शिक्षण अधिगम का मनोविज्ञान | अर्थ, प्रकृति और योगदान Psychology of Teaching Learning

डॉ. राधाकृष्णन् के शब्दों में - शिक्षा को मनुष्य और सम्पूर्ण समाज का निर्माण करना चाहिये। इस कार्य को किये बिना शिक्षा अनुर्वर और अपूर्ण है।
 
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Psychology of Teaching Learning

शिक्षण अधिगम का मनोविज्ञान

शिक्षण अधिगम, पृथक-पृथक प्रक्रियाएँ नहीं है। जिस प्रकार शिक्षण के अंगों में शिक्षक, बालक तथा पाठ्यक्रम हैं, उसी प्रकार शिक्षा की प्रक्रिया शिक्षण, अधिगम तथा अनुभवों के द्वारा सम्पन्न होती है। पहले शिक्षा मनोविज्ञान में, अधिगम के मनोविज्ञान को, जिसका सम्बन्ध बालक द्वारा सीखने की क्रिया से है, महत्व दिया जाता था। अब यह माना जाता है कि शिक्षक द्वारा जो शिक्षण प्रक्रिया अपनाई जाती है, और छात्र उसके प्रति जो अनुक्रिया करते हैं, उससे शिक्षण अधिगम की प्रक्रिया सम्पूर्ण होती है। अधिगम की क्रिया एकांगी है, उसे शिक्षण की क्रिया द्वारा पूर्णता मिलती है।

शिक्षण का अर्थ एवं प्रकृति

डगलस व हॉलेण्ड के अनुसार - "शिक्षा शब्द का प्रयोग उन सब परिवर्तनों को व्यक्त करने के लिये किया जाता है जो एक व्यक्ति के जीवन काल में होते हैं।"
इसी प्रकार महान दार्शनिक डॉ. राधाकृष्णन् के शब्दों में - "शिक्षा को मनुष्य और सम्पूर्ण समाज का निर्माण करना चाहिये। इस कार्य को किये बिना शिक्षा अनुर्वर और अपूर्ण है।" 

ये दोनों वक्तव्य इस बात की ओर संकेत करते हैं कि शिक्षा तभी अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकती है जब शिक्षक जिस प्रकार से निर्धारित पाठ्यक्रम को पाता है, वह प्रक्रिया शिक्षण कहलाती है। शिक्षण का अर्थ सिखाना है। सिखाने में विधियाँ तथा पाठ्यसामग्री, वांछित लक्ष्यों की पूर्ति के लिये प्रयोग में लाई जाती है। शिक्षा के क्षेत्र में अब यह बात स्पष्ट हो गई है कि शिक्षण में केवल सीखना ही नहीं, सिखाना भी निहित है। शिक्षण के सिद्धान्त में एन. एल. गेज के अनुसार तीन प्रश्न निहित हैं - शिक्षक का व्यवहार, छात्रों का व्यवहार, तथा शिक्षण का प्रभाव। दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि शिक्षक द्वारा अपनाई गई शिक्षण विधि की क्या प्रतिक्रिया है।

सीखने के सिद्धान्तों पर तो मनोवैज्ञानिकों ने बहुत काम किया है परन्तु शिक्षण के क्षेत्र में इतना काम नहीं हो पाया। केवल अधिगम की सीमा तक ही शिक्षण का लाभ हो रहा है।

शिक्षण की प्रकृति के तथ्य 

सामान्य विचार की व्याख्या

शिक्षण की प्रकृति सामान्य विचार की व्याख्या करती है। शिक्षण तथा निर्देश का विश्लेषण करके उसे आगे बढ़ाती है।

ज्ञान भण्डार 

शिक्षण की प्रकृति से ही शिक्षक ज्ञान का भण्डार ग्रहण करता है। यह भण्डार शिक्षण व्यवसाय में उसे सहायता प्रदान करता है। 

मान्यताओं का विकास 

निर्णयों को प्राप्त करने में सैद्धान्तिक तथा व्यावहारिक आधार प्रदान करता है। निजी धारणाओं प्रभावों तथा मान्यताओं को विकसित करके शिक्षण व्यवसाय में सहायता देता है। 

आधार प्रदान करना 

शिक्षण कार्य का नियमन करने के लिये शैक्षिक उद्देश्य, विश्लेषण, छात्र व्यवहार आदि के विषय में पूर्ण आधार प्रदान करता है। 

अनुकूलन 

शिक्षण की प्रकृति है व्यवहार का अनुकूलन। छात्रों के बीच अध्यापकों का प्रवेश ही शिक्षक की महत्वपूर्ण प्रकृति है।

शिक्षण अधिगम के आधार 

अभिवृद्धि पर बल 

शिक्षण अधिगम की प्रक्रिया बालक की अभिवृद्धि पर बल देती है। इसमें 
  • लक्ष्य प्राप्ति हेतु प्रेरणा देना 
  • अधिगम अनुभव प्रदान करना 
  • वैयक्तिक विकास की प्रक्रिया निहित है।

कौन सिखाये?

