शिक्षा में मापन एवं मूल्यांकन का अर्थ परिभाषा महत्व | Measurement and Evaluation in Education

शिक्षा सतत् सोद्देश्य व गत्यात्मक प्रक्रिया है। शिक्षा का उद्देश्य बालक का सर्वांणीण विकास करना है।
Measurement-and-Evaluation-in-Education
Measurement and Evaluation in Education

शिक्षा सतत् सोद्देश्य व गत्यात्मक प्रक्रिया है। शिक्षा का उद्देश्य बालक का सर्वांणीण विकास करना है। बालक की जन्मजात शक्तियों, व्यक्तित्व सम्बन्धी विशेषताओं, शैक्षिक उद्देश्यों, विद्यालय व्यवस्था, पाठ्यक्रम, शिक्षण विधियों, अध्ययन शैली, परीक्षा प्रणाली आदि से सम्बन्धित तथ्यों की जानकारी प्राप्त करना, सम्बन्धित समस्याओं पर उचित निर्णय लेने व अनुसंधान के लिए मापन व मूल्यांकन का प्रयोग करना आवश्यक है।

शिक्षा में मापन एवं मूल्यांकन 

(Measurement And Evalution In Education)

मापन का अर्थ एवं परिभाषा

(Meaning and Definition of Measurement)
मापन एक निरपेक्ष शब्द है जिसकी व्याख्या सरल नहीं है। मापन प्रदत्तों का अंकों में वर्णन करता है। मापन द्वारा किसी वस्तु का शुद्ध एवं वस्तुनिष्ठ रूप में वर्णन किया जाता है। मापन का अर्थ है- किन्हीं निश्चित इकाइयों में वस्तु या गुण के परिमाण का पता लगाना।  मापन को परिभाषित करते हुए 
  • स्टीवेंस ने लिखा है, "मापन किन्हीं निश्चित स्वीकृत नियमों के अनुसार वस्तुओं को अंक प्रदान करने की प्रक्रिया है।" 
  • जी० सी० हेल्मस्टेडटर के शब्दों में - "मापन को एक प्रक्रिया के रूप में परिभाषित किया जाता है, जिसमें किसी व्यक्ति या पदार्थ में निहित विशेषताओं का आंकिक वर्णन होता है।"
  • कैम्पबेल के अनुसार, "नियमों के अनुसार वस्तुओं या घटनाओं को के अंकों या संख्याओं में व्यक्त करना मापन है।"
  • ब्रेडफील्ड व मोरोडोक के शब्दों में, मापन प्रक्रिया में किसी घटना अथवा तथ्य के विभिन्न आयामों के लिए प्रतीक निश्चित किये जाते हैं जिससे उस घटना की स्थिति का यथार्थ निर्धारण किया जा सके।
प्रस्तुत विवरण के आधार पर कहा जा सकता है कि :
1. मापन वस्तुओं की श्रेणी को प्रदर्शित करता है।
2. मापन संख्याओं की श्रेणी को प्रदर्शित करता है।
3. यह वस्तुओं को अंक प्रदान करने वाले नियमों को बतलाता है। 

मापन का प्रतीक : किसी घटना, वस्तु अथवा गुण का मापन हम किसी न किसी इकाई के रूप में व्यक्त करते हैं जैसे कोई वस्तु - ग्राम व किलोग्राम, दूरी- किलोमीटर, द्रव्य-लीटर व मिलीलीटर। इन इकाइयों को मापन प्रतीक कहते हैं।

मापन के आयाम ; किसी तथ्य के अनेक पक्षों-अवयव, गुण, दशायें व विस्तार को आयाम माना जाता है। विद्यार्थी के विभिन्न आयामों का मापन कर उन्हें प्रतीक, अंक या संख्या प्रदान करते हैं। जैसे किसी विद्यार्थी की आयु, लम्बाई, भार, स्कूल के विषयों का ज्ञान, बुद्धि-लब्धि आदि का मापन उसकी स्थिति की जानकारी प्राप्त करने के लिए करते हैं।

मापन के प्रकार

(Types of  Measurement) 
मापन को दो भागों में विभक्त किया जा सकता है :
  1. मानसिक मापन 
  2. भौतिक मापन।

1. मानसिक मापन

मानसिक मापन के अन्तर्गत विभिन्न मानसिक क्रियाओं जैसे बुद्धि, रुचि, अभियोग्यता, उपलब्धि आदि का मापन किया जाता है। इसकी प्रकृति सापेक्षिक होती है अर्थात् इसमें प्राप्तांकों को स्वयं में कोई अस्तित्व नहीं होता। उदाहरण के लिये किसी शिक्षक के कार्य का मापन श्रेष्ठ, मध्यम या निम्न रूप में किया जाता है, किन्तु कितना श्रेष्ठ, मध्यम या निम्न यह नहीं कहा जा सकता। 

