सामाजिक अध्ययन शिक्षण का अर्थ, क्षेत्र, महत्त्व एवं स्वरूप तथा प्राकृतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक वातावरण में अन्तः सम्बन्ध | Teaching of Social Studies
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। समाज में ही उसका जन्म होता है और समाज में ही उसकी मृत्यु होती है। ऐसी दशा में उसके लिए आवश्यक है कि वह समाज में अपने ...
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Teaching of Social Studies |
सामाजिक अध्ययन का अर्थ Meaning of Social Study
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। समाज में ही उसका जन्म होता है और समाज में ही उसकी मृत्यु होती है। ऐसी दशा में उसके लिए आवश्यक है कि वह समाज में अपने को ठीक प्रकार से व्यवस्थित करे। यदि व्यक्ति अपने को समाज में ठीक प्रकार से व्यवस्थित कर लेता है तो यह उसकी सफलता है परन्तु समाज में अपने को स्थापित करने की योग्यता प्रत्येक व्यक्ति में नहीं होती। इस योग्यता को उत्पन्न करने में 'सामाजिक अध्ययन' एक विषय के रूप में विशेष रूप से सहायक होता है।
मानव द्वारा अर्जित ज्ञान का वर्गीकरण अनेक प्रकार से किया जाता है परन्तु सुविधा की दृष्टि से मानव ज्ञान को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है
प्राकृतिक विज्ञान
प्राकृतिक विज्ञानों के माध्यम से सृष्टि को दृष्टिगत रखते हुए प्राकृतिक घटनाओं का अध्ययन किया जाता है। ये विज्ञान दो भागों में विभाजित किया जा सकता है - भौतिक विज्ञान तथा जीव विज्ञान। भौतिक विज्ञान के अन्तर्गत भौतिक शास्त्र, रसायन शास्त्र आते हैं तथा जीव-विज्ञान के अन्तर्गत जन्तु विज्ञान तथा वनस्पति विज्ञान आते हैं।
सामाजिक विज्ञान
सामाजिक विज्ञान में वे विषय आते हैं, जिनका सम्बन्ध मानव समाज के उद्गम और विकास से है। इसके माध्यम से मानव के जीवन और उसके विभिन्न सामाजिक क्रिया-कलापों का विस्तार से अध्ययन किया जाता है। सामाजिक विज्ञान के अन्तर्गत निम्नलिखित विषयों का अध्ययन किया जाता है-इतिहास, नागरिकशास्त्र, समाजशास्त्र, अर्थशास्त्र, भूगोल, मनोविज्ञान तथा आचारशास्त्र आदि।
उपर्युक्त वर्गीकरण से स्पष्ट हो जाता है कि प्राकृतिक विज्ञान और सामाजिक विज्ञान में पर्याप्त अन्तर है। यदि एक भौतिक पदार्थों से सम्बन्धित है तो दूसरा मानव जीवन से सम्बन्धित् परन्तु यदि हम ध्यानपूर्वक देखें तो ज्ञात होगा कि दोनों का ही मानव जीवन के कल्याण में विशेष योगदान रहा है। भौतिकशास्त्र ने यदि बिजली, भाप-शक्ति, अणु-शक्ति आदि के आविष्कार किये हैं तो रसायनशास्त्र ने विभिन्न रोगों के उन्मूलन में सहायता दी है।
इस प्रकार सामाजिक अध्ययन के विषय मानव जीवन की विभिन्न समस्याओं और पशुओं पर प्रकाश डालते हैं और सामाजिक पद्धतियों को व्यवस्थित करने में सहायक होते हैं।
सामाजिक अध्ययन की परिभाषाएँ Definitions of Social Study
सामाजिक अध्ययन की परिभाषाएँ निम्नलिखित प्रकार हैं
"सामाजिक अध्ययन नामक पद उन विद्यालयी विषयों की ओर संकेत देता है, जो मानवीय सम्बन्धों का विवेचन करते हैं। " - ई. वी. वेस्ले
"सामाजिक अध्ययन लोगों तथा सामाजिक एवं भौतिक वातावरण के प्रति उनको पारस्परिक क्रिया से सम्बन्धित है।" - राष्ट्रीय शैक्षणिक अनुसन्धान एवं प्रशिक्षण परिषद्
