संवेदना, प्रत्यक्षीकरण व प्रत्यय-ज्ञान | Sensation, Perception and Conception

संवेदना को ज्ञान का द्वार कहा गया है। हमारे शरीर में ज्ञानवाही तथा गतिवाही तन्तुओं का जाल फैला है। ज्ञानवाही तंतुओं में एक सिरा ग्राहक होता...

 संवेदना, प्रत्यक्षीकरण व प्रत्यय-ज्ञान (Sensation, Perception and Conception)


Sensation-Perception-and-Conception
Sensation, Perception and Conception

संवेदना का अर्थ व स्वरूप (MEANING AND NATURE OF SENSATION)

संवेदना को ज्ञान का द्वार कहा गया है। हमारे शरीर में ज्ञानवाही तथा गतिवाही तन्तुओं का जाल फैला है। ज्ञानवाही तंतुओं में एक सिरा ग्राहक (Receptor) होता है और दूसरे का सम्बन्ध बोध केन्द्र (Sensory centre) से होता है। कोई सूचना ग्राहक के द्वारा तंतुओं से होती हुई बोध केन्द्र में पहुँचती है। बोध केन्द्र, मस्तिष्क को सूचना देता है। मस्तिष्क गतिवाही तंतुओं को सूचित करता है और प्राप्त सूचना की प्रतिक्रिया होने लगती है। इसी ज्ञान को संवेदना अथवा इन्द्रियजन्य ज्ञान कहते हैं।

जब बालक का जन्म होता है, तब वह अपने वातावरण के बारे में कुछ भी नहीं जानता है। कुछ समय के बाद उसकी ज्ञानेन्द्रियाँ कार्य करना आरम्भ कर देती हैं। फलस्वरूप, उसे उनसे विभिन्न प्रकार का ज्ञान प्राप्त होने लगता है। इसी ज्ञान को 'संवेदना' या 'इन्द्रिय-ज्ञान' कहते हैं। 

'संवेदना' का पूर्व-ज्ञान या पूर्व-अनुभव से कोई सम्बन्ध नहीं होता है; उदाहरणार्थ, शिशु के कानों में कोई आवाज आती है। वह उसे सुनता है, पर वह यह नहीं जानता है कि आवाज किसकी है और कहाँ से आ रही है। उसे इस प्रकार की आवाज का न तो पूर्व-ज्ञान होता है और न पूर्व-अनुभव। आवाज के इसी प्रकार के ज्ञान को 'संवेदना' कहते हैं। 

हमें बाह्य संसार का सब ज्ञान, ज्ञानेन्द्रियों के द्वारा प्राप्त होता है। इसीलिए इनको 'ज्ञान के द्वार (Gateways of Knowledge) कहा जाता है। एक इन्द्रिय से केवल एक प्रकार का ज्ञान, प्राप्त होता है; उदाहरणार्थ, आँखों से प्रकाश का और कार्नो से आवाज का ज्ञान। 

'संवेदना' सबसे साधारण मानसिक अनुभव और मानसिक प्रक्रिया का सबसे सामान्य रूप है। यह ज्ञान-प्राप्ति की पहली सीढ़ी है। यह सभी प्रकार के ज्ञान में होती है। इसके अभाव में किसी प्रकार का अनुभव सम्भव नहीं है कुछ मनोवैज्ञानिकों ने 'संवेदना' को केवल नवजात शिशु द्वारा अनुभव किया जाने वाला शुद्ध ज्ञान माना है। वार्ड (Ward) उनसे सहमत न होकर लिखता है-"शुद्ध संवेदना, मनोवैज्ञानिक कल्पना है।" ("Pure sensation is a psychological myth.")

हम 'संवेदना' के अर्थ को और अधिक स्पष्ट करने के लिए कुछ परिभाषाएँ दे रहे हैं;
1. जलोटा-"संवेदना एक साधारण ज्ञानात्मक अनुभव है।"
"A sensation is an elementary cognitive experience." -Jalota. 
2. जेम्स-"संवेदनायें ज्ञान के मार्ग में पहली वस्तुएँ हैं।"
"Sensations are first things in the way of consciousness." -James. 
3. डगलस व हॉलैण्ड-"संवेदना शब्द का प्रयोग सब चेतना-अनुभवों में सबसे सरलतम का वर्णन करने के लिए किया जाता है।" 
"The term sensation is used to describe the simplest of all experiences." conscious -Douglas and Holland.

