पर्यावरण के घटक, स्थलमंडल, जलमंडल, वायुमंडल, और जैवमंडल

पृथ्वी के ऊपर की वह ठोस परत, जो अनेक प्रकार की चट्टानों, मिट्टियो, एवं अन्य ठोस पदार्थो से मिलकर बनती है, उसे स्थलमंडल कहते हैं।
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Environmental Components

पर्यावरण के घटक, स्थलमंडल, जलमंडल, वायुमंडल, और जैवमंडल

परीक्षापयोगी दृष्टिकोण से पर्यावरण को चार भागों में बांटा गया है।
  1. स्थलमंडल (Lithosphere)
  2. जलमंडल (Hydrosphere)
  3. वायुमंडल (Atmosphere)
  4. जैवमंडल (Biosphere)

स्थलमंडल (Lithosphere)

पृथ्वी के ऊपर की वह ठोस परत, जो अनेक प्रकार की चट्टानों, मिट्टियो, एवं अन्य ठोस पदार्थो से मिलकर बनती है, उसे स्थलमंडल कहते हैं।
इसके ऊपर महाद्वीप एवं समुद्री भाग स्थित होता है, महाद्वीप क्षेत्रों में यह सर्वाधिक मोटा होता है, जहां इसकी अधिकqतम ऊंचाई 10 से 12 तक हो सकती है। यह पृथ्वी संपूर्ण आयतन का लगभग 1% और उसके कुल द्रव्यमान का 0.4% है।

स्थल मंडल में तकनीकी दृष्टि से भूमि भाग और समुद्री तल दोनों को ही शामिल किया जाता है फिर भी ज्यादातर इसका प्रयोग केवल भूमि तल दर्शाने के लिए किया जाता है। इस दृष्टि से स्थलमंडल संपूर्ण पृथ्वी का केवल 3/10 भाग है, शेष 7/10 भाग समुद्र है।

समवर्ती तल पर चट्टानी दशांश वाले भागो को छोड़कर शेष संपूर्ण भाग बालू या मृदा है बालू और अधिकांश मृदा जो हमें आज दिखाई पड़ती हैं, वह प्राचीन चट्टानों से उत्पन्न हुई है मूल रूप से स्वयं चट्टाने गलित मैग्मा से बनी थी, जो पृथ्वी के भीतरी भाग से फुटकर निकला था पृथ्वी की शक्तिशाली हलचल में कुछ एक चट्टानों को ऊपरी सतह तक उठा दिया, जहां उन पर जलवायवी प्रभाव पड़े। चट्टानों को टूटकर बालू बनाने की जो प्रक्रिया है, भू विज्ञान में यह अपचयन कहलाती है। चट्टान अक्षर में बहुत से घटक काम करते हैं, जिसमें स्वयं जलवायु अत्यधिक महत्वपूर्ण है।

जब सूर्य द्वारा अत्यधिक तप्त चट्टाने वर्षा से अचानक ठंडी होती है तो वे चटक कर टूट जाती है, जब यह प्रक्रिया हजारों वर्षों तक चलती रहती है तब बड़ी-बड़ी चट्टानें चूर चूर होकर बालू बन जाती है। इसी प्रकार वाला भी चट्टानों को तोड़ सकता है। चटकी चट्टानों की दरारो में फंसा हुआ पानी सर्दी पड़ने पर हिम का रूप धारण कर लेता है और फैल जाता है यह दरार अक्सर चट्टानों को तोड़ देता है। इनके साथ अन्य सहयोग से मिलकर भूमि की इस रूप में रचना हुई है जिस रूप में आज हम देख रहे हैं।

दृश्य भूमि की आकृतियां स्थलमंडल की चट्टानी रूप में निर्धारित होती हैं भू वैज्ञानिक दृष्टि से कहा जाए, तो फिर सभी पदार्थ जिन से पृथ्वी पटल का निर्माण हुआ है, चट्टाने कहलाती है। चाहे वह ग्रेनाइट गोलांशम की हो, दाह कोयला की हो, चिकनी मिट्टी की हो, या बालू कंकड़ के अदृढ़ खंड हो।

स्थल मंडल को बारी जलवायु प्रदेशों में विभाजित किया जाता है। हम जानते हैं कि पृथ्वी का ऊपरी भाग अर्थात इसका दृश्य धरातल, विगत काल में आमूल- चूल परिवर्तनों का शिकार हुआ है। भू वैज्ञानिकों का कहना है कि हजारों वर्षों के दौरान पृथ्वी के शीतल एवं संकुचन के परिणाम स्वरूप इसमें इतने सारे परिवर्तन हुए हैं।

जलमंडल (Hydrosphere)

