परीक्षण के प्रकार | अधिकतम, प्रारूपिक निष्पादन परीक्षण, मनोवैज्ञानिक परीक्षण के प्रकार | Types Of Tests

शिक्षक को प्रयोगात्मक मनोविज्ञान का जितना अधिक ज्ञान होता है, उतना ही अधिक वह जानता है कि कैसे पढ़ाया जाय।
 
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Types Of Tests

परीक्षण के प्रकार (Types Of Tests)

शिक्षा में व्यक्तिगत विभेद के प्रत्यय ने परीक्षण की आवश्यकता को जन्म दिया। मनोविज्ञान यह बताता है कि बालक का मस्तिष्क एक कोरी स्लेट नहीं है कि उस पर जो चाहा लिख दिया - बालक का विकास उसकी जन्मजात विशेषताओं, प्रवृत्तियों और रुचियों के अनुसार होता है। 

शिक्षा में प्रयोगात्मक मनोविज्ञान आन्दोलन को आधुनिक युग की महान् शिक्षिका मॉन्टेसरी से बहुत बल प्राप्त हुआ। मॉन्टेसरी ने शिक्षा में प्रयोगात्मक मनोविज्ञान की उपयोगिता पर बल देते हुए कहा- "शिक्षक को प्रयोगात्मक मनोविज्ञान का जितना अधिक ज्ञान होता है, उतना ही अधिक वह जानता है कि कैसे पढ़ाया जाय। इसके लिये शिक्षक को शिक्षार्थी के मूल आधारों, प्रकृति, मानसिक स्तर, रुचियों, बौद्धिक योग्यताओं, व्यक्तित्व एवं उसकी आवश्यकताओं आदि का विस्तृत ज्ञान होना चाहिये। मनोवैज्ञानिक परीक्षण इस कार्य में शिक्षक की सहायता कर सकते हैं।  

क्रोनबैक के परीक्षण

क्रोनबैक ने परीक्षण को दो भागों में वर्गीकृत किया है - 
  1. अधिकतम निष्पादन परीक्षण
  2. प्रारूपिक निष्पादन परीक्षण 

अधिकतम निष्पादन परीक्षण 

इस प्रकार के परीक्षणों द्वारा यह ज्ञात किया जाता है कि परीक्षार्थी अपनी योग्यतानुसार अधिकतम कितना कार्य कर सकता है। इसीलिये इन्हें योग्यता परीक्षण भी कहा जाता है। क्रोनबैक के अनुसार, "योग्यता परीक्षण की मुख्य विशेषता यह है कि प्रयोज्य को अधिकतम अंक प्राप्त करने के लिये प्रोत्साहित किया जाता है।" यह परीक्षण कई प्रकार के होते हैं, जैसे- सामान्य मानसिक योग्यता परीक्षण, विशिष्ट योग्यता परीक्षण आदि।

प्रारूपिक निष्पादन परीक्षण

प्रारूपिक निष्पादन परीक्षणों का उद्देश्य यह ज्ञात करना है कि वास्तव में व्यक्ति क्या करता व्यक्ति के चारित्रिक गुण, ईमानदारी, अन्तर्मुखी बहिर्मुखी व्यक्तित्व, रुचि आदि का मापन ? प्रारूपिक परीक्षणों द्वारा किया जाता है। इसमें कोई भी उत्तर अच्छा या बुरा सही या गलत नहीं होता। व्यक्ति के प्रारूपिक व्यवहार का मापन अत्यन्त कठिन है।

