बुद्धि का स्वरूप, विशेषताएँ व सिद्धान्त | Nature Characteristics and Theories of Intelligence

रॉस - “वे यह निश्चित नहीं कर सके कि बुद्धि में स्मृति या कल्पना, या भाषा, या अवधान, या गामक योग्यता, या संवेदना सम्मिलित है या नहीं।"

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Nature Characteristics and Theories of Intelligence

बुद्धि का स्वरूप : अर्थ व परिभाषा

बुद्धि शब्द प्राचीन काल से व्यक्ति की तत्परता, तात्कालिकता, समायोजन तथा समस्या समाधान की क्षमताओं के संदर्भ में प्रयोग होता रहा है। सभी व्यक्ति समान रूप से योग्य नहीं होते। मानसिक योग्यता ही उनके असमान होने का प्रमुख कारण है।

बुद्धि क्या है ? इस सम्बन्ध में मनोवैज्ञानिकों में सदैव मतभेद रहा है। इस मतभेद का अन्त करने के लिए प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक अनेक अवसरों पर एकत्र हो चुके हैं। 1910 में अंग्रेज मनोवैज्ञानिकों की सभा और 1921 में अमरीकी मनोवैज्ञानिकों की सभा हुई। 1923 में विश्व के मनोवैज्ञानिकों की 'अन्तर्राष्ट्रीय परिषद्' हुई। पर जैसा कि रॉस ने लिखा है - “वे यह निश्चित नहीं कर सके कि बुद्धि में स्मृति या कल्पना, या भाषा, या अवधान, या गामक (Motor) योग्यता, या संवेदना सम्मिलित है या नहीं।"

वस्तुतः प्रत्येक मनोवैज्ञानिक की बुद्धि के स्वरूप के सम्बन्ध में अपनी धारणा है, जैसा कि हम निम्नांकित उद्धरणों द्वारा स्पष्ट कर रहे हैं 

वुडवर्थ - "बुद्धि, कार्य करने की एक विधि है।"
टरमन - “बुद्धि अमूर्त विचारों के बारे में सोचने की योग्यता है। "
वुडरो – “बुद्धि ज्ञान का अर्जन करने की क्षमता है।"
डीयरबार्न “बुद्धि सीखने या अनुभव से लाभ उठाने की क्षमता है। "
हेनमॉन “बुद्धि में दो तत्व होते हैं - ज्ञान की क्षमता और निहित ज्ञान।"
बिने – “बुद्धि इन चार शब्दों में निहित है - ज्ञान, आविष्कार, निर्देश और आलोचना।"
थार्नडाइक "सत्य या तथ्य के दृष्टिकोण से उत्तम प्रतिक्रियाओं की शक्ति ही बुद्धि है। "
पिन्टर - "जीवन की अपेक्षाकृत नवीन परिस्थितियों से अपना सामंजस्य करने की व्यक्ति की योग्यता ही बुद्धि है।"
कॉलविन - "यदि व्यक्ति ने अपने वातावरण से सामंजस्य करना सीख लिया है या सीख सकता है, तो उसमें बुद्धि है।"
रायबर्न - "बुद्धि वह शक्ति है, जो हमको समस्याओं का समाधान करने और उद्देश्यों को प्राप्त करने की क्षमता देती है।"

बुद्धि से सम्बन्धित ये सभी उद्धरण महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि वे विभिन्न दृष्टिकोणों से बुद्धि के स्वरूप पर प्रकाश डालते हैं और उनकी किसी न किसी रूप में व्याख्या करते हैं। इनके अतिरिक्त, बुद्धि के सम्बन्ध में और भी अनेक अन्य लेखकों की परिभाषाएँ उद्धृत की जा सकती हैं। मोटे तौर पर इन परिभाषाओं के अनुसार, बुद्धि निम्न प्रकार की योग्यता है 
  1. सीखने की योग्यता
  2. अमूर्त चिन्तन की योग्यता 
  3. समस्या का समाधान करने की योग्यता
  4. अनुभव से लाभ उठाने की योग्यता
  5. सम्बन्धों को समझने की योग्यता 
  6. अपने वातावरण से सामंजस्य करने की योग्यता 

बुद्धि की परिभाषाओं में वस्तुतः पारस्परिक विरोध नहीं है, क्योंकि ये सभी एक बात को कहने की विभिन्न विधियाँ हैं; उदाहरणार्थ, यदि किसी व्यक्ति में अपने अनुभव से लाभ उठाने की योग्यता है, तो वह अपने वातावरण से सामंजस्य कर सकता है और अपनी कुछ समस्याओं की समाधान भी कर सकता है। इसी प्रकार, यदि किसी व्यक्ति में अमूर्त चिन्तन की योग्यता है, तो उसमें सम्बन्धों को समझने की योग्यता हो सकती है, और यदि वह सम्बन्धों को समझ सकता है, तो उसमें सीखने की योग्यता होती है।

