व्यक्तित्व का स्वरूप, प्रकार व विकास | Nature, Types and Growth of Personality

ऑलपोर्ट – “व्यक्तित्व, व्यक्ति में उन मनोशारीरिक अवस्थाओं का गतिशील संगठन है, जो उसके पर्यावरण के साथ उनका अद्वितीय सामंजस्य निर्धारित करता है। "
 

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Nature, Types and Growth of Personality

व्यक्तित्व का स्वरूप अर्थ व परिभाषा

सामान्यत: व्यक्तित्व से अभिप्राय, व्यक्ति के रूप, रंग, कद, लम्बाई, चौड़ाई, मोटाई, पतलापन, अर्थात् शारीरिक संरचना, व्यवहार तथा मृदुभाषी होने से लगाया जाता है। ये समस्त गुण व्यक्ति के समस्त व्यवहार का दर्पण हैं। व्यक्तित्व की अनेक धारणायें प्रचलित हैं जो इस प्रकार हैं।

व्यक्तित्व सम्बन्धी धारणायें

व्यक्तित्व के सम्बन्ध में अनेक धारणायें हैं। बोलचाल की भाषा में 'व्यक्तित्व' शब्द का प्रयोग - शारीरिक बनावट और सौन्दर्य के लिए किया जाता है। हम अक्सर सुनते हैं इस मनुष्य का व्यक्तित्व सुन्दर है, आकर्षक है, प्रभावशाली है। कुछ लोग 'व्यक्ति' और 'व्यक्तित्व' को पर्यायवाची मानते हैं और एक का प्रयोग दूसरे के लिए करते हैं। कुछ मनुष्य 'व्यक्तित्व' में केवल एक या दो गुणों की उपस्थिति मानते हैं, जबकि दूसरे उसे अनेक अस्पष्ट गुणों, अनिश्चित लक्षणों और अनिर्णीत विशेषताओं का दुर्बोध संग्रह मानते हैं। ऐसे भी मनुष्य हैं, जो व्यक्तित्व को जन्म से प्राप्त होने वाली वस्तु मानते हैं, जिस पर वातावरण का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है और जो मनुष्य के कार्यों में रमा रहता है।

जिस प्रकार सामान्य मनुष्यों की व्यक्तित्व के सम्बन्ध में विभिन्न धारणायें हैं, उसी प्रकार विद्वानों और मनोवैज्ञानिकों की भी हैं। यही कारण है कि व्यक्तित्व को आज तक किसी निश्चित अर्थ से सम्बद्ध नहीं किया जा सका है और न किसी निश्चित सीमा में बाँधा जा सका है। साधारणत: यह स्वीकार किया जा सकता है कि व्यक्तित्व विचित्र है, जटिल है, व्याख्या से परे है।

व्यक्तित्व शब्द की उत्पत्ति

'व्यक्तित्व' अंग्रेजी के पर्सनेल्टी शब्द का रूपान्तर है। अंग्रेजी के इस शब्द की उत्पत्ति यूनानी भाषा के पर्सोना शब्द. से हुई है, जिसका अर्थ है - 'नकाब'। यूनानी लोग नकाब पहनकर मंच पर अभिनय करते थे, ताकि दर्शकगण यह न जान सकें कि अभिनय करने वाला कौन है - दास, विदूषक, राजकुमार या राजनर्तकी अभिनय करने वाले जिस प्रकार के पात्र का पार्ट करते थे, उसी प्रकार का नकाब पहन लेते थे।

सिसरो द्वारा उल्लिखित अर्थ

जैसे-जैसे समय बीतता गया, वैसे-वैसे पर्सोना शब्द का अर्थ परिवर्तित होता चला गया। ईसा पूर्व पहली शताब्दी में रोम के प्रसिद्ध लेखक और कूटनीतिज्ञ सिसरो ने उसका प्रयोग चार अर्थों में किया 
  1. जैसा कि एक व्यक्ति दूसरे को दिखाई देता है, पर जैसा कि वह वास्तव में नहीं है
  2. वह कार्य जो जीवन में कोई करता है, जैसे कि दार्शनिक
  3. व्यक्तिगत गुणों का संकलन, जो एक मनुष्य को उसके कार्य के योग्य बनाता है
  4. विशेषता और सम्मान, जैसा कि लेखन शैली में होता रहा है। 
इस प्रकार, तेरहवीं शताब्दी तक पर्सोना शब्द का प्रयोग विभिन्न अर्थों में होता रहा। चौदहवीं शताब्दी में मनुष्य की मुख्य विशेषताओं का उल्लेख करने के लिए एक नये शब्द की आवश्यकता का अनुभव किया जाने लगा। इन आवश्यकताओं को पूर्ण करने के लिए पर्सोना को पर्सनेल्टी शब्द में रूपान्तरित कर दिया गया।