एनास्टैसी ने अपनी पुस्तक मनोवैज्ञानिक परीक्षण में परीक्षणों का निम्नलिखित वर्गीकरण किया है -
  • व्यवहार के आधार पर - सामान्य वर्गीकरण परीक्षण, भेदक अभियोग्यता परीक्षणमालाएँ, निष्पत्ति परीक्षण, विशिष्ट अभियोग्यता परीक्षण एवं व्यक्तित्व परीक्षण 
  • प्रशासन के आधार पर - व्यक्तिगत परीक्षण एवं समूह परीक्षण 
  • परीक्षण के माध्यम के आधार पर - पेपर पेन्सिल परीक्षण, निष्पादन परीक्षण, चलचित्र परीक्षण एवं टेलीविजन 
  • विषय-वस्तु के आधार पर - शाब्दिक, आंकिक, स्थानगत एवं चित्रात्मक 

मनोवैज्ञानिक परीक्षणों का एक सरल वर्गीकरण निम्नांकित सारणी में प्रस्तुत है -

मनोवैज्ञानिक परीक्षण के प्रकार

वर्गीकरण का आधारपरीक्षण के प्रकारउदाहरण
प्रशासन के आधार पर(a)व्यक्तिगत परीक्षण
(b)सामूहिक परीक्षण
बिने-साइमन बुद्धि परीक्षण जलोटा
साधारण मानसिक योग्यता परीक्षण
मानकीकरण के आधार पर(a) मानकीकृत परीक्षण
(b)अध्यापक निर्मित परीक्षण
वैशलर बैलेव्यू बुद्धि मापनी
अध्यापक द्वारा स्थानीय उद्देश्य की पूर्ति हेतु निर्मित परीक्षण
फलांकन केआधार पर(a) आत्मनिष्ठ परीक्षण
(b) वस्तुनिष्ठ परीक्षण
साक्षात्कार
शैरी एवं वर्मा-व्यक्तिगत मूल्य प्रश्नावली
रूप के आधार पर(a) गति परीक्षण
(b) शक्ति परीक्षण
ओझा का लिपिक गति एवं परिशुद्धता परीक्षण
सिंह एवं शर्मा अध्यापन अभिक्षमता परीक्षण माला
माध्यम के आधार पर(a) पेपर पेन्सिल परीक्षण
(b) निष्पादन परीक्षण
एल० एन० दुबे का हिन्दी निष्पत्ति परीक्षण
एलेक्जेंडर पास एलाँग टेस्ट






शीलगुणों के आधार पर
(a) योग्यता मापन सम्बन्धी परीक्षण
(i) बुद्धि परीक्षण
(ii) सृजनात्मक परीक्षण
(iii) अभिक्षमता परीक्षण

जोशी का सामान्य मानसिक योग्यता परीक्षण
पासी का सृजनात्मक परीक्षण
सी-शोर संगति अभिक्षमता परीक्षण
(b) उपलब्धि मापन सम्बन्धी परीक्षण
(i) मानकीकृत परीक्षण
(ii) अध्यापक निर्मित परीक्षण

स्टेनफोर्ड उपलब्धि परीक्षण
स्कूल में अध्यापक द्वारा निर्मित निबन्धात्मक वस्तुनिष्ठ व निदानात्मक परीक्षण
(c) व्यक्तित्व मापन सम्बन्धी परीक्षण
(i) व्यक्तित्व सूचियाँ
(ii) व्यावहारिक विधियाँ
(iii) प्रक्षेपी प्रविधियाँ
कैटिल की सोलह व्यक्तित्व प्रश्नावली
साक्षात्कार, आत्मकथा
रोश स्याही धब्बा परीक्षण, प्रासंगिक
अन्तर्बोध परीक्षण स्वतन्त्र साहचर्य चित्र साहचर्य

प्रशासन के आधार पर (On the Basis of Administration) 