बुद्धि का वास्तविक अर्थ 

यद्यपि प्रत्यक्ष रूप में, बुद्धि की उपर्युक्त परिभाषाओं में विभिन्नता है, पर वास्तव में उनमें विभिन्नता के बजाय समानता अधिक है। इसका कारण यह है कि यदि किसी व्यक्ति में छः कार्यों में से किसी एक कार्य को करने की योग्यता है, तो उसमें अन्य कार्यों को करने की योग्यता होती है। अतः मनोवैज्ञानिकों का मत है - "बुद्धि व्यक्ति की जन्मजात शक्ति है और उसकी सब मानसिक योग्यताओं का योग एवं अभिन्न अंग है।" आधुनिक शिक्षा जगत् में "बुद्धि" का यही अर्थ सर्वमान्य है। इसकी पुष्टि में दो परिभाषाएँ प्रस्तुत की जा रही है; 

कोलेसनिक "बुद्धि कोई एक शक्ति या क्षमता या योग्यता नहीं है, जो सब परिस्थितियों में समान रूप से कार्य करती है, वरन् अनेक विभिन्न योग्यताओं का योग है।" 

रैक्स व नाइट "बुद्धि वह तत्व है, जो सब मानसिक योग्यताओं में सामान्य रूप से सम्मिलित रहता है। यह परिभाषा इस शताब्दी की एक सबसे महत्वपूर्ण मनोवैज्ञानिक खोज का प्रतिष्ठापन करती है। "

बुद्धि के विषय में अब एक नया मत यह विकसित हो रहा है कि बुद्धि नामक कोई भी तथ्य नहीं है। प्रत्येक व्यक्ति की अपनी क्षमता होती है। किसी कार्य को करने की क्षमता की भिन्नता ही विभेद करती है। एक व्यक्ति, एक क्षेत्र में अपनी योग्यता तथा क्षमता का लाभ उठाता है तो दूसरा व्यक्ति दूसरे क्षेत्र में लाभ उठाता है। स्टोडर्ड ने इसीलिये बुद्धि के अस्तित्व को स्वीकार करते हुए कहा है - "बुद्धि वह योग्यता है जिसमें कठिनाई, जटिलता, अमूर्तता, मितव्ययिता, उद्देश्य के प्रति अनुकूलता, सामाजिक मूल्य, मौलिकता की आवश्यकताओं की विशेषताएँ हों तथा भावात्मक व्यक्तियों के प्रति सहनशील हों।"

बुद्धि की विशेषताएँ

बुद्धि एक सामान्य योग्यता है। इस योग्यता से व्यक्ति अपने को तथा दूसरे को समझता है। सच यह है कि सामाजिक तथा वैयक्तिक परिवेश में अन्तःक्रियात्मक गतिशीलता तथा क्षमता का नाम बुद्धि है। बुद्धि की विशेषताएँ इस प्रकार हैं 
  • बुद्धि, व्यक्ति की जन्मजात शक्ति है।
  • बुद्धि, व्यक्ति को अमूर्त चिन्तन की योग्यता प्रदान करती है। 
  • बुद्धि, व्यक्ति को विभिन्न बातों को सीखने में सहायता देती है।
  • बुद्धि, व्यक्ति को अपने गत अनुभवों से लाभ उठाने की क्षमता देती है।
  • बुद्धि, व्यक्ति की कठिन परिस्थितियों और जटिल समस्याओं को सरल बनाती है।
  • बुद्धि, व्यक्ति को नवीन परिस्थितियों से सामंजस्य करने का गुण प्रदान करती है। 
  • बुद्धि, व्यक्ति को भले और बुरे, सत्य और असत्य, नैतिक और अनैतिक कार्यों में अन्तर करने की योग्यता देती है। 
  • बुद्धि पर वंशानुक्रम और वातावरण का प्रभाव पड़ता है।
  • प्रिन्टर (Printer ) के अनुसार बुद्धि का विकास जन्म से लेकर किशोरावस्था के मध्यकाल तक होता है।
  • कोल एवं ब्रूस के अनुसार - लिंग-भेद के कारण बालकों और बालिकाओं की बुद्धि में बहुत ही कम अन्तर होता है।