"इतिहास, भूगोल, अर्थशास्त्र तथा नागरिकशास्त्र आदि को एक पूर्ण इकाई के रूप में देखना चाहिए। इस एकीकृत स्वरूप की विषय-सामग्री ऐसी हो, जो छात्रों को सामाजिक वातावरण में व्यवस्थित कर सके।" - माध्यमिक शिक्षा आयोग
सामाजिक अध्ययन की नवीन संकल्पना New Concept of Social Study
सामाजिक अध्ययन की नवीन संकल्पना को निम्नलिखित तथ्यों द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है
सामाजिक सम्बन्धों को समझाने और पहचानने में सहायक
सामाजिक अध्ययन के इस अर्थ को स्पष्ट करते हुए भुवनेश्वर प्रसाद लिखते हैं, "यह एक ऐसा ज्ञान क्षेत्र उपस्थित करता है, जिसके द्वारा बालकों को सामाजिक वातावरण, सामाजिक अवस्थाएँ, सामाजिक नियम, कानून, रीति-रिवाज, नीतियाँ, चाल तथा व्यवहार सभी स्पष्ट हो जाते हैं। इस ज्ञान के प्रकाश में बालक उन सम्बन्धों को पहचानने में समर्थ होता है, जिससे मनुष्य अपने समाज के साथ बँधा हुआ रहता है। "
सामाजिक तथा भौतिक वातावरण का अध्ययन
सामाजिक अध्ययन विज्ञान का विषय है, जिसमें सामाजिक तथा भौतिक वातावरण की विस्तार से विवेचना की जाती है। 'टीचिंग सोशल स्टडीज' नामक पत्रिका के अनुसार, “सामाजिक अध्ययन लोगों तथा सामाजिक एवं भौतिक वातावरण के प्रति पारस्परिक क्रिया से सम्बन्धित है।"
मानवीय सम्बन्धों का अध्ययन
सामाजिक अध्ययन उस विषय का नाम है, जिसमें मानवीय सम्बन्धों पर प्रकाश डाला जाता है। यह ज्ञान के उस क्षेत्र का नाम है, जिसमें मानवीय सम्बन्ध एवं उनके स्पष्टीकरण के लिए विभिन्न वातावरणों का अध्ययन किया जाता है।
ज्ञान के क्षेत्र के रूप में सामाजिक अध्ययन
ज्ञान के क्षेत्र के रूप में सामाजिक अध्ययन केवल विषय मात्र नहीं है वरन् यह ज्ञान का वह क्षेत्र है, जिसका अध्ययन कर छात्र अपने अन्दर उत्तम आदतों, वांछित मूल्यों तथा नागरिकता के गुणों का विकास करता है।
सामाजिक अध्ययन छात्रों के सम्मुख वह विषय-सामग्री प्रस्तुत करता है, जिससे छात्रों को विश्व की विभिन्न समस्याओं का ज्ञान सरल और बोधगम्य रूप में प्राप्त हो जाता है।
शिक्षा का नवीन दृष्टिकोण
सामाजिक अध्ययन केवल तथ्यों तथा सूचनाओं को प्रस्तुत करने वाला विषय नहीं है वरन् शिक्षा के नवीन दृष्टिकोण का एक अंश है, जैसा कि फोरेस्टर ने एक स्थान पर लिखा है- "सामाजिक अध्ययन शिक्षा के नवीन दृष्टिकोण का एक भाग है, जिसका उद्देश्य यथार्थ सूचनाओं को संग्रहीत करने की अपेक्षा मानदण्डों, अभिवृत्तियों, आदर्शों और रुचियों का सृजन करना है।"
सामाजिक अध्ययन का क्षेत्र Scope of Social Study
सामाजिक विज्ञान के क्षेत्र में संक्षिप्त रूप से कोई बात नहीं कही जा सकती क्योंकि इसका क्षेत्र पर्याप्त व्यापक है।
हम कह सकते हैं कि सामाजिक अध्ययन व्यक्ति की सामाजिक सम्पूर्ण प्रक्रियाओं के विषय का क्षेत्र है। सामाजिक अध्ययन के क्षेत्र को सुविधा की दृष्टि से निम्नलिखित भागों में विभाजित किया जा सकता है
- नागरिकता की शिक्षा।
- मानवीय सम्बन्धों का अध्ययन।
- वर्तमान घटनाएँ।
- सामाजिक सम्बन्धों का अध्ययन।
- सामाजिक और भौतिक वातावरण के पारस्परिक सम्बन्धों का अध्ययन।
- ललित कलाओं और प्राकृतिक विज्ञानों का ज्ञान।
- अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध।
- विश्व की प्रमुख समस्याओं का अध्ययन।
सामाजिक अध्ययन का महत्त्व Importance of Social Study