व्यक्तित्व का अर्थ

व्यक्तित्व सम्बन्धी उपर्युक्त धारणायें उसके अर्थ की पूर्ण व्याख्या नहीं करती हैं। 'व्यक्तित्व' में एक मनुष्य के न केवल शारीरिक और मानसिक गुणों का, वरन् उसके सामाजिक गुणों का भी समावेश होता है, किन्तु इतने से भी व्यक्तित्व का अर्थ पूर्ण नहीं होता है। कारण यह है कि यह तभी सम्भव है, जब एक समाज के सब सदस्यों के विचार, संवेगों के अनुभव और सामाजिक क्रियायें एक-सी हों। ऐसी दशा में व्यक्तित्व का प्रश्न ही नहीं रह जाता है। इसीलिए, मनोवैज्ञानिकों का कथन है कि व्यक्तित्व मानव के गुणों, लक्षणों, क्षमताओं, विशेषताओं आदि की संगठित इकाई है। मन के शब्दों में - "व्यक्तित्व की परिभाषा, व्यक्तित्व के ढाँचे, व्यवहार की विधियों, रुचियों, अभिवृत्तियों, क्षमताओं, योग्यताओं और कुशलताओं के सबसे विशिष्ट एकीकरण के रूप में की जा सकती है।" 

आधुनिक मनोवैज्ञानिक व्यक्तित्व को संगठित इकाई न मानकर गतिशील संगठन और एकीकरण की प्रक्रिया मानते हैं। इस सम्बन्ध में थार्प व शमलर ने लिखा है - “जटिल और एकीकृत प्रक्रिया के रूप में व्यक्तित्व की धारणा आधुनिक व्यावहारिक मनोविज्ञान की देन है।"

परिभाषाएँ

'व्यक्तित्व' की कुछ आधुनिक परिभाषाएँ दृष्टव्य हैं
1. बिग व हण्ट "व्यक्तित्व एक व्यक्ति के सम्पूर्ण व्यवहार प्रतिमान और इसकी विशेषताओं के योग का उल्लेख करता है। "

2. ऑलपोर्ट – “व्यक्तित्व, व्यक्ति में उन मनोशारीरिक अवस्थाओं का गतिशील संगठन है, जो उसके पर्यावरण के साथ उनका अद्वितीय सामंजस्य निर्धारित करता है। " 

3. ड्रेवर – “व्यक्तित्व शब्द का प्रयोग, व्यक्ति के शारीरिक, मानसिक, नैतिक और सामाजिक गुणों के सुसंगठित और गत्यात्मक संगठन के लिए किया जाता है, जिसे वह अन्य व्यक्तियों के साथ अपने सामाजिक जीवन के आदान-प्रदान में व्यक्त करता है। "

व्यक्तित्व के पहलू

गैरिसन तथा अन्य ने व्यक्तित्व के अधोलिखित पहलू बताये है-

क्रियात्मक पहलू 

व्यक्तित्व के इस पहलू का सम्बन्ध मानव की क्रियाओं से है। ये क्रियायें उसकी भावुकता, शान्ति, विनोदप्रियता, मानसिक श्रेष्ठता आदि को व्यक्त करती हैं।

सामाजिक पहलू 

व्यक्तित्व के इस पहलू का सम्बन्ध मानव द्वारा दूसरों पर डाले जाने वाले सामाजिक प्रभाव से है। इस पहलू में उन सब बातों का समावेश हो जाता है, जिनके कारण मानव दूसरों पर एक विशेष प्रकार का प्रभाव डालता है।

कारण सम्बन्धी पहलू 

व्यक्तित्व के इस पहलू का सम्बन्ध मानव के सामाजिक या असामाजिक कार्यों के कारणों और उन कार्यों के प्रति लोगों की प्रतिक्रियाओं से है। यदि उसके कार्य अच्छे हैं, तो लोग उसे पसन्द करते हैं, अन्यथा नहीं। 

अन्य पहलू 

व्यक्तित्व के अन्य पहलू हैं - दूसरों पर हमारा प्रभाव; हमारे जीवन में होने वाली बातों और घटनाओं का हम पर प्रभाव; हमारे गम्भीर विचार, भावनायें और अभिवृत्तियाँ |

निष्कर्ष रूप में, गैरिसन व अन्य ने लिखा है - "ये सभी पहलू महत्त्वपूर्ण हैं, परन्तु इनमें से कोई एक या सम्मिलित रूप से सब पूर्ण व्यक्तित्व का वर्णन नहीं करते हैं। व्यक्तित्व इन सबका और इनसे भी अधिक का योग है। यह सम्पूर्ण मानव है। " 

व्यक्तित्व के ये पहलू, उसके विभिन्न गुणों तथा पक्षों पर प्रकाश डालते हैं। ये पक्ष, व्यक्तित्व के संगठनात्मक स्वरूप पर प्रकाश डालते हैं। इसीलिये बीसेन्ज एवं बीसेन्ज के शब्दों में – “व्यक्तित्व मनुष्य की आदतों, दृष्टिकोण तथा विशेषताओं का संगठन है। यह जीव शास्त्रीय, सामाजिक तथा सांस्कृतिक कारण के संयुक्त कार्यों द्वारा उत्पन्न होता है।"