मानसिक मापन में निम्नलिखित विशेषताएँ होती हैं :
  • मानसिक मापन में कोई वास्तविक शून्य बिन्दु नहीं होता।
  • मानसिक मापन की इकाइयाँ एकसमान नहीं होतीं। इसकी इकाइयाँ सापेक्ष मूल्य की होती हैं। जैसे 13 और 14 मानसिक आयु के बालकों में उतना अन्तर नहीं होता जितना 7 और 8 मानसिक आयु के बालकों में होता है यद्यपि निरपेक्ष अन्तर दोनों में एक ही वर्ष का है।
  • मानसिक मापन में किसी गुण का आंशिक मापन ही सम्भव हो पाता है।
  • मानसिक मापन आत्मनिष्ठ होता है और प्रायः मानकों के आधार पर तुलना की जाती है। 

2. भौतिक मापन

भौतिक मापन के अन्तर्गत विभिन्न भौतिक गुणों जैसे लम्बाई, दूरी, ऊँचाई आदि का मापन किया जाता है। इसकी प्रकृति निरपेक्ष होती है तथा इसके प्राप्तांक बहुत महत्वपूर्ण होते हैं। 

भौतिक मापन की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं :
  • भौतिक मापन में एक वास्तविक शून्य बिन्दु होता है जहाँ से कार्य प्रारम्भ करते हैं।  
  • भौतिक मापन की सभी इकाइयाँ समान अनुपात में होती हैं जैसे एक फुट के सभी इंच समान दूरी पर स्थित होते हैं। भौतिक मापन में किसी वस्तु या गुण का पूर्ण मापन सम्भव है, जैसे सम्पूर्ण पृथ्वी के क्षेत्रफल की गणना कर सकते हैं। 
  • भौतिक मापन स्थिर रहता है, जैसे यदि किसी मेज की लम्बाई 4 फुट है, तो दो साल बीत जाने पर भी लम्बाई उतनी ही रहेगी।

मापन के स्तर अथवा मापनियाँ

(Levels Or Scales of Measurement)
एस० एस० स्टीवेन्स ने अपनी पुस्तक 'On the Theory of Scales of Measuremet' में मापन के चार स्तर बताए हैं जिन्हें निम्न से उच्च के क्रम में वर्गीकृत किया गया है। निम्नतम स्तर का मापन सरल होता है, लेकिन उसमें परिशुद्धता कम होती है, उच्चतर स्तर के मापन में जटिलता होती है, किन्तु इसके निष्कर्ष अधिक शुद्ध होते हैं। मापन के चारों स्तर निम्नलिखित हैं:
  1. नामित स्तर या मापनी (Nominal Level or Scale)
  2. क्रमिक स्तर या मापनी (Ordinal Level or Scale) 
  3. अन्तराल स्तर या मापनी (Interval Level or Scale)
  4. अनुपात स्तर या मापनी (Ratio Level or Scale)

नामित स्तर या मापनी (Nominal Level or Scale)

गिलफर्ड ने लिखा है, "नामित स्केल के मापन में हम मात्र कक्षा या समूह की संख्या का प्रयोग करते हैं।" इसीलिये इसे शाब्दिक या वर्गीकरण मापनी भी कहा जाता है। इसमें व्यक्तियों या वस्तुओं को किसी विशेषता के आधार पर कुछ समूहों में विभाजित कर दिया जाता है और प्रत्येक समूह को एक नाम, संख्या या चिन्ह दे दिया जाता है। एक समूह में सम्मिलित सभी व्यक्ति एकसमान तथा दूसरे समूह से भिन्न होते हैं। शिक्षा और मनोविज्ञान में इनका प्रयोग कम ही किया जाता है।

क्रमिक स्तर या मापनी (Ordinal Level or Scale) 

इस प्रकार की नापनी में व्यक्तियों को किसी गुण की मात्रा के आधार पर निम्नतम से उच्चतम के क्रम में व्यवस्थित किया जाता है तथा इस आधार पर निर्मित प्रत्येक वर्ग को एक नाम या चिन्ह प्रदान किया जाता है; जैसे परीक्षा में प्राप्तांकों के आधार पर छात्रों को प्रथम, द्वितीय, तृतीय और अनुत्तीर्ण श्रेणी में विभाजित करना। इसमें प्रत्येक पहले वर्ग के छात्र दूसरे वर्ग के छात्रों से श्रेष्ठ होते हैं तथा इन वर्गों को इस आधार पर एक क्रम में व्यवस्थित किया जाता है। 

