सीखने की प्रक्रिया व विधियाँ | Process and Methods of Learning

प्रत्येक व्यक्ति नित्यप्रति अपने जीवन में नये-नये अनुभव एकत्र करता रहता है। ये नवीन अनुभव, व्यक्ति के व्यवहार में वृद्धि तथा संशोधन करते हैं।

सीखने की प्रक्रिया (PROCESS OF LEARNING)

प्रत्येक व्यक्ति नित्यप्रति अपने जीवन में नये-नये अनुभव एकत्र करता रहता है। ये नवीन अनुभव, व्यक्ति के व्यवहार में वृद्धि तथा संशोधन करते हैं। इसलिये ये अनुभव तथा इनका उपयोग ही सीखना या अधिगम करना कहलाता है।

PROCESS-AND-METHODS-OF-LEARNING
Process and Methods of Learning

मनोवैज्ञानिकों ने सीखने को मानसिक प्रक्रिया माना है। यह क्रिया जीवनभर निरन्तर चलती रहती है।

सीखने की प्रक्रिया की दो मुख्य विशेषताएँ हैं- निरन्तरता और सार्वभौमिकता । यह प्रक्रिया सदैव और सर्वत्र चलती रहती है। इसलिए, मानव अपने जन्म से मृत्यु तक कुछ-न-कुछ सीखता रहता है। उसकी सीखने की प्रक्रिया में विराम और अस्थिरता की अवस्था कभी नहीं आती है। हाँ, इतना अवश्य है कि उसकी गति कभी तीव्र और कभी मंद हो जाती है। इसके अतिरिक्त, मानव के सीखने का कोई निश्चित स्थान और समय नहीं होता है। वह हर घड़ी और हर जगह कुछ-न-कुछ सीख सकता है। 
वह न केवल शिक्षा-संस्था में, वरन् परिवार, समाज, संस्कृति, सिनेमा, सड़क, पड़ोसियों, संगी-साथियों, अपरिचित व्यक्तियों, वस्तुओं, स्थानों-सभी से थोड़ी या अधिक शिक्षा ग्रहण करता है। इस प्रकार, वह आजीवन सीखता हुआ और इसके फलस्वरूप अपने व्यवहार में परिवर्तन करता हुआ, जीवन में आगे बढ़ता चला जाता है। इसलिए, बुडवर्थ ने कहा है-"सीखना, विकास की प्रक्रिया है।"
"Learning is a process of development." -Woodworth

सीखने का अर्थ व परिभाषा

(MEANING AND DEFINITION OF LEARNING)
सीखना किसी स्थिति के प्रति सक्रिय प्रतिक्रिया है। हम अपने हाथ में आम लिये चले जा रहे है। कहीं से एक भूखे बन्दर की उस पर नजर पड़ती है। वह आम को हमारे हाथ से छीन कर ले जाता है। यह भूखे होने की स्थिति में आम के प्रति बन्दर की प्रतिक्रिया है। पर वह प्रतिक्रिया स्वाभाविक (Instinctive) है, सीखी हुई नहीं।

इसके विपरीत, बालक हमारे हाथ में आम देखता है। वह उसे छीनता नहीं है, वरन् हाथ फैलाकर माँगता है। आम के प्रति बालक की यह प्रतिक्रिया स्वाभाविक नहीं, सीखी हुई है। जन्म के कुछ समय बाद से ही उसे अपने वातावरण में कुछ-न-कुछ सीखने को मिल जाता है। पहली बार आग को देखकर वह उसे छू लेता है और जल जाता है। फलस्वरूप, उसे एक नया अनुभव होता है। अतः जब वह आग को फिर देखता है, तब वह आग से दूर रहता है। इस प्रकार, सीखना-अनुभव द्वारा व्यवहार में परिवर्तन है।

सीखने के अर्थ को और अधिक स्पष्ट करने के लिए कुछ परिभाषाएँ देखिये -

स्किनर: सीखना, व्यवहार में उत्तरोत्तर सामंजस्य की प्रक्रिया है।
Learning is a process of progressive behaviour adaptation. -Skinner

वुडवर्थ: नवीन ज्ञान और नवीन प्रतिक्रियाओं को प्राप्त करने की प्रक्रिया, सीखने की प्रक्रिया है।
The process of acquiring new knowledge and new responses is the process of learning. -Woodworth

क्रो व क्रो: सीखना-आदतों, ज्ञान और अभिवृत्तियों का अर्जन है।
Learning is the acquisition of habits, knowledge, and attitudes. -Crow and Crow

गेट्स व अन्य: सीखना, अनुभव और प्रशिक्षण द्वारा व्यवहार में परिवर्तन है।
Learning is the modification of behavior through experience and training. -Gates and Others

क्रानबेक: सीखना, अनुभव के परिणामस्वरूप व्यवहार में परिवर्तन द्वारा व्यक्त होता है।
Learning is shown by a change in behavior as a result of experience. -Cronback Educational Psychology.