व्यक्तिगत परीक्षण 

व्यक्तिगत परीक्षण में एक समय में केवल एक ही व्यक्ति का अध्ययन किया जाता है। इनमें परीक्षक को परीक्षार्थी के साथ आत्मीय सम्बन्ध स्थापित करना आवश्यक होता है। अतः इसके लिये एक कुशल और प्रशिक्षित परीक्षक की आवश्यकता होती है। व्यक्तिगत परीक्षणों में शाब्दिक के साथ-साथ क्रियात्मक पद भी होते हैं, जैसे भाटिया बैटरी बुद्धि परीक्षण। इन परीक्षणों से प्राप्त परिणाम अधिक विश्वसनीय होते हैं, क्योंकि परीक्षण की सम्पूर्ण परिस्थिति पर परीक्षक का पूरा नियन्त्रण होता है। बिने साइमन बुद्धि परीक्षण व्यक्तिगत परीक्षण का एक अच्छा उदाहरण है। 

सामूहिक परीक्षण

सामूहिक परीक्षणों को एक समय में कई व्यक्तियों पर प्रशासित किया जा सकता है। इसमें धन व समय की बचत होती है तथा इसके प्रशासन के लिये किसी प्रकार के प्रशिक्षण की आवश्यकता नहीं होती। इन परीक्षणों में महापरिस्थितियों एक-सी होती है अतः सभी परीक्षार्थियों को एकसे निर्देश प्राप्त होते हैं। यदि कही उदाहरणों को करने की आवश्यकता होती है तो भो सबके लिये समान ही होते हैं।

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 परीक्षण के प्रकार

मानकीकरण के आधार पर (On the Basis of Standardization)

मानकीकृत परीक्षण

ऐसे परीक्षण जो शिक्षाशास्त्रियों, मनोवैज्ञानिकों, अनुसंधान संस्थाओं द्वारा अनेक विशेषज्ञों की सहायता से बनाए जाते हैं तथा एक विशाल समुह पर प्रशासित करके विश्वसनीयता, वैधता एवं मानको का निर्धारण किया जाता है, मानकीकृत परीक्षण कहलाते है। वास्तव में परीक्षण के मानकीकरण में केवल वैधता, विश्वसनीयता एवं मानकों को ज्ञात करना ही पर्याप्त नहीं है। इसके साथ-साथ परीक्षण प्रशासन की विधि तथा फलांकन प्रक्रिया को निश्चित करना भी आवश्यक होता है। इस सम्बन्ध में एनेस्टेसी ने लिखा है- "मानकीकरण का तात्पर्य परीक्षण की प्रशासन एवं फलांकन विधि में एकरूपता से है।

अध्यापक निर्मित परीक्षण

अध्यापक निर्मित परीक्षण वे हैं जिन्हें अध्यापक अपने प्रयोग के लिये समय-समय पर बनाते हैं। इनका प्रयोग केवल स्कूल में ही किया जा सकता है, स्कूल के बाहर नहीं। कभी-कभी कुछ अध्यापक मिलकर भी इन परीक्षणों की रचना करते हैं। मानकीकृत परीक्षणों की भाँति इन परीक्षणों में भी वस्तुनिष्ठ पदों का प्रयोग किया जाता है। किसी विशेष परिस्थिति में इनका प्रकाशन भी किया जाता है, लेकिन फिर भी अध्यापक निर्मित परीक्षण मानकीकृत नहीं हो पाते, क्योंकि वे मानकीकृत परीक्षणों के समान वैध तथा विश्वसनीय नहीं होते। इसीलिये स्कूल के बाहर इनकी उपयोगिता नहीं होती। अध्यापक निर्मित परीक्षणों में निबन्धात्मक वस्तुनिष्ठ एवं निदानात्मक परीक्षणों को सम्मिलित किया जाता है।

फलांकन के आधार पर (On the Basis of Scoring) 

आत्मनिष्ठ परीक्षण

जिन परीक्षणों का फलांकन गुणात्मक आधार अर्थात् परीक्षक के व्यक्तिगत निर्णय के आधार पर होता है, वे आत्मनिष्ठ परीक्षण कहलाते हैं। ऐसा प्रायः निबन्धात्मक परीक्षा, साक्षात्कार, पारिस्थितिक परीक्षण आदि में होता है।