व्यक्तित्व की विशेषताएँ

व्यक्तित्व, शब्द में अनेक विशेषतायें निहित होती हैं। व्यक्तित्व में निम्न विशेषताओं को देखा जाता है-

आत्म चेतना

व्यक्तित्व की पहली और मुख्य विशेषता है - आत्म चेतना। इसी विशेषता के कारण मानव को सब जीवधारियों में सर्वोच्च स्थान प्रदान किया जाता है और उसके व्यक्तित्व की उपस्थिति को स्वीकार किया जाता है। पशु और बालक में आत्म चेतना न होने के कारण यह कहते हुए कभी नहीं सुना जाता है कि इस कुत्ते या बालक का व्यक्तित्व अच्छा है। जब व्यक्ति यह जान जाता है कि वह क्या है, समाज में उसकी क्या स्थिति है, दूसरे उसके बारे में क्या सोचते हैं तभी उसमें व्यक्तित्व का होना स्वीकार किया जाता है।

सामाजिकता 

व्यक्तित्व की दूसरी विशेषता है - सामाजिकता। समाज से पृथक मानव और उसके व्यक्तित्व की कल्पना नहीं की जा सकती है। मानव में आत्म-चेतना का विकास तभी होता है, जब वह समाज के अन्य व्यक्तियों के सम्पर्क में आकर क्रिया और अन्तः क्रिया करता है। इन्हीं क्रियाओं के फलस्वरूप उसके व्यक्तित्व का विकास होता है। अतः व्यक्तित्व में सामाजिकता की विशेषता होना अनिवार्य है।

सामंजस्यता 

व्यक्तित्व की तीसरी विशेषता है - सामंजस्यता । व्यक्ति को न केवल बाह्य वातावरण से, वरन् अपने स्वयं के आन्तरिक जीवन से भी सामंजस्य करना पड़ता है। सामंजस्य करने के कारण उसके व्यवहार में परिवर्तन होता है और फलस्वरूप उसके व्यक्तित्व में विभिन्नता दृष्टिगोचर होती है। यही कारण है कि चोर, डाकिये, पत्नी, डॉक्टर आदि के व्यवहार और व्यक्तित्व में अन्तर मिलता है। वस्तुतः मानव अपने व्यक्तित्व को अपनी दशाओं, वातावरण, परिस्थितियों आदि के अनुकूल बनाना पड़ता है।

निर्देशित लक्ष्य प्राप्ति 

व्यक्तित्व की चौथी विशेषता है - निर्देशित लक्ष्य की प्राप्ति मानव के व्यवहार का सदैव एक निश्चित उद्देश्य होता है और वह सदैव किसी-न-किसी लक्ष्य की प्राप्ति के लिए संचालित किया जाता है। उसके व्यवहार और लक्ष्यों से अवगत होकर हम उसके व्यक्तित्व का सहज ही अनुमान लगा सकते हैं। इसीलिए, भाटिया ने लिखा है - "व्यक्ति या व्यक्तित्व को समझने के लिए हमें इस बात पर विचार करना आवश्यक हो जाता है कि उसके लक्ष्य क्या हैं और उसे उनका कितना ज्ञान है ।"

दृढ़ इच्छा शक्ति 

व्यक्तित्व की पाँचव विशेषता है - दृढ़ इच्छा शक्ति। यही शक्ति, व्यक्ति को जीवन की कठिनाइयों से संघर्ष करके अपने व्यक्तित्व को उत्कृष्ट बनाने की क्षमता प्रदान करती है। इस शक्ति की निर्बलता उसके जीवन को अस्त-व्यस्त करके उसके व्यक्तित्व को विघटित कर देती है।

शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य 

व्यक्तित्व की छठवीं विशेषता है - शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य। मनुष्य मनो-शारीरिक प्राणी है। अतः उसके अच्छे व्यक्तित्व के लिए अच्छे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य का होना एक आवश्यक शर्त है।

एकता व एकीकरण 

व्यक्तित्व की सातवीं विशेषता है - एकता और एकीकरण। जिस प्रकार व्यक्ति के शरीर का कोई अवयव अकेला कार्य नहीं करता है, उसी प्रकार व्यक्तित्व का कोई तत्व अकेला कार्य नहीं करता है। ये तत्व हैं - शारीरिक, मानसिक, नैतिक, सामाजिक, संवेगात्मक आदि। व्यक्तित्व के इन सभी तत्वों में एकता या एकीकरण होता है।भाटिया ने लिखा है - “व्यक्तित्व मानव की सब शक्तियों और गुणों का संगठन व एकीकरण है।"

विकास की निरन्तरता 

व्यक्तित्व की अन्तिम किन्तु महत्त्वपूर्ण विशेषता है - विकास की निरन्तरता। उसके विकास में कभी स्थिरता नहीं आती है। जैसे-जैसे व्यक्ति के कार्यों, विचारों, अनुभवों, स्थितियों आदि में परिवर्तन होता जाता है, वैसे-वैसे उसके व्यक्तित्व के स्वरूप में भी परिवर्तन होता चला जाता है। विकास की यह निरन्तरता, शैशवावस्था से जीवन के अन्त तक चलती रहती है। ऐसा समय कभी नहीं आता है, जब यह कहा जा सके कि व्यक्तित्व का पूर्ण विकास या पूर्ण निर्माण हो गया है। इसीलिए गैरिसन व अन्य ने लिखा है - "व्यक्तित्व निरन्तर निर्माण की क्रिया में रहता है।"

