वैधता (Validity) | वैधता कसौटियाँ, परीक्षण वैधता के प्रकार एवं विधियाँ

थॉर्नडाइक तथा हेगन के अनुसार, "कोई भी मापन विधि उस सीमा तक वैध है, जिस सीमा तक वह उस कार्य के किसी सफल मापन से सह-सम्बन्धित है ...
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वैधता (Validity)

वैधता (Validity)

छात्रों की उपलब्धि एवं योग्यता के मापन, शैक्षिक व्यावसायिक निर्देशन, व्यक्तियों का चयन अथवा छात्रों की भावी सफलता के विषय में अनुमान लगाने के लिये उपयुक्त परीक्षण की आवश्यकता होती है। परीक्षण की वैधता का अर्थ इस बात से है कि वह कितनी अच्छी तरह से उस गुण या योग्यता का मापन करता है। जिसके लिये उसकी रचना की गई है। क्रोनबैक के शब्दों में- "किसी परीक्षण की वैधता उसकी वह सीमा है, जिस सीमा तक वह, वही मापता है, जिसके लिये उसका निर्माण किया गया है।" 
इसी तथ्य का समर्थन करते हुए गैरेट लिखते हैं, "किसी परीक्षण या किसी मापन यन्त्र की वैधता इस बात पर निर्भर करती है कि जिस गुण का मापन करने के लिये बनाया गया है, वह उसी का मापन करे।"

थॉर्नडाइक तथा हेगन के अनुसार, "कोई भी मापन विधि उस सीमा तक वैध है, जिस सीमा तक वह उस कार्य के किसी सफल मापन से सह-सम्बन्धित है जिसके विषय में पूर्व कथन हेतु उसकी रचना की गई है।"

वैधता के निर्धारण के लिये किसी कसौटी का होना अत्यन्त आवश्यक है। इसीलिये गुलिकसन ने लिखा है, किसी कसौटी के साथ परीक्षण का सह-सम्बन्ध उसकी वैधता है।

इसी आधार पर फ्रीमैन ने वैधता को निम्नलिखित प्रकार से परिभाषित किया है, "वैधता का सूचकांक उस मात्रा को व्यक्त करता है, जिस मात्रा तक एक परीक्षण उस तथ्य को भापता है, जिसके मापन के लिये वह बनाया गया है, जबकि उसकी तुलना किसी स्वीकृत कसौटी से की जाती है।"

इस प्रकार उपर्युक्त परिभाषाओं से स्पष्ट होता है कि परीक्षण केवल उन्हीं परिस्थितियों में वैध होता है जिसमें उसका मानकीकरण किया गया हो और यह केवल उसी जनसंख्या के लिये उपयुक्त होता है जिसके प्रतिदर्श पर उसका मानकीकरण किया गया है। दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि कोई भी परीक्षण तभी वैध होगा जब वह विश्वसनीय होगा। यदि परीक्षण की विश्वसनीयता शून्य है, तो वह किसी अन्य परीक्षण से सह-सम्बन्धित नहीं होगा। इस सम्बन्ध में फ्रीमैन ने लिखा है - "एक वैध परीक्षण की पहली आवश्यक शर्त यह है कि इसमें पर्याप्त मात्रा में विश्वसनीयता हो। यदि किसी परीक्षण का विश्वसनीयता गुणांक शून्य है, तो यह किसी भी चीज़ से संबंधित नहीं हो सकता है।"

वैधता कसौटियाँ (Validity Criterion)

जिस प्रकार सोने की शुद्धता को परखने के लिये किसी कसौटी की आवश्यकता होती है, उसी प्रकार मनोवैज्ञानिक परीक्षण की वैधता ज्ञात करने के लिये भी मान्य कसौटियों की सहायता ली जाती है। परीक्षण वैधता ज्ञात करने की कसौटियों को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है
  1. आन्तरिक कसौटियों।
  2. बाह्य कसौटियाँ।

आन्तरिक कसौटियाँ

इसमें परीक्षण के सम्पूर्ण फलांकों को कसौटी के रूप में प्रयुक्त किया जाता है। परीक्षण पदों का उप-परीक्षण तथा सम्पूर्ण पदों का आपस में सह-सम्बन्ध ज्ञात करते हैं। इस प्रकार की कसौटी में पदों के स्वरूप, विषयवस्तु कठिनता, सजातीयता, विभेदकता आदि का अध्ययन अर्थात् पद विश्लेषण नता, सजा किया जाता है।