पृथ्वी के स्थल मंडल के नीचे के भाग में स्थित जल से भरे भाग, जैसे झील, सागर, महासागर आदि को जलमंडल कहते हैं।
अनुमान है कि जल मंडल में लगभग 1 अरब 46 करोड़ घन किलोमीटर पानी है। इनमें से 97.3% महासागरों और अंतर्देशीय सागरों में है शेष 2.7% हिमनदो और बर्फ टोपो, मीठे जल की झीलों, नदियों और भूमिगत जल के रूप में पाया जाता है।

महासागरीय जल और मीठे जल का कुल भंडारण भू वैज्ञानिक इतिहास में हमेशा ही बिल्कुल स्थिर रहता है। लेकिन महासागरीय और मीठे जल का अनुपात, जलवायु की दशाओं के अनुसार हमेशा बदलता रहता है। जब जलवायु अत्यधिक शीत होती है, तो बहुत सा समुद्री जल हिमनदो और बर्फ टोपो द्वारा अवशोषित हो जाता है तथा समुद्री जल की कमी के कारण मीठे जल का परिणाम बढ़ जाता है जब जलवायु गर्म हो जाती है, तो हिमनद और बर्फ टोपो के पिघलने से मीठे जल की कमी के कारण समुद्री जल की मात्रा बढ़ जाती है। पिछले 60 से 80 वर्षों के दौरान किए गए समुद्र स्तर पर प्रेक्षण यह दर्शाते हैं कि समुद्री जल धीरे-धीरे बढ़ रहा है। इसका यह अर्थ है की जलवायु गर्म होती जा रही है।

महासागर पृथ्वी की कुल धरातल क्षेत्रफल के 70.8% भाग को आच्छादित किए हुए हैं और इनमें 144.5 करोड़ घन किलोमीटर पानी है।

सौर ताप महासागर के जल को गतिशील रखता है। भूमध्य रेखीय क्षेत्रों में सूर्य पानी को गर्म कर देता है, जिससे यह फैल कर कुछ इंच ऊपर उठ जाता है। भूमध्य रेखा में यह अतिरिक्त उठान पानी को नीचे उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव की ओर बहन के लिए प्रेरित करता है। क्योंकि भूमध्य रेखा का गर्म पानी उत्तर और दक्षिण की ओर बहता है, अतः ध्रुवी क्षेत्रों में ठंडा पानी भारी (क्योंकि पानी में अत्यधिक संघनन होता है) गर्म जल के नीचे चला जाता है और तल के साथ-साथ धीरे-धीरे भूमध्य रेखीय क्षेत्रों तक फैल जाता है।

अंततः प्रवाह में पृथ्वी की घूमने की शक्ति के कारण उलझा पैदा हो जाता है क्योंकि पृथ्वी पूर्व की ओर चक्कर लगाती है, इसीलिए समुद्र का पानी पश्चिम की ओर आने के लिए प्रेरित होता है और वह उत्तरी गोलार्ध में थोड़ा दाहिनी और तथा दक्षिणी गोलार्ध में थोड़ा बाई और मुड़ जाता है। यह फ्रांसीसी गणितज्ञ के नाम पर 'कोरि आलिस' प्रभाव के रूप में जाना जाता है, जिसने एक सौ वर्ष पहले इसकी खोज की थी।

महाद्वीपों के विपरीत महासागर एक दूसरे में इतनी स्वभाविक रूप से विलीन हो जाते हैं की उनके बीच की सीमा का निर्धारण करना कठिन हो जाता है। फिर भी भूगोलवेत्ता ने महासागरीय क्षेत्र को चार महासागरों प्रशांत महासागर, अटलांटिक महासागर, हिंद महासागर, और आर्कटिक महासागर में विभाजित किया है। परिभाषा के अनुसार इन महासागरों में सागर, उप - सागर, खड़िया तथा अन्य उनसे संलग्न महासागरीय प्रवेश द्वार भी शामिल है।

महासागर में सबसे बड़ा और सबसे पुराना प्रशांत महासागर है। पृथ्वी के क्षेत्रफल के 35.25% भाग पर यह फैला है। इसकी सर्वाधिक चौड़ाई 16.880 किलोमीटर और सर्वाधिक गहराई 11516 मीटर है। इसमें दीपों का सर्वाधिक संगुटीकरण है, जो मोटे तौर पर तीन समूहों में है माइक्रोनेशिया, मेलानेशिया और पोलिनेशिया ।

अटलांटिक महासागर दूसरा सबसे बड़ा महासागर है, जो पृथ्वी के क्षेत्रफल के 20.9% भाग को घेरा हुआ है। इसकी सर्वाधिक गहराई 8381 फीट है।

हिंद महासागर तीसरा सबसे बड़ा महासागर है जो भारत के कन्याकुमारी से दक्षिणी ध्रुव एंटार्कटिका तक फैला है। यह पृथ्वी के कुल धरातल क्षेत्र के 14.65% भाग में है इसकी सर्वाधिक गहराई 7725 मीटर है।

