बुद्धि का मापन अर्थ, परिभाषा, प्रकार व सिद्धांत | Measurement of Intelligence

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संसार के समस्त जीवधारियों में भिन्नता पायी जाती है। जिस प्रकार शारीरिक रूप में भिन्नता पायी जाती है उसी प्रकार मानसिक योग्यता में भी भिन्नता पायी जाती है। कुछ व्यक्ति अधिक बुद्धिमान होते हैं और कुछ कम होते हैं। सभी का मानसिक स्तर एक सा नहीं होता। 

Measurement-of-Intelligence
बुद्धि का मापन

बुद्धि का अर्थ (Meaning of Intelligence)

बुद्धि क्या है ? बुद्धि का स्वरूप क्या है ? 
ऐसे प्रश्नों का उत्तर देने के लिये प्राचीन समय से प्रयास होता चला आ रहा है। प्राचीनकाल में कंठस्थ करने की योग्यता रखने वाले को योग्य समझा जाता था, परन्तु आज यह विचारधारा मान्य नहीं है। बुद्धि के अर्थ व स्वरूप को समझने के लिये समय-समय पर मनोवैज्ञानिकों व शिक्षाविदों ने अपने विचार व्यक्त किये परन्तु एकमत होने में असफल रहे, क्योंकि कोई किसी एक पहलू पर बल देता है और दूसरा किसी दूसरे पहलू पर बल देता है। परिणामतः सभी परिभाषाएँ अपूर्ण रहीं। प्रत्येक मनोवैज्ञानिक की बुद्धि सम्बन्धी अपनी धारणा है।

बुद्धि का परिभाषा (Definition of Intelligence)

गाल्टन (Galton) : बुद्धि विभेद व चयन करने की शक्ति है। "Intelligence is the power of discrimination and selection." 

बर्ट (Bert) : बुद्धि जन्मजात व्यापक मानसिक दक्षता है। "Intelligence is an innate all-round pervading mental efficiency."
 
स्टर्न (Stern)  : नवीन परिस्थितियों में समायोजन करने की योग्यता बुद्धि है। "Intelligence is the ability to adjust oneself to new problems and new situations of life."

टरमन (Terman) : अमूर्त वस्तुओं के सम्बन्ध में विचारने की योग्यता है। "Intelligence is the ability to carry out abstract thinking."

बिने (Binet) : बुद्धि तर्क, निर्णय एवं आत्म आलोचना की योग्यता है। "Intelligence is the ability and capacity to reason well, to judge well and to be self-critical."

थार्नडाइक (Thomdike) : उत्तम अनुक्रिया करने एवं नवीन परिस्थितियों के साथ समायोजन करने की योग्यता को बुद्धि कहते हैं। "Intelligence is the ability to make good responses and is demonstrated by the capacity to deal effectively with novel situations." 

बकिंघम (Buckingham) : बुद्धि सीखने की योग्यता है। "Intelligence is the ability to learn."

पेश्लर (Wechsler) : बुद्धि व्यक्ति की सम्पूर्ण शक्तियों का वह योग है अथवा सार्वभौमिक क्षमता है जिसके द्वारा वह सोद्देश्य कार्य करता है, तर्क पूर्ण ढंग से चिन्तन करता है और प्रभावी ढंग से परिवेश के साथ समायोजन करता है। "Intelligence is the aggregate or global capacity of the individual to act purposefully, to think rationally and to deal effectively with the environment."

रैक्स नाइट (Rex Knight) : बुद्धि वह योग्यता है जो उद्देश्य की पूर्ति और समस्या का समाधान करने के लिये हमारे दिमाग में विचारों को जागृत करती है। "Intelligence is the ability when we have an aim or problem in mind to discover the relevant qualities and relations of the objects or ideas that are before us and to evoke other relevant ideas."

इन परिभाषाओं के आधार पर बुद्धि है :
  • सीखने की योग्यता है। (Ability to Learn)
  • अमूर्त चिन्तन की योग्यता है। (Ability to Think Abstractly) 
  • समस्या का समाधान करने की योग्यता (Ability to Solve the Problems)
  • अनुभव से लाभ उठाने की योग्यता (Ability to Profit by Experience)
  • सम्बन्धों को समझने की योग्यता (Ability to Perceive Relationship) 
  • अपने वातावरण से सामंजस्य करने की योग्यता (Ability to Adjust to one's Environment)

बुद्धि के विषय में अब एक नया मत विकसित हो रहा है कि बुद्धि नामक कोई भी तथ्य नहीं है। प्रत्येक व्यक्ति की अपनी क्षमता होती है। किसी कार्य को करने की क्षमता की भिन्नता ही विभेद करती है। एक व्यक्ति, एक क्षेत्र में अपनी योग्यता तथा क्षमता का लाभ उठाता है, तो दूसरा व्यक्ति दूसरे क्षेत्र में लाभ उठाता है। 

स्टोडार्ड (Stoddard) ने बुद्धि के अस्तित्व को स्वीकार करते हुए कहा है कठिनता, जटिलता, अमूर्तता, आर्थिकता, उद्देश्य प्राप्यता, सामाजिक मूल्य एवं मौलिकता से सम्बन्धित समस्याओं के समझने की योग्यता को ही बुद्धि कहते हैं।"

बुद्धि के प्रकार (Kinds of Intelligence)

ई० एल० थॉर्नडाइक ने बुद्धि के तीन प्रकार दिए :

1. सामाजिक बुद्धि (Social Intelligence)

इसका अर्थ है व्यक्तियों को समझने तथा उनके साथ व्यवहार करने की योग्यता बुद्धिमान व्यक्ति अपने को समाज से अनुकूलन करने की योग्यता रखता है। वह दूसरों के साथ भी ऐसा व्यवहार करता है जो प्रभावशाली हो। 

2. मूर्त बुद्धि (Concrete Intelligence)

इसका अर्थ है वस्तुओं को जानना एवं उनका उपयोग करना। इसे मनोवैज्ञानिक यांत्रिक बुद्धि कहते हैं। इस प्रकार की बुद्धि वाला व्यक्ति एक कुशल कारीगर व अभियन्ता बन सकता है। 

3 अमूर्त बुद्धि (Abstract Intelligence)

इसका तात्पर्य शाब्दिक तथा गणितीय प्रतीकों को समझना तथा उपयोग में लाना। पढ़ने लिखने में रुचि, समस्याओं को हल करने में प्रतीकों का प्रयोग इसी प्रकार की बुद्धि का परिणाम है।

बुद्धि के सिद्धांत (Theories of Intelligence)

बुद्धि के स्वरूप को अधिक स्पष्ट रूप से समझने के लिये बुद्धि के सिद्धांतों का उल्लेख आवश्यक है।

बिने का एक कारक सिद्धांत (Unifactor) 

इस बुद्धि सिद्धांत को एक खंड सिद्धांत भी कहा जाता है। इस सिद्धांत के समर्थक बिने, टरमन व स्टर्न हैं। इनके अनुसार बुद्धि एक इकाई है। बुद्धि सर्वशक्तिशाली मानसिक शक्ति है जो व्यक्ति के समस्त मानसिक कार्यों का संचालन करती है। 

