शिक्षा में क्रिया अनुसंधान अर्थ, परिभाषा, समस्याएँ, व विशेषताएँ | Action Research in Education

गुड - क्रिया अनुसंधान शिक्षकों, निरीक्षकों और प्रशासकों द्वारा अपने निर्णयों और कार्यों की गुणात्मक उन्नति के लिए प्रयोग किया जाने वाला अनुसंधान है।
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Action Research in Education 

शिक्षा में क्रिया अनुसंधान

Action research is a procedure that tries to keep problem-solving in close touch with reality at every stage. -Research in Education.

अनुसंधान की नई दिशा

शिक्षा जगत में अनेक समस्याओं का अध्ययन किया जाता है। इन समस्याओं में अनेक आधारभूत सैद्धान्तिक होती हैं और अनेक का सम्बन्ध कार्य प्रणाली तथा उसके परिणामों से होता है।

आजकल देखा गया है कि शिक्षा की व्यावहारिक समस्याओं के कारण छात्रों की निष्पत्ति प्रभावित हुई है। इस सम्बन्ध में एस. एम. कोरे ने अपने अध्ययन में अनेक समस्याओं की ओर संकेत किया है। कक्षा, विद्यालय, शिक्षक व्यवहार तथा निष्पत्ति को लेकर अनेक दिशाएँ प्रकट हुई हैं। ये सभी शिक्षा जगत में क्रिया अनुसंधान के अन्तर्गत हल की जाती हैं। 

शिक्षा के क्षेत्र में बहुत समय से मौलिक अनुसंधान किये जा रहे हैं। यद्यपि ये अनुसंधान साधारणत: शोध ग्रन्थों की सामग्री हैं, फिर भी इन्होंने नवीन शिक्षण विधियों, नवीन धारणाओं, नवीन परीक्षणों आदि का प्रतिपादन करके शिक्षा के सिद्धान्त पक्ष को सबल और समृद्ध बनाने में सराहनीय योग दिया है।

सिद्धान्त पक्ष से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है - क्रिया या व्यवहार पक्ष। विद्यालय के दैनिक कार्यों और शिक्षण विधियों में किस प्रकार सुधार किया जा सकता है, उसके संगठन और संचालन को किस प्रकार उत्तम बनाया जा सकता है, उसकी वास्तविक और व्यावहारिक समस्याओं का किस प्रकार समाधान किया जा सकता है - इन सब उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए अनुसंधान को एक नई दिशा दी गई है, जिसे क्रिया अनुसंधान कहते हैं। एण्डरसन के शब्दों में - "क्रिया अनुसंधान, अनुसंधान को एक विभिन्न प्रकार की परिस्थिति में रखकर उसको दी जाने वाली एक नवीन दिशा है।"

क्रिया अनुसंधान का आरम्भ व विकास

क्रिया-अनुसंधान आधुनिक जनतंत्रीय युग की देन है और इसका सूत्रपात करने का श्रेय संसार के सर्वश्रेष्ठ जनतंत्रीय देश अमरीका को है। वहाँ इस शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम कोलियर द्वारा द्वितीय विश्वयुद्ध के समय किया गया। उसने घोषित किया कि जब तक सामान्य व्यक्ति और प्रशासन अधिकारी अनुसंधान के कार्य में स्वयं भाग नहीं लेंगे, तब तक किसी प्रकार का सुधार किया जाना असम्भव होगा। उसके बाद लेविन ने 1946 में मानव सम्बन्धों को अच्छा करने के लिए सामाजिक विज्ञानों के क्षेत्र में क्रिया अनुसंधान के प्रयोग पर बल दिया।

क्रिया अनुसंधान से सम्बन्धित और भी अनेक अमरीकी विद्वानों का उल्लेख किया जा सकता है। उदाहरणार्थ, राइट्स्टोन ने 'पाठ्यक्रम ब्यूरो' के कार्यों का विवरण देते समय इस शब्द का प्रयोग किया। दूबा, त्रैडी और रॉबिन्सन ने समस्या समाधान के रूप में क्रिया अनुसंधान को प्राथमिकता प्रदान की। इनको शिक्षा जगत् में स्थायी रूप से प्रतिष्ठित किया सन् 1953 में 'कोलम्बिया विश्वविद्यालय' के प्रोफेसर स्टीफेन एम. कोरे ने। उस समय से लेकर आज तक क्रिया अनुसंधान की धारणा का विकास अविराम गति से होता चला आ रहा है। 

मौले का कथन है - "क्रिया अनुसंधान के विकास के लिए सबसे अधि उत्तरदायी व्यक्ति है - स्टीफेन एम. कोरे, जिसकी 1953 में प्रकाशित होने वाली पुस्तक का समस्याओं से पीड़ित और उनके समाधान की विधियों से अपरिचित शिक्षकों द्वारा स्वागत किया गया।"