बाह्य कसौटियाँ

इसके अन्तर्गत किसी मान्य कसौटी जैसे उसी के समान कोई अन्य मानवीकृत परीक्षण, शैक्षिक उपलब्धि प्रशिक्षण में निष्पादन व्यवसाय या वास्तविक कार्य में निभादन, विद्यालय रिकॉर्ड, वर्गक्रम या अन्य व्यक्तियों के निर्णय आदि का उपयोग किया जाता है। विभिन्न प्रकार के परीक्षणों के लिये जिन कसौटियों का प्रायः प्रयोग किया जाता है, वे निम्नलिखित हैं

बुद्धि परीक्षण

विद्यालय में विभिन्न विषयों में प्राप्त अंक, विद्यार्थी की योग्यता के विषय में शिक्षक का निर्णय, सम्पूर्ण शैक्षिक उपलब्धि अर्थात् किस स्तर तक शिक्षा प्राप्त की, पूर्व स्थापित ख्याति प्राप्त परीक्षण से सह-सन्चन्ध, विरोधी नमूह। 

अभियोग्यता परीक्षण

विशिष्ट प्रशिक्षण पाठ्यक्रम ने प्राप्त अंक, वास्तविक कार्य में सफलत, पर्यवेक्षक द्वारा वर्गक्रम, ख्याति प्राप्त परीक्षण से सह-सम्बन्ध।

व्यक्तित्व परीक्षण 

विरोधी समूह, वर्गक्रम, मनोचिकित्सकीय निदान, पूर्त स्थगित ख्याति प्राप्त 

परीक्षण से सह-सम्बन्ध उपलब्धि परीक्षण 

विद्यालय में सम्बन्धित विषय में प्राप्त अंक, अध्यापक द्वारा किये गए निर्णय आदि।

उत्तम कसौटी के लक्षण 

(Characteristics of a Good Criterion)
एक उत्तम कसौटी में निम्नलिखित विशेषताएँ पाई जाती हैं -

रुम्बद्धता

किसी भी कसौटी की यह महत्वपूर्ण विशेषता है। एक कसौटी तभी सम्बद्ध मानी जाती है जब वह उसी गुण का उसी अनुपात में मापन करती है जिस रूप में नवीन परीक्षण कर रहा है। उदाहरण के लिये यांत्रिक अभियोग्यता परीक्षण में वैधता निर्धारण के लिये व्यवसाय में सफलता को कसौटी के रूप में प्रयुक्त किया जाए, तो यह कसौटी तभी सम्बद्धमानी जाएगी जब वह व्यक्ति की यांत्रिक अभियोग्यता से सम्बन्धित हो।

निष्पक्ष

एक उत्तम कसौटी वह है जिसमें प्रत्येक परीक्षार्थी को अच्छे फलांक प्राप्त करने के समान अवसर मिलें तथा प्राप्त फलांकों पर परीक्षक की पूर्व धारणा या पक्षपात का कोई प्रभाव न पड़े।

विश्वसनीयता

कसौटी का पर्याप्त रूप से विश्वसनीय होना भी अत्यन्त आवश्यक है अर्थात् बार-बार प्रशासित करने पर परिणामों में संगति हो । यदि कसौटी की विश्वसनीयता निन्न होगी, तो परीक्षण प्राप्तांक और कसौटी के प्राप्तांकों के मध्य सह-सम्बन्ध भी निम्न होगा। 

प्राप्यता

कसौटो का चुनाव करते समय यह भी देखना होता है कि कसौटी प्राप्य तथा सुविधाजनक हो।

परीक्षण वैधता के प्रकार एवं विधियाँ

(Methods and Types of Test Validity) 
वैधता के प्रकार एवं वैधता ज्ञात करने की विधियों के सम्बन्ध मनोवैज्ञानिकों की आम सहमति नहीं है। विभिन्न मनोमितिकों एवं शिक्षामितिकों ने वैधता के विभिन्न प्रकार बताए हैं जिनमें से प्रमुख अग्रलिखित है-
क्रोनबैक ने अपनी पुस्तक Psychological Testing में वैधता के चार प्रकार बताए हैं
  • समवर्ती वैधता 
  • अन्वय वैधता 
  • पूर्व कथनात्मक वैधता 
  • विषयवस्तु या पाठ्यक्रमात्मक वैधता 
गुड तथा हॉट ने वैधता को चार वर्गों में बाँटा है।  
  • रूप वैधता 
  • विशेषज्ञ मत 
  • विरोधी समूह 
  • स्वतंत्र कसौटी 

