थार्नडाइक के सीखने के नियम | Thorndikes Laws of Learning

सीखना, जीवनपर्यन्त चलने वाली क्रिया है। व्यवहार में कोई भी अपेक्षाकृत स्थायी परिवर्तन अधिगम है।

Learning goes on in accordance with certain laws. 

-Douglas and Holland

सीखना, जीवनपर्यन्त चलने वाली क्रिया है। व्यवहार में कोई भी अपेक्षाकृत स्थायी परिवर्तन अधिगम है। यह पहले सीखी गई क्रिया या अनुभव का परिणाम है। सीखने के जिन नियमों तथा सिद्धान्तों की रचना विद्वानों ने की है, हम यहाँ उनका वर्णन कर रहे हैं।

सीखने के नियमों का महत्व

(IMPORTANCE OF LAWS OF LEARNING) 
नियम, प्रकृति के अटल विधान हैं पशु, पक्षी, पौधे, पुरुष-सभी प्रकृति के नियमों के अनुसार जीवन व्यतीत करते हैं। इसी प्रकार, सीखने के भी कुछ नियम हैं। सीखने की प्रक्रिया इन्हीं नियमों के अनुसार चलती है। कुछ लेखकों ने इन नियमों को 'सिद्धान्तों' (Principles ) की संज्ञा दी है। जब भी हम कुछ सीखते हैं, तब हम इनमें से कुछ नियमों का अनिवार्य रूप से अनुसरण करते हैं। इनके महत्व का उल्लेख करते हुए रायबर्न ने लिखा है- यदि शिक्षण-विधियों में इन नियमों या सिद्धान्तों का अनुसरण किया जाता है, तो सीखने का कार्य अधिक सन्तोषजनक होता है।
If these laws or principles are followed in teaching methods, the learning will be more satisfactory. -Ryburn

थार्नडाइक के सीखने के नियम
(THORNDIKE'S LAWS OF LEARNING)

पिछले कई वर्षों से अमेरिका के मनोवैज्ञानिक, पशुओं पर परीक्षण करके सीखने के नियमों की खोज में लगे हुए हैं। उन्होंने सीखने के जो नियम प्रतिपादित किये हैं, उनमें सबसे अधिक मान्यता ई. एल. थार्नडाइक (E. L. Thormdike) के नियमों को दी जाती है। उसने सीखने के तीन मुख्य नियम और पाँच गौण नियम प्रतिपादित किये हैं। इसे हम चित्र के माध्यम से सीखेंगे-
THORNDIKE'S-LAWS-OF-LEARNING

मुख्य नियम (Primary Laws) 
तत्परता का नियम
अभ्यास का नियम (इस नियम के दो अंग हैं-उपयोग और अनुपयोग के नियम) 
प्रभाव या परिणाम का नियम।

गौण नियम (Secondary Laws)
बहुप्रतिक्रिया का नियम 
अभिवृत्ति या मनोवृत्ति का नियम 
आंशिक क्रिया का नियम
आत्मीकरण का नियम
सम्बन्धित परिवर्तन का नियम।

हम इन नियमों को क्रमबद्ध तरीके से पढेंगे-

मुख्य नियम (Primary Laws)

तत्परता का नियम (Law of Readiness)

इस नियम का अभिप्राय यह है कि यदि हम किसी कार्य को सीखने के लिए तैयार या तत्पर होते हैं, तो हम उसे शीघ्र ही सीख लेते है। तत्परता में कार्य करने की इच्छा निहित रहती है यदि बालक में गणित के प्रश्न करने की इच्छा है, तो वह उनको करता है, अन्यथा नहीं। इतना ही नहीं, तत्परता के कारण वह उनको अधिक शीघ्रता और कुशलता से करता है। तत्परता उसके ध्यान को कार्य पर केन्द्रित करने में सहायता देती है, जिसके फलस्वरूप वह उसे सम्पन्न करने में सफल होता है। भाटिया का कथन है- तत्परता या किसी कार्य के लिए तैयार होना, युद्ध को आधा विजय कर लेना है।

अभ्यास का नियम (Law of Use or Exercise)