क्रिया अनुसंधान व मौलिक अनुसंधान में अन्तर

मानव की वैज्ञानिक चेतना के साथ-साथ मौलिक या परम्परागत अनुसंधान का भी विकास हुआ है। इसी अनुसंधान की एक नवीनतम शाखा है - क्रिया अनुसंधान। इन दोनों के आधारभूत अन्तर को स्पष्ट करते हुए बेस्ट ने लिखा है - "मौलिक अनुसंधान वैधानिक विधि से विश्लेषण और सामान्यीकरण करने की औपचारिक और व्यवस्थित प्रक्रिया है। क्रिया अनुसंधान ने मौलिक अनुसंधान के वास्तविक अभिप्राय को अपनाते हुए सिद्धान्तों के प्रतिपादन के बजाय समस्याओं के समाधान पर अपना ध्यान केन्द्रित किया है। "

मौलिक अनुसंधान और क्रिया अनुसंधान के अन्य अन्तर हैं-


मौलिक अनुसंधानक्रिया-अनुसंधान
1. इसका विकास भौतिक विज्ञानों के साथ हुआ है।1. इसका विकास सामाजिक विज्ञानों के साथ हुआ है।
2. इसका उद्देश्य नये सिद्धान्तों की खोज करना है।2. इसका उद्देश्य, विद्यालय की कार्य-प्रणाली में सुधार करना है।
3. इसकी समस्या का क्षेत्र व्यापक है।3. इसकी समस्या का क्षेत्र संकुचित है।
4. इसकी समस्या का सम्बन्ध किसी सामान्य परिस्थिति से होता है।4. इसकी समस्या का सम्बन्ध किसी विशेष परिस्थिति में होता है।
5. इसके लिए विशेष प्रशिक्षण की आवश्यकता है।5. इसके लिए विशेष प्रशिक्षण की आवश्यकता नहीं है।
6. इसमें सत्यों और तथ्यों की स्थापना की जाती है ।6. इसमें वास्तविक समस्याओं का व्यावसायिक हल खोजा जाता है।
7. इसमें अनुसंधान की रूपरेखा में परिवर्तन नहीं किया जा सकता है।7. इसमें अनुसंधान की रूपरेखा में परिवर्तन किया जा सकता है।
8. इसमें सामान्यीकरण का विशेष महत्व होता है ।8. इसमें सामान्यीकरण का विशेष महत्व नहीं होता है।
9. इसमें अनुसन्धानकर्ता, विशेषज्ञ होते हैं।9. इसमें अनुसंधानकर्ता विद्यालय शिक्षक, प्रबन्धक आदि होते हैं ।
10. इसमें अनुसन्धानकर्ता, विशेषज्ञ होते हैं और उनका समस्याओं से प्रत्यक्ष सम्बन्ध नहीं होता है।10. इसमें अनुसंधानकर्ता का विद्यालय और उसकी समस्याओं से प्रत्यक्ष सम्बन्ध होता है।

मौलिक अनुसंधान और क्रिया अनुसंधान के अन्तर को देखकर यह भ्रम हो सकता है कि ये दोनों एक-दूसरे के विरोधी हैं। इस भ्रम का निवारण करते हुए बेस्ट ने लिखा है - "क्या मौलिक अनुसंधान और क्रिया अनुसंधान में विरोध है ? वास्तव में, इनमें कोई विरोध नहीं है। अन्तर केवल बल में है, न कि विधि या अभिप्राय में।"

क्रिया अनुसंधान का अर्थ व परिभाषा

क्रिया अनुसंधान का सामान्य अर्थ है - विद्यालय से सम्बन्धित व्यक्तियों द्वारा अपनी और विद्यालयों की समस्याओं का वैज्ञानिक अध्ययन करके अपनी क्रियाओं और विद्यालय की गतिविधियों में सुधार करना। उदाहरणार्थ, निरीक्षक अपने प्रशासन में प्रबन्धक अपने विद्यालयों की व्यवस्था में प्रधानाचार्य अपने शिक्षालय के संचालन में और अध्यापक अपने शिक्षण में सुधार करने के लिए क्रिया अनुसंधान करते हैं।

क्रिया अनुसंधान के अर्थ को विभिन्न दृष्टिकोणों से स्पष्ट करने के लिए हम कुछ परिभाषाएँ दे रहे हैं-

