अध्ययन की उत्तम आदतों का विकास | Development of Good Study Habits

व्यक्ति जब दूसरों के अनुभवों को शब्दों, निरीक्षण, चिन्तन, मनन द्वारा ग्रहण करता है तथा उनका लाभ उठाता है तो यह प्रक्रिया अध्ययन कहलाती है।

अध्ययन की उत्तम आदतों का विकास

Development-of-Good-Study-Habits

अध्ययन का अर्थ (Meaning of Study)

व्यक्ति जब दूसरों के अनुभवों को शब्दों, निरीक्षण, चिन्तन, मनन द्वारा ग्रहण करता है तथा उनका लाभ उठाता है तो यह प्रक्रिया अध्ययन कहलाती है। व्यक्ति सदा अध्ययनरत रहता है। यह आवश्यक नहीं कि वह केवल शब्दों का अध्ययन करता हो, वह व्यवहार का भी अध्ययन करता है। ज्ञान को ग्रहण करने की प्रक्रिया का नाम अध्ययन है। 

अध्ययन का सर्वमान्य अर्थ है - उन तथ्यों, विचारों, विषयों, विधियों, समस्याओं आदि का ज्ञान प्राप्त करना, जिससे छात्र या व्यक्ति अनभिज्ञ हैं अधिक विस्तृत रूप में, हम कह सकते हैं कि नवीन विषय - सामग्री का ज्ञान प्राप्त करने के लिए, छात्र या सीखने वाले के द्वारा जो प्रयास किया जाता है, उसी को अध्ययन माना जाता है। अध्ययन, वास्तव में नवीन ज्ञान को प्राप्त करने के लिए छात्र द्वारा किया जाने वाला नियोजित प्रयास है। यदि उसका प्रयास एक निश्चित योजना या विधि के अनुसार नहीं है, तो वह नवीन ज्ञान को प्राप्त करने में कदापि सफल नहीं हो सकता है। 
हम अध्ययन के अर्थ को और अधिक स्पष्ट करने के लिए कुछ लेखकों के विचारों को उद्धृत कर रहे हैं;

रिस्क : "अध्ययन-ज्ञान या ग्रहण-शक्ति को सुरक्षित रखने, योग्यताओं को प्राप्त करने, या समस्याओं का समाधान करने के लिए किया जाने वाला नियोजित प्रयास है।"
क्रो व क्रो : "अध्ययन का अभिप्राय है-उन तथ्यों, विचारों या विधियों में दक्षता प्राप्त करने के लिए की जानी वाली खोज, जिनको व्यक्ति अभी तक नहीं जानता है या केवल आंशिक रूप से जानता है।"
ली :"किसी बात को सीखने के लिए व्यक्ति द्वारा सचेत रूप से किया जाने वाला उद्योग ही अध्ययन है। किसी संग्रहालय में कला की कृतियों का निरीक्षण, अध्ययन का बहुत-कुछ वही रूप है, जो गहन पठन का है।"
 

अध्ययन के उद्देश्य (Purposes of Study)

क्रो एवं क्रो के अनुसार - "अध्ययन, अधिगम के लिए आवश्यक और विद्यालय-जीवन के लिए अनिवार्य है।" इस विचार के आधार पर क्रो एवं क्रो ने अध्ययन के तीन मुख्य उद्देश्य या प्रयोजन बताए हैं;
1. छात्र के विचारों का विकास करना।
2. छात्र की कुशलताओं में उन्नति करना।
3. छात्र को ऐसे ज्ञान को प्राप्त करने और ऐसी आदतों का निर्माण करने में सहायता देना, जो उसे नवीन परिस्थितियों का सामना करने, नवीन विचारों का निर्माण एवं उनकी व्याख्या करने, आवश्यक निर्णयों को करने और अपने जीवन को सामान्य रूप से सफल एवं सम्पन्न बनाने की क्षमता प्रदान करें।
अन्त में क्रो एवं क्रो ने लिखा है - "अध्ययन के लिए किसी प्रयोजन की आवश्यकता होती है और व्यक्ति अपने अध्ययन के परिणामस्वरूप जो कुछ सीखता है, वह अधिकांश रूप में इस बात पर निर्भर होता है कि व्यक्ति को उस उदेश्य या प्रयोजन को कितनी मात्रा में प्राप्त करने में सफलता मिलती है।"

अध्ययन के प्रकार (Types of Study)

ली (Lee) के अनुसार, अध्ययन मुख्यतः निम्नलिखित तीन प्रकार का होता है 
1. विधिवत् नियन्त्रित अध्ययन (Formally Supervised Study)
2. स्वतन्त्र अध्ययन (Independent Study) 
3. घर पर किया जाने वाला अध्ययन (Home Study)

1. विधिवत् नियन्त्रित अध्ययन (Formally Supervised Study)

इस अध्ययन का स्थान साधारणतया विद्यालय का कोई कक्ष होता है। उस कक्ष में छात्रों का एक समूह, शिक्षक के निरीक्षण में अध्ययन करता है। शिक्षक से पाँच बातों की आशा की जाती है;
1. शिक्षक, छात्रों को अध्ययन की प्रभावशाली विधियों का ज्ञान प्रदान करे। 
2. शिक्षक, छात्रों की अध्ययन-सम्बन्धी कमियों और कठिनाइयों का ज्ञान प्राप्त करके, उनका निवारण करे।
3. शिक्षक, छात्रों को अपनी अध्ययन-सम्बन्धी विशिष्ट एवं सामान्य समस्याओं का समाधान करने में सहायता दे। 
4. शिक्षक, छात्रों की विशेष योग्यताओं की जानकारी प्राप्त करके, उनकी अध्ययन-सम्बन्धी योग्यताओं में उन्नति करने की चेष्टा करे। 
5. शिक्षक, समस्त छात्रों की व्यक्तिगत आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर, उनको आवश्यक परामर्श दे और उनका पथ-प्रदर्शन भी करे।
उल्लिखित अध्ययन का मुख्य उद्देश्य बताते हुए, ली ने लिखा है - "विधिवत् नियन्त्रित अध्ययन का मुख्य उद्देश्य है-छात्रों की अध्ययन एवं कार्य की आदतों में सतर्कता से उन्नति करना।"

2. स्वतन्त्र अध्ययन (Independent Study)

