी राजस्थानी भी कहते हैं। यह शौरसेनी अपभ्रंश से विकसित है। इसका मुख्य केन्द्र मालवा है। जिसकी प्रतिनिधि बोली मालवी है।

मालवी का क्षेत्र

इंदौर, उज्जैन, देवास, रतलाम, भोपाल, होशंगाबाद आदि।

मेवाड़ी

उदयपुर एवं उसके आसपास के क्षेत्र को मेवाड़ कहा जाता है। इसलिए यहाँ की बोली मेवाड़ी कहलाती है। यह मारवाड़ी के बाद राजस्थान की महत्वपूर्ण बोली के विकसित और शिष्ट रूप के दर्शन हमें 12वीं एवं 13वीं शताब्दी में ही मिलने लगते हैं। मेवाड़ी का शुद्ध रूप मेवाड़ के गांवों में ही देखने को मिलता है। मेवाड़ी में लोक साहित्य का विपुल भण्डार है। केवल ए और औ की ध्वनि के शब्द अधिक प्रयुक्त होते हैं। 

हड़ौती

हाड़ा राजपूतों द्वारा शासित होने के कारण कोटा, बूंदी, बारी एवं झालावाड़ का क्षेत्र हाड़ौती कहलाया और यहाँ की बोली हाड़ौती जो ढूँढ़ाड़ी की ही एक उपबोली है।
  • यह पूर्वी राजस्थान की बोली है। 
  • ग्रियर्सन ने अपने ग्रंथ में भी हड़ौती को बोली के रूप में मान्यता दी है।

हड़ौती का क्षेत्र

वर्तमान क्षेत्र-कोटा बूंदी (इन्द्रगढ़ एवं नैनवा तहसीलों के उत्तरी भाग को छोड़कर) बारां (किशनगंज एवं शाहाबाद तहसीलों के पूर्वी भाग के अलावा) तथा झालावाड़ के उत्तरी भाग की प्रथम बोली है।

पहाड़ी भाषा

पश्चिमी पहाड़ी

इसकी लगभग 30 बोलियाँ हैं। डॉ. सुनीत कुमार चटर्जी इन बोलियों का विकास खस अपभ्रंश से तथा उन्हें शौरसेनी से प्रभावित मानते हैं। इसमें लोक साहित्य भी उपलब्ध है।

पश्चिमी पहाड़ी का क्षेत्र

जौनसर, सिरमौर, शिमला, मंडी, चंबा व इसके आसपास के क्षेत्र।

मध्यवर्ती पहाड़ी

इसका क्षेत्र गढ़वाल कुमाऊँ के आसपास के क्षेत्र हैं। गढ़वाली और कुमायूँनी मध्य पहाड़ी के दो मुख्य भेद है। कुमाऊँनी उत्तराखण्ड के कुमाऊँ मण्डल में बोली जाती है। इस पर राजस्थानी का विशेष प्रभाव है। गढ़वाली गढ़वाल मण्डल में बोली जाती है। जिसका प्रमुख केन्द्र श्रीनगर है।

नोट - कुछ विद्वानों ने नेपाली को पूर्वी पहाड़ी माना है। पूर्वी पहाड़ी को 'गोरखाली' व 'खसकुरा' भी कहते हैं। इस क्षेत्र में चीनी-तिब्बती भाषा परिवार की नेवारी बोली का भी व्यापक प्रयोग होता है।

बिहारी भाषा

भोजपुरी

इसको पूरबी भी कहते हैं। बिहार के शाहाबाद जिले के भोजपुर गाँव के नाम से आधार पर इस बोली का नाम भोजपुरी पड़ा। इस बोली का विकास मागधी अपभ्रंश के पश्चिमी रूप से हुआ है। हिन्दी प्रदेश में भोजपुरी बोलने वाले सबसे अधिक है। इसमें लोकसाहित्य काफी मात्रा में है।

भोजपुरी का क्षेत्र

बनारस, जौनपुर, गोरखपुर, आजमगढ़, मिर्जापुर, गाजीपुर, बलिया, बस्ती, शाहाबाद, चम्पारन, सारन आदि। 

