आदत व थकान अर्थ, परिभाषा और प्रकार

जो कार्य हमें पहले कठिन जान पड़ता है, वह सीखने के बाद सरल हो जाता है। हम उसे जितना अधिक दोहराते हैं, उतना ही अधिक वह सरल होता चला जाता है...

Habit-and-Fatigue-in-Psychology
आदत व थकान

आदत का अर्थ व परिभाषा

जो कार्य हमें पहले कठिन जान पड़ता है, वह सीखने के बाद सरल हो जाता है। हम उसे जितना अधिक दोहराते हैं, उतना ही अधिक वह सरल होता चला जाता है। कुछ समय के बाद, हम उसे बिना ध्यान दिये, बिना प्रयास किये, बिना सोचे-समझे, ज्यों का त्यों करने लगते हैं। इसी प्रकार के कार्य को आदत कहते हैं। दूसरे शब्दों में, आदत एक सीखा हुआ कार्य या अर्जित व्यवहार है, जो स्वतः होता है। 
हम 'आदत' के अर्थ को और अधिक स्पष्ट करने के लिए तीन परिभाषाएँ दे रहे हैं-

गैरेट-"आदत उस व्यवहार को दिया जाने वाला नाम है, जो इतनी अधिक बार दोहराया जाता है कि यत्रवत् हो जाता है।"
"Habit is the name given to behavior so often repeated as to be automatic. -Garrett 

लैडेल-"आदत, कार्य का वह रूप है, जो आरम्भ में स्वेच्छा से और जान-बूझकर किया जाता है, पर जो बार-बार किए जाने के कारण स्वतः होता है।"
"A habit is a form of activity originally willed and conscious, which by repetition has become automatic." -Ledell 

मर्सेल-"आदतें, व्यवहार करने की और परिस्थितियों एवं समस्याओं का सामना करने की निश्चित विधियाँ होती हैं।
" Habits are routine ways of behaving, routine ways of dealing with situations and problems." -Mursell 

आदतों के प्रकार

आदतें, अच्छी और बुरी-दोनों प्रकार की होती हैं। इनका सम्बन्ध-जानने, सोचने, कार्य करने और अनुभव करने से होता है। वैलेनटीन (Valentine) ने इनका वर्गीकरण इस प्रकार से किया है

यान्त्रिक आदत

इनका सम्बन्ध शरीर की विभिन्न गतियों से होता है और हम इनको बिना किसी प्रकार के प्रयास से करते हैं; जैसे-कोट के बटन लगाना या जूते के फीते बाँधनी।

शारीरिक अभिलाषा-सची आदतें

इनका सम्बन्ध शरीर की अभिलाषाओं की पूर्ति से होता है; जैसे-सिंगरेट पीना या पान खाना । 

नाड़ी मंडल सम्बन्धी आदतें

इनका सम्बन्ध मस्तिष्क के किसी प्रकार से होता है। ये व्यक्ति के संवेगात्मक असंतुलन (Emotional Instability) को व्यक्त करती हैं; जैसे-नाखून या कलम चबाना। 

भाषा सम्बन्धी आदतें

इनका सम्बन्ध बोलने से होता है। जिस प्रकार दूसरे बोलते हैं, उसी प्रकार बोलकर हम इन आदतों का निर्माण करते हैं। यदि शिक्षक शब्दों का गलत उच्चारण करता है, तो बालकों में वैसी ही आदत पड़ जाती है।

विचार-सम्बन्धी आदतें

इनका सम्बन्ध आंशिक रूप से व्यक्ति के ज्ञान और आंशिक रूप से उसकी रुचियों एवं इच्छाओं से होता है; जैसे-समय-तत्परता, तर्क या कारण-सम्बन्धी विचार।

भावना-सम्बन्धी आदतें

इनका सम्बन्ध व्यक्ति की भावनाओं से होता है; जैसे-प्रेम, घृणा या सहानुभूति की भावना। 

नैतिक आदतें

इनका सम्बन्ध नैतिकता से होता है; जैसे-सत्य बोलना या पवित्र जीवन व्यतीत करना।

आदतों का निर्माण

आदतों का निर्माण करने के लिए अनेक नियम, उपाय या सिद्धान्त हैं, जिनमें से मुख्य दृष्टव्य हैं-