बुद्धि के प्रकार

बुद्धि का विभाजन करना एक कठिन कार्य है। बुद्धि तो वह क्षमता है जिसका उपयोग व्यक्ति विभिन्न परिस्थितियों तथा परिवेश में करता है। इस आधार पर बुद्धि का वर्गीकरण विद्वानों ने इस प्रकार किया है

गैरिट (Garrett) ने तीन प्रकार की बुद्धि का उल्लेख किया है;

1. मूर्त बुद्धि (Concrete Intelligence ) 

इस बुद्धि को 'गामक' या 'यांत्रिक बुद्धि' (Motor of Mechanical Intelligence) भी कहते हैं। इसका सम्बन्ध यन्त्रों और मशीनों से होता है। जिस व्यक्ति में यह बुद्धि होती है, वह यन्त्रों और मशीनों के कार्य में विशेष रुचि लेता है। अतः इस बुद्धि के व्यक्ति अच्छे कारीगर, मैकेनिक, इंजीनियर, औद्योगिक कार्यकर्त्ता आदि होते हैं। 

2. अमूर्त बुद्धि (Abstract Intelligence) 

इस बुद्धि का सम्बन्ध पुस्तकीय ज्ञान से होता है। जिस व्यक्ति में यह बुद्धि होती है, वह ज्ञान का अर्जन करने में विशेष रुचि लेता है। अतः इस बुद्धि के व्यक्ति अच्छे वकील, डाक्टर, दार्शनिक, चित्रकार, साहित्यकार आदि होते हैं। 

3. सामाजिक बुद्धि (Social Intelligence) 

इस बुद्धि का सम्बन्ध व्यक्तिगत और सामाजिक कार्यों से होता है। जिस व्यक्ति में यह बुद्धि होती है, वह मिलनसार, सामाजिक कार्यों में रुचि लेने वाला और मानव सम्बन्ध के ज्ञान से परिपूर्ण होता है। अतः इस बुद्धि के व्यक्ति अच्छे मन्त्री, व्यवसायी, कूटनीतिज्ञ और सामाजिक कार्यकर्त्ता होते हैं। 

थार्नडाइक ( Thorndike) ने बुद्धि का वर्गीकरण इस प्रकार किया है

1. अमूर्त (Abstract) बुद्धि

अमूर्त बुद्धि ज्ञानोपार्जन के लिये प्रयोग की जाती है। शब्दों, प्रतीकों, समस्या समाधान आदि के रूप में अमूर्त बुद्धि का प्रयोग किया जाता है।

2. सामाजिक (Social) बुद्धि

इस बुद्धि के द्वारा व्यक्ति समाज में समायोजन करता है। विभिन्न व्यवसायों में सफलता प्राप्त करता है।

3. यांत्रिक (Motor) बुद्धि 

इस बुद्धि की सहायता से व्यक्ति यंत्रों तथा भौतिक वस्तुओं का परिचालन करता है। ऐसे व्यक्ति इंजीनियर, मैकेनिक, तकनीशियन आदि होते हैं।

बुद्धि के सिद्धान्त

बुद्धि क्या है ? वह किन तत्वों से निर्मित है ? वह किस प्रकार कार्य करती है ? इन प्रश्नों का उत्तर खोजने का अनेक मनोवैज्ञानिकों ने प्रयास किया है। फलस्वरूप, उन्होंने बुद्धि के अनेक सिद्धान्त प्रतिपादित किये है, जो उसके स्वरूप पर पर्याप्त प्रकाश डालते हैं। इनमें से प्रमुख सिद्धान्त अधोलिखित हैं

  1. एक-खण्ड का सिद्धान्त (Unifactor Theory)
  2. दो खण्ड का सिद्धान्त (Two-Factor Theory )
  3. तीन खण्ड का सिद्धान्त (Three Factor Theory)
  4. बहु-खण्ड का सिद्धान्त (Muliti-Factor Theory) 
  5. मात्रा सिद्धान्त (Quantity Theory)

1. एक खण्ड का सिद्धान्त (Unifactor Theory) 

इस सिद्धान्त के प्रतिपादक बिने, टर्मन और  स्टर्न हैं। उन्होंने बुद्धि को एक अखण्ड और अविभाज्य इकाई माना है। उनका मत है कि व्यक्ति की विभिन्न मानसिक योग्यताएँ एक इकाई के रूप में कार्य करती हैं। योग्यताओं की विभिन्न परीक्षाओं द्वारा यह मत असत्य सिद्ध कर दिया गया है।

2. दो खण्ड का सिद्धान्त (Two Factor Theory) 