इस सिद्धांत के अनुसार यदि एक व्यक्ति किसी एक विशेष क्षेत्र में निपुण हो, तो वह अन्य क्षेत्र में भी निपुण होगा। इस सिद्धांत के समर्थकों ने निर्विवाद रूप से स्पष्ट किया कि बुद्धि की व्याख्या एक कारक के द्वारा की जा सकती है। एक कारक को ध्यान में रखते हुए बिने ने बुद्धि की व्याख्या निर्णय देने की योग्यता, टरमन ने विचारने की योग्यता एवं स्टर्न ने नवीन परिस्थितियों में समायोजन रखने की योग्यता के रूप में की, परन्तु आज इस सिद्धांत को समर्थन प्राप्त नहीं है। 

स्पीयरमैन का द्विकारक सिद्धांत (Two-Factor Theory) 

स्पीयरमैन के अनुसार बौद्धिक योग्यताओं को दो वर्गों में बाँटा जा सकता है :
  1. सामान्य तत्व या योग्यता (General Ability or G-Factor) 
  2. विशेष तत्व या योग्यता (Specific Ability or S-Factor)
सामान्य योग्यता सभी बौद्धिक कार्यों में पायी जाती है, किंतु विशिष्ट योग्यता की किसी कार्य के लिये विशेष रूप से आवश्यकता होती है। अतः सामान्य योग्यता एक होती है, किन्तु विशिष्ट योग्यतायें अनेक हो सकती है। 

द्विकारक सिद्धांत के अनुसार समस्त प्रकार की मानसिक क्रियाओं में सामान्य कारक की आवश्यकता होती है और विभिन्न मानसिक क्रियाओं में विभिन्न विशिष्ट कारकों का स्वतंत्र रूप से प्रयोग किया जाता है। हमें एक ही क्रिया में एक या कई विशिष्ट कारकों की आवश्यकता होती है।

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अतः प्रत्येक मानसिक क्रिया में एक सम्बन्धित विशिष्ट कारक के साथ-साथ सामान्य कारक पाया जाता है। इतना अवश्य है कि कुछ क्रियाओं में सामान्य कारक महत्वपूर्ण होता है और कुछ में विशिष्ट कारक की महत्ता होती है। स्पीयरमैन के अनुसार विषयों में स्थानांतरण सामान्य कारक द्वारा सम्भव होता है।

सामान्य तत्व (G-Factor)

  • सामान्य कारक जन्मजात होता है एवं स्थिर रहता है।
  • प्रत्येक व्यक्ति में सामान्य योग्यता में भिन्नता पायी जाती है। 
  • सामान्य कारक की अधिकता जिस व्यक्ति में होती है वह दूसरों की अपेक्षा अधिक सफलता प्राप्त करता है।
  • यह तत्व जीवन के सभी कार्यों में सहायक होता है।

विशिष्ट तत्व (Specific Factor)

  • यह विभिन्न व्यक्तियों में भिन्न मात्रा में पाया जाता है।
  • विभिन्न व्यक्तियों में भिन्न-भिन्न प्रकार के विशेष तत्व पाये जाते हैं।
  • प्रत्येक मानसिक क्रिया के लिये अलग प्रकार का विशेष तत्व होता है।
  • विशेष तत्व व्यक्ति को क्रिया विशेष में सफलता प्राप्त कराता है।
  • विशेष तत्व अर्जित किया जा सकता है।

स्पीयरमैन ने अपने दो कारक सिद्धांत में (1911) एक और कारक जोड़ दिया, जिसे समूह कारक (Group Factor) सिद्धांत कहते है, और उनके अनुसार सामान्य और विशिष्ट कारकों के अतिरिक्त समूह कारक सभी मानसिक क्रियाओं में सन्निहित रहता है, परन्तु मनोवैज्ञानिकों ने इस पर मतभेद प्रकट किया है। अतः यह सर्वमान्य नहीं हो सका।

थार्नडाइक का बहुकारक बुद्धि सिद्धांत (Multifactor Theory)

अमेरिकी मनोवैज्ञानिक थॉर्नडाइक के अनुसार बुद्धि कई प्रकार की शक्तियों का समूह है जिसमें कई योग्यताएँ निहित रहती हैं। उन्होंने मानसिक योग्यताओं की व्याख्या में मूल कारकों (Primary) Factor) एवं सामन्य कारकों (Common Factor) का उल्लेख किया। अंकित योग्यता, शाब्दिक योग्यता, तार्किक योग्यता, स्मृति योग्यता तथा भाषा योग्यता आदि व्यक्ति की सभी मानसिक क्रियाओं को प्रभावित करती है। 

व्यक्ति की एक विशेष योग्यता से दूसरे विषय में योग्यता का अनुमान नहीं लगाया जा सकता। संगीत में निपुण व्यक्ति कला में निपुण होगा यह अनिवार्य नहीं है। जब दो मानसिक क्रियाओं के प्रतिपादन में धनात्मक सम्बन्ध पाया जाता है। वह उनमें निहित सामान्य कारक (Common Factor) के कारण होता है। यह सामान्य कारक कुछ अंश में समस्त मानसिक क्रियाओं में निहित होता है। जैसे कि निम्नांकित चित्र से स्पष्ट है।

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Thorndike-multifactor-theory

थर्स्टन का समूह कारक बुद्धि सिद्धांत (Group Factor Theory)

इस सिद्धांत के प्रतिपादक थर्स्टन है। थर्स्टन अपनी कारक विश्लेषण विधि के लिये प्रसिद्ध है। उन्होंने अपनी इसी विधि की सहायता से बुद्धि के कुछ समूह कारकों का पृथक्करण किया। थर्स्टन ने G और S कारकों की उपस्थिति को स्वीकार नहीं किया है। इन कारकों के स्थान पर मानसिक संगठन के समूह कारकों को स्वीकार किया है।

उनके अनुसार कुछ ऐसी निश्चित मानसिक क्रियाएँ होती है जो सामान्य रूप में मूल कारक (Primary Factor) में सम्मिलित होती है जो उन्हें मनोवैज्ञानिक व क्रियात्मक एकता प्रदान करने तथा अन्य क्रियाओं में विभेद स्पष्ट करने में सहायक होती है। ये मानसिक क्रियायें समूह का निर्माण करती हैं। 

थर्स्टन ने अपने कारक विश्लेषण के आधार पर बुद्धि को निम्न मूल कारकों का समूह कहा है।
शाब्दिक योग्यता (Verbal Ability - V) : शब्द बोध, पाठन बोध, शाब्दिक तर्क आदि परीक्षणों द्वारा इसका मापन किया जाता है।
शब्द प्रवाह (Word Fluency - W) : जिस गति से प्रयोज्य शब्द प्रयोग करता है। 
आंकिक योग्यता (Number Ability - N) : जोड़, गुणा करने व गणित के प्रश्नों को हल करने में गति व शुद्धता । 
स्थान सम्बन्धी योग्यता (Spatial Ability - S) : दो या तीन परिमाणों में स्थान स्मरण करने की क्षमता।
स्मृति (Memory - M) : सम्बन्धित साहचयों को स्मरण रखने की योग्यता।
प्रत्यक्ष सम्बन्धी योग्यता (Perceptual Ability - P) : दृष्टि सम्बन्धी विवरणों को शीघ्रता एवं यथार्थता से ग्रहण करना, समानताओं व अंतरों की शीघ्र पहचान करना।
तार्किक योग्यता (Reasoning Ability - R) : दो प्रकार की तर्क शक्ति होती है। (I) आगमन तर्क (Inductive Reasoning), (II) निगमन तर्क (Deductive Reasoning)
समस्या हल करने की योग्यता (Ability to Solve Problems) : थर्स्टन का विश्वास है कि किसी एक व्यक्ति की मानसिक योग्यता का मापन रूढ़िवादी विधि से केवल एक अंक के आधार पर करना त्रुटिपूर्ण है। प्रत्येक मूल योग्यता के लिए अलग-अलग परीक्षण बनाकर उनके द्वारा किसी व्यक्ति के फलाकों को प्राप्त कर मापन करना अधिक उपयुक्त है।