संकल्प

हम जिस कार्य को करने की आदत डालना चाहते हैं, उसके बारे में हमें दृढ़ संकल्प करना चाहिये। यदि हम प्रातःकाल व्यायाम करने की आदत डालना चाहते हैं, तो हमें यह प्रतिज्ञा करनी चाहिए कि हम व्यायाम अवश्य करेंगे, चाहे कुछ भी क्यों न हो। जेम्स (James) का परामर्श है-"हमें नये कार्य को अधिक-से-अधिक सम्भव दृढ़ता और निश्चय से आरम्भ करना चाहिए।" 

क्रियाशीलता

हम जिस कार्य को करने की आदत डालना चाहते हैं, उसके लिए केवल संकल्प ही पर्याप्त नहीं है संकल्प को कार्य-रूप में परिणत करना भी आवश्यक है। जेम्स का कथन है-"जो संकल्प आप करें, उसे पहले अवसर पर ही पूर्ण कीजिए।" 
"Seize the very first opportunity to act on every resolution you make." 

निरन्तरता

हम जिस कार्य को करने की आदत डालना चाहते हैं,उसे हमें निरन्तर करते रहना चाहिए। उसमें कभी भी किसी प्रकार का विराम या शिथिलता नहीं आने देनी चाहिए। जेम्स (James) के अनुसार-"जब तक नई आदत आपके जीवन में पूर्ण रूप से स्थायी न हो जाय, तब तक उसमें किसी प्रकार का अपवाद नहीं होने देना चाहिए।"

अभ्यास

हम जिस कार्य को करने की आदत डालना चाहते हैं, उसका हमें प्रतिदिन अभ्यास करना चाहिए। जेम्स (James) का मत है-"प्रतिदिन थोड़े से ऐच्छिक अभ्यास के द्वारा कार्य करने की शक्ति को जीवित रखिए।" इस मूल मंत्र को सदैव याद रखिए-"करत-करत अभ्यास के, जड़मति होत सुजान।"

अच्छे उदाहरण

अच्छी आदतों का निर्माण करने के लिए अच्छे उदाहरण परम आवश्यक हैं। अत: शिक्षक को अच्छी आदतों के सम्बन्ध में उपदेश देने के बजाय बालकों के समक्ष अच्छे उदाहरण प्रस्तुत करने चाहिए । जेम्स का शिक्षक को परामर्श है-"अपने छात्रों को बहुत अधिक उपदेश मत दीजिए।" "Don't preach too much to your pupils." -James.

पुरस्कार

अच्छी आदतों का निर्माण करने में पुरस्कार का बहुत महत्वपूर्ण स्थान है। अत: बालकों को अच्छी आदतों का निर्माण करने के लिए पुरस्कार देकर प्रोत्साहित करना चाहिए। भाटिया (Bhatia) के अनुसार-"बालकों को अच्छी आदतों का निर्माण करने के लिए पुरस्कार दिया जाना चाहिए।"

बुरी आदतों को तोड़ना

व्यक्ति समाज से अस्वीकृत व्यवहार को भी आदत बना लेता है। यह व्यवहार उसके जीवन का अंग बन जाता है। इस प्रकार की आदतों से उसका तथा समाज दोनों का नुकसान होता है। अत: ऐसी आदतों को तोड़ना भी पड़ता है।
स्टार्ट व ओकडन के अनुसार-"शिक्षक का कार्य न केवल आदतों का निर्माण करना है, वरन् उनको तोड़ना भी है।"
"The task of the educator is not only to form habits, but also to break them." -Sturt and Oakden

बुरी आदतों को तोड़ने के लिए शिक्षक और बालक निम्नलिखित विधियों का प्रयोग कर सकते हैं 

संकल्प

बालक को अपनी बुरी आदत के तोड़ने के लिए दृढ़ संकल्प करना चाहिए। जेम्स (James) का सुझाव है कि उसे यह संकल्प एकान्त में न करके अपने मित्रों, सम्बन्धियों, माता-पिता आदि के समक्ष करना चाहिए।