फ्रीमैन ने अपनी पुस्तक (Theory and Practice of Psychological Testing) में चार प्रकार की वैधता का वर्णन किया है -
  1. संक्रियात्मक वैधता 
  2. कार्यात्मक वैधता 
  3. तत्वात्मक वैधता 
  4. रूप या अनीक वैधता 

एनेस्टैसी (Anastasi) ने अपनी पुस्तक Psychological Testing में चार प्रकार की वैधता का उल्लेख किया है: 
  1. रूप या अनीक वैधता 
  2. विषयवस्तु वैधता 
  3. तथ्यात्मक वैधता
  4. अनुभवजन्य वैधता  

इस प्रकार ज्ञात होता है कि वैधता को किन्हीं निश्चित प्रकारों में बाँटना कठिन है। चूँकि वैधता का निर्धारण वैधता कसौटियों एवं वैधता ज्ञात करने की विधियों पर निर्भर करता है अतः वैधता को निम्नलिखित दो भागों में विभाजित किया जा सकता है -
  • आन्तरिक कसौटी पर आधारित वैधता 
  • बाह्य कसौटी पर आधारित वैधता 

परीक्षण वैधता के प्रकार

parikshan-vaidhta-ke-prakar
परीक्षण वैधता के प्रकार

आन्तरिक कसौटी पर आधारित वैधता 

(Validity Based on Internal Criterion)
जब परीक्षण पदों के स्वरूप, विषयवस्तु आदि की व्याख्या करके परीक्षण को वैधता के सम्बन्ध में निर्णय लिया जाता है, तो उसे आन्तरिक कसौटी पर आधारित वैधता कहते हैं। इसके अन्तर्गत वैधता को पाँच प्रकारों में विभाजित किया जा सकता है -

1. संक्रिया वैधता

परीक्षण की रचना करते समय जब परीक्षण निर्माता पद विश्लेषण की प्रक्रिया करता है, तो उसे संक्रिया वैधता कहते हैं।। पद-विश्लेषण के समय परीक्षण निर्माता यह देखने का प्रयास करता है कि परीक्षण के समस्त पद उसके उद्देश्यों के अनुरूप हैं अथवा नहीं। जो पद उद्देश्यों के अनुसार नहीं होते, उन्हें परीक्षण से निकाल दिया जाता है।

2. रूप वैधता

रूप वैधता में यह देखा जाता है कि क्या परीक्षण के पद, उस विशेषता, गुण या उद्देश्य का मापन करते हुए प्रतीत होते हैं जिनका मापन करने के लिये उन्हें बनाया गया है। अर्थात् परीक्षण के पदों को देखकर ही इस प्रकार की वैधता ज्ञात की जा सकती है। उदाहरण के लिये कक्षा आठ के छात्रों के लिये गणित सम्बन्धी उपलब्धि परीक्षण की रचना करनी हो, तो इस प्रकार के प्रश्न होने चाहिये कि उसे पढ़कर ही कहा जा सके कि यह छात्रों की गणित सम्बन्धी योग्यता के मापन के लिये बनाया गया है। रूप वैधता का निर्धारण प्रायः विशेषज्ञों के निर्णय के आधार पर किया जाता है।

3. विषयवस्तु या पाठ्यक्रमात्मक वैधता

एनेस्टैसी के शब्दों में - "विषय-वस्तु वैधता में आवश्यक रूप से परीक्षण की विषयवस्तु का व्यवस्थित परीक्षण निहित होता है, जिससे यह निर्धारित किया जा सके कि क्या यह मापे जाने वाले व्यवहार क्षेत्र का प्रतिनिधिपूर्ण प्रतिदर्श सम्मिलित करता है। इस प्रकार की वैधता का उपयोग अधिकतर उपलब्धि परीक्षणों में किया जाता है। यदि परीक्षण पाठ्यक्रम के विभिन्न क्षेत्रों का उनके महत्व के अनुसार प्रतिनिधित्व करता है तथा पाठ्यक्रम के उद्देश्यों की पूर्ति करता है, तो इसका तात्पर्य है कि परीक्षण में विषयवस्तु वैधता है।