संवेदना से प्राप्त ज्ञान, मनोक्रिया का प्रथम चरण है। इसे मानसिक प्रक्रिया का सामान्य रूप माना जाता है। संवेदना, सभी प्रकार के ज्ञान के लिये उत्तरदायी है। संवेदना के अभाव में किसी भी प्रकार के ज्ञान की अनुभूति नहीं की जा सकती।

संवेदना के प्रकार (TYPES OF SENSATION)

ज्ञानेन्द्रियों के अलावा, शरीर की माँसपेशियाँ, शरीर के भीतर के अंग आदि भी संवेदनाओं के कारण हैं। हैरिक्स (Herricks ) ने अपनी पुस्तक "Introduction to Neurology" में उनकी बहुत लम्बी सूची दी है। उनमें से डगलस व हॉलैण्ड (Douglas and Holland) ने निम्नलिखित को महत्वपूर्ण बताया है:-
  • दृष्टि-संवेदना (Visual Sensation) : सब प्रकार के रंग-रूप आदि। 
  • ध्वनि-संवेदना (Hearing Sensation) : सब प्रकार की आवाजें, ध्वनियाँ आदि।
  • घ्राण-संवेदना (Smell Sensation) : सब प्रकार की गन्ध । 
  • स्वाद-संवेदना (Taste Sensation) : सब प्रकार के स्वाद।
  • स्पर्श-संवेदना (Touch Sensation) : सब प्रकार के स्पर्श, दबाव आदि। 
  • माँसपेशी-संवेदना (Muscle Sensation) : सब प्रकार की मांसपेशियों की गतियों से सम्बन्धित।
  • शारीरिक-संवेदना (Organic Sensation) : शरीर के अन्दर के अंगों द्वारा प्राप्त होने वाले सब प्रकार के अनुभव।
संवेदना के इन सभी प्रकार को तीन श्रेणियों - स्नायुविक (स्थिति, गति, प्रतिरोध), शारीरिक (अंग-प्रत्यंग से प्राप्त), विशिष्ट (दृष्टि, श्रवण, घ्राण, स्वाद तथा स्पर्श), में रखा जा सकता है।

संवेदना की विशेषताएँ (CHARACTERISTICS OF SENSATION)

संवेदना के गुण या विशेषताएँ इस प्रकार हैं:

गुण (Quality) 

प्रत्येक संवेदना में एक विशेष गुण पाया जाता है। एक ज्ञानेन्द्रिय द्वारा अनुभव की जाने वाली दो संवेदनाओं में भी समानता नहीं होती है; उदाहरणार्थ, दो फूलों की । सुगन्ध और दो मनुष्यों की आवाज में भिन्नता होती है।

तीव्रता (Intensity)

प्रत्येक संवेदना में तीव्रता की विशेषता होती है। दो संवेदनाएँ समान रूप से तीव्र नहीं होती है। उनमें से एक प्रबल और एक निर्बल होती है; उदाहरणार्थ लाल और सफेद रंगों की तीव्रता में अन्तर होता है।

अवधि (Duration)

प्रत्येक संवेदना की एक निश्चित अवधि होती है। उसके बाद व्यक्ति उसका अनुभव नहीं करता है। कुछ संवेदनाएँ अल्पकालीन होती हैं और कुछ दीर्घकालीन; उदाहरणार्थ, एक मिनट सुनी जाने वाली आवाज की संवेदना अल्पकालीन और एक घण्टे सुनी जाने वाली आवाज की संवेदना दीर्घकालीन होती है।

स्पष्टता (Clearness)

प्रत्येक संवेदना में स्पष्टता की विशेषता पाई जाती है। अल्पकालीन संवेदना की तुलना में दीर्घकालीन संवेदना अधिक स्पष्ट होती है। इसके अलावा, जिस संवेदना पर हमारा ध्यान जितना अधिक केन्द्रित होता है, उतनी ही अधिक उसमें स्पष्टता होती है।

स्थानीय चिह्न (Local Sign)