आत्म-सुझाव

बालक आत्म-सुझाव द्वारा अपनी किसी भी बुरी बादत को तोड़ने में सफलता प्राप्त कर सकता है; उदाहरणार्थ, यदि वह सिगरेट पीने की आदत छोड़ना चाहता है, तो उसे अपने आप से यह कहते रहना चाहिए-सिगरेट पीने से कैंसर हो जाता है। इसलिए, मुझे सिगरेट पीना छोड़ देना चाहिए। 

ठीक अभ्यास

नाईट डनलप (Knight Dunlop) के अनुसार यदि बालक में कोई गलत कार्य करने की आदत पड़ गई है, तो वह उसका ठीक अभ्यास करके उसका अन्त सकता है; उदाहरणार्थ, यदि वह कुछ शब्दों को गलत बोलता या लिखता है, तो उसे उनको बोलने या लिखने का सही अभ्यास करना चाहिए। 

नई आदत का निर्माण

यदि बालक किसी बुरी आदत का परित्याग करना चाहता है, तो उसे उसके स्थान पर किसी नई और अच्छी आदत का निर्माण करना चाहिए। भाटिया के शब्दों में-"अच्छी आदत, बुरी आदत के प्रकटीकरण को अवसर नहीं देती है। अत: उसका स्वयं अन्त हो जाता है।" 

पुरानी आदत पर ध्यान

जब तक बालक अपनी पुरानी आदत को बिल्कुल न तोड़ दे, तब तक उसे उस पर अपना ध्यान केन्द्रित रखना चाहिए और उसके प्रति तनिक भी लापरवाह नहीं होना चाहिए।

आदत का एकदम या धीरे-धीरे त्याग

जेम्स (James) के अनुसार बालक कछ आदतों का परित्याग उनको एकदम तोड़कर और कुछ को धीरे-धीरे तोड़कर कर सकता है. उदाहरणार्थ, यदि उसमें किसी नशीली वस्तु का प्रयोग करने की आदत है, तो वह उसका प्रयोग सदैव के लिए एकदम बन्द कर सकता है। यदि आदत इससे कम खराब है, तो वह धीरे-धीरे तोड़ सकता है। उदाहरणार्थ, वह चाय पीना धीरे-धीरे कम करके बिल्कुल समाप्त कर सकता है।

अप्रत्यक्ष आलोचना

बालक में कुछ आदर्ते संवेगात्मक असन्तुलन के कारण होती हैं, जैसे-नाखून या कलम चबाना। शिक्षक इस प्रकार की आदत की अप्रत्यक्ष आलोचना करके उसको तुड़वा सकता है; उदाहरणार्थ, वह बालक से यह कह सकता है-"नाखून चबाना हानिकारक आदत है क्योंकि नाखूनों की गंदगी पेट में पहुँचकर हानि पहुँचाती है।"

संगति में परिवर्तन

कभी-कभी बालक में बुरे बालकों की संगति के कारण चोरी करने, झूठ बोलने, विद्यालय से भाग जाने आदि की कोई बुरी आदत पड़ जाती है। ऐसी दशा में शिक्षक को यह प्रयास करना चाहिए कि बालक बुरी संगति को छोड़ दे। उसे इस कार्य में बालक के माता-पिता का सहयोग प्राप्त करना चाहिए।

दण्ड

शिक्षक, दण्ड का प्रयोग करके बालक की बुरी आदत को तुड़वा सकता है। पर दण्ड गलत कार्य के तुरन्त बाद ही दिया जाना चाहिए बहुत समय बाद दिये जाने वाले दण्ड को बालक अपने प्रति अन्याय समझता है। बोरिंग, लैंगफील्ड एवं बील्ड का मत है-"कभी- कभी दण्ड, आदतों को तोड़ने में लाभप्रद होता है, पर दण्ड उचित अवसर पर ही दिया जाना चाहिए।"