मार्गन एवं गिलीलैण्ड: सीखना, अनुभव के परिणामस्वरूप प्राणी के व्यवहार में परिमार्जन है जो प्राणी द्वारा कुछ समय के लिये धारण किया जाता है।
Learning is some modification in the behavior of the organism as a result of experience which is retained for at least a certain period of time. -Morgan and Gilliland.

इन परिभाषाओं का विश्लेषण करके हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि सीखना, क्रिया द्वारा व्यवहार में परिवर्तन है, व्यवहार में हुआ यह परिवर्तन कुछ समय तक बना रहता है, यह परिवर्तन व्यक्ति के पूर्व अनुभवों पर आधारित होता है।

सीखने की विशेषताएँ

(CHARACTERISTICS OF LEARNING)
योकम एवं सिम्पसन (Yoakam and Simpson) के अनुसार-सीखने की सामान्य विशेषताएँ इस प्रकार हैं-

सीखना-सम्पूर्ण जीवन चलाता है

सीखने की प्रक्रिया आजीवन चलती है। व्यक्ति अपने जन्म के समय से मृत्यु तक कुछ-न-कुछ सीखता रहता है। 

सीखना-परिवर्तन है

व्यक्ति अपने और दूसरों के अनुभवों से सीखकर अपने व्यवहार, विचारों, इच्छाओं, भावनाओं आदि में परिवर्तन करता है। गिल्फोर्ड (Guilord, General Psychology. p. 343 ) के अनुसार "सीखना व्यवहार के परिणामस्वरूप व्यवहार में कोई परिवर्तन है।

सीखना-सार्वभौमिक है

सीखने का गुण केयल मनुष्य में ही नहीं पाया जाता है। वस्तुत: संसार के सभी जीवधारी पशु-पक्षी और कीड़े-मकोड़े भौ सौखते हैं।

सीखना-विकास है

व्यक्ति अपनी दैनिक क्रियाओं और अनुभवों के द्वारा कुछ-न-कुछ सीखता है। फलस्वरूप, उसका शारीरिक और मानसिक विकास होता है। सीखने की इस विशेषता को पेस्टालॉजी (Pestalozzi) ने वृक्ष और फ्रोबेल (Froebel) ने उपवन का उदाहरण देकर स्पष्ट किया है।

सीखना-अनुकूलन है

सीखना, वातावरण से अनुकूलन करने के लिए आवश्यक है। सीखकर ही व्यक्ति, नई परिस्थितियों से अपना अनुकूलन कर सकता है। जब वह अपने व्यवहार को इनके अनुकूल बना लेता है, तभी वह कुछ सीख पाता है। गेट्स एवं अन्य का मत है: सीखने का सम्बन्ध स्थिति के क्रमिक परिचय से है।

सीखना-नया कार्य करना है

वुडवर्थ के अनुसार-सीखना कोई नया कार्य करना है पर उसने उसमें एक शर्त लगा दी है। उसका कहना है कि सीखना, नया कार्य करना तभी है, जबकि यह कार्य फिर किया जाय और दूसरे कार्यों में प्रकट हो।

सीखना-अनुभवों का संगठन है

सीखना न तो नये अनुभव की प्राप्ति है और न पुराने अनुभवों का योग, वरन् नये और पुराने अनुभवों का संगठन है। जैसे-जैसे व्यक्ति नये अनुभवों द्वारा नई बातें सीखता जाता है, वैसे-वैसे वह अपनी आवश्यकताओं के अनुसार अपने अनुभवों को संगठित करता चला जाता है।

सीखना-उद्देश्यपूर्ण है

सीखना, उद्देश्यपूर्ण होता है। उद्देश्य जितना ही अधिक प्रबल होता है, सीखने की क्रिया उतनी ही अधिक तीव्र होती है। उद्देश्य के आभाव में सीखना असफल होता है। मर्सेल के अनुसार-"सीखने के लिए उत्तेजित और निर्देशित उद्देश्य की अति आवश्यकता है और ऐसे उद्देश्य के बिना सीखने में असफलता निश्चित है।"