बुद्धि विभिन्न समूहों में पायी जाती है। सभी मानसिक योग्यताओं का क्रियात्मक रूप से स्वतंत्र अस्तित्व है, परन्तु एक ही समूह की योग्यताओं में परस्पर सह-सम्बन्ध पाया जाता है। जैसे संगीत के अन्तर्गत तबला, हारमोनियम, सितार आदि बजाने में सह-सम्बन्ध रहता है।

थामसन का प्रतिदर्श बुद्धि सिद्धांत (Sampling Theory)

स्कॉटलैंड के मनोवैज्ञानिक जी० थामसन इस सिद्धांत के समर्थक हैं। उनके अनुसार विशिष्ट योग्यताओं का एक वर्ग या समूह होता है। एक ही वर्ग या समूह की योग्यताओं में परस्पर समानता होती है जैसे साहित्यिक योग्यता के समूह के अन्तर्गत कविता, कहानी, उपन्यास निबन्ध आदि में सम्बन्ध परस्पर रहेगा, किन्तु इन योग्यताओं का विज्ञान के समूह की योग्यताओं से सम्बन्ध नहीं रहेगा।

बर्ट एवं वर्नन का पदानुक्रमिक सिद्धांत (Hierarchial Theory)

समर्थक बर्ट और वर्नन ने मानसिक योग्यताओं को क्रमिक महत्व दिया और मानसिक योग्यताओं के निम्नलिखित स्तर प्रस्तुत किये।

1. सामान्य मानसिक योग्यता-इसके दो भाग है :
(I) क्रियात्मक, यांत्रिक और शारीरिक योग्यताएँ। 
(II) शाब्दिक, सांख्यिक और शैक्षिक योग्यताएँ।

2. उपर्युक्त दोनों स्तर की योग्यताओं का अनेक मानसिक योग्यताओं में विभाजन जैसे स्मरण, कल्पना विचार आदि।

3. विशेष मानसिक योग्यताएँ।

गिलफोर्ड का त्रिआयाम बुद्धि सिद्धान्त (Three Dimensional Theory)

इस सिद्धान्त के प्रतिपादक गिलफोर्ड ने तीन मौलिक मानसिक योग्यताओं के आधार पर बुद्धि की संरचना का वर्णन किया है :
  1. संक्रिया (Operations) अर्थात् चिंतन का कार्य । 
  2. विषय-वस्तु (Content) वे पद जिनके सम्बन्ध में चिंतन किया जाता है।
  3. उत्पादन (Product Units)

1. संक्रिया (Operations)

संक्रिया के आधार पर मानसिक योग्यताओं के पाँच मुख्य समूह है : 
  1. संज्ञान (Cognition) : सीखने की आधारभूत संक्रिया
  2. स्मृति (Memory) : किसी सीखी हुई विषय-वस्तु को धारण करना
  3. अपसारी चिंतन (Divergent Thinking) : से व्यक्ति विविध दिशाओं में सोचकर नवीनता (Novelty) का सृजन करने का प्रयास करता है। अतः यह सृजनात्मकता से सम्बन्धित है।
  4. अभिसारी चिंतन (Convergent Thinking) : परंपरागत मान्य सूचनाओं को प्रदान करता है। 
  5. मूल्यांकन (Evaluation) : के आधार पर किसी निष्कर्ष पर पहुँचना

2. विषय वस्तु (Content)

यह बुद्धि का दूसरा कारक है। इसमें चार प्रकार की विषय-वस्तु होती है -
  1. आकृतिक (Figural) : वस्तु को आँखों से देखते हैं। यह आकार, रूप और रंग निर्मित होती है। 
  2. सांकेतिक (Symbolic) : सामग्री में बहुधा शब्द अंक तथा परंपरागत चिन्ह होते हैं जो अंकों के रूप में व्यवस्थित होते हैं। 
  3. शाब्दिक (Semantic) : वस्तु में शाब्दिक अर्थ होते हैं।
  4. व्यावहारिक (Behavioural)

3. उत्पादन (Products)

जब किसी विशेष प्रकार की विषय-वस्तु से निश्चित संक्रिया का प्रयोग किया जाता है, उस स्थिति में छः प्रकार के उत्पादन होते है: 
  1. इकाइयाँ (Units), 
  2. वर्ग (Class), 
  3. सम्बन्ध (Relations), 
  4. पद्धतियाँ (Systems), 
  5. स्थानान्तरण (Transformations)
  6. अपादान (Implications) 
ये सभी कारक विश्लेषण पर आधारित होते हैं। 

इस प्रकार कारकों के तीन प्रकार के वर्गीकरण को निम्न चित्र द्वारा प्रदर्शित किया जा सकता है:

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Guilford's Three Dimensional Structure

हैब एवं कैटिल का आधुनिक बुद्धि सिद्धांत (Hebb and Cattell's Concept of Intelligence)

हैब व कैटिल ने बुद्धि के क्षेत्र में फल्यूड (Fluid) तथा क्रिसटेलाइज्ड (Crys-tallised) सिद्धांत द्वारा नवीन योगदान दिया। फल्यूड सामान्य योग्यता वंशानुक्रम कारणों पर निर्भर करती है, जबकि क्रिस्टेलाइज्ड सामान्य योग्यता, अनुभव, सीखने तथा वातावरण कारकों के परिणामस्वरूप होती है। 

जैविक परिपक्वता से पूर्व फल्यूड सामान्य योग्यता तथा क्रिस्टेलाइज्ड सामान्य योग्यता के मध्य वैयक्तिक भिन्नताएँ सांस्कृतिक अवसरों एवं रुचियों के अंतरों के परिणामस्वरूप पायी जाती है।

पियाजे का बुद्धि सिद्धांत (Piaget Theory of Intelligence)

इस सिद्धांत के अनुसार बालक प्रारम्भ से ही अपने कार्यों एवं अनुभवों द्वारा नवीन तथ्यों को ग्रहण करता है जिसे आत्मीकरण कहते है। आत्मीकरण से तात्पर्य समायोजन से है। सीखने की यह आधारभूत प्रक्रिया जीवनपर्यन्त चलती है। आत्मीकरण की प्रक्रिया समजन (Assimilation) के द्वारा परिवर्तित होती है। कई परिस्थितियों तथा पदार्थों के साथ क्रियाएँ करने में बालक को अवरोध होता है तथा जिसके कारण उसके व्यवहार में परिवर्तन आता है और वह उन परिस्थितियों से सामंजन बनाये रखने का प्रयास करता है। 