पुरस्कार

बालक की बुरी आदत तुड़वाने के लिए पुरस्कार का सफलता किया जा सकता है। इस सम्बन्ध में बोरिंग, लैंगफील्ड व वेल्ड ने लिखा है-" पुरस्कार, दण्ड से उत्तम है। प्रशंसा, निन्दा से उत्तम है।" 
"Reward is better than punishment, praise is better than reproof." -Boring, Langfeld and Weld 
शिक्षा के द्वारा हम व्यक्ति के व्यवहार को वांछित दिशा प्रदान कर उसमें स्थायित्व लाते हैं। शिक्षा में आदत का महत्व इस प्रकार है।

आदतों का शिक्षा व सीखने में महत्व

रेबर्न ने लिखा है-"सीखना, आदतों के निर्माण की प्रक्रिया है।"
"Learning is the process of building up habits." 
यह कथन, शिक्षा और सीखने में आदतों की उपयोगिता को प्रमाणित करता है। हम इसकी पुष्टि अग्रांकित तथ्यों से कर सकते हैं 
1. अच्छी आदतें, बालक के संतुलित शारीरिक, मानसिक और संवेगात्मक विकास में योग देती हैं।
2. आदतें, बालक के चरित्र का निर्माण करती हैं वह अपनी आदतों के कारण ही कर्मठ या अकर्मण्य, उदार या स्वार्थी, दयालु या कठोर बनता है। इसीलिए कहा गया चरित्र आदतों का पुंज है।" ("Character is a bundle of habits.") 
3. आादते, बालक के व्यक्तित्व का निर्माण करती हैं। उनके अभाव में उसका व्यक्तित्व प्रभावहीन हो जाता है। क्लेपर ने ठीक ही लिखा है-"आदरतं व्यक्तित्व की आवरण हैं।" 
"Personality is clothed inhabits."  -Klapper,
4. आदतें, बालक के स्वभाव का अंग बन जाती हैं। अतः उसे बाध्य होकर उन्हीं के अनुसार कार्य करना पड़ता है। इयूक आफ वेलिंगटन का विचार है-"आदत दूसरा स्वभाव है। आदत, स्वभाव से दस गुना अधिक शक्तिशाली है।" "Habit is second nature. Habit is ten times nature." -Duke of Wellington
5. आदत, बालक को निश्चित सीमाओं के अन्तर्गत रखती है। अत: वह अनैतिक, अधार्मिक या असामाजिक कार्य नहीं करता है।
6. आदत, बालक में जीवन के कठिनतम कार्यों के प्रति घृणा उत्पन्न नहीं होने देती है। यही कारण है कि मनुष्य अँधेरी खानों, हिमाच्छादित प्रदेशों और ऐसे ही अन्य स्थानों में कार्य करते हैं।
7. आदत, बालक को समाज से अनुकूलन और समाज-विरोधी कार्य न करने में सहायता देती है। इस प्रकार, आदत समाज के स्थायित्व में योग देती है। जेम्स (James) का यह कथन सत्य है-"आदत, समाज का विशाल चक्र और उसकी परम श्रेष्ठ संरक्षिका है।" 
8. जब बालक को किसी कार्य को करने की आदत पड़ जाती है, तब उसे करने में उसको थकान का अनुभव नहीं होता है।
9. जब कोई सीखी हुई बात बालक की आदत में आ जाती है, तब उसको स्मरण रखने में उसे किसी प्रकार की कठिनाई का अनुभव नहीं होता है। 
10. जब बालक में किसी कार्य को करने की आदत पड़ जाती है, तब वह उसे शीघ्रता, कुशलता और सरलता से कर लेता है। इससे होने वाले एक अन्य लाभ की ओर संकेत करते हुए रेबर्न (Reyburn) ने लिखा है-"आदत हममें जीवन के अधिक महत्वपूर्ण कार्यों के लिए समय और मानसिक शक्ति की बचत करने की क्षमता उत्पन्न करती है।"

हमने उपर्युक्त पंक्तियों में शिक्षा और सीखने में आदत की उपयोगिता की पुष्टि अनेक तथ्यों से की है। किन्तु, हाल के शैक्षिक प्रयोगों ने यह प्रमाणित किया है कि शिक्षकों को बालकों में आदतों का निर्माण करने के बजाय शिक्षण की अधिक प्रभावशाली विधियों को खोजने और प्रयोग करना चाहिए। इसका कारण बताते हुए मरसेल ने लिखा है-"आदत का निर्माण केवल सन्तोष का चिन्ह है, और जब आदतों का निर्माण हो जाता है तथ अधिगम और उन्नति का कार्य अवरुद्ध हो जाता है।"
"The formation of habit is a symptom of satisfaction and when habits Torm, learning and improvement stop." -Mursell