सीखना-विवेकपूर्ण है

मर्सेल (Mursell) का कथन है कि सीखना, यांत्रिक कार्य के बजाय विवेकपूर्ण कार्य है। उसी बात को शीघ्रता और सरलता से सीखा जा सकता है, जिसमें बुद्धि या विवेक का प्रयोग किया जाता है। बिना सोचे-समझे किसी बात को सीखने में सफलता नहीं मिलती है। मर्सेल के शब्दों में: सीखने की असफलताओं का कारण समझने की असफलताएँ हैं।
Failures in learning are failure in understanding. -Mursell

सीखना-सक्रिय है

सक्रिय सीखना ही वास्तविक सीखना है। बालक तभी कुछ सीख सकता है, जब वह स्वयं सीखने की प्रक्रिया में भाग लेत है। यही कारण है कि डाल्टन प्लान, प्रोजेक्ट मेथड आदि शिक्षण की प्रगतिशील विधियाँ बालक की क्रियाशीलता पर बल देती हैं।

सीखना-व्यक्तिगत व सामाजिक, दोनों है

सीखना व्यक्तिगत कार्य तो है ही, पर इससे भी अधिक समाजिक कार्य है। योकम एवं सिम्पसन के अनुसार-सीखना सामाजिक है, क्योंकि किसी प्रकार के सामाजिक वातावरण के अभाव में व्यक्ति का सीखना असम्भव है।

सीखना-वातावरण की उपज है

सीखना रिक्तता में न होकर, सदैव उस वातावरण के प्रति प्रतिक्रिया के रूप में होता है, जिसमें  व्यक्ति रहता है। बालक का सम्बन्ध जैसे वातावरण से होता है, वैसी ही बातें वह सीखता यही कारण है कि आजकल इस बात पर बल दिया जाता है कि विद्यालय इतना उपयुक्त और प्रभावशाली वातावरण उपस्थित करे कि बालक अधिक-से-अधिक अच्छी बातों को सीख सके।

सीखना-खोज करना है

वास्तविक सीखना किसी बात की खोज करना है। इस प्रकार के सीखने में व्यक्ति विभिन्न प्रकार के प्रयास करके स्वयं एक परिणाम पर पहुँचता है। मर्सेल का कथन है: सीखना उस बात को खोजने और जानने का कार्य है, जिसे एक व्यक्ति खोजना और जानना चाहता है।
Learning is an affair of discovering and seeing the point that one wants to discover and see. -Mursell

सीखने को प्रभावित करने वाले कारक या दशाएँ 

(FACTORS OR CONDITIONS INFLUENCING LEARNING)
ऐसे अनेक कारक या दशाएँ हैं, जो सीखने की प्रक्रिया में सहायक या बाधक सिद्ध होते हैं। इनका उल्लेख करते हुए सिम्पसन ने लिखा है: अन्य दशाओं के साथ-साथ सीखने की कुछ दशाएँ हैं- उत्तम स्वास्थ्य, रहने की अच्छी आदतें, शारीरिक दोषों से मुक्ति, अध्ययन की अच्छी आदतें, संवेगात्मक सन्तुलन, मानसिक योग्यता, कार्य-सम्बन्धी परिपक्वता, वांछनीय दृष्टिकोण और रुचियाँ, उत्तम सामाजिक अनुकूलन, रूढ़िबद्धता और अन्धविश्वास से मुक्ति। हम इनमें से कुछ महत्वपूर्ण कारको पर प्रकाश डालेंगे-

विषय-सामग्री का स्वरूप 

(Nature of Subject-matter)
सीखने की क्रिया पर सीखी जाने वाली विषय-सामग्री का प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है। कठिन और अर्थहीन सामग्री की अपेक्षा सरल और अर्थपूर्ण सामग्री अधिक शीघ्रता और सरलता से सीख ली जाती है। इसी प्रकार, अनियोजित सामग्री की तुलना में सरल से कठिन की ओर (From Simple to Difficult) सिद्धान्त पर नियोजित सामग्री सीखने की क्रिया को सरलता प्रदान करती है।