वस्तुनिष्ठ परीक्षण

यदि एक परीक्षण पर किसी परीक्षार्थी को विभिन्न परीक्षकों द्वारा एक से अंक प्रदान किये जाएँ तो वह परीक्षण वस्तुनिष्ठ कहलाता है। स्टेन्सिल, उत्तरकुंजी या मशीन की सहायता से जिन परीक्षणों पर फलांक दिये जाते हैं, वे प्रायः वस्तुनिष्ठ होते हैं।  

रूप के आधार पर (One the Basis of Form) 

गति परीक्षण

गति परीक्षणों में प्रश्न सामान्यतः कम कठिनाई के होते हैं जिन्हें परीक्षार्थी को शीघ्रातिशीघ्र हल करना होता है। इनमें प्रश्नों की संख्या इतनी अधिक होती है कि कोई भी परीक्षार्थी किसी निश्चित अवधि में इन्हें हल नहीं कर सकता। इस प्रकार किसी निश्चित समय में उसने कितनी समस्याएँ हल कीं, इस आधार पर गति का मापन हो जाता है। ओझा द्वारा निर्मित लिपिक गति एवं परिशुद्धता परीक्षण एवं सिनेसोटा लिपिक अभियोग्यता परीक्षण गति परीक्षण का अच्छा उदाहरण है।

शक्ति परीक्षण

इस प्रकार के परीक्षणों में प्रारम्भ कम कठिनाई स्तर के प्रश्नों से शुरू होकर क्रमानुसार अत्यन्त कठिनाई स्तर के प्रश्न रहते है अर्थात् प्रश्नों की कठिनाई आरोही क्रम में बढ़ती जाती है। कोई परीक्षार्थी सभी प्रश्नों को हल नहीं कर पाता। इस प्रकार शक्ति परीक्षण के माध्यम से परीक्षार्थी की किसी विषय या क्षेत्र में योग्यता की सीमा का मापन किया जाता है।  

व्यावहारिक दृष्टि से गति और शक्ति परीक्षणों में केवल अंशों का अन्तर होता है। अधिकांश परीक्षणों में शक्ति और गति दोनों को विभिन्न अनुपात में सम्बन्धित किया जाता है।

माध्यम के आधार पर (On the Basis of Medium)

परीक्षण के माध्यम के आधार पर परीक्षण को पेपर पेन्सिल परीक्षण एवं निष्पादन परीक्षण की श्रेणियों में विभक्त किया जाता है -

पेपर पेन्सिल परीक्षण

इसमें परीक्षार्थी को एक परीक्षण पुस्तिका दी जाती है। जिसमें कुछ शाब्दिक या अशाब्दिक प्रकार के पद होते हैं तथा इनका उत्तर परीक्षण पुस्तिका में अथवा अलग से दिये गए उत्तर-पत्र पर अंकित करना होता है। जलोटा का सामान्य मानसिक योग्यता परीक्षण और कैटल का संस्कृति मुक्त परीक्षण इसी प्रकार के परीक्षण हैं।

निष्पादन परीक्षण

इस प्रकार के परीक्षणों का निर्माण छोटे बालकों तथा ऐसे व्यक्तियों के लिये किया गया है जिनमें बोलने की क्षमता नहीं होती है। इनमें विभिन्न वस्तुओं, चित्रों, यांत्रिक उपकरणों, ब्लॉक आदि के द्वारा व्यक्ति की क्रियात्मक योग्यता का मापन किया जाता है। बुद्धि मापन में इनका प्रयोग किया जाता है। एलेक्जेंडर पास एलॉग परीक्षण इसी प्रकार का एक परीक्षण है। इसके अतिरिक्त भाषा के माध्यम के अनुसार भी परीक्षण को भाषाबद्ध परीक्षणों और भाषा-रहित परीक्षणों में वर्गीकृत किया जाता है। 

