चिन्तन तर्क व समस्या-समाधान | Thinking Reasoning and Problem-Solving

चिन्तन की प्रक्रिया का अर्थ स्पष्ट करते हुए बालकों में चिन्तन का विकास करने की विधियों का वर्णन कीजिए।

चिन्तन तर्क व समस्या-समाधान (Thinking Reasoning and Problem-Solving)

चिन्तन का अर्थ व परिभाषा

मनुष्य को संसार का सर्वश्रेष्ठ प्राणी कहा गया है। इसका कारण है - उसका चिन्तनशील होना। जीवधारियों में मनुष्य ही सर्वाधिक चिन्तनशील है और यही चिन्तन मनुष्य और उसके समाज के विकास का कारण है। शिक्षा के द्वारा मनुष्य की चिन्तन शक्तियों को विकसित किया जाता है।

मनुष्य के सामने कभी-कभी किसी समस्या का उपस्थित होना स्वाभाविक है। ऐसी दशा में वह उस समस्या का समाधान करने के उपाय सोचने लगता है। वह इस बात पर विचार करना आरम्भ कर देता है कि समस्या को किस प्रकार सुलझाया जा सकता है। उसके इस प्रकार सोचने या विचार करने की क्रिया को 'चिन्तन' कहते हैं। दूसरे शब्दों में, चिन्तन विचार करने की वह मानसिक प्रक्रिया है, जो किसी समस्या के कारण आरम्भ होती है और उसके अन्त तक चलती रहती है।

Thinking-Reasoning-and-Problem-Solving
Thinking Reasoning and Problem-Solving

हम चिन्तन के अर्थ को और अधिक स्पष्ट करने के लिए कुछ परिभाषाएँ दे रहे हैं;

रॉस "चिन्तन, मानसिक क्रिया का ज्ञानात्मक पहलू है या मन की बातों से सम्बन्धित मानसिक क्रिया है।"
"Thinking is mental activity in the cognitive aspect of mental activity with regard to psychic objects." -Ross.  

वेलेन्टाइन "चिन्तन शब्द का प्रयोग उस क्रिया के लिए किया जाता है, जिसमें श्रृंखलाबद्ध विचार किसी   लक्ष्य या उद्देश्य की ओर अविराम गति से प्रवाहित होते हैं।" 
"It is well to keep the term 'thinking' for an activity which consists essentially of a connected flow of ideas which are directed towards one end or purpose." -Valentine.
 
रेबर्न "चिन्तन, इच्छा-सम्बन्धी प्रक्रिया है, जो किसी असन्तोष के कारण आरम्भ होती है और प्रयास एवं त्रुटि के आधार पर चलती हुई उस अन्तिम स्थिति पर पहुंच जाती है, जो इच्छा को सन्तुष्ट करती है।"
"Thinking is a conative process, arising from a felt dissatisfaction, and proceeding by trial or error to an end-state which satisfies the conation." -Reyburn. 

इन परिभाषाओं से यह स्पष्ट है कि चिन्तन मानसिक क्रिया का ज्ञानात्मक पथ है। यह प्रक्रिया किसी विशेष उद्देश्य की ओर परिलक्षित होती है। इसमें इच्छा तथा असंतोष का महत्व है। इच्छा तथा असंतोष मनुष्य को चिन्तन करने के लिये विवश करते हैं।

चिन्तन की विशेषताएँ

सी. टी. मार्गन के शब्दों में - "वास्तव में प्रतिदिन की वार्ता में प्रयोग होने वाले चिन्तन शब्द में विभिन्न क्रियाओं की संरचना निहित है ।" इसका सम्बन्ध गम्भीर विचारशील क्रिया से है। इस दृष्टि से चिन्तन की विशेषताएँ इस प्रकार हैं।

विशिष्ट गुण

चिन्तन, मानव का एक विशिष्ट गुण है, जिसकी सहायता से वह अपनी बर्बर अवस्था से सभ्य अवस्था तक पहुँचने में सफल हुआ है।

मानसिक प्रक्रिया

चिन्तन, मानव की किसी इच्छा, असन्तोष, कठिनाई या समस्या के कारण आरम्भ होने वाली एक मानसिक प्रक्रिया है।