बालकों का शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य 

(Physical and Mental Health of Children)
जो छात्र, शारीरिक और मानसिक दृष्टि से स्वस्थ होते हैं, वे सीखने में रुचि लेते हैं और शीघ्र सीखते हैं। इसके विपरीत, शारीरिक या मानसिक रोगों से पीड़ित छात्र सीखने में किसी प्रकार की रुचि नहीं लेते हैं। फलत: वे किसी बात को बहुत देर में और कम सीख पाते हैं।

परिपक्वता 

(Maturation)
शारीरिक और मानसिक परिपक्वता वाले छात्र नये पाठ को सीखने के लिए सदैव तत्पर और उत्सुक रहते हैं। अत: वे सीखने में किसी प्रकार की कठिनाई का अनुभव नहीं करते हैं। यदि छात्रों में शारीरिक और मानसिक परिपक्वता नहीं होती है, तो सीखने में उनके समय और शक्ति का नाश होता है। कोलेसनिक के अनुसार: परिपक्वता और सीखना पृथक् प्रक्रियाएँ नहीं हैं, वरन् एक-दूसरे से अविच्छिन्न रूप में सम्बद्ध और एक-दूसरे पर निर्भर है

सीखने का समय व थकान 

(Time of Learning and Fatigue)
सीखने का समय सीखने की क्रिया को प्रभावित करता है; उदाहरणार्थ, जब छात्र विद्यालय आते हैं, तब उनमें स्फूर्ति होती है। अत: उनको सीखने में सुगमता होती है। जैसे-जैसे शिक्षण के घण्टे बीतते जाते हैं, वैसे-वैसे उनकी स्फूर्ति में शिथिलता आती जाती है और वे थकान का अनुभव करने लगते हैं। परिणामत: उनकी सीखने की क्रिया मन्द हो जाती है। 

सीखने की इच्छा (Will to Learn) 

यदि छात्रों में किसी बात को सीखने की इच्छा होती है, तो वे प्रतिकूल परिस्थितियों में भी उसे सीख लेते हैं अत: अध्यापक का यह प्रमुख कर्तव्य है कि वह छात्रों की इच्छा शक्ति को दृढ़ बनाये। इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए उसे उनकी रुचि और जिज्ञासा को जाग्रत करना चाहिए।

प्रेरणा (Motivation)

सीखने की प्रक्रिया में प्रेरकों (Motives) का स्थान सबसे अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। प्रेरक, बालकों को नई बातें सीखने के लिए प्रोत्साहित करते है। अत: यदि अध्यापक चाहता है कि उसके छात्र नये पाठ को सीखें, तो वह प्रशंसा, प्रोत्साहन, प्रतिद्रन्द्रिता आदि विधियों का प्रयोग करके उनको प्रेरित करे। स्टीफेन्स के विचारानुसार-शिक्षक के पास जितने भी साधन उपलब्ध हैं, उनमें प्रेरणा सम्भवतः सर्वाधिक महत्वपूर्ण है।

अध्यापक व सीखने की प्रक्रिया 

(Teacher and Learning Process)
सीखने की प्रक्रिया में पथ-प्रदर्शक के रूप में शिक्षक का स्थान अति महत्वपूर्ण है। उसके कार्यों और विचारों, व्यवहार और व्यक्तित्व, ज्ञान और शिक्षण-विधि का छात्रों के सीखने पर प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है। इन बातों में शिक्षक का स्तर जितना ऊँचा होता है, सीखने की प्रक्रिया उतनी ही तीव्र और सरल होती है।

सीखने का उचित वातावरण 

(Favourable Learning Atmosphere)
सीखने की क्रिया पर न केवल कक्षा के अन्दर के, वरन् बाहर के वातावरण का भी प्रभाव पड़ता है। कक्षा के बाहर का वातावरण शान्त होना चाहिए। निरन्तर शोरगुल से छात्रों का ध्यान सीखने की क्रिया से हट जाता है। यदि कक्षा के अन्दर छात्रों को बैठने के लिए पर्याप्त स्थान नहीं है, और यदि उसमें वायु और प्रकाश की कमी है, तो छात्र थोड़ी ही देर में थकान का अनुभव करने लगते हैं। परिणामत: उनकी सीखने में रुचि समाप्त हो जाती है। कक्षा का मनोवैज्ञानिक वातावरण (Psychological Climate) भी सीखने की प्रक्रिया को प्रभावित करता है। यदि छत्रों में एक-दूसरे के प्रति सहयोग और सहानुभूति की भावना है, तो सीखने की प्रक्रिया को आगे बढ़ने में सहयोग मिलता है।

