शिक्षा मनोविज्ञान पर मानवतावादी प्रभाव (Impact of Humanism) अर्थ, परिभाषा, विशेषताए

मानवतावाद, अर्थ एवं परिभाषा, विशेषताएँ, शिक्षा मनोविज्ञान पर प्रभाव
Impact-of-Humanism
Impact of Humanism

शिक्षा मनोविज्ञान पर मानवतावादी प्रभाव  

वातावरण शिक्षक है और शिक्षा का कार्य है - बालक को उस वातावरण के अनुकूल बनाना ताकि वह जीवित रह सके तथा अपनी मूलप्रवृत्तियों को संतुष्ट करने के लिये अधिक से अधिक सम्भव अवसर प्राप्त कर सके। - थामसन

मानवतावाद: अर्थ एवं परिभाषा 

संसार का इतिहास वास्तव में भौतिकता का इतिहास नहीं है। वह इतिहास है चिन्तन, मनन, शोध तथा सिद्धान्त का अनुभव तथा प्रयोगों द्वारा सिद्ध विचारों ने सामाजिक संघर्ष के दौरान मनुष्य को दिशा बोध कराया है। प्राचीन काल से ही वैचारिक भिन्नता ने मनुष्य के चिन्तन को विचार श्रृंखला में बाँधकर उसे पहचान दी है, उसका नामकरण किया है। 
मानव चिन्तन ने दर्शन का रूप धारण किया। स्पैंसर के शब्दों में - “वास्तविक शिक्षा का संचालन वास्तविक दर्शन कर सकता है।"
दर्शन ने वास्तविक जीवन के वास्तविक लक्ष्य को निर्धारित किया है। उसने जीवन के लक्ष्य को परिभाषित किया। शिक्षा मनोविज्ञान तथा शैक्षिक प्रक्रिया के सभी अंगों को प्रभावित किया।

यु तो सभी दर्शन, मानव तथा समाज के कल्याण के लिये चिन्तन करते रहे हैं किन्तु अठारहवीं शताब्दी में योरोप में औद्योगिक क्रान्ति के फलस्वरूप पुनर्जागरण युग का आरम्भ हुआ। धार्मिक तथा आर्थिक गुलामी से मुक्ति का आन्दोलन चला। मानव को परम्पराओं की बेड़ियों से मुक्त कर जनचेतना के लिये प्रबुद्ध किया गया। यह प्रवृत्ति मानवतावादी प्रवृत्ति के नाम से जानी गई।

मानवतावादी दर्शन में मानव को सृष्टि की सर्वश्रेष्ठ उपलब्धि के रूप में स्वीकार किया गया। संसार में घटने वाली सभी घटनाएँ मानव हितों की पूर्ति, मानव मूल्यों की प्रतिष्ठा तथा मानवीय आदर्शों की स्थापना के लिये होनी चाहिये। मानवतावाद प्रकृतिवाद से प्रभावित है। आर. बी. पैरी के शब्दों में - "प्रकृतिवाद विज्ञान नहीं है वरन् विज्ञान के बारे में दावा है। अधिक स्पष्ट रूप से इस बात का दावा करता है कि वैज्ञानिक ज्ञान अन्तिम है जिसमें विज्ञान के बाहर दार्शनिक ज्ञान को कोई स्थान नहीं है।"

इससे स्पष्ट है कि मानवतावाद तथा प्रकृतिवाद, दोनों ही मानव कल्याण, वैयक्तिक स्वतंत्रता के समर्थक तथा रूढ़िवाद के विरोधी रहे हैं। प्रकृतिवाद की संकीर्णता से अलग हटकर मानवीय आदर्शों, हित-चिन्तन को मानवतावादी दर्शन का लक्ष्य निर्धारित किया। आज मानवतावादी दर्शन व्यक्ति, समाज तथा जगत के मानवों के कल्याण के लिये प्रतिबद्ध है।