थकान का अर्थ व परिभाषा

जब हम कोई कार्य करते हैं, तब कुछ समय के बाद ऐसी स्थिति आ जाती है, जब हमारी कार्य करने की इच्छा कम होती है, और हमारा शरीर शिथिल हो जाता है। फलस्वरूप हम पहले से कम कार्य कर पाते हैं। मन और शरीर की इस अवस्था को थकान कहते हैं दूसरे शब्दों में, थकान-व्यक्ति की वह विशेष शारीरिक और सामाजिक दशा है, जिसके कारण उसकी वास्तविक कार्यक्षमता में लगातार कमी होती जाती है। 
हम 'थकान' के अर्थ को निम्नलिखित परिभाषाओं से और अधिक स्पष्ट कर रहे हैं

ड्रेवर

"धकान का अर्थ है-कार्य करने में शक्ति के पूर्व व्यय के कारण कार्य करने की कम कुशलता या योग्यता।"
"Fatigue means diminished efficiency, or ability to carry on work because of previous expenditure in doing work." -Drever 

बोरिंग, लैंगफील्ड व वेल्ड

"थकान की सर्वोत्तम परिभाषा-निरन्तर कार्य करने के परिणामस्वरूप कुशलता में कमी के रूप में की जाती है।" 
"Fatigue is best defined as reduction in efficiency, resulting from continuous work." -Boring, Langfeld and Weld 

थकान के प्रकार

धकान मुख्य रूप से दो प्रकार की होती है

शारीरिक थकान

यह थकान, शरीर की वह अवस्था है जब निरन्तर शारीरिक कार्य करने के कारण शरीर की शक्ति कम हो जाती है, अंग शिथिल हो जाते हैं और व्यक्ति कार्य करके विश्राम करना चाहता है।

मानसिक थकान

यह थकान, मस्तिष्क की वह अवस्था है, जब निरन्तर मानसिक कार्य करने के कारण मस्तिष्क की ध्यान, चिन्तन आदि शक्तियाँ कम हो जाती हैं और व्यक्ति, कार्य को स्थगित करके कुछ और करना चाहता है।

शारीरिक थकान को मानसिक थकान का कारण माना जाता है। यदि व्यक्ति में शारीरिक थकान होती है, तो वह मानसिक कार्य नहीं करना चाहता है आधुनिक "व्यावहारिक मनोविज्ञान" (Experimental Psychology) मानसिक थकान को नहीं मानता है। इस सम्बन्ध में वेलेन्टाइन ने लिखा है-"मानसिक थकान साधारणतः केवलं बोरियत है। जब तक व्यक्ति की कार्य में रुचि बनी रहती है, तब तक वह किसी प्रकार की मानसिक थकान का अनुभव नहीं करता है।"
"Mental fatigue is usually merely boredom. There is little or no mental fatigue so long as interest remains lively." -Valentine 

शारीरिक थकान के लक्षण

शारीरिक थकान की मात्रा के अनुसार उसके एक या अनेक लक्षण हो सकते हैं
1. शरीर का शिथिल होना।
2. चेहरे का पीला और निस्तेज होना।
3. जम्हाई लेना और नींद की झपकी आना।
4. मुंह से साँस लेना और मुँह का खुला रह जाना। 
5. कंधे को झुकाकर बैठना या खड़ा होना।
6. शक्ति और कुशलता में कमी का अनुभव करना। 
7. बार-बार आसन (Posture) बदलना और दोषपूर्ण आसनों का प्रयोग करना।
8. कार्य के प्रति उदासीनता व्यक्त करना।
9. कार्य करने की गति धीमी होना।
10. कार्य पर ध्यान केन्द्रित न होने के कारण कार्य करने के औजारों का हाथ गिरना।