1. रिसर्च इन एजूकेशन - "क्रिया अनुसंधान वह अनुसंधान है, जो एक व्यक्ति अपने उद्देश्यों को अधिक उत्तम प्रकार से प्राप्त करने के लिये करता है।"
2. कोरे - "शिक्षा में क्रिया अनुसंधान, कार्यकर्ताओं द्वारा किया जाने वाला अनुसंधान है ताकि वे अपने कार्यों में सुधार कर सकें।"
3. गुड - "क्रिया अनुसंधान शिक्षकों, निरीक्षकों और प्रशासकों द्वारा अपने निर्णयों और कार्यों की गुणात्मक उन्नति के लिए प्रयोग किया जाने वाला अनुसंधान है।" 
4. मौले - "शिक्षक के समक्ष उपस्थित होने वाली समस्याओं में से अनेक तत्काल ही समाधान चाहती हैं। मौके पर किये जाने वाले अनुसंधान, जिनका उद्देश्य तात्कालिक समस्या का समाधान होता है, शिक्षा में साधारणतः क्रिया अनुसंधान के नाम से प्रसिद्ध हैं।"

क्रिया अनुसंधान का क्षेत्र या समस्याएँ 

क्रिया अनुसंधान का मुख्य कार्य विद्यालय की समस्याओं का समाधान करके उसकी गुणात्मक उन्नति करना है। अतः इसका क्षेत्र बहुत व्यापक है और इसमें अधोलिखित समस्याओं को स्थान दिया जा सकता है।

बाल व्यवहार से सम्बन्धित समस्याएँ 

इन समस्याओं का सम्बन्ध केवल छात्रों से है, जैसे - चोरी करना, विद्यालय न आना, देर में आना या भाग जाना, विद्यालय की सम्पत्ति को हानि पहुँचाना, कक्षा में शोर मचाना, शरारत करना, देर में आना या भाग जाना, यौन अपराध करना, एक-दूसरे से लड़ना झगड़ना या मारपीट करना इत्यादि। 

शिक्षण से सम्बन्धित समस्याएँ 

इन समस्याओं का सम्बन्ध छात्रों और शिक्षकों - दोनों से है; जैसे - छात्रों का पाठ्य विषयों को न समझना या उनमें रुचि न लेना; गृह कार्य या लिखित कार्य न करना; वाचन, उच्चारण आदि की ओर ध्यान न देना; अपने विचारों को व्यक्त करने का अवसर न पाना, शिक्षकों का उपयुक्त शिक्षण विधियों को न अपनाना; शिक्षण के लिए पूरी तैयारी न करना; शिक्षण के लिए उपयुक्त वातावरण का निर्माण न कर पाना; छात्रों और शिक्षकों में अच्छे सम्बन्ध न होना, इत्यादि।

परीक्षा से सम्बन्धित समस्याएँ 

इन समस्याओं का सम्बन्ध मुख्यतः छात्रों से है; जैसे - परीक्षा प्रणाली का विश्वसनीय, प्रामाणिक और वस्तुनिष्ठ न होना; निबन्धात्मक प्रकार की परीक्षाओं के कारण छात्रों की वास्तविक उपलब्धियों का मूल्यांकन न हो पाना; निदानात्मक परीक्षणों का निर्माण और प्रयोग न किया जाना; उपलब्ध परीक्षणों के प्रयोग की सुविधा न होना; छात्रों द्वारा चयन किये जाने के लिए प्रश्नपत्रों में अधिक प्रश्न न होना; परीक्षा और शिक्षण में समन्वय न होना इत्यादि।

पाठान्तर क्रियाओं से सम्बन्धित समस्याएँ 

इन समस्याओं का सम्बन्ध छात्रों, शिक्षकों और प्रधानाचार्य से है; जैसे -पाठान्तर क्रियाओं के लिए पर्याप्त साधन न होना; इन क्रियाओं का विधिवत् आयोजन न किया जाना; इन क्रियाओं और पाठ्यक्रम में उचित सम्बन्ध और सन्तुलन न होना; इन क्रियाओं को विद्यालय के लिए भार और आडम्बर समझा जाना; इन क्रियाओं के लिए प्रधानाचार्य द्वारा पर्याप्त समय न दिया जाना; इन क्रियाओं के प्रति शिक्षकों का उदासीन रहना; इन क्रियाओं को छात्रों के समय का अपव्यय समझना; उत्साही छात्रों को अपनी रुचियों के अनुसार विभिन्न प्रकार की पाठान्तर क्रियाओं में भाग लेने का अवसर न मिलना इत्यादि।

विद्यालय संगठन व प्रशासन से सम्बन्धित समस्याएँ 

इन समस्याओं का सम्बन्ध मुख्यतः विद्यालय प्रबन्धक और प्रशासक से है; जैसे - विद्यालय में भावात्मक एकता का अभाव होना; विद्यालय स्तर का उन्नयन करने में असफल होना; विद्यालय के कक्षों का स्वच्छ और हवादार न होना; कक्षा में स्थान और फर्नीचर का अभाव होना; शिक्षण, परीक्षाओं और पाठान्तर क्रियाओं में उचित समन्वय न होना; कला, विज्ञान, भूगोल, इतिहास आदि के शिक्षण के लिए पर्याप्त और उपयुक्त उपकरणों का अभाव होना; पुस्तकालय, वाचनालय और प्रयोगशाला की उत्तम व्यवस्था न होना; शिक्षकों में पारस्परिक सहयोग और सहानुभूति की भावना का अभाव होना; छात्रों का अनुशासनहीन होना; छात्र संघ और अध्यापक के कार्यों पर नियन्त्रण न होना, इत्यादि।