इस बिन्दु के अन्तर्गत अध्यापक में निहित गुणों की व्याख्या निहित है। विषय का ज्ञान, शिक्षण की कुशलता के साथ-साथ मानवीय गुणों का विकास भी इसी में निहित है।

छात्र शिक्षक सम्बन्ध 

इसके अन्तर्गत छात्रों तथा शिक्षक के पारस्परिक व्यवहार निहित हैं। छात्रों का मूल्यांकन इसी आधार पर होता है।

विज्ञान के रूप में शिक्षा 

आज शिक्षण विज्ञान का रूप लेता जा रहा है। वैज्ञानिक सिद्धान्तों का विनियोग कक्षा में किया जा रहा है। 

शिक्षण एक कला 

शिक्षण जहाँ विज्ञान है वहाँ यह कला भी है। अनपढ़ व्यक्तियों का सुगढ़ निर्माण शिक्षक कलाकार द्वारा होता है। 

शिक्षण एक व्यवसाय 

गेट्स के शब्दों में शायद इससे (शिक्षण) बढ़कर अन्य कोई व्यवसाय नहीं है जो हमारे प्रजातांत्रिक समाज की कार्य प्रणाली को आधार प्रदान करता हो, क्योंकि इससे भावी नागरिकों को ज्ञान तथा सूचना देकर प्रभावित किया जाता है।

अधिगम की प्रकृति 

जी. एल. एण्डरसन के अनुसार - वैज्ञानिक रूप में मनोवैज्ञानिक उन परिस्थितियों के सत्यापन योग्य स्पष्ट और विस्तृत तथ्यं चाहता है जिनमें अधिगम की क्रिया सम्पन्न होती है। संग्रहीत तथ्यों की व्याख्या और सामान्यीकरण के नियम संगठित करता है। ये अधिगम की वैज्ञानिक व्याख्या बन जाते हैं।
अधिगम की प्रकृति में ये तथ्य निहित होते हैं
  1. बौद्धिकता कौशल।
  2. तथ्यात्मकता कौशल।
  3. गुण-दोष विवेचन 
  4. सीखने के तत्व
  5. अध्ययन विधि 
इन आधारों पर शिक्षण अधिगम की प्रकृति का विश्लेषण इस प्रकार किया जा सकता है-
  • सार्थक अधिगम या अर्थग्रहण संभाव्य अर्थपूर्ण सामग्री और सार्थक अधिगम स्थिति की आवश्यकता होती है।
  • संभाव्य अर्थपूर्णता, तार्किक सोद्देश्यता पर निर्भर करती है। सीखने वाले के संज्ञानात्मक विचारों की संरचना द्वारा विचारों की प्रस्तुति होती है। 
  • मनोवैज्ञानिक अर्थ विशिष्ट तथा घटना-चक्र सम्बन्धी अर्थ, सार्थक अधिगम तथा संभाव्य अर्थपूर्ण एवं सोद्देश्य अधिगम स्थिति की देन होती है।

शिक्षा में योगदान

शिक्षण अधिगम प्रक्रिया आज शिक्षण व्यवसाय का महत्वपूर्ण अंग बन गई है। इसका योगदान इस प्रकार है-
  • यह नवीन अधिगम पर बल देती है।
  • शिक्षा को द्विमुखी प्रक्रिया की अन्तःक्रिया के रूप में स्वीकार करती है।
  • शिक्षण के अनेक प्रारूप विकसित हुए हैं। 
  • बालकों के गुणों का अधिगम में उपयोग किया जाता है।
  • अनेक नवीन प्रत्ययों का विकास इसके द्वारा होता है। 
  • शिक्षण की दशाओं इस अभिगमन के द्वारा परिवर्तन हुआ है।
  • सीखने की दशाओं में भी परिवर्तन आया है। अधिगम हेतु परिपक्वता पर ध्यान दिया जाने लगा है।
  • अनेक प्रकार के शैक्षिक आविष्कार हुए हैं।
  • अभिप्रेरणा की आन्तरिक रचना, योग्यता, क्षमता तथा उद्दीपन में भी अन्तर आया है। 
  • अधिगम की विभिन्न शैलियाँ विकसित हुई हैं।
  • विषयों के शिक्षण में अर्थ ग्रहण को महत्व दिया जाने लगा है। 
  • शैक्षिक लक्ष्यों को स्पष्ट रूप से निर्धारित किया जाने लगा है।
  • सार्थक अधिगम पर बल दिया जाने लगा है। 
  • मानव की ज्ञान तथा बौद्धिक योग्यता तथा क्षमता का विकास किया जाने लगा है।
  • शिक्षा संदर्भ सामाजिक हो गया है। 
  • शिक्षण दर्शन एवं सिद्धान्तों का निर्माण होने लगा है।
मारिस एल. बिग के शब्दों में विवेकपूर्ण चिन्तन जो सही क्रियाओं को जन्म देगा। संकल्प एवं इच्छाशक्ति के मूल से अनुप्राणित होता है। जो अध्यापक विचारों की सही श्रृंखला का निर्माण करता है वह सही आचरण का अनुसरण करता है, अतः निर्देश का वास्तविक कार्य ज्ञान देना मात्र नहीं है, अपितु आन्तरिक अनुशासन या संकल्प को प्रस्तुत विचारों के अनुसार ढालना है। मनोवैज्ञानिक सत्य यह है कि छात्रों का निर्माण मुक्त रूप से विचारों की दुनियाँ से होता है, अतः शिक्षण द्वारा अधिगम का विनियोग ही शिक्षण की अवधारणा प्रस्तुत करती है।

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