इस प्रकार आत्मीकरण की प्रक्रिया द्वारा उसके अनुभवों में वृद्धि होती है। और संमजन की प्रक्रिया द्वारा उसको वातावरण से सफल अनुकूलन में सहायता मिलती है। इस प्रकार ये दोनों बौद्धिक वृद्धि की नियंत्रक समझी जाती है।

बुद्धि मापन की विधि (Measuring Intelligence)

मनोविज्ञान की महत्वपूर्ण देन बुद्धि परीक्षाएँ व बुद्धि का मापन है। बुद्धि मापन का अर्थ यह ज्ञात करना कि उसमें कौन-कौन-सी मानसिक योग्यताएँ कितनी है। बुद्धि परीक्षा किसी प्रकार का कार्य या समस्या होती है जिसके द्वारा किसी व्यक्ति के मानसिक स्तर का मापन किया जा सकता है। बुद्धि परीक्षण वे परीक्षण हैं जो केवल एक अंक के माध्यम से व्यक्ति के सामान्य बौद्धिक स्तर व उसमें निहित विशिष्ट योग्यताओं की ओर संकेत करते हैं। इन परीक्षणों के माध्यम से व्यक्ति के सामने विभिन्न शाब्दिक व अशाब्दिक कार्यों को प्रस्तुत किया जाता है एवं उसके द्वारा दिये गये उत्तरों के आधार पर उसके बौद्धिक स्तर का मापन किया है। व्यक्ति की बुद्धि मापने के लिये हमें उसके निष्पादन का मापन दो आधारों पर करना होता है।

1. मानसिक एवं शारीरिक आयु (Mental and Chronological Age)

मानसिक आयु व्यक्ति के बुद्धि स्तर की सूचक है। मानसिक आयु, आयु विशेष में बालक की मानसिक परिपक्वता का परिचय देती है। यह बालक की सामान्य मानसिक योग्यता बतलाती है। इसका प्रयोग सर्वप्रथम बिने ने 1908 के बुद्धि परीक्षण में किया था। बालक जिस आयु स्तर के प्रश्नों को हल कर लेता है उसकी मानसिक आयु उतनी ही मानी जाती है। मानसिक आयु का निर्धारण करने के लिये विभिन्न आयु के लिये विभिन्न बुद्धि परीक्षणों का निर्माण किया गया है जैसे 

किसी बुद्धि परीक्षण में 10 वर्ष के बालक के लिये निर्धारित औसत मान 50 है तो जिस बालक का इस परीक्षा का औसत मान 50 आयेगा उसकी मानसिक आयु 10 वर्ष मानी जाएगी चाहे उसकी आयु 9 वर्ष हो या 11 वर्ष 

शारीरिक आयु से तात्पर्य बालक की वास्तविक आयु से है जो उसके जन्म से लेकर वर्तमान समय तक की अवधि होती है।

बुद्धि-लब्धि (Intelligence Quotient)

बुद्धि परीक्षण के आधार पर बालक की मानसिक व शारीरिक आयु के मध्य का सम्बन्ध है। बुद्धि परीक्षा का परिणाम बुद्धि-लब्धि के द्वारा दर्शाया जाता है। यह बालक की सामान्य मानसिक योग्यता की परिचायक है। टरमन ने बिने के मानसिक आयु के सिद्धांत को स्वीकार करके बुद्धि-लब्धि के विचार का प्रतिपादन किया। टरमन ने इसे ज्ञात करने के लिये निम्न सूत्र दिया।
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बुद्धि-लब्धि का वर्गीकरण (Classification of I.Q.)

टरमन ने बुद्धि-लब्धि के आधार पर बौद्धिक स्तर की विभिन्न श्रेणियों का उल्लेख किया जो निम्न प्रकार से है :

1.बुद्धि-लब्धिबुद्धि का प्रकार
2.140 से अधिकप्रतिभाशाली (Genius)
3.120 से 140अतिश्रेष्ठ बुद्धि (Very Superior)
4.110 से 120श्रेष्ठ बुद्धि (Superior)
5.90 से 110सामान्य बुद्धि (Average)
6.80 से 90मन्द बुद्धि (Dull)
7.70 से 80क्षीण बुद्धि (Feebleminded)
8.50 से 70मूढ़ (Morone)
9.25 से 50हीन (Imbecile)
10.0 से 25जड़ (Idiot)

बिने के अनुसार बाल्यावस्था से किशोरावस्था तक बुद्धि-लब्धि का विकास होता है। बाद में यह स्थिर हो जाती है। बुद्धि-लब्धि पर वातावरण का प्रभाव पड़ता है। बालक की शारीरिक व मानसिक अवस्था उसकी बुद्धि-लब्धि को प्रभावित करती है।

बुद्धि परीक्षण के प्रकार (Types of Intelligence Test)

सन् 1905 में बिने के द्वारा प्रथम बुद्धि परीक्षण के निर्माण के बाद अनेक बुद्धि परीक्षणों का निर्माण हुआ। बुद्धि परीक्षणों को निम्नलिखित रूप से वर्गीकृत किया जा सकता है।

प्रशासन के आधार परविषय वस्तु व भाषा के आधार पररूप के आधार पर
वैयक्तिक बुद्धि परीक्षण (Individual Test)शाब्दिक (Verbal)गति (Speed)
सामूहिक बुद्धि परीक्षण (Group Test)अशाब्दिक, क्रियात्मक (Nonverbal)शक्ति (Power)

वैयक्तिक बुद्धि परीक्षण (Individual Intelligence Test)

इन परीक्षणों को एक समय में केवल एक ही व्यक्ति पर प्रशासित किया जाता है। परीक्षणकर्ता एक समय में केवल एक ही व्यक्ति पर परीक्षण प्रशासित करता है और उसकी प्रतिक्रियाओं के आधार पर उसकी बुद्धि का मापन करता है। इस प्रकार के परीक्षण का प्रशासन कुशल व प्रशिक्षित परीक्षणकर्ता कर सकते हैं।

इस प्रकार के परीक्षणों में एक समय में एक ही व्यक्ति की बुद्धि का मापन होता है। अतः परीक्षण के पद क्रियात्मक, शाब्दिक व अशाब्दिक किसी भी प्रकार के हो सकते है अथवा एक ही परीक्षण में तीनों पदों को सम्मिलित किया जा सकता है। तीनों पदों की सहायता से बुद्धि का गहन अध्ययन हो सकता है। मन्द बुद्धि बालकों, चिकित्सा व निर्देशन में इन परीक्षणों के प्रयोग से अध्ययन सम्भव हो सकता है। 

कुछ महत्वपूर्ण वैयक्तिक बुद्धि परीक्षण इस प्रकार है: बिने-साइमन मापनी, टरमन स्टैनफोर्ड संशोधन, वैश्लर बेलेव्यू परीक्षण, भाटिया बैटरी आदि। वैयक्तिक बुद्धि परीक्षणों की सीमाएँ भी हैं जो इस प्रकार हैं :
  • कुशल प्रशिक्षित परीक्षणकर्त्ताओं के अभाव में इन परीक्षणों का उपयोग कम हो पाता है।
  • इन परीक्षणों के प्रशासन व मानकीकरण में कठिनाई होती है। 
  • एक समय में केवल एक ही व्यक्ति पर परीक्षण प्रशासित किया जाता है। धन व समय अधिक व्यय होता है।
  • इन परीक्षणों के अंकन की विश्वसनीयता कम होती है।