वायुमंडल (Atmosphere)

भू-मंडल का तीसरा मंडल वायुमंडल है। स्थल मंडल एवं जल मंडल के चारों ओर गैस जैसे पदार्थों का एक आवरण है, जिसमें नाइट्रोजन, ऑक्सीजन, कार्बन डाइऑक्साइड, एवं अन्य गैसे, मिट्टी के कण, पानी की भाप एवं अन्य अनेक पदार्थ मिले हुए हैं। इन सभी पदार्थों के मिश्रण से बने आवरण को वायुमंडल के नाम से पुकारा जाता है स्थलमंडल एवं जल मंडल दोनों ही वायुमंडल में आच्छादित रहते हैं।

वायु मंडल पृथ्वी की रक्षा करने वाला रोधी आवरण है यह सूर्य ग्रहण प्रकाश और ताप को कम करता है इसकी ओजोन परत सूर्य से आने वाली अत्यधिक हानिकारक पराबैंगनी किरणों को अधिकांश सोख लेती है और इस प्रकार जीवो की विनाश से रक्षा करती है।

वायुमंडल गुरुत्व द्वारा पृथ्वी से बंधा हुआ है। चंद्रमा जैसा उपग्रह जिसकी गुरुत्व शक्ति बहुत कम होती है, वायु मंडल को धारण नहीं कर सकता।

वायु दबाव का सीधा और सरल अर्थ है - किसी दिए बिंदु पर संपूर्ण वायु का भार पडना। निश्चय ही हवा का भार बहुत कम होता है। एक घन लीटर का एक साथ हवा का भार लगभग 1.3 ग्राम होता है। समुद्र तल पर हवा का दबाव 1033.6 वर्ग सेंटीमीटर होता है।

वायुमंडल में विभिन्न गैस और जलवाष्प होती है और अपने सर्वाधिक ऊपरी भाग में यह परमाण्विक काणों से अवशोषित होते हैं। पृथ्वी से 50 किलोमीटर की दूरी तक वायुमंडल में 78% नाइट्रोजन, 21% ऑक्सीजन और निम्न प्रतिशत में आर्गन, कार्बन डाइऑक्साइड, नियॉन, हीलियम और मीथेन इसी क्रम में विधमान है।

4. जैवमंडल (Biosphere)

जैव मंडल की सर्वप्रथम संकल्पना लगभग एक सौ साल पहले आस्ट्रियन भू-वैज्ञानिक एडवर्ड सुएस ने की थी। उस समय इस धारणा को विशेष महत्त्व नहीं दिया गया परंतु आज जैवमंडल मानव के सम्मुख सर्वाधिक महत्वपूर्ण समस्या बन गया है।

जैव मंडल का विशिष्ट अभिलक्षण यह है कि यह जीवन को आधार प्रदान करता है। अनुमान है कि जैव मंडल में शैवाल, फंगस और काईयों से लेकर उच्चतर किस्म के पौधों की 3.5 लाख जातियां हैं तथा एक कोशिकीय प्राणी प्रोटोजोआ से लेकर मनुष्य तक एक करोड दस लाख प्रकार की प्राणि-जातियां इसमें सम्मिलित है जैव मंडल इन सभी के लिए आवश्यक सामग्री जैसे - प्रकाश, ताप, पानी, भोजन, तथा आवास की व्यवस्था करता है।

जैव मंडलीय पारिस्थितिकी व्यवस्था जैसे कि यह सामान्यतया जानी जाती है एक विकासात्मक प्रणाली है इसमें अनेक प्रकार के जैविक और भौतिक घटकों का संतुलन बहुत पहले से ही क्रियाशील रहा है जीवन की इस निरंतरता के मूल में अन्योन्याश्रित संबंधों का एक सुगठित तंत्र काम करता है वायु, जल, मनुष्य, जीवन जंतु वनस्पति, प्लवक, मिट्टी और जीवाणु यह सभी जीवन धारण प्रणाली में अदृश्य रूप से एक दूसरे से जुड़े हुए हैं और यह व्यवस्था जैविक पर्यावरण कहलाती है।

पारिस्थितिकी तंत्र या पर्यावरण की अपनी लय और गति होती है जो नाजुक रूप से संतुलित आवर्तनो की संपूर्ण सेट पर आधारित है सभी जीवाणु पेड़ पौधे पशु वर्ग और मनुष्य यह सभी पर्यावरण के साथ स्वयं अपना समायोजन करके और उसकी लय के साथ अपने जीवन को सुव्यवस्थित करने के कारण आज तक जीवित हैं इसीलिए यह निरंतर आवश्यक है कि इन आवर्तनो को अक्षुण्ण बनाए रखा जाए।


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