इस नियम का तात्पर्य है- अभ्यास कुशल बनाता है (Practice makes perfect)। यदि हम किसी कार्य का अभ्यास करते रहते हैं, तो हम उसे सरलतापूर्वक करना सीख जाते हैं और उसमें कुशल हो जाते हैं। हम बिना अभ्यास किये साइकिल पर चढ़ने में या कोई खेल खेलने में कुशल नहीं हो सकते हैं। कोलेसनिक के अनुसार- अभ्यास का नियम किसी कार्य की पुनरावृत्ति, पुनर्विचार या अभ्यास के औचित्य को सिद्ध करता है।

अनभ्यास का नियम (Law of Disuse) 

इस नियम का अर्थ यह है कि यदि हम सीखे हुए कार्य का अभ्यास नहीं करते हैं, तो हम उसको भूल जाते हैं। अभ्यास के माध्यम से ही हम उसे स्मरण रख सकते हैं। डगलस एवं हॉलैण्ड (Douglas and Holland) का कथन है- जो कार्य बहुत समय तक किया या दोहराया नहीं जाता है, वह भूल जाता है। इसी को अनभ्यास का नियम कहते हैं।

परिणाम या सन्तोष का नियम (Law of Effect or Satisfaction)

इस नियम के अनुसार, हम उस कार्य को सीखना चाहते हैं जिसका परिणाम हमारे लिए हितकर होता है, या जिससे हमें सुख और सन्तोष मिलता है। यदि हमको किसी कार्य को करने या सीखने में कष्ट होता है, तो हम उसको करते या सीखते नहीं हैं। वाश्बुरने (Washburne, Crow and Crow) के अनुसार- जब सीखने का अर्थ किसी उद्देश्य या इच्छा को सन्तुष्ट करना होता है, तब सीखने में सन्तोष का महत्वपूर्ण स्थान होता है।

गौण नियम (Secondary Laws)

बहु-प्रतिक्रिया का नियम (Law of Multiple Response)

इस नियम का अभिप्राय यह है कि जब हम कोई नया कार्य करना सीखते हैं, तब हम उसके प्रति अनेक और विभिन्न प्रकार की प्रतिक्रियाएँ करते हैं। दूसरे शब्दों में, हम विविध प्रकार उपायों और विधियों का प्रयोग करके उस कार्य में सफलता प्राप्त करने का प्रयत्न करते हैं कुछ समय तक प्रयत्न करने के बाद हमें उस कार्य को करने की ठीक विधि या उपाय मालूम हो जाता है। 'प्रयत्न और भूल' द्वारा 'सीखने का सिद्धान्त' इसी नियम पर आधारित है।

मनोवृत्ति का नियम (Law of Disposition)

इस नियम का तात्पर्य यह है कि जिस कार्य के प्रति हमारी जैसी अभिवृत्ति या मनोवृत्ति होती है, उसी अनुपात में हम उसको सीखते हैं। यदि हम मानसिक रूप से किसी कार्य को करने के लिए तैयार नहीं हैं, तो या तो हम उसे करने में असफल होते हैं, या अनेक त्रुटियाँ करते हैं या बहुत विलम्ब से करते हैं । यही कारण है कि शिक्षक, प्रेरणा देकर नालकों को नवीन ज्ञान को ग्रहण करने के लिए मानसिक रूप से तैयार करते हैं।

आशिक क्रिया का नियम (Law of Partial Activity) 

इस नियम का अनुसरण करके, हम जिस कार्य को करना चाहते हैं, उसे छोटे-छोटे अंगों या भागों में विभाजित कर लेते हैं। इस प्रकार का विभाजन, कार्य को सरल और सुविधाजनक बना देता है। हम उन छोटे-छोटे अंगों को शीघ्रता और सुगमता से करके सम्पूर्ण कार्य को पूरा करते हैं। इस नियम पर' अंश से पूर्ण की ओर' का शिक्षण का सिद्धान्त आधारित किया जाता है। शिक्षक अपनी सम्पूर्ण  विषय-सामग्री को छोटे-छोटे खण्डों में विभाजित करके छात्रों के समक्ष प्रस्तुत करता है।

आत्मीकरण का नियम (Law of Assimilation) 

इस नियम का अभिप्राय यह है कि हम जो भी नया ज्ञान प्राप्त करते हैं, उसका आत्मीकरण कर लेते हैं या उसे आत्मसात का लेते हैं। दूसरे शब्दों में, हम नवीन ज्ञान को अपने पूर्व ज्ञान का स्थायी अंग बना लेते हैं। यही कारण है कि जब शिक्षक, बालक को कोई नई बात सिखाता है, तब उसका पहले सीखी हुई बात से सम्बन्ध स्थापित कर देता है।