क्रमिक मापनी में भी प्रत्येक समूह में सम्मिलित सभी व्यक्तियों की केवल गणना (गिनती) ही सम्भव होती है, अन्य कोई गणितीय संक्रिया जैसे गुणा, भाग आदि सम्भव नहीं होती। इन क्रम सूचक अंकों से मध्यांक शतांशीय मान की गणना सम्भव होती है।

अन्तराल स्तर या मापनी (Interval Level or Scale)

इसमें व्यक्तियों या वर्गों के मध्य की दूरी को अंकों के माध्यम से ज्ञात किया जाता है। प्रत्येक अंक की दूरी या अन्तर समान होता है। सम दूरी पर व्यवस्थित अंक इस मापनी की स्थिर इकाई हैं। इसमें कोई वास्तविक शून्य बिन्दु नहीं होता। अतः इस मापनी द्वारा सापेक्ष मापन सम्भव होता है, निरपेक्ष मापन सम्भव नहीं होता। इस स्तर के मापन का सबसे उत्तम उदाहरण थर्मामीटर है। इसमें 94° से 108° तक अंकित होते हैं। 

98° से 99% तक जितनी दूरी है, उतनी ही दूरी 107° से 108° के मध्य पाई जाती है, क्योंकि अन्तराल मापनी में प्रत्येक इकाई समान दूरी पर स्थित होती है। अब थर्मामीटर से ज्वर मापने पर यदि पारा 95° पर रहता है, तो यह माना जाता है कि शरीर में ज्वर की मात्रा शून्य है, किन्तु इसका यह अर्थ नहीं कि शरीर में तापक्रम का सर्वथा अभाव है। इस प्रकार की मापनी में मध्यमान, मानक विचलन, सह-सम्बन्ध गुणांक आदि सांख्यिकीय गणनाओं का प्रयोग किया जाता है। शिक्षाशास्त्र, समाजशास्त्र तथा मनोविज्ञान में प्रायः अन्तराल मापनी का प्रयोग किया जाता है।

अनुपात स्तर या मापनी (Ratio Level or Scale)

अनुपात मापनी सर्वाधिक वैज्ञानिक और विश्वसनीय मानी जाती है। इसमें अन्तराल मापनी की सभी विशेषताओं के साथ-साथ एक वास्तविक शून्य बिन्दु भी होता है जिसका आशय उस गुण या विशेषता की शून्य मात्रा से है। जैसे-लम्बाई, भार या दूरी के मापन में शून्य बिन्दु से ही प्रारम्भ किया जाता है। इस वास्तविक शून्य बिन्दु को मापनी का प्रारम्भिक बिन्दु माना जाता है। इस आधार पर विभिन्न दूरी के स्थानों में अनुपात का पता लगा लेते हैं, और निश्चित रूप से कह सकते हैं कि 'अ' स्थान 'ब' स्थान से आधी, दोगुनी या चार गुनी दूरी पर स्थित है। इसमें सभी गणितीय संक्रियाएँ जैसे जोड़, घटाना, गुणा, भाग आदि का प्रयोग किया जाता है।

मापन के चारों स्तर या मापनी का तुलनात्मक अध्ययन अग्रलिखित तालिका में दिया गया है :

मापन का स्तर या मापनी
(Level or Scale of Measurement)
समान इकाइयाँ
(Equal Intervals)
वास्तविक शून्य बिन्दु
(Absolute Zero Point)
सांख्यिकीय गणना
(Statistical Operations)
प्रकृति (Nature)उदाहरण (Example)
1. नामित (Nominal)नहींनहींगणना या बारम्बारता (Frequency)किसी गुण पर समानता के आधार पर व्यक्तियों को समूहों में बाँटनालिंग भेद के आधार पर बच्चों को लड़कों और लड़कियों के समूह में बाँटना
2. क्रमिक (Ordinal)नहींनहींमध्यांक (Median), शतां शीय मान (Percentiles), कोटिक्रम (Rank-order), सह-सम्बन्ध (Correlation)गुण की मात्रा के आधार पर निम्न से उच्च के क्रम में समूह में व्यक्तियों का वर्गीकरणपरीक्षण के अंकों के आधार पर छात्रों को श्रेणी प्रदान करना जैसे - प्रथम, द्वितीय, तृतीय श्रेणी आदि।
3. अन्तराल (Interval)हाँनहींमध्यमान (Mean), मानक विचलन (Standard Dev iation), सह-सम्बन्ध (Product Moment Correlation)किसी गुण की मात्रा के आधार पर समान अन्तराल का निर्धारणतापक्रम, शैक्षिक उपलब्धि, प्राप्तांक, बुद्धिलब्धि अंक
4. अनुपात (Ratio)हाँहाँ+, -, x, ÷ के आधार पर विभिन्न प्रकार की सांख्यिकीय गणनाएँसमान अनुपात द्वारा इस प्रकार अंक प्रदान करना कि शून्य से अभिप्राय उस गुण की पूर्ण अनुपस्थितिलम्बाई, भार, दूरी, ऊँचाई आदि भौतिक चरों का मापन

