पर्यावरणीय प्रदूषण परिभाषा, प्रकार, प्रभाव, नियंत्रण | Environmental Pollution

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इस पोस्ट से सम्बंधित प्रश्न 

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Environmental-Pollution, Pollution
Environmental Pollution

पर्यावरणीय प्रदूषण

(Environmental Pollution)
विश्व के लगभग सभी देश विकसित हों या विकासशील पर्यावरण असंतुलन और उससे जनित समस्याओं से दुष्प्रभावित हो रहे हैं. पर्यावरण प्रदूषण का अर्थ है- वायु, जल, भूमि आदि जैविक मंडल के गुणों में मानव जीवन और संस्कृति के लिए उत्पन्न हानिकारक परिवर्तन.
  • पर्यावरण संतुलन के डगमगा जाने से इसके विभिन्न तत्वों वायु, जल, ध्वनि, धूल आदि से प्रदूषण की समस्या गंभीर हो रही है.
  • प्रदूषण (Pollution) शब्द की उत्पत्ति लैटिन शब्द Pollutionem से हुई है.
  • प्राकृतिक प्रदूषण की तुलना में मानव जनित प्रदूषण अधिक हानिकारक माना जाता है.
  • मानव औद्योगिक विकास, नगरीकरण, परमाणु ऊर्जा के द्वारा लाभान्वित हुआ.

प्रदूषक (Pollutants)

ऐसे पदार्थ जो प्रदूषण उत्पन्न करते हैं. प्रदूषक कहे जाते हैं. प्रदूषक पदार्थ जैविक, अजैविक, ऊर्जा, ऊष्मा, ध्वनि और रेडियो ऐक्टिविटी हैं.
प्रदूषकों को निम्नलिखित आधारों पर विभाजित किया जा सकता है. 

उत्पत्ति के स्रोत के आधार पर
(i) प्राकृतिक प्रदूषक इसके अंतर्गत भूकम्प, ज्वालामुखी विस्फोट, जैविक पदार्थों के सड़ने से उत्सर्जित होने वाली गैस, दावाग्नि आदि.
(ii) मानव जनित प्रदूषक के अंतर्गत ऊष्मा, कणिकीय पदार्थ, गैसें, धुँआ आदि.

अवस्था के आधार पर
(i) ठोस कणिकीय प्रदूषक धूल कण, एरोसाल, सिलिका, सिरामिक्स, औद्योगिक अपशिष्ट पदार्थ, जैसे एस्बेस्टस सीसा, पारा, 
(ii) तरल प्रदूषक अमोनिया, यूरिया, ऑयल स्लिक्स, नाइट्रेटयुक्त जल आदि. 
(iii) गैसीय प्रदूषक CO2, SO2, CFC, NO2 आदि.

निस्तारण की प्रकृति के आधार पर
(i) जैव अपघटनीय प्रदूषक इसके अंतर्गत वाहित मल (सीवेज), घरेलू कचरा, मल मूत्र, कूड़ा-करकट, खराब एवं सड़ी-गली सब्जियाँ आदि. 
(ii) जैव अन-अपघटनीय प्रदूषक - भारी धातुएँ, रेडियो सक्रिय तत्व, सीसा, DDT, 2-4-D, B.H.C. आदि.

स्वरूप के आधार पर
(i) प्राथमिक प्रदूषक - ये प्रदूषक अपने मौलिक स्वरूप में रहकर प्रदूषण फैलाते हैं। जैसे प्लास्टिक, DDT, CO2, CO, SO2, NH3, NO2, NO, PM आदि. 
(ii) द्वितीयक प्रदूषक वे प्रदूषक जो प्राथमिक प्रदूषकों के अंतःक्रिया के कारण निर्मित होते हैं, द्वितीयक प्रदूषक कहे जाते हैं, जैसे- सल्फ्यूरिक अम्ल, ओजोन, सल्फर ट्राइऑक्साइड, हाइड्रोजन परॉक्साइड आदि.

Points to Remember..!
  • जैव विघटित प्रदूषक है - वाहित मल
  • सिगरेट के धुएँ में मुख्य प्रदूषक हैं - कार्बन मोनोक्साइड व बेन्जीन
  • ग्रीन मफ्लर संबंधित है। - ध्वनि प्रदूषण से
  • भारत का सर्वाधिक प्रदूषित नगर है - अंकलेश्वर
  • कैबिनेट बजट 2014 में समन्वित गंगा संरक्षण अभियान को कहा गया है। - नमामि गंगे
  • नदी में जल प्रदूषण के निर्धारण के लिए घुली हुई मात्रा मापी जाती है - आक्सीजन की
  • लाइकेन्स सबसे अच्छे सूचक हैं - वायु प्रदूषण 
  • ओजोन (O3) है - द्वितीयक प्रदूषक
  • ज्वालामुखी विस्फोट है -प्राकृतिक प्रदूषक

प्रदूषण के प्रकार 

(Types of Pollution)
प्रदूषण के निम्नलिखित प्रकार हैं-
  • वायु प्रदूषण
  • ध्वनि प्रदूषण 
  • रेडियोएक्टिव प्रदूषण
  • जल प्रदूषण
  • मृदा प्रदूषण
  • विद्युत चुम्बकीय विकिरण प्रदूषण
  • ठोस अपशिष्ट प्रदूषण ताप प्रदूषण
  • ई अपशिष्ट प्रदूषण 
  • जैव प्रदूषण
  • प्लास्टिक प्रदूषण

वायु प्रदूषण (Air Pollution)

  • वायुमण्डल में जब एक या अधिक प्रदूषकों की मात्रा में बढ़ोत्तरी हो जाय और वायु का मौलिक सन्तुलन बिगड़ जाय जो मानव व अन्य जीवधारियों के लिए घातक होता है, वायु प्रदूषण कहलाता है.
  • विश्व स्वास्थ्य संगठन ने वायु प्रदूषण को इस प्रकार परिभाषित किया है - वायु में विभिन्न पदार्थों की वह सांद्रता जो कि मानव एवं उसके पर्यावरण के लिए हानिकारक होती है, वायु प्रदूषण के अन्तर्गत आती है। वायु प्रदूषण सबसे सामान्य एवं सबसे हानिकारक पर्यावरण प्रदूषण है.
  • वायुमण्डल में 78% नाइट्रोजन, 21% ऑक्सीजन, 0.9% आर्गन, 0.03% कार्बन डाइऑक्साइड आदि गैसें हैं.
  • वायुमण्डल में अन्य गैसें नियान, क्रिप्टॉन, हीलियम, हाइड्रोजन, ओजोन आदि अल्प मात्रा में हैं.

वायु प्रदूषण के दो प्रमुख स्रोत हैं -

प्राकृतिक स्रोत 

इसके अन्तर्गत आते हैं -
  • ज्वालामुखी विस्फोट से निकलने वाली सल्फर डाइऑक्साइड, हाइड्रोजन सल्फाइड, धूल, धूम्र आदि।
  • दावाग्नि के अन्तर्गत कार्बन डाइ ऑक्साइड, राख एवं कार्बन मोनो ऑक्साइड आदि.
  • जैविक पदार्थों के सड़ने-गलने से निकलने वाली गैसें जैसे आदि. SO2, NO2, अमोनिया, मिथेन
  • वायुमण्डलीय रासायनिक क्रियाओं द्वारा अम्ल और समुद्री जीव-जंतुओं से मिथाइल क्लोराइड निकलकर वातावरण को प्रदूषित कर देती हैं.
  • पृथ्वी के अतिरिक्त स्रोत से उत्पन्न प्रदूषण अस्टरायड, कामेट मीटीयर आदि के पृथ्वी के टक्कर के कारण उद्भूत कास्मिक धूल.

मानव जनित स्रोत 

इसके निम्नलिखित स्रोत-
  • औद्योगिक अपशिष्ट बड़े-बड़े औद्योगिक नगरों में चल रहे कल-कारखानों की चिमनियों से विविध प्रकार के प्रदूषण मोनो ऑक्साइड, नाइट्रोजन, विभिन्न प्रकार के हाइड्रोजन, धातुकण, विभिन्न फ्लोराइड आदि वायु से मिल जाते हैं.
  • कारखानों, भट्टियों, बिजलीघरों, मोटर गाड़ियों व रेलगाड़ियों में ईंधनों के जलने से कार्बन डाइ ऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड अधिक मात्रा में वायु में पहुँचती है.
  • आणविक प्रक्रियाओं में विभिन्न प्रदूषक यूरेनियम, बेरीलियम, क्लोराइड, आर्गन, आयोडीन, स्ट्राशियम, सीजियम तथा कार्बन निकलते हैं.
  • पर्यावरण को शुद्ध करने में वृक्षों का महत्वपूर्ण योगदान है। वृक्षों के काटने से मानसून प्रभावित होता है, समय से वर्षा नहीं होती है, अतिवृष्टि तथा सूखे की स्थिति उत्पन्न हो जाती है.
  • विभिन्न धातुकर्मी उपक्रमों से जो धुआँ निकलता है उसमें आर्सेनिक सीसा, निकिल, क्रोमियम, वेनेडियम आदि वायु प्रदूषक उपस्थित रहते हैं.
  • फसलों पर कीटों तथा खरपतवारों को नष्ट करने के लिए छिड़के जाने वाले रसायन आर्सेनिक तथा सीसा वायु में प्रदूषण के रूप में पहुँचाते हैं.

वायु प्रदूषकों को उनकी प्रकृति के आधार पर दो वर्गों में बाँटा जा सकता है 

गैसीय वायु प्रदूषक

इनमें निम्नलिखित प्रदूषक शामिल हैं. -  
  • सूती वस्त्रों की ब्लीचिंग तथा अन्य रासायनिक क्रियाओं से निकलने वाली क्लोरीन.
  • धान के खेतों तथा जुगाली करने वाले मवेशियों के हवा छोड़ने से मीथेन गैस उत्सर्जित होती है. 
  • एरोसॉल कैन तथा रेफ्रिजरेशन प्रणाली से निकलने वाली क्लोरो फ्लोरो कार्बन.
  • अधिक ऊँचाई पर उड़ने वाले सुपरसोनिक जेट विमानों और रासायनिक उर्वरकों से निकलने वाले नाइट्रोजन के यौगिक जैसे – NO, NO, NO2, NO3 आदि.
  • सल्फर युक्त जीवाश्म ईंधनों के दहन से निकलने वाले सल्फर के यौगिक जैसे SO2, SO3 आदि.

कणिकीय प्रदूषक

इनमें निम्नलिखित प्रदूषक शामिल हैं. -
  • हवा में लटके तरल या ठोस कणों को एरोस कहा जाता है। ये एक माइक्रान : 3/22 हैं. ये स्वचालित मोटर वाहनों और ताप बिजल घरों से निकलते हैं.
  • बहुत से एरोसोल विकिरण के परावर्तन को बढ़ाकर एल्बिडो में वृद्धि करते हैं जिसके कारण से ग्लोबल कूलिंग की सम्भावना बनती है.
  • दस माइक्रान से बड़े आकार वाले कणों को शुद्ध कणिकीय पदार्थ या धूलि के नाम से अभिहीत किया जाता है.
  • जब संघनन धूलिकणों या धुँओं के कणों के चतुर्दिक सम्पन्न होता है और जल की बूँदें वायु में लटकती रहती हैं तब कुहरा बनता है.
  • कारखानों की चिमनियों से निकलने वाले गंधक का जब कुहरे से सम्पर्क हो जाता है तब कुहरा विषैला और प्राणघातक हो जाता है. इस प्रकार के विषैले कुहरे को धूम कोहरा (Smog) या काला कोहरा के नाम से जाना जाता है. 
  • आकार में ऐरोसोल के छोटे कणों को धूम्र कालिख तथा वाष्पयुक्त धूम्र के नाम से जाना जाता है. 
  • फ्लाई एश से जीवों में श्वसन तंत्र सम्बन्धी रोग होता है.
  • फ्लाई एश मुख्य रूप से कोयला पत्थर आधारित ताप विद्युत गृहों से पैदा होने वाला सूक्ष्म पाउडर है.
  • इस सूक्ष्म पाउडर में सीसा, आर्सेनिक, कोबाल्ट एवं कॉपर जैसी जहरीली भारी धातुओं के कण भी होते हैं.
  • ये सूक्ष्म कण पौधों की पत्तियों पर जमा होकर प्रकाश संश्लेषण को बाधित करते हैं.
  • निलम्बित कणिकीय पदार्थों में पाये जाने वाले कण औद्योगिक धूल कण, ज्वालामुखी कण, सल्फेट व कार्बन कण तथा बहुनाभिकीय यूरोमैटिक हाइड्रोकार्बन होते हैं. 
  • सीसा, ताँबा, लोहा, एल्यूमीनियम, जस्ता तथा कैडमियम आदि धात्विक कणिकीय पदार्थ कहलाते हैं.
  • ऐस्बेस्टस, सिरामिक्स तथा सिलिकन आदि अधात्विक पदार्थ कहलाते हैं.
  • वायरस तथा जीवाणुओं के बीजाणु पार्थेनियम के परागकण, पादपों तथा जंतुओं से निकलने वाले वायु. प्रदूषक आदि जैविकीय कणिकीय पदार्थ कहलाते हैं.