यह अध्ययन, शिक्षक के निर्देशन में प्रत्येक छात्र के द्वारा विद्यालय के विभिन्न स्थानों में किया जाता है। ट्रम्प रिपोर्ट (Trump Report) में स्वतन्त्र अध्ययन के स्वरूप पर अग्रलिखित शब्दों में प्रकाश डाला गया है - "स्वतन्त्र अध्ययन में अनेक प्रकार के कार्य सम्मिलित होते हैं; यथा-पढ़ना, देखना, सुनना, लिखना और विभिन्न विधियों से विभिन्न प्रकार के कार्य करना।"
बरटन ने स्वतन्त्र अध्ययन और विधिवत् नियन्त्रित अध्ययन की उपयोगिता को इस प्रकार व्यक्त किया है - "योग्य छात्रों को स्वतन्त्र अध्ययन से अधिक लाभ होता है, मन्द बुद्धि छात्रों को विधिवत् नियन्त्रित अध्ययन से अधिक लाभ होता है और साधारण छात्र के लिए दोनों प्रकार के अध्ययन समान रूप से लाभप्रद होते हैं।"

3. घर पर किया जाने वाला अध्ययन (Home Study)

यह अध्ययन, छात्रों द्वारा साधारणतया अपने घरों पर किया जाता है। स्टूरैग (Strang) ने इस अध्ययन के चार मुख्य प्रयोजन एवं उद्देश्य (प्रथम चार) बताए हैं।' ली (Lee) ने पाँचवें उद्देश्य का स्वयं प्रस्ताव किया है। ये उद्देश्य एवं प्रयोजन निम्नांकित हैं
  1. छात्र के वांछित प्रयास, पहलकदमी, स्वतन्त्रता, उत्तरदायित्व एवं स्व-निर्देशन को प्रोत्साहित करना।
  2. छात्र को विद्यालय की उचित क्रियाओं को स्थायी रुचियों में परिवर्तित करने के लिए उत्साहित करना।
  3. छात्र के विद्यालय के अनुभवों को गृह- कार्यों से सम्बन्धित करके, उन अनुभवों की वृद्धि करना।
  4. छात्र द्वारा विद्यालय में सीखी जाने वाली बातों को पुन: बल प्रदान करना। 
  5. छात्र द्वारा विद्यालय में सीखी जाने वाली बातों को वास्तविक जीवन से सम्बन्धित करना।
घर पर किया जाने वाला कार्य दो प्रकार का होता है - लिखित और अलिखित (जैसे-पढ़ना, भ्रमण करना आदि)। दुर्भाग्यवश, विद्यालयों के शिक्षकों द्वारा अलिखित कार्य की अपेक्षा लिखित कार्य को अधिक महत्त्व दिया जाता है। इस कार्य को विधिवत् पूर्ण करने में छात्र अपने सम्पूर्ण समय एवं शक्ति को नष्ट कर देते हैं। इस सर्वविदित तथ्य से क्षुब्ध होकर ब्रेसलिच (Breslich) ने 1914 में बलपूर्वक कहा - अनेक छात्र ऐसी अनुचित परिस्थितियों में गृह-कार्य करते हैं, जिससे उनमें न केवल अवांछनीय मानसिक एवं नैतिक आदतों का निर्माण होता है, वरन् वे अपने बहुमूल्य समय को भी नष्ट कर देते हैं। 

ब्रेसलिच (Breslich) का यह कथन अक्षरशः सत्य था और है यही कारण था कि कुछ शिक्षाविदों ने अनिवार्य गृह-कार्य की समाप्ति का समर्थन किया उनके विपरीत, कुछ शिक्षाशास्त्रियों-का मत था कि घर पर किए जाने वाले अध्ययन को समाप्त करने की अपेक्षा उसके स्वरूप में संशोधन करना, शिक्षा की दृष्टि से अधिक विवेकपूर्ण कार्य है।
इस सम्बन्ध में ली का यह सुझाव असंगत प्रतीत नहीं होता है - "गृह पर किए जाने वाले अध्ययन में इतना अधिक समय नहीं लगना चाहिए कि तरुणावस्था के बालकों एवं बालिकाओं को व्यायाम, खेल, मनोरंजन एवं विद्यालय से असम्बन्धित अपने व्यक्तिगत पहलुओं का विकास करने का अवसर प्राप्त न हो।"

अध्ययन को प्रभावित करने वाले कारक (Factors Affecting Study)

शिक्षा-सम्बन्धी पुस्तकों के कुछ लेखकों द्वारा उन कारकों का वर्णन किया गया है, जो छात्रों के अध्ययन पर उपयुक्त अथवा अनुपयुक्त प्रभाव डालकर, उसको कम या अधिक मात्रा में प्रभावशाली या प्रभावहीन बनाने में प्रत्यक्ष योग देते हैं। हम रिस्क, बौसिंग, क्रो एवं क्रो (Risk, Bossing, Crow and Crow) आदि के द्वारा इंगित किए जाने वाले कारकों को आपके सम्मुख प्रस्तुत कर रहे हैं;

ध्यान की एकाग्रता (Concentration of Attention)

सरल एवं कठिन, दोनों प्रकार के विषयों के सफल अध्ययन के लिए ध्यान की एकाग्रता आवश्यक है। किन्तु यह तभी सम्भव है, जब छात्र अपने अध्ययन के उद्देश्य से पूर्णतया परिचित हों। हेडले ने बलपूर्वक कहा है - "उद्देश्य की जानकारी के बिना ध्यान की एकाग्रता सम्भव नहीं है । उद्देश्य की जानकारी, ध्यान की सम्पूर्ण एकाग्रता को सम्भव बनाती है।"

अध्ययन का उद्देश्य (Purpose of Study)

छात्र के अध्ययन को सफल एवं प्रभावशाली बनाने के लिए एक निश्चित उद्देश्य की परम आवश्यकता है। यदि छात्र को अध्ययन के उद्देश्य का ज्ञान नहीं है, तो वह उसकी प्राप्ति के लिए निरन्तर अध्ययन नहीं कर सकता है। वह अविराम गति से तभी अध्ययन कर सकता है, जब उस उद्देश्य की पूरी जानकारी हो। इस दृष्टि से क्रो व क्रो का यह कथन अक्षरशः सत्य है - "किसी भी आयु का छात्र, अध्ययन के लिए मानसिक प्रवृत्ति को तभी प्राप्त कर सकता है, जब वह अध्ययन के उद्देश्य को समझ लेता है।"

अध्ययन में थकान (Fatigue in Studying)