सम्बन्धित परिवर्तन का नियम (Law of Associative Shifting)

इस नियम का अभिप्राय है-पहले कभी की गई क्रिया को उसी के समान दूसरी परिस्थिति में उसी प्रकार करना। इसमें क्रिया का स्वरूप तो वही रहता है, पर परिस्थिति में परिवर्तन हो जाता है। यदि मां का बच्चा मर जाता है, तो वह उसकी वस्तुओं को उसी प्रकार सीने से लगाती है, जिस प्रकार वह बच्चे को लगाती थी। प्रेमिका की अनुपस्थिति में प्रेमी उसके चित्र से उसी प्रकार बाते करता है, जिस प्रकार वह उससे करता था।

सीखने के अन्य महत्वपूर्ण नियम 
(OTHER IMPORTANT LAWS OF LEARNING)

उद्देश्य का नियम (Law of Purpose)

इस नियम का अर्थ यह है कि यदि कोई कार्य हमारे उद्देश्य को पूरा करता है, तो हम उसे शीघ्र ही सीख लेते हैं। रायब्न (Ryburn) का मत है- व्यक्ति का किसी कार्य को करने का उद्देश्य जितना अधिक प्रबल होता है, उतना ही अधिक उसमें उस कार्य को करने की तत्परता होती है।

परिपक्वता का नियम (Law of Maturation)

इस नियम का सार यह है कि हम किसी बात को तभी सीख सकते हैं, जब हममें उसे सीखने की शारीरिक और मानसिक परिपक्वता होती है। दस वर्ष के बालक को नक्षत्र- विज्ञान की शिक्षा देना व्यर्थ है वह इस विषय को अपनी उसी अवस्था में समझ सकता है जब उसकी शारीरिक और मानसिक शक्तियों का आवश्यक विकास हो जाय।

निकटता का नियम (Law of Recency)

इस नियम का तात्पर्य यह है कि जो कार्य, जितने निकट भूत में या कम समय पहले सीखा गया है, वह उतनी ही अधिक सरलता से फिर किया जा सकता है।

अभ्यास-वितरण का नियम (Law of Distribution of Practice)

यह नियम हमें बताता है कि किसी कार्य को लगातार सीखने के बजाय कुछ-कुछ समय के बाद थोड़ी-थोड़ी देर में सीखना अधिक अच्छा है। डगलस एवं हालैण्ड (Douglas and Holland) के शब्दों में हम कह सकते हैं यदि एक व्यक्ति किसी कार्य का एक दिन में 60 या 80 मिनट तक लगातार अभ्यास न करके, दिन तक रोज उसका 15 मिनट अभ्यास करे, तो वह उसे अधिक सीख सकता है।

बहु-अधिगम का नियम (Law of Multiple Learning) 

इस नियम का अर्थ स्पष्ट करते हुए रॉयबर्न (Ryburn) ने लिखा है-हम एक समय में केवल एक बात कभी नहीं सीखते हैं। हम सदैव बहुत-सी बातों को साथ-साथ सीखते हैं। विद्यालय में बालक न केवल पाठ में आने वाली बातों को सीखता है, वरन् शिक्षक के चरित्र से, छात्रों की संगति से और अपने वातावरण से भी बहुत-सी बातें सीखता है।

सीखने के सिद्धान्त
(THEORIES OF LEARNING)

हिलगार्ड (Hilgard) ने अपनी पुस्तक ध्योरीज ऑफ लर्निंग (Theories of Learning) में दस से भी अधिक सीखने के सिद्धान्तों का वर्णन किया है। इनके सम्बन्ध में यह निश्चय करना कठिन है कि कौन-सा सिद्धान्त ठीक और कौन-सा गलत है। फ्रेंडसन (Frandson) ने ठीक ही लिखा है- सिद्धान्त न तो ठीक होते हैं और न गलत। वे केवल कुछ विशेष कार्यों के लिए कम या अधिक लाभप्रद होते हैं।