मापन के आवश्यक तत्व

(Essential Elements of Measurements) 
किसी भी शीलगुण के मापन के लिये निम्नांकित चरणों का प्रयोग किया जाता है :

1. गुण को पहचानना एवं परिभाषित करना

किसी भी प्रकार का मापन करने के लिये सर्वप्रथम उसके गुण को पहचान कर उसकी व्याख्या की जाती है। प्रायः भौतिक गुणों जैसे लम्बाई, भार आदि की व्याख्या की आवश्यकता नहीं होती, क्योंकि सभी व्यक्ति उनके अभिप्राय को समान रूप से समझते हैं, किन्तु शैक्षिक और मनोवैज्ञानिक गुणों की व्याख्या आवश्यक होती है, क्योंकि भिन्न-भिन्न व्यक्ति इन गुणों के भिन्न-भिन्न अर्थ लगा सकते हैं। उदाहरण के लिये बुद्धि का मापन करने के पूर्व यह निश्चित करना आवश्यक है कि बुद्धि से हमारा क्या अर्थ है, अर्थात् बुद्धि अमूर्त चिंतन की योग्यता है या नवीन परिस्थितियों के साथ समायोजन की योग्यता है। अर्थात् मनोवैज्ञानिक को उस गुण की स्पष्ट एवं संगत परिभाषा देनी होगी जिसका वह मापन करना चाहता है।

2. गुण को अभिव्यक्त करने वाले संक्रिया विन्यासों को निश्चित करना

जाने वाले गुण को परिभाषित करते समय उसमें प्रयुक्त होने वाली संक्रियाओं का भी वर्णन किया जाता है, क्योंकि किसी गुण की परिभाषा एवं उसमें प्रयुक्त होने वाली संक्रिया के मध्य अन्तः क्रियात्मक सम्बन्ध होता है। उदाहरण के लिये यदि हम बुद्धि को अमूर्त चिंतन की योग्यता के रूप में परिभाषित करते हैं तो हमें बुद्धि का शाब्दिक परीक्षण, जिसमें अमूर्त चिंतन से सम्बन्धित समस्याएँ हों, प्रयोग करना होगा। इस प्रकार किसी गुण की परिभाषा करते समय उसमें प्रयुक्त होने वाली संक्रियाओं का वर्णन किया जाता है तथा संक्रिया में प्रयोग से पूर्व उस गुण की क्रियात्मक परिभाषा दी जाती है।

3. गुणों को मात्रात्मक रूप में व्यक्त करना

मापन के इस चरण में प्रयुक्त संक्रियाओं के निष्कर्षों को मात्रात्मक रूप से व्यक्त किया जाता है। जिसके आधार पर यह ज्ञात होता है कि अमुक गुण इतनी मात्रा में है। प्रायः भौतिक मापन जैसे मेज की लम्बाई को इंच में व्यक्त किया जा सकता है और इस आधार पर दूसरी मेज के साथ उसकी तुलना की जा सकती है, लेकिन मानसिक मापन में प्रायः इस प्रकार की तुलना सम्भव नहीं होती, क्योंकि मानसिक मापन में ऐसी इकाइयाँ नहीं होतीं जिनकी समानता को प्रत्यक्ष रूप से व्यक्त किया जा सके।

मूल्यांकन (Evalution)

जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में मूल्यांकन का महत्त्व है। हम जाने-अनजाने अथवा चेतन व अचेतन रूप से अनेक तथ्यों को अर्जित करते हैं और जीवन में उनका उपयोग करते हैं। हम जो बातें सीखते हैं वह हमारे व्यवहार में परिवर्तन लाती हैं। यह परिवर्तन हमारे लक्ष्यों को पूरा कर रहे हैं या नहीं इसकी जानकारी हमें मूल्यांकन द्वारा प्राप्त होती है। मूल्यांकन एक सदैव चलने वाली विस्तृत प्रक्रिया है जिसके अन्तर्गत किसी मापन की उपयोगिता के सम्बन्ध में निर्णय लिया जाता है। मूल्यांकन को इस प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है : 

मूल्यांकन = मूल्य + अंकन

व्यक्ति अथवा वस्तु के मूल्य को आंकना व परखना गणितीय रूप में मूल्यांकन को इस प्रकार व्यक्त किया जा सकता है।

मूल्यांकन
  1. व्यक्ति की उपलब्धि का मात्रात्मक विवरण, 
  2. व्यक्ति की योग्यताओं का गुणात्मक विवरण,
  3. व्यक्ति की उपलब्धि व योग्यताओं का मूल्य निर्धारण 