4. तार्किक वैधता

जब परीक्षण के पद विशिष्ट रूप से परिभाषित उसी व्यवहार क्षेत्र से सम्बन्धित हों, जिनका मापन करने के लिये परीक्षण की रचना हुई है, तो उसमें तर्कसंगत वैधता होती है। उदाहरण के लिये किसी सांख्यिकी परीक्षण का उद्देश्य सूचनाओं का मापन करना है, तो सूचना प्रदान करने वाले प्रश्न ही परीक्षण में सम्मिलित किये जाने चाहिये। अतः इस प्रकार की वैधता ज्ञात करने के लिये परीक्षण पदों का तार्किक रूप से अवलोकन किया जाता है तथा यह देखा जाता है कि परीक्षण पद अपने विशिष्ट उद्देश्यों के अनुकूल हैं अथवा नहीं। 

5. अवयव या कारक वैधता

जिन परीक्षणों में विभिन्न कारकों या शीलगुणों का मापन एक साथ होता है, परीक्षण वैधता को कारक विश्लेषण द्वारा ज्ञात किया जाता है। इसीलिये इसे कारक वैधता कहा जाता है। एनेस्टैसी के अनुसार, 'किसी परीक्षण की कारक वैधता का अर्थ है उस परीक्षण तथा अनेक परीक्षणों के समूह या व्यवहार के के अन्य समान अवयवों में सह-सम्बन्ध।

बाह्य कसौटियों पर आधारित वैधता के प्रकार 

(Types of Validity Based on External Criterion)
कुछ परीक्षणों में बाह्य कसौटी के आधार पर वैधता गुणांक ज्ञात किया जाता है, इसीलिये इस प्रकार की वैधता को बाह्य कसौटी पर आधारित वैधता कहा जाता है। इसे निम्नलिखित तीन प्रकारों में विभक्त किया जा सकता है
  1. पूर्वकथन वैधता 
  2. समवर्ती वैधता 
  3. निर्मित या अन्वय वैधता 

पूर्वकथन वैधता

जब परीक्षण फलांकों के आधार पर किसी व्यक्ति की भावी योग्यता के बारे में भविष्यवाणी की जाती है तो उसे पूर्व कथन वैधता कहते हैं। उदाहरण के लिये एक यांत्रिक अभियोग्यता परीक्षण के आधार पर हमने यह भविष्यवाणी की कि अमुक व्यक्ति अमुक व्यवसाय में सफल होगा। अब यदि उस व्यक्ति को उस व्यवसाय में सफलता मिले तो कहा जाएगा कि परीक्षण में पूर्व कथन वैधता है। इस प्रकार की वैधता ज्ञात करने के लिये प्रयुक्त परीक्षण के अंकों तथा बाद में उस व्यवसाय में प्राप्त अंकों के मध्य सह-सम्बन्ध ज्ञात करते हैं। प्रायः अभियोग्यता एवं रुचि परीक्षणों की पूर्वकथन वैधता ज्ञात की जाती है।

समवर्ती वैधता

समवर्ती वैधता ज्ञात करने के लिये सर्वप्रथम परीक्षण को प्रशासित करके उसका फलांक ज्ञात कर लेते हैं। तत्पश्चात् किसी अन्य परीक्षण से उसी योग्यता की जाँच करके फलांक ज्ञात करते हैं और फिर इन दोनों फलांकों के मध्य सह-सम्बन्ध ज्ञात करते हैं। यहाँ ध्यान देने योग्य बात यह है कि परीक्षण तथा उसकी कसौटी के मापक को लगभग एक ही समय दिया जाता है। चूँकि दोनों परीक्षणों को एक ही समय में एक के बाद एक के रूप में प्रशासित किया जाता है तथा दोनों ही समान योग्यता का मापन करते हैं अतः इसे समवर्ती वैधता कहते हैं। नए परीक्षण की समवर्ती वैधता पूर्व स्थापित ख्याति प्राप्त परीक्षण से सह-सम्बन्ध मिलाकर की जा सकती है। इसीलिये अनेक बुद्धि परीक्षणों को स्टेनफोर्ड बिने या वेशलर परीक्षण से सह-सम्बन्धित किया जाता है।