वायु प्रदूषकों के प्रभाव (Impact of Air Pollutants)

  • वायु प्रदूषकों के प्रभाव को निम्नलिखित तथ्यों के अंतर्गत अध्ययन किया जा सकता है. 
  • वायुमंडल में धुआँ तथा धूल के कण से जुकाम, खाँसी, दमा और टीबी आदि रोग हो जाते हैं.
  • एल्यूमीनियम और सुपर फॉस्फेट उत्पन्न करने वाले कारखानों से निकलने वाली गैसों से दाँतों और हड्डियों के रोग हो जाते हैं.
  • कार्बन मोनोऑक्साइड हवा से भारी, पानी में अघुलनशील, गंध, स्वादहीन एवं रंगहीन गैस है.
  • सभी वायु प्रदूषकों में कार्बन मोनोऑक्साइड 50 प्रतिशत भाग का प्रतिनिधित्व करती है। इसे दमघोंटू गैस भी कहते हैं.
  • साँस के माध्यम से शरीर में पहुँचकर रक्त में उपस्थित हीमोग्लोबिन की ऑक्सीजन वहन क्षमता को बिल्कुल कम कर देती है जिसके फलस्वरूप मनुष्य की मृत्यु हो जाती है.
  • कार्बन मोनोऑक्साइड की मनुष्य के रक्त में उपस्थित हीमोग्लोबिन से क्रिया करने की क्षमता ऑक्सीजन की अपेक्षा लगभग 250 से 300 गुना अधिक होती है.
  • गैस का सर्वाधिक उत्पादन 76 प्रतिशत परिवहन से होता है.
  • घरेलू ईंधनों से गैस का 11 प्रतिशत एल्यूमीनियम संयंत्रों से 9 प्रतिशत तथा शेष 4 प्रतिशत अन्य स्रोतों से होता है.
  • दबावयुक्त सीएनजी तथा द्रवित एलपीजी गैसों के प्रयोग तथा आटोमोबाइल व उद्योग संयंत्रों में फिल्टर लगाकर कार्बन मोनोऑक्साइड समस्या को हल किया जाता है.
  • वर्षा जो सल्फेट, नाइट्रेट, अमोनियम एवं हाइड्रोजन आयन को शामिल किये होती है, पृथ्वी पर अम्लीय वर्षा करती है.
  • मनुष्य के शरीर में नाइट्रिक ऑक्साइड के अधिक सान्द्रण के कारण वह कई रोगों से ग्रसित हो जाता है, जैसे रक्तस्राव, निमोनिया, फेफड़ों में कैंसर, मसूड़ों में सूजन आदि.
  • अधिक ऊँचाई पर उड़ने वाले सु 4/22 विमानों से निकली हुई नाइट्रोजन आक्साइ समताप मण्डल में ओजोन की परत को पतली करती है.
  • नाइट्रोजन ऑक्साइड सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में पारम्परिक क्रिया नाइट्रोजन ऑक्साइड, ओजोन कर तथा पैराक्सिल ऐसीटाइट नाइट्रेट उत्पादित कर हैं, जिनको सामूहकि रूप से प्रकाश रसायन स्मोग कहते हैं.
  • विश्व मानक पर नाइट्रोजन गैस के उत्सर्जन में भारत 11 प्रतिशत के योग के साथ द्वितीय स्थान पर एवं 20 प्रतिशत योग के साथ चीन पहले स्थान पर है. 
  • 10 प्रतिशत नाइट्रोजन गैस के उत्सर्जन के साथ अमेरिका तृतीय स्थान पर एवं 6 प्रतिशत के साथ ब्राजील चतुर्थ स्थान पर अवस्थित है.
  • सल्फर डाइऑक्साइड वायु प्रदूषण का दूसरा सबसे अधिक महत्वपूर्ण प्रदूषक है.
  • सल्फर डाइऑक्साइड से आँखों में जलन, फेफड़ों के रोग, दमा, खाँसी, चक्कर आना, सिर दर्द जैसी समस्याएँ होती हैं.
  • सल्फर डाइऑक्साइड को क्रैकिंग गैस भी कहते हैं.
  • मथुरा तेल शोधक कारखाने से निकलने वाली सल्फर डाइऑक्साइड गैस ही आगरा के ताजमहल के लिए खतरनाक साबित हो रही है. 
  • सल्फर डाइऑक्साइड के कारण औद्योगिक क्षेत्रों में विषाक्त धूम्र कोहरे का निर्माण होता है.
  • जब सल्फ्यूरिक अम्ल वर्षा जल के साथ पृथ्वी पर गिरती है तो उसे अम्ल वर्षा कहते हैं.
  • मृदा का जैविक एवं रासायनिक गुण अम्ल वर्षा द्वारा गम्भीर रूप से प्रभावित होता है.
  • क्लोरोफ्लोरोकार्बन के उत्सर्जन एवं उनके वायुमण्डल में पहुँचने के कारण समतापमण्डलीय ओजोन गैस का क्षय शुरू हो जाता है. 
  • सूर्य की किरणों के अत्यधिक मात्रा में धरातल पर पहुँचने से तापमान में वृद्धि होकर कई रोगों को जन्म देती है। वायुमण्डल में कार्बन डाई ऑक्साइड के सान्द्रण में वृद्धि होने से हरित गृह प्रभाव में बढ़ोत्तरी होती है।
  • ग्रीन हाउस गैसों द्वारा होने वाले वैश्विक तापमान में लगभग 60 प्रतिशत की हिस्सेदारी कार्बन डाई ऑक्साइड की होती है.
  • कार्बन डाई ऑक्साइड एक महत्वपूर्ण संसाधन है क्योंकि हरे पौधे के कार्बन डाईऑक्साइड के उपयोग से प्रकाश संश्लेषण क्रिया द्वारा अपना आहार निर्मित करते हैं.
  • हरित गृह प्रभाव में मीथेन गैस 20% योगदान की वृद्धि करती है.
  • प्राकृतिक स्रोतों से वैश्विक मीथेन उत्सर्जन का सबसे अधिक 76% भाग आर्द्रभूमि से ही उत्सर्जित होता है.
  • सीसा (Lead) मस्तिष्क संबंधी बीमारियों और गुर्दो, लीवर व अन्य अंगों को हानि पहुँचाता है.
  • औद्योगिक गतिविधियों के परिणामस्वरूप उत्सर्जित सीसा धूल परिव्याप्त हो जाता है। के रूप में वायुमण्डल में.
  • कैडमियम के कण श्वसन क्रिया में विष की तरह कार्य करते हैं.
  • कैडमियम हृदय सम्बन्धी रोग उत्पन्न करते हैं एवं रक्तदाब को बढ़ाते हैं.
  • पेट्रोल में बेन्जीन, टाल्यून और जाइलीन मिलाए जाते हैं. 
  • बेन्जीन से रक्त कैंसर होता है.

Points to Remember..!
    • हम वायुमण्डलीय गैसों से युक्त किस मण्डल में रहते हैं? - क्षोभमण्डल
    • किस मण्डल में ओजोन का कवच स्थित है? - समतापमण्डल
    • त्वचा का कैंसर एवं मोतियाबिन्द किन कारणों के उत्परिवर्तन से होता है? - पराबैगनी
    • कार्बन मोनोऑक्साइड का सबसे अधिक उत्पादन होता है - परिवहन से
    • किस गैस को दमघोंटू गैस भी कहते हैं? - कार्बन मोनोऑक्साइड 
    • कौन-सी गैस सभी प्रदूषकों में 50 प्रतिशत भाग का प्रतिनिधित्व करती है? - कार्बन मोनोऑक्साइड 
    • ग्लिसराल या तेल के ताप द्वारा वियोजन से उत्पन्न होती है - अल्डेहाइड
    • जीवों में श्वसन सम्बन्धी रोग होता है? - फ्लाई एश के कारण
    • कौन सी वर्षा जलीय और स्थलीय दोनों प्रकार के जीवों को प्रभावित करती है? - अम्ल वर्षा 
    • ओजोन का विघटन करने वाले पदार्थ मुख्यतः है - CFC, HCFC, CCL
    • आगरा के ताजमहल को किस गैस से नुकसान हो रहा है? - सल्फर डाइऑक्साइड
    • ओजोन के मापने की इकाई को कहते हैं - डाबसन

    राष्ट्रीय व्यापक वायु गुणवत्ता मापदण्ड


    इसमें निम्नलिखित प्रदूषकों को सम्मिलित किया गया है-
    1. सल्फर डाइऑक्साइड (SO2 )
    2. नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (NO2)
    3. PM - 10
    4. PM2.5 
    5. ओजोन (O3)
    6. सीसा (Pb)
    7. कार्बन मोनोआक्साइड (CO)
    8. अमोनिया (NH3)
    9. बेंजीन (C6H6)
    10. आर्सेनिक (As) 
    11. निकेल (Ni)
    • औद्योगिक सेक्टर जिनका प्रदूषण सूचकांक का योग 60 और इससे ऊपर हो - लाल श्रेणी
    • औद्योगिक सेक्टर जिनका प्रदूषण सूचकांक का योग 41 से 59 के बीच हो - नारंगी श्रेणी
    • औद्योगिक सेक्टर जिनका प्रदूषण सूचकांक का योग 21 से 40 के बीच हो - हरित श्रेणी
    • औद्योगिक सेक्टर जिनका प्रदूषण सूचकांक का योग 20 या 20 से कम हो - श्वेत श्रेणी 

    वायु प्रदूषण नियंत्रण के उपाय 

    वायु प्रदूषण नियंत्रण के उपाय निम्नलिखित है -
    • वायु प्रदूषण से मानव शरीरों पर पड़ने वाले खतरनाक प्रभावों से आम जनता को अवगत कराया जाना चाहिए.
    • वायु प्रदूषकों को ऊपरी वायुमंडल में विसरित एवं प्रकीर्ण करने हेतु ठोस कदम उठाने चाहिए. ताकि धरातलीय सतह पर इन प्रदूषकों का सान्द्रण न्यून हो जाये.
    • कम हानिकारक उत्पादों की खोज की जानी चाहिए, यथा सौर चालित मोटर कार.
    • बड़े नगरों में घरों के नजदीक पौधे लगाना चाहिए क्योंकि पौधे हमारे पर्यावरण को शुद्ध करते हैं.
    • अधिक धुआँ देने वाले वाहनों पर प्रतिबंध लगाना चाहिए.
    • वनों की कटाई को रोककर वृक्षारोपण पर विशेष ध्यान देना चाहिए.
    • अपशिष्ट गैसों और धुएँ के वायुमंडल में पहुँचने के पहले ही उनमें इतनी ऑक्सीजन मिला दी जाये कि उनमें उपस्थित पदार्थ का सम्पूर्ण ऑक्सीकरण हो जाये जिससे प्रदूषण कम हो जाये.
    • छोटे तथा बड़े सभी कल कारखानों को नगरों से बहुत दूर स्थापित करना चाहिए.
    • अपशिष्ट पदार्थ युक्त बड़े कणों को उपयुक्त छत्ते लगाकर वायुमंडल में फैलने से रोकना चाहिए.
    • उर्वरक के प्रयोग से जल, वायु और मृदा तीनों प्रदूषित होते हैं.
    • नगरों के ऊपर कारखानों की चिमनियों तथा स्वचालित वाहनों से निकलने वाला पदूषण वायुमण्डल में 1000 मीटर की ऊँच, 6/22 मोटी परत बनाता है, जिसे जलवायु गुम्बद कहते हैं.
    • प्रति व्यक्ति सर्वाधिक CO, निकालने वाला देश ऑस्ट्रेलिया है.
    • ग्रीन हाउस गैसों के प्रति व्यक्ति या प्रति औद्योगिक इकाई उत्सर्जन की मात्रा को उस व्यक्ति या औद्योगिक इकाई को 'कार्बन फुटप्रिंट' कहा जाता है.
    • नगरों के केंद्रीय व्यवसाय क्षेत्र या चौक क्षेत्र में उच्च तापमान को ऊष्मा द्वीप कहा जाता है.
    • एशियन ब्राउड हैज में सल्फेट प्रदूषणकारी तत्व की मात्रा सबसे अधिक पायी जाती है.
    • भारत ने यूरो मानक को पहली बार 1992 में लागू किया.
    • वर्तमान समय में हाइड्रोजन पराक्साइड का उपयोग लॉन्ड्री में कपड़ों के विरंजन के लिए किया जाता है.
    • ऐसी वस्तु या स्थान जो कार्बन सोख लेते हैं उन्हें कार्बन कुण्ड कहा जाता है। जैसे मृदा, वायुमण्डल, सागर, जंगल आदि.
    प्रमुख प्रदूषक एवं उनके उत्पत्ति स्थल - 

    प्रदूषकउत्पत्ति स्थल
    कार्बन मोनो-ऑक्साइड (CO)अपूर्ण दहन, जीवाश्म ईंधनों (कोयला और पेट्रोल), फसलों के जलने से, मोटर वाहनों से.
    कार्बन डाई ऑक्साइड (CO2)श्वसन से, वनोन्मूलन से, जीवाश्म ईंधनों के अधिक प्रयोग से, ऊष्माशोषी गैस होने के कारण CO2 ताप में वृद्धि करती है.
    मीथेन (CH4)आर्द्र भूमि तथा समुद्र, धान के खेत, कोयला खानें, दलदली क्षेत्र, जानवरों की जुगाली, कचरे का ढेर, कम्पोस्ट खाद का निर्माण, वनस्पतियों के जलाने एवं सड़ाने से.
    सल्फर डाई ऑक्साइड (SO2)स्वचालित वाहन, ज्वालामुखी, जीवाश्म ईंधनों का दहन, खनिज तेल शोधनशालायें, कोयला आधारित तापशक्ति गृह.
    नाइट्रोजन के ऑक्साइड (NOX) उच्च ताप के दहन से, जंगल की आग से, आकाशीय बिजली से, जीवाश्म ईंधनों के जलाने से.
    क्लोरोफ्लोरो कार्बन (CFC)एयर कंडिशनर, फोम, फ्रिज, गद्देदार सीट तथा सोफों में प्रयुक्त फोम, प्रसाधन सामग्री, स्टरलाइजर्स, एरोसोल स्प्रे, अग्निशामक आदि.
    सीसा (Lead)पेंट उद्योग, खनिज तेल, औद्योगिक अपशिष्ट.
    ब्लॅक कार्बनजंगल की आग, डीजल ईंधन, घरेलू चूल्हे.