व्यक्तित्व के लक्षण या गुण

व्यक्तित्व, समस्त गुणों का गत्यात्मक संगठन है। वुडवर्थ ने इसे समस्त गुणों का योग बताया है। गैरिट के शब्दों में - "व्यक्तित्व के गुण व्यवहार करने की निश्चित विधियाँ हैं जो व्यक्ति में स्थायी होते हैं। व्यक्तित्व के गुण, व्यवहार के बहुसंख्यक स्वरूप का वर्णन करने की स्पष्ट विधियाँ हैं।"

गुणों का अर्थ

किसी मनुष्य के व्यक्तित्व का सही चिन, वर्णन या चरित्र चित्रण प्रस्तुत करना कोई आसान काम नहीं है। इसे आसान बनाने के लिए मनोवैज्ञानिकों ने व्यक्तित्व के कुछ गुण या लक्षण निर्धारित किये हैं; जैसे - दयालु, कठोर, मूर्ख, बुद्धिमान आदि। यहाँ भ्रम निवारण के लिए यह बता देना असंगत न होगा कि इन गुणों या लक्षणों को योग्यताओं का पर्यायवाची नहीं माना जाता है। गुणों और योग्यताओं में अन्तर है। उदाहरणार्थ - हारमोनियम बजाना - योग्यता है, पर जिस ढंग से कोई व्यक्ति उसे बजाता है, वह उसके व्यक्तित्व का गुण या लक्षण है।

इस प्रकार, हम कह सकते हैं कि व्यक्तित्व का लक्षण, व्यक्ति के व्यवहार का कोई विशेष गुण होता है। गैरट के शब्दों में - “व्यक्तित्व के गुण, व्यवहार करने की निश्चित विधियाँ हैं, जो प्रत्येक व्यक्ति में बहुत कुछ स्थायी होता है। व्यक्तित्व के गुण, व्यवहार के बहुसंख्यक स्वरूपों का वर्णन करने की स्पष्ट और संक्षिप्त विधियाँ हैं। "

गुणों की संख्या

अब प्रश्न यह उपस्थित होता है कि व्यक्तित्व के कितने विभिन्न गुण हैं। इस प्रश्न का उत्तर देते हुए मन ने लिखा है - "व्यक्तित्व के इतने विभिन्न अंग, पक्ष, पहलू या स्वरूप हैं कि वास्तव में, यह बताना असम्भव है कि इन गुणों की संख्या कितनी है।

गुणों के प्रकार

व्यक्तित्व के गुण अनेक प्रकार के हैं, जैसे - 
  1. नैतिक और अनैतिक
  2. वास्तविक और प्रत्यक्ष  
  3. बाह्य और आन्तरिक  
उदाहरणार्थ - बाह्य गुण हैं - मित्रता, शान्ति और सामाजिकता। आन्तरिक गुण हैं - भय, चिन्ता, इच्छा और महत्त्वाकांक्षा 
4. शारीरिक, मानसिक, धार्मिक, सामाजिक, राजनीतिक, व्यावसायिक, आर्थिक आदि। 
यथार्थ में, इन गुणों की संख्या इतनी अधिक है और ये एक-दूसरे से इतने भिन्न हैं कि न तो इनका वर्गीकरण किया जा सकता है और न सम्भवतः किया जा सकेगा।

गुणों का महत्व 

प्रत्येक व्यक्ति में व्यक्तित्व के थोड़े-बहुत गुण अवश्य होते हैं। वे एक-दूसरे से विशिष्ट प्रकार से सम्बन्धित होकर व्यक्तित्व का निर्माण करते हैं और एक व्यक्ति को दूसरे व्यक्ति से भिन्नता प्रदान करते हैं। यह आवश्यक नहीं है कि जो गुण, जिस मनुष्य के व्यक्तित्व में हैं, वे उसमें सदैव विद्यमान रहें। उनमें से कुछ अदृश्य हो जाते हैं और कुछ स्थायी रूप धारण कर लेते हैं। उदाहरणार्थ, भय और चिन्ता के गुणों का लोप हो सकता है और वे व्यक्तित्व में निरन्तर उपस्थित भी रह सकते हैं। इसी प्रकार, एक गुण के अनेक अर्थ हो सकते हैं। किसी व्यक्ति का मुस्कान भरा चेहरा उसका स्वाभाविक गुण, उसकी शिष्टता का प्रतीक, उसके उत्तम स्वास्थ्य और आनन्दप्रियता का द्योतक या दूसरे लोगों को प्रसन्न और प्रभावित करने के लिए कृत्रिम विधि हो सकती है। गार्डनर व मर्फी के शब्दों में, "व्यक्तित्व के गुण हमें दूसरों को और अपने को समझने की एवं यह भविष्यवाणी करने की क्षमता प्रदान करते हैं कि हम में से प्रत्येक क्या कार्य करेगा।" 