क्रिया अनुसंधान के उद्देश्य व प्रयोजन

  1. एण्डरसन के अनुसार विद्यालय के वास्तविक वातावरण में शिक्षा के सिद्धान्तों का परीक्षण करना।
  2. विद्यालय के संगठन और व्यवस्था में परिवर्तन करके सुधार करना। 
  3. विद्यालय की कार्यपद्धति में प्रजातंत्रात्मक मूल्यों को अधिकतम स्थान देना।
  4. विद्यालय की दैनिक समस्याओं का अध्ययन और समाधान करके उसकी प्रगति में योग देना।
  5. विद्यालय के छात्रों, शिक्षकों आदि को उनके दोषों से अवगत कराकर उनकी उन्नति को सम्भव बनाना।
  6. विद्यालय के पाठ्यक्रम का वास्तविक परिस्थितियों में अध्ययन करके उसको स्थानीय आवश्यकताओं के अनुकूल बनाना।
  7. विद्यालय के प्रधानाचार्य, प्रबन्धक, निरीक्षक और अध्यापकों को अपने कर्तव्यों और उत्तरदायित्वों के प्रति जागरूक करना।
  8. विद्यालय से सम्बन्धित व्यक्तियो को अपनी समस्याओं का वैज्ञानिक अध्ययन करके अपनी विधियों को उत्तम बनाने का अवसर देना।
  9. बेस्ट के अनुसार शिक्षक की प्रगति, विचार शक्ति, व्यावसायिक भावना और दूसरों के साथ मिलकर कार्य करने की योग्यता में वृद्धि करना। 
  10. बेस्ट के अनुसार विद्यालय की क्रियाओं की उन्नति करना ।

क्रिया अनुसंधान की विशेषताएँ 

एण्डरसन के अनुसार, क्रिया अनुसंधान की प्रमुख विशेषताएँ हैं- 
  1. क्रिया अनुसंधान, विद्यालय की वास्तविक परिस्थितियों का सामाजिक परिस्थितियों में किया जाता है।
  2. क्रिया अनुसंधान का ध्यान केवल एक परिस्थिति पर, न कि अनेक परिस्थितियों पर केन्द्रित रहता है।
  3. क्रिया अनुसंधान का ध्यान सम्पूर्ण परिस्थिति पर, न कि उसके किसी विशेष अंग परं केन्द्रित रहता है।
  4. क्रिया अनुसंधान अन्य परिस्थितियों के सम्बन्ध में किसी प्रकार का सामान्यीकरण स्थापित नहीं करता है। 
  5. क्रिया अनुसंधान विभिन्न प्रकार की सामग्री और सूचनाओं को एकत्र करने के लिए साधनों का निर्माण करता है।
  6. क्रिया अनुसंधान करने वालों के मस्तिष्क में अपनी स्वयं की विधियों में सुधार करने का विचार सदैव विद्यमान रहता है।
  7. क्रिया अनुसंधान के परिणामों को कार्यान्वित करने वाले व्यक्ति उसमें आरम्भ से अन्त तक सक्रिय भाग लेते हैं।
  8. क्रिया अनुसंधान उस समय की प्रगति की मात्रा को निश्चित करने का प्रयास करता है, जिसके सम्बन्ध में वह अध्ययन करता है।
  9. क्रिया अनुसंधान में विद्यालय के शिक्षक, प्रशासक और निरीक्षक एवं कॉलेजों और विश्वविद्यालयों के अध्यापक साधारणतः एक-दूसरे के सहयोग से कार्य करते हैं। 
  10. क्रिया अनुसंधान में विद्यालय के समय उद्देश्यों में परिवर्तन, नवीन उपकल्पनाओं का निर्माण और उनका परीक्षण किया जा सकता है।
अन्त में, हम एण्डरसन के शब्दों में कह सकते हैं - "क्रिया अनुसंधान की एक सबसे महत्वपूर्ण विशेषता है - प्रेरणा, जो यह शिक्षकों, निरीक्षकों और प्रशासकों को परिणामों का अधिक आत्मनिष्ठ और आकस्मिक मूल्यांकन का त्याग करने और विचारों का परीक्षण करने के लिए विभिन्न प्रकार के प्रमाणों का अधिक वस्तुनिष्ठ संग्रह करने के लिए देता है।"