मगही

संस्कृत मगध से विकसित शब्द मगह से सम्बन्धित है। यह अपभ्रंश से विकसित है। इसका प्रमुख केन्द्र पटना है। इसको लिखने के लिए कैथी व नागरी लिपि का प्रयोग होता है। 

मगही का क्षेत्र

पटना, गया, पलामू, हजारीबाग, मुंगर, भागलुपर।

मैथिली

यह प्राचीन मिथिला प्रदेश की बोली है। इसका विकास मागधी अपभ्रंश के मध्यवर्ती रूप से हुआ है। इसमें साहित्य रचना अत्यंत प्राचीनकाल से चली आ रही है। इसमें विद्यापति, गोविन्ददास, नागार्जुन आदि प्रमुख कवि हैं। इसका अन्य नाम तिरहुतिया भी है। यह तीन लिपियों मैथिली लिपि, कैथी लिपि तथा नागरी लिपि में लिखी जाती है।

मैथिली का क्षेत्र

दरभंगा, मुजफ्फरपुर, पूर्णिया व मुगेर आदि। हिन्दी की ये बोलियाँ अत्यंत समृद्ध हैं। खड़ी बोली हिन्दी से ही वर्तमान साहित्यिक हिन्दी का विकास हुआ है। खड़ी बोली हिन्दी ही हमारी राजभाषा है तथा वही बहुसंख्यक लोगों की भाषा होने के कारण राष्ट्रभाषा बन गई है।


हिन्दी भाषाबोलीबोली- क्षेत्र
1. पश्चिमी हिन्दीबुंदेलीझाँसी, जालौन, ललितपुर (चित्रकूट व बांदा के कुछ हिस्से) महोबा, हमीरपुर
(पश्चिमी उपभाषा)
शौरसेनी अपभ्रंश
कन्नौजीकन्नौज, इटावा, फर्रुखाबाद, पीलीभीत, शाहजहाँपुर, हरदोई, औरैय्या, रमाबाई नगर व कानपुर
खड़ी बोली
(कौरवी)
मेरठ, सहारनपुर, मुजफ्फरपुर, गौतमबुद्ध नगर प्रबुद्ध नगर, पंचशील नगर, भीमनगर, बागपत, गाजियाबाद, रामपुर, ज्योतिबाफूले नगर, मुरादाबाद, बिजनौर
ब्रजभाषामथुरा, आगरा, बुलंदशहर, एटा, बदायूँ, अलीगढ़, महामायानगर, कांशीराम नगर, बरेली, मैनपुरी, फिरोज़ाबाद
2. पूर्वी हिन्दीअवधी
अर्द्धमागधी
लखनऊ, फैजाबाद, प्रतापगढ़, कानपुर नगर, कानपुर देहात, इलाहाबाद (ठेठ अवधी), कौशाम्बी (ठेठ अबधी), बलरामपुर, उन्नाव, सीतापुर, गोण्डा रायबरेली, फतेहपुर, बाराबंकी, सुल्तानपुर, श्रावस्ती, बहराइच, लखीमपुरखीरी, छत्रपति शाहूजी महाराज नगर, मिर्जापुर व बस्ती के कुछ हिस्से
(पूर्वी उपभाषा)
अपभ्रंश
बघेली हिस्सेबांदा, चित्रकूट, सोनभद्र, मिर्जापुर, इलाहाबाद के मध्य प्रदेश से लगे सीमावर्ती
3. बिहारी हिन्दीभोजपुरीबस्ती, गोरखपुर, बलिया, सिद्धार्थनगर, देवरिया, गाजीपुर, महाराजगंज, आजमगढ़, बनारस, मिर्जापुर (के कुछ हिस्से), कुशीनगर, संतकबीर नगर, संतरविदास नगर के कुछ हिस्से (भदोही), चंदौली, मऊ, जौनपुर, अम्बेडकर नगर आदि।

नोट:दो बोलियों से सटे हुए जिले मिश्रित बोली का प्रयोग करते हैं। जिस प्रकार गंगा नदी के किसी स्थान के जल को स्पर्श कर यह नहीं कह सकते हैं कि यह कानपुर की गंगा है और यह इलाहाबाद की गंगा है। उसी प्रकार दो सटे हुए जिले की बोली का अंतर कर पाना मुस्किल है।

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