इस सिद्धान्त का प्रतिपादक स्पीयरमैन है। उसके अनुसार, प्रत्येक व्यक्ति में दो प्रकार की बुद्धि होती है - सामान्य और विशिष्ट (General and Specific ) । दूसरे शब्दों में, बुद्धि के दो खण्ड या तत्व होते हैं 
  1. सामान्य योग्यता या सामान्य तत्व
  2. विशिष्ट योग्यता या विशिष्ट तत्व।

(i) सामान्य योग्यता या सामान्य तत्व (General Ability or 'G' Factor)  

स्पीयरमैन (Spearman) ने सामान्य योग्यता को विशिष्ट योग्यताओं से अधिक महत्वपूर्ण माना है। उसके अनुसार, सामान्य योग्यता सब व्यक्तियों में कम या अधिक मात्रा में मिलती है। इसकी मुख्य विशेषताएँ हैं
  • यह योग्यता, व्यक्ति में जन्मजात होती है। 
  • यह उसमें सदैव एक-सी रहती है। 
  • यह उसके सब मानसिक कार्यों में प्रयोग की जाती है। 
  • यह प्रत्येक व्यक्ति में भिन्न होती है। 
  • यह जिस व्यक्ति में जितनी अधिक होती है, उतना ही अधिक वह सफल होता है। 
  • यह भाषा, विज्ञान, दर्शन आदि में सामान्य सफलता प्रदान करती है।

(ii) विशिष्ट योग्यताएँ या विशिष्ट तत्व (Specific Ability or 'S' Factor) 

इन योग्यताओं का सम्बन्ध व्यक्ति के विशिष्ट कार्यों से होता है। इनकी मुख्य विशेषताएँ है
  • ये योग्यताएँ अर्जित की जा सकती हैं। 
  • योग्यताएँ अनेक और एक-दूसरे से स्वतन्त्र होती हैं । 
  • विभिन्न योग्यताओं का सम्बन्ध विभिन्न कुशल कार्यों से होता है। 
  • ये योग्यताएँ विभिन्न व्यक्तियों में विभिन्न और अलग-अलग मात्रा में होती हैं। 
  • जिस व्यक्ति में जो योग्यता अधिक होती है, उसी से सम्बन्धित कुशलता में वह विशेष सफलता प्राप्त करता है। 
  • ये योग्यताएँ भाषा, विज्ञान, दर्शन आदि में विशेष सफलता प्रदान करती हैं।

स्पीयरमैन ( Spearman) के इस सिद्धान्त को आधुनिक मनोवैज्ञानिक स्वीकार नहीं करते हैं। इसका कारण बताते हुए मन ने लिखा है - "मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि स्पीयरमैन जिसे सामान्य योग्यता कहता है, उसे अनेक योग्यताओं में विभाजित किया जा सकता है। "

3. तीन खण्ड का सिद्धान्त (Three Factor Theory) 

यह सिद्धान्त भी स्पीयरमैन (Spearman) के नाम से सम्बन्धित है। 'दो-खण्ड का सिद्धान्त' प्रतिपादित करने के बाद उसने बुद्धि का एक खण्ड और बताया। उसने इसका नाम 'सामूहिक खण्ड या तत्व' (Group Factor) रखा। उसने इस खण्ड में ऐसी योग्यताओं को स्थान दिया, जो 'सामान्य योग्यता' से श्रेष्ठ और 'विशिष्ट योग्यताओं' से निम्न होने के कारण उनके मध्य का स्थान ग्रहण करती है।

स्पीयरमैन ( Spearman) का यह सिद्धान्त सर्वमान्य नहीं बन सका है। इसका कारण बताते हुए क्रो एवं क्रो  ने लिखा है - “यह सिद्धान्त व्यक्ति की योग्यताओं और पर्यावरण के प्रभावों को स्वीकार न करके बुद्धि को वंशानुक्रम से प्राप्त किये जाने पर बल देता है।"

4. बहुखण्ड का सिद्धान्त (Multifactor Theory) 

स्पीयरमैन (Spearman) के बुद्धि के सिद्धान्त पर आगे कार्य करके मनोवैज्ञानिकों ने 'बहुखण्ड का सिद्धान्त' प्रतिपादित किया। इन मनोवैज्ञानिकों में कैली (Kelly) और थर्स्टन (Thurstone) के नाम उल्लेखनीय है।