    वायु प्रदूषक व उनके प्रभावित अंग - 

    पाराउदर
    धूल कणश्वास संबंधी रोग
    नाइट्रोजन के ऑक्साइड कैंसर
    क्लोरोफ्लोरोत्वचा कैंसर, मोतियाबिन्द, रोग प्रतिरोधक क्षमता में कमी
    ऐस्बेस्टस धूलफेफड़ा
    कार्बन मोनोऑक्साइडरक्त धाराएँ, लीवर एवं किडनी को क्षति
    सीसाकेंद्रीय नर्वस सिस्टम, मस्तिष्क

    भारत के 5 सबसे अधिक प्रदूषित क्षेत्र-

    क्षेत्रप्रदूषण सूचकांक
    कोरबा (छत्तीसगढ़)83.00
    चंद्रपुर (महाराष्ट्र)83.88
    गाजियाबाद (उ. प्र.)87.37
    वापी (गुजरात)88.09
    अंकलेश्वर (गुजरात)88.50


    Points to Remember..!
      • किस सरकार द्वारा Odd-Even नियम लागू किया गया था? - 2015 में दिल्ली की केजरीवाल सरकार 
      • हरित डीजल किस यूरो मानक का डीजल है ? - यूरो-4
      • केन्द्र सरकार द्वारा 2020 से भारत में BS IV से सीधे किस मानक को लागू करने का निर्णय किया गया है? - BS VI
      • स्वचालित वाहनों से निकलने वाले प्रदूषण को कम करने के लिए गाड़ियों में क्या लगा होना चाहिए? - कैटलिक कनवर्टर / स्क्रवर
      • विशेष प्रकार के औद्योगिक फिल्टर को क्या कहा जाता है? - बैग फिल्टर
      • वायु प्रदूषण के सबसे अच्छे सूचक हैं - लाइकेन 
      • भारत में सीसा रहित पेट्रोल पहली बार भारत के कितने महानगरों में कब प्रारम्भ किया गया था ? - चार, 1995 ई. में
      • कौन चारे के लिए प्रयोग किये जाने वाले पौधों को विषैला कर देता है जिससे इसे खाने वाले पशुओं की मृत्यु हो जाती है? - आर्सेनिक
      • भारत के किस जगह ओजोन परत की मोटाई सर्वाधिक है? - कश्मीर में 
      • बेन्जीन के कारण किस रोग की सम्भावना प्रबल होती है ? - रक्त कैंसर
      • क्रैकिंग गैस है - सल्फर डाइ ऑक्साइड 
      • ओजोन परत की मोटाई में किस माह के मध्य अधिक कमी आती है? - सितम्बर से अक्टूबर माह के बीच 
      • भारत में कार्बन टैक्स कब से लगाया गया ? - 1 जुलाई, 2010 से

      जल प्रदूषण (Water Polution)

      • जल में स्वयं शुद्धिकरण की क्षमता होती है. यह एक रंगहीन द्रव है जिसमें हाइट्रोजन के दो अणु तथा ऑक्सीजन का एक अणु होता है. जल बिजली के निर्माण, नौका परिवहन, फसलों की सिंचाई, सीवेज का निपटान आदि के लिए महत्वपूर्ण है.
      • जल के भौतिक, रासायनिक और जैविक अभिलक्षणों में प्राकृतिक एवं मानव-जनित प्रक्रियाओं द्वारा होने वाली ऐसी गिरावट जो मानव एवं अन्य जैविक वर्गों के लिए उपयुक्त न हो उसे जल प्रदूषण कहा जाता है.
      • मानव को सर्वाधिक जल भूमिगत के रूप में प्राप्त होता है.
      • जल के विविध स्रोतों से जैसे - भूमिगत जल, झील जल, सरिता जल, वायुमण्डलीय जल, मृदा में स्थित जल आदि के समस्त जल का केवल एक प्रतिशत मानव के लिए प्राप्य है.
      • जल में घुलित ऑक्सीजन की मात्रा 4 मिलीग्राम/लीटर से कम होने पर जल को प्रदूषित कहा जाता है.

      जल प्रदूषण के स्त्रोत (Sources of Water Pollution)

      • जल प्रदूषण के स्रोत को दो भागों में बाँटा जा सकता है - 
        • प्राकृतकि स्रोत 
        • मानवीय स्रोत
      • प्राकृतिक स्त्रोत - प्राकृतिक रूप से जल में प्रदूषण धीमी गति से होता रहता है। प्राकृतिक स्रोतों का जल जहाँ बहकर एकत्रित होता है वहाँ यदि खनिजों की मात्रा अधिक है तो वे खनिज पानी में मिल जाते हैं, जिससे जल प्रदूषित हो जाता है.
      • भूमि स्खलन से उत्पन्न मलवा, विघटित एवं वियोजित जैविक पदार्थ, राख तथा धूल अपक्षय, ज्वालामुखी, अपरदन से उत्पन्न अवसाद, अम्लीय वर्षा प्रदूषण के प्राकृतिक स्रोत हैं. 
      • मानवीय स्रोत - जल प्रदूषण के मानवीय स्रोत निम्नलिखित हैं
      • बड़ी-बड़ी औद्योगिक इकाइयाँ, छोटे-छोटे कल कारखाने, नदियों का जल अधिकाधिक प्रयोग करके अपशिष्टों को पुनः नदियों में डालकर जल को प्रदूषित करते हैं.
      • औद्योगिक अपशिष्ट के अंतर्गत इनमें आर्सेनिक, फास्फोरस, सीसा, कैडमियम आदि होते हैं. ये नालों के माध्यम से नदियों के जल में पहुँचकर उसे दूषित करते हैं.
      • लखनऊ में गोमती का जल कागज और लुग्दी के कारखानों से निकले अपशिष्टों से दूषित होता है. दिल्ली में यमुना का जल डी. डी. टी. के कारखानों से निकले पदार्थों से दूषित होता है.
      • कृषिगत प्रदूषण के स्रोत हैं कीटनाशी, शाकनाशी, उर्वरक, कवकनाशी, जीवाणुनाशी तथा पौधों के अपशिष्ट भाग आदि.
      • नाभिकीय ऊर्जा के प्रयोग से वातावरण में बहुत से रेडियोधर्मी कण उत्पन्न हो जाते हैं, जो जल में घुलकर उसे प्रदूषित करते हैं.
      • देश में बहुत से ताप विद्युत गृह हैं जिनसे प्रतिदिन हजारों टन राख उत्पन्न होती है, जो वर्षा के माध्यम से तालाबों एवं नदियों तक पहुँचकर फ्लाई ऐश के माध्यम से भूमिगत तथा सतही जल को विषाक्त कर देते हैं.
      • पेट्रोलियम, खनिज, कोयला तथा अन्य ईंधनों के जलने से हवा में सल्फर डाई ऑक्साइड, कार्बन डाइ ऑक्साइड, नाइट्रोजन के ऑक्साइड तथा अन्य गैसें वर्षा के जल में घुलकर अम्ल तथा अन्य लवण बनाकर जल को प्रदूषित करते हैं.
      • मलमूत्र, कूड़ा-करकट आदि नदियों, तालाबों, झीलों में छोड़े जाने से जल प्रदूषित होता है.
      • नहाने-धोने, कपड़ा साफ करने में डिटर्जेन्ट्स साबुन का प्रयोग किया जाता है, इससे जल प्रदूषित होता है.

      Points to Remember..!
        • कितने डिग्री सेंटीग्रेड पर जल का घनत्व अधिकतम तथा आयतन न्यूनतम होता है? - 4 डिग्री सेंटीग्रेड 
        • किस तरह के जल प्रदूषण में नदियों, झीलों, समुद्री जल के प्रदूषण शामिल किये जाते हैं? - धरातलीय जल का प्रदूषण 
        • झीलों में प्रदूषण किन कारकों से होता है? - मानवीय तथा प्राकृतिक
        • USA की सुपीरियर झील का जल किसके कारण अत्यंत प्रदूषित हो गया है ? - एस्बेस्टस
        • समुद्रतटीय क्षेत्रों में स्थित खनिज तेल कुँओं तथा ऑयल टैंकरों से खनिज तेल के रिसाव को जाता हैं - सागरीय जल प्रदूषक
        • ऑयल टैंकरों के रिसाव से निकला तेल सागरीय सतह पर फैलकर क्या बनाता है? - ऑयल स्लिक 
        • जल में स्वयं किसकी क्षमता होती है? - शुद्धीकरण
        • परिवहन के दौरान लगभग कितने प्रतिशत तेल का रिसाव समुद्र में होता है? - 6.01%
        • जल प्रदूषण की मात्रा को किसके द्वारा मापा जाता है? - BOD
        • कैडमियम प्रदूषण से कौन-सा रोग होता है? - इटाई-इटाई
        • प्रदूषण फैलाये जाने के कारण कौन-सा कर लगाया जाता है ? - पिगोबियन कर
        • वर्षा का जल पूर्णतया नहीं होता है - शुद्ध
        • जल का प्रमुख गुण इसकी कौन-सी शक्ति है? - घोलन शक्ति
        • जल की गुणवत्ता का निर्धारण उसके तापमान, रंग, गंध, गंदलापन, संचालकता, घनत्व तथा निलम्बन किस आधार पर किया जाता है? - भौतिक आधार पर

        जल प्रदूषण के प्रतिकूल प्रभाव 

        (Bad Effects of Water Pollution)
        जल प्रदूषण से जलीय पारितंत्र के भौतिक, रासायनिक तथा जैविक अभिलक्षणों पर बुरा प्रभाव पड़ता है-
        • प्रदूषित पदार्थों की अधिकता के कारण जल में घुली हुई ऑक्सीजन (Dissolved Oxygen : DO) की मात्रा घट जाती है जिसके कारण प्लवस्क, मोलस्क और कुछ मछलियों की मृत्यु हो जाती है।
        • प्रदूषित जल से पक्षाघात, पोलियो, मियादी बुखार, डायरिया, क्षयरोग, पेचिश, इंसेफ्लाइटिस, कन्जक्टीवाइटिस, जॉन्डिस आदि बीमारियाँ हो जाती हैं।
        • असबेस्टस के रेशों से युक्त जल के सेवन से असबेस्टोसिस नामक जानलेवा रोग हो जाता है। 
        • प्रदूषित जल से सिंचाई करने के कारण फसलें खराब हो जाती हैं। इनसे सिंचित होने वाली सब्जियाँ, फसलें और फूलों का सेवन स्वास्थ्य को हानि पहुँचाता है। 
        • कुछ भारी धातुएँ जैसे - पारा, सीसा, कैडमियम, ताँबा, चाँदी आदि जीवों की विविध प्रजातियों को नष्ट कर देती हैं।
        • प्रवाल भित्ति पर प्रदूषित जल का प्रभाव पड़ता है। इससे प्रवाल विरंजन बढ़ता है। 
        • जल के pH मान ऑक्सीजन तथा कैल्शियम की मात्रा पर जल प्रदूषण का प्रभाव पड़ता है, जस्ता तथा सीसा के प्रदूषित जल प्रायः जैव सृष्टि शून्य हो जाते हैं।

        जल का वर्गउपयोग
        Aपीने के लिए उपयुक्त
        Bस्नान और तैराकी के लिए उपयुक्त
        Cपारम्परिक उपचार के बाद पीने योग्य
        Dवन्यजीवों और मछलियों के लिए उपयुक्त
        Eऔद्योगिक शीतलन, सिंचाई और अपशिष्ट निपटान के लिए उपयुक्त

        • पारायुक्त जल से प्रभावित मछलियों के खाने से जापान में 1956 में मिनिमाता बीमारी से बहुत सी जानें गयीं थीं.
        • अपशिष्ट जल में उपस्थित पारा मिश्रण सूक्ष्म जैविक क्रियाओं द्वारा अधिक विषाक्त पदार्थ मिथाइल पारा में परिवर्तित हो जाता है जिसके कारण अंगों, होंठ, जीभ आदि संवेदनशून्य, आँखों में जलन एवं धुँधलापन और मानसिक विकार आदि पैदा होते हैं.
        • सीसायुक्त जल से एनीमिया, सिरदर्द, मांसपेशियों की कमजोरी एवं मसूड़ों में नीलापन आदि प्रभाव दृष्टव्य होते हैं.
        • पीने योग्य जल में नाइट्रेट के आधिक्य से बच्चों में ब्लू बेबी सिंड्रोम रोग हो जाता है और ऑक्सीजन का प्रवाह रुक जाता है, शरीर नीला हो जाता है और बच्चे की मौत हो जाती है.
        • फ्लुओराइड आयन दाँतों के इनामेल सतह से हाइड्राक्सी एपेटाइट को 'फ्लुओएपेटाइट' में परिवर्तित कर सख्त बना देती है.
        • गंगा के तटवर्ती क्षेत्रों के भूमिगत जल में आर्सेनिक की मात्रा अधिक है.
        • भूमिगत जल में आर्सेनिक संदूषण मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है. यह मानव में कैंसर के लिए योगदायी है.
        • भारत में भूमिगत आर्सेनिक संदूषण का पहला साक्ष्य पश्चिम बंगाल में 1980 में मिला था.
        • ब्लैक फुट रोग पेयजल में आर्सेनिक की अधिकता से होता है.
        • सागरीय जल के प्रदूषण का सबसे अधिक प्रभाव मछलियों तथा अन्य जीवों पर पड़ता है.
        • अत्यधिक लवणयुक्त जल के सिंचाई करने से मृदा की क्षारीयता में वृद्धि होती है.
        • रेडियोधर्मी पदार्थयुक्त जल का उपयोग करने से ल्यूकीमिया (रक्त कैंसर) होता है, अपंग संतानों के पैदा होने का खतरा बना रहता है.

