सीखने के वक्र व पठार | Cures of Learning and Plateaus

सीखने के वक्र को मोटे तौर पर तीन भागों या अवस्थाओं में बाँटा जा सकता है-प्रारम्भिक, मध्य और अन्तिम।

Cures-of-Learning

सीखने के वक्र का अर्थ व परिभाषा

(MEANING AND DEFINITION OF LEARNING CURVE)
हम अपने जीवन में अनेक नई बातें, नये कार्य व नये विषय सीखते हैं; जैसे-कार चलाना, अंग्रेजी पढ़ना, चित्र बनाना आदि। हमारी इन सबको सीखने की गति आरम्भ से अन्त तक एक-सी नहीं होती है। वह कभी तेज और कभी धीमी होती है। यदि हम अपनी सीखने की गति को ग्राफ पेपर पर अंकित करें, तो एक वक्रेखा बन जायेयेगी। इसी को 'सीखने का वक्र' (Learning Curve) कहते हैं। दूसरे शब्दों में, सीखने का वक्र-सीखने में होने वाली उन्नति या अवनति को व्यक्त करता है।

गेट्स व अन्य ने "सीखने के वक्र" की परिभाषा इस प्रकार की है : "सीखने के वक्र-अभ्यास द्वारा सीखने की मात्रा, गति और उन्नति की सीमा का ग्राफ पर प्रदर्शन करते हैं।"

"Curves of learning give graphic representations of the amount, rate and limit of improvement brought about by practice." -Gates and Others

वक्र व सीखने की विशेषताएँ

(CURVES AND CHARACTERISTICS OF LEARNING)
मनुष्य के सीखने के सम्बन्ध में अनेक प्रयोग करके कुछ वक्र तैयार किए गए हैं। इनका अध्ययन करने से सीखने की क्रिया की निम्नांकित विशेषताएँ ज्ञात हुई हैं-

सीखने में उन्नति 

(Improvement in Learning)
सीखने के वक्र को मोटे तौर पर तीन भागों या अवस्थाओं में बाँटा जा सकता है-प्रारम्भिक, मध्य और अन्तिम। इन तीनों अवस्थाओं में सीखने की उन्नति के विषय में स्टर्ट एवं ओकडन (Sturt and Oakden) ने लिखा है-"उन्नति की गति समान नहीं होती है। अन्तिम अवस्था की तुलना में प्रारम्भिक अवस्था में उन्नति की गति बहुत अधिक होती है।"

प्रारम्भिक अवस्था 

(Initial Stage)
आरम्भ में सीखने की गति साधारणतया तेज (Initial spurt) होती है, पर यह आवश्यक नहीं है। गेट्स तथा अन्य (Gates and Others) का मत है-"सीखने की प्रारम्भिक गति बहुधा तीव्र होती है, पर इसको किसी दशा में सीखने की सार्वभौमिक विशेषता नहीं कहा जा सकता है।"

मध्य अवस्था 

(Middle Stage)
जैसे-जैसे व्यक्ति, कार्य का अभ्यास करता जाता है, वैसे-वैसे वह सीखने में उन्नति करता जाता है, पर उसकी उन्नति का रूप स्थायी नहीं होता है। कभी वह उन्नति करता हुआ जान पड़ता है और कभी अवनति। स्किनर (Skinner) ने लिखा है-"सीखने में प्रतिदिन चढ़ाव-उतार आता है, पर सीखने वाले की सामान्य प्रगति एक निश्चित दिशा में होती रहती है।"

इस अवस्था में सीखने की क्रिया में अवनति होने के कारण हैं-सिर-दर्द, लापरवाही, रात्रि-जागरण, शक्ति का अभाव, ध्यान का विचलन और आवश्यकता से अधिक विश्वास।

अन्तिम अवस्था 

(Last Stage)
जैसे-जैसे सीखने की अन्तिम अवस्था आती जाती है वैसे-वैसे सीखने की गति धीमी होती जाती है। अन्त में एक अवस्था ऐसी आती है जब व्यक्ति सीखने की सीमा पर पहुँच जाता है। इस सीमा के सम्बन्ध में गेट्स तथा अन्य (Gates and Others) ने लिखा  है-"सिद्धान्त रूप में तो सीखने में उन्नति की पूर्ण सीमा सम्भव है, पर व्यवहार में वह शायद कभी भी प्राप्त नहीं होती है।"