सीखने की विधि 

(Learning Method)
सीखने की विधि का सम्बन्ध छात्र और विषय, दोनों से है। यह विधि जितनी ही अधिक रुचिकर और उपयुक्त होती है, सीखना उतना ही अधिक सरल होता है। इसलिए प्रारम्भिक कक्षाओं में खेल (Play) और करके सीखना (Learning by Doing) विधियों का, और उच्च कक्षाओं में पूर्ण (Whole), सामूहिक (Collective) और 'सहसम्बन्ध' (Correlation) विधियों का प्रयोग किया जाता है।

सम्पूर्ण परिस्थिति 

(Total Situation)
बालक के सीखने को प्रभावित करने वाले तत्व उस पर पृथक् रूप के बजाय सामूहिक रूप से प्रभाव डालते हैं। अतः सीखने की सम्पूर्ण परिस्थिति का विद्यालय में होना आवश्यक है। विद्यालय की सम्पूर्ण परिस्थिति का बालक के बाह्य तथा समाज के सामान्य जीवन से घनिष्ठ सम्बन्ध होना चाहिए। रायबर्न के अनुसार: उस सम्पूर्ण परिस्थिति का, जिसमें बालक अपने को विद्यालय में पाता। जीवन से जितना ही अधिक सम्बन्ध होता है, उतना ही अधिक सफल और स्थायी उसका सीखना होता है।
The more the total situation in which the child finds himself when in school, is related to life, the more fruitful and, permanent his learning will be. -W. M. Ryburn

इन कारणों या दशाओं के वर्णन से यह स्पष्ट है कि सीखना तभी प्रभावशाली हो सकता है जबकि ये दशाएँ अनुकूल हों। अनुकूल होने की परिस्थितियों में सीखने की क्रिया सबल एवं प्रभावयुक्त हो जाती है।

सीखने की प्रभावशाली विधियाँ

(EFFECTIVE METHODS OF LEARNING)
किसी नई क्रिया या नये पाठ को सीखने के लिए विभिन्न विधियों प्रयोग किया जा सकता है। हम इनमें से केवल उन विधियों का वर्णन कर रहे हैं, जिनको मनोवैज्ञानिक प्रयोगों के आधार पर अधिक उपयोगी और प्रभावशाली पाया गया है । ये विधियाँ इस प्रकार हैं-

करके सीखना 

(Learning by Doing)
डॉ. मेस (Dr. Mace) का कथन है: स्मृति का स्थान मस्तिष्क में नहीं, वरन् शरीर के अवयवों में है यही कारण है कि हम करके सीखते हैं।
"The seat of the memory is not in the mind, but in the muscular system. We learn by doing. -Pryns Hopkins

बालक जिस कार्य को स्वयं करते हैं, उसे वे जल्दी सीखते हैं। कारण यह है कि उसे करने में वे उसके उद्देश्य का निर्माण करते हैं, उसको करने की योजना बनाते हैं और योजना को पूर्ण करते हैं। फिर, वे यह देखते हैं कि उनके प्रयास सफल हुए हैं या नहीं यदि नहीं, तो वे अपनी गलतियों को मालूम करके, उनमें सुधार करने का प्रयत्न करते हैं।

निरीक्षण करके सीखना 

(Learning by Observation)
योकम एवं सिम्पसन ने लिखा हैनिरीक्षण सूचना प्राप्त करने, आधार सामग्री (Data) एकत्र करने और वस्तुओं तथा घटनाओं के बारे में सही विचार प्राप्त करने का साधन है।
बालक जिस वस्तु का निरीक्षण करते हैं, उसके बारे में वे जल्दी और स्थायी रूप से सीखते हैं इसका कारण यह है कि निरीक्षण करते समय वे उस वस्तु को छूते हैं, या प्रयोग करते हैं, या उसके बारे में. बातचीत करते हैं। इस प्रकार, वे अपनी एक से अधिक इन्द्रियों का प्रयोग करते हैं फलस्वरूप, उनके स्मृति-पटल पर उस वस्तु का स्मरष्टन अंकित हो जाता है।