भावी आवश्यकता की पूर्ति हेतु व्यवहार

चिन्तन किसी वर्तमान या भावी आवश्यकता को पूर्ण करने के लिए एक प्रकार का व्यवहार है। हम अँधेरा होने पर बिजली का स्विच दबाकर प्रकाश कर लेते हैं और मार्ग पर चलते हुए सामने से आने वाली मोटर को देखकर एक ओर हट जाते हैं।

समस्या समाधान

मर्सेल (Mursell) के अनुसार-चिन्तन उस समय आरम्भ होता है, जब व्यक्ति के समक्ष कोई समस्या उपस्थित होती है और वह उसका समाधान खोजने का प्रयत्न करता है।

अनेक विकल्प

चिन्तन की सहायता से व्यक्ति अपनी समस्या का समाधान करने के लिए अनेक उपायों पर विचार करता है। अन्त में, वह उनमें से एक का प्रयोग करके अपनी समस्या का समाधान करता है।

समस्या समाधान तक चलने वाली प्रक्रिया 

इस प्रकार, चिन्तन एक पूर्ण और जटिल मानसिक प्रक्रिया है, जो समस्या की उपस्थिति के समय से आरम्भ होकर उसके समाधान के अन्त तक चलती रहती है।

चिन्तन के प्रकार (KINDS OF THINKING)

'चिन्तन' चार प्रकार का होता है;

1. प्रत्यक्षात्मक चिन्तन (Perceptual Thinking)

इस चिन्तन का सम्बन्ध पूर्व अनुभवों पर आधारित वर्तमान की वस्तुओं से होता है। माता-पिता के बाजार से लौटने पर यदि बालक को उनसे काफी दिनों तक टाफी मिल जाती है, तो जब भी वे बाजार से लौटते हैं, तभी टाफी का विचार उसके मस्तिष्क में आ जाता है और वह दौड़ता हुआ उनके पास जाता है। यह निम्न स्तर का चिन्तन है। अत: यह विशेष रूप से पशुओं और बालकों में पाया जाता है । इसमें भाषा और नाम का प्रयोग नहीं किया जाता है।

2. प्रत्ययात्मक चिन्तन (Conceptual Thinking)

इस चिन्तन का सम्बन्ध पूर्व-निर्मित प्रत्ययों से होता है, जिनकी सहायता से भविष्य के किसी निश्चय पर पहुँचा जाता है। कुत्ते को देखकर बालक अपने मन में प्रत्यय का निर्माण कर लेता है। अतः जब वह भविष्य में कुत्ते को फिर देखता है, तब वह उसकी ओर संकेत करके कहता है - 'कुत्ता'। इस चिन्तन में भाषा और नाम का प्रयोग किया जाता है ।

3. कल्पनात्मक चिन्तन (Imaginative Thinking)

इस चिन्तन का सम्बन्ध पूर्व-अनुभवों पर आधारित भविष्य से होता है। जब माता-पिता बाजार जाते हैं, तब बालक कल्पना करता है कि वे वहाँ से लौटने पर उसके लिए टाफी लायेंगे इस चिन्तन में भाषा और नाम का प्रयोग नहीं किया जाता है ।

4. तार्किक चिन्तन (Logical Thinking) 

यह सबसे उच्च प्रकार का चिन्तन है। इसका सम्बन्ध किसी समस्या के समाधान से होता है। जॉन डीवी (Dewey) ने इसको 'विचारात्मक चिन्तन' (Reflective Thinking) की संज्ञा दी है।

चिन्तन के विकास के उपाय

क्रो व क्रो के शब्दों में - "स्पष्ट चिन्तन की योग्यता सफल जीवन के लिए आवश्यक है। जो लोग उद्योग, कृषि या किसी मानसिक कार्य में दूसरों के आगे होते हैं, वे अपनी प्रभावशाली चिन्तन की योग्यता में साधारण व्यक्तियों से श्रेष्ठ होते हैं।"
"The ability to think clearly is necessary to successful living. Those who outrank others in industry, agriculture or any intellectual pursuit are above average in their ability to think effectively." -Crow and Crow.