सीखने की गति अनेक बातों पर निर्भर रहती है, जैसे-सीखने वाले की रुचि, प्रेरणा, जिज्ञासा, उत्साह, कार्य का पूर्व ज्ञान, कार्य की सरलता या जटिलता। कुछ कार्यों में सीखने की प्रारम्भिक गति अनिवार्य रूप से धीमी और कुछ में तेज होती है; उदाहरणार्थ, बालक की पढ़ना सीखने और वयस्क की कठिन विदेशी भाषा सीखने की गति धीमी होती है। इसके विपरीत, नृत्य में सीखने की प्रारम्भिक गति तीव्र होती है, क्योंकि सीखने वाले को शरीर का सन्तुलन करना आता है। इसी प्रकार जो बालक अंकगणित सीख चुके हैं, उनकी बीजगणित सीखने की गति तीव्र होती है।

सीखने में पठार

(PLATEAUS IN LEARNING)

पठार का अर्थ

जब हम कोई नई बात सीखते हैं तब हम सीखने में लगातार उन्नति नहीं करते हैं। हमारी उन्नति कभी कम और कभी अधिक होती है। कुछ समय के बाद ऐसा अवसर भी आता है, जब हमारी उन्नति बिल्कुल रुक जाती है। सीखने में इस प्रकार की जो अवस्था आती है, उसी को सीखने में पठार' (Plateau in Learning) कहते हैं। दूसरे शब्दों में, सीखने के वक्र में एक ऐसी अवस्था रहती है, जब वक्र रेखा नीचे या ऊपर जाने के बजाय सीधी चलने लगती है। ग्राफ पेपर पर इस एक से या सपाट स्थान को सीखने में पठार' कहते हैं।

पठार की परिभाषा

रॉस ने पठारों की परिभाषा इन शब्दों में की है-"सीखने की प्रक्रिया की एक प्रमुख विशेषता, पठार हैं। ये उस अवधि को व्यक्त करते हैं, जब सीखने की क्रिया में कोई उन्नति नहीं होती है।"

"Plateaus are a characteristics feature of the learning process indicating a period where no improvement in performance is made." -Ross

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सीखने के वक्र व पठार

पठार : कब, कितने व कब तक?

(PLATEAUS: WHEN, HOW MANY AND HOW LONG?)
सीखने में पठार कब या कितने समय के लिए आता है, इसके लिए कोई समय निश्चित नहीं है। एक व्यक्ति के सीखने में जल्दी और दूसरे के उसी कार्य को सीखने में देर हो सकती है। इसका कारण यह है कि पठार निश्चित अवस्थाओं के बाद आते हैं। इन अवस्थाओं पर पहुँचने का विभिन्न व्यक्तियों का समय विभिन्न होता है। ये अवस्थाएँ कब आती हैं, इसके विषय में रैक्स एवं नाइट (Rex and Knight) का मत है- "सीखने में पठार तब आते हैं, जब व्यक्ति सीखने की एक अवस्था पर पहुँच जाता है और दूसरी में प्रवेश करता है ।"

उक्त मत को हम टाइप सीखने वाले का उदाहरण देकर स्पष्ट कर सकते हैं। ऐसा व्यक्ति पहले अक्षरों को, फिर शब्दों या शब्द-समूहों को और अन्त में पूरी पंक्तियों को टाइप करना सीखता है। इनमें से पहली अवस्था पर पहुँचने के बाद वह दूसरी में और दूसरी के बाद तीसरी में प्रवेश करता है। अत: इन दोनों अवस्थाओं के बाद उसके सीखने में पठारों का आना अनिवार्य है। इस प्रकार, पठार सीखे जाने वाले कार्यों की अवस्थाओं के अनुपात में होते हैं।

पठार कब तक रहते हैं ? दूसरे शब्दों में, व्यक्ति की सीखने की क्रिया में कितने समय तक उन्नति नहीं होती है ? इसका उत्तर देते हुए सोरेन्सन (Sorenson) ने लिखा है-"सीखने की अवधि में पठार साधारणतया कुछ दिनों, कुछ सप्ताहों या कुछ महीनों तक रहते हैं।"

पठारों के कारण

(CAUSES OF PLATEAUS)

सीखने की अनुचित विधि 

(Wrong Method of Learning)
पठारों का पहला कारण-सीखने की अनुचित विधि है। उँगलियों की सहायता से गिनती गिनना, लिखने में कलम को कसकर पकड़ना, प्रत्येक शब्द को रुक कर पढ़ना-ये सभी विधियाँ अनुचित हैं और सीखने की प्रगति को रोककर पठार 3/5 है।