गुणों का वितरण 

हम ऊपर लिख चुके हैं कि व्यक्तित्व के गुण मानव - व्यवहार के विभिन्न स्वरूपों का वर्णन करते हैं। गैरिट के अनुसार, “व्यवहार के इन स्वरूपों का वर्णन करने के लिए अंग्रेजी भाषा में कम से कम 18,000 विशेषणों का प्रयोग किया जा सकता है।" मनोवैज्ञानिकों ने इन गुणों में से 12 को प्रधान गुणों की संज्ञा दी है। ये गुण एक-दूसरे से स्वतंत्र हैं एवं दो निश्चित और विपरीत सीमाओं के अन्तर्गत रहते हैं; बुद्धिमान मूर्ख; दयालु कठोर। हम वुडवर्थ के अनुसार, प्रधान गुणों के समूहों में से कुछ उल्लेख कर रहे हैं;
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व्यक्तित्व के प्रकार

व्यक्तित्व का वर्गीकरण अनेक विद्वानों द्वारा अनेक प्रकार से किया गया है। इनमें से निम्नांकित तीन वर्गीकरणों को साधारणतः स्वीकार किया जाता है, पर सबसे अधिक महत्वपूर्ण अन्तिम को माना जाता है
  1. शरीर रचना प्रकार 
  2. समाजशास्त्रीय प्रकार 
  3. मनोवैज्ञानिक प्रकार 

शरीर रचना प्रकार

जर्मन विद्वान क्रेचमर ने अपनी पुस्तक "Physique and Character" में शरीर रचना के आधार पर व्यक्तित्व के तीन प्रकार बताए हैं;

शक्तिहीन 

इस प्रकार का व्यक्ति दुबला पतला और छोटे कंधों वाला होता है। उसकी भुजाएँ पतली और सीना छोटा होता है। उसके मुँह की बनावट कोण की सी होती है। वह दूसरों की आलोचना करना पसन्द करता है, पर दूसरों से अपनी आलोचना नहीं सुनना चाहता है।

खिलाड़ी 

इस प्रकार के व्यक्ति का शरीर हृष्ट-पुष्ट और स्वस्थ होता है। उसका सीना चौड़ा और उभरा हुआ, कंधे चौड़े, भुजाएँ मजबूत, माँसपेशियाँ पुष्ट और चेहरा देखने में अच्छा होता है। वह दूसरे व्यक्तियों से सामंजस्य करना चाहता है। 

नाटा 

इस प्रकार के व्यक्ति का शरीर मोटा, छोटा, गोल और चर्बी वाला होता है। उसका सीना नीचा और चौड़ा, पेट आगे को निकला हुआ और चेहरा गोल होता है। वह आरामतलब और लोकप्रिय होता है।

समाजशास्त्रीय प्रकार

स्प्रंगर ने अपनी पुस्तक "Types of Men" में व्यक्ति के सामाजिक कार्यों और स्थिति के आधार पर व्यक्तित्व के छः प्रकार बताए हैं; 

सैद्धान्तिक 

इस प्रकार का व्यक्ति, व्यवहार की अपेक्षा सिद्धान्त पर अधिक बल देता है। वह सत्य का पुजारी और आराधक होता है। दार्शनिक इसी प्रकार के व्यक्ति होते हैं।

आर्थिक 

इस प्रकार का व्यक्ति, जीवन की सब बातों का आर्थिक दृष्टि से मूल्यांकन करता है। वह हर काम को लाभ के लिए करना चाहता है। वह पूर्ण रूप से व्यावहारिक होता है और धन को अत्यधिक महत्व देता है। व्यापारी लोग इसी प्रकार के व्यक्ति होते हैं।

सामाजिक 

इस प्रकार का व्यक्ति, प्रेम का पुजारी होता है। वह दया और सहानुभूति में विश्वास करता है। उसे सत्य और मानवता में अगाध श्रद्धा होती है। वह समाज के कल्याण के लिए सब कुछ कर सकता है। 

राजनीतिक 

इस प्रकार का व्यक्ति - सत्ता, प्रभुत्व और नियंत्रण में विश्वास रखने वाला होता है। उसका मुख्य ध्येय इन बातों को सदैव यथावत् बनाये रखना होता है।

धार्मिक 

इस प्रकार का व्यक्ति, ईश्वर से डरने वाला और आध्यात्मिकता में आस्था वाला होता है। इसका जीवन सादा और सरल होता है। 

कलात्मक 

इस प्रकार का व्यक्ति प्रत्येक वस्तु को कला की दृष्टि से देखता है। उसमें कला और सौन्दर्य में सम्बन्ध करने की प्रबल इच्छा होती है। वह विश्वसनीय नहीं होता है।.