इस कथन से चिन्तन का महत्व स्पष्ट हो जाता है। अत: यह आवश्यक है कि शिक्षक, बालकों की चिन्तन-शक्ति का विकास करे। वह ऐसा अधोलिखित उपायों की सहायता से कर सकता है।
  1. भाषा, चिन्तन के माध्यम और अभिव्यक्ति की आधारशिला है। अत: शिक्षक को बालकों के भाषा-ज्ञान में वृद्धि करनी चाहिए। 
  2. ज्ञान, चिन्तन का मुख्य स्तम्भ है। अत: शिक्षक को बालकों के ज्ञान का विस्तार करना चाहिए।
  3. तर्क, वाद-विवाद और समस्या-समाधान, चिन्तन-शक्ति को प्रयोग करने का अवसर देते हैं। अतः शिक्षक को बालकों को इन बातों के लिए अवसर देने चाहिए।
  4. उत्तरदायित्व, चिन्तन को प्रोत्साहित करता है। अतः शिक्षक को बालकों को उत्तरदायित्व के कार्य सौंपने चाहिए। 
  5. रुचि और जिज्ञासा, चिन्तन में महत्वपूर्ण स्थान है। अत: शिक्षक को बालकों को इन प्रवृत्तियों को जाग्रत रखना चाहिए। 
  6. प्रयोग, अनुभव और निरीक्षण, चिन्तन को शक्तिशाली बनाते हैं। अत: शिक्षक को बालकों के लिए इनसे सम्बन्धित वस्तुएँ जुटानी चाहिए ।
  7. शिक्षक को अपने अध्यापन के समय बालकों से विचारात्मक प्रश्न पूछ कर उनका चिन्तन की योग्यता में वृद्धि करनी चाहिए। 
  8. शिक्षक को बालकों को विचार करने और अपने विचारों को व्यक्त करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। 
  9. शिक्षक को प्रश्न पत्र में ऐसे प्रश्न देने चाहिए, जिनके उत्तर बालक भली-भाँति विचार करने के बाद ही दे सकें ।
  10. शिक्षक को बालकों में निष्क्रिय रटने की आदत नहीं पड़ने देनी चाहिए, क्योंकि इस प्रकार का रटना, चिन्तन का घोर शत्रु है। 
  11. शिक्षक को बालकों को समस्या को समझने और उसका समाधान खोजने के लिए प्रेरित करना चाहिए। यह उपाय बालकों में चिन्तन और अधिगम-दोनों की प्रक्रियाओं के विकास में योग देता है। 
मरसेल का मत है - "समस्या का ज्ञान और उसके समाधान की खोज -यही चिन्तन की प्रक्रिया है और यही सीखने की भी प्रक्रिया है।" 
"The recognition of a question, the quest for an answer this is the process of thinking and also the process of learning." -Mursell.

तर्क का अर्थ व परिभाषा (MEANING AND DEFINITION OF REASONING)

'तर्क' या 'तार्किक चिन्तन'-चिन्तन का उत्कृष्ट रूप और जटिल मानसिक प्रक्रिया है। इसे साधारणत: औपचारिक नियमों से सम्बद्ध किया जाता है, पर पशु और मानव इस बात का अनुभव किये बिना तर्क का प्रयोग करते रहते हैं । कुत्ता अपने स्वामी को कार में बैठकर जाते हुए देखकर घर में वापस आ जाता है। बालक कुल्फी बेचने वाले की आवाज सुनकर घर से बाहर दौड़ा हुआ जाता है। हम अपने मित्र को उसकी कृपा के लिये धन्यवाद देते हैं। इन सब कार्यों का आधार 'तर्क' है।