(1) कैली (Kelly) के अनुसार बुद्धि के खण्ड

कैली (Kelly) ने अपनी पुस्तक "Crossroads in the Mind of Man" में बुद्धि को निम्नलिखित 9 खण्डों या योग्यताओं का समूह बताया है-.
  1. रुचि
  2. गामक योग्यता
  3. सामाजिक योग्यता
  4. सांख्यिक योग्यता
  5. शाब्दिक योग्यता
  6. शारीरिक योग्यता
  7. संगीतात्मक योग्यता
  8. यांत्रिक योग्यता 
  9. स्थान सम्बन्धी विचार योग्यता

(2) थर्स्टन (Thurstone) के अनुसार बुद्धि के खण्ड

थर्स्टन (Thurstone) ने अपनी पुस्तक “Primary Mental Abilities" में बुद्धि के 13 खण्ड या तत्व बताये हैं। दूसरे शब्दों में, उसने बुद्धि को 13 मानसिक योग्यताओं का समूह बताया है, जिनमें से निम्नांकित 9 को अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है
  1. स्मृति
  2. प्रत्यक्षीकरण की योग्यता 
  3. सांख्यिकी योग्यता 
  4. शाब्दिक योग्यता
  5. तार्किक योग्यता
  6. निगमनात्मक योग्यता
  7. आगमनात्मक योग्यता
  8. स्थान सम्बन्धी योग्यता
  9. समस्या समाधान की योग्यता

बुद्धि के 'बहुखण्ड सिद्धान्त' का समर्थन नहीं किया जाता है। मनोवैज्ञानिकों का तर्क है कि बुद्धि का विभिन्न प्रकार की योग्यताओं में विभाजन सर्वथा अनुचित है। क़ो एवं क्रो (Crow and Crow) ने लिखा है - “इन तत्वों (योग्यताओं) को जटिल मानसिक क्रिया की पृथक इकाइयाँ नहीं समझा जाना चाहिए।"

5. मात्रा सिद्धान्त (Quantity Theory) 

इस सिद्धान्त का प्रतिपादक थार्नडाइक (Thorndike) है। वह 'सामान्य मानसिक योग्यता के समान किसी तत्व को स्वीकार नहीं करता है। थार्नडाइक का मत है - "मस्तिष्क का गुण स्नायु तन्तुओं की मात्रा में निर्भर रहता है।" 

इसका अभिप्राय यह है कि बुद्धि उतनी ही अधिक अच्छी होती है, जितने अधिक मस्तिष्क और स्नायुमण्डल के सम्बन्ध होते हैं, क्योंकि व्यक्ति की मानसिक क्रियाओं के आधार यही सम्बन्ध हैं।

थार्नडाइक ने अपने सिद्धान्त को 'उद्दीपक प्रतिक्रिया' (Stimulus Response) के आधार पर सिद्ध किया है। उसका मत है कि जिन अनुभवों का उद्दीपक प्रतिक्रियाओं से सम्बन्ध स्थापित हो जाता है, वे भविष्य में उसी प्रकार की समस्याओं का समाधान अधिक सरल बना देते हैं।

थार्नडाइक के सिद्धान्त की दो कारणों से कटु आलोचना की गई है। पहला कारण यह है कि यह सिद्धान्त, मस्तिष्क और स्नायु मण्डल के सम्बन्ध पर बहुत अधिक बल देता है। दूसरे कारण को क़ो एवं क्रो  के इन शब्दों में व्यक्त किया जा सकता है - "यह सिद्धान्त मस्तिष्क की सम्पूर्ण रचना के लचीलेपन को कोई स्थान नहीं देता है।"

मनोवैज्ञानिकों ने उपर्युक्त सिद्धान्तों के अलावा बुद्धि के सम्बन्ध में और भी सिद्धान्त प्रतिपादित किये हैं। पर वे अभी तक न तो बुद्धि के स्वरूप और न व्यक्ति की सामान्य एवं विशिष्ट योग्यताओं के बारे में किसी निश्चित निष्कर्ष पर पहुँच पाये हैं। बुद्धि के सम्बन्ध में आधुनिक विचारधारा को व्यक्त करते हुए ट्विटमर ने लिखा है - “इस बात में बहुत सन्देह है कि बुद्धि के समान कोई स्वतंत्र इकाई है। अतः यह कहने के बजाय कि व्यक्ति में बुद्धि है, यह कहना अधिक उपयुक्त है कि वह अधिक बुद्धिमत्तापूर्ण व्यवहार करता है। "

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इस Blog का उद्देश्य प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे प्रतियोगियों को अधिक से अधिक जानकारी एवं Notes उपलब्ध कराना है, यह जानकारी विभिन्न स्रोतों से एकत्रित किया गया है।