मनोवैज्ञानिक प्रकार

मनोवैज्ञानिकों ने मनोवैज्ञानिक लक्षणों के आधार पर व्यक्तित्व का वर्गीकरण किया है। इनमें जुंग का वर्गीकरण सबसे अधिक मान्य है। उसने अपनी पुस्तक "Psychological Types" में व्यक्तित्व के दो प्रकार बताये हैं- अन्तर्मुखी और बहिर्मुखी

अन्तर्मुखी व्यक्तित्व 

इस व्यक्तित्व के लक्षण, स्वभाव, आदतें, अभिवृत्तियाँ और अन्य चालक बाह्य रूप में प्रकट नहीं होते हैं। इसीलिए, इसको अन्तर्मुखी कहा जाता है। इसका विकास बाह्य रूप में न होकर आन्तरिक रूप में होता है।

अन्तर्मुखी मनुष्य अपने आप में अधिक रुचि रखते हैं। वे अपने कार्य बाह्य रूप में प्रभावपूर्ण ढंग से करने में असफल होते हैं। उनमें आन्तरिक विश्लेषण की मात्रा बहुत अधिक होती है। उनकी मानसिक शक्ति का विशेष रूप से विकास होता है। वे दूसरे लोगों और बाह्य वातावरण में एक विशेष प्रकार से ही अपना अनुकूलन कर पाते हैं। वे संकोची होने के कारण अपने विचारों को स्पष्ट रूप से व्यक्त करने में कठिनाई का अनुभव करते हैं। उनके और उनके साथियों के बीच में एक प्रकार की दीवार, एक तरह का पर्दा होता है। वे आवश्यकता से अधिक शर्मीले और झेंपने वाले होते हैं। उनमें अन्तःक्रियात्मक प्रक्रिया सदैव गतिशील अवस्था में विद्यमान रहती है। वे कल्पना के संसार में उड़ान लेते हैं और कभी-कभी आदर्शवादी भी बन जाते हैं। इस व्यक्तित्व के मनुष्य दार्शनिक और विचारक भी होते हैं।

बहिर्मुखी व्यक्तित्व 

इस व्यक्तित्व के मनुष्य अन्तर्मुखी व्यक्तित्व वाले मनुष्यों से विपरीत होते हैं। बहिर्मुखी व्यक्तित्व वाले मनुष्यों का झुकाव बाह्य तत्वों की ओर होता है। वे अपने विचारों और भावनाओं को स्पष्ट रूप से व्यक्त कर सकते हैं। वे संसार के भौतिक और सामाजिक लक्ष्यों में विशेष रुचि रखते हैं। यद्यपि उनका अपना आन्तरिक जीवन होता है, पर वे बाह्य पक्ष की ओर अधिक आकर्षित रहते हैं। वे बाह्य सामंजस्य के प्रति सदैव सचेत रहते हैं और कार्यों एवं कथनों में अधिक विश्वास रखते हैं। इस व्यक्तित्व के मनुष्य अधिकांश रूप में सामाजिक, राजनैतिक या व्यापारिक नेता होते हैं।

व्यक्तित्व के प्रकारों की समीक्षा

व्यक्तित्व के वर्गीकरण के सम्बन्ध में उपर्युक्त के अलावा और भी अनेक अन्य सिद्धान्त हैं। इन सभी प्रकार के वर्गीकरणों के विषय में अपना मत व्यक्त करते हुए क़ो व क़ो ने लिखा है - "इस प्रकार के वर्गीकरणों की एक सामान्य आलोचना यह है कि ये विकास के किसी-न-किसी पहलू पर बल देते हैं और सामान्य मानव स्वभाव की अपेक्षा उसके उग्र रूपों की व्याख्या करते हैं।"

व्यक्तित्व के विकास को प्रभावित करने वाले कारक

रैक्स व नाइट के शब्दों में - “मनोविज्ञान का सम्बन्ध व्यक्तित्व के विकास को प्रभावित करने वाले कारकों से भी है। इनमें से कुछ कारक शारीरिक रचना सम्बन्धी और जन्मजात एवं दूसरे पर्यावरण सम्बन्धी हैं।" 

हम व्यक्तित्व को प्रभावित करने वाले कारकों का क्रमबद्ध विवरण प्रस्तुत कर रहे हैं,

वंशानुक्रम का प्रभाव 

अनेक मनोवैज्ञानिकों ने अपने अध्ययनों के आधार पर सिद्ध कर दिया है कि व्यक्तित्व के विकास पर वंशानुक्रम का प्रभाव अनिवार्य रूप से पड़ता है। उदाहरणार्थ, फ्रांसिस गाल्टन ने प्रमाणित किया है कि वंशानुक्रम के कारण ही व्यक्तियों के शारीरिक और मानसिक लक्षणों में भिन्नता दिखाई देती है। इसी प्रकार, कैंडोल और कार्ल पियरसन ने सिद्ध किया है कि कुलीन एवं व्यवसायी कुलों में उत्पन्न होने वाले व्यक्ति ही साहित्य, विज्ञान और राजनीति के क्षेत्रों में यश प्राप्त करते हैं। सारांश में, हम स्किनर तथा हैरीमैन के शब्दों में कह सकते हैं - "मनुष्य का व्यक्तित्व स्वाभाविक विकास का परिणाम नहीं है। उसे अपने माता-पिता से कुछ निश्चित शारीरिक, मानसिक, संवेगात्मक और व्यावसायिक शक्तियाँ प्राप्त होती हैं। "