एक और उदाहरण लीजिए। हम अपना कलम कहीं रखकर भूल जाते हैं। हम विचार करते हैं कि हमने उससे अन्तिम बार कहाँ लिखा था। वह स्थान बैठने का कमरा था। इस प्रकार तर्क करके हम इस निष्कर्ष पर पहुँ जाते हैं कि कलम बैठने के कमरे में होगा हम वहाँ जाते हैं और वह हमें मिल जाता है। इस प्रकार हमारी समस्या का समाधान हो जाता है। अतः हम कह सकते हैं कि तर्क कार्य-कारण में सम्बन्ध स्थापित करके हमें किसी निष्कर्ष पर पहुँचने या किसी समस्या का समाधान करने में सहायता देता है। 

हम 'तर्क' के अर्थ को और अधिक स्पष्ट करने के लिए कुछ परिभाषाएँ दे रहे हैं;

मन "तर्क उस समस्या को हल करने के लिए अतीत के अनुभवों को सम्मिलित रूप प्रदान करता है जिसको केवल पिछले समाधानों का प्रयोग करके हल नहीं किया जा सकता है।"
"Reasoning is combining past experiences in order to solve a problem which cannot be solved by more reproduction of earlier solutions." -Munn.
 
गेट्स व अन्य "तर्क, फलदायक चिन्तन है, जिससे किसी समस्या का समाधान करने के लिए पूर्व अनुभवों को नई विधियों से पुनर्गठित या सम्मिलित किया जाता है।"
"Reasoning is productive thinking in which previous experiences are organized or combined in new ways, to solve a problem." Gates and Others.

स्किनर "तर्क, शब्द का प्रयोग कारण और प्रभाव के सम्बन्धों की मानसिक स्वीकृति को व्यक्त करने के लिए किया जाता है । यह किसी अवलोकित कारण से एक घटना की भविष्यवाणी या किसी अवलोकित घटना के किसी कारण का अनुमान हो सकती है।"
"Reasoning is the word used to describe the mental recognition of cause-and-effect relationship. It may be the production of an event from an observed cause or the inference of a cause from an observed event." -Skinner.

इन परिभाषाओं से स्पष्ट है कि तर्क चिन्तन की प्रक्रिया है। तर्क द्वारा अजित प्रत्ययों का उपयोग समस्या के समाधान हेतु किया जाता है।

तर्क के सोपान (STEPS IN REASONING)

डीवी (Dewey) ने अपनी पुस्तक "How We Think" में तर्क में 5 सोपानों की उपस्थिति बताई है, 

1. समस्या की उपस्थिति (Presence of a Problem)

तर्क का आरम्भ किसी समस्या की उपस्थिति से होता है। समस्या की उपस्थिति, व्यक्ति को उसके बारे में विचार करने के लिए बाध्य करती है।

2. समस्या की जानकारी (Comprehension of a Problem)

व्यक्ति समस्या का अध्ययन करके उसकी पूरी जानकारी प्राप्त करता है और उससे सम्बन्धित तथ्यों को एकत्र करता है। 

3. समस्या-समाधान के उपाय (Methods of Solving the Problem) 

व्यक्ति एकत्र किए हुए तथ्यों की सहायता से समस्या का समाधान करने के लिए विभिन्न उपायों पर विचार करता है।

4. एक उपाय का चुनाव (Selection of One Method)

व्यक्ति, समस्या का समाधान करने के लिए सब उपायों के औचित्य और अनौचित्य पर पूर्ण रूप से विचार करने के बाद उनमें से एक का चयन कर लेता है।

5. उपाय का प्रयोग (Application of the Method)

व्यक्ति अपने निर्णय के अनुसार समस्या का समाधान करने के लिए उपाय का प्रयोग करता है।

हम उक्त सोपानों को एक उदाहरण देकर स्पष्ट कर सकते हैं। माँ घर लौटने पर अपने बच्चे को रोता हुआ पाती है। उसका रोना माँ के लिए एक समस्या उपस्थित कर देता है। वह उसके रोने के कारणों की खोज करके समस्या का पूर्ण ज्ञान प्राप्त करती है। उसके विचार से बच्चे के रोने के तीन कारण हो सकते हैं-अकेला रहना, चोट या भूख। 