मानसिक थकान के लक्षण

मानसिक थकान की स्थिति में व्यक्ति में शारीरिक तथा मानसिक, शिथिलता आती है। मानसिक थकान के लक्षण इस प्रकार हैं
1. मस्तिष्क में भारीपन का अनुभव करना। 
2. चेहरे का पीला और निस्तेज होना।
3. जम्हाई लेना और नींद की झपकी आना।
4. स्वभाव से बेचैनी, घबड़ाहट और चिड़चिड़ापन उत्पन्न होना।
5. सोचने, समझने और विचार करने की शक्तियों का कम होना।
6. व्यवहार सम्बन्धी समस्याओं का प्रकट होना, जैसे-आपस में बातचीत करना, अनुशासनहीनता के कार्य, आदि।
7. कार्य पर ध्यान केन्द्रित करने में असफल होना।
8. कार्य करने में अत्यधिक गलतियाँ करना। 
9. कार्य के प्रति किसी प्रकार का उत्साह व्यक्त करना।
10. कार्य करने से मन का ऊब जाना और उसमें रुचि न लेना।

विद्यालय में थकान के कारण

विद्यालय में बालक को लगभग छ: घंटे रहना पड़ता है। इस दौरान बालक यदि एक जैसा कार्य करता रहे, शिक्षण अरुचिकर हो तो थकान का होना स्वाभाविक है।
सिम्पसन का कथन है-"अनेक सामान्य दशाओं को थकान के मुख्य कारण माना जा सकता है। इस प्रकार के कारणों में वे दशाएँ सम्मिलित हैं, जिनका स्वरूप भौतिक, मनोवैज्ञानिक और शैक्षिक है ।"

थकान के ये कारण

1. दोषपूर्ण पाठ्यक्रम और अरोचक एवं अमनोवैज्ञानिक शिक्षण-विधियों का प्रयोग। प्रेसी, रॉबिन्सन व हॉरक्स के अनुसार "अविवेकपूर्ण शिक्षण थकान का कारण होता है।"
"Unimaginative teaching is a cause of fatigue." -Pressey, Robinson, and Horrocks
2. कमरे में शुद्ध वायु के अभाव के कारण बालकों को पर्याप्त ऑक्सीजन मिलने में कठिनाई।
3. कमरे में पर्याप्त प्रकाश न होने के कारण पढ़ते समय आँखों पर आवश्यकता से अधिक बल।
4. कमरे में बालकों के बैठने के लिए स्थान की कमी। 
5. बालकों के बैठने के लिए अनुपयुक्त फर्नीचर । सिम्पसन ने लिखा है-"अनुपयुक्त फर्नीचर बालकों की वास्तविक शारीरिक थकान में प्रत्यक्ष योग देता है।"
"Poorly adjusted seats and desks contribute directly to the actual physical fatigue of children."-Simpson
6. बालकों के बैठने के दोषपूर्ण आसन
7. बालकों को पौष्टिक और सन्तुलित भोजन के अभाव के कारण शारीरिक निर्बलता और अस्वस्थता। 
8. बालकों के शारीरिक दोष; जैसे--बहरापन, निकट-दृष्टि आदि।
9. बालकों के लिए व्यायाम और मनोरंजन की दोषपूर्ण व्यवस्था
10. थकाने वाले शारीरिक व्यायाम के बाद मानसिक कार्य । 
11. दोषपूर्ण समय-तालिका, अर्थात् दो कठिन विषयों का लगातार शिक्षण, लगातार देर तक लिखने का कार्य आदि।
12. धुएँ और निरन्तर शोरगुल के कारण विद्यालय की दोषपूर्ण स्थिति । सिम्पसन के अनुसार-"ध्यान को विचलित करने वाला शोर, थकान की भावना में योग देता है।"
"Distracting noise contributes to a feeling of fatigue." -Simpson
13. भय और दण्ड पर आधारित कठोर अनुशासन के कारण बालकों में संवेगात्मक असन्तुलन की उत्पत्ति।
14. कार्य का बालकों की रुचि के अनुकूल न होना।
15. कार्य का बालकों के मानसिक स्तर से ऊँचा होना।
16. अधिक गृहकार्य या अन्य किसी कारण से रात में देर तक जागना। 
17. घर के पास किसी उपद्रव के कारण नींद न आना।