भाषावद्ध परीक्षण

भाषाबद्ध परीक्षण में भाषा का प्रयोग किया जाता है। इसीलिये इनका प्रयोग केवल उस भाषा को समझने तथा जानने वाले व्यक्ति ही कर सकते हैं।

भाषा-रहित परीक्षण

इन परीक्षणों में किसी प्रकार की भाषा एवं शब्दों का प्रयोग करके आलेखीय चित्रों, रेखाओं, ज्यामितीय आकृतियों आदि के द्वारा विद्यार्थी का मूल्यांकन किया जाता है। इनका निर्माण अशिक्षित, विदेशी भाषा जानने वाले एवं गूँगे-बहरे व्यक्तियों के लिये किया जाता है। कैटल द्वारा निर्मित संस्कृति मुक्त परीक्षण इसी प्रकार का परीक्षण है।

शीलगुणों के अग्धार पर (One the Basis of Traits to be Measured) 

परीक्षणों का सर्वमान्य वर्गीकरण इस आधार पर किया गया है कि वह किन शीलगुणों का मापन करता है। इस आधार पर परीक्षणों को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है -
  1. योग्यता या कौशल मापन सम्बन्धी परीक्षण 
  2. उपलब्धि मापन सम्बन्धी परीक्षण 
  3. व्यक्तित्व मापन सम्बन्धी परीक्षण 

योग्यता या कौशल मापन सम्बन्धी परीक्षण

इसके अन्तर्गत व्यक्ति की विभिन्न योग्यताओं के मापन से सम्बन्धित परीक्षणों को सम्मिलित किया जाता है, जैसे

बुद्धि परीक्षण

यह परीक्षण व्यक्ति की सामान्य मानसिक योग्यता का मापन करते हैं। इन्हें शाब्दिक-अशाब्दिक, व्यक्तिगत-सामूहिक तथा निष्पादन आदि वर्गों में वर्गीकृत किया जाता है। जैसे जलोटा का सामान्य मानसिक योग्यता परीक्षण, भाटिया का निष्पादन परीक्षण माला, कैटिल का संस्कृति मुक्ति परीक्षण, कोह का ब्लॉक डिजाइन परीक्षण आदि का प्रयोग परीक्षार्थी का बुद्धि का मापन करने के लिये आवश्यकतानुसार किया जा सकता है।

सृजनात्मक परीक्षण

आज प्रत्येक देश में जीवन के विविध क्षेत्रों में उपलब्धियों के लिये सृजनात्मकता का मापन कर उच्च सृजनात्मक योग्यता वाले व्यक्तियों का पता लगाना आवश्यक हो गया है। अन्य मानसिक प्रक्रियाओं के मापन की अपेक्षा सृजनात्मक चिन्तन का मापन एक जटिल कार्य है। चूँकि इसमें कई गुणों या योग्यताओं का समावेश रहता है। अतः किसी एक परीक्षण के द्वारा व्यक्ति की सृजनात्मकता को नहीं मापा जा सकता। यद्यपि सृजनात्मक चिन्तन के विभिन्न घटकों के मापन से सम्बन्धित कार्य कम ही हुआ है फिर भी कुछ महत्वपूर्ण परीक्षण इस प्रकार हैं- गिलफर्ड एवं मेरी फील्ड (1960) का कॉलेज छात्रों पर सृजनात्मक परीक्षण, टोरेन्स (1958) का सृजनात्मक चिन्तन का मिनेसोटा परीक्षण, पासी का सृजनात्मक परीक्षण (1972,1989). बकर मेंहदी: सृजनात्मक चिंतन का शाब्दिक परीक्षण (1985) आदि । 