अध्ययन करते समय, छात्र बहुधा थकान का अनुभव करता है। इसके लिए वे दशाएँ उत्तरदायी हैं, जिनमें अध्ययन किया जाता है; जैसे-अपर्याप्त प्रकाश, बहुत अधिक गर्मी या सर्दी, मानसिक उत्तेजना, अनुचित भौतिक दशाएँ, आदि। किन्तु यदि छात्र को अध्ययन के विषय में रुचि है और उसने उसमें सफलता प्राप्त करने का दृढ़ संकल्प कर लिया है, तो वह थकान का किंचित मात्र भी अनुभव नहीं करता है। पर इसका अभिप्राय यह कदापि नहीं है कि बिना विश्राम किए अति दीर्घ काल तक निरन्तर अध्ययन करता रहे। इस सम्बन्ध में क्रो व क्रो का परामर्श है - "यदि छात्र, थकान या वास्तविक थकान की भात्रनाओं से अपनी रक्षा करना चाहता है तो उसके लिए अपनी मानसिक या शारीरिक क्रियाओं में परिवर्तन करने की आवश्यकता है।"

अध्ययन के प्रति दृष्टिकोण (Attitude towards Study)

विभिन्न छात्रों में विभिन्न विषयों के प्रति विभिन्न दृष्टिकोण होते हैं, यदि छात्रों के लिए अध्ययन का विषय रोचक होता है, तो उसके प्रति उनका दृष्टिकोण साधारणतया सकारात्मक (Positive) होता है और वे उसका अध्ययन करने के लिए स्वयं लालायित हो जाते हैं। इसके विपरीत, यदि अध्ययन का विषय अरोचक होता है, तो उसके प्रति उनका दृष्टिकोण नकारात्मक (Negative) होता है और उनमें उसके अध्ययन से बचने की प्रवृत्ति होती है। वे अपने नकारात्मक दृष्टिकोण का निम्नलिखित में से कोई कारण बताते हैं
  • अध्ययन का विषय बहुत लम्बा है।
  • मैं इतने लम्बे विषय का अध्ययन करने में सफल नहीं हो सकता हूँ।
  • यदि मैं इसका अध्ययन कर भी लूँ, तो मैं इसको स्मरण नहीं रख सकता हूँ।
  • मेरे लिए इस विषय के अध्ययन की कोई उपयोगिता नहीं है।
  • मुझमें इस विषय को समझने की योग्यता नहीं है।
इस प्रकार के नकारात्मक दृष्टिकोण, प्रभावशाली अध्ययन में प्रत्यक्ष अवरोध उपस्थित करते हैं। ऐसी स्थिति में छात्रों के अध्ययन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण का विकास करना, शिक्षक का अनिवार्य कर्त्तव्य है। वह किसी विधि का प्रयोग करके, ऐसा कर सकता है, उसको बताते हुए, क्रो व क्रो ने लिखा है - "कुशलतापूर्वक दी जाने वाली प्रेरणा छात्रों में उन दृष्टिकोणों का विकास करने के लिए, जो उनकी विशिष्ट विषयों का अध्ययन करने के लिए प्रभावित करेंगे, बहुत-कुछ कर सकती है।"

अध्ययन में बाधाएँ (Distraction in Study) 

विघ्न या बाधाएँ, छात्र के अध्ययन को कम या अधिक मात्रा में अवश्य प्रभावित करती हैं। उसे अपने अध्ययन में जितनी रुचि होती है, उसी अनुपात में वह विघ्नों अथवा बाधाओं से प्रभावित होता है। क्रो एवं को का विचार है - "छात्र जो कुछ कर रहा है, उसमें उसकी रुचि जितनी अधिक होती है, उतना ही कम वह विघ्नों के प्रति ध्यान देता है।" उल्लिखित बाधाएँ दो प्रकार की होती हैं - बाह्य एवं आन्तरिक । बाह्य बाधाओं के अन्तर्गत छात्र के विद्यालय एवं गृह के आस-पास होने वाले शोरगुल, विभिन्न प्रकार के आवागमन के साधनों द्वारा उत्पन्न की जाने वाली आवाजों आदि को सम्मिलित किया जा सकता है। ये आवाजें और कोलाहल छात्र को पाठ्य-विषय पर अपने ध्यान को केन्द्रित करने में कठिनाई उत्पन्न करते हैं । किन्तु, जैसा कि ऑरकर्ड (N. E. Orchard) ने लिखा है - "यह सम्भव है कि छात्र इन बाधाओं का अभ्यस्त हो जाय और उसके पश्चात् उनकी उपस्थिति के बावजूद कुशलतापूर्वक कार्य कर सके।"

आन्तरिक बाधाएँ अग्रलिखित प्रकार की हो सकती हैं 
  • अध्ययन के समय छात्र का मनोभाव
  • उसको व्यथित करने वाली परेशानिया
  • अध्ययन के प्रति उसका दृष्टिकोण
  • उसके उस दिन के संवेगात्मक अनुभव
  • उसमें भय, क्रोध, चिन्ता आदि की भावनाएँ।
इन आन्तरिक बाधाओं के निवारण का उपचार बताते हुए क्रो व क्रो ने लिखा है - "इन आन्तरिक विघ्नकारी कारकों के प्रभाव को कम करने के लिए छात्र को सफल उपलब्धि के प्रति सबल उत्साह से प्रेरित किया जाना चाहिए।"

छात्र की योग्यता (Student's Ability) 

छात्र की योग्यता उसके अध्ययन को निश्चित रूप से प्रभावित करती है। उसे अपनी योग्यता के अनुपात में ही अपने अध्ययन में सफलता प्राप्त होती है। रिस्क (Risk) ने छात्र की योग्यता के अन्तर्गत निम्नलिखित को विशेष स्थान प्रदान किया है
  • समझ कर पढ़ने की योग्यता।
  • शीघ्रता से पढ़ने की योग्यता।
  • विभिन्न प्रकार के शब्द-कोशों को प्रयोग करने की योग्यता। 
  • निरर्थक विषय-सामग्री को छोड़ देने की योग्यता।
  • पुस्तकालय में उपलब्ध पुस्तकों का प्रयोग करने की योग्यता। 
  • चार्टी, नक्शों, ग्राफों आदि को प्रयोग करने की योग्यता ।
  • संक्षेप में लिखी हुई बातों को समझने की योग्यता।
  • पढ़े हुए विषय से सम्बन्धित पुस्तकों का प्रयोग करने की योग्यता।
  • पढ़े हुए विषय को सुनियोजित रूप में संक्षेप में लिखने की योग्यता। 
  • पढ़े हुए विषय के मुख्य विचारों को चयन करने की योग्यता।
छात्र की योग्यता ही वह आधार है, जिस पर उसके प्रभावशाली अध्ययन के भवन का निर्माण किया जा सकता है। किन्तु, यहाँ यह लिख देना असंगत प्रतीत नहीं होता है कि यह योग्यता स्वाभाविक या जन्मजात होती है। इसीलिए, बॉसिंग ने लिखा है - "जब छात्र की स्वाभाविक योग्यता कम होती है, तब उसके अध्ययन में अवरोध उत्पन्न हो जाता है। शिक्षक उस छात्र से उच्च प्रकार की सफलता की आशा नहीं कर सकता है, जिसमें उच्च-कोटि की मानसिक योग्यता नहीं होती है।"