थकान कम करने के उपाय 

विद्यालय में चकान को कम करने के लिये अग्रलिखित उपायों को अपनाया जा सकता है-
1. विद्यालय का समय प्रतिदिन 6 घण्टे या 8 पीरियड से अधिक नहीं होना चाहिए। ग्रीष्म ऋतु में समय की यह अवधि 1 घण्टे कम होनी चाहिए। 
2. ग्रीष्म ऋतु में पहले पाँच घण्टे 35-35 मिनट के और अन्तिम 5 घण्टे 30-30 मिनट के होने चाहिए। शीत ऋतु में घण्टों की अवधि 5-5 मिनट बढ़ाई जा सकती है।
3. विद्यालय में दो अवकाश होने चाहिए-पहला, छोटा अवकाश तीसरे घण्टे के बाद और दूसरा, बड़ा अवकाश पाँचवें घण्टे के बाद। बालकों को थोड़ा विश्राम मिल जाने से उनमें पुन: नवीन स्फूर्ति आ जाती है।
4. विद्यालय के कमरों में वायु और प्रकाश के लिए काफी दरवाजे, खिड़कियाँ और रोशनदान होने चाहिए।
5. विद्यालय में बालकों के लिए दूध या अल्प आहार की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए। 
6. कक्षा में बालकों के बैठने के लिए पर्याप्त स्थान और उपयुक्त फर्नीचर होना चाहिए। 
7. समय-सारणी इस प्रकार बनानी चाहिए कि एक विषय के दो घण्टे, लिखित कार्य के दो घण्टे और कठिन विषयों के दो घण्टे लगातार न आयें। 
8. समय-सारणी में लिखित कार्य के बाद मौखिक कार्य और कठिन विषय के बाद सरल विषय आना चाहिए।
9. शिक्षक को रोचक और मनोवैज्ञानिक शिक्षण-विधियों का प्रयोग करना चाहिए। 
10. बालकों के लिए तीसरे या चौथे घण्टे के बाद व्यायाम, मनोरंजन, खेल-कूद और पाठ्यक्रम-सहगामी क्रियाओं की व्यवस्था होनी चाहिए।
11. बालकों की कार्य में रुचि उत्पन्न करनी चाहिए और उनको अधिक गृह-कार्य नहीं देना चाहिए। 
12. बालकों को घर पर पर्याप्त विश्राम करने, सोने एवं. पौष्टिक और सन्तुलित भोजन करने का परामर्श देना चाहिए।

शिक्षक को विद्यालय के वातावरण और बालकों के शारीरिक, मानसिक और संवेगात्मक पहलुओं में इतने विवेक और कुशलता से सामंजस्य स्थापित करना चाहिए कि वे थकान का अनुभव न करें। पर इससे अधिक आवश्यक है-बालकों में यह विश्वास उत्पन्न करना कि उनको अपने शिक्षा सम्बन्धी कार्य में असफलता का सामना नहीं करना पड़ेगा। इसकी पुष्टि में सिम्पसन के अग्रांकित शब्द उद्धृत किए जा सकते हैं-"अनावश्यक थकान उत्पन्न न होने देने के लिए शिक्षकों द्वारा सामंजस्य स्थापित किए जाने वाले अनेक कार्यों में से सर्वश्रेष्ठ यह है कि वे बालकों में आत्म-विश्वास और सुरक्षा की भावना का विकास करें।"

थकान का सीखने पर प्रभाव

मनोवैज्ञानिकों ने सीखने की प्रक्रिया पर थकान के सम्बन्ध में अनेक परीक्षण किए हैं। हम उनके निष्कर्षों को विभिन्न लेखकों के अनुसार नीचे की पंक्तियों में अक्षरबद्ध कर रहे हैं 

कुशलता में कमी

सोरेन्सन (Sorenson) के अनुसार-"थकान की भावना, बालकों को कार्य में कम कुशल बना सकती है।"