अन्वय या निर्मित वैधता

इसमें परीक्षण को विशेष रचना या सिद्धान्त के रूप में जाँचा जाता है। मनोवैज्ञानिक परीक्षण द्वारा मापे जाने वाले विविध शीलगुण जैसे बुद्धि, रुचि, मूल्य, चिन्ता, अभियोग्यता आदि काल्पनिक अन्वय या सिद्धान्त है। इन मानसिक गुणों के अनेक अर्थ हैं तथा इनको धारण करने वाले व्यक्ति का व्यवहार कैसा होगा। इस सम्बन्ध में विभिन्न विद्वानों के विचार भिन्न-भिन्न हैं अतः अन्वय वैधता ज्ञात करने के लिये यह जानना आवश्यक होता है कि परीक्षण में किस योग्यता या शीलगुण की व्याख्या किन सम्बोधों के आधार पर की गई है। इस प्रकार के सैद्धान्तिक सम्बोधों को अन्वय कहते हैं और इस प्रकार की व्याख्या के वैधकरण को अन्वय वैधता कहते हैं। 

क्रोनबैक तथा मीहल के अनुसार अन्वय वैधता ज्ञात करने के निम्नांकित चरण हैं
  • परीक्षण द्वारा मापे जाने वाले गुण को स्पष्ट करना।
  • मापे जाने वाले गुण से सम्बन्धित सैद्धान्तिक विवेचन प्रस्तुत करना।
  • इस सैद्धान्तिक विवेचन के आधार पर परीक्षण प्राप्तांकों से सम्बन्धित व्यवहार के विषय में पूर्व कथन या उपकल्पना बनाना।
  • व्यवहार के सम्बन्ध में की गई उपकल्पना के सत्यापन के लिये प्रदत्तों का संकलन करना।
यदि उपकल्पना सत्य सिद्ध होती है तो परीक्षण को वैध माना जाता है अन्यथा यह है मानते हैं कि परीक्षण में अन्वय वैधता नहीं है। अन्वय वैधता ज्ञात करने की प्रमुख विधियाँ निम्नलिखित हैं :

आयु विभेदीकरण

अधिकांशतः बुद्धि परीक्षणों की वैधता ज्ञात करने के लिये आयु को मुख्य कसौटी के रूप में प्रयोग किया जाता है। यह माना जाता है कि आयु बढ़ने के साथ-साथ मानसिक विकास में भी वृद्धि होती है। अतः यदि आयु बढ़ने के साथ-साथ परीक्षण प्राप्तांकों में भी वृद्धि होती है, तो परीक्षण वैध माना जाता है।

अन्य परीक्षणों से सह-सम्बन्ध

किसी नए परीक्षण एवं उसी क्षेत्र में पहले से उपलब्ध ख्याति प्राप्त मानकीकृत परीक्षण के प्राप्तांकों में सह सम्बन्ध से ज्ञात होता है कि नया परीक्षण भी उसी गुण का मापन करता है जिसे पूर्व स्थापित परीक्षण द्वारा मापा जाता था

आन्तरिक संगति

प्रायः व्यक्तित्व परीक्षणों की वैधता इसी विधि से ज्ञात की जाती है। इसमें परीक्षण के कुल प्राप्तांक ही कसौटी माने जाते हैं। परीक्षण प्राप्तांकों के आधार पर दो अंतिम समूहों का चयन कर लिया जाता है तथा इन दोनों समूहों में परीक्षण का उप-परीक्षण एवं सम्पूर्ण परीक्षण के प्रत्येक पद का आपस में सह-सम्बन्ध ज्ञात करते हैं। निम्न या ऋणात्मक सह-सम्बन्ध वाले पदों को अवैध माना जाता है।

अवयव विश्लेषण

अन्वय वैधता के लिये अवयव या खण्ड विश्लेषण के द्वारा विभिन्न मनोवैज्ञानिक शीलगुणों को पहचाना जाता है। इन तत्वों या अवयवों को पहचान लेने के बाद उनका उपयोग परीक्षण के अवयव निर्माण के लिये किया जाता है