अभियोग्यता परीक्षण

अभियोग्यता मनुष्य की किसी विशेष प्रकार के कार्य करने की वर्तमान क्षमता को कहते हैं। अभियोग्यता में जन्मजात योग्यता के साथ-साथ प्रशिक्षण तथा अनुभव का भी प्रभाव पड़ता है। 
अभियोग्यता परीक्षण दो प्रकार के हैं - 
  1. भेदक अभियोग्यता परीक्षण 
  2. विशिष्ट अभियोग्यता परीक्षण

भेदक अभियोग्यता परीक्षण

यह परीक्षण माला प्रकार के होते हैं अर्थात् एक परीक्षण में अनेक उप-परीक्षण होते हैं जो व्यक्ति की भिन्न-भिन्न क्षेत्रों की योग्यताओं की ओर इंगित करते हैं तथा जिन पर व्यक्ति के द्वारा प्राप्त अंकों का तुलनात्मक विवेचन करके व्यक्ति की अधिक अभिक्षमता वाले क्षेत्रों को ज्ञात कर लिया जाता है, क्योंकि यह परीक्षण व्यक्ति की विभिन्न अभियोग्यताओं में विभेद को व्यक्त करते हैं, इसलिये इन्हें भेदक अभियोग्यता परीक्षण कहा जाता है। 

विशिष्ट अभियोग्यता परीक्षण

इन परीक्षणों के माध्यम से व्यक्ति में निहित विशिष्ट योग्यताओं के सम्बन्ध में ज्ञात होता है। जैसे सीशोर संगीत योग्यता परीक्षण, मायर कला निर्णय परीक्षण, मेडिकल कॉलेज दाखिला परीक्षण, कानून कॉलेज दाखिला परीक्षण, राष्ट्रीय शिक्षक परीक्षाएँ आदि।

उपलब्धि मापन सम्बन्धी परीक्षण

इसके अन्तर्गत वे परीक्षण आते हैं जो किसी विषय में प्रशिक्षण के बाद व्यक्ति की उपलब्धि का मापन करते हैं। विद्यालयों में उपलब्धि मापन परीक्षण का प्रयोग अधिक किया जाता है। यह दो प्रकार के होते हैं 
  1. मानकीकृत उपलब्धि परीक्षण 
  2. अध्यापक निर्मित उपलब्धि परीक्षण  

मानकीकृत उपलब्धि परीक्षण

मानकीकृत उपलब्धि परीक्षणों से तात्पर्य उन परीक्षणों से है जिनमें पदों का चयन पाठ्यक्रम से किया गया हो साथ ही जिसकी प्रशासन, फलांकन एवं विवेचन विधि समरूप हो तथा जिनके मानक निर्धारित किये गए हों। यह परीक्षण भी दो प्रकार के होते हैं
  1. सामान्य उपलब्धि परीक्षण 
  2. विशिष्ट उपलब्धि परीक्षण  

अध्यापक निर्मित उपलब्धि परीक्षण

ऐसे परीक्षण जिन्हें अध्यापक अपने विद्यार्थियों के विषय सम्बन्धी ज्ञान के मापन के लिये बनाते हैं, वे अध्यापक निर्मित उपलब्धि परीक्षण कहलाते हैं। यह परीक्षण मानकीकृत नहीं होते तथा इनका प्रयोग स्कूल के बाहर नहीं किया जा सकता। 
अध्यापक निर्मित उपलब्धि परीक्षण तीन प्रकार के होते हैं -
  1. निबन्धात्मक परीक्षण
  2. वस्तुनिष्ठ परीक्षण
  3. निदानात्मक परीक्षण

निबन्धात्मक परीक्षण

इस प्रकार के परीक्षण में परीक्षार्थी किसी प्रश्न का उत्तर एक निबन्ध के रूप में देता है जिसके द्वारा विद्यार्थी के विषय सम्बन्धी ज्ञान के साथ-साथ विचारों को व्यक्त करने की शक्ति, लेखन शैली, भाषा आदि का भी मूल्यांकन हो जाता है।