इन कारकों को स्मरण रखने के साथ-साथ छात्र को यह भी स्मरण रखना चाहिए कि उसे अपनी आवश्यकताओं के अनुसार, अध्ययन के कार्य में संलग्न रहना चाहिए। यह सम्भव है कि अध्ययन के अतिरिक्त कुछ अन्य कार्यों के प्रति भी उसका ध्यान आकृष्ट हो। ऐसी दशा में, उसे अपने ध्यान को उनकी ओर से हटाकर, अध्ययन पर केन्द्रित करना चाहिए। इस सन्दर्भ में क्रो एवं क्रो द्वारा व्यक्त किए गए इस विचार को अस्वीकार नहीं किया जा सकता है - "ये अन्य कार्य चाहे जितने भी महत्त्वपूर्ण क्यों न हों, छात्र को उन्हें अपने मस्तिष्क से निकाल देना चाहिए।" 

अध्ययन की उत्तम आदतों की आवश्यकता (Need for Good Study Habits)

छात्रों में अध्ययन की आदत को विकसित किया जाना उनके व्यक्तित्व के लिये तो आवश्यक है ही, साथ ही भावी जीवन के निर्माण के लिये भी आवश्यक है। क्रो व क्रो का मत है - "छात्र, चाहे वे तीसरी कक्षा के बच्चे हों, हाई स्कूल के विद्यार्थी हों, या कॉलेज के छात्र हों, बहुधा अध्ययन की प्रभावहीन आदतों का प्रमाण देते हैं।"

अध्ययन की प्रभावशाली आदतों का विकास न कर सकने के कारण ही वे अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने में विफल होते हैं। बटरवैक (Butterweck) ने उनकी विफलता. का गहन अध्ययन करने के उपरान्त उसके चार मुख्य कारणों का उल्लेख किया है;' 
  1. छात्र कम अध्ययन करते हैं।
  2. छात्र अपने अध्ययन के उद्देश्य से अनभिज्ञ होते हैं।
  3. छात्र, अध्ययन की जाने वाली विषय-सामग्री को संक्षेप में नहीं लिखते हैं। 
  4. छात्र, विषय-सामग्री से सम्बन्धित प्रश्नों के उत्तरों पर विचार नहीं करते हैं ।
जो छात्र अपने अध्ययन में सफलता प्राप्त करते हैं, वे साधारणत: अकेले अध्ययन करते हैं या अध्ययन की किसी निश्चित विधि का अनुसरण करते हैं। ये छात्र सफल होने के कारण अपने उद्देश्य को प्राप्त करते हैं। यदि इस उद्देश्य का सम्बन्ध उनकी किसी विशिष्ट इच्छा से होता है, तो वे अपनी सम्पूर्ण शक्ति को अध्ययन में लगा देते हैं। 
किन्तु, यह बात कुछ ही छात्रों के विषय में कही जा सकती है। अधिकांश छात्र, अध्ययन में रुचि नहीं लेते हैं और उससे दूर रहने का प्रयास करते हैं। ऐसे छात्रों की शिक्षक द्वारा सहायता की जा सकती है और उसे करनी भी चाहिए। आधुनिक शिक्षाशास्त्रियों में इस सम्बन्ध में रंचमात्र भी मतभेद नहीं है कि छात्रों में अध्ययन की उत्तम एवं प्रभावशाली आदतों का विकास करना, शिक्षक का अनिवार्य एवं महत्त्वपूर्ण कर्तव्य है।

हम अपने इस कथन की सार्थकता को सिद्ध करने के लिए दो लेखकों के विचारों को उद्धत कर रहे हैं;

शर्मा व नन्दा : 
"शिक्षक के सबसे महत्वपूर्ण कर्तव्यों में से एक है - छात्रों में अध्ययन की उत्तम आदतों का विकास करना।"
क्रो व क्रो : "शिक्षक का कार्य - छात्रों को उन विधियों की खोज करने में सहायता देना है, जिनसे उनका अध्ययन उतना रोचक एवं सफल हो सके, जितना कि सम्भव है।"
"The teacher's function is to help learners find ways in which their study may become as pleasant and as successful as possible." -Crow and Crow.

अध्ययन की उत्तम आदतों का मूल्यांकन करने के सिद्धान्त

छात्रों को अपनी अध्ययन-सम्बन्धी आदतों का मूल्यांकन एवं परीक्षण करने में सहायता दी जानी चाहिए, ताकि वे अपनी कमियों का ज्ञान प्राप्त करके, अपनी अध्ययन की कुशलता में वृद्धि कर सकें। वस्तुत: यह परीक्षण प्रत्येक छात्र के द्वारा स्वयं किया जाना चाहिए। किन्तु, उसे इस कार्य के लिए किस प्रकार प्रोत्साहित किया जाना चाहिए ? 
इस प्रश्न का उत्तर देते हुए क्रो एवं क्रो (Crow and Crow) ने लिखा है - प्रत्येक छात्र को निम्नांकित सिद्धान्तों के आधार पर अपनी अध्ययन-सम्बन्धी आदतों का परीक्षण करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
  • अध्ययन की कुशलता में तभी वृद्धि होती है, जब उसकी कोई निश्चित योजना या उद्देश्य होता है। 
  • अध्ययन के उत्तम परिणाम प्राप्त करने के लिए, तथ्यों या विषय-सामग्री को रटना सर्वथा अनुचित विधि है। 
  • अध्ययन के उत्तम परिणामों को प्राप्त करने के लिए उत्तम स्वास्थ्य, पर्याप्त शयन एवं मनोरंजन की अत्यन्त आवश्यकता है।
  • अध्ययन के कुछ विषय ऐसे हैं, जिनको केवल पूर्ण विधि (Whole Method) का प्रयोग करके, स्मरण रखा जा सकता है। 
  • अध्ययन का अर्थ केवल पुस्तक में मुद्रित विषय-वस्तु को पढ़ लेना ही नहीं है, अपितु उसको पूर्ण रूप से समझ लेना भी है। 
  • शब्दों, शब्द-समूहों और वाक्यों को ध्यानपूर्वक पढ़ना चाहिए और उनका प्रयोग किस सन्दर्भ में किया गया है, यह भी भली-भाँति समझ लेना चाहिए। 
अध्ययन की सामग्री विभिन्न कक्षाओं एवं अवस्थाओं के छात्रों के लिए विभिन्न होती है । अत: जैसा कि क्रो व क्रो का परामर्श है - "छात्र की अध्ययन की विधियों और आदतों को परिवर्तित होने वाले अधिगम के विषयों, प्रयोजनों, एवं वांछित परिणामों के अनुकूल बनाना आवश्यक है।"