        Points to Remember..!
          • पारायुक्त जल पीने से मछलियों में कौन-सा रोग होता है ? - द्रोपसी 
          • इटाई-इटाई रोग से कहाँ तेज दर्द होता है और यकृत एवं फेफड़े का कैंसर हो जाता है ? - हड्डियों एवं जोड़ों में 
          • आर्सेनिक युक्त जल पीने से कौन सा रोग होता है ? - केरोटोसिस
          • भारत सरकार द्वारा पेयजल में निर्धारित आर्सेनिक की मात्रा है - 0.01mg/p 
          • विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा पेयजल में निर्धारित आर्सेनिक की मात्रा है। - 0.05 mg/p
          • भूजल को प्रदूषित करने वाला अजैविक प्रदूषक है - आर्सेनिक (संखिया) 
          • पेयजल में नाइट्रेट की अधिकता से बच्चों में कौन सा रोग होता है? - मेथामोग्लोबीनेमिया नाइट्रेट साइनोसी 
          • मिनीमाता बीमारी जापान के किस उद्योग का मुख्य कारण था ? - प्लास्टिक उद्योग

          जल प्रदूषण का वर्गीकरण

          (Classification of Water Pollution) 

          जल भंडारण के आधार पर
          • धरातलीय जल प्रदूषण
          • झील जल प्रदूषण
          • भूमिगत जल प्रदूषण
          • समुद्री जल प्रदूषण 
          स्त्रोत के आधार पर
          • सीवेज से जल प्रदूषण
          • औद्योगिक अपशिष्ट से जल प्रदूषण
          • घरेलू अपशिष्ट से जल प्रदूषण
          • कृषि अपशिष्ट से जल प्रदूषण
          • तेल अधिप्लाव
          • भारत के अण्डमान-निकोबार द्वीपों के तट के पास औद्योगिक विषाक्त अपशिष्टों की डम्पिंग के कारण अनेक कोरल मर गये हैं. 
          • समुद्रतटीय क्षेत्रों में स्थित खनिज तेल कूपों एवं जलयानों से खनिज तेल के रिसाव से भी समुद्री प्रदूषण होता है.
          • ग्लोबल वार्मिंग के कारण समुद्री जल का तापमान जब बढ़ता है तो समुद्री जैव विविधता नष्ट होती है.
          • प्रत्येक वर्ष 10 करोड़ टन से ज्यादा तेल का परिवहन होता है तथा परिवहन के दौरान लगभग 6.01 प्रतिशत तेल का रिसाव समुद्र में होता है। इस तरह प्रतिवर्ष 200 लाख गैलन तेल सागरीय जल को प्रदूषित करता है.
          • असबेस्टस के रेशों से युक्त जल के सेवन से असबेस्टोसिस नामक जानलेवा रोग हो जाता है.
          • पेयजल में नाइट्रेट की अधिकता से ब्लू बेबी सिंड्रोम कैडमियम की अधिकता से इटाई-इटाई रोग होता है.
          तेल अधिप्लाव नियन्त्रण के उपाय (Control Measures of Oil Spillage)
          1. भौतिक विधि - 98% तेल अधिप्लाव, तेल अधिप्लाव लगभग 10 मिमी. मोटा.
          2. रासायनिक विधि तेल को बुलबुले के माध्यम से वाष्पीकृत करना.
          3. जैविक विधि - ऑयल जैपिंग बैक्टीरिया.
          4. यान्त्रिक विधि - बूम, सोरवेन्ट्स, स्कीमर.
          • ऑयल जैपर बैक्टीरिया की खोज TERI के अध्यक्ष डॉ. बनवारी लाल ने 1996 ई. में की थी.
          • बूम प्रक्रिया के तहत तेल क्षेत्र में एक प्रकार की दीवार बना दी जाती है.
          • सोरबेन्ट्स विधि द्वारा समुद्र में फैले तेल का अवशोषण किया जाता है.
          • स्कीमर द्वारा वैक्यूम क्लीनर की तरह समुद्र में फैले तेल को खींच लिया जाता है.

          जल प्रदूषण पर नियन्त्रण

          (Control on Water Pollution)
          जल प्रदूषण पर नियंत्रण करने के उपाय निम्नलिखित हैं -
          • जल प्रदूषण नियंत्रण हेतु भारत सरकार ने C.B.P.C.W.P. की स्थापना जल प्रदूषण नियंत्रण एवं निवारण अधिनियम के अंतर्गत की है। इसकी हर राज्य में शाखाएँ भी स्थापित की गयी हैं.
          • औद्योगिक स्राव के निष्कासन का परीक्षण तथा उस पर निगरानी.
          • जल स्रोतों के प्रदूषण स्तर का सर्वेक्षण.
          • स्थानीय निकायों को जल प्रदूषण नियंत्रण के लिए सुझाव देना.
          • प्रदूषित जल के शोषण के उपायों की खोज.
          • प्रदूषण के प्रति आम जनता में जनचेतना पैदा करना.
          • प्रत्येक घर में सेप्टिक टैंक होना चाहिए.
          • शोधन के पूर्व औद्योगिक अपशिष्टों को लगाना चाहिए जिससे इनके द्वारा निकाला गया जल शुद्ध होने के बाद जल स्रोतों में जा सके.
          • लोगों को नदी, तालाब, झील में स्नान नहीं करना चाहिए.
          • समय-समय पर जल स्रोतों से हानिकारक पौधों को निकाल देना चाहिए.
          • पशुओं के प्रयोग के लिए पृथक् जल स्रोत का प्रयोग करना चाहिए.
          • खतरनाक कीटनाशियों के उपयोग पर प्रतिबंध लगाना चाहिए.
          • कीटनाशकों, कवकनाशियों इत्यादि के रूप में निम्नीकरण योग्य पदार्थों का प्रयोग करना चाहिए.
          • कुछ मछलियाँ हानिकारक जंतुओं के लार्वा तथा अंडों को खाकर उनकी संख्या को कम करती हैं. इन्हें जल स्रोतों में पालना चाहिए, जैसे गैम्बुशिया मछली मच्छर के अंडों व लार्वा का भक्षण करती है.
          • ताप तथा परमाणु बिजलीघरों से निकलने वाले जल को ठंडा होने के बाद शुद्ध करके ही जल स्रोतों में छोड़ना चाहिए.
          • जल प्रदूषण के दुष्परिणामों से जनमानस को अवगत कराना चाहिए.
          • कृषि कार्य में उर्वरकों कीटनाशकों के प्रयोग पर नियंत्रण लगाना चाहिये.
          • आणविक विस्फोट से समुद्र को बचाना चाहिए. सरकार व समाज मिलकर प्रदूषित जल की स्वच्छता संबंधी अभियान चलायें. 
          • जल प्रदूषण को रोकने के लिए भारत सरकार ने जल प्रदूषण नियंत्रण अधिमियम 1974 पारित किया है.

          नमामि गंगे कार्यक्रम

          • केन्द्र सरकार के बजट 2014-15 में यह निर्णय लिया गया कि देश की सामूहिक चेतना में गंगा का विशेष स्थान है.
          • मई 2015 में केन्द्र सरकार ने नमामि गंगे कार्यक्रम के हेतु अगले पाँच वर्षों के लिए, 20,000 करोड़ रु. का प्रावधान किया है.
          • नमामि गंगे परियोजना के लिए केन्द्र सरकार ने 2037 करोड़ रु. की धनराशि तथा गंगा के घाटों का निर्माण और सौन्दर्यीकरण हेतु पृथक् से 100 करोड़ की धनराशि का प्रावधान किया है.
          • 5 जुलाई, 2016 को नमामि गंगे कार्यक्रम के तहत 231 परियोजनाओं का प्रारम्भ हुआ.

          गंगा प्रदूषण नियन्त्रण

          • गंगा भारत की पवित्रतम नदी है। गंगा जल में बैक्टीरियोफेज नामक वायरस पाये जाते हैं जो गंगा जल का स्वतः निर्मलीकरण कर देते हैं. 
          • गंगा के प्रदूषण के निवारण हेतु गंगा एक्शन प्लान चलाया गया है.

          Points to Remember..!
            • औद्योगिक एवं कृषि अपशिष्टों से समुद्री जल में किसकी मात्रा में वृद्धि होती है ? - नाइट्रोजन एवं फास्फोरस
            • भूमिगत जल को दूषित करने वाले अजैविक प्रदूषक है - आर्सेनिक
            • पेयजल का pH मान होता है - 7.5 से 8.5 के मध्य 
            • पेयजल को कैसा होना चाहिए? - शीतल, स्वच्छ और गंधरहित 
            • जैविक ऑक्सीजन आवश्यकता (B.O.D.) एक प्रकार का प्रदूषक सूचकांक है - जलीय वातावरण में
            • अत्यधिक प्रदूषण के कारण गोमती नदी को लखनऊ में कहते हैं - जीवीय आपदा 
            • तमिलनाडु की एक मौसमी नोयल नदी को प्रदूषण के कारण कहते हैं - मृत सरिता
            • बंगाल का शोक किस नदी को कहते हैं? - दामोदर नदी 
            • नदी में जल प्रदूषण के निर्धारण के लिए घुली हुई मात्रा मापी जाती है - ऑक्सीजन की 
            • जल में कार्बनिक यौगिकों का मापन किसके द्वारा किया जाता है - क्रोमैटोग्राफी से
            • पेट्रोलियम तेल अधिप्लावों का उपचार करने हेतु किस प्रजाति के जीवाणुओं का प्रयोग किया जाता है? - स्यूडोमोनास
            • जलीय पारिस्थितिकीय तंत्र में कार्बनिक प्रदूषण का संकेतक है। - शैवाल जाति सूचकांक 
            • पीने के जल का B.O.D. होना चाहिए - 1 PPM से कम 
            • स्वच्छ जल का B.O.D. होता है - 5 PPM से कम 
            • कहाँ आर्सेनिक द्वारा जल प्रदूषण सर्वाधिक है? - पश्चिम बंगाल में
            • भारत की नदियों में किसे जैविक मरुस्थल कहते हैं? - दामोदर
            • किसको झीलों का वृद्ध होना भी कहा जाता है? - यूट्रोफिकेशन
            • केन्द्रीय बजट 2014 में समन्वित गंगा संरक्षण अभियान को कहा गया है। - नमामि गंगे
            • विश्व जल संरक्षण दिवस मनाया जाता है - 22 मार्च को
            • वर्ष 2009 में भारत ने स्वच्छ गंगा के लिए निम्न स्थापित किया गया - स्वच्छ निर्मल गंगा नदी का राष्ट्रीय मिशन

            यमुना नदी का प्रदूषण नियन्त्रण

            • वजीराबाद बैराज से ओखला बैराज तक यमुना नदी महानगर से निकले प्रदूषकों से अत्यधिक प्रदूषित हो जाती है.
            • दिल्ली और आगरा के बीच यमुना नदी में अजैविक तथा जैविक पोषक तत्वों का सांद्रण इतना बढ़ जाता है कि नदी के जल में शैवाल तथा फाइको प्लैंकटन की संख्या बहुत बढ़ जाने से जल पोषण के योग्य हो जाता है.
            • यमुना नदी को प्रदूषण मुक्त बनाने के लक्ष्य से 1993 में 'यमुना एक्शन प्लान' प्रारम्भ किया गया। यह प्लान वृहद् गंगा एक्शन प्लान के द्वितीय चरण का ही भाग है.
            • गंगा की तीन प्रदूषित सहायक नदियों यमुना, गोमती, दामोदर को प्रदूषण मुक्त करने की योजना सम्मिलित की गयी है.

            भारत की सबसे अधिक 5 प्रदूषित नदियाँ

            • अमलाखेड़ी - गुजरात
            • मारकंदा - हरियाणा
            • खारी - गुजरात
            • साबरमती - गुजरात
            • रवान - मध्य प्रदेश

            ध्वनि प्रदूषण (Sound Pollution)

            किसी भी वस्तु से उत्पन्न हुई सामान्य आवाज को ध्वनि कहते हैं. अधिक तीव्रता वाली ध्वनि के कारण मानव वर्ग में उत्पन्न अशांति एवं बेचैनी की दशा को ध्वनि प्रदूषण कहते हैं.
            • ध्वनि एक ऐसी विशिष्ट यांत्रिक तरंग है जो ठोस, द्रव और गैस तीनों ही माध्यमों से संचारित होती है।
            • ध्वनि की आवृत्ति मापने की इकाई “हर्ट्ज" होती है.
            ध्वनि प्रदूषक के स्रोतों को तीन भागों में बाँटा जा सकता है -
            • प्राकृतिक स्रोत - इसके अंतर्गत बादलों की गरज तथा गड़गड़ाहट उच्च वेग वाली वायु के विभिन्न रूप जैसे- हरीकेन, झंझावत (गेल), टारमैडो आदि उच्च तीव्रता वाली जल वर्षा, जल प्रपात, सागरीय तरंगें आदि.
            • कृत्रिम स्त्रोत - मनुष्य के विभिन्न कार्यों के समय उत्पन्न शोर तथा मनुष्य द्वारा निर्मित विभिन्न उपकरणों के कार्यरत होने पर उत्पन्न स्रोत जैसे- हवाई जहाज और जेट विमानों के उड़ान भरते समय और उतरते समय तेज आवाजें पैदा होती हैं.
            • सड़क पर चलने वाले वाहन, स्कूटर, कार, बस, ट्रक आदि शोर के प्रमुख कारण हैं.
            • पटाखों से निकलने वाली आवाज से शोर और वायु प्रदूषण होता है. सिर चकरा जाता है.
            • ध्वनि के वेग से चलने वाले वायुयान प्लेन उड़ान भरते समय और उतरते समय सामान्य वायुयानों की तुलना में अधिक कर्कश ध्वनि पैदा करते हैं.
            • विस्फोटक हथियार जैसे बंदूक, राइफल, मशीन गन तथा भाँति-भाँति के बमों से पैदा होने वाली ध्वनियाँ काफी तीव्र होती हैं.
            • जीवीय स्रोत - जंगली एवं जानवरों की तीव्रता वाली आवाज यथा हाथियों की चिग्घाड़, - आवारा कुत्तों का भौंकना, सरकस के कटघरे में शेर की दहाड़, मनुष्यों में अट्टहास, लड़ाई-झगड़ा आदि विभिन्न प्रकार के शोर उत्पन्न करते हैं.
            • सामान्यतः 80-90 डेसीबल तीव्रता वाली ध्वनि को ध्वनि प्रदूषण कहते हैं.
            • ध्वनि तीव्रता को प्रति वर्ग मीटर क्षेत्र में वाट्स इकाई में नापा जा सकता है.
            • ध्वनि का वेग 332 मीटर / सेकेण्ड होता है. ध्वनि की गति से तेज चलने वाले जेट विमानों से उत्पन्न शोर को सोनिक बूम कहते हैं.
            • सोनिक बूम को "मैक इकाई" में व्यक्त किया जाता है.
            • मेट्रो सिटी में ध्वनि स्तर हमेशा अधिक रहता है क्योंकि यहाँ वाहनों एवं अन्य ध्वनि प्रदूषकों तीव्र वृद्धि हो रही है.
            • मुम्बई, दिल्ली, कोलकाता में शोर का स्तन सामान्य औसत से बहुत अधिक रहता है.