इस कथन को ध्यान में रखकर हम सीखने के अधिक लाभप्रद पाँच सिद्धान्तों का वर्णन कर रहे हैं
1. थार्नडाइक का सीखने का सिद्धान्त (Thorndike's Theory of Learning)
2. सम्बद्ध प्रतिक्रिया सिद्धान्त (Conditioned Response Theory)
3. प्रबलन का सिद्धान्त (Reinforcement Theory)
4. स्किनर का सीखने का सिद्धान्त (Skinner's Theory of Learning) 
5. सूझ का सिद्धान्त (Insight Theory)

थार्नडाइक का सीखने का सिद्धान्त 

(THORNDIKE'S THEORY OF LEARNING)
ई. एल. थार्नडाइक ने 1913 में प्रकाशित होने वाली अपनी पुस्तक शिक्षा मनोविज्ञान (Educational Psychology) में सीखने का एक नवीन सिद्धान्त प्रतिपादित  किया। इस सिद्धान्त को विभिन्न नामों से पुकारा जाता है।
  • थार्नडाइक का सम्बन्धवाद (Thorndike's Connectionism) 
  • सम्बन्धवाद का सिद्धान्त (Connectionist Theory)
  • उद्दीपक-प्रतिक्रिया सिद्धान्त [Stimulus-Response (S-R) Theory]
  • सीखने का सम्बन्ध-सिद्धान्त (Bond Theory of Learning) 
  • प्रयत्न एवं भूल का सिद्धान्त (Trial and Error Learning)

सिद्धान्त का अर्थ- जब व्यक्ति कोई कार्य सीखता है, तब उसके सामने एक विशेष स्थिति या उद्दीपक (Stimulus) होता है, जो उसे एक विशेष प्रकार की प्रतिक्रिया ( Response) करने के लिए प्रेरित करता है। इस प्रकार, एक विशिष्ट उद्दीपक का एक विशिष्ट प्रतिक्रिया से सम्बन्ध स्थापित हो जाता है, जिसे उद्दीपक प्रतिक्रिया सम्बन्ध (S-R Bond) द्वारा व्यक्त किया जा सकता है। इस सम्बन्ध के फलस्वरूप, जब व्यक्ति भविष्य में उसी उद्दीपक का अनुभव करता है, तब वह उससे सम्बन्धित सी प्रकार की प्रतिक्रिया या व्यवहार करता है।

थार्नडाइक द्वारा सिद्धान्त की व्याख्या -थार्नडाइक ने अपने सिद्धान्त की व्याख्या करते हुए लिखा है-सीखना, सम्बन्ध स्थापित करना है। सम्बन्ध स्थापित करने का कार्य, मनुष्य का मस्तिष्क करता है।
Learning is connecting. The mind is man's connection system. -Thorndike 

थार्नडाइक की धारणा है- सीखने की प्रक्रिया में शारीरिक और मानसिक क्रियाओं का विभिन्न मात्राओं में सम्बन्ध होना आवश्यक है। यह सम्बन्ध विशिष्ट उद्दीपकों और विशिष्ट प्रतिक्रियाओं के कारण स्नायुमण्डल (Nervous System) में स्थापित होता है। इस सम्बन्ध की स्थापना, सीखने की आधारभूत शर्त है। यह सम्बन्ध अनेक प्रकार का हो सकता है। इस पर प्रकाश डालते हुए बिग एवं हंट (Bigge and Hunt) ने लिखा है-"मे प्रक्रिया में किसी मानसिक क्रिया का शारीरिक क्रिया से, शारीरिक क्रिया का की क्रिया से, मानसिक क्रिया का मानसिक क्रिया से या, शारीरिक क्रिया का शारीरिक क्रिया से सम्बन्ध होना आवश्यक है।"