अध्ययन की उत्तम आदतों का विकास करने के उपाय 

छात्रों में अध्ययन की उत्तम आदतों का विकास करने के लिए अनेक उपयोगी उपायों का उल्लेख किया गया है। हम उनमें से कुछ चुने हुए उपायों अथवा सुझावों को आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहे हैं;

योजना की आवश्यकता (Need for a Plan)

प्रत्येक प्रकार के कार्य में सफलता प्राप्त करने के लिए, उसकी योजना होना अत्यन्त आवश्यक है। जो व्यक्ति अपने विभिन्न कार्यों में सफलता प्राप्त करते हैं, वे उन कार्यों को आरम्भ करने से पूर्व, उनकी एक सुनिश्चित योजना अवश्य बना लेते हैं। जिन पुरुषों एवं स्त्रियों ने किसी कार्य में ख्याति अर्जित की है, उन्होंने उस कार्य को करने से पूर्व उसकी योजना का निर्माण करके और उसका सावधानी से अनुसरण करके ही प्राप्त की है।
यही बात अध्ययन-सम्बन्धी योग्यता का उन्नयन करने के विषय में कही जा सकती है। अध्ययन की योजना बनाने वाला छात्र उसमें अध्ययन के अतिरिक्त अपने द्वारा किए जाने वाले अन्य कार्यों में व्यय होने वाले समय को भी स्थान देता है। पर क्योंकि वह जानता है कि उसकी योजना में अध्ययन करने का मुख्य कार्य भी सम्मिलित है, इसलिए उसे अध्ययन करने के लिए पर्याप्त समय उपलब्ध हो जाता है। इसके अतिरिक्त, उसमें अध्ययन करने की उत्तम आदत का भी विकास होता है।

इस तथ्य पर अधिक प्रकाश डालते हुए, क्रो व क्रो ने लिखा है - "किसी भी आयु का छात्र, जो अपने दैनिक कार्य (जिसमें अध्ययन सम्मिलित है) की योजना बनाता है, वह ऐसी आदतों का विकास करता है, जो उसे न केवल अपने विद्यालय-जीवन में वरन् उसके उपरान्त भी सफल होने में सहायता देती हैं, अध्ययन की क्रमबद्ध एवं सुव्यवस्थित योजनाओं का अनुसरण करने से स्पष्ट विचार का प्रादुर्भाव होता है।"

स्पष्ट व निश्चित दत्तकार्य (Clear and Definite Assignment)

छात्र, चाहे जिस भी आयु का हो, उसको स्वतन्त्र रूप से करने के लिए दिया जाने वाला कार्य (दत्तकार्य) स्पष्ट एवं निश्चित होना चाहिए। यदि छात्र दत्तकार्य के विषय में यह कहता है - "शिक्षक ने क्या कार्य दिया है ?" या "मैं इस कार्य से सम्बन्धित सामग्री को कहाँ पा सकता हूँ ?" तो इसका केवल एक ही अर्थ है। यह अर्थ है - शिक्षक द्वारा दिया गया दत्तकार्य स्पष्ट एवं निश्चित नहीं है। अतः क्रो व क्रो का मत है - "दत्तकार्य स्पष्ट एवं निश्चित होना चाहिए और उन सब छात्रों द्वारा विस्तार रूप में समझ लिया जाना चाहिए, जिनसे उसको पूर्ण करने की आशा की जाती है।"

दत्तकार्य स्पष्ट एवं निश्चित क्यों होना चाहिए ? रिस्क के शब्दों में - "जिस प्रकार अपौष्टिक आहार, छात्रों के उत्तम स्वास्थ्य को कायम नहीं रख सकता है, उसी प्रकार वे तुच्छ दत्तकार्यों के आधार पर अध्ययन की उत्तम आदतों का विकास नहीं कर सकते हैं।"
"Students cannot develop good study habits on the basis. of poor assignments any more than they can maintain good health on a poor diet" -Risk.

छात्रों की शारीरिक स्वस्थता (Physical Fitness of Students)

शिक्षा - विशारदों की यह मान्यता निर्विवाद है। छात्रों की शारीरिक स्वस्थता, उनकी अध्ययन की आदतों को प्रभावित करती है। जो छात्र सदैव या बहुधा अस्वस्थ रहते हैं, उनमें अध्ययन की उत्तम आदतों का विकास किया जाना, कोरी कल्पना है। 

छात्रों की अस्वस्थता की समाप्ति का उत्तरदायित्व मुख्यतः विद्यालय या छात्रों के परामर्शदाता पर है। वह उनसे उनकी अस्वस्थता के कारणों की जानकारी प्राप्त कर सकता है। तत्पश्चात् वह उन कारणों का निराकरण करने के लिए उनको आवश्यक परामर्श दे सकता है। उस परामर्श से पथ-प्रदर्शित होकर, छात्र अपने शरीर को स्वस्थ बना सकते हैं और इसके फलस्वरूप अध्ययन की प्रभावशाली आदतों का विकास कर सकते हैं।

रिस्क ने स्पष्ट शब्दों में लिखा है - "जब तक विद्यालय, छात्रों में प्रभावशाली कार्य करने के लिए शारीरिक स्वस्थता को बनाए रखने के प्रति उचित दृष्टिकोणों का विकास नहीं करेगा, तब तक उनकी अध्ययन की आदतों में उन्नति करके किसी भी कार्यक्रम को पर्याप्त क्षति पहुँचेगी।"

छात्रों की पढ़ने की योग्यता (Students Ability to Read ) 