वह बच्चे को आलिंगन करके उसे चुप करने का प्रयास करती है, पर बच्चा चुप नहीं होता है। वह उसके सम्पूर्ण शरीर को ध्यान से देखती है, पर उसे चोट का कोई चिह्न नहीं मिलता है। अत: वह इस निष्कर्ष पर पहुँचती है कि बच्चा भूखा है। अपने इस निष्कर्ष के अनुसार वह बच्चे को दूध पिलाती है। दूध पीकर बच्चा चुप हो जाता है। इस प्रकार, माँ की समस्या का समाधान हो जाता है।

तर्क के प्रकार (KINDS OF REASONING)

तर्क दो प्रकार का होता है;

1. आगमन तर्क (Inductive Reasoning) 

इस तर्क में व्यक्ति अपने अनुभवों या अपने द्वारा संकलित तथ्यों के आधार पर किसी सामान्य नियम या सिद्धान्त का निरूपण करता है। इसमें वह तीन स्तरों से होकर गुजरता है - निरीक्षण, परीक्षण और सामान्यीकरण (Observation, Experiment and Generalization)। उदाहरणार्थ, जब माँ घर लौटने पर बच्चे को रोता हुआ पाती है, तब वह उसके रोने के कारणों की खोज करके इस निष्कर्ष पर पहुँचती है कि वह भूख के कारण रो रहा है। इस प्रकार, इस विधि में हम विशिष्ट सत्य से सामान्य सत्य की ओर अग्रसर होते हैं। अत: हम भाटिया के शब्दों में कह सकते हैं - "आगमन-विधि, खोज और अनुसंधान की विधि है।"
"Induction is a method of discovery and research." -Bhatia.

2. निगमन तर्क (Deductive Reasoning) 

इस तर्क में व्यक्ति दूसरों के अनुभवों, विश्वासों या सिद्धान्तों का प्रयोग करके सत्य का परीक्षण करता है। उदाहरणार्थ, यदि माँ को इस सिद्धान्त में विश्वास है, तो वह बच्चे को रोता देखकर तुरंन्त इस निष्कर्ष पर पहुँच जाती है कि उसे भूख लगी है और इसलिए उसे दूध पिला देती है। इस प्रकार, इस विधि में हम एक सामान्य सिद्धान्त को स्वीकार करते हैं और उसे नवीन परिस्थितियों में प्रयोग करके सिद्ध करते हैं। अतः हम भाटिया के शब्दों में कह सकते हैं - "निगमन-विधि, प्रयोग और प्रमाण की विधि है।"
"Deduction is a method of application and proof." -Bhatia.

ध्यान रखने की बात यह है कि आगमन और निगमन तर्क एक-दूसरे के विरोधी जान पड़ते हैं, वास्तव में ऐसा नहीं है। ये 'तर्क' कही जाने वाली एक ही क्रिया के अन्तर्गत दो प्रक्रियाएँ हैं, या एक ही क्रिया के दो पहलू हैं।

तर्क का प्रशिक्षण (TRAINING OF REASONING)

जीवन के सभी क्षेत्रों में तर्क या तार्किक चिन्तन की आवश्यकता और उपयोगिता को स्वीकार किया जाता है। सेनापति सैकड़ों मील दूर बैठा हुआ अपनी तर्क-शक्ति का प्रयोग करके युद्ध-स्थल में सैन्य-संचालन के आदेश देता है। प्रशासक इसी शक्ति के कारण अपनी नीतियों का निर्माण और उनमें परिवर्तन करता है। अत: शिक्षक पर बालकों की तर्क-शक्ति का विकास करने का गम्भीर उत्तरदायित्व है। वह ऐसा अग्रांकित विधियों का प्रयोग करके कर सकता है:-