अभिसारी और विभेदी वैधता

कैम्पबेल ने बताया कि परीक्षण की अन्वय वैधता ज्ञात करने के लिये केवल यह बताना पर्याप्त नहीं है कि वह उन परिवर्तियों से उच्च सह-सम्बन्ध रखता है जो सैद्धान्तिक रूप से मापे जाने वाले प्रत्यय से सम्बन्धित है, वरन् यह बताना भी आवश्यक है कि उन परिवर्तियों से उसका कोई सम्बन्ध नहीं है जिनका कि वह मापन नहीं करता। कैम्पबेल तथा फिस्क प्रथम को अभिसारी वैधता तथा द्वितीय को विभेदी वैधता कहते हैं। उदाहरण के लिये शाब्दिक योग्यता परीक्षण का कक्षा में सफलता से सम्बन्ध अभिसारी वैधता है और इसी परीक्षण का कारखाने में सफलता से निम्न सह सम्बन्ध विभेदी वैधता को दर्शाता है, क्योंकि कारखाने में काम यहाँ पर अनावश्यक परिवर्ती है।

वैधता गुणांक

परीक्षण वैधता को वैधता गुणांक के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। परीक्षण एवं कसौटी के मध्य जो सह-सम्बन्ध ज्ञात किया जाता है, उसे वैधता गुणांक कहते हैं। यह सह-सम्बन्ध जितना अधिक होगा, वैधता भी उतनी ही अधिक मानी जाएगी।

वैधता गुणांक ज्ञात करने की विधियाँ 

वैधता गुणांक से यह ज्ञात होता है कि कहाँ तक एक परीक्षण मापे जाने वाले गुण से सम्बन्धित है। इसे ज्ञात करने की प्रमुख विधियाँ निम्नलिखित हैं:

सह-सम्बन्ध विधियाँ

प्रायः मनोवैज्ञानिक परीक्षणों की वैधता ज्ञात करने के लिये सह-सम्बन्ध विधियों का प्रयोग किया जाता है। प्रमुख सह-सम्बन्ध विधियाँ निम्नलिखित हैं:

सरल सह-सम्बन्ध

वैधता गुणांक ज्ञात करने की यह सर्वाधिक प्रचलित विधि है। इसमें प्रोडक्ट मोमेंट विधि द्वारा परीक्षण प्राप्तांकों और कसौटी प्राप्तांकों के बीच सह-सम्बन्ध गुणांक ज्ञात किया जाता है। परीक्षार्थियों की संख्या अधिक होने पर प्रकीर्ण चित्र से सह-सम्बन्ध गुणांक ज्ञात करते हैं जिसका सूत्र इस प्रकार है -

द्विपांक्तिक सह-सम्बन्ध

जब किसी शीलगुण का मापन दो श्रेणियों जैसे समायोजित-असमायोजित, संतोषजनक असंतोषजनक, उच्च वर्ग - निम्न वर्ग के रूप में करना हो, तब वैधता गुणांक ज्ञात करने के लिये द्विपांक्तिक सह-सम्बन्ध विधि का प्रयोग किया जाता है। जिसका सूत्र निम्नलिखित है
यहाँ पर
rbis = द्विपांक्तिक सह-सम्बन्ध गुणांक
Mp = प्रथम श्रेणी के प्राप्तांकों का मध्यमान
Mq = द्वितीय श्रेणी के प्राप्तांकों का मध्यमान
p = प्रथम श्रेणी के व्यक्तियों का समानुपात
q = द्वितीय श्रेणी के व्यक्तियों का समानुपात 
y = सामान्य वक्र की भुजा का ऊँचाई जो p एवं q को दो भागों में विभाजित करती है।
σt = दोनों वर्गों (प्रथम द्वितीय) का मानक विचलन

बिन्दुं द्विपांक्तिक सह-सम्बन्ध

कभी-कभी उत्तर निम्न, समायोजित- असमायोजित आदि श्रेणियों के प्राप्तांकों का वास्तविक द्विविभाजन सम्भव नहीं होता तब दो वर्गों में भेद केवल एक सूक्ष्म बिन्दु के आधार पर किया जाता है और ऐसे कृत्रिम द्विविभाजन को वास्तविक द्विविभाजन मान लिया जाता है। इस सह-सम्बन्ध को निम्नलिखित सूत्र की सहायता से ज्ञात किया जाता है