मानवतावाद की विशेषताएँ

मानवतावाद का विस्तार अत्यधिक हो चुका है। भारतीय तथा ग्रीक दर्शन में मानव-व्यक्तित्व की पूर्णता के लिये शिक्षा की व्यवस्था की गई है। सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे सन्तु निरामया कह कर विश्वभर के मानवों के कल्याण की कामना की गई। इसी प्रकार ग्रीक दार्शनिकों ने शिक्षाशास्त्रियों को सीखने को जीवन से संबद्ध किया, ज्ञान की सम्पूर्णता की व्याख्या और ज्ञान के विषय की संकीर्णता से उबारा, मानवतावाद आज विज्ञान की कसौटी पर खरा उतरा है। उसका स्वरूप वैज्ञानिक हो गया है। साविरा के. जैदी के शब्दों में - “वैज्ञानिक मानवतावाद एक मिथक नहीं, वास्तविकता है। उसमें विद्यमान संभावनाएँ हैं जो वृद्धि, परिवर्तन तथा विकासशील हैं।"
मानवतावादी विचारधारा में ये विशेषताएँ पाई जाती हैं
  1. मानवतावादी दर्शन के चिन्तन का मूल केन्द्र मनुष्य तथा उसका संसार है। 
  2. मानवतावाद मानव जाति के कल्याण पर बल देता है।
  3. मानवतावादी दर्शन मानव मूल्यों प्रेम, शांति, सहयोग, स्वतंत्रता, समानता को भौतिक मूल्यों - धन तथा ऐश्वर्य से अधिक महत्व देता है। 
  4. मानवतावादी दर्शन मानव को प्रत्येक प्रकार की दासता धार्मिक, अंधविश्वास, राजनीतिक तथा सामाजिक से मुक्त रहने पर बल देता है।
  5. इस दर्शन का मुख्य आधार है सहअस्तित्व जियो और जीने दो।
  6. संसार के सभी मनुष्य, मूल रूप से समान हैं। रंग, प्रजाति, जाति तथा शासन भेद के आधार पर उनको पृथक नहीं किया जा सकता। उन्हें सभी प्रकार की मानवोचित सुविधाएँ प्राप्त होनी चाहिये।
  7. मानवतावाद को अपना घर मानता है। वसुधैव कुटुम्बकम् में इसका विश्वास है। वसुधैव कुटुम्बकम् के इसी सत्य की स्थापना करता है। 
निकोलस हैंस के शब्दों में - “मानवतावाद शैक्षिक समस्याओं के संदर्भ में दोनों ही प्रकार के मानवीय और कोमल भावनाओं युक्त मानवीय दृष्टिकोण को अपनाना चाहता है। धर्म, उच्च आदर्श तथा संकीर्णता के नाम पर मानव प्रकृति तथा मानव हितों की बलि चढ़ाने से रोकना इस दर्शन का मानवीय पक्ष है। इस दृष्टिकोण के अनुसार मानवतावादी दर्शन कोमल तथा दया भावना युक्त व्यवहार की अपेक्षा करता है जिससे बालक की प्रकृति और उसके विकासशील मस्तिष्क को कठोर अनुशासन तथा माँ-बाप और शिक्षकों के गलत व्यवहार, सीखने, सिखाने के गलत तरीकों तथा परिवेश में प्राप्त अन्य प्रतिकूल शक्तियों द्वारा कमरे में बन्द कर न रख दिया जाय।"

इससे स्पष्ट है कि मानवतावादी दर्शन सत्यं, शिवं, एवं सुन्दर में पूरी आस्था रखता है। बुद्धि विलास ही नहीं, दया, प्रेम, ममता, सहयोग आदि के मानवीय गुणों का विकास भी वह चाहता है।

शिक्षा मनोविज्ञान पर प्रभाव

परम्परागत मनोविज्ञान की धारणा है कि मनुष्य प्रतिक्रियाशील प्राणी है। वह क्रियाशील नहीं है। वह सदा प्रतिक्रिया करता है। इच्छा, चेतना, मस्तिष्क, तर्क तथा संवेग आदि उसकी काल्पनिक समस्याएँ हैं। वह इन बाहरी तत्वों से सदा आक्रान्त रहता है, मानव व्यवहार को आचरण में बदलने में इनका कोई योगदान नहीं होता। स्किनर के शब्दों में - “यह परिकल्पना कि मनुष्य स्वतंत्र नहीं है, मानव व्यवहार के अध्ययन की वैज्ञानिक विधियों के विनियोग के लिये अनिवार्य है। स्वतंत्र, आन्तरिक मनुष्य अपने व्यवहार के लिये उत्तरदायी है, ये सभी विकल्प एक कारण की ओर संकेत करते हैं, ये सभी बाह्य हैं और 'मेरा' पर बल देते हैं।"