प्रत्येक संवेदना में स्थानीय चिह्न की विशेषता होती है: उदाहरणार्थ, यदि हमारे हाथ को किसी स्थान पर दबाया जाय, तो हम बता सकते हैं कि इस स्पर्श-संवेदना का स्थान कौन-सा है।

विस्तार (Extension)

यह विशेषता प्रत्येक संवेदना में नहीं पाई जाती है। ज्ञानेन्द्रिय के कम क्षेत्र को प्रभावित करने वाली संवेदना का विस्तार कम और अधिक क्षेत्र को प्रभावित करने वाली संवेदना का विस्तार अधिक होता है; उदाहरणार्थ, सुई की नोंक से होने वाली संवेदना की तुलना में तकुए की नोंक से होने वाली संवेदना का विस्तार अधिक होता है।

संवेदना का शिक्षा में महत्व

संवेदना को ज्ञान की प्रथम सीढ़ी कहा गया है, इसलिये बालक की शिक्षा का आरम्भ संवेदना से होता है। संवेदना से वस्तु की सत्ता का आभास होता है। संवेदना का शिक्षा में महत्व इस प्रकार है:-

1. प्रारम्भिक ज्ञान के उपरान्त वस्तु के गुण समझना।
2. वस्तु की सत्ता का ज्ञान होना।
3. अर्थज्ञान के लिये पृष्ठभूमि तैयार करना।
4. प्रत्यक्षीकरण के लिये संवेदना का होना आवश्यक।
5. मान्टेसरी एवं किन्डरगार्टन जैसी शिक्षण पद्धतियों का ज्ञान।
6. ज्ञानेन्द्रियों का उचित प्रयोग।
7. मानसिक विकास में सहायक। इन सभी विशेषताओं के कारण संवेदना शिक्षा की प्रक्रिया में विशेष महत्व रखती है।

प्रत्यक्षीकरण का अर्थ व स्वरूप

प्रत्यक्षीकरण एक मानसिक प्रक्रिया है, संवेदना द्वारा प्राप्त ज्ञान में अर्थ नहीं होता जबकि प्रत्यक्षीकरण में अर्थ निहित होता है। इसीलिये प्रत्यक्षीकरण द्वारा जो ज्ञान प्राप्त होता है, उसे सविकल्प प्रत्यक्ष भी कहते है।

जब बालक कोई आवाज पहली बार सुनता है, तब उसे उसका कोई पूर्व-अनुभव होता है। वह यह नहीं जानता है कि आवाज किसकी है और कहाँ से आ रही है। आवाज के इस प्रकार के ज्ञान को 'संवेदना' कहते हैं।

समय के साथ-साथ बालक का अनुभव बढ़ता जाता है। वह आवाज को दूसरी या तीसरी बार सुनता है। अब वह जानता है कि आवाज किसकी है और कहाँ से आ रही है। उसका अनुभव उसे बताता है कि आवाज सड़क पर भौंकने वाले कुत्ते की है। आवाज के इस प्रकार की ज्ञान को 'प्रत्यक्षीकरण' या 'प्रत्यक्ष ज्ञान' कहते हैं दूसरे शब्दों में, पूर्व-अनुभव के आधार पर संवेदना की व्याख्या करना या उसमें अर्थ जोड़ना "प्रत्यक्षीकरण" है ।

'प्रत्यक्षीकरण' का पूर्व-ज्ञान या पूर्व- अनुभव से स्पष्ट सम्बन्ध होता है। इसीलिए, इसको ज्ञान-प्राप्ति की दूसरी सीढ़ी और पिछले अनुभव से सम्बन्धित माना जाता है।