इस प्रकार
  1. मूल्यांकन एक निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया है।
  2. मूल्यांकन एक क्रमबद्ध प्रक्रिया है।
  3. मूल्यांकन के अन्तर्गत विषय-वस्तु व उपलब्धि के साथ ही रुचि, विचार, दृष्टिकोण, कार्य प्रणाली, व्यक्तिगत एवं सामाजिक अनुकूलन, चिन्तन और प्राविधियाँ आदि सम्मिलित हैं।
  4. मूल्यांकन के अन्तर्गत उद्देश्यों की प्राप्ति का निर्धारण किया जाता है।
  5. मूल्यांकन के अन्तर्गत अधिगम अनुभवों की उपयोगिता के साथ ही साथ इस तथ्य का निर्धारण किया जाता है कि वह उद्देश्यों की पूर्ति में कहाँ तक सहायक रहे हैं। 

शैक्षिक मूल्यांकन

(Educational Evaluation)
शिक्षा का प्रमुख कार्य बालक को सम्पूर्ण मानव बनाने हेतु व्यवहार में परिवर्तन लाना है। यह परिवर्तन तीन प्रकार के होते हैं, 
  1. जन्मजात क्षमताओं में परिवर्तन।
  2. अज्ञान से ज्ञान में परिवर्तन।
  3. अभिप्रेरणा से आदर्शों में परिवर्तन। 
ये तीनों प्रकार के परिवर्तन समुचित रूप से करने के लिये मूल्यांकन का सहारा लेना आवश्यक होता है। मूल्यांकन एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें मापित मूल्य का अवलोकन कर उसकी उपयोगिता या मूल्य का निर्धारण किया जाता है। शैक्षिक मूल्यांकन में केवल विद्यार्थी की ही जाँच नहीं की जाती वरन् शिक्षण पद्धति, पाठ्य-पुस्तक तथा अन्य शैक्षिक साधनों की उपयोगिता की भी जाँच की जाती है तथा शिक्षण प्रक्रिया को बालक और समाज दोनों की दृष्टि से उपयोगी बनाने का प्रयास किया जाता है। 
 
इस प्रकार मूल्यांकन करते समय बालक और समाज दोनों पर ध्यान देना चाहिये। बालक के शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, संवेगात्मक, नैतिक पक्षों के विकास के लिये क्या वांछनीय है, साथ ही समाज के आदर्शों, लक्ष्यों एवं आवश्यकताओं के अनुकूल शिक्षण कार्य हो रहा है या नहीं, आदि को ध्यान में रखते हुए शिक्षा में मूल्यांकन किया जाता है।

चूँकि शिक्षण प्रक्रिया का केन्द्र बिन्दु बालक है अतः उसकी आवश्यकताओं और रुचियों के अनुकूल पाठ्यवस्तु का प्रस्तुतीकरण करके बालक के व्यवहार में वांछनीय परिवर्तन लाने चाहिये। बालक ने जिस सीमा तक शैक्षिक उद्देश्यों को प्राप्त किया होगा, उसी प्रकार उसके व्यवहार में परिवर्तन हुआ होगा तथा इसी आधार पर यह अनुमान लगाया जा सकता है कि सीखने के यह अनुभव कितने प्रभावपूर्ण हैं। कोठारी कमीशन (1966) ने मूल्यांकन की व्याख्या करते हुए लिखा है कि अब यह माना जाने लगा है कि मूल्यांकन एक अनवरत प्रक्रिया है जो कि सम्पूर्ण शिक्षा प्रणाली का एक अभिन्न अंग है; तथा उसका शैक्षिक उद्देश्यों से घनिष्ठ सम्बन्ध रहता है।

मूल्यांकन प्रक्रिया

(Evaluation Process)
राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद् (NCERT 1960) के अनुसार मूल्यांकन एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है जिसके तीन महत्वपूर्ण बिन्दु हैं शिक्षण उद्देश्य, सीखने से उत्पन्न अनुभव एवं व्यवहार परिवर्तन। इन तीनों बिन्दुओं में घनिष्ठ सम्बन्ध है जिसे निम्नांकित चित्र द्वारा समझा जा सकता है 

Evaluation-Process
Evaluation Process

मूल्यांकन प्रक्रिया के सोपानों का विवरण इस प्रकार है :

1. उद्देश्यों का निर्धारण
  • सामान्य उद्देश्यों का निर्धारण व परिभाषा,
  • विशिष्ट उद्देश्यों का निर्धारण व परिभाषा। 

2. अधिगम अनुभवों को प्रदान करना
  • शिक्षण बिन्दुओं का चयन
  • उपयुक्त अधिगम क्रियाओं का चयन।