वस्तुनिष्ठ परीक्षण

अध्यापक निर्मित वस्तुनिष्ठ परीक्षणों में विषय से सम्बन्धित छोटे, सरल एवं स्पष्ट प्रश्न पूछे जाते हैं जिनका उत्तर निश्चित होता है। यह उत्तर विद्यार्थी को निश्चित प्रकार से संक्षेप में देना होता है। जैसे परिवार शिक्षा का अनौपचारिक साधन है- हाँ/नहीं। इस प्रकार के परीक्षण में फलांकन सरल एवं वस्तुनिष्ठ होता है। परीक्षक के निर्णय या राय का कोई प्रभाव विद्यार्थी के अंकों पर नहीं पड़ता तथा विभिन्न परीक्षकों द्वारा विभिन्न समय में उत्तर-पत्रक का मूल्यांकन करने पर एक-से ही अंक प्राप्त होते हैं।

निदानात्मक परीक्षण

विभिन्न उपलब्धि परीक्षण एक या अधिक विषयों में विद्यार्थी द्वारा अर्जित ज्ञान का मापन करते हैं, परन्तु निदानात्मक परीक्षण उस ज्ञान प्राप्ति में आ रही बाधाओं को जानने का प्रयास करते हैं। निदानात्मक परीक्षण से प्राप्त सूचनाओं के विस्तृत विश्लेषण से छात्र की कमजोरियों का पता चल जाता है। इस आधार पर शिक्षक अपनी शिक्षण विधि में और विद्यार्थी की सीखने की प्रक्रिया में आवश्यक परिवर्तन करके उपचारात्मक शिक्षण दे सकता है।

व्यक्तित्व विशेषताओं के मापन सम्बन्धी परीक्षण

व्यक्तित्व व्यक्ति के विभिन्न शीलगुणों का योग है। मापने में इन विभिन्न शीलगुणों का चयन करके उनका मापन किया जाता है। परीक्षण की इस श्रेणी में परीक्षणों की विशाल संख्या है। विभिन्न प्रकार की व्यक्तित्व सूचियों, प्रक्षेपण विधियों, समायोजन सूचियों, पारिस्थितिक परीक्षणों, रुचि परीक्षणों, चिन्ता, नैराश्य, स्नायुदौर्बल्य परीक्षण, साक्षात्कार प्रविधियों, मूल्य तथा अभिवृत्ति मापनियों की सहायता से व्यक्तित्व की विशेषताओं को जानने का प्रयास किया जाता है।

व्यक्तित्व सूचियाँ

व्यक्तित्व सूचियों के द्वारा उन समस्त पहलुओं का निर्धारण किया जा सकता है। जिन्हें अन्य किसी विधि द्वारा ज्ञात नहीं किया जा सकता। समस्त व्यक्तित्व सूचियाँ इस सिद्धान्त पर आधारित हैं कि व्यक्तित्व विभिन्न शीलगुणों का योग है अतः व्यक्तित्व सूचियों का उद्देश्य है इन विभिन्न शीलगुणों का मापन करना और इस आधार पर व्यक्तियों का वर्गीकरण करना।

रुचि परीक्षण

रुचि किसी अनुभव में लीन होने एवं उसमें में संलग्न रहने की प्रवृत्ति है। रुचि से प्रेरित होकर व्य क्ति किसी वस्तु या विषय के प्रति आकर्षित होता है और उस पर ध्यान देता है। शैक्षिक तथा व्यावसायिक क्षेत्रों में बालक की रुचि का मापन विभिन्न रुचि परीक्षणों द्वारा किया जाता है ताकि तदनुसार उसे निर्देशन दिया जा सके। कुलश्रेष्ठ का शैक्षिक एवं व्यावसायिक रुचि प्रपत्र, स्ट्राँग का व्यावसायिक रुचि प्रपत्र इसी प्रकार के परीक्षण हैं।