हम 'प्रत्यक्षीकरण' के अर्थ को और अधिक स्पष्ट करने के लिए कुछ परिभाषाएँ दे रहे हैं;
1. रायबर्न-"अनुभव के अनुसार संवेदना की व्याख्या की प्रक्रिया को प्रत्यक्षीकरण कहते हैं।"
"The process of interpretation of sensation according to experience is known as perception." -Ryburn 
2. जलोटा-"प्रत्यक्षीकरण वह मानसिक प्रक्रिया है, जिससे हमको बाह्य जगत की वस्तुओं या घटनाओं का ज्ञान प्राप्त होता है।"
"Perception is that mental process by which we get knowledge of objective facts." -Jalota 
3. भाटिया-"प्रत्यक्षीकरण, संवेदना और अर्थ का योग है। प्रत्यक्षीकरण संवेदना और विचार का योग है।"
"Perception is sensation plus meaning. Perception is sensation plus thought." -Bhatia.
4. वुडवर्थ-"प्रत्यक्षीकरण इन्द्रियों की सहायता से पदार्थ और बाह्य घटनाओं या तथ्यों को जानने की क्रिया है।" "Perception is the process of getting to know objects and objective facts by use of the senses." -R. S. Woodworth
5. जेम्स-"प्रत्यक्षीकरण विशेष रूप से अभौतिक पदार्थों की चेतना है जो ज्ञानेन्द्रियों के सामने रहते हैं।" 
"Perception is the consciousness of particular material things present to senses."

प्रत्यक्षीकरण का विश्लेषण (ANALYSIS OF PERCEPTION)

Jalota का कथन है-"प्रत्यक्षीकरण एक पूर्ण मानसिक प्रक्रिया है। ("Perception is a complete mental process.") इस प्रक्रिया का विश्लेषण निम्न प्रकार से किया जा सकता है

  1. वस्तु या उत्तेजक (Stimulus) का होना।
  2. वस्तु का ज्ञानेन्द्रियों को प्रभावित करना।
  3. ज्ञानेन्द्रियों का ज्ञानवाहक तन्तुओं को प्रभावित करना।
  4. ज्ञानवाहक तन्तुओं का वस्तु के ज्ञान या अनुभव को मस्तिष्क के ज्ञान-केन्द्र में पहुँचाना।
  5. संवेदना उत्पन्न होना।
  6. संवेदना में अर्थ जोड़ना।
  7. प्रत्यक्षीकरण का होना।

संवेदना व प्रत्यक्षीकरण में अन्तर (DISTINCTION BETWEEN SENSATION AND PERCEPTION)

संवेदना तथा प्रत्यक्षीकरण एक-दूसरे के पूरक हैं, अतः इनके सम्बन्ध तथा अन्तर को जानना आवश्यक है। यह अन्तर इस प्रकार है-
  • संवेदना में मस्तिष्क निष्क्रिय रहता है; प्रत्यक्षीकरण में सक्रिय रहता है। 
  • संवेदना, ज्ञान-प्राप्ति की पहली सीढ़ी है; प्रत्यक्षीकरण दूसरी सीढ़ी है।
  • संवेदना का पूर्व-अनुभव से कोई सम्बन्ध नहीं होता है; प्रत्यक्षीकरण का होता है ।
  • संवेदना द्वारा प्राप्त ज्ञान अस्पष्ट और अनिश्चित होता है: प्रत्यक्षीकरण द्वारा प्राप्त ज्ञान स्पष्ट और निश्चित होता है।
  • संवेदना की मानसिक क्रिया का रूप सरल और प्रारम्भिक होता है; प्रत्यक्षीकरण में जटिल और विकसित होता है।
  • संवेदना की मानसिक प्रक्रिया में केवल एक तत्व होता है-अनुभव; प्रत्यक्षीकरण की मानसिक प्रक्रिया में दो तत्व होते हैं-किसी वस्तु को देखना और उसका अर्थ लगाना।
  • संवेदना हमको ज्ञान का कच्चा माल देती है; प्रत्यक्षीकरण उस ज्ञान को संगठित रूप प्रदान करता है।
  • भाटिया (Bhatia) के अनुसार-संवेदना किसी वस्तु के रंग, स्वाद, गंध आदि के समान गुण को बताती है; प्रत्यक्षीकरण, वस्तु और गुण में सम्बन्ध स्थापित करता है। 
  • स्टर्ट एवं ओकडन (Sturt and Oakden) के अनुसार-संवेदना किसी वस्तु का तात्कालिक अनुभव देती है; प्रत्यक्षीकरण पूर्व -ज्ञान के आधार पर उस अनुभव की व्याख्या करता है। 
  • जेम्स (James) के अनुसार-संवेदना किसी वस्तु का केवल परिचय देती है; प्रत्यक्षीकरण उस वस्तु का ज्ञान प्रदान करता है।