3. व्यवहार परिवर्तनों के आधार पर मूल्यांकन 
  • छात्रों के व्यवहार परिवर्तनों का मूल्यांकन
  • परिणामों की पुष्टि
बालक एवं समाज के हित को देखते हुए हम शिक्षा के द्वारा बालक के व्यवहार में जिन परिवर्तनों को लाना चाहते हैं वे शिक्षण उद्देश्य कहलाते हैं। इन शिक्षण उद्देश्यों के अनुकूल शिक्षक विद्यालय में ऐसा वातावरण प्रस्तुत करता है जो बालक के लिये उपयुक्त सीखने के अनुभव उत्पन्न करने में सहायक होता है, यह अनुभव बालक के ज्ञानात्मक, क्रियात्मक तथा भावात्मक पक्षों से सम्बन्धित होते हैं तथा उसमें तदनुकूल व्यवहार परिवर्तन लाते हैं। व्यवहार परिवर्तन वह साक्षियाँ हैं जो शिक्षण उद्देश्य की प्राप्ति का संकेत देती है तथा जिनके माध्यम से सीखने के अनुभवों की उपयुक्तता का पता चलता है। 

मूल्यांकन के यह तीनों ही बिन्दु एक-दूसरे से सम्बन्धित हैं। अतः जैसे ही शिक्षा के उद्देश्यों का निर्धारण हो जाता है मूल्यांकन की प्रक्रिया प्रारम्भ हो जाती है तथा बालक के व्यवहार में वांछनीय परिवर्तन की प्राप्ति के साथ समाप्त हो जाती है। यदि शिक्षण के उद्देश्यों की प्राप्ति नहीं होती तो शिक्षा के उद्देश्यों को पुनः निर्धारित किया जाता है। शिक्षण कार्य में सुधार व शिक्षण बिन्दुओं का चयन नये प्रकार से किया जाता है। इस प्रकार मूल्यांकन का वास्तविक लक्ष्य शिक्षा को उद्देश्य केन्द्रित बनाना है और तभी शिक्षा में अपेक्षित सुधार लाया जा सकता है।

मापन तथा मूल्यांकन में तुलना

(A Comparison Between Measurement and Evaluation)
मापन और मूल्यांकन एक दूसरे से घनिष्ट रूप से सम्बन्धित हैं, फिर भी दोनों में स्पष्ट भिन्नताएँ हैं।
  1. मापन का अर्थ है यथार्थ परिमाणात्मक मूल्य। जबकि मूल्यांकन का अर्थ अधिक व्यापक है। इसे स्पष्ट करते हुए ब्रेडफील्ड तथा मोरडॉक ने लिखा है : मापन की प्रक्रिया में किसी घटना या तथ्य के विभिन्न परिणामों के लिये प्रतीक निश्चित किये जाते हैं ताकि उस घटना या तथ्य के बारे में यथार्थ निश्चय किया जा सके. जबकि मूल्यांकन में उस घटना या तथ्य का मूल्य ज्ञात किया जाता है।  
  2. मापन किसी वस्तु का संख्यात्मक विवरण प्रस्तुत करता है। अर्थात् इससे ज्ञात होता है कि कोई वस्तु कितनी है, जबकि मूल्यांकन गुणात्मक अर्थात् यह बताता है कि कोई वस्तु कितनी अच्छी है ? प्रस्तुत करता है।
  3. मूल्यांकन का क्षेत्र मापन की अपेक्षा अधिक व्यापक है। मापन में किसी एक गुण की परीक्षा की जाती है, जबकि मूल्यांकन में व्यक्तित्व के सभी पक्षों अर्थात् शारीरिक, मानसिक, सामाजिक नैतिक की परीक्षा की जाती है।
  4. मापन में मूल्यांकन की अपेक्षा कम समय लगता है। किसी क्षेत्र में व्यक्ति की योग्यता के मापन के लिये केवल एक परीक्षण का प्रयोग किया जाता है, जबकि मूल्यांकन के लिये एक से अधिक परीक्षणों का प्रयोग करना होता है।  
  5. मापन वस्तुनिष्ठ होता है, जबकि मूल्यांकन आत्मनिष्ठ होता है। 
  6. मापन की अपेक्षा मूल्यांकन में अधिक धन व्यय होता है, क्योंकि मापन में जहाँ एक समय में एक ही परीक्षण का प्रयोग होता है वहाँ मूल्यांकन में अनेक परीक्षणों के अतिरिक्त विभिन्न मूल्यांकन पद्धतियों जैसे-निरीक्षण, साक्षात्कार, प्रश्नावली आदि का भी प्रयोग किया जाता है।
  7. मापन का सम्बन्ध किसी वस्तु के मात्रात्मक स्वरूप से होता है, जबकि मूल्यांकन में मात्रात्मक एवं गुणात्मक दोनों स्वरूपों को स्थान दिया जाता है। इसे निम्न लिखित प्रकार से व्यक्त कर सकते हैं : मूल्यांकन = मापन + मूल्य निर्धारण
मापन और मूल्यांकन में सूक्ष्म अंतर होते हुए भी दोनों में स्पष्ट सम्बन्ध दिखाई देता है। वस्तुतः मूल्यांकन गुणात्मक निर्णय करने की प्रक्रिया है। अतः यह भी एक प्रभार का मापन ही है। किसी वस्तु की मात्रा का विवरण देने के लिये कुछ प्रतीकों जैसे इंच, सेकण्ड, किलोग्राम आदि को मापन का आधार बनाया जाता है, उसी प्रकार उस वस्तु के गुणों का विवरण देने के लिये मानकों (Norms) को मूल्यांकन का आधार बनाया जाता है। मापन को मूल्यांकन का एक तरीका कहा जा सकता है। 