            Points to Remember..!
              • ध्वनि की तीव्रता मापने के लिए कौन-सी इकाई निर्धारित की गयी है? - डेसीबल
              • डेसीबल मापक कहाँ से प्रारम्भ होता है? - शून्य से 
              • विश्व स्वास्थ्य संगठन ने ध्वनि की उच्चता का स्तर दिन और रात में कितना निश्चित किया है ? - 45 dB, 35
              • 20 हर्ट्ज से कम तीव्रता वाली ध्वनि तरंगों को कहते हैं - अवश्रव्य तरंगें 
              • 20 हर्ट्ज से 20 हजार हज तक आवृत्ति वाली ध्वनि तरंगों को कहते हैं - श्रव्य ध्वनि तरंगें
              • 20 हजार हर्ट्ज से ज्यादा आवृत्ति वाली तरंगों को कहते हैं - पराश्रव्य ध्वनि तरंगें
              • चमगादड़ कौन-सी ध्वनि उत्पन्न करता है और सुनता है। - पराश्रव्य ध्वनि

              भारतीय मानक संस्थान द्वारा स्वीकृत ध्वनि का स्तर

              आवासीय क्षेत्रों हेतु

              क्षेत्रध्वनि स्तर (dB)
              ग्रामीण25-35
              उपनगरीय30-40
              नगरीय (आवासीय)35-40
              नगरीय (आवासीय व व्यावसायिक) 40-45
              नगरीय (सामान्य)45-55
              औद्योगिक क्षेत्र50-60

              विभिन्न भवनों में स्वीकृत 

              भवनध्वनि स्तर (dB)
              रेडियो तथा टेलीविजन स्टूडियो25-35
              संगीत कक्ष30-35
              ऑडिटोरियम, हॉस्टल, सम्मेलन कक्ष35-40
              कोर्ट, निजी कार्यालय तथा पुस्तकालय40-45
              सार्वजनिक कार्यालय, बैंक तथा स्टोर45-50
              रेस्टोरेन्ट्स50-55

              ध्वनि प्रदूषण के प्रभाव

              • 90 डेसीबल से ऊपर की ध्वनि के प्रभाव में लम्बे समय तक रहने वाला व्यक्ति बहरा हो जाता है.
              • 130 से 140 डेलीबल का शोर शारीरिक दर्द उत्पन्न कर देता है.
              • ध्वनि प्रदूषण के कारण सिर दर्द, थकान, अनिद्रा आदि रोग होते हैं.
              • शोर प्रदूषण से लैंगिक नपुंसकता भी पैदा हो सकती है.
              • अवांछित शोर के कारण मस्तिष्क का तनाव बढ़ता है.
              • तीव्र शोर के कारण पाचन तन्त्र प्रभावित होता है. पाचन क्रिया अनियमित हो जाती है. शोर के कारण अल्सर की समस्या भी बढ़ जाती है.
              • निरन्तर शोर में रहने वाली महिलाओं के नवजात शिशुओं में शारीरिक विकृतियाँ पैदा हो जाती हैं.
              • अधिक शोर के कारण ऐड्रीनल हार्मोन का स्राव अधिक होता है.
              • ध्वनि प्रदूषण के कारण धमनियों में कोलेस्ट्राल का जमाव बढ़ता है जिसके परिणामस्वरूप रक्तचाप भी बढ़ता है.
              भारत में स्वीकार्य मानक ध्वनि प्रदूषण स्तर - 

              क्षेत्रdB दिन मेंdB रात में
              औद्योगिक क्षेत्र75 dB70 dB
              वाणिज्य क्षेत्र.65 dB55 dB
              आवासीय क्षेत्र55 dB45 dB
              शांत परिक्षेत्र50 dB40 dB
              • लम्बी अवधि तक ध्वनि प्रदूषण के कारण लोगों में ‘न्यूरोटिक मेण्टल डिसॉर्डर' हो जाता है.
              • वैज्ञानिकों के अनुसार पादपों व वनस्पतियों पर भी तीव्र ध्वनि प्रदूषण का प्रभाव परिलक्षित होता है.
              • ध्वनि प्रदूषण का प्रभाव समुद्री ह्वेल पर अत्यधिक पड़ता है.
              • ध्वनि प्रदूषण के कारण जन्तुओं का हृदय, मस्तिष्क व यकृत प्रभावित होता है.
              • ध्वनि प्रदूषण का प्रभाव इमारतों पर भी पड़ता है। 
              • तीव्र ध्वनि से सूक्ष्म जीवाणु भी नष्ट हो जाते हैं जिससे मृत अवशेषों के अपघटन में बाधा पहुँचती है.
              • दिन का समय सुबह 6 बजे से रात्रि 10 बजे तक निश्चित है.
              • रात का समय 10 बजे रात से सुबह के 6 बजे तक निश्चित है.
              • शिक्षा संस्थान, न्यायालय तथा अस्पताल आदि के चारों तरफ 100 मीटर के केंद्र को शान्त क्षेत्र के अंतर्गत शामिल किया गया है.
              • भारत के 9 शहरों के 35 स्थानों में ध्वनि प्रदूषण मापने की व्यवस्था की गयी है.

              ध्वनि प्रदूषण का नियन्त्रण

              • ध्वनि प्रदूषण को पूरी तरह से समाप्त कर देना संभव नहीं है. 
              • भारत के सुप्रीम कोर्ट ने रात 10 बजे से सुबह 6 बजे तक पटाखे चलाने पर रोक लगा दी है.
              • शादी समारोह में तेज संगीत बजाने पर रोक है.
              • रात्रि में संगीत बजाने पर पूर्णरूप से रोक लगा दी गयी है.
              • जनसाधारण को ध्वनि प्रदूषण से उत्पन्न खतरों से अवगत कराया जाये. प्रत्येक व्यक्ति को अपने स्तर पर शोर कम करने में सकारात्मक योगदान देना चाहिए.
              • जापान ने ध्वनि प्रदूषण कम करने के लिए टोकियो शहर के अन्तर्राष्ट्रीय हवाई अड्डों पर जहाजों का आवागमन रात 10 बजे से प्रातः 4 बजे तक के लिए बन्द कर दिया है.
              • कारखानों तथा उद्योगों में शोर शोषक दीवारों का निर्माण करना चाहिए.
              • शोर करने वाले वाहनों पर प्रतिबन्ध लगाना चाहिए। जापान में लाउडस्पीकर का प्रयोग पूर्णतः प्रतिबन्धित है और इसका प्रयोग करने से पहले सरकार से इसकी अनुमति लेनी पड़ती है.
              • पौधों में ध्वनि प्रदूषण कम करने की बहुत क्षमता होती है। सड़कों के किनारे हरे वृक्षों को लगाकर ध्वनि प्रदूषण से बचा जा सकता है, क्योंकि हरे पौधे ध्वनि की तीव्रता को 10 से 15 dB तक कम कर सकते हैं.
              • राज्य सरकारों को वर्ष में 15 दिन रात्रि के 10 बजे के बाद भी सामान्य से अधिक शोर करने वाले उपकरणों, यंत्रों के उपयोग की अनुमति देने का प्रावधान किया गया है। यह पहल पर्यावरण संरक्षण कानून, 1986 और ध्वनि रेगुलेशन नियम, 2000 के प्रावधानों के अनुसार की गयी है.

              भारत में ध्वनि प्रदूषण के प्रावधान नियंत्रण

              • वायु प्रदूषण नियंत्रण (अधि., 1981) - ध्वनि प्रदूषण को वायु प्रदूषकों की श्रेणी में शामिल करते हुए दंडनीय अपराध.
              • पर्यावरण संरक्षण (अधि., 1986) - ध्वनि प्रदूषण पर सरकार को नियंत्रण की शक्ति दंडनीय अपराध.
              • वाहन अधिनियम, 1988 - गाड़ी के हॉर्न और साइलेंसर का सही हालत में न होना और बी.आई. एस. के मानकों से अधिक ध्वनि करना.
              • भारतीय दण्ड संहिता (धारा 268, 290 और 291) - ध्वनि उत्पाद से जनता को क्षति और स्वास्थ्य को खतरा तथा परेशानी पहुँचना.
              • दण्ड प्रक्रिया संहिता (धारा 133) - ध्वनि उत्पाद को वैध ठहराने वाला कोई भी बहाना स्वीकार्य नहीं है। दण्डनीय अपराध.
              • फैक्ट्री अधिनियम, 1988 (धारा 89, 90) - ध्वनि प्रदूषण से श्रमिकों को हुए नुकसान की जाँच में लापरवाही दंडनीय अपराध है.

              Points to Remember..!
                • ध्वनि प्रदूषण कितनी डेसीबल ध्वनि होने से होता है? - 80-90 डेसीबल
                • ध्वनि की गति से चलने वाली वस्तु से उत्पन्न शोर को क्या कहते हैं? - मैक-1 
                • ध्वनि की गति से दो गुनी गति से चलने वाली वस्तु से उत्पन्न शोर को कहते हैं ? - मैक-2
                • किस तीव्रता की ध्वनि तरंग श्रवण शक्ति में हास उत्पन्न करती है? - 90 डेसिबल का
                • दो ध्वनि तरंगों का अध्यारोपण हो जाता है तो एक-दूसरे को क्या करती हैं? - प्रबलित
                • ध्वनि को कौन-सा विज्ञान कहते हैं? - श्रवण विज्ञान 
                • श्रव्य परास से अधिक आवृत्ति की ध्वनि तरंगों को क्या कहते हैं? - पराश्रव्य
                • कोर्ट, निजी कार्यालय तथा पुस्तकालय में ध्वनि तरंग है - 40-45 dB

                ध्वनि प्रदूषण के कारक

                • व्यावसायिक व औद्योगिक कारण एयर कम्प्रेसर, हैमर, प्रिंटिंग प्रेस, ट्रक, लोडर, बुल्डोजर आदि.
                • घरेलू कारक कूलर, वाशिंग मशीन, फैन, टी. वी. मोबाइल, वैक्यूम क्लीनर आदि.
                • परिवहन - मोटर गाड़ी, ट्रैफिक, ट्रेन.
                ध्वनि स्रोतध्वनि (डेसीबल में)
                श्रवण की देहली0
                पत्तियों की सरसराहट10
                सामान्य श्वसन10
                अतिशांत स्थान की ध्वनि20
                फुसफुसाहट30
                शान्त कार्यालय की ध्वनि40
                सामान्य बातचीत की ध्वनि60
                टेलीविजन70
                शान्त कमरे की ध्वनि40
                जोर से चिल्लाना90
                स्वचालित वाहनों से उत्पन्न ध्वनि90
                ट्रक, मोटरकार, बस आदि90
                जेट विमान110
                रॉकेट इंजन180
                ज्वालामुखी विस्फोट190

                मृदा प्रदूषण (Soil Pollution)

                प्राकृतिक या मानव कृत्यों से उद्भूत मृदा की गुणवत्ता में ह्रास होने की दशा को मृदा प्रदूषण कहते हैं। मृदा में ह्रास निम्नलिखित कारणों से होता है.
                • मिट्टियों में ह्यूमस की मात्रा में कमी। तापमान की अधिकता एवं न्यूनता.
                • तेज गति से मृदा अपरदन.
                • मिट्टियों में नमी का आवश्यकता से अधिक या बहुत कम होना.
                • मिट्टियों में अनेकों प्रकार के प्रदूषकों का प्रवेश एवं सान्द्रण.
                • झूमिंग कृषि.
                • मिट्टी में रहने वाले सूक्ष्म जीवों में कमी.
                • अम्ल वर्षा.
                • वनोन्मूलन.
                • मिट्टी के ऊपरी सतह पर ही सूक्ष्मजीवों का निवास होता है। यही कारण है कि मिट्टी को जैविक कारखाना कहा जाता है.

                मृदा प्रदूषण के कारण

                मृदा प्रदूषण के निम्नलिखित कारण हैं -
                1. मृदा अपरदन मृदा अपरदन के जैव स्रोत या कारकों के अंतर्गत उन सूक्ष्म जीवों तथा अवांछित पौधों को शामिल किया जाता है जो मिट्टी की गुणवत्ता या उर्वरता को कम करते हैं।सूक्ष्म जीव मिट्टियों में प्रवेश करके उन्हें प्रदूषित करते हैं. मृदा अपरदन से मिट्टी की गुणवत्ता में कमी, बाढ़ आना, कृषि क्षेत्र में कमी आदि पर प्रभाव पड़ता है.
                2. रसायनों का प्रयोग - जैवनाशी रसायन विषैले रूप में आहार श्रृंखला में प्रविष्ट होता है. डी.डी.टी. का छिड़काव अत्यधिक हानिकारक है. मानव पर इसका बुरा प्रभाव पड़ता है.
                3. भूमिगत अपशिष्ट कृषि रसायनों के कारण मृदा की निचली परत प्रदूषित होती है, इसका प्रभाव मेढक, चूहे आदि छोटे जीवों पर पड़ता है.
                4. औद्योगिक अपशिष्ट कारखानों, कोयले की - खान, अभ्रक की खान आदि औद्योगिक कारकों से मृदा की गुणवत्ता नष्ट हो जाती है। कारखानों से निकलने वाली क्लोरीन तथा नाइट्रोजन गैस जल में पहुँचकर मृदा को प्रदूषित करते हैं.
                5. लवणीय जल उच्च लवणीय जल के प्रयोग से मृदा प्रदूषित होती है. लवणता अधिकतम सान्द्रण फसलों के लिए से मृदा प्रदूषित होती है. लवणता अधिकतम सान्द्रण फसलों के लिए नुकसानदेय होता है.