सामूहिक बुद्धि परीक्षण (Group Intelligence Tests)

बिने साइमन व टरमैन ने जो बुद्धि परीक्षाएँ बनाई वे व्यक्तिगत थीं। कुछ समय बाद एक ऐसी विधि की आवश्यकता अनुभव की गयी जिसके द्वारा एक समय में बहुत से व्यक्तियों की परीक्षा ली जा सके। इस प्रकार के परीक्षण का जन्म प्रथम विश्व युद्ध के समय हुआ। आर्मी अल्फा तथा आर्मी बीटा परीक्षणों का निर्माण किया गया। आर्मी अल्फा परीक्षण शिक्षित व्यक्तियों के लिये तथा आर्मी बीटा परीक्षण अशिक्षित व्यक्तियों के लिये था। 

इन परीक्षणों का प्रयोग एक ही समय में विशाल समूह पर सरलता से किया जा सकता है। समूह निर्देशन में इनका प्रयोग किया जा सकता है। यह परीक्षण व्यावहारिक दृष्टि से अधिक उपयोगी है। व्यक्तियों के चयन व वर्गीकरण में इनका उपयोग प्रायः अधिक किया जाता है। इन्हें साधारण अध्यापकों के द्वारा सफलतापूर्वक प्रयोग में लाया जा सकता है। इनके द्वारा समय, धन, व श्रम की बचत होती है, क्योंकि अनेक व्यक्तियों पर एक ही साथ प्रशासित हो सकते हैं। इन परीक्षणों का मानकीकरण भी सरलता से किया जा सकता है और यह परीक्षण अधिक वस्तुनिष्ठ होते हैं।

इन परीक्षणों की सीमाएँ इस प्रकार हैं :
  • यह परीक्षण समस्यात्मक व कम आयु के बच्चों के लिये उपयोगी नहीं हैं।
  • व्यक्तिगत बुद्धि परीक्षणों की तुलना में इन परीक्षणों द्वारा बुद्धि का गहन अध्ययन सम्भव नहीं है। 
  • यह परीक्षण अधिक विश्वसनीय नहीं होते हैं।
वर्तमान में इन परीक्षणों का प्रयोग अधिक किया जा रहा है। 

व्यक्तिगत व सामूहिक बुद्धि परीक्षणों में अंतर (Difference Between Individual and Group Intelligence Test)

S.No.व्यक्तिगत परीक्षणसामूहिक परीक्षण
1इन परीक्षणों के प्रशासन में अधिक समय लगता है।इनके प्रशासन में कम समय लगता है।
2एक समय में एक ही व्यक्ति पर प्रशासित हो सकते हैं।एक विशाल समूह पर प्रशासित हो सकते हैं।
3इन परीक्षणों का प्रयोग केवल शिक्षित व्यक्ति कर सकते हैं।इन परीक्षणों का प्रयोग सामान्य व्यक्ति भी थोडे प्रशिक्षण के बाद कर सकता है।
4यह परीक्षण छोटे बालकों के लिये उपयुक्त है।यह परीक्षण बड़े बालकों व वयस्कों के लिये उपयुक्त हैं।
5प्रश्नों का स्तर कठिन होता है।प्रश्न सरल होते हैं।
6अधिक धन व्यय होता है।धन की आवश्यकता अपेक्षाकृत कम होती है।
7इनमें वातावरण अनौपचारिक रहता है।इनमें वातावरण में औपचारिकता आ जाती है।
8इनमें निष्कर्ष अधिक वैध व विश्वसनीय होते हैं।यह कुछ कम विश्वसनीय होते हैं।
9इनके द्वारा प्राप्त अंकों की गुणात्मक व्याख्या सम्भव है।इन पर प्राप्त अंकों की मानकों की सहायता से व्याख्या की जाती है।
10इसमें बालक व परीक्षणकर्ता का निकट सम्पर्क होता है।इसमें निकटता का अभाव रहता है।
11इनमें सामूहिक बुद्धि का पता नहीं लग सकता।सामूहिक बुद्धि का अनुमान लगाया जा सकता है।

शाब्दिक बुद्धि परीक्षण (Verbal Intelligence Tests)

यह वह परीक्षण हैं जिनमें शब्दों व भाषा के माध्यम से समस्याएँ बालक के समक्ष प्रस्तुत की जाती है और बालक इन समस्याओं का समाधान करने में भाषा का प्रयोग करता है। शाब्दिक परीक्षण प्रायः कागज कलम परीक्षण (Paper Pencil Test) या लिखित परीक्षण होते हैं। मौखिक रूप में भी इनका प्रयोग होता है। यह वैयक्तिक व सामूहिक दोनों प्रकार के होते हैं। इन परीक्षणों में बालक का शब्द विस्तार, समानार्थक शब्द, विलोम शब्द, वाक्य पूर्ति, वाक्य रचना, विभिन्न सूचनाओं को प्राप्त करना व अंक विस्तार आदि को सम्मिलित किया जाता है। 
बिने साइमन, जलोटा, टंडन व मेहता के परीक्षण शाब्दिक बुद्धि परीक्षणों के उदाहरण है।

इन परीक्षणों का प्रशासन सरलता से किया जा सकता है। इनकी विश्वसनीयता व वैधता अधिक होती है। छात्रों की बुद्धि का मापन करने के लिये इन परीक्षणों को अधिक प्रयोग में लाया जाता है। यह अल्पव्ययी होते हैं। इन परीक्षणों की सीमाएँ इस प्रकार हैं.
  • भाषा का प्रयोग होने के कारण यह केवल पढ़े-लिखे लोगों पर ही प्रयुक्त हो सकते हैं। अतः इनका क्षेत्र सीमित रह जाता है। 
  • छोटे बच्चों व मन्द बुद्धि लोगों पर इनका प्रयोग सम्भव नहीं है।
  • इन परीक्षणों के द्वारा बुद्धि मापन को सांस्कृतिक, सामाजिक व आर्थिक स्थितियाँ प्रभावित करती हैं।
  • इन परीक्षणों के लिये अनुभवी व प्रशिक्षित विशेषज्ञों की आवश्यकता पड़ती है।

अशाब्दिक बुद्धि परीक्षण (Non-Verbal Intelligence Tests)

इन परीक्षणों में भाषा का प्रयोग नहीं किया जाता है। इनमें चित्रों, आकृतियों व निर्जीव वस्तुओं के माध्यम से समस्याएँ प्रस्तुत की जाती हैं और बुद्धि का मापन होता है। इन परीक्षणों में प्रश्नों के अन्तर्गत कोई चित्र बनवाया जाता है. वर्गों की आपूर्ति करायी जाती है और चित्र में गलती इत्यादि बतलानी होती है। इनको सामूहिक व व्यक्तिगत दोनों प्रकार से प्रशासित किया जाता है। परन्तु इन परीक्षणों के निर्देश कभी-कभी भाषा के माध्यम से व्यक्त किये जाते हैं। यह दो प्रकार के हो सकते हैं
  1. कागज कलम परीक्षण (Paper Pencil Tests) 
  2. निष्पादन परीक्षण (Performance Tests)