प्रत्यक्षीकरण की विशेषताएँ

प्रत्यक्षीकरण एक महत्वपूर्ण मानसिक क्रिया है। ज्ञानार्जन एवं अनुभव प्राप्ति में इसका अत्यधिक महत्व है। प्रत्यक्षीकरण की विशेषताएँ इस प्रकार हैं

प्रत्यक्षीकरण में पूर्ण स्थिति का ज्ञान

झा (Jha) ने लिखा है-"प्रत्यक्षीकरण की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता है-पूर्णता के नियम का कार्य करना।" इसका अभिप्राय यह है कि प्रत्यक्षीकरण में हमें पूर्व स्थिति या सब वस्तुओं का इकट्ठा ज्ञान होता है, उसके अलग- अलग अंगों का नहीं; उदाहरणार्थ, यदि किसी स्थान पर आठ बैल बँधे हुए हैं और हम किसी से पूँछें कि कितने बैल है, तो उसका स्वाभाविक उत्तर होगा-चार जोड़ी बैल।

प्रत्यक्षीकरण में परिवर्तन

बोरिंग, लँंगफील वील्ड (Boring, Langfeld and Weld) का कथन है-“प्रत्यक्षीकरण का आधार परिवर्तन है।" दूसरे शब्दों में, परिवर्तन के कारण ही हमें प्रत्यक्षीकरण होता है। यदि हमारे वातावरण में परिवर्तन हो जाता है, तो हमें उसका अनुभव अवश्य होता है; उदाहरणार्थ, जून के माह में सड़क पर चलते समय हमें बहुत गर्मी लगती है। यदि उसके बाद हम ठण्डे कमरे में प्रवेश करते हैं, तो हमको सड़क की गर्मी का तनिक भी अनुभव नहीं होता है।

प्रत्यक्षीकरण में चुनाव

बोरिंग, लैंगफील्ड एवं वील्ड (Boring, Langfeld and Weld) के अनुसार- "प्रत्यक्षीकरण की एक दूसरी सामान्य विशेषता यह है कि यह चुनाव करता है ।" हमें एक ही समय में अनेक वस्तुओं का प्रत्यक्षीकरण होता है। पर हम उनमें से केवल एक का चुनाव करते हैं और उसी पर अपना ध्यान केन्द्रित करते हैं। इस चुनाव में अनेक तत्व सहायता देते हैं; जैसे-हमारी इच्छ, प्रेरणा, वस्तु या घटना की नवीनता और आकर्षण।

प्रत्यक्षीकरण में संगठन

प्रत्यक्षीकरण में संगठन की विशेषता होती है। कभी-कभी मस्तिष्क को एक ही समय में विभिन्न ज्ञानेन्द्रियों द्वारा अनेक वस्तुओं का ज्ञान प्राप्त होता है। ऐसे अवसर पर वह उन वस्तुओं में से अधिक महत्वपूर्ण को एक समूह में संगठित कर लेता है। उदाहरणार्थ, यदि एक मनुष्य एक ही समय में बहुत-से वृक्ष और झाड़ियाँ देखता है, तो उसे वृक्षों का समूह के रूप में प्रत्यक्षीकरण होता है।

प्रत्यक्षीकरण में अर्थ

जलोटा (Jalota) के शब्दों में-"प्रत्यक्षीकरण में सदैव कुछ-न-कुछ अर्थ होता है ।" हमें जिस वस्तु का प्रत्यक्षीकरण होता है, उसके बारे में हम कुछ अवश्य जानते हैं। उदाहरणार्थ, हम एक आवाज सुनते हैं। उसे सुनकर हम जान जाते हैं कि आवाज किस चीज की है-साइकिल की घण्टी की, हॉर्न की या और किसी चीज की।

प्रत्यक्षीकरण में अन्तर

एलिस क्रो (Alice Crow) का विचार है-"व्यक्तिगत विभिन्नताओं के कारण व्यक्तियों के प्रत्यक्षीकरण में अन्तर होता है।" यदि दो व्यक्ति एक ही समय में किसी वस्तु या घटना को देखते हैं, तो उनकी रुचियों, गत अनुभवों, शारीरिक दशा, अवधान की मात्रा आदि में अन्तर होने के कारण उनके प्रत्यक्षीकरण में अन्तर होता है।