                6. नगरीय अपशिष्ट वाणिज्यिक एवं घरेलू अपशिष्ट को नगरीय अपशिष्ट माना जाता है. फाइबर, धातु, काँच, प्लास्टिक, कूड़ा-करकट, खाद्य पदार्थ नगरीय अपशिष्ट हैं। वर्षा के पानी से मृदा प्रदूषण में बढ़ोत्तरी होती है. विषैले पदार्थों के परिवहन के समय रिसाव से मृदा प्रदूषण होता है.
                7. खनन अपशिष्ट खनन से उत्पन्न हुए - अपशिष्ट को मृदा में छोड़ दिया जाता है, यह मृदा को प्रभावित करती है.

                Points to Remember..!
                  • क्षारीय मृदाओं में किस तत्व की कमी रहती है? - कैल्शियम तथा नाइट्रोजन 
                  • पॉलिथीन की थैलियों को नष्ट नहीं किया जा सकता क्योंकि वे बनी होती हैं - पॉलीमर से
                  • मृदा प्रदूषण का सबसे महत्वपूर्ण कारक हो सकता है - प्लास्टिक
                  • नहर सिंचाई क्षेत्र में कैसी मृदा समस्या उत्पन्न होती है? - ऊसर भूमि 
                  • केन्द्रीय मृदा संरक्षण बोर्ड की स्थापना किस वर्ष हुई थी? - 1953 में 
                  • जीवनाशी रसायनों को क्या कहा जाता है? - रेंगती मृत्यु 
                  • मिट्टी का वृहद् अपरदन क्या कहलाता है? - अवनालिका अपरदन 
                  • खाद्यान्नों में डी.डी.टी. का अंश सर्वाधिक किस राज्य में पाया जाता है? - पंजाब में
                  • भारत में अवनालिका अपरदन से मालवा का कौन सा क्षेत्र सर्वाधिक प्रभावित है? - चम्बल नदी का 
                  • अवनालिका अपरदन के निरंतर सक्रिय रहने से प्रभावित क्षेत्र किसमें बदल जाते हैं? - बीहड़ में 
                  • पीट तथा दलदलीय मृदायें किस स्वभाव की होती हैं? - अम्लीय
                  • विश्व की लगभग कितने प्रतिशत भूमि लवणीकरण से प्रभावित है? - 30 प्रतिशत 
                  • देश में लगभग कितने प्रतिशत जमीन बंजर है? - 5 प्रतिशत
                  • कहाँ पर अत्यधिक सिंचाई व उर्वरक के प्रयोग के कारण मृदा अम्लीकरण बढ़ रहा है? - पंजाब व हरियाणा
                  • किन कारखानों के पास किसी प्रकार की वनस्पति नहीं उग पाती? - ताँबा गलाने वाले कारखानों

                  मृदा प्रदूषण के प्रभाव

                  (Effects of Soil Pollution)
                  • मृदा प्रदूषण से मानव और जैव समुदाय पर दूरगामी प्रभाव पड़ता है.
                  • मृदा प्रदूषण पादपों के पोषक तत्व व प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया को प्रभावित करते हैं.
                  • प्रदूषित मृदा को गुणवत्तापूर्ण बनाने में सरकार को राजस्व की हानि होती है.
                  • मृदा प्रदूषण का प्रभाव मानव पर प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष रूप से पड़ता है. टिटनेस, दस्त पेचिस, सूजन, आंत्र-ज्वर, हुक वर्म आदि रोग मानव पर मृदा प्रदूषण के प्रभाव से होते हैं.
                  • मृदा प्रदूषण का मृदा पर प्रभाव से मृदा अपरदन, मृदा अम्लीकरण, मृदा क्षारीयकरण की समस्या उत्पन्न होती है.
                  • खतरनाक रसायन मृदा एवं जल को प्रदूषित करते हैं जिससे मृदा की उर्वरा शक्ति में कमी होती है.
                  • मृदा प्रदूषण के प्रभाव से सूक्ष्म जीवों की मृत्यु हो जाती है.

                  मृदा प्रदूषण पर नियन्त्रण

                  (Control of Soil Pollution) 
                  मृदा प्रदूषण पर नियंत्रण के निम्नलिखित उपाय हैं-
                  • मृदा प्रदूषण पर नियंत्रण के लिए प्रत्येक घर में रो सेफ्टिक टैंक होना चाहिए.
                  • रासायनिक उर्वरकों के स्थान पर समन्वित पादप ज पोषण प्रबन्धन से मृदा के मौलिक गुण बने रहेंगे.
                  • डी.डी.टी. व अन्य हानिकारक रसायनों पर नियंत्रण किया जाय.
                  • मृदा में उर्वरा शक्ति की वृद्धि के लिए किसानों को राइजोबियम जैसे जैव उर्वरकों के प्रयोग के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए.
                  • जिस मृदा में लवणता की अधिकता होती हो उसके सुधार हेतु जिप्सम तथा पाइराइट्स का प्रयोग करना चाहिए.
                  • शोधन के पूर्व औद्योगिक अपशिष्टों को लगाना चाहिए.
                  • खतरनाक कीटनाशियों के उपयोग पर प्रतिबन्ध ह लगाना चाहिए.
                  • ताप तथा बिजलीघर से निकलने वाले जल को ठंडा होने के पश्चात् शुद्ध करके ही जल स्रोतों में छोड़ना चाहिए.
                  • जल प्रदूषण नियंत्रण के लिए भारत सरकार ने C.B.P.C.W.P. की स्थापना जल प्रदूषण नियंत्रण एवं निवारण एक्ट के अंतर्गत की है.

                  रेडियोएक्टिव प्रदूषण 

                  (Radioactive Pollution)
                  • रेडियोएक्टिव प्रदूषण उसे कहते हैं जो रेडियोएक्टिव पदार्थों के विकिरण से उत्पन्न होते हैं. रेडियोएक्टिव प्रदूषण स्वयं प्रदूषणकारक एवं प्रदूषण दोनों है.
                  • रेडियोएक्टिव प्रदूषण मापन की इकाई रोन्टजन है, इसको रैम भी कहा जाता है.
                  • यूरेनियम, थोरियम, प्लूटोनियम, अल्फा, बीटा, गामा आदि से रेडियोएक्टिव प्रदूषण स्वतः निकलता रहता है.
                  • अल्प समय का एक्स-रे एक्सपोजर लगभग पाँच से छः रैम विकिरण पैदा करता है.
                  • रेडियोएक्टिव प्रदूषण जल, वायु तथा मृदा तीनों को प्रदूषित करता है.
                  • रेडियोएक्टिव पदार्थों का प्रयोग ऊर्जा उत्पादन, अनुसंधान, चिकित्सा कार्यों और खाद्य पदार्थों के संरक्षण में भी किया जाता है.
                  • रेडियोधर्मी पदार्थों का प्रयोग परमाणु हथियारों में किया जाता है.
                  • जापान के फुकुशिया तथा रूस की चेर्नोबिल आपदा ने नाभिकीय प्रदूषण की ओर ध्यान आकृष्ट कराया था.
                  • 1986 में हेनरी बेक्वेरेल ने रेडियोएक्टिवता की खोज की थी.
                  रेडियोएक्टिव क्षय तीन प्रकार के होते हैं -
                  1. अल्फा क्षय उत्सर्जित होती है. - इसके हीलियम नाभिक उत्सर्जित होते हैं.
                  2. बीटा क्षय इसमें इलेक्ट्रॉन या पॉजीट्रान उत्सर्जित होते हैं.
                  3. गामा क्षय- इसमें उच्च ऊर्जा वाले फ्रोटॉन उत्सर्जित होते हैं.
                  रेडियोएक्टिव प्रदूषण के स्त्रोत
                  • मानव द्वारा विभिन्न उद्देश्यों हेतु प्रयोग किये जाने वाले कोबाल्ट-60, कार्बन 14, स्ट्रांशियम 90, केसियम 137 तथा ट्रीटियम आदि रेडियोऐक्टिव प्रदूषण के स्रोत हैं.
                  • परमाणु विस्फोट, परमाणु ऊर्जा संयंत्र से होने वाला रिसाव, रेडियोआइसोटोप नाभिकीय प्रयोग, रेडियोधर्मी कचरे का निस्तारण मानवीय स्रोत के अंतर्गत आते हैं.
                  • रेडियोधर्मी प्रदूषण के प्राकृतिक स्रोत परिणाम की दृष्टि से घातक नहीं होते तथा इनसे बहुत कम हानि होती है.
                  रेडियोएक्टिव प्रदूषण के स्रोत दो प्रकार के होते हैं -
                  1. प्राकृतिक स्रोत - मिट्टी, चट्टान, प्राकृतिक गैस, बाह्य गैस, बिल्डिंग सामान.
                  2. मानव निर्मित नाभिकीय परीक्षण, टेलीविजन, नाभिकीय हथियार, यूरेनियम खनन, दैन्दिनी चिकित्सा परीक्षण, नाभिकीय रिएक्टर।
                  • सामान्य तौर पर परमाणु रियेक्टरों से निकलने वाले कचरे में रेडियम, थोरियम व प्लूटोनियम होते हैं.

                  विकिरण के प्रभाव

                  (Effect of Radiation)
                  • रेडियोधर्मी प्रदूषण के कारण जीन्स और गुणसूत्रों में हानिकारक उत्परिवर्तन हो जाता है.
                  • रेडियोधर्मी प्रदूषण से मानव में रक्त कैंसर, अस्थि कैंसर और अस्थि टीबी जैसे खतरनाक रोग हो जाते हैं.
                  • उच्च तीव्रता के विकिरणों के प्रभाव में आने से जीवों की एनीमिया, रक्तस्राव आदि के कारण रे मृत्यु भी हो जाती है.
                  • उद्योग, अनुसंधान एवं औषधि में रेडियोएक्टिव न्यूक्लाइड का प्रयोग करने वाले अन्य लोगों की अपेक्षा अधिक प्रभावित होते हैं.
                  • ज्यादा विकिरण से कोशिकाओं को नुकसान पहुँचता है और मृत्यु भी हो जाती है.
                  • विकिरण का प्रभाव जलीय पारितंत्र मृदा आदि पर भी पड़ता है.

                  रेडियोधर्मिता की इकाइया

                  (Units of Radioactivity)
                  • रेम (Rem) इस इकाई का प्रयोग जैविक हानियों को मापने में किया जाता है.
                  • रैड (Rad) इस इकाई का प्रयोग उस विकिरण को मापने के लिए किया जाता है जिसमें प्रतिग्राम पदार्थ से 100 ई. आर. जी. का ऊर्जा अवशोषण किया जाता है.
                  • रोण्टेजन (Rontegen) यह इकाई विकरित ऊर्जा की उस मात्रा को व्यक्त करती है जिससे हवा के एक घनमीटर में 2.083 करोड़ आयन युग्म उत्पन्न हो सकता है.
                  • क्यूरी (Curie) एक क्यूरी में प्रति सेकेण्ड 37 करोड़ परमाणु विघटन होते हैं। यह रेडियोधर्मिता की गहनता या विघटन दर का मापन करती है.

                  Points to Remember..!
                    • भारत में सर्वाधिक रेडियोधर्मी प्रदूषण कहाँ पाया जाता है? - केरल में
                    • रेडियोधर्मिता मापन की इकाइयाँ हैं - रेम, रैड, रोण्टेजन, क्यूरी
                    • गर्म पिण्डों एवं अणुओं से उत्पन्न होने वाली तरंगों को क्या कहते हैं? - ऊष्मा तरंगें 
                    • पराबैगनी विकिरण से त्वचा किस रंग की हो जाती है? - ताम्र रंग 
                    • कौन-सा बम जीवधारियों को प्रभावित करता है, निर्जीवों को नहीं? - न्यूट्रॉन बम 
                    • ऑयनिक विकिरण का स्रोत है - रेडियोधर्मी तत्व
                    • नाभिकीय विकिरण अवपात से बचने की दवा है - पोटैशियम आयोडाइड 
                    • पराबैगनी किरणें कैसे विकिरण का स्रोत हैं? - गैर-ऑयनीकृत 
                    • रेडियोधर्मी विकिरण का प्रभाव रहता है - कई हजार वर्ष तक

                    रेडियोएक्टिव प्रदूषण पर नियंत्रण के उपाय 

                    (Control of Radioactive Pollution)
                    • मानव उपयोग वाले यंत्रों को रेडियोधर्मिता से मुक्त करना होगा.
                    • विश्व स्तर पर किसी भी राष्ट्र को परमाणु हथियारों के विकास एवं निर्माण को पूरी तरह से बन्द करना पड़ेगा। 
                    • सभी परमाणु रिएक्टरों का समुचित एवं पर्याप्त रख-रखाव किया जाना चाहिए.
                    • प्रयोगशालाओं में प्रयोग में लाये जाने वाले रेडियो आइसोटोपों का अत्यंत सावधानीपूर्वक प्रयोग किया जाना चाहिए.
                    • चिकित्सीय व अनुसंधान सामान का वैज्ञानिक ढंग से प्रयोग करना चाहिए.
                    • परमाणु बम के भूमिगत, वायुमण्डल तथा जलमण्डल में परीक्षण पर प्रतिबन्ध लगाना चाहिए.