समायोजन

व्यक्तित्व की परिभाषा वातावरण के साथ समायोजन पर बल देती है। समायोजन से तात्पर्य व्यक्ति की आवश्यकताओं. वातावरण के मध्य सामंजस्य बनाए रखने से है। समायोजन सूचियों के द्वारा वातावरण के विभिन्न पक्षों के प्रति व्यक्ति के समायोजन स्तर का निर्धारण किया जाता है। ए० के० पी० सिन्हा तथा आर० पी० सिंह की कॉलेज विद्यार्थियों के लिये निर्मित समायोजन सूची इसी प्रकार की है जो गृह, स्वास्थ्य, समांज, स्कूल व संवेगात्मक क्षेत्रों में विद्यार्थी के समायोजन का मापन करती है।

मूल्य परीक्षण

दुर्खीम ने अपनी पुस्तक समाजशास्त्र और दर्शनशास्त्र में लिखा है कि समूह द्वारा प्रदान किये गए प्रतिमानों, आदर्शों या वस्तुओं की प्राथमिकता ही सामाजिक मूल्य का रूप ले लेते हैं। व्यक्तित्व मूल्य अनुभव के आधार पर विकसित होते हैं। अनुभव से व्यक्ति सामान्य सिद्धान्तों का निर्माण करता है, जो धीरे-धीरे जीवन दर्शन का रूप ले लेते हैं तथा इन्हें मूल्यों की संज्ञा दी जाती है। मूल्य बालक के व्यक्तित्व एवं रुचियों को प्रभावित करते हैं अतः इनके मापन के लिये विभिन्न परीक्षणों की रचना की गई जिनमें आलपोर्ट-वर्नन एवं लिण्डजे का मूल्य परीक्षण उल्लेखनीय है। आर० के० ओझा, हरमोहन सिंह, एस० पी० कुलश्रेष्ठ ने इसका भारतीय अनुकूलन भी तैयार किया है।

अभिरुचि मापनी

व्यक्ति का व्यवहार उसकी अभिरुचि से प्रभावित होता है। अभिरुचि से तात्पर्य वह दृष्टिकोण है जिसके अनुसार वह किसी व्यक्ति, संस्था या वस्तु के प्रति एक विशेष प्रकार का व्यवहार करता है। इसके मापन से व्यक्ति विचारों को किसी विशेष समूह या वस्तु के प्रति जान सकते हैं। भूषण ने धर्म के प्रति, चौपड़ा ने शिक्षा के प्रति अभिरुचि के मापन हेतु अभिरुचि परीक्षणों की रचना की है।

प्रक्षेपी प्रविधियाँ

व्यक्तित्व के कुछ पक्ष इतने जटिल होते हैं कि उनका प्रत्यक्ष रूप से मापन करना सम्भव नहीं होता। व्यक्ति के अचेतन मन से सम्बन्धित इन जटिल पक्षों का मापन करने के लिये जिन प्रविधियों का निर्माण किया गया उन्हें प्रक्षेपण विधियाँ कहा जाता है। इनमें मुख्यतः शब्द साहचर्य विधि, चित्र साहचर्य विधि, रोर्शा स्याही के धब्बे, प्रासंगिक बोध परीक्षण (T.A.T.) आदि मुख्य हैं। इन परीक्षणों का फलांकन कठिन होता है। अतः इसके लिये प्रशिक्षित मनोवैज्ञानिकों की आवश्यकता होती है।

इस प्रकार स्पष्ट है कि परीक्षणों का वर्गीकरण विभिन्न आधारों पर किया जा सकता है, किन्तु अधिकांश शिक्षा वैज्ञानिक एवं मनोवैज्ञानिक अन्तिम आधार को ही अधिक महत्व देते हैं। चूँकि मापन का उद्देश्य विभिन्न शीलगुणों का अध्ययन करना है अतः मापे जाने वाले शीलगुणों के आधार पर ही परीक्षणों का वर्गीकरण करना चाहिये।


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