1. कागज कलम परीक्षण

इन्हें लिखित परीक्षण भी कहा जाता है तथा इस प्रकार के परीक्षणों में चित्रों, आकृतियों या संख्याओं की सहायता से कागज पर समस्याएँ प्रस्तुत की जाती है तथा जिनका उत्तर परीक्षार्थी कागज पर ही देता है। प्रमिला पाठक का ड्राइंग ए मैन टेस्ट, रामनाथ कुन्दु का अशाब्दिक बुद्धि परीक्षण तथा रेवेन्स प्रोग्रेसिव मैट्रेसेस टेस्ट आदि प्रमुख परीक्षण हैं। 

2. निष्पादन बुद्धि परीक्षण

इन परीक्षणों का प्रयोग विशेष रूप से उन लोगों के लिये किया जाता है जो भाषा का प्रयोग नहीं कर सकते हैं या जो निरक्षर हैं। ये परीक्षाएँ प्रायः व्यक्तिगत रूप से ली जाती हैं।

(I) चित्रांकन परीक्षा : इससे बालक को कागज पेंसिल दे दी जाती है और उससे कहा जाता है कि किन्हीं दो फलों के चित्र बनाओ अथवा तितली का चित्र बनाओ। बालक की चित्र की पूर्णता के आधार पर अंक दिये जाते हैं। 

(II) चित्र पूर्ति परीक्षा : बालक को चित्र दे दिया जाता है व उसे पूरा करने को कहा जाता है।

(III) भूल-भुलैया परीक्षा : ऐसा रेखाचित्र दिया जाता है जिसमें अनेक रास्ते बने होते है। बालक को एक स्थान से दूसरे सिरे तक बिना रुकावट के पहुँचना होता है।

भूल-भुलैया-परीक्षा
भूल-भुलैया परीक्षा

(IV) आकृति फलक परीक्षा : एक बोर्ड में अनेक आकृतियाँ, जैसे गोलाकार, अर्द्धगोलाकार व त्रिकोणाकार आदि बनी होती है उनमें लकड़ी के कटे टुकड़ों को बैठाना होता है जो बालक नियत समय पर ठीक टुकड़े बैठा लेता है उसे बुद्धिमान समझा जाता है।

अशाब्दिक बुद्धि परीक्षणों का प्रयोग छोटे बच्चों, अशिक्षितों व अन्य भाषीय व्यक्तियों व अल्प बुद्धि व्यक्तियों के लिये किया जा सकता है। यह परीक्षण अधिक विश्वसनीय तथा वैध होते है, क्योंकि इन पर सांस्कृतिक, सामाजिक व आर्थिक कारकों का प्रभाव नहीं पड़ता।

इन परीक्षणों की निम्नलिखित सीमाएँ हैं : 
  • इन परीक्षणों का निर्माण व प्रयोग अधिक व्ययसाध्य होता है।
  • कुशल प्रशिक्षित व्यक्तियों द्वारा इनका प्रयोग किया जा सकता है। 
  • यह परीक्षण व्यावहारिक दृष्टि से कम उपयोगी है।

शाब्दिक व अशाब्दिक बुद्धि परीक्षणों में भिन्नता

SNशाब्दिक बुद्धि परीक्षणअशाब्दिक बुद्धि परीक्षण
1.मानसिक समस्याएँ भाषा के माध्यम से प्रस्तुत की जाती हैं।चित्रों, आकृतियों व निर्जीव वस्तुओं के माध्यम से मानसिक समस्याएँ प्रस्तुत की जाती हैं।
2.इनको केवल पढ़े-लिखे लोगों पर प्रयोग किया जा सकता है।इनका प्रयोग बिना पढ़े लोगों, बालको व मन्द बुद्धि पर भी किया जा सकता है।
3.बालक की सांस्कृतिक पृष्ठभूमि परीक्षण परिणामों को प्रभावित करती है।बालक की सांस्कृतिक पृष्ठभूमि का परीक्षण परिणामों पर प्रभाव पड़ता है।
4.शाब्दिक बुद्धि परीक्षण में कम धन खर्च होता है।इसमे अधिक धन खर्च होता है।

गति बुद्धि परीक्षण (Speed Intelligence Tests)

इस प्रकार के परीक्षणों में प्रश्न सामान्यतः कठिन होते हैं। इसमें समय सीमा कम होती है तथा प्रश्नों की संख्या इतनी अधिक होती है कि सामान्यतः उत्त समयावधि में सभी प्रश्नों का उत्तर देना कठिन होता है। अतः निश्चित समयावधि में परीक्षार्थी ने कितनी समस्याएँ हल कीं इससे गति का मापन होता है जैसे डॉ० जलोटा के बुद्धि परीक्षण में 20 मिनट में 100 प्रश्नों के उत्तर देने होते हैं।

शक्ति परीक्षण (Power Tests)

शक्ति बुद्धि परीक्षणों में प्रश्नों को कठिनाई के स्तर से प्रस्तुत किया जाता है। इससे ज्ञात होता है कि बालक किस कठिनता स्तर तक के प्रश्नों को हल करने की मानसिक योग्यता रखता है। उसे इतना समय दिया जाता है कि वह सभी प्रश्नों को हल कर सके। अधिकांशतः बुद्धि परीक्षणों में शक्ति व गति को विभिन्न अनुपात में सम्मिलित किया जाता है जैसे एलेक्जेंडर का पास अलौंग परीक्षण

कुछ प्रचलित बुद्धि परीक्षण

बिने साइमन मापनी व उसके संशोधन 

सर्वप्रथम बिने ने साइमन के सहयोग से 1905 में एक बुद्धि मापनी का निर्माण किया जिसे बिने साइमन बुद्धि मानक्रम कहा जाता है। उन्होंने इसे 1908 में और पुनः 1911 में परिवर्तित व संशोधित किया। इसमें कुल 54 प्रश्न थे।

यह प्रश्न इस प्रकार थे कि कम आयु के बालक अधिक आयु वाले बालकों के प्रश्नों का उत्तर नहीं दे सकते थे। यह परीक्षण 3 से 15 वर्ष तक के बालकों के लिये था। प्रत्येक वर्ष के लिये 5 प्रश्न थे, चार वर्ष के लिये 4 प्रश्न थे। 11 व 13 वर्ष के लिये कोई प्रश्न नहीं थे। बिने स्केल का मुख्य दोष यह था कि यदि किसी आयु का बालक अपनी आयु के निर्धारित प्रश्नों का उत्तर नहीं दे पाता था तो उसकी मानसिक आयु उसकी जीवन आयु से कम समझी जाती थी।

अनेक दोषों के उपरांत भी परीक्षण ने विश्व के मनोवैज्ञानिकों का ध्यान आकर्षित किया, क्योंकि इसका उद्देश्य पेरिस के स्कूल में अध्ययन करने वाले मानसिक रूप से दुर्बल बालकों का पता लगाना, मानसिक भिन्नता का अध्ययन व प्रखरता तथा जड़ता की मात्राओं में अन्तर का अध्ययन करना था। 