थार्नडाइक का प्रयोग

थार्नडाइक ने अपने सीखने के सिद्धान्त की परीक्षा करने के लिए अनेक पशुओं और बिल्लियों पर प्रयोग किए । उसने अपने एक प्रयोग में एक भूखा बिल्ली को पिंजड़े में बंद कर दिया। पिंजड़े का दरवाजा एक खटके के दबने से खुलता था, उसके बाहर भोजन रख दिया। बिल्ली के लिए भोजन उद्दीपक था। उद्दीपक के कारण उसमें प्रतिक्रिया आरम्भ हुई। उसने अनेक प्रकार से बाहर निकलने का प्रयत्न किया। एक बार संयोग से उसका पंजा खटके पर पड़ गया। फलस्वरूप, वह दब गया और दरवाजा खुल गया। थार्नडाइक ने इस प्रयोग को अनेक बार दोहराया अन्त में, एक समय ऐसा आ गया, जब बिल्ली किसी प्रकार की भूल न करके खटके को दबाकर पिंजड़े का दरवाजा खोलने लगी। इस प्रकार उद्दीपक और प्रतिक्रिया में सम्बन्ध (S-R Bond) स्थापित हो गया। थार्नडाइक (Thorndike) ने सम्बन्धवाद के सिद्धान्त सीखने के क्षेत्र में प्रयास तथा त्रुटि (Trial and Eror) को विशेष महत्व दिया है। प्रयास एवं त्रुटि के सिद्धान्त की व्याख्या करते हुए कहा गया है कि जब हम किसी काम को करने में त्रुटि या भूल करते हैं और बार-बार प्रयास करके त्रुटियों की संख्या कम या समाप्त की जाती है तो यह स्थिति प्रयास एवं त्रुटि द्वारा सीखना कहलाती है। वुडवर्थ (Woodworth) ने लिखा है- प्रयास एवं त्रुटि में किसी कार्य को करने के लिये अनेक प्रयत्न करने पड़ते हैं जिनमें अधिकांश गलत होते हैं।

LAWS-AND-THEORIES-OF-LEARNING
थार्नडाइक का बिल्ली पर प्रयोग

प्रयास व त्रुटी के सिद्धान्त के प्रवर्तक थार्नडाइक ने एक भूखी बिल्लीं को पिंजड़े में बन्द करके यह प्रयोग किया भूखी बिल्ली पिंजड़े के बाहर रखा मछली का टुकड़ा प्राप्त करने हेतु, पिंजड़े से बाहर आने के अनेक त्रुटिपूर्ण प्रयास करती रही और अंतत: वह पिंजड़ा खोलना सीख गई।
बिल्ली के समान बालक भी चलना, जूते पहनना, चम्मच से खाना आदि क्रियाएँ सीखते है। वयस्क लोग भी ड्राइविंग, टैनिस, क्रिकेट आदि खेलना, टाई की गांठ बाँधना इसी सिद्धान्त के अनुसार सीखते हैं।

सिद्धान्त का शिक्षा में महत्व (Importance in Education)

शिक्षा में प्रयास व त्रुटि का सिद्धान्त अत्यन्त महत्वपूर्ण है। इस सिद्धान्त का महत्व इस प्रकार है-
  • बड़े तथा मन्द बुद्धि बालकों के लिए यह सिद्धान्त अत्यन्त उपयोगी है। 
  • इस सिद्धान्त से बालकों में धैर्य तथा परिश्रम के गुणों का विकास होता है।
  • बालकों में परिश्रम के प्रति आशा का संचार करता है। 
  • इस सिद्धान्त के कार्य की धारणाएँ (Concepts) स्पष्ट हो जाती है।
  • अनुभवों का लाभ उठाने की क्षमता का विकास होता है।
क्रो एवं क्रो (Crow and Crow) के अनुसार - गणित, विज्ञान तथा समाजशास्त्र जैसे गम्भीर चिन्तन वाले विषयों को सीखने में यह सिद्धान्त उपयोगी है।

गैरिसन व अन्य (Garrison and Others ) के अनुसार, इस सिद्धान्त का सीखने की प्रक्रिया में विशेष महत्व है। समस्या समाधान पर यह बल देता है। 

कोलसनिक (Kolesnik) के शब्दों में - लिखना, पढ़ना, गणित सिखाने में यह सिद्धान्त उपयोगी है। बीसवीं सदी में अमरीकी शिक्षा पर इसका गहरा प्रभाव पड़ा है।