प्रत्यक्षीकरण का शिक्षा में महत्व

वर्तमान समय में सभी शिक्षा-शास्त्री प्रत्यक्षीकरण या प्रत्यक्ष ज्ञान के महत्व और उपयोगिता को स्वीकार करते हैं। इसलिए, बेसिक विद्यालयों, मॉन्टेसरी स्कूलों और इसी प्रकार की अन्य शिक्षा-संस्थाओं की व्यवस्था दिखाई देती है। बालक की शिक्षा में प्रत्यक्ष ज्ञान की महत्व है, इस पर हम निम्नलिखित पंक्तियों में प्रकाश डाल रहे हैं-
  1. प्रत्यक्षीकरण बालक के ज्ञान को स्पष्टता प्रदान करता है। 
  2. प्रत्यक्षीकरण, बालक के विचारों का विकास करता है।
  3. रेबर्न (Reyburn) के अनुसार-प्रत्यक्षीकरण, बालक को ध्यान केन्द्रित करने का प्रशिक्षण देता है।
  4. प्रत्यक्षीकरण, बालक को विभिन्न बातों का वास्तविक ज्ञान देता है। अत: उसका परोक्ष ज्ञान प्रभावपूर्ण बनता है। 
  5. प्रत्यक्षीकरण, बालक की स्मृति और कल्पना की प्रक्रियाओं को क्रियाशील बनाता है। फुटबाल का मैच देखने के बाद ही बालक उस पर कुशलतापूर्वक निबन्ध लिख सकता है।
  6. प्रत्यक्षीकरण का आधार ज्ञानेन्द्रियाँ हैं। अत: बालक की ज्ञानेन्द्रियों को सबल रखने और स्वस्थ बनाने का प्रयास किया जाना चाहिए। 
  7. भाटिया (Bhatia) के अनुसार--प्रत्यक्षीकरण, ज्ञान का वास्तविक आरम्भ है। इस ज्ञान-प्राप्ति में ज्ञानेन्द्रियों का मुख्य स्थान है। अत: बालक को ज्ञानेन्द्रियों का उचित प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए।
  8. डम्विल (Dumville) के अनुसार-प्रत्यक्षीकरण और गति में बहुत घनिष्ठ सम्बन्ध है। अत: बालक के प्रत्यक्षीकरण का विकास करने के लिए उसे शारीरिक गतियाँ करने के अवसर दिए जाने चाहिए। इस उद्देश्य से खेल - कूद, दौड़-भाग आदि की उचित व्यवस्था की जानी चाहिए।
  9. बालक के प्रत्यक्षीकरण का विकास करने के लिए उसे अपने आस-पास के वातावरण, संग्रहालय, प्रसिद्ध इमारतों और अन्य उपयोगी स्थानों को देखने के अवसर दिये जाने चाहिये। 
  10. बालक के प्रत्यक्षीकरण का विकास करने के लिए उसे "स्वयं- क्रिया" द्वारा ज्ञान प्राप्त करने, वास्तविक वस्तुओं का प्रयोग करने और बनाने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। 
  11. बालक के प्रत्यक्षीकरण का विकास करने के लिए शिक्षक को पढ़ाते समय विविध प्रकार की शिक्षण-सामग्री का प्रयोग करना चाहिए।

प्रत्यय-ज्ञान का अर्थ व स्वरूप

बालक, कुत्ते को पहली बार देखता है। कुत्ते के चार टाँगे हैं, दो आँखें हैं, एक पूँछ है, सफेद रंग है। इसे देखकर बालक को एक विशेष कुत्ते का ज्ञान हो जाता है-विशेष इसलिए क्योंकि उसे केवल एक विशेष या खास कुत्ते का ही ज्ञान है, आम कुत्तों का ज्ञान उसे अभी नहीं हुआ है।

कुछ समय के बाद बालक उसी कुत्ते को फिर देखता है। उस अवसर पर कुत्ते का विशेष ज्ञान उसे यह जानने में सहायता देता है कि उसने उसे पहले कभी देखा है। कुत्ते को न देखने पर भी उसका स्मरण रहता है।