अतः परीक्षण में सुधार के लिये लंदन में सिरिल बर्ट और अमेरिका में स्टेनफोर्ड विश्वविद्यालय के प्रोफेसर लेविस एम० टर्मन ने सराहनीय कार्य किया। टरमेन ने बिने के मानक्रम के अनेक दोषों को दूर करके 1916 में नया रूप दिया जो स्टेनफोर्ड बिने मानक्रम के नाम से प्रसिद्ध हुआ। उसने 1937 में व पुनः 1960 में अपने सहयोगी मॉड ए० मैरिल की सहायता से संशोधित किया। यह स्केल 2 से 14 वर्ष तक के बालकों के लिये है। इसमें कुल 90 प्रश्नावलियाँ हैं। उदाहरण हेतु तीन वर्ष के बालकों के लिये निम्नलिखित प्रश्न है। 
  • अपने परिवार का नाम बताना।
  • अपने को बालक या बलिका होना बताना।
  • 6-7 अक्षरों के वाक्य को दोहराना। 
  • अपने मुँह, नाक, आँखों आदि को उँगली से बताना।
  • चाकू, चाभी, छैनी आदि को देखकर उनका नाम बताना।
  • किसी चित्र को देखकर उसकी मुख्य बातें बताना। 
प्रत्येक आयु के बालकों की प्रश्नावली के दो भाग हैं : L और M, प्रत्येक भाग में 6 कार्य या प्रश्न हैं। विभिन्न आयु के बालकों के लिये प्रत्येक प्रश्न के लिये मानसिक आयु निश्चित है। जैसे 3 से 10 वर्ष तक के बालकों के लिये प्रत्येक प्रश्न के लिये 2 माह की मानसिक आयु, 12 वर्ष के लिये 3 माह की 14 वर्ष के लिये 4 माह की निर्धारित है। 

अतः यदि 10 वर्ष की आयु का बालक 8 वर्ष की आयु के सब प्रश्नों को, 10 वर्ष की आयु के 4 प्रश्नों को और 12 वर्ष की आयु के दो प्रश्नों को हल करता है, तो उसकी मानसिक आयु = 8 वर्ष + 8 माह + 6 माह होगी।
टरमन तथा मेरिल स्टैनफोर्ड बुद्धि परीक्षण, 1960 का हिन्दी अनुकूलन डॉ० एल० के० कुलश्रेष्ठ ने किया।

परीक्षण के सभी उपपरीक्षणों में परिवर्तन नहीं किया गया है, केवल उन्हीं में परिवर्तन किया गया है जिनमें भारतीय परिस्थितियों के अनुसार परिवर्तन आवश्यक था। इस परीक्षण में 2 से 6 वर्ष तक के बालकों के लिये कुत्ता, बिल्ली, गुड़िया, प्याला आदि छोटे खिलौने तथा लकड़ी के टुकड़े है। इस परीक्षण में 18 वर्ष तक की आयु के लोगों के मानक उपलब्ध है।

वैश्लर की वयस्क बुद्धि मापनी (Wechsler's Adult Intelligence Scale) 

सन् 1949 में वैश्लर ने बच्चों की बुद्धि के मापन हेतु एक मापनी का निर्माण किया। इसके पश्चात् इसके सिद्धांतों पर आधारित उसने 1955 में वयस्क बुद्धिमापनी की रचना की जिससे किशोरों व वयस्कों की बुद्धि को मापित किया जा सके। इसमें शाब्दिक व निष्पादन दोनों प्रकार के परीक्षणों की विशेषताएँ हैं। परीक्षण के दो भाग हैं - प्रथम भाग में 6 उपभाग है और सभी भागों में परीक्षण पद शाब्दिक हैं जो निम्न क्षेत्रों से सम्बन्धित हैं सूचनाएँ (Information), सामान्य बोध (General Comprehension), अंकगणितीय तर्क (Arithmetical Reasoning), साम्यता (Similarities), शब्द भण्डार (Vocabulory) तथा अंक विस्तार (Digit Span) परीक्षण के दूसरे भाग के पद निष्पादन से सम्बन्धित हैं जिनमें निम्न क्षेत्रों को सम्मिलित किया गया है. चित्र व्यवस्था (Picture Arrangement). चित्र समापन (Picture Complition), ब्लॉक डिजाइन (Block Design), वस्तुसंग्रह (Object Assembly) एवं चिन्ह विस्तृत (Digit Symbol).

वैश्लर के इस परीक्षण को 16 वर्ष से 64 वर्ष तक की आयु के व्यक्तियों पर प्रशासित किया जा सकता है। इस परीक्षण के प्रत्येक उपभाग की अर्द्ध-विच्छेद विश्वसनीयता गुणांक का मान 0-65 से 0.94 तक है।

स्टैनफोर्ड बिने मापनी 1937 और इस परीक्षण में सहसम्बन्ध गुणांक 0.85 इस परीक्षण और रेवेन्स प्रोग्रेसिव मैट्रिक्स में सहसम्बन्ध गुणांक 0-72 है। इस मापनी के मानक विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों के 1700 व्यक्तियों 850 स्त्रियाँ एवं 850 पुरुषो पर आधारित है। इसके अतिरिक्त जाति, व्यवसाय, ग्रामीण, शहरी, शैक्षिक स्तर के आधार पर भी मानकों को निर्धारित किया गया। 65 वर्ष से अधिक आयु वाले 350 व्यक्तियों पर भी इसके मानक ज्ञात किये।

अलेक्जेंडर का पास एलांग परीक्षण

यह परीक्षण 1932 में प्रकाशित हुआ। इसका प्रयोग 7 से 18 वर्ष तक की आयु के लोगों पर किया जा सकता है। शिक्षित अशिक्षित, बहरे-गूँगे तथा किसी भी प्रकार की भाषा जानने वाले लोगों पर इस परीक्षण को प्रशासित किया जा सकता है। लड़कों के लिये इस परीक्षण का विश्वसनीयता गुणांक 0.87 तथा लड़कियों के लिये 0.92 है। इस परीक्षण में लकड़ी की चार छोटी मंजूषायें (boxes) है जिनका एक किनारा लाल तथा दूसरा नीला है एवं 13 आयताकार अथवा वर्गाकार लकड़ी के गुटके हैं। यह लकड़ी के गुटके भी लाल तथा नीले रंग के हैं। इनकी सहायता से परीक्षार्थी को प्रस्तुत आकृति चित्रों के अनुसार विभिन्न आकृतियों की रचना करनी होती है। प्रयोज्य को 9 डिजाइनें क्रमशः तैयार करनी होती हैं।

रेवेन्स प्रोग्रेसिव मैट्रिक्स (Ravan's Progressive Metrics) 

इसकी रचना सन् 1938 में हुई। इस परीक्षण के दो प्रतिरूप हैं : एक बालकों के लिये जिसे रंगीन प्रोग्रेसिव मैट्रिक्स (Coloured Progressive Matrics) के नाम से जाना जाता है तथा दूसरा वयस्कों के लिये स्टैन्डर्ड प्रोग्रेसिव मैट्रिक्स के नाम से जाना जाता है। अब इसके एक अन्य प्रारूप उच्च प्रोग्रेसिव मैट्रिक्स का प्रकाशन भी हो गया है। बच्चों के परीक्षण में तीन उपपरीक्षण है और प्रत्येक में 12-12 पद है। पहला परीक्षण सरल, दूसरा उससे कठिन और तीसरा सबसे कठिन है। 