स्वतन्त्रता से पूर्व शिक्षा पूर्णतया तथा सूचनात्मक थी । बालकों को शिक्षा प्रदान करने का प्रमुख उद्देश्य केवल क्लर्क उत्पन्न करना था। शिक्षा को जीवन की सामाजिक तथा सांस्कृतिक आवश्यकताओं से परे रखा जाता था । अन्य शब्दों में, शिक्षा मूल रूप से जीविकोपार्जन के उद्देश्यों से प्रभावित थी। परिणामस्वरूप केवल भाषा, गणित तथा भौतिक विज्ञान को पाठ्यक्रम में स्थान दिया जाता था। सामाजिक विषयों की उपेक्षा की जाती थो क्योंकि उनका कोई व्यावसायिक महत्त्व नहीं था।
आगे चलकर भूगोल, इतिहास तथा नागरिक शास्त्र को भी पाठ्यक्रम में स्थानं दिया जाने लगा परन्तु इन विषयों को पाठ्यक्रम में स्थान देने का मूल उद्देश्य सांस्कृतिक था, सामाजिक नहीं। शिक्षा में सामाजिक उद्देश्यों की अवहेलना करने का प्रमुख कारण था, समाज के स्वरूप का जटिलताओं से रहित होना। प्राचीन काल में व्यक्ति और समाज के सम्बन्ध पर्याप्त सरल और स्पष्ट थे। अतः सामाजिक विज्ञान की आवश्यकता पर शिक्षाविदों का ध्यान ही नहीं गया परन्तु अब वर्तमान समाज पर्याप्त जटिल हो गया है।
अतः व्यक्ति और समाज के सम्बन्धों में पर्याप्त जटिलता आ गयी है। इस कारण सामाजिक अध्ययन की आवश्यकता पर बल दिया जाने लगा है।
स्वतन्त्र भारत में सामाजिक अध्ययन की आवश्यकता
Need of Social Study in Independent India
स्वतन्त्रता के पश्चात् भारतीय समाज में अनेक क्रान्तिकारी परिवर्तन हो चुके हैं। इन परिवर्तनों के कारण ही सामाजिक विज्ञान को विशेष रूप से महत्त्व दिया जाने लगा है। प्रमुख परिवर्तन निम्नलिखित हैं
- प्रजातन्त्रात्मक शासन की व्यवस्था की स्थापना।
- समाजवादी शासन व्यवस्था का लक्ष्य।
- कल्याणकारी राज्य की स्थापना।
- सामुदायिक योजनाओं को व्यावहारिक रूप देने की।
- जनतन्त्रात्मक विकेन्द्रीकरण की स्थापना।
- कृषि क्षेत्र में उत्पन्न होने वाली समस्याएँ।
उपर्युक्त परिवर्तन को दृष्टि में रखकर ही शिक्षाशास्त्रियों ने पाठ्यक्रम में सामाजिक में अध्ययन को रखने के लिए बल दिया है। स्वतन्त्रता के पश्चात् भारत में प्रजातन्त्रात्मक प्रणाली को अपनाया गया है। प्रजातन्त्र की सफलता के लिए यह आवश्यक है कि शिक्षा ऐसी हो जो उत्तम नागरिकों का निर्माण कर सके। सामाजिक अध्ययन उत्तम नागरिकों के निर्माण में विशेष रूप से सहायक होता है।
शिक्षा में सामाजिक अध्ययन का महत्त्व
Importance of Social Study in Education
शिक्षा में सामाजिक अध्ययन का महत्त्व निम्नलिखित प्रकार है
- यह विषय छात्रों के मानसिक विकास में विशेष रूप से सहायक होता है।
- इसके द्वारा छात्रों को अधिकारों तथा कर्त्तव्यों का समुचित ज्ञान कराया जा सकता है।
- यह छात्रों के सामाजिक चरित्र के विकास में योग देता है। सहयोग, प्रेम, सहकारिता जैसे गुणों का विकास इसके अध्ययन द्वारा ही होता है।
- यह विषय छात्रों के उत्तरदायित्त्व को दिशा प्रदान करता है।
- सामाजिक अध्ययन में विषयों को समन्वित करके पढ़ाया जाता है, अतः छात्र ज्ञान की बखण्डता का बोध करते हैं।
- यह विषय छात्रों को सामाजिक वातावरण से अनुकूलन करने की शिक्षा देता है।
- सामाजिक अध्ययन द्वारा छात्र देश की विभिन्न समस्याओं का ज्ञान प्राप्त करते हैं।
- भारतीय संस्कृति का पूर्ण ज्ञान प्राप्त करने के लिए यह विषय परम आवश्यक है।
- समाज की विभिन्न संस्थाओं, समुदायों आदि का भी यह ज्ञान कराने में विशेष सहायक होता है।
- इसके अध्ययन से देश-प्रेम और विश्व बन्धुत्व की भावनाओं का विकास होता है।
सामाजिक अध्ययन का स्वरूप Form of Social Study
सामाजिक विज्ञान शब्द को अनेक नामों से पुकारते