  1. आगमन-विधि, तार्किक चिन्तन के विकास में योग देती है। अत: अध्यापक को अपने शिक्षण में इस विधि का प्रयोग करना चाहिए।
  2. वाद-विवाद, विचार-विमर्श, भाषण-प्रतियोगिता आदि तार्किक चिन्तन को प्रोत्साहित करते हैं। अत: शिक्षक को इनका समुचित आयोजन करना चाहिए। 
  3. खोज, प्रयोग और अनुसंधान का तार्किक चिन्तन में महत्वपूर्ण स्थान है। अतः शिक्षक को बालकों को इस प्रकार के कार्य करने के अवसर देने चाहिए।
  4. एकाग्रता, संलग्नता और आत्म-निर्भरता के गुणों के अभाव में तार्किक चिन्तन की कल्पना नहीं की जा सकती है। अत: शिक्षक को बालकों में इन गुणों का विकास करना चाहिए। 
  5. निरीक्षण परीक्षण और स्वयं-क्रिया में तार्किक चिन्तन के प्रयोग का उत्तम अवसर मिलता है। अतः शिक्षक को बालकों के लिए इनसे सम्बन्धित क्रियाओं की व्यवस्था करनी चाहिए।
  6. पूर्व-द्वेष, पूर्व-निर्णय और पूर्व-धारणा, तार्किक चिन्तन में बाधा उपस्थित करते हैं। अंत: शिक्षक को बालकों को इनके दुष्परिणामों से भली-भाँति अवगत करा देना चाहिए।
  7. किसी समस्या का समाधान करने की विभिन्न विधियों पर विचार करने से तार्किक चिंतन को बल मिलता है। अतः शिक्षक को बालकों को विभिन्न प्रकार की समस्याओं का समाधान खोजने के लिए प्रेरित करना चाहिए।
  8. शिक्षक को बालकों को तर्क करने की वैज्ञानिक विधियों का प्रयोग करके किसी समस्या का अध्ययन करके स्वयं ही किसी नियम, निष्कर्ष या सिद्धान्त पर पहुँचने का प्रशिक्षण देना चाहिए।
  9. गेट्स एवं अन्य (Gates and Others) के अनुसार - तार्किक चिन्तन की योग्यता सहसा प्रकट न होकर आयु और अनुभव के साथ विकसित होती है। अत: अध्यापक को शिक्षा के सब स्तरों पर बालकों को अपने तार्किक चिन्तन के प्रयोग का अवसर देना चाहिए। 
  10. वेलेनटीन (Valentine) के अनुसार - शिक्षक को बालकों के समक्ष केवल उन्हीं विचारों को प्रस्तुत करना चाहिए, जिनके सत्य का वह स्वयं निरीक्षण कर चुका है। साथ ही, उसे बालकों को उसके विचारों से प्रभावित न होकर स्वयं अपने विचारों का निर्माण करने का प्रशिक्षण देना चाहिए।

समस्या-समाधान का अर्थ व परिभाषा

यदि हम किसी निश्चित लक्ष्य पर पहुँचना चाहते हैं, पर किसी कठिनाई के कारण नहीं पहुँच पाते हैं, तब हमारे समक्ष एक समस्या उपस्थित हो जाती है । यदि हम इस कठिनाई पर विजय प्राप्त करके अपने लक्ष्य पर पहुँच जाते हैं, तो हम अपनी समस्या का समाधान कर लेते हैं। इस प्रकार, समस्या-समाधान का अर्थ है - कठिनाइयों पर विजय प्राप्त करके लक्ष्य को प्राप्त करना।

स्किनर ने 'समस्या-समाधान' की परिभाषा इन शब्दों में की है - "समस्या-समाधान किसी लक्ष्य की प्राप्ति में बाधा डालती प्रतीत होती कठिनाइयों पर विजय पाने की प्रक्रिया है। यह बाधाओं के बावजूद सामंजस्य करने की विधि है।"
"Problem-solving is a process of overcoming difficulties that appear to interfere with the attainment of a goal. It is a procedure of making adjustments in spite of interferences." -Skinner.