चतुष्कोप्टिक सह-सम्बन्ध

जब द्विचर प्रदत्तों का स्वरूप द्विभाजी एवं सामान्य रूप से वितरित होता है अर्थात सामान्य वितरण के आधार पर प्रत्येक माप दो वर्गों में विभक्त होता है तब 2x2 तालिका के आधार पर चतुष्कोष्टिक सह-सम्बन्ध की गणना की जाती है। इसका सूत्र निम्नलिखित है

चतुष्कोष्टिक सह-सम्बन्ध गुणांक, प्रोडक्ट मोमेंट विधि से प्राप्त सह-सम्बन्ध गुणांक की अपेक्षा कम शुद्ध होता है अतः इसका प्रयोग कम किया जाता है।

बहु सह-सम्बन्ध

जब दो या अधिक मापकों को पूर्व कथन के रूप में प्रयुक्त किया जाता है, तो इस विधि का प्रयोग वैधता गुणांक ज्ञात करने के लिये किया जाता है। इसमें विभिन्न मापकों के प्राप्तांकों को सांख्यिकी रूप से संयुक्त किया जाता है तथा तीसरे मापक से सह-सम्बन्धित करके बहु सह-सम्बन्ध ज्ञात किया जाता है।

प्रत्याशा तालिका

किसी भी परीक्षण की पूर्व-कथन वैधता ज्ञात करने की वह उत्तम विधि है जो यह भविष्यवाणी करती है कि किस अभियोग्यता वाला बालक किस कार्य को कुशलता से करेगा। चूँकि यह विधि गणितीय सम्भावनाओं पर आधारित है, अतः विश्वसनीय मानी जाती है।

कारक विश्लेषण विधि

इस विधि का सर्वप्रथम प्रयोग स्पियरमैन ने 1904 में बुद्धि के द्वि-तत्व सिद्धान्त के सन्दर्भ में किया। तत्पश्चात् आइजिंक, गिलफर्ड, कैटिल आदि ने भी इसे व्यापक रूप से उपयोग किया है। इसके द्वारा विभिन्न परीक्षणों तथा उपपरीक्षणों में समान तत्वों की जानकारी मिलती है। कारक विश्लेषण में विभिन्न परीक्षणों या उपपरीक्षणों में परस्पर सह-सम्बन्ध ज्ञात किये जाते हैं और इस आधार पर परीक्षण के उन तत्वों को पहचान लिया जाता है जिनमें आपस में समानता है। 

उदाहरण के लिये यदि कैटिल की 16 पी० एफ० प्रश्नावली को 100 छात्रों पर प्रशासित करके फलांक प्राप्त कर लिये जाएँ और कारक विश्लेषण विधि द्वारा प्रत्येक कारक का शेष कारकों से सह-सम्बन्ध ज्ञात किया जाए तो कुछ कारकों के माध्य सह-सम्बन्ध उच्च होगा और कुछ के मध्य निम्न उच्च सह-सम्बन्धित यह प्रदर्शित करता है कि वे कारक एक ही शीलगुण का मापन करते हैं। जिन कारकों का मध्य सह-सम्बन्ध निम्न होगा, वे भिन्न योग्यता का मापन करते हैं। इस प्रकार कारक विश्लेषण से विभिन्न परीक्षणों, उप-परीक्षणों और कारकों के मध्य समानता एवं भिन्नता को ज्ञात किया जा सकता है। इस विधि का सर्वाधिक प्रयोग आर० बी० कैटिल ने अपने व्यक्तित्व सम्बन्धी अध्ययन में किया है।

वैधता को प्रभावित करने वाले कारक

(Factors Affecting Validity) 
परीक्षण की वैधता को अनेक कारक प्रभावित करते हैं जिनमें से प्रमुख निम्नलिखित हैं -

अस्पष्ट निर्देश

परीक्षण में निर्देश स्पष्ट रूप से नहीं दिये गए हैं कि विद्यार्थियों को प्रश्न का उत्तर किस प्रकार देना है, कितनी समय सीमा है तो परीक्षार्थी प्रश्न का ठीक से उत्तर नहीं दे पाते फलतः परीक्षण की वैधता कम हो जाती है।