क्रिया अनुसंधान का महत्व

क्रिया अनुसंधान के महत्व के पक्ष में निम्नांकित तर्क प्रस्तुत किए जा सकते हैं -
  1. यह विद्यालय की कार्य प्रणाली में संशोधन और सुधार करता है।
  2. यह विद्यालय में जनतंत्रात्मक मूल्यों की स्थापना पर बल देता है।
  3. यह विद्यालय के यांत्रिक और परम्परागत वातावरण को समाप्त करने का प्रयत्न करता है।
  4. यह विद्यालय के शिक्षकों और प्रधानाचार्य को अपने दैनिक अनुभवों को संगठित करने और उनसे लाभ उठाने के लिए प्रेरित करता है ।
  5. यह विद्यालय, प्रबन्धकों, छात्रों, शिक्षकों, निरीक्षकों आदि की समस्याओं का व्यावहारिक समाधान करता है।
  6. यह पाठ्यक्रम को समाज की माँगों, मूल्यों और मान्यताओं के अनुकूल बनाकर, विद्यालय को समाज का लघु रूप बनाने की चेष्टा करता है। 
  7. यह छात्रों की चतुर्मुखी उन्नति करने के लिए विद्यालय की क्रियाओं का प्रभावपूर्ण विधि से आयोजन करता है। 
  8. यह वैज्ञानिक आविष्कारों के कारण उत्पन्न होने वाली नई परिस्थितियों का सामना करने में सहायता देता है।
  9. यह शिक्षकों में पारस्परिक प्रेम, सहयोग और सद्भावना की भावनाओं का विकास करता है।
  10. यह शिक्षकों, प्रधानाचार्यो, प्रबन्धक, प्रशासकों आदि को वैज्ञानिक और वस्तुनिष्ठ विधियों को अपनाने के लिए प्रोत्साहित करके मूल्यांकन में परिवर्तन और सुधार करता है।
विद्यालय, शिक्षा और शिक्षा से सम्बन्धित व्यक्तियों के लिए क्रिया अनुसंधान का क्या महत्व है, इसकी पुष्टि करने के लिए कोरे के इन शब्दों को उद्धृत करना अनिवार्य है - “हमारे विद्यालय तब तक जीवन के अनुकूल कार्य नहीं कर सकते हैं, जब तक शिक्षक, छात्र, निरीक्षक, प्रशासक और विद्यालय संरक्षक इस बात की निरन्तर जाँच न करें कि वे क्या कर रहे हैं। इसी प्रक्रिया को मैं क्रिया अनुसंधान कहता हूँ।"

क्रिया अनुसंधान के गुण व दोष

गुण 

रिसर्च इन एजूकेशन में क्रिया अनुसंधान के निम्नांकित गुणों पर प्रकाश डाला गया है
  1. क्रिया अनुसंधान में सिद्धान्त की अपेक्षा प्रयोग पर अधिक बल दिया जाता है। 
  2. क्रिया अनुसंधान में किया जाने वाला प्रयोग वास्तविक परिवर्तन पर आधारित होता है। 
  3. क्रिया अनुसंधान निर्णय और कार्य करने में केन्द्रीकरण की प्रवृत्ति का अन्त करता है।
  4. क्रिया अनुसंधान करने वाला व्यक्ति - समस्या का समाधान करके अनिवार्य रूप से अपनी उन्नति करता है।
  5. क्रिया अनुसंधान में सत्यों और तथ्यों पर बल दिया जाता है। अतः अध्ययन की जाने वाली परिस्थिति में वास्तविकता के अनुसार निरन्तर परिवर्तन होता रहता है। 
  6. मौले के अनुसार क्रिया अनुसंधान, शिक्षक को समस्याओं के ऐसे समाधानों से अवगत कराता है, जिनको वह सरलता से समझ कर प्रयोग कर सकता है। 
  7. मौले के अनुसार - क्रिया अनुसंधान, शिक्षक के व्यवहार और शिक्षण में परिवर्तन करने से पूर्व उसके विचार और दृष्टिकोण में परिवर्तन करता है।