                    परमाणु जाड़ा क्या है-

                    • परमाणु विस्फोटों की घटनाएँ बढ़ने पर एक बहुत बड़े आकार का ज्वालामुखी बन जायेगा तथा इसके द्वारा निकलने वाला धुआँ और धूल वातावरण को ढँक लेगा।
                    • पृथ्वी का तापमान इतना अधिक नीचे गिर जायेगा कि बड़ी संख्या में उष्णकटिबंधीय क्षेत्र गायब हो जायेंगे।
                    • तापमान 7° से 10° सेंटीग्रेड तक गिर जायेगा और हम परमाणु जाड़े की गिरफ्त में आ जायेंगे।
                    • तुषारीकृत तापमान, हिंसक तूफानों, रेडियोधर्मिता के परिणामों, उच्च कोटि के वायु एवं जल प्रदूषण तथा पराबैगनी किरणों के अत्यधिक उच्च प्रभाव के कारण अनेक प्रकार के पशु और पौधे अपना जीवन खो देंगे।

                    चरम ठण्ड क्या है

                    • परमाणु विस्फोटों और परमाणु युद्धों से चरम ठंड का खतरा बढ़ सकता है।
                    • तापमान 30° सेल्सियस तक नीचे गिर सकता है, जिसके कारण समूची पृथ्वी भीषण ठंड में ठिठुर जायेगी।
                    • लोगों को दोपहर के समय भी पूर्ण अंधकार में रहना होगा। 

                    विद्युत चुम्बकीय विकिरण प्रदूषण 

                    (Electro magenatic Waves Pollution) 
                    • विद्युत चुम्बकीय तरंगों के द्वारा ऊर्जा सम्प्रेषित करने को विद्युत चुम्बकीय विकिरण कहते हैं.
                    • विद्युत चुम्बकीय विकिरण के कारण जीवों के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले नुकसानदेय प्रभाव को विद्युत चुम्बकीय प्रदूषण करते हैं.
                    • मैक्सवेल ने विद्युत चुम्बकीय तरंगों की खोज की थी.
                    • विद्युत चुम्बकीय तरंगों को संचरण के लिए किसी माध्यम की जरूरत नहीं होती, ये तरंगें निर्वात में चल सकती हैं.
                    • प्रकाश भी विद्युत चुम्बकीय तरंगों के रूप में चलता है.

                    विद्युत चुम्बकीय तरंगें दो प्रकार की होती हैं-
                    1. रेडियो तरंगें - निम्न आवृत्ति तथा उच्च तरंगदैर्ध्य या तरंग लम्बाई वाली विद्युत चुम्बकीय तरंगों को रेडियो तरंगें कहते हैं. टेलीविजन के संचरण में रेडियो तरंगें प्रयोग की जाती हैं.
                    2. माइक्रोवेव - दीर्घ आवृत्ति तथा निम्न तरंग दैर्ध्य की विद्युत चुम्बकीय तरंगें माइक्रोवेव हैं. इस तरंग में दृश्य प्रकाश, एक्स किरणें, गामा किरणें तथा अवरक्त किरणें आती हैं.
                    • कोहरे व धुंध के पार देखने के लिए अवरक्त किरणों का प्रयोग होता है.
                    • रेडियो टेलिस्कोप तथा उपग्रह संचार में माइक्रोवेव तरंग का प्रयोग होता है.
                    • सूर्य के प्रकाश के स्पेक्ट्रम में लाल रंग से लेकर बैंगनी रंग तक दृष्टव्य होते हैं.
                    • माइक्रोवेव त्वचा, आँखों एवं माँसपेशियों के ऊतकों, अण्डकोशों, मूत्राशय, पित्ताशय तथा पाचन तंत्र को नुकसान पहुँचाते हैं.
                    • माइक्रोवेव मानव शरीर में श्वसन तथा रक्त संचार को प्रभावित करती हैं.
                    • विद्युत चुम्बकीय विकिरण से पेशमेकरधारी हृदय मरीजों को खतरा रहता है.
                    • कम्प्यूटर मॉनीटर से निकलने वाली अल्फा तथा बीटा किरणें निरन्तर काम करने वाले की कार्निया को प्रभावित करती हैं.
                    • बिजली के तारों तथा विद्युत उपकरणों से निकलने वाले विद्युत चुम्बकीय विकिरण से इलेक्ट्रोस्मॉग नामक एक अदृश्य आवरण होता है जो अपनी नजदीकी परिक्षेत्र को प्रभावित करता है.
                    • माइक्रोवेव का प्रयोग राडार के अतिरिक्त 90 प्रतिशत से ज्यादा टेलीविजन सम्प्रेषणों में तथा करीब 35 प्रतिशत लम्बी दूरी के समाचार 8. सम्प्रेषण में होता है.
                    • पहला हाइड्रोजन बम विस्फोट संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा प्रशान्त महासागर के बिकनी टापू (1954) पर किया गया था.
                    • माइक्रोवेब्स कीटों तथा स्तनपाइयों की कोशिकाओं में जीनीय उत्परिवर्तन पैदा करती हैं.
                    • सेल्युलर फोन, वॉकी-टॉकी आदि का प्रयोग कम करना चाहिए.
                    • हाई वोल्टेज विद्युत तार जो सिर के ऊपर से गुजरते हैं उनसे 60 मीटर दूर रहना चाहिए.

                    Points to Remember..!
                      • अल्फा, गामा और बीटा किरणों में से किनकी वेधन क्षमता सर्वाधिक होती है? - गामा किरणों की
                      • कोहरे तथा धुंध के पार देखने के लिए किसका प्रयोग किया जाता है? - अवरक्त विकिरण
                      • कौन माइक्रोवेव का अच्छा अवशोषक है? - जल
                      • उपग्रह संचार में किस वेब का प्रयोग किया जाता. - माइक्रोवेव
                      • टी.वी. कार्यक्रमों के संचारण में किस तरंग दैर्ध्य की विद्युत चुम्बकीय तरंगें हैं? - रेडियो  
                      • मस्तिष्क का सबसे पिछला भाग है - मेडुला आबलांगेटा 

                      ठोस अपशिष्ट प्रदूषण 

                      (Solid Waste Pollution)
                      • ठोस अपशिष्ट पदार्थ वे होते हैं जो उपयोग के पश्चात् बेकार हो जाते हैं जिनसे कोई मुद्रा नहीं मिल सकती है.
                      • ठोस अपशिष्ट पूरे विश्व में एक बड़ी समस्या बन गया है.
                      • विकसित देशों की प्रयोग करो और फेंको संस्कृति' ठोस अपशिष्ट प्रदूषण के लिए उत्तरदायी है. 

                      ठोस अपशिष्ट के प्रकार

                      (Types of Solid Waste Materials)
                      1. औद्योगिक अपशिष्ट - इसके अंतर्गत आने वाले अपशिष्ट रसायन उद्योग से निकले अपशिष्ट, चीनी मिल से निकले अपशिष्ट, ताँबा एवं एल्यूमीनियम उद्योग से निकले अपशिष्ट, पेट्रोल से निकले अपशिष्ट आते हैं.
                      2. कृषि अपशिष्ट - इसके अंतर्गत आने वाले अपशिष्ट भूसा, फसलों की जड़ें, तना, गोबर, चारा आदि हैं.
                      3. चिकित्सा अपशिष्ट - शरीर के अंग, जानवरों - के मृत शरीर एवं जैविक अपशिष्ट आदि.
                      4. नगरपालिका अपशिष्ट - इसके अंतर्गत आने वाले अपशिष्ट घरेलू कचरा, खाद्य पदार्थ, काँच का सामान, अखबार, कागज आदि आते हैं.
                      5. मृत जीव - पशु, बिल्ली, कुत्ता, जंगली - जानवर.
                      6. मल-मूत्र - ग्रामीण एवं नगरीय क्षेत्र के अपशिष्ट.
                      7. राख अपशिष्ट - कोयला, काष्ठ उपलों आदि का अपशिष्ट.
                      8. मछलियों के अपशिष्ट - मछली क्षेत्र में व्याप्त अपशिष्ट.

                      भारत में ठोस अपशिष्ट

                      (Solid Waste in India)
                      • भारत के 3,00,000 से अधिक जनसंख्या वाले लगभग 50 बड़े नगर प्रतिदिन 4,00,000 टन से अधिक अपशिष्ट छोड़ते हैं.
                      • शहरी क्षेत्र के लगभग 1,88,500 टन प्रतिदिन (68.8 मिलियन प्रतिवर्ष) छोड़ते हैं.
                      • भारत में लगभग 7 मिलियन टन खतरनाक अपशिष्ट पैदा होता है. 
                      • भारत के दिल्ली, मुम्बई, चेन्नई, कलकत्ता, बंगलौर एवं हैदराबाद महानगर प्रतिदिन भारी मात्रा में अपशिष्ट छोड़ते हैं.
                      • वर्ष 1947 में लगभग 6 मिलियन टन ठोस अपशिष्ट भारत में उत्पन्न होता था.

                      ठोस अपशिष्ट का प्रभाव 

                      (Effects of Solid Waste)
                      • खतरनाक अपशिष्ट के नजदीक रहने वालों को मधुमेह की बीमारी हो जाती है.
                      • जन्म के समय बच्चों का वजन कम होना, घबराहट, मस्तिष्क सम्बन्धी विकार तथा पारा, लेड, आर्सेनिक ठोस अपशिष्ट के प्रभाव की देन हैं.
                      • ठोस अपशिष्ट से जानवरों एवं जलीय जीव पर भी प्रभाव पड़ता है.

                      ठोस अपशिष्ट समस्या के कारक

                      ठोस अपशिष्ट समस्या के कारक निम्नलिखित हैं - 
                      जीवनयापन में परिवर्तन, जनसंख्या वृद्धि नगरीकरण, अपर्याप्त सरकारी नीतियाँ, सार्वजनिक उदासीनता आदि.

                      ठोस अपशिष्ट का उपचार या प्रबन्धन

                      ठोस अपशिष्ट का उपचार या प्रबन्धन पुनर्चक्रण, कम्पोसटिंग, दहन, दबाना, वर्मीकल्चर, विखण्डन, ताप अपघटन, समुद्री डंपिंग आदि माध्यमों से किया जा सकता है.
                      • ताप अपघटन विधि द्वारा कार्बनिक पदार्थों से के चारकोल, एसिटोन, टार एवं ईंधन आदि मिलता है.
                      • दहन प्रक्रिया द्वारा ठोस अपशिष्ट को 1000°C पर जलाया जाता है तो वह राख, गैस व ऊर्जा में परिवर्तित हो जाता है। 
                      • नगरीय क्षेत्रों में गड्ढा बनाकर ठोस अपशिष्ट को लाकर डंप किया जाता है। जब गड्ढा पूरा भर जाता है तो उसे मिट्टी से भर दिया जाता है।
                      • वर्मीकल्चर के अन्तर्गत अपशिष्ट पदार्थों में केंचुए को छोड़ा जाता है वह उपस्थित पदार्थों को तोड़कर एवं उसमें मलोत्सर्ग द्वारा पोषक तत्वों से समृद्ध करता है।

                      ताप प्रदूषण (Thermal Pollution)

                      जब किसी जल निकाय अथवा वायुमण्डल की वायु का तापमान घटता या बढ़ता है तो उससे उत्पन्न : होने वाला प्रदूषण ताप प्रदूषण कहलाता है। इसका प्रभाव जल, थल और वायु तीनों पर पड़ता है.
                      • तापमान में मात्र 1°C की कमी या वृद्धि जलीय जीवों के लिए घातक हो जाती है. 
                      • वर्तमान काल में ग्लोबल वार्मिंग तापीय प्रदूषण का प्रमुख उदाहरण है.
                      • तापीय प्रदूषण स्थानीय, प्रादेशिक या वैश्विक तीनों ही स्तर पर हो सकता है.

                      ताप प्रदूषण के कारक

                      (Factors of Thermal Pollution)
                      ताप प्रदूषण के प्रमुख कारक हैं - औद्योगिक अपशिष्ट, ज्वालामुखी, जंगल की आग, परमाणु ऊर्जा संयंत्र, वनोन्मूलन, कोयला आधारित विद्युत संयंत्र, मृदा अपरदन आदि.
                      • ताप प्रदूषण के मानवीय कारकों के अन्तर्गत संसाधन मिलें, रसायन संयंत्र, पेपर मिलें, वनोन्मूलन, धातु प्रगलन, वाष्प जनरेटरों से गर्म जल को बाहर छोड़ा जाना, पेट्रोलियम, शोध कारखाने आदि को ठंडा करने के लिए जल का प्रयोग करते हैं तो उससे ताप प्रदूषण उत्पन्न होता है.

                      ताप प्रदूषण के प्रभाव

                      (Effects of Thermal Pollution)
                      • ताप प्रदूषण से जलीय निकाय में जीवों के स्वरूप एवं उनकी क्रियाओं पर बुरा प्रभाव पड़ता है. झीलों में यदि सामान्य तापमान 1.5°C से अधिक होता है तो मछलियाँ उस स्थान से दूर चली जाती हैं। लेकिन नदियों में मछलियाँ 3°C की तापमान वृद्धि सहन कर लेती हैं.
                      • जल जीवों में प्रजनन एक निश्चित तापमान पर होता है. ताप वृद्धि के कारण अंडे नष्ट हो जाते हैं.
                      • उच्च तापमान के कारण नील हरित शैवाल तेज गति से बढ़ती है जो जलीय खाद्य-श्रृंखला का संतुलन बिगाड़ देती है.

                      ताप प्रदूषण नियंत्रण के उपाय

                      तापीय प्रदूषण को रोकने के निम्नलिखित उपाय हैं. -
                      • तटीय क्षेत्रों में वृक्षों का रोपण करना
                      • मृदा कटाव को रोकना
                      • कृत्रिम तालाब का निर्माण 
                      • नाभिकीय संयंत्रों पर नियंत्रण
                      • सह-उत्पादन
                      • कूलिंग टावर
                      • कृत्रिम झील का निर्माण.