प्रश्नों की भाषा

यदि प्रश्न की भाषा अत्यन्त कठिन एवं साहित्यिक है जिसे परीक्षार्थी ठीक से समझ नहीं पा रहा है तो ऐसा परीक्षण सम्बन्धित योग्यता का सही मापन नहीं कर पाता।

अभिव्यक्ति का माध्यम

यदि परीक्षण विद्यार्थी द्वारा की जाने वाली भाषा में नहीं बनाया गया है तो वे प्रश्न को भली प्रकार समझ नहीं पायेंगे और जानते हुए भी प्रश्न का सही उत्तर नहीं दे सकेंगे। 

प्रश्न का कठिनता स्तर

यदि परीक्षण के पद अत्यन्त सरल या अत्यन्त कठिन हैं तो वह विद्यार्थियों में विभेद नहीं कर सकेगा फलतः परीक्षण वैधता कम हो जाएगी। इसी प्रकार यदि परीक्षण का कठिनता क्रम अनुपयुक्त है अर्थात् कठिन प्रश्न प्रारम्भ में और सरल प्रश्न बाद में रखे गए हैं, तो भी वैधता कम हो जाती है, क्योंकि ऐसी स्थिति में प्रायः छात्र हतोत्साहित हो जाते हैं। अपना अधिकतर समय कठिन प्रश्नों को हल करने में ही व्यतीत करते हैं और बाद के प्रश्नों के लिये समय नहीं बचता।

पदों की संख्या

यदि परीक्षण छोटा बनाया गया है, तो वह मापे जाने वाले शीलगुण के सभी पक्षों का सही प्रतिनिधित्व नहीं कर सकेगा। अतः तदनुसार वैधता भी कम हो जाएगी।

त्रुटिपूर्ण प्रशासन एवं अंकीकरण

परीक्षण प्रशासन एवं अंकीकरण की त्रुटियाँ भी परीक्षण की वैधता को कम करती हैं जैसे परीक्षण के लिये पर्याप्त समय न देना अथवा समय सीमा का ध्यान न रखना, अनुचित साधनों का प्रयोग, अनुपयुक्त भौतिक दशाएँ, आत्मनिष्ठ फलांकन आदि।

वैधता का परीक्षण की लम्बाई से सम्बन्ध

(Relation of Validity with the Length of the Test)
किसी परीक्षण की वैधता विश्वसनीयता पर निर्भर करती है और विश्वसनीयता परीक्षण की लम्बाई पर। अतः परीक्षण के विस्तार से न केवल उसकी विश्वसनीयता बढ़ती है वरन् उसकी वैधता भी बढ़ती है किन्तु परीक्षण की लम्बाई बढ़ाते समय परीक्षण की विषय-वस्तु, कठिनता स्तर आदि में परिवर्तन नहीं होना चाहिये। स्पीयरमैन ब्राउन सूत्र से परीक्षण की लम्बाई तथा वैधता का सम्बन्ध ज्ञात होता है। यह सूत्र इस प्रकार है:
यहाँ पर
rnxy = परीक्षण की वैधता जिसकी लम्बाई N अनुपात में बढ़ाई गई हो। 
rxy  = लम्बाई बढ़ाने के पूर्व मूल परीक्षण की वैधता
n = अनुपात जिसमें लम्बाई बढ़ाई गई है 
rxy = मूल परीक्षण की विश्वसनीयता

लेकिन यहाँ यह ध्यान रखना होगा कि यदि परीक्षण को अधिक लम्बा कर दिया। जाएगा, तो उसकी विश्वसनीयता बढ़ जाएगी, लेकिन वैधता नहीं, क्योंकि अधिक लम्बे परीक्षण में मापे जाने वाले शीलगुण से असम्बद्ध पदों के सम्मिलित होने की सम्भावना बढ़ जाती है। एक विशेष वैधता प्राप्त करने के लिये परीक्षण की लम्बाई किस अनुपात में बढ़ानी चाहिये यह निम्नांकित सूत्र से जाना जा सकता है:

इस Blog का उद्देश्य प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे प्रतियोगियों को अधिक से अधिक जानकारी एवं Notes उपलब्ध कराना है, यह जानकारी विभिन्न स्रोतों से एकत्रित किया गया है।