बालक उस कुत्ते को अनेक बार देखता है। वह और भी अनेक कुत्तों को देखता है। इस प्रकार, उस कुत्ते का सामान्य ज्ञान प्राप्त हो जाता है । उसके मन में कुत्ते से सम्बन्धित एक विचार, प्रतिमा या प्रतिमान (Pattern) का निर्माण हो जाता है। इसी विचार, प्रतिमा, प्रतिमान या सामान्य ज्ञान को "प्रत्यय" (Concept) कहते हैं। धीरे-धीरे बालक-कुत्ता, बिल्ली मेज, कुर्सी, वृक्ष आदि सैकड़ों प्रत्ययों का निर्माण कर लेता है| प्रत्यय- निर्माण की इसी मानसिक क्रिया को 'प्रत्यय-ज्ञान' (Conception) कहते हैं। बालकों के 'प्रत्ययों' के आधार उनके पूर्व-अनुभव, पूर्व-संवेदनाएँ और पूर्व-प्रत्यक्षीकरण होते हैं। इसलिए, इनको ज्ञान-प्राप्ति की तीसरी सीढ़ी और पिछले अनुभवों से सम्बन्धित माना जाता है।

'प्रत्यय' और 'प्रत्यय ज्ञान' क्या है ? इनको अधिक स्पष्ट करने के लिए हम कुछ लेखकों के विचारों को उद्धृत कर रहे हैं; 

1. बोरिंग, लैंगफील्ड एवं वील्ड (Boring, Langfeld and Weld) के अनुसार-"प्रत्यय किसी देखी हुई वस्तु की मानसिक प्रतिमा (Visual Image) है।" 
2. रॉस (Ross) के अनुसार-"प्रत्यय, क्रियाशील ज्ञानात्मक मनोवृत्ति (Active Cognitive Disposition) है। 'प्रत्यय' देखी गई वस्तु का मन में नमूना या प्रतिमान (Pattern in mind) है।" 
3. वुडवर्थ-"प्रत्यय वे विचार हैं, जो वस्तुओं, गुणों आदि का उल्लेख करते हैं।" 
"Concepts are ideas which refer to objects, events, qualities, etc." -Woodworth  
4. डगलस व हॉलैण्ड-"प्रत्यय-ज्ञान, मस्तिष्क में विचार के निर्माण का उल्लेख करता है।"
"Conception refers to the formation of an idea in the mind." -Douglas and Holland 

प्रत्यय की विशेषताएँ (CHARACTERISTICS OF CONCEPTS)

प्रत्यय या सम्बोध की विशेषताएँ इस प्रकार हैं।इन विशेषताओं में सामान्यीकरण मुख्य रूप से पाया जाता है।
  • बोरिंम, लैंगफील्ड एवं वील्ड (Boring, Langfeld and Weld) के अनुसार-प्रत्यय किसी सामान्य वर्ग को व्यक्त करने वाला सामान्य विचार है। (General ideas standing for a general class.) 
  • रॉस (Ross) के अनुसार-प्रत्यय का सम्बन्ध हमारे विचारों से होता है, चाहे वे वास्तविक हों या काल्पनिक। 
  • प्रत्यय एक वर्ग की वस्तुओं के सामान्य गुणों और विशेषताओं का सामान्य ज्ञान प्रदान करता है।
  • क्रो एवं क्रो (Crow and Crow) के अनुसार-प्रत्यय किसी वस्तु का सामान्य अर्थ होता है, जिसे शब्द या शब्द-समूह द्वारा व्यक्त किया जा सकता है।
  • प्रत्यय का आधार अनुभव होता है। जैसे-जैसे बालक के अनुभवों में वृद्धि होती जाती है, वैसे-वैसे उसके प्रत्ययों की संख्या बढ़ती जाती है।
  • हरलॉक (Hurlock) के अनुसार-प्रत्यय में जटिलता होती है, जिसमें बालक क ज्ञान और अनुभवों के अनुसार परिवर्तन होता रहता है।
  • प्रत्यय आरम्भ में अस्पष्ट और अनिश्चित होते हैं। ज्ञान, अनुभव और समय की गति के साथ-साथ वे स्पष्ट और निश्चित रूप धारण करते चले जाते हैं।
  • भाटिया (Bhatia) के अनुसार-प्रत्यय वस्तुओं, गुणों और सम्बन्धों के बारे में हो सकते हैं; जैसे-
    • (i) वस्तु (Objects)- घोड़ा, मेज, टोपी; 
    • (ii) गुण (Qualities)- लाली, स्वाद, ईमानदारी, समय-तत्परता; 
    • (iii) सम्बन्ध (Relations)-छोटा, बड़ा, ऊँचा।
  • प्रत्यय का आधार हमारा विचार होता है अत: जिस वस्तु के सम्बन्ध में हमारा जैसा विचार होता है, वैसे ही प्रत्यय का हम निर्माण करते हैं-"जाकी रही भावना जैसी ।" 
  • एक वस्तु के सम्ब में विभिन्न व्यक्तियों के विभिन्न प्रत्यय हो सकते हैं। उदाहरणार्थ, दीवार पर बनी हुई किसी आकृति को अशिक्षित व्यक्ति -साधारण नमूना, कलाकार-कला की वस्तु और दार्शनिक किसी सार्वभौमिक सत्य का प्रतीक समझ सकता है। इस प्रकार, एक ही वस्तु-सामान्य प्रत्यय, कलात्मक प्रत्यय और दार्शनिक प्रत्यय का रूप धारण कर सकती है।