मापन द्वारा प्राप्त आँकड़ों के आधार पर मूल्यांकन में सहायता मिलती है। आज शिक्षाशास्त्री बालक के केवल मानसिक विकास पर ही ध्यान केन्द्रित नहीं करना चाहते, बल्कि उनका ध्यान बालक के व्यक्तित्व के सर्वांगीण विकास पर केन्द्रित रहता है। मापन और मूल्यांकन उन्हें इस लक्ष्य की प्राप्ति में सहायता करते हैं।

मापन व मूल्यांकन के उपकरण एवं प्राविधियाँ 

(Tools and Techniques of Measurement and Evaluation)
जिन उपकरणों व तकनीकों का उपयोग छात्रों के विभिन्न प्रकारों के व्यवहार के मापन के लिए प्रयोग में लाया जाता है; उन्हें मापन व मूल्यांकन के उपकरण कहते हैं। उपकरण व प्राविधियों का निर्धारण उनके उद्देश्यों के अनुकूल होता है। जैसे ज्ञानात्मक व्यवहार के मापन के लिए मौखिक परीक्षण, लिखित परीक्षण और साक्षात्कार इत्यादि एवं भावात्मक व्यवहार के मापन के लिए रुचि परीक्षण, व्यक्तित्व परीक्षण व समाजमिति आदि का प्रयोग किया जाता है। निम्न वर्गों में विभिन्न प्राविधियों को वर्गीकृत किया जा सकता है।

परीक्षण तकनीक

परीक्षण के द्वारा एक समय में बालक के किसी निश्चित व्यवहार का अध्ययन किया जाता है। इसमें जो उपकरण प्रयोग में लाये जाते हैं वह इस प्रकार हैं - लिखित परीक्षा, मौखिक परीक्षा, प्रयोगात्मक परीक्षा, निष्पादन द्वारा एवं बालक द्वारा निर्मित कृतियाँ।

स्वयं आलेख प्राविधियाँ

प्रत्येक बालक अपने सम्बन्ध में अनुभव व विभिन्न सूचनायें रखता है। यह सूचनायें विभिन्न उपकरणों के द्वारा ज्ञात की जाती हैं जैसे - प्रश्नावली, आत्मकथा, व्यक्तिगत डायरी, वार्तालाप एवं प्रत्यक्ष रूप से पूछे गये प्रश्न एवं साक्षात्कार

अवलोकन तकनीक

बालक के व्यवहार को देखकर उसके व्यवहार का मापन किया जाता है - वृतांत अभिलेख, निर्धारण मापनी, चैक सूची, समाजमितीय विधि एवं जानो कौन है विधि।

प्रक्षेपीय तकनीक 

इस तकनीक द्वारा बालक के व्यक्तिगत सामाजिक समायोजन से सम्बन्धित तथ्यों का मूल्यांकन किया जाता है। इस तकनीक की मान्यता है कि व्यक्ति अपनी पसन्द, नापसन्द, विचार, दृष्टिकोण आदि को अपनी प्रतिक्रिया में आरोपित करता है जिनका विश्लेषण करके व्यक्ति के गुणों को जाना जा सकता है। प्रक्षेपी मापक हैं-रोर्शा परीक्षण, प्रसंगात्मक बोध परीक्षण (T. A. T.), वाक्यपूर्ति परीक्षण, शब्द साहचर्य परीक्षण।

मापन तथा मूल्यांकन का महत्व

(Importance of Measurement and Evaluation)
शिक्षा में मापन और मूल्यांकन का छात्रों, शिक्षकों और अभिभावकों-तीनों की दृष्टि से बहुत महत्व है। छात्र को अपनी प्रगति और योग्यता का पता लगता है जिससे उसमें आत्मविश्वास का विकास होता है, उसे अध्ययन और परिश्रम करने की प्रेरणा मिलती है। अध्यापक को अपनी शिक्षण विधि और शिक्षा योजना में सुधार करने का अवसर मिलता है। अभिभावक को अपने बालकों की सही प्रगति का ज्ञान होता है। 
संक्षेप में शिक्षा में इसकी उपयोगिता इस प्रकार है :