पुरानी आदतों का नई आदतों से संघर्ष 

(Conflict between Old and New Habits)
पठारों का दूसरा कारण-पुरानी आदतों का नई आदतों से संघर्ष है। जब टाइप करने वाला अक्षरों का अभ्यास करने के बाद शब्दों का अभ्यास आरम्भ करता है, तब उसकी टाइप करने की पुरानी आदतों और निर्माण की जाने वाली नई आदतों में संघर्ष आरम्भ हो जाता है। पुरानी आदतें शक्तिशाली होने के कारण नई आदतों के निर्माण में बाधा डालती है। फलस्वरूप, सीखने में पठार आ जाता है।

कार्य की जटिलता

(Complexity of Work)
पठारों का तीसरा कारण-े जाने वाले कार्य में आने वाली जटिलता है। बालक को जोड़ सीखने में कम; बाकी सीखना अधिक और गुणा सीखने में उससे भी अधिक कठिनाई होती है। अतः जब वह सरलता से कठिनाई या जटिलता की ओर बढ़ता है, तब उसके सीखने के कार्य में शिथिलता आ जाती है और पठार बन जाता है।

जटिल कार्य के केवल एक पक्ष पर ध्यान 

(Exphasis on One Aspect of Complex Work)
पठारों का चौथा कारण - किसी जटिल कार्य के केवल एक पक्षा ध्यान देना है। यदि कोई व्यक्ति, वायलिन बजाना सीखते समय अपना सम्पूर्ण ध्यान कमान को चलाने पर केन्द्रित रखता है, और उँगलियों को चलाने, वायलिन को ठीक से पकड़ने, एवं ताल ठीक करने की ओर ध्यान नहीं देता है, तो कुछ समय के बाद उसकी सीखने की प्रगति रुक जाती है और पठार बन जाता है। स्टीफन्स (Stephens) के शब्दों में-"यदि किसी जटिल कार्य के केवल एक पक्ष पर ध्यान दिया जाता है और दूसरे पक्षों की उपेक्षा की जाती है, तो पठार बन जाता है।"

शारीरिक सीमा

पठारों का पाँचवाँ कारण- शारीरिक सीमा है । इस पर प्रकाश डालते हुए रेबर्न (Reyburn) ने लिखा है- "प्रत्येक कार्य के लिए प्रत्येक व्यक्ति में अधिकतम कुशलता होती है, जिससे आगे वह नहीं बढ़ सकता है। इसको शारीरिक सीमा कहते हैं, जब व्यक्ति इस सीमा पर पहुँच जाता है, तब उसके सीखने में पठार बन जाता है।"

अन्य कारण

पठारों के अन्य कारण हैं-
  1. परिपक्वता का अभाव,
  2. सीखने की विधि में निरन्तर परिवर्तन,
  3. कार्य के किसी महत्वपूर्ण भाग को सीखने में विफलता,
  4. रुचि, ज्ञान, समय, प्रेरणा, जिज्ञासा और उद्देश्य का अभाव, थकान, निराशा, उदासीनता, अस्वस्थता, उत्साहहीनता, दूषित वातावरण और पारिवारिक कठिनाइयाँ।

पठार का निराकरण

(ELIMINATION OF PLATEAUS)
पठार, सीखने वाले की उन्नति में बाधा डालते हैं और उसके समय को नष्ट करते हैं। अतः कुछ लोगों का विचार है कि पठारों को समाप्त कर देना चाहिए। पर सोरेन्सन (Sorenson) का कथन है-"शायद ऐसी कोई भी विधि नहीं है, जिससे पठारों को बिल्कुल समाप्त कर दिया जाये, पर उनकी संख्या और अवधि को कम किया जा सकता है।" ऐसा करने के लिए कुछ व्यावहारिक सुझाव निम्नलिखित हैं-
  • कार्य सीखने वाले को प्रेरणा।
  • कार्य को सीखने की उचित विधि।
  • कार्य को कुछ समय तक सीखने के बाद विश्राम।
  • सीखे जाने वाले कार्य की उचित वातावरण में व्यवस्था।
सीखने की क्रिया में पठार का अध्ययन एवं जानकारी का विशेष महत्व है। पठारों की जानकारी से यह पता चल जाता है कि सीखने की दिशा में बालक की क्या प्रगति है ? इस प्रगति की जानकारी के आधार पर शिक्षक, शिक्षण की क्रिया का पुनर्गठन करता है। त्रुटियों को दूर कर सीखने को प्रभावशाली बनाता है।

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इस Blog का उद्देश्य प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे प्रतियोगियों को अधिक से अधिक जानकारी एवं Notes उपलब्ध कराना है, यह जानकारी विभिन्न स्रोतों से एकत्रित किया गया है।