प्रत्यय-निर्माण (CONCEPT-FORMATION)

प्रत्यय का निर्माण करने में बालक को पाँच स्तरों से गुजरना पड़ता हैं;

निरीक्षण (Observation)

बालक बोलना सीखने से पहले ही प्रत्ययों का निर्माण करने लगता है। वह प्रथम बार अनेक वस्तुएँ देखता है और उनके प्रत्ययों या मानसिक प्रतिमाओं का निर्माण करता है। उदाहरणार्थ, वह सफेद रंग का कुत्ता देखता है। फलस्वरूप, उसे उसके प्रत्यय का ज्ञान हो जाता है। दूसरे शब्दों में, वह कुत्ते का निरीक्षण करके उसके प्रत्यय का निर्माण करता है। कुछ समय के बाद वह काले रंग का कुत्ता देखता है । उसका निरीक्षण करके वह उसके प्रत्यय का भी निर्माण कर लेता है ।

तुलना (Comparison)

निरीक्षण द्वारा बालक अपने मन में कुत्ते के दो प्रत्ययों का निर्माण कर लेता है-एक सफेद और एक काला उसके बाद वह उन दोनों प्रत्ययों की तुलना करता है। उसने दो कुत्ते देखे हैं। दोनों के रंग भिन्न हैं। इस भिन्नता के होते हुए भी वह उनमें समानता पाता है।

पृथक्करण (Abstraction)

बालक दोनों कुत्तों की भिन्नता और समानता की बातों को पृथक करता है। भिन्नता केवल रंग के कारण है। वह इन समानताओं या समान गुणों को भिन्नता से अलग करके जोड़ देता है। 

सामान्यीकरण (Generalisation)

समान गुणों का संग्रह करने कारण बालक के लिए काले, लाल, सफेद आदि रंगों के कुत्तों में कोई अन्तर नहीं रह जाता है। अत: उसका कुत्ते का प्रत्यय (प्रतिमा) स्पष्ट रूप धारण कर लेता है। अब वह किसी भी कुत्ते को कुत्ता कहता है। इस प्रकार, उसे कुत्ता-जाति का ज्ञान हो जाता है।
 

परिभाषा निर्माण (Definition Formation) 

बालक उपर्युक्त चार स्तरों से गुजरने के बाद कुत्ते के प्रत्यय का निर्माण कर लेता है। यह प्रत्यय उसे कुत्ते का सामान्य ज्ञान प्रदान करता है। हम उसे यह ज्ञान केवल वर्णन या परिभाषा के द्वारा प्रदान कर सकते हैं। जब हम उसके सामने कुत्ते का वर्णन करते हैं, तब वह किसी विशेष कुत्ते के बारे में न सोचकर सामान्य रूप से कुत्ते के बारे में सोचता है। यही वास्तविक प्रत्यय है, जिसका उसके मन में निर्माण हो गया है।

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