छात्रों के चयन में सहायता

मापन और मूल्यांकन के द्वारा उपयुक्त छात्रों को उपयुक्त कक्षाओं में प्रवेश देने में सहायता मिलती है। इसके द्वारा अनुपयुक्त छात्रों को छाँट दिया जाता है और केवल योग्य छात्रों का ही चयन किया जाता है।

विशिष्ट योग्यता की माप में सहायता

मापन और मूल्यांकन विधियों द्वारा बालकों की विशिष्ट योग्यताओं की जानकारी प्राप्त होती है। इनसे विद्यालय में सर्वोच्च बालकों का चुनाव किया जा सकता है जो विभिन्न प्रतियोगिताओं और अन्य क्रिया कलापों में उच्च स्थान प्राप्त करते हैं।

पाठ्य विषयों के चुनाव में सहायता

बालकों की विशिष्ट योग्यताओं की जाँच के आधार पर उन्हें उपयुक्त विषयों के चयन में सहायता दी जा सकती है।

व्यवसाय सम्बन्धी मार्ग प्रदर्शन

मापन और मूल्यांकन के द्वारा बालकों की व्यावसायिक योग्यता का अनुमान लगाया जा सकता है और उन्हें व्यवसाय चयन में सहायता दी जा सकती है।

विद्यार्थियों की प्रगति का ज्ञान

मापन और मूल्यांकन प्रविधियों से शिक्षक को यह मालूम हो जाता है कि बालक अपनी योग्यतानुसार पाठ्य विषयों में प्रगति कर रहा है या नहीं। इस प्रकार विद्यार्थियों द्वारा किये गए परिश्रम की जाँच होती है। 

कठिनाइयों का निदान

मापन और मूल्यांकन द्वारा सीखने की विशिष्ट कठिनाइयों का पता लगाया जाता है और यदि सम्भव हो तो उनके कारण का पता लगाकर उनके निराकरण का प्रबन्ध किया जाता है।

पूर्व कथन में सहायता

विभिन्न परीक्षणों के आधार पर कौन व्यक्ति किस क्षेत्र में जाने योग्य है यह ज्ञात किया जा सकता है और तदनुसार शिक्षा दी जा सकती है। 

शिक्षा में अपव्यय का निवारण

प्रायः विद्यालयों में अनेक बालक परीक्षाओं में अनुत्तीर्ण होने पर पढ़ाई स्थगित कर देते हैं। इसलिये इस अपव्यय को दूर करने के लिये बालकों की योग्यताओं का ज्ञान प्राप्त करके पाठ्य-विषय चुनाव में सहायता दी जा सकती है।

अध्यापकों के कार्य की जाँच

मापन और मूल्यांकन प्रविधियों द्वारा अध्यापक ने बालक को किस प्रकार पढाया है, इसका पता लग जाता है। यह शिक्षक की योग्यताओं, क्षमताओं, व्यक्तित्व एवं शिक्षण क्षमता का स्पष्ट चित्र प्रस्तुत करता है।

पाठ्यक्रम निर्माण एवं शिक्षण विधि चयन में सहायता

मापन व मूल्यांकन विधि के द्वारा पाठ्यक्रम, विषय-वस्तु एवं सहायक पुस्तकें शिक्षण क्रियाएँ, शिक्षण विधियों आदि सभी का निरूपण करने में भी सहायता मिलती है। 

विद्यालय की गतिविधियों में सुधार लाने के लिये भी मापन और मूल्यांकन अत्यन्त उपयोगी है। 

परीक्षा प्रणाली, सहगामी क्रियाओं आदि की उपयुक्त योजना बनाने में सुदृढ़ पृष्ठभूमि प्रदान कर उनमें अपेक्षित सुधार लाने में शिक्षक को सहायता प्रदान कर उनमें अपेक्षित सुधार लाने में शिक्षक को सहायता प्रदान करता है। 

इस प्रकार शिक्षा में मापन और मूल्यांकन कार्यक्रम बालक, शिक्षक तथा शिक्षण प्रक्रिया के सभी पहलुओं में पग-पग पर सहायता करता है ताकि शिक्षा के उद्देश्यों को अच्छे-से-अच्छे ढंग से प्राप्त किया जा सके।

Read More ...
Founder, This blog gathers valuable resources, reviews, and guides to help you explore the world of knowledge. Whether you're a student, educator, or book lover, you'll find engaging and informative articles to enhance your learning journey. Stay connected for the latest updates in education and literature!