समस्या-समाधान के स्तर (LEVELS OF PROBLEM-SOLVING)

तर्क, समस्या के समाधान का आवश्यक अंग है। समस्या का समाधान, चिन्तन तथा तर्क का उद्देश्य है। स्टेनले ग्रे के शब्दों में "समस्या समाधान वह प्रतिमान है। जिसमें तार्किक चिन्तन निहित होता है।" समस्या-समाधान के अनेक स्तर हैं। कुछ समस्याएँ बहुत सरल होती हैं, जिनको हम बिना किसी कठिनाई के हल कर सकते हैं, जैसे-पानी पीने की इच्छा। हम इस इच्छा को निकट की प्याऊ पर जाकर तृप्त कर सकते हैं। इसके विपरीत, कुछ समस्याएं बहु जटिल होती हैं, जिनको हल करने में हमें अत्यधिक कठिनाई होती है: जैसे-रेगिस्तान में किसा विशेष स्थान पर जल-प्रणाली स्थापित करने की इच्छा है। इस समस्या का समाधान करने के लिए अनेक उपाय किए जाने आवश्यक हैं; जैसे-पानी कहाँ से प्राप्त किया जाए ? उसे उस विशेष स्थान पर कैसे पहुँचाया जाए ? उसके लिए धन किस प्रकार प्राप्त किया विशरा, इत्यादि। इन समस्याओं को हल करने के बाद ही पानी की मुख्य इच्छा पूरी की जा सकती है।

समस्या-समाधान की विधियाँ

स्किनर (Skinner) ने 'समस्या-समाधान' की निम्नांकित विधियों की चर्चा की है

अनसीखी विधि (Unlearned Method)

इस विधि का प्रयोग निम्न कोटि के प्राणियों द्वारा किया जाता है। उदाहरणार्थ, मधुमक्खियों की भोजन की इच्छा, फूलों का रस चूसने से और खतरे से बचने की इच्छा, शत्रु को डंक मारने से पूरी हो जाती है। 

प्रयास एवं त्रुटि विधि (Trial and Error Method)

इस विधि का प्रयोग निम्न और उच्च कोटि के प्राणियों द्वारा किया जाता है। इस सम्बन्ध में थार्नडाइक (Thorndike) का बिल्ली पर किया जाने वाला प्रयोग उल्लेखनीय है। बिल्ली अनेक गलतियाँ करके अन्त में पिंजड़े से बाहर निकलना सीख गई । 

अन्तर्दृष्टि विधि (Insight Method)

इस विधि का प्रयोग-उच्च कोटि के प्राणियों द्वारा किया जाता है। इस सम्बन्ध में कोहलर (Kohler) का वनमानुषों पर किया जाने वाला प्रयोग उल्लेखनीय है।

वाक्यात्मक भाषा-विधि (Sentence Language Method)

इस विधि का प्रयोग मनुष्य के द्वारा बहुत लम्बे समय से किया जा रहा है। वह पूरे वाक्य बोलकर अपनी अनेक समस्याओं का समाधान करता है और फलस्वरूप प्रगति करता चला आ रहा है। इसलिए, वाक्यात्मक भाषा को सारी सभ्यता का आधार माना जाता है।

वैज्ञानिक विधि (Scientific Method)

आज का प्रगतिशील मानव अपनी समस्या का समाधान करने के लिए वैज्ञानिक विधि का प्रयोग करता है। हम इसका विस्तृत वर्णन कर रहे हैं।

समस्या-समाधान की वैज्ञानिक विधि

स्किनर (Skinner) के अनुसार, समस्या-समाधान की वैज्ञानिक विधि में निम्नलिखित छः सोपानों (Steps) का अनुसरण किया जाता है

1. समस्या को समझना (Understanding the Problem )

इस सोपान में व्यक्ति यह समझने का प्रयास करता है कि समस्या क्या है, उसके समाधान में क्या कठिनाइयाँ हैं या हो सकती हैं और उनका समाधान किस प्रकार किया जा सकता है ?

2. जानकारी का संग्रह (Collecting Information)

इस सोपान में व्यक्ति समस्या से सम्बन्धित जानकारी का संग्रह करता है। हो सकता है कि उससे पहले कोई और व्यक्ति उस समस्या को हल कर चुका हो। अत: वह अपने समय की बचत करने के लिए उस व्यक्ति द्वारा संग्रह किये गये तथ्यों की जानकारी प्राप्त करता है । 

3. सम्भावित समाधानों का निर्माण (Formulating Possible Solutions)