शिक्षा मनोविज्ञान पर मानवतावादी दर्शन का अत्यधिक प्रभाव पड़ा है। शिक्षा ही बालक को पूर्ण मनुष्य बनाने का काम कर रही है। इसलिये शिक्षा में मनोविज्ञान का महत्व बढ़ा है, शिक्षा में बालक केन्द्र है, इसलिये शिक्षा मनोविज्ञान का केन्द्र बालक बना है। यही कारण है कि शिक्षा में मानव-मूल्यों तथा आदशों की प्राप्ति को लक्ष्य के रूप में स्वीकार किया गया है। 
मानवतावादी दर्शन का शिक्षा मनोविज्ञान पर इस प्रकार प्रभाव पड़ा है-

 शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में बालक का स्थान 

पहले बालक शिक्षा की प्रक्रिया में गौण था। आज बालक को केन्द्र मानकर शिक्षा दी जाती है। मानवतावादी दर्शन का विश्वास है कि विषय बालक के लिये है, बालक, विषय के लिये नहीं है। बालकों की प्रकृति के अनुसार शिक्षा की व्यवस्था की जानी चाहिये। मानवतावादी दर्शन शिक्षा मनोविज्ञान के अन्तर्गत शिक्षक के लिये इन बातों पर बल देता है:-
  1. बालक के दृष्टिकोण, रुचि तथा क्षमता का ज्ञान। 
  2. बाल विकास के विभिन्न आयाम - सामाजिक, संवेगात्मक, बौद्धिक, शारीरिक तथा सौन्दर्यात्मक |
  3. आकांक्षा का स्तर।
  4. मानसिक स्वास्थ्य, व्यवहार, अभिप्रेरित व्यवहार।

वैयक्तिकता पर बल 

मानवतावाद की धारणा है - 'मानव अपने आप में एक अनूठी कृति है। इसे समाज, राष्ट्र, धर्म या जाति के नाम पर बलि नहीं चढ़ाया जा सकता।' इस धारणा ने स्पष्ट कर दिया कि हर व्यक्ति का अपना 'निजी स्व' है जिसका यथोचित विकास होना आवश्यक है। वैयक्तिक भिन्नताओं के विकास से व्यक्ति में निहित आन्तरिक गुणों का विकास संसार के हित में किया जा सकता है।

बालक को समझना 

शिक्षा के द्वारा बालक की आन्तरिक शक्तियों का विकास होता है। बालक की प्रकृति को समझकर ही उसका विकास किया जा सकता है। बालक के वंशक्रम, वातावरण, रुचि, अभिरुचि, बुद्धि, व्यक्तित्व आदि के आधार पर उसकी शिक्षा की व्यवस्था की जा सकती है।

शिक्षण विधियाँ 

परम्परागत शिक्षण विधियों में विषय को सिखाने पर बल दिया जाता था। आज शिक्षण विधियों को मनोवैज्ञानिक सिद्धान्तों पर विकसित किया गया है। निष्क्रिय अधिगम की अपेक्षा सक्रिय अधिगम पर ये मनोवैज्ञानिक शिक्षण विधियाँ विशेष बल देती हैं। सत्य की खोज, स्वयं द्वारा ज्ञान प्राप्त करना, कल्याणपरक कार्य करना आदि पर विशेष बल दिया जाता है।

सीखने की इच्छा 

मानवतावादी दर्शन का शिक्षा मनोविज्ञान पर भी प्रभाव पड़ा, उससे बालक में किसी ज्ञान या कौशल को स्वयं प्रेरित होकर सीखने की इच्छा का विकास हुआ है। अभिप्रेरणा, प्रशंसा, प्रोत्साहन आदि मानवतावादी प्रभाव हैं।