किसी पुस्तक के किसी पाठ को केवल उसमें प्रयोग किए जाने वाले शब्दों से परिचित होने के लिए नहीं, अपितु उन शब्दों द्वारा व्यक्त किए जाने वाले विचारों का ज्ञान प्राप्त करने के लिए भी पढ़ा जाना चाहिए । यदि छात्र का उद्देश्य केवल नवीन शब्दों की जानकारी प्राप्त करना है, तो यह आवश्यक नहीं है कि उसे उन शब्दों द्वारा प्रकट किए जाने वाले विचारों का भी ज्ञान प्राप्त हो जाय। 

यदि छात्र वास्तव में, उन विचारों का ज्ञान प्राप्त करने का इच्छुक है, तो उसे प्रत्येक शब्द के अर्थ को भली-भाँति समझ लेना चाहिए। यह तभी सम्भव है, जब उसमें शब्द-कोश में शब्दों के विभिन्न अर्थों को पढ़ने की योग्यता का विकास किया जाय। जब तक उसे प्रत्येक शब्द का वास्तविक अर्थ ज्ञात नहीं होगा, तब तक वह लेखक के विचारों को पूर्ण रूप से समझने में असमर्थ रहेगा।

छात्रों की पढ़ने की आदतों में एकरूपता नहीं पायी जाती है। कुछ छात्रों की पढ़ने की गति में तीव्रता होती है और कुछ की गति में मन्दता। मन्द गति से पढ़ने वाला छात्र, प्रत्येक शब्द एवं शब्द-समूह के प्रति ध्यान देता है। ऐसे छात्र की पढ़ने की कुशलता कम होती है। यही बात तीव्र गति और लापरवाही से पढ़ने वाले छात्र के विषय में कही जा सकती है। 

पढ़ने के उत्तम परिणाम तभी प्राप्त होते हैं, जब छात्र किसी विषय को तीव्र गति एवं सतर्कता से अर्थात् प्रत्येक बात को समझते हुए पढ़ता है। पर यदि मन्द गति से पढ़ने वाले छात्र के पास पर्याप्त समय है, तो वह भी लेखक के विचारों से भली प्रकार अवगत हो सकता है।
 
क्रो व क्रो का कथन है - "पढ़ने की गति और ग्रहण-शक्ति में मनोवैज्ञानिक अन्तर अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है और इन बातों में छात्रों की आदतों के प्रति शिक्षक को पर्याप्त ध्यान देना चाहिए।"

5. छात्रों की प्रश्नों के उत्तर देने की योग्यता (Students' Ability to Answer Question)

पाठ्य-पुस्तकों के प्रत्येक अध्याय के अन्त में सामान्यतया कुछ प्रश्न होते हैं। इन प्रश्नों के दो मुख्य उद्देश्य होते हैं; 
(1) छात्रों को अध्याय की विषय-वस्तु पर अधिक विचार करने में सहायता देना। 
(2) छात्रों को उस विषय वस्तु से सम्बन्धित सामग्री की स्वयं खोज करने के लिए प्रोत्साहित करना।

यदि अध्याय के अन्त में प्रश्न नहीं हैं, तो शिक्षक को स्वयं उस पर आधारित ऐसे प्रश्नों के उत्तर, छात्रों से पूछने या लिखवाने चाहिए, जो उनको उस अध्याय में लेखक के विचारों के वास्तविक अर्थ को समझने में सहायता दें।

अध्ययन की उत्तम आदतों का विकास करने के लिए. छात्रों को स्वयं कुछ प्रश्नों की क्रमबद्ध रूप में रचना करनी चाहिए। इस प्रकार के प्रश्नों की रचना करके और उनके उत्तरों की खोज करके, वे अपने को उन महत्त्वपूर्ण विचारों का पुन:स्मरण करने के लिए तैयार करते हैं, जिनकी उनको भविष्य में आवश्यकता हो सकती है। 

क्रो व क्रो का विश्वास है - "प्रश्नों के उत्तरों की रचना करके जो ज्ञान प्राप्त होता है, वह सम्भवतः उस ज्ञान से अधिक समय तक स्मरण रहता है, जिसे अध्ययन के प्रयास द्वारा प्राप्त किया जाता है।"

छात्रों की संक्षेप में लिखने की योग्यता

छात्र जिस विषय का अध्ययन करता है, उसको सुनियोजित करके ही संक्षेप में लिखा जा सकता है। इस कार्य में सफलता प्राप्त करने के लिए छात्र को विशेष प्रयास करना पड़ता है। यह प्रयास उसको उस विषय के पूर्ण ज्ञान से सम्पन्न करने की अत्युत्तम विधि है। 

इस विधि की उपादेयता पर प्रकाश डालते हुए क्रो व क्रो ने लिखा है - " प्रत्येक छात्र की अधिगम सम्बन्धी आदतों को इस प्रकार निर्देशित किया जाना चाहिए कि उसे संक्षिप्त आलेख की कला में कुशलता प्राप्त हो जाय। संक्षिप्त आलेख उसको विचारों के महत्त्व के अनुसार, उनका चिन्तन करने, पुनःस्मरण करने एवं मूल्यांकन करने का अवसर प्रदान करता है।"

छात्रों की आवश्यकताओं व योग्यताओं का ज्ञान

छात्रों में अध्ययन की उत्तम आदतों का विकास करने के लिए. उनकी आवश्यकताओं एवं योग्यताओं का ज्ञान प्राप्त किया जाना आवश्यक है। इसू ज्ञान की प्राप्ति के लिए बुद्धि-परीक्षण (Intelligence Tests) संतोषजनक सिद्ध हुए हैं उदाहरण के लिए, जैसा कि रिस्क (Risk) ने लिखा है - "यह पूर्ण रूप से ज्ञात हो गया है कि किसी विषय को भली-भाँति समझने के लिए पढ़ने की योग्यता के परीक्षणों और मानसिक योग्यता के परीक्षणों में बहुत कम सह-सम्बन्ध है।"

सत्य यह है कि श्रेष्ठ बुद्धि के कुछ छात्र मन्द गति से पढ़ते हैं और इसलिए वे अपने अध्ययन को प्रभावशाली नहीं बना पाते हैं, इसके अतिरिक्त, ऐसी खोजों का भी अभाव नहीं है, जिनसे यह ज्ञात होता है कि पढ़ने की बुरी आदतों का कारण श्रेष्ठ बुद्धि का अभाव है। 

रिस्क ने लिखा है - "ये तथ्य इस बात का संकेत देते हैं कि अध्ययन में उन्नति करने से सम्बन्धित किसी भी कार्यक्रम में छात्र की आवश्यकताओं और कमियों का सावधानी से निदानात्मक अध्ययन किया जाना चाहिए।"