इस सोपान में व्यक्ति, संग्रह की गई जानकारी की सहायता से समस्या का समाधान करने के लिए कुछ विधियों को निर्धारित करता है। वह जितना अधिक बुद्धिमान होता है, उतनी ही अधिक उत्तम ये विधियाँ होती हैं। इस सोपान में सृजनात्मक चिन्तन (Creative Thinking) प्राय:  सक्रिय रहता है।

4. सम्भावित समाधानों का मूल्यांकन (Evaluating the Possible Solutions) 

इस सोपान में व्यक्ति निर्धारित की जाने वाली विधियों का मूल्यांकन करता है। दूसरे शब्दो में, परलोक विधि के प्रयोग के परिणामों पर विचार करता है। इस कार्य में उसकी आंशिक रूप से उसकी बुद्धि और आंशिक रूप से संग्रह की गई जानकारी के आधार पर निर्धारित की जाने वाली विधियों पर निर्भर रहती है।

5. सम्भावित समाधानों का मूल्यांकन (Evaluating the Possible Solutions) 

इस सोपान में व्यक्ति निर्धारित की जाने वाली विधियों का मूल्यांकन करता है। दूसरे शब्दों में, वह प्रत्येक विधि के प्रयोग के परिणामों पर विचार करता है। इस कार्य में उसकी सफलता आंशिक रूप से उसकी बुद्धि और आंशिक रूप से संग्रह की गई जानकारी के आधार पर निर्धारित की जाने वाली विधियों पर निर्भर रहती है।

6. निष्कर्षों का निर्णय (Forming Conclusions)

इस सोपान में व्यक्ति अपने परीक्षणों के आधार पर विधियों के सम्बन्ध में अपने निष्कर्षों का निर्माण करता है। फलस्वरूप, वह यह अनुमान लगा लेता है कि समस्या का समाधान करने के लिए उनमें से कौन-सी विधि सर्वोत्तम है।

7. समाधान का प्रयोग (Application of Solution)

इस सोपान का उल्लेख क्रो एवं क्रो (Crow and Crow) ने किया है। व्यक्ति अपने द्वारा निश्चित की गई सर्वोत्तम विधि को समस्या का समाधान करने के लिए प्रयोग करता है। 
यह आवश्यक नहीं है कि व्यक्ति, समस्या का समाधान करने में सफल हो। इस सम्बन्ध में स्किनर के ये शब्द उल्लेखनीय हैं - "इस विधि से भी भविष्यवाणियाँ बहुधा गलत होती हैं और गलतियाँ हो जाती हैं।" 
"Even with this method, predictions are often inaccurate and errors are still made." -Skinner.

समस्या-समाधान-विधि का महत्व

मरसेल का कथन है - "समस्या समाधान की विधि का शिक्षा में सर्वाधिक महत्व है।" 
"The process of problem-solving is of the utmost importance education." -Mursell.

छात्रों की शिक्षा में समस्या समाधान की विधि का महत्व इसके अनेक लाभों के कारण है। कुछ मुख्य लाभ इस प्रकार है:-

  • यह उनकी रुचि को जाग्रत करती है। 
  • यह उनमें स्वयं कार्य करने का आत्मविश्वास उत्पन्न करती है। 
  • वह उनको समस्याओं का समाधान करने के लिए वैज्ञानिक विधियों के प्रयोग का अनुभव प्रदान करती है। 
  • यह उनके  विचारात्मक और सृजनात्मक चिन्तन एवं तार्किक शक्ति का विकास करती है। 
  • यह उसको भाषा अपने भावी जीवन की समस्याओं का समाधान करने का प्रशिक्षण देती है। इन लाभो के कारण, क्रो एवं क्रो (Crow and Crow) का सुझाव है - "शिक्षकों को समस्या-समाधान  की वैज्ञानिक विधि में प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए। केवल तभी वे शुद्ध, स्पर् क निष्यक्ष चिन्तन का विकास करने के लिए छात्रो का प्रदर्शन कर सकेंगे।"

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इस Blog का उद्देश्य प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे प्रतियोगियों को अधिक से अधिक जानकारी एवं Notes उपलब्ध कराना है, यह जानकारी विभिन्न स्रोतों से एकत्रित किया गया है।