अनुशासन 

शिक्षा मनोविज्ञान ने कक्षा में प्रवेश करके मानवतावादी को अनुशासन के माध्यम से स्थापित किया है। स्वानुशासन तथा स्वनियंत्रण, ये दोनों तथ्य मानवता की देन हैं। ए. डी. मुलर के अनुसार - "अनुशासन का ध्येय व्यक्ति को ज्ञान, शक्ति, आदतें, रुचियों और आदर्शों को, जो उसके स्वयं की, उसके मित्रों तथा सम्पूर्ण समाज की भलाई के लिये निर्मित होते हैं, प्राप्त करने में सहायता करना है।"

शिक्षक का स्थान तथा भूमिका 

आधुनिक शिक्षा प्रक्रिया में शिक्षक सहायक तथा पथप्रदर्शक के रूप में उभरा है। यह मानवतावाद की देन है। आधुनिक मनोविज्ञान ने शिक्षक के पुराने स्वरूप को, जिसमें वह निरंकुश व्यक्ति के रूप में उभरता था, नकार दिया है। आज का शिक्षक बालक के सर्वांगीण विकास की यात्रा में मील का पत्थर है।
 

विशिष्ट बालकों की शिक्षा 

आज प्रतिभावान, विकलांग तथा मानसिक रूप से मंद बालकों की उपेक्षा नहीं की जाती। मानवतावाद इस बात पर बल देता है कि हर बालक जन्म से ही कुछ विशेषताएँ लेकर उत्पन्न होता है। ऐसी विशेषताओं वाले बालकों की शिक्षा के लिये अनेक प्रकार की निदानात्मक शिक्षण विधियों का विकास किया गया है। डेकरौली, मॉन्टेसरी विधियाँ विशेष बालकों के शिक्षण के लिये उपयोगी सिद्ध हुई हैं।"

वातावरण 

शिक्षा मनोविज्ञान मनुष्य के वातावरण के निर्माण पर बल देता है। अच्छा वातावरण व्यक्ति को आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है। टी. रेमन्ट के शब्दों में - शिक्षा, मानव जीवन के विकास की वह प्रक्रिया है जो शैशवावस्था से प्रौढ़ावस्था तक चलती रहती है अर्थात् शिक्षा विकास का वह क्रम है जिससे मानव अपने आपको आवश्यकतानुसार, भौतिक, सामाजिक तथा आध्यात्मिक वातावरण के अनुकूल बना लेता है। वातावरण को उपयुक्त बनाने की दिशा में शिक्षा मनोविज्ञान को क्या कुछ करना चाहिए, यह मानवतावादी दर्शन बताता है।

सर्वांगीण विकास 

मानवतावादी दर्शन का ही प्रभाव था कि महात्मा गाँधी को कहना पड़ा - शिक्षा से मेरा अभिप्राय बालक के सर्वांगीण विकास से है अर्थात् शरीर, मस्तिष्क तथा आत्मा का विकास मानवतावाद बालक के सर्वांगीण विकास में शिक्षा मनोविज्ञान का विकास चाहता है।

बालक की प्रतिष्ठा 

मानवतावादी दर्शन ने वे परिस्थितियाँ पैदा की जिनसे शिक्षा मनोविज्ञान ने वैयक्तिक भिन्नता के आधार पर हर बालक के स्वतंत्र व्यक्तित्व को स्वीकार किया है।

अतः स्पष्ट है कि मानवतावाद ने मनोविज्ञान तथा शिक्षा मनोविज्ञान में नैतिक मूल्यों के आयाम भी निर्धारित किये हैं। मानवतावाद, व्यवहारवादियों की तरह मनुष्य को परिस्थितियों का दास नहीं मानता; उसे प्रतिक्रियावादी नहीं मानता। मानवतावाद ने मनुष्य को, उसके व्यवहार को शिक्षा मनोविज्ञान के माध्यम से उचित प्रतिष्ठा दी है।

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