अध्ययन में निर्देशन (Guidance in Study)

कक्षा कक्ष में किए जाने वाले लगभग सभी कार्यों का सम्बन्ध किसी-न-किसी विषय के शिक्षण एवं अध्ययन से होता है। इन कार्यों का उद्देश्य छात्रों के ज्ञान और उनकी योग्यता एवं कुशलताओं में वृद्धि करना होता है। यह तभी सम्भव है, जब शिक्षक-छात्रों को उन विधियों से भली-भाँति अवगत करा दें, जिनका प्रयोग करके वे विभिन्न विषयों का अध्ययन करने में सफलता प्राप्त कर सकते हैं।

दूसरे शब्दों में, छात्रों को अध्ययन सम्बन्धी निर्देशन देने का उत्तरदायित्त्व- शिक्षक पर है। रिस्क (Risk) का कथन है - "जब शिक्षक विशिष्ट परिणामों की प्राप्ति के लिए कक्षा-कक्ष के कार्यों का आयोजन एवं संगठन करे, तब उसे छात्रों को यह भी बता देना चाहिए कि वे वैसी ही परिस्थितियों में अधिगम के किन उपायों एवं विधियों का प्रयोग करें।"

उन परिस्थितियों में उन उपायों एवं विधियों के अनुसार, अध्ययन करके, छात्र अध्ययन करना सीख जाता है। रिस्क ने लिखा है - "छात्र ने वास्तविक अध्ययन के द्वारा यह सीख लिया है कि उसे किस प्रकार अध्ययन करना चाहिए।"

अध्ययन के पृथक कार्यक्रम (Individual Study Programmes) 

विद्यालयों की विभिन्न कक्षाओं में छात्रों के विभिन्न समूह अध्ययन करते हैं। इन समूहों में छात्रों की संख्या सामान्यत: तीस से पचास तक होती है। किसी भी समूह के सब छात्रों की सब विषयों में न तो समान रुचि होती है और न समान योग्यता।

इसके अतिरिक्त, जैसा कि रिस्क (Risk) ने लिखा है - "इस बात के प्रमाण प्राप्त हुए हैं कि श्रेष्ठ बुद्धि के अनेक छात्र, अध्ययन की उत्तम आदतों से अनभिज्ञ होने के कारण अपने अध्ययन-कार्य में सफलता प्राप्त करने में असमर्थ रहते हैं।" 

इन विभिन्न प्रकार के छात्रों में अध्ययन की उत्तम आदतों का निर्माण किया जाना तभी सम्भव है, जब उनके लिए विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया जाय । हम अपने इस कथन की पुष्टि में रिस्क के इस वाक्य को उद्धृत कर रहे हैं - "अनेक प्रधानाध्यापकों ने अध्ययन की अधिक उत्तम आदतों को स्थायी आधार पर स्थापित करने के लिए अध्ययन के पृथक कार्यक्रमों के प्रयोग को लाभप्रद पाया है।"

अध्ययन के समय का विभाजन (Distribution of Study Time) 

छात्रों द्वारा किसी विषय का अध्ययन करने के लिए दो विधियों का प्रयोग किया जाता है
  1. बिना विश्राम किए निरन्तर अध्ययन करना। 
  2. निरन्तर अध्ययन न करके, बीच-बीच में विश्राम करना। 
क्रो एवं क्रो का कथन है - "इस धारणा की पुष्टि करने के लिए परीक्षणात्मक प्रमाण (Experimental Evidence) है कि अध्ययन एवं विश्राम में विभाजित प्रयास, निरन्तर किए जाने वाले प्रयास से अधिक लाभप्रद है।"

इस सन्दर्भ में क्रो एवं क्रो ने स्टार्च Starch द्वारा किए गए परीक्षण का उल्लेख किया है। उसने अपने परीक्षण द्वारा यह सिद्ध कर दिया कि अध्ययन की सबसे कम योग्यता-छात्रों के उस समूह में थी, जिसने दिए हुए विषय का निरन्तर अध्ययन करने में अपने समय को व्यतीत किया था।

छात्रों को उक्त परीक्षण के परिणाम को अपना पथ प्रदर्शक बनाना चाहिए। वे अपने अध्ययन से तभी लाभान्वित हो सकते हैं, जब वे किसी विषय का निरन्तर अध्ययन न करके, बीच-बीच में विश्राम करके, उसका अध्ययन करें। इस विचार को क्रो व क्रो ने इस प्रकार लेखबद्ध किया है - "छात्र को अध्ययन के लिए जितना समय देने की आवश्यकता है, वह लगातार होने के बजाय विभाजित होना चाहिए।"

छात्रों को कितने समय तक निरन्तर अध्ययन करना चाहिए ? इसका उत्तर देते हुए, क्रो व क्रो ने लिखा है - निरन्तर अध्ययन के लिए दिए जाने वाले समय की अवधि छात्र की आयु और कक्षा के अनुसार विभिन्न होनी चाहिए। उदाहरणार्थ, प्राथमिक विद्यालयों के छात्रों को 20 मिनट से अधिक निरन्तर अध्ययन नहीं करना चाहिए । 

इतने समय तक अध्ययन करने के पश्चात् उन्हें विश्राम करना चाहिए और उसके उपरान्त अध्ययन का कार्य पुनः प्रारम्भ करना चाहिए। जैसे-जैसे उनका शारीरिक एवं मानसिक विकास होता जाय, वैसे-वैसे समय की अवधि को बढ़ाकर 30 मिनट या इससे अधिक किया जा सकता है। 

अन्त में, क्रो व क्रो ने लिखा है - "कॉलेज के छात्र के लिए भी घंटों तक पुस्तकों के अध्ययन में लीन रहना, अध्ययन के सर्वोत्तम परिणामों के लिए हानिप्रद है।"

अध्ययन की निर्दोष आदतों का अभ्यास

अध्ययन को प्रभावशाली बनाने के लिए केवल अध्ययन की विधियों का ज्ञान पर्याप्त नही है। इस ज्ञान को सुदृढ़ आधार पर स्थापित करने के लिए छात्रों द्वारा अध्ययन की निर्दोष आदतों का निरन्तर अभ्यास किया जाना है। 
बॉसिंग ने ठीक ही लिखा है - "अध्ययन की निर्दोष आदतों का निर्माण करने के लिए उनका निरन्तर अभ्यास करने की आवश्यकता पर बल देने के लिए थोड़ा कहना ही आवश्यक है। अध्ययन की प्रभावशाली आदतों को केवल नियोजित करके, कदापि प्राप्त नहीं किया जा सकता है। केवल अभ्यास ही उनको निर्दोष बनाता है।"