रुचि व उत्साह में कमी

थकान के कारण बालकों की कार्य में रुचि नहीं रहती है, उसके प्रति किसी प्रकार का उत्साह व्यक्त नहीं करते हैं और उस पर अपने ध्यान को केन्द्रित नहीं कर पाते हैं। पर यदि कार्य में परिवर्तन कर दिया जाता है, और बालकों को उसे करने के लिए पर्याप्त रूप से अभिप्रेरित (Motivate) कर दिया जाता है, तो वे उसको पूर्ण स्फूर्ति में करने लगते हैं। 

मानसिक कार्य-क्षमता में कमी

शारीरिक थकान का मानसिक थकान पर प्रभाव पड़ता है। इसीलिए, यदि बालकों में किसी कारण से शारीरिक थकान है, तो उनकी मानसिक कार्य करने की क्षमता कम हो जाती है।

कार्य में अधिक गलतियाँ

कैपलिन (Kraepelin) ने बालकों को गुणा करने के लिए कुछ प्रश्न दिए। उसने उनसे ये प्रश्न दो अवसरों पर करवाये - जब वे थके हुए थे और जब वे थके हुए नहीं थे। अपने इन परीक्षणों से उसने यह निष्कर्ष निकाला- थकान के कारण बालक अधिक गलतियाँ करते हैं।'

कार्य की गति में शिथिलता

एवरिल (Averill) के शब्दों में-"जब बालक थक जाता है, तब उसकी कार्य करने की गति धीमी हो जाती है, चाहे कार्य शारीरिक हो या मानसिक।" 

कार्य की मात्रा व गुण में अपरिवर्तन

प्रेसी, रॉबिन्सन एवं हॉरेक्स (Pressey, Robinson and Horrocks) ने लिखा है-"अनेक घण्टों तक अधिकतम परिश्रम से किये जाने वाले मानसिक कार्य का साधारणतः उत्पादन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। थकान और कार्य के गुण में कोई सम्बन्ध नहीं है।" 

व्यक्तिगत विभिन्नताओं के अनुसार प्रभाव

बालकों की व्यक्तिगत विभिन्नताओं के अनुसार उन पर थकान का कम या अधिक प्रभाव पड़ता है। फलस्वरूप, उनके सीखने का कार्य भिन्न प्रकार से प्रभावित होता है। 

छोटे बालकों पर अधिक प्रभाव

एवरिल (Averill) के अनुसार- बालकों की आयु जितनी कम होती है, उतनी ही जल्दी और अधिक थकान का वे अनुभव करते हैं। फलस्वरूप, उनकी सीखने की गति और कुशलता उतनी ही कम होती है। 

मानसिक थकान की प्रभावहीनता

व्यावहारिक मनोवैज्ञानिकों का मत है कि मानसिक थकान नाम की कोई चीज नहीं है। अत: यदि कार्य की रोचकता में कमी नहीं आती है, तो बालक मानसिक थकान का अनुभव न करके अपनी पूर्व गति में उसे करते रहते हैं। हम अपने इस कथन की पुष्टि में क्रो व क्रो (Crow and Crow) का अग्रांकित वाक्य उद्धृत कर रहे हैं-"जिसे बहुधा थकान माना जाता है, वह उस कार्य में रूचि की कमी है, जिसमें बालक संलग्न है।"

प्रारम्भिक थकान के बाद कुशलता

सोरेन्सन (Sorenson) के विचारानुसार थकान की प्रारम्भिक भावना का अनुभव करने के बाद प्रयास और कुशलता में निश्चित रूप से वृद्धि होती है। अतः थकान अनुभव करते ही कार्य बन्द नहीं कर देना चाहिए। सोरेन्सन ने लिखा है-"थोड़ी-सी थकान का अनुभव करना अच्छा प्रशिक्षण है, क्योंकि वह व्यक्ति को अधिक कठिन कार्य करने के लिए तैयार करती है।"
"To experience minor fatigue is good training, for it conditions one for harder work." -Sorenson


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इस Blog का उद्देश्य प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे प्रतियोगियों को अधिक से अधिक जानकारी एवं Notes उपलब्ध कराना है, यह जानकारी विभिन्न स्रोतों से एकत्रित किया गया है।