परीक्षण करके सीखना 

(Learning by Experimenting)
नई बातों की खोज करना, एक प्रकार का सीखना है। बालक इस खोज को परीक्षण द्वारा कर सकता है। परीक्षण के बाद वह किसी निष्कर्ष पर पहुँचता है। इस प्रकार, वह जिन बातो को सीखता है, वे उसके ज्ञान का अभिन्न अंग हो जाती हैं; उदाहरणार्थ, वह इस बात का परीक्षण कर सकता है कि गर्मी का ठोस और तरल पदार्थों पर क्या प्रभाव पड़ता है। वह इस बात को पुस्तक में पढ़कर भी सीख सकता है। पर यह सीखना उतना महत्वपूर्ण नहीं होता है, जितना कि स्वयं परीक्षण करके सीखना।

सामूहिक विधियों द्वारा सीखना 

(Learning by Group Methods)
सीखने का कार्य-व्यक्तिगत (Individual) और सामूहिक विधियों द्वारा होता है। इन दोनों में सामूहिक विधियों को अधिक उपयोगी और प्रभावशाली माना जाता है। इनके सम्बन्ध में कोलसनिक की धारणा इस प्रकार है: बालक को प्रेरणा प्रदान करने, उसे शैक्षिक लक्ष्य को प्राप्त करने में सहायता देने, उसके मानसिक स्वास्थ्य को उत्तम बनाने, उसके सामाजिक समायोजन को अनुप्राणित करने, उसके व्यवहार में सुधार करने और उसमें आत्मनिर्भरता तथा सहयोग की भावनाओं का विकास करने के लिए व्यक्तिगत विधयों की तुलना में सामूहिक विधियाँ कहीं अधिक प्रभावशाली हैं। मुख्य सामूहिक विधियाँ निम्नांकित है।

वाद-विवाद विधि 

(Discussion Method)
इस विधि में प्रत्येक छात्र को अपने विचार व्यक्त करने और प्रश्न पूछने का अवसर दिया जाता है। 

वर्कशॉप विधि 

(Workshop Method)
इस विधि में विभिन्न विषयों पर सभाओं का आयोजन किया जाता है और इन विषयों के हर पहलू का छात्रों द्वारा अध्ययन किया जाता है। 

सम्मेलन व विचार-गोष्ठी विधियाँ 

(Conference and Seminar Methods)
इन विधियों से किसी विशेष विषय पर छात्रों द्वारा विचार-विनिमय किया जाता है।

प्रोजेक्ट, डाल्टन व बेसिक विधियाँ 

(Project, Dalton and Basic Methods)
इन आधुनिक विधियों में व्यक्तिगत और सामूहिक - दोनों प्रकार के प्रेरकों का स्थान होता है। प्रत्येक छात्र अपनी व्यक्तिगत रुचि, ज्ञान और क्षमता के अनुसार स्वतंत्र रूप से कार्य करता है, जिससे उसका सीखने का कार्य सरल हो जाता है। इसके अतिरिक्त, सामूहिक रूप से कार्य करने के कारण उसमें स्पर्धा, सहयोग और सहानुभूति का विकास होता है।

मिश्रित विधि द्वारा सीखना 

(Learning by Mixed Method)
सीखने की दो महत्वपूर्ण विधियाँ हैं-पूर्ण विधि (Whole Method) और आंशिक विधि (Part Method)। पहली विधि में छात्रों को पहले पाठ्य-विषय का पूर्ण ज्ञान दिया जाता है और फिर उसके विभिन्न अंगों में सम्बन्ध स्थापित किया जाता है। दूसरी विधि में पाठ्य विषय को खण्डों में बाँट दिया जाता है। आधुनिक विचारधारा के अनुसार इन दोनों विधियों को मिलाकर सीखने के लिए मिश्रित विधि का प्रयोग किया जाता है।

सीखने की स्थिति का संगठन 

(Organization of Learning Process)
सीखने के कार्य को सरल और सफल बनाने के लिए सबसे अधिक आवश्यकता है-सीखने की स्थिति का संगठन। यह तभी सम्भव हो सकता है, जब विद्यालय का निर्माण इस प्रकार किया जाय कि उसमें सीखने की सभी क्रियाएँ उपलब्ध हों और सीखने की सभी विधियों का प्रयोग किया जाए।

सीखने की ये सभी विधियाँ व्यक्ति के मनोविज्ञान पर आधारित हैं। इन विधियों के प्रयोग से अधिगम तथा शिक्षण, दोनों ही प्रभावशाली हो जाते हैं।

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