जैविक कारकों का प्रभाव 

मुख्य जैविक कारक हैं - नलिकाविहीन ग्रन्थियाँ, अन्तःस्रावी ग्रन्थियाँ और शारीरिक रसायन। इन कारकों का व्यक्तित्व के विकास पर जो प्रभाव पड़ता है, उनके विषय में गैरेट का मत है - “जैविक कारकों का प्रभाव सामाजिक कारकों के प्रभाव से अधिक सामान्य और कम विशिष्ट, पर किसी प्रकार कम महत्वपूर्ण नहीं है। जैविक कारक व्यक्तित्व के विकास की सीमा को निर्धारित करते हैं। "

शारीरिक रचना का प्रभाव 

शारीरिक रचना के अन्तर्गत शरीर के अंगों का पारस्परिक अनुपात, शरीर की लम्बाई और भार, नेत्रों और बालों का रंग, मुखाकृति आदि आते हैं। ये सभी किसी न किसी रूप में व्यक्तित्व के विकास को प्रभावित करते हैं। उदाहरणार्थ, बहुत छोटे पैरों वाला मनुष्य अच्छे दौड़ने वाले के रूप में कभी भी यश प्राप्ति नहीं कर सकता है। इसीलिए मैक्डूगल ने बलपूर्वक कहा है - "हमें उन विशिष्टताओं के अप्रत्यक्ष प्रभावों को निश्चित रूप में स्वीकार करना पड़ेगा, जो मुख्य रूप से शारीरिक हैं।"

दैहिक प्रवृत्तियों का प्रभाव 

जलोटा का मत है कि दैहिक प्रवृत्तियों के कारण शरीर के अन्दर रासायनिक परिवर्तन होते हैं, जिनके फलस्वरूप व्यक्ति महत्वाकांक्षी या आकांक्षाहीन, सक्रिय या निष्क्रिय बनता है। इन बातों का उसके व्यक्तित्व के विकास पर वांछनीय या अवांछनीय प्रभाव पड़ना स्वाभाविक है। वुडवर्थ का कथन है - "शरीर की दैहिक दशा, मस्तिष्क के कार्य पर प्रभाव डालने के कारण व्यक्ति के व्यवहार और व्यक्तित्व को प्रभावित करती है। " 

मानसिक योग्यता प्रभाव 

व्यक्ति में जितनी अधिक मानसिक योग्यता होती है, उतना ही अधिक वह अपने व्यवहार को समाज के आदर्शों और प्रतिमानों के अनुकूल बनाने में सफल होता है। परिणामतः उसके व्यक्तित्व का उतना ही अधिक विकास होता है। उसकी तुलना में अल्प मानसिक योग्यता वाले व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकास कहीं कम होता है।

विशिष्ट रुचि का प्रभाव 

मनुष्य के व्यक्तित्व का विकास उस सफलता के अनुपात में होता है, जो उसे किसी कार्य को करने से प्राप्त होती है। इस सफलता का मुख्य आधार है - उस कार्य में उसकी विशिष्ट रुचि। कला या संगीत में विशिष्ट रुचि लेने वाला व्यक्ति ही कलाकार या संगीतज्ञ के रूप में उच्चतम स्थान पर पहुँच सकता है। अतः स्किनर तथा हैरीमैन का मत है - "विशिष्ट रुचि की उपस्थिति को व्यक्तित्व के विकास के आधारभूत कारकों की किसी भी सूची में सम्मिलित किया जाना आवश्यक है।"

भौतिक वातावरण का प्रभाव 

भौतिक या प्राकृतिक वातावरण अलग-अलग देशों और प्रदेशों के निवासियों के व्यक्तित्व पर अलग-अलग तरह की छाप लगाता है। यही कारण है कि मरुस्थल में निवास करने वाले, अरब और हिमाच्छादित टुण्ड्रा प्रदेश में रहने वाले ऐस्किमो लोगों की आदतों, शारीरिक बनावटों, जीवन की विधियों, रंग और स्वास्थ्य आदि में स्पष्ट अन्तर मिलता है। थोर्प एवं शमलर ने लिखा है - "यद्यपि भौतिक संसारों के अन्तरों का, व्यक्तित्व पर पड़ने वाले प्रभावों का अभी तक बहुत कम अध्ययन किया गया है, पर भावी अनुसन्धान यह सिद्ध कर सकता है कि ये प्रभाव आधारहीन नहीं हैं।"