दोष

मौले ने क्रिया अनुसंधान में अधोलिखित मुख्य दोषों की ओर संकेत किया है-
  1. क्रिया अनुसंधान में श्रेष्ठता और उत्तम गुण का अभाव होता है, क्योंकि शिक्षक, निरीक्षक आदि को अनुसंधान करने का कोई अनुभव या प्रशिक्षण नहीं होता है। 
  2. क्रिया अनुसंधान करने वाले शिक्षक, निरीक्षक आदि अनुसंधान की वैज्ञानिक विधि से अनभिज्ञ होने के कारण समस्या और उसके कारणों को पूर्ण रूप से नहीं समझ पाते हैं। अतः वे उसका वास्तविक हल खोजने में असमर्थ होते हैं। 
  3. क्रिया अनुसंधान करने वाले शिक्षक, निरीक्षक आदि का विद्यालय की समस्याओं से इतना घनिष्ठ सम्बन्ध होता है कि उनका समाधन करते समय वे अपने को वैयक्तिक कारकों से पूर्णतया पृथक् करने में असफल होते हैं।
  4. क्रिया अनुसंधान का आधार पर विशेष विद्यालय की एक विशेष परिस्थिति में एक विशेष समस्या होती है। इस समस्या का हल खोजने वाला शिक्षक दूसरे विद्यालय में जाने के बाद वहाँ उसका प्रयोग नहीं कर सकता है।
  5. क्रिया अनुसंधान का भार उन शिक्षकों को वहन करना पड़ता है, जो पहले से ही शिक्षण के भार से दबे रहते हैं। परिणामतः वे अपना पूर्ण ध्यान न तो अनुसंधान के प्रति दे पाते हैं और न शिक्षण के प्रति।
निष्कर्ष रूप में, हम मौले के शब्दों में कह सकते हैं - "अपने दोषों के बावजूद भी क्रिया अनुसंधान को निस्संदेह रूप से प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। शिक्षकों को अपनी स्वयं की समस्याओं में भाग लेने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए। क्रिया अनुसंधान के कारण कक्षा-कक्ष की अनेक समस्याओं का समाधान हुआ है और इसने विज्ञान के रूप में शिक्षा की प्रगति में योग दिया है।"

क्रिया अनुसंधान के पद 

एण्डरसन के अनुसार क्रिया अनुसंधान की प्रणाली में सात सोपानों का होना आवश्यक है-
  1. समस्या का ज्ञान। 
  2. कार्य के प्रति प्रस्तावों पर विचार-विमर्श। 
  3. योजना का चयन व उपकल्पना का निर्माण।
  4. तथ्य संग्रह करने की विधियों का निर्माण।
  5. योजना का कार्यान्वयन व प्रमाणों का संकलन।
  6. तथ्यों पर आधारित निष्कर्ष । 
  7. दूसरों को परिणाम की सूचना।

पहला सोपान समस्या का ज्ञान 

क्रिया अनुसंधान का पहला सोपान है - विद्यालय में उपस्थित होने वाली समस्या को भली-भाँति समझना। यह तभी सम्भव है, जब विद्यालय के शिक्षक, प्रधानाचार्य आदि उसके सम्बन्ध में अपने विचार व्यक्त करें। ऐसा करके ही वे वास्तविक समस्या को समझ कर अपने कार्य में आगे बढ़ा सकते हैं।

दूसरा सोपान कार्य के लिए प्रस्तावों पर विचार-विमर्श 

क्रिया अनुसंधान का दूसरा सोपान है - समस्या को भली-भाँति समझने के बाद इस बात पर विचार करना कि उसके कारण क्या हैं और उसका समाधान करने के लिए कौन-से कार्य किये जा सकते हैं। शिक्षक, प्रधानाचार्य, प्रबन्ध आदि इन कार्यों के सम्बन्ध में अपने-अपने प्रस्ताव या सुझाव देते हैं। इसके बाद वे अपने विश्वासों, सामाजिक मूल्यों, विद्यालयों के उद्देश्यों आदि को ध्यान में रखकर उन पर विचार-विमर्श करते हैं।

तीसरा सोपान योजना का चयन व उपकल्पना का निर्माण 

क्रिया अनुसंधान का तीसरा सोपान है - विचार विमर्श के फलस्वरूप समस्या का समाधान करने के लिए एक योजना का चयन और उपकल्पना का निर्माण करना। इसके लिए विचार-विमर्श करने वाले सब व्यक्ति संयुक्त रूप से उत्तरदायी होते हैं।
उपकल्पना में तीन बातों का सविस्तार वर्णन किया जाता है
(1) समस्या का समाधान करने के लिए अपनाई जाने वाली योजना
(2) योजना का परीक्षण 
(3) योजना द्वारा प्राप्त किया जाने वाला उद्देश्य 
उदाहरणार्थ, एक उपकल्पना इस प्रकार हो सकती है - "यदि प्रत्येक कक्षा में विभिन्न प्रकार की शिक्षण सामग्री का प्रयोग किया जाय, तो बालकों को अधिक और अच्छी शिक्षा दी जा सकती है।"

यही समस्या है - बालकों को अधिक और अच्छी शिक्षा किस प्रकार दी जा सकती है। इसका समाधान करने के लिए अपनाई जाने वाली योजना है - प्रत्येक कक्षा में विभिन्न प्रकार की शिक्षण सामग्री का प्रयोग योजना बनाने वालों को इस बात का विश्वास है कि शिक्षण सामग्री के प्रयोग से अधिक और अच्छी शिक्षा दी जा सकती है। अतः वे इस योजना का परीक्षण करना चाहते हैं। योजना द्वारा प्राप्त किया जाने वाला उद्देश्य है - बालकों को अधिक और अच्छी शिक्षा देना।