अध्ययन की पूर्ण व खंड विधियों का प्रयोग

छात्र में अध्ययन की उत्तम आदतों का विकास करने के लिए, उसे अध्ययन की पूर्ण एवं खंड विधियों से परिचित कराया जाना परम आवश्यक है। इन विधियों से परिचित होकर ही, वह यह निश्चित कर सकता है कि किस विषय को किस विधि का प्रयोग करके, भली प्रकार स्मरण किया और रखा जा सकता है। उदाहरणार्थ, सम्पूर्ण पुस्तक की विषय-सामग्री को पूर्ण विधि का प्रयोग करके, स्मरण रखना असम्भव है। इसके विपरीत, छोटी कविता को इस विधि का प्रयोग करके, भली प्रकार स्मरण रखा जा सकता है ।

छात्र द्वारा पूर्ण एवं खंड विधियों का प्रयोग किए जाने के विषय में अपने विचारों को व्यक्त करते हुए, क्रो व क्रो ने लिखा है - "छात्र, अधिगम की सामग्री का अध्ययन करने के लिए खंड विधि के बजाय पूर्ण विधि का प्रयोग करता है या नहीं, यह मुख्यतः अध्ययन की उन आदतों पर निर्भर रहता है, जिनको शिक्षक द्वारा प्रोत्साहित किया गया है।"

उत्तम छात्रों की अध्ययन-सम्बन्धी आदतें

मनोवैज्ञानिकों का मत है कि छात्र अध्ययन की प्रभावशाली आदतों का तभी निर्माण कर सकते हैं, जब उनको अध्ययन के उत्तम नियमों का ज्ञान हो। इन मनोवैज्ञानिकों में एन. बी. कफ (N. B. Cuff) का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है। उसने प्राथमिक एवं माध्यमिक विद्यालयों के छात्रों की अध्ययन की आदतों का अन्वेषण किया। इसके परिणामस्वरूप वह इस निष्कर्ष पर पहुँचा कि उत्तम छात्रों में अध्ययन की उत्तम आदतें होती हैं। ये आदतें उनमें इसलिए होती हैं, क्योंकि वे अध्ययन के उत्तम नियमों का अनुसरण करते हैं। कफ (Cuff) का कथन है कि जिन नियमों का अनुसरण करने के कारण उत्तम छात्रों में अध्ययन की उत्तम आदतें पाई जाती हैं उनमें से निम्नांकित विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं'-
  • प्रत्येक पाठ का स्वयं अध्ययन करना। 
  • प्रत्येक पाठ का गम्भीर अध्ययन करने से पूर्व उसको सरसरी तरीके से पढ़ना।
  • प्रत्येक पाठ का अध्ययन करने के तुरन्त बाद उसको मौन रूप से दोहराना। 
  • प्रत्येक पाठ की विषय-सामग्री को भली-भाँति समझने के लिए उदाहरणों की खोज करना।
  • विभिन्न पाठों के अध्ययन के लिए समय की निश्चित अवधि निर्धारित करना। 
  • शिक्षक द्वारा विभिन्न पाठों के सम्बन्ध में बताई जाने वाली बातों को संक्षेप में लिखना।
  • अध्ययन के लिए उपयुक्त वातावरण की खोज करना। 
  • बाह्य एवं आन्तरिक बाधाओं के प्रति ध्यान न रखना।
  • किसी विषय का अध्ययन करने से पूर्व उसका स्पष्ट ज्ञान प्राप्त करना। 
  • अगले दत्त कार्य को आरम्भ करने से पूर्व पिछले दत्त कार्य का पुन: अवलोकन करना।

अध्ययन की आदतों का विकास : मनोवैज्ञानिक कारक

छात्रों में अध्ययन की उत्तम आदतों का विकास करने के लिए मनोवैज्ञानिक कारक अत्यधिक हितप्रद सिद्ध हुए हैं। क्रो व क्रो के अनुसार, ये मनोवैज्ञानिक कारक है
  1. अध्ययन निश्चित उद्देश्य होना।
  2. अध्ययन के लिए निश्चित स्थान होना। 
  3. अध्ययन के लिए उचित भौतिक दशाएँ होना।
  4. अध्ययन के लिए समय की निश्चित अवधि होना।
  5. अध्ययन से सम्बन्धित दत्तकार्य को पूर्ण करना। 
  6. अध्ययन निरन्तर न किया जाकर, बीच-बीच में विश्राम करके किया जाना।
  7. अपनी अध्ययन-सम्बन्धी आदतों का सूक्ष्मता से परीक्षण करना और अनुचित आदतों को उचित रूप प्रदान करना।
  8. पाठ का अध्ययन करने के लिए मौन वाचन की विधि का प्रयोग करना।
  9. पाठ के अनुच्छेदों (Paras) में उससे सम्बन्धित मुख्य वाक्यों की खोज करना।
  10. पाठ का अध्ययन करने के पश्चात् उसका पुनः स्मरण करना। 
  11. पाठ का अध्ययन करने के उपरान्त उसे संक्षेप में लिखने की आदत का विकास करना।
  12. पाठ्य-विषय पर संक्षिप्त टिप्पणियाँ लिखना।
  13. पाठ्य-विषय का अध्ययन करने में उपस्थित होने वाली कठिनाइयों का ज्ञान प्राप्त करने का प्रयास करना।
  14. पाठ्य-विषय से सम्बन्धित महत्त्वपूर्ण प्रश्नों की रचना करना और उनके उत्तर जानने की चेष्टा करना।
  15. शीघ्रता और सावधानी से पढ़ने का उद्योग करना। 
  16. चार्टों, ग्राफों आदि का सतर्कता से अध्ययन करना।
  17. जहाँ सम्भव हो, वहाँ अध्ययन की पूर्ण विधि का प्रयोग करना।
  18. लेखकों के कथन पर विचार करना और यदि वह असत्य है, तो उसे अस्वीकार करना।
  19. शब्द-कोश का उचित ढंग से प्रयोग करने का ज्ञान प्राप्त करना। 
  20. एक विषय पर विभिन्न लेखकों के विचारों की खोज करना।
इन मनोवैज्ञानिक कारकों के सम्बन्ध में क्रो एवं क्रो का यह कथन अक्षरश: सत्य है - "अध्ययन की प्रभावशाली आदतों का विकास करने के साधनों के रूप में मनोवैज्ञानिक कारकों का व्यावहारिक महत्त्व है।"

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