सामाजिक वातावरण का प्रभाव 

बालक जन्म के समय मानव पशु होता है। उसे न बोलना आता है और न कपड़े पहनना। उसका न कोई आदर्श होता है और न वह किसी का व्यवहार करना ही जानता है। पर सामाजिक वातावरण के सम्पर्क में रहकर उसमें धीरे-धीरे परिवर्तन होने लगता है। उसे अपनी भाषा, रहन सहन के ढंग, खाने-पीने की विधि, दूसरों के साथ व्यवहार करने के प्रतिमान, धार्मिक एवं नैतिक विचार आदि अनेक बातें समाज से प्राप्त होती हैं। इस प्रकार, समाज उसके व्यक्तित्व का निर्माण करता है। गैरेट के अनुसार - "जन्म के समय से ही बालक का व्यक्तित्व उस समाज के द्वारा, जिसमें वह रहता है, निर्मित और परिवर्तित किया जाता है।"

सांस्कृतिक वातावरण का प्रभाव 

समाज व्यक्ति का निर्माण करता है। संस्कृति उसके स्वरूप को निश्चित करती है। प्रत्येक संस्कृति की अपनी मान्यतायें रीति-रिवाज रहन-सहन की विधियाँ धर्म-कर्म आदि होते हैं। मनुष्य जिस संस्कृति में जन्म लेता है, जिसमें उसका लालन-पालन होता है, उसी के अनुरूप उसके व्यक्तित्व का स्वरूप निश्चित होता है। इस प्रकार, उसके व्यक्तित्व पर उसकी संस्कृति की अमिट छाप लग जाती है। बोरिंग, लैंगफील्ड एवं वील्ड के अनुसार - "जिस संस्कृति में व्यक्ति का लालन-पालन होता है, उसका उसके व्यक्तित्व के लक्षणों पर सबसे अधिक व्यापक प्रकार का प्रभाव पड़ता है।

परिवार का प्रभाव 

व्यक्तित्व के निर्माण का कार्य परिवार में आरम्भ होता है। यदि बालक को परिवार में प्रेम, सुरक्षा और स्वतन्त्रता का वातावरण मिलता है, तो उसमें साहस, स्वतन्त्रता और आत्म-निर्भरता आदि गुणों का विकास होता है। इसके विपरीत यदि उसके प्रति कठोरता का व्यवहार किया जाता है और उसे छोटी-छोटी बातों के लिए डाँटा और फटकारा जाता है तो वह कायर और असत्यभाषी बन जाता है। परिवार की उत्तम या निम्न आर्थिक और सामाजिक स्थिति का भी उसके व्यक्तित्व पर प्रभाव पड़ता है। इस प्रकार, जैसा कि थोर्प एवं शमलर ने लिखा है - “परिवार, बालक को ऐसे अनुभव प्रदान करता है, जो उसके व्यक्तित्व के विकास की दिशा को बहुत अधिक सीमा तक निश्चित करते हैं।" 

विद्यालय का प्रभाव 

व्यक्तित्व के विकास पर विद्यालय की सब बातों का प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है, जैसे- पाठ्यक्रम, अनुशासन, शिक्षक छात्र सम्बन्ध, छात्र-छात्र सम्बन्ध, खेलकूद आदि अनेक मनोवैज्ञानिकों की यह अटल धारणा है कि औपचारिक पाठ्यक्रम, कठोर अनुशासन, प्रेम और सहानुभूति, शिक्षक एवं छात्रों के पारस्परिक वैमनस्यपूर्ण सम्बन्ध व्यक्तित्व को निश्चित रूप से कुण्ठित और विकृत कर देते हैं। क्रो एवं क्रो के शब्दों में - “बालक के विकसित होने वाले व्यक्तित्व पर विद्यालय के अनुभवों का प्रभाव उससे कहीं अधिक पड़ता है, जितना कि कुछ शिक्षकों का विचार है। "

प्रभावित करने वाले अन्य कारक 

व्यक्तित्व के विकास को प्रभावित करने वाले कुछ अन्य कारक हैं 
(i) बालक का पड़ोस, समूह और परिवार की इकलौती सन्तान होना
(ii) बालक के शारीरिक एवं मानसिक दोष, संवेगात्मक असन्तुलन और माता की मृत्यु के कारण प्रेम का अभाव,
(iii) मेला, सिनेमा, धार्मिक स्थान, आराधना स्थल, जीवन की विशिष्ट परिस्थितियाँ और सामाजिक स्थिति एवं कार्य।

निष्कर्ष के रूप में, हम कह सकते हैं कि व्यक्तित्व के विकास पर अनेक कारकों का प्रभाव पड़ता है। इस प्रभाव के समग्र रूप का अध्ययन करके ही व्यक्तित्व के विकास की वास्तविक परिधियों का अनुमान लगाया जा सकता है। ऐसा करते समय इस तथ्य पर विशेष रूप से ध्यान रखना आवश्यक है कि व्यक्तित्व को प्रभावित करने वाले सबसे अधिक शक्तिशाली कारक पर्यावरण सम्बन्धी हैं। इस सम्बन्ध में थोर्प व शमलर के ये विचार उल्लेखनीय हैं - "भौतिक, सांस्कृतिक और सामाजिक वातावरण - ये सब व्यक्तित्व के निर्माण में इतना प्रभावशाली कार्य करते हैं कि व्यक्तित्व को उसे आवृत्त रखने वाली बातों से पृथक नहीं किया जा सकता है। "

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