चौथा सोपान तथ्य संग्रह करने की विधियों का निर्माण 

क्रिया अनुसंधान का चौथा सोपान है - योजना को कार्यान्वित करने के बाद तथ्यों या प्रमापों का संग्रह करने की विधियाँ निश्चित करना। इन विधियों की सहायता से जो तथ्य संग्रह किये जाते हैं, उनसे यह अनुमान लगाया जाता है कि योजना का क्या प्रभाव पड़ रहा है। उदाहरणार्थ, विभिन्न प्रकार की शिक्षण सामग्री का प्रयोग किये जाने के समय निम्नलिखित चार विधियों का प्रयोग करके यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि पढ़ाई पहले से अधिक और अच्छी हो रही है या नहीं
(i) शिक्षक द्वारा प्रत्येक घण्टे में पढ़ाई जाने वाली विषय सामग्री का लेखा रखा जाना।
(ii) प्रश्नावली का प्रयोग करके छात्रों के उत्तर प्राप्त करना । 
(iii) विभिन्न छात्रों के साक्षात्कार करना।
(iv) विभिन्न कक्षाओं के छात्रों का मत संग्रह करना। 

पाँचवाँ सोपान योजना का कार्यान्वयन व प्रमापों का संकलन 

क्रिया अनुसंधान का पाँचवाँ सोपान है - निश्चित की गई योजना को कार्यान्वित करना और उसकी सफलता या असफलता के सम्बन्ध में प्रमाण या तथ्यों का संकलन करना। योजना से सम्बन्धित सभी व्यक्ति चौथे सोपान में निश्चित की गई विधियों की सहायता से तथ्यों का संग्रह करते हैं। वे समय-समय पर एकत्र होकर इन तथ्यों के विषय में विचार-विमर्श करते हैं। इसके आधार पर वे योजना के स्वरूप में परिवर्तन करते हैं, ताकि उद्देश्य की प्राप्ति सम्भव हो सके। उदाहरणार्थ, प्रत्येक कक्षा में प्रयोग की जाने वाली शिक्षण सामग्री को वे कम, अधिक या परिवर्तित कर सकते हैं।

छठा सोपान तथ्यों पर आधारित निष्कर्ष 

क्रिया अनुसंधान का छठा सोपान है - योजना की समाप्ति के बाद संग्रह किए हुए तथ्यों या प्रमाण से निष्कर्ष निकालना। उदाहरणार्थ, प्रत्येक कक्षा में विभिन्न प्रकार की शिक्षण सामग्री का प्रयोग करने से बालकों को अधिक और अच्छी शिक्षा दी गई या नहीं। इस प्रकार निकाले जाने वाले निष्कर्ष उसी विद्यालय के लिए होते हैं, जहाँ क्रिया अनुसंधान किया जाता है। कुछ निष्कर्ष ऐसे भी हो सकते हैं, जिनकी कल्पना भी नहीं की जाती है। उक्त उदाहरण में एक निष्कर्ष यह हो सकता है कि एक विशेष प्रकार की शिक्षण सामग्री अधिक और अच्छी शिक्षा देने में विशेष उपयोगी सिद्ध हुई है।

सातवाँ सोपान : दूसरों को परिणामों की सूचना 

क्रिया अनुसंधान का सातवाँ और अन्तिम सोपान है - दूसरे व्यक्तियों को योजना के परिणामों की सूचना देना। उदाहरणार्थ, यदि उक्त योजना, विद्यालय के कुछ ही शिक्षकों द्वारा निर्मित और कार्यान्वित की गई है, तो उसके परिणामों की सूचना विद्यालय के शेष शिक्षकों को दी जानी आवश्यक है। वस्तुतः इन परिणामों से दूसरे विद्यालय के शिक्षकों को भी अवगत कराया जाना चाहिए। इसकी आवश्यकता बताते हुए एण्डरसन ने लिखा है - “विद्यालय के लोगों को इस बात में रुचि होती है कि अनुसन्धान किस प्रकार किया जाता है और उसके क्या परिणाम हैं। परिणामतः जो व्यक्ति क्रिया अनुसंधान करते हैं, उन पर उसकी सूचना देने का उत्तरदायित्व हैं।"

विद्यालय समस्या की क्रिया अनुसंधान योजना

समस्या - छात्रों का विद्यालय से भाग जाना 
विद्यालय का नाम- पब्लिक हाई स्कूल, आगरा। 
विद्यालय की छात्र संख्या - 420 विद्यालय की कक्षाएँ - 19 और 10
अनुसंधानकर्ता - श्री रामप्रकाश शर्मा, गणित अध्यापक सहायक - विज्ञान, हिन्दी, भूगोल और के शिक्षक। अनुसंधान की अवधि - 1 अक्टूबर से 30 नवम्बर, 1994