सिद्धान्त के गुण व विशेषताएँ

सम्बन्धवाद या उद्दीपक प्रतिक्रिया सिद्धान्त की विशेषताएँ निम्नांकित हैं-
  • यह सिद्धान्त, उद्दीपक और प्रतिक्रिया के सम्बन्ध को सीखने का आधारभूत कारण मानता है। 
  • यह सिद्धान्त, शिक्षण में प्रेरणा को विशेष महत्व देता है। 
  • यह सिद्धान्त, इस बात पर बल देता है कि सीखना एक असम्बद्ध प्रक्रिया नहीं है, वरन् प्रत्यक्ष, गत्यात्मक, ज्ञानात्मक और भावात्मक अंगों का पुंज है।
  • इस सिद्धान्त के अनुसार, जो व्यक्ति उद्दीपकों और प्रतिक्रियाओं में जितने अधिक सम्बन्ध स्थापित कर लेता है, उतना ही अधिक बुद्धिमान वह हो जाता है।
  • इस सिद्धान्त के आधार पर थार्नडाइक ने सीखने के तीन मुख्य नियम प्रतिपादित किये-तत्परता का नियम, अभ्यास का नियम, प्रभाव या परिणाम का नियम।

सिद्धान्त के दोष

  • थार्नडाइक के इस सिद्धान्त में निम्नलिखित स्पष्ट दोष हैं
  • यह सिद्धान्त व्यर्थ के प्रयत्नों पर बल देता है, जिनके कारण सीखने में बहुत समय नष्ट होता है।
  • यह सिद्धान्त किसी क्रिया को सीखने की विधि को बताता है, पर उसे सीखने का कारण नहीं बताता है।
  • यह सिद्धान्त, सीखने की क्रिया को यांत्रिक बना देता है और मानव के विवेक, चिन्तन आदि गुणों की अवहेलना करता है।
  • जब एक कार्य को एक विशिष्ट विधि से एक ही बार में सीखा जा सकता है, तब उसका बार-बार प्रयास करके सीखना व्यर्थ है।

इस सिद्धान्त के सम्बन्ध में स्किनर (Skinner) ने लिखा है- लगभग आधी शताब्दी तक सम्बन्धवाद का विद्यालय के अभ्यास में प्रमुख स्थान था। पर अब इसे अन्य सिद्धान्तों की रोशनी में सुधारा जा रहा है।


परीक्षा-सम्बन्धी प्रश्न

1. थार्नडाइक के 'सीखने के नियम' बताइए और उदाहरण देकर उनको स्पष्ट कीजिए। 
Mention Thorndike's 'Laws of Learning' and explain them by giving examples.

2. थार्नडाइक के सीखने के प्रयोग का वर्णन कीजिए और बताइए कि इस परीक्षण में निष्कर्ष, शिक्षक के कार्य में किस प्रकार सहायता कर सकते हैं ? 
Describe Thorndike's experiment of learning and point out how the conclusions derived from this experiment can help the teacher in his work? 

3. थार्नडाइक के सम्बन्ध और हल के प्रबलन-सिद्धान्त का संक्षिप्त परिचय देते हुए बताइए कि आप इनमें से किसे उत्तम समझते हैं और क्यों ?
Give a brief introduction to Thorndike's Connectionism and Hul's Reinforcement Theory. Which of the two do you consider better and why?

4. थार्नडाइक के अधिगम के नियमों का वर्णन कीजिए। उसे अपने प्रयोगों में सूझ का कोई प्रमाण क्यों नहीं मिला ? थार्नडाइक के अधिगम के नियमों की शिक्षा में उपयोगिता बताइए ? 
Describe Thorndike's Laws of Learning. Why did he fail to find any evidence of insight in his experiments? Give educational implications of Thorndike's laws of learning.

5. स्किनर के क्रिया-प्रसूत अधिगम सिद्धान्त की व्याख्या कीजिये।।
Explain Operant Conditioning Theory of Learning of B. F. Skinner. 

6. सीखने के विभिन्न सिद्धान्तों को बताइये तथा थार्नडाइक के सीखने के सिद्धान्त का सविस्तार वर्णन कीजिये।
Discuss the various theories of learning and especially discuss the Theory of Thorndike.

7. पावलव के अनुक्रिया अनुबंधन सिद्धान्त का वर्णन करो। 
Discuss the C. S. Theory propounded by I. P. Pavlov.

8. स्किनर के अधिगम सिद्धान्त से तुम क्या समझते हो ? व्याख्या करो। 
What do you understand by the Theory of Learning of B, F. Skinner? Discuss.
इस Blog का उद्देश्य प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे प्रतियोगियों को अधिक से अधिक जानकारी एवं Notes उपलब्ध कराना है, यह जानकारी विभिन्न स्रोतों से एकत्रित किया गया है।