                      ई- अपशिष्ट प्रदूषण (E-Waste Pollution)

                      जब इलेक्ट्रिकल और इलेक्ट्रॉनिक उपकरण किसी लायक नहीं रह जाते हैं तो उन्हें ई-अपशिष्ट प्रदूषण कहा जाता है. इसमें सीसा, कैडमियम एवं बोरिलियम जैसे खतरनाक रसायन पाये जाते हैं जो मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होते हैं.
                      ई-अपशिष्ट के स्त्रोत निम्नलिखित हैं - ई-अपशिष्ट के स्रोत मोबाइल फोन, कम्प्यूटर, रेडियो, टेलीविजन, वाशिंग मशीन, पंखा, जिरॉक्स मशीन, सीडी प्लेयर, स्कैनर, फैक्स मशीन, ट्यूबलाइट आदि.

                      भारत में ई-अपशिष्ट (E-waste in India)

                      • भारत और चीन विश्व के सबसे बड़े ई- अपशिष्ट देशों में सम्मिलित हैं. 
                      • आधुनिक जीवन शैली, जनसंख्या वृद्धि, लोगों की खरीद शक्ति के कारण भारत ई- अपशिष्ट डंपिंग का मुख्य सेंटर बनता जा रहा है.
                      • भारत में ई-अपशिष्ट उत्पादन में महाराष्ट्र का प्रथम स्थान है.
                      • तमिलनाडु द्वितीय, आन्ध्र प्रदेश तृतीय तथा उत्तर प्रदेश चौथे स्थान पर है.
                      • भारत के 10 राज्य कुल ई-अपशिष्ट का लगभग 70 प्रतिशत अपशिष्ट उत्पन्न करते हैं. बम्बई, दिल्ली तथा बेंगलुरु सबसे अधिक ई-अपशिष्ट उत्पन्न करते हैं.
                      • भारत 90 प्रतिशत मोबाइल फोन आयात करता है जिससे 10 प्रतिशत ई-अपशिष्ट प्रत्येक वर्ष उत्पन्न होता है.
                      • भारत व चीन को यू. एस. ए., यूरोपीय देश और जापान अपना ई- अपशिष्ट भेज रहा है. 
                      • भारत में ई-अपशिष्ट के प्रमुख स्रोत सरकारी एवं प्राइवेट क्षेत्र हैं.
                      • भारत में सरकारी तथा प्राइवेट औद्योगिक क्षेत्रों का सम्पूर्ण ई-अपशिष्ट उत्पादन का योगदान 70 प्रतिशत है.

                      ई-अपशिष्ट का प्रभाव (Effects of E-waste)

                      ई- अपशिष्ट मानव स्वास्थ्य, पर्यावरण और जीव जंतुओं को प्रभावित करता है-

                      पदार्थमानव के प्रभावित अंग
                      पाराकिडनी, केंद्रीय तंत्रिका तंत्र, मिनीमाता रोग
                      सेलेनियमबालों की क्षति, नाखूनों का भंगुर होना
                      बेरीलियमकैंसर, श्वसन समस्या, सीने में दर्द
                      आर्सेनिकत्वचा तथा फेफड़ों का कैंसर
                      सीसादिमाग व किडनी
                      कैडमियमकिडनी, अस्थि को कमजोर करना
                      • ई-अपशिष्ट का पर्यावरण पर प्रभाव पड़ता है जिससे जलीय पारितंत्र, वायु, मृदा का अम्लीकरण और भूमिगत जल प्रभावित होते हैं.
                      • पालीक्लोरीनेटेड बाई फिनाइल्स ई- अपशिष्ट से तंत्रिका तंत्र प्रतिरक्षा तंत्र और प्रजनन तंत्र को नुकसान पहुँचता है.
                      • ट्राईक्लो इथिलीन ई अपशिष्ट लीवर, किडनी और प्रतिरक्षा तंत्र को प्रभावित करता है.

                      ई-परिसर (E-Complex)

                      इस इकाई को भारत में सितम्बर 2005 में शुरू किया गया यह प्रथम वैज्ञानिक ई-अपशिष्ट पुनर्चक्रण इकाई है जो इलेक्ट्रिकल एवं इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के अपशिष्टों को पुनर्चक्रण कर उपयोगी बना देता है.

                      ई-कचरा प्रबंधन नियम 2016

                      • यह नियम पर्यावरण, वन तथा जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा अधिसूचित किया गया, जिसके अनुसार ई-कचरा नियमों में कम्पैक्ट फ्लोरेसेंट लैम्प तथा पारा वाले अन्य लैम्प और उपकरण सम्मिलित किये गये हैं.
                      • केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड सम्पूर्ण भारत में एक प्राधिकार देगा. प्रत्येक राज्य की ई-कचरा में शामिल श्रमिकों की देखभाल की जिम्मेदारी होगी.
                      • ई-कचरा को पुनर्चक्रण द्वारा पुनः उपयोगी बनाया जाता है.
                      • इस नियम का उल्लंघन करने वाला दण्ड का भागीदार होगा.

                      प्लास्टिक प्रदूषण (Plastic Pollution)

                      प्लास्टिक प्राकृतिक रूप से विघटित न होने वाला बहुलक है, जिसकी बनी वस्तुएँ बेकार होने की दशा में जमीन या जल में इकट्ठा होकर लास्टिक प्रदूषण पैदा करती हैं.
                      • प्लास्टिक प्रदूषण से मानवों एवं वन्य जन्तुओं के जीवन पर खतरनाक प्रभाव पड़ता है. 
                      • प्लास्टिक को मुख्यतः दो भागों में बाँटा गया है 
                        • 1. थर्मोप्लास्टिक
                        • 2. थर्मोसेटिंग प्लास्टिक.
                      • थर्मोप्लास्टिक के अंतर्गत पॉली थाइलिन, पॉली विनाइल क्लोराइड, पॉली प्रापीलीन व पॉलीस्टीरीन आते हैं.
                      • थर्मोसेटिंग के अंतर्गत बेकलाइट, मेलामाइन, पॉलिएस्टर तथा एपाक्सी रेसिन आते हैं.
                      • थर्मोप्लास्टिक गर्म किये जाने पर मुलायम हो जाते हैं तथा ठंडा होने की अवस्था में भंडारण योग्य हो जाते हैं. थर्मोसेटिंग प्लास्टिक को गर्म करके उनकी मूल अवस्था में वापस नहीं लाया जा सकता है.
                      • केवल थर्मोप्लास्टिक का ही रिसाइक्लिंग संभव है. 

                      प्लास्टिक प्रदूषण का प्रभाव

                      (Effects of Plastic Pollution)
                      • जमीन में प्लास्टिक की उपस्थिति खनिज, जल एवं पोषक तत्वों के अवशोषण में बाधक बनकर उसकी उर्वरा शक्ति को घटाती है.
                      • प्लास्टिक उद्योग में कार्यरत श्रमिकों के स्वास्थ्य पर प्लास्टिक का बुरा प्रभाव पड़ता है। यह श्रमिक के फेफड़े, किडनी तथा स्नायुतंत्र को प्रभावित करता है.
                      • प्लास्टिक प्राकृतिक रूप से विघटित होने वाला पदार्थ नहीं है. एक बार निर्मित हो जाने के पश्चात् यह प्रकृति में स्थायी तौर पर बना रहता है.
                      • घुलनशील और प्राकृतिक रूप से विघटित न होने के कारण प्लास्टिक नालों एवं नदियों में जमा हो जाता है जिससे जलभराव हो जाता है.
                      • प्लास्टिक के कचरे को समुद्र में फेंके जाने के कारण सामुद्रिक पारिस्थितिकी को हानि पहुँचती है.
                      • प्लास्टिक फेंके जाने के कारण जब सीवर जाम हो जाता है तो रुके हुए पानी में मच्छरों के पैदा होने से मच्छरजनित रोग मलेरिया, डेंगू आदि फैलने प्रारम्भ हो जाते हैं.
                      • प्लास्टिक को जलाये जाने पर विषैली कार्बन मोनो-ऑक्साइड, हाइड्रोजन सायनाइड, डाई ऑक्सिन गैस निकलती है जो साँस सम्बन्धी रोगों को पैदा करती है.
                      • पॉलीथीन को खाने पर गायें एवं अन्य पशुओं मृत्यु हो जाती है.
                      • प्लास्टिक में अंतःस्रावी समस्या पैदा करने वाले रसायन उपस्थित रहते हैं.
                      • जमीन में गाड़ने के बावजूद भी प्लास्टिक मिट्टी को प्रदूषित करती है. 
                      • अभी तक पर्यावरण में ऐसे सूक्ष्म जीवाणु नहीं ढूँढे गये हैं जो प्लास्टिक को खा सकें.
                      • प्लास्टिक मलवे का प्रभाव समुद्री पारितंत्र पर पड़ता है.

                      प्लास्टिक कचरा प्रबन्धन नियम : 2016

                      • भारत सरकार ने 18 मार्च, 2016 को प्लास्टिक कचरा (प्रबन्धन एवं संचालन) नियम 2011 के स्थान पर प्लास्टिक कचरा प्रबन्धन नियम 2016 अधिसूचित किया.
                      • इस नियम के तहत प्लास्टिक कैरी बैग की न्यूनतम मोटाई को 40 माइक्रॉन से बढ़ाकर 50 माइक्रॉन करना. नगरपालिका क्षेत्र को बढ़ाकर ग्रामीण क्षेत्र तक ले जाना।.

                      जैव प्रदूषण (Bio Pollution)

                      रोग उत्पन्न करने वाले सूक्ष्म जीवों से संक्रमित कर मनुष्यों, फसलों, फलदायी वृक्षों व सब्जियों का विनाश करना जैव-प्रदूषण है.
                      • यूरोप में सन् 1846 में जीनोम एकरूपता के कारण आलू की सारी फसलें नष्ट हो गयीं जिसके परिणामस्वरूप 10 लाख लोगों की मौत हो गयी और 15 लाख लोग दूसरी जगह चले गये. इसका मुख्य कारण यह था कि इसमें एक ही प्रकार का जीन था. सबका संक्रमण एक ही प्रकार के रोगाणुओं से हुआ. 
                      • जैव प्रदूषण को जैव हथियार के रूप में प्रयोग किया जा रहा है, इसको जैव आतंक का दर्जा दिया गया है.
                      • चेचक, प्लेग, खसरा, एन्थ्राक्स, रक्त स्रावी ज्वर इत्यादि के रोगाणुओं का प्रयोग जैव हथियार की तरह किया जा रहा है.
                      • सन् 1984 में फ्लोरिडा में जीनीय एकरूपता के कारण खट्टे फलों की सारी फसलें एक प्रकार के बैक्टीरिया से संक्रमित होकर नष्ट हो गयी थीं.
                      • इस जैव प्रदूषण को दूर करने के लिए एक लाख अस्सी हजार पेड़ों को मजबूरन काटना पड़ा था.
                      • जैव प्रदूषण के जरिए फैलाये जा सकने वाले प्राण घातक रोगों में एंथ्रेक्स, बोटुलिज्म, - प्लेग, चेचक, टुयुलरेमिया एवं विषाणुवी रक्तस्रावी ज्वर मुख्य हैं.
                      • 2001 में एक आतंकवादी संगठन ने अमेरिका, भारत और पाकिस्तान आदि राष्ट्रों में एंथ्रेक्स के बैक्टीरिया से प्रदूषित लिफाफे लोगों के भेजने लगे जिससे अमेरिका में कई लोग मर गये.
                      • जैव प्रदूषण के आतंक से निपटने के लिए केंद्र सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय ने सन् 2000 में राष्ट्रीय डिजीज सर्विलेन्स प्रोग्राम आरम्भ किया.
                      • 10 अप्रैल, 1972 को सभी प्रकार के हथियारों को निषिद्ध करने के लिए जैव हथियार सभा के प्रस्ताव पर हस्ताक्षर किया गया। जो 1975 से प्रभावी हुआ.

                      जैव उपचार (Bio Remediation)

                      • सूक्ष्म जीव, जीवाणु, कवक आदि का प्रयोग कर पर्यावरण को कम विषाक्त पदार्थों में अपघटित करना जैव उपचार कहा जाता है.
                      • पर्यावरणीय प्रदूषकों को कम करने के लिए जीवित सूक्ष्म जीवों का प्रयोग जैव उपचार कहलाता है.
                      • जैवोपचार की तकनीकों को दो वर्गों में बाँटा गया है. - 
                        • 1. जैव उपचार स्थल के आधार पर 
                        • 2. आनुवांशिक इंजीनियरिंग के आधार पर 
                      1. जैव उपचार स्थल के आधार पर जैव उपचार - 
                      स्वस्थाने जैवोपचार - बायोवेटिंग, बायोस्टिमुलेशन, जैव छिड़काव, जैव संवर्द्धन.
                      बाह्य स्थाने जैवोपचार - लैडफार्मिंग, बायोपाइल्स, बायोरिएक्टर.

                      2. आनुवांशिक इंजीनियरिंग के आधार पर जैव उपचार - फाइटोरीमेडिएशन, फाइटोस्टेबिलाइजेन, फाइटोट्रांसफॉर्मेशन, फाइटोवोलेटिलाइजेशन, राइजोडिग्रिडेशन, राइजोफिल्ट्रेशन, माइक्रोरिमिडिएशन, ऑयल जैपर तकनीक.

                      Points to Remember..!
                        • पाँच बैक्टीरियों के समूह को दिया गया नाम जो कच्चे तेल एवं तैलीय पंक को तीव्रता से अवक्रमित कर देते हैं यह है? - ऑयल जैपर तकनीक
                        • प्लास्टिक का सर्वोत्तम विकल्प है - प्राकृतिक रूप से विघटित होने वाले शैले 
                        • किस प्लास्टिक पर जल एवं तेल नहीं चिपकता है? - टेफ्लान
                        • अग्निरोधक प्लास्टिक होती है - मेलामाइन
                        • भारत में कितने प्रतिशत वेस्ट प्रतिवर्ष मोबाइल से बढ़ रहा है? - 10 प्रतिशत
                        • भारत में ई-वेस्ट उत्पादन में किस राज्य का प्रथम स्थान है? - महाराष्ट्र

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