समस्या की पृष्ठभूमि

जुलाई, 1994 से कुछ छात्रों में विद्यालय से भागने की प्रवृत्ति आरम्भ हो गई है। वे छुट्टी लेकर या बिना छुट्टी लिये विद्यालय से भाग जाते हैं। 

समस्या पर विचार-विमर्श 

अनुसंधान टोली के सदस्य छात्रों के भागने की समस्या से चिन्तित हैं। अतः वे कभी-कभी एकत्र होकर इस सम्बन्ध में विचार-विमर्श करते हैं।

समस्या का निर्धारण

सितम्बर मास में टोली के सदस्यों को इस बात का पूर्ण निश्चय हो जाता है कि कुछ छात्रों में भागने की आदत है। अतः वे विद्यालय समस्या को इस प्रकार निर्धारित करते हैं - "छात्रों की विद्यालय से भाग जाने की समस्या।"
[संकेत - अनुसंधान टोली, छात्रों के भागने के कारणों और उसको दूर करने के लिए सुझाव या प्रस्ताव देती है । ]

समस्या के कारण

  1. छात्रों की सिनेमा देखने की इच्छा।
  2. छात्रों की इधर उधर घूमने की आदत।
  3. छात्रों पर घरेलू नियंत्रण के कारण कहीं न जाने की आज्ञा।
  4. छात्रों का अपने घरों में एकाकी जीवन।
  5. छात्रों के घरों में मनोरंजन का अभाव।

कार्य प्रस्ताव

  1. फिल्म दिखाने की व्यवस्था ।
  2. भ्रमण और सरस्वती यात्राओं का आयोजन।
  3. मनोरंजक पाठान्तर क्रियाओं का प्रबन्ध।
[संकेत - टोली के सदस्यों का विश्वास है कि उक्त कार्य, छात्रों की फिल्म देखने, इधर-उधर घूमने और मनोरंजन की इच्छाओं को सन्तुष्ट करके उनकी भागने की आदत का अन्त कर देंगे। अतः वे एक योजना का निर्माण करके उपकल्पना के रूप में उसे लेखबद्ध करते हैं।] 

उपकल्पना

यदि छात्रों के लिए फिल्म शो, भ्रमण, सरस्वती यात्राओं और मनोरंजन क्रियाओं की व्यवस्था कर दी जाय, तो उनकी विद्यालय से भागने की प्रवृत्ति का अन्त किया जा सकता है।
[संकेत - टोली योजना के दौरान तथ्यों या प्रमाणों का संग्रह करने के लिए अनेक विधियाँ निर्धारित करती है।] 

तथ्य संग्रह विधियाँ

  1. छात्रों की राय जानने के लिए प्रश्नावली का प्रयोग।
  2. विभिन्न छात्रों के साक्षात्कार। 
  3. विभिन्न कक्षाओं के छात्रों का मत संग्रह।
  4. टोली के सदस्यों द्वारा छात्रों की प्रवृत्ति का अध्ययन।
  5. सदस्यों द्वारा भागने वाले छात्रों के आँकड़ों का संकलन।

योजना का कार्यान्वयन (1 अक्टूबर 30 नवम्बर)

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[संकेत- योजना के दौरान अनुसंधान टोली जिन तथ्यों का संग्रह करती है, उनके आधार पर अनेक निष्कर्ष या परिणाम निकालती है।]

योजना के परिणाम

  1. भागने वाले छात्र किसी विशेष वर्ग या जाति के नहीं हैं।
  2. योजना को लागू करने से भागने वाले छात्रों की संख्या 90% कम  हो गई है।
  3. कक्षा 9 और 10 के भागने वाले छात्रों का अनुपात 3:1 हैं। 
  4. शेष 10% भागने वाले छात्रों के कारण हैं।
  • विद्यालय वातावरण से अनुकूलन करने में असफलता
  • निर्धनता के कारण हीनता की भावना
  • बुरी संगति का त्याग करने में असमर्थता
  • गृहकार्य न करने के कारण दण्ड का भय
  • अस्वस्थता के कारण लगातार बैठने की शक्तिहीनता।

अनुसंधान के परिणामों की सूचना

क्रिया अनुसंधान की योजना और परिणामों का शिक्षा सम्बन्धी पत्रिकाओं में प्रकाशन।

इस Blog का उद्देश्य प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे प्रतियोगियों को अधिक से अधिक जानकारी एवं Notes उपलब्ध कराना है, यह जानकारी विभिन्न स्रोतों से एकत्रित किया गया है।