इस परीक्षण की 36 रंगीन आकृतियों का उत्तर देने में 30 मिनट का समय लगता है। वयस्कों के लिये इस परीक्षण में 5 भाग है, प्रत्येक में 12 पद हैं। कुल मिलाकर 60 पद हैं। यह पद बुद्धि के कई कारकों से सम्बन्धित हैं-अमूर्त चिंतन, विभेदकारी चिंतन, तार्किक चिंतन, समझने योग्य शक्ति, दूरी सम्बन्ध आदि। इस परीक्षण में प्रयोज्य को अनेक टुकड़ों में से एक टुकड़े को छाँटकर चित्र में रिक्त स्थान पर रखकर चित्र को पूरा करने को कहा जाता है। इस परीक्षण की आलोचना करते हुए मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि यह केवल अमूर्त चिंतन का मापन करता है। इसके अतिरिक्त यह पूर्णतः संस्कृतिमुक्त परीक्षण नहीं है।

भाटिया निष्पादन बुद्धि परीक्षण - 1955 (Bhatia's Performance Intelligence Scale)

परीक्षण निर्माण का उद्देश्य भारतीय जनता पर इसका प्रयोग था। भारत की जनता पढ़ी-लिखी, अनपढ, गाँव अथवा शहर में रहने वाली ही नहीं है वरन अनेक प्रकार की भाषायें बोलने वाली भी है। यह परीक्षण 11 से 16 वर्ष तक के बालक बालिकाओं के लिये है। इनका मानकीकरण 1154 बच्चों पर किया गया, जिसमें 642 शिक्षित तथा 512 अशिक्षित बच्चे थे। इस परीक्षण में पाँच परीक्षण हैं कोह ब्लाक डिजाइन परीक्षण, अलेक्जेंडर पास एलॉग परीक्षण, आकृति चित्रण परीक्षण, अंक तत्काल स्मृति परीक्षण, चित्र रचना परीक्षण शिक्षितों के लिये परीक्षण का विश्वसनीयता गुणांक 0.85 और अर्द्ध-शिक्षितों के लिये 0.84 अर्द्ध-विच्छेद विधि से ज्ञात किया गया। शिक्षितों का वैधता गुणांक 0-70 तथा अशिक्षितों का 0-71 ज्ञात किया गया। 

भाटिया बैटरी के प्रयोग से कुछ महत्वपूर्ण निष्कर्ष निकाले गये 
  • उच्च मानसिक कार्य करने वालों के बच्चों की बुद्धि, श्रमिक या कृषि कार्य करने वालों के बच्चों से कुछ अधिक होती है। 
  • शहर के बच्चों ने ग्रामीण बच्चों की अपेक्षा इस परीक्षण पर अधिक अंक प्राप्त किये।
  • ईसाई एवं ऐंग्लोइंडियन परिवार के बालकों की बुद्धि अधिक, इसके पश्चात् कायस्थ परिवार के बालकों की बुद्धि और उसके बाद अन्य जाति के बालकों की बुद्धि इस परीक्षण पर आयी।
  • आकृति चित्रण में पहचान शक्ति तथा कोह परीक्षण में समस्या हल की विधि के द्वारा प्रयोज्य के व्यक्तित्व के सम्बन्ध में भी जानकारी प्राप्त की जा सकती है। 

सिगुइन फॉर्म बोर्ड परीक्षण (S. FB) 

सुप्रसिद्ध फ्रांसीसी चिकित्सक सिगुइन ने मानसिक रूप से दुर्बल बालकों का पता चलाने के लिये इस फोर्म बोर्ड परीक्षण को 1907 में विकसित किया। इस परीक्षण में विभिन्न आकार वाले 10 गुटके होते हैं जो एक ट्रे में उसी के अनुसार खानों में व्यवस्थित होते हैं। परीक्षक सभी गुटकों को ट्रे से बाहर निकालकर प्रयोज्य के सामने रख देता है। प्रयोज्य इन गुटकों को ट्रे में बने खाने में अतिशीघ्र रखता है। यह क्रिया तीन बार दोहराई जाती है। सबसे कम समय में किया गया प्राप्ताक ले लिया जाता है।

सिगुइन-फोर्म-बोर्ड
सिगुइन फोर्म बोर्ड

संस्कृति मुक्त बुद्धि परीक्षण आर० बी० कैटल (Culture free Test of Intelli gence- R. B. Cattell)

यह परीक्षण जैसा कि इसके नाम से पता चलता है, संस्कृति मुक्त ही नहीं वरन् विभिन्न सामाजिक स्तरों, शिक्षा स्तरों एवं भाषाओं के प्रभाव से भी मुक्त है। इस परीक्षण में तीन मापनियाँ हैं :
  1. 4 से 8 वर्ष की आयु के लोगों के तथा मानसिक रूप से दुर्बल वयस्कों के लिये 
  2. 8 से 13 वर्ष के लिये 
  3. 13 वर्ष से अधिक और कॉलेज वयस्कों के लिये। प्रथम में 96 पद हैं तथा 22 मिनट का समय प्रशासन में लगता है। 
इस मापनी में 400 बालकों पर मानक उपलब्ध है। द्वितीय मापनी में 46 पद है और प्रशासन का समय 12-50 मिनट है, तृतीय मापनी में 50 पद है और प्रशासन का समय 12.5 मिनट है।

साधारण मानसिक योग्यता परीक्षण-एस० एस० जलोटा (General Mental Ability Test-S. S. Jalota)

यह एक सामूहिक शाब्दिक एवं गति परीक्षण है। इस परीक्षण में 100 प्रश्न हैं और उन्हें पूरा करने की अवधि 20 मिनट है। यह परीक्षण सात मानसिक योग्यताओं के मापन से सम्बन्धित है: 
  1. समान शब्द भंडार 
  2. विपरीत शब्द भंडार 
  3. वर्गीकरण 
  4. सर्वश्रेष्ठ प्रत्युत्तर 
  5. अंक-श्रृंखला 
  6. अनुमान
  7. सादृश्य 

इसकी फलांकन विधि सुगम है। प्रत्येक सही उत्तर के लिये एक अंक दिया जाता है। उत्तरों की जाँच के लिये कुंजी का प्रयोग किया जाता है। इस परीक्षण का प्रयोग 8वीं से 11वीं कक्षा तक के विद्यार्थियों, जिनकी आयु 11 से 16 वर्ष है पर किया जाता है। इस परीक्षण का विश्वसनीयता गुणांक 0-938 है तथा वैधता गुणांक 0:50 से 0-78 तक पाया जाता है।

भारतीय बच्चों के लिये ड्रा-ए-मैन टेस्ट (Draw-A-Man Test for Indian Children) 

इस परीक्षण का निर्माण प्रमिला पाठक ने किया। इसके द्वारा 4 से 13 वर्ष तक के बालकों की बुद्धि का मापन किया जाता है। समयावधि 30 मिनट है। इसमें परीक्षार्थी को पेंसिल की सहायता से विभिन्न बिन्दुओं को अंकित करना होता है जो मानव आकृति से सम्बन्धित होते हैं।

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इस Blog का उद्देश्य प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे प्रतियोगियों को अधिक से अधिक जानकारी एवं Notes उपलब्ध कराना है, यह जानकारी विभिन्न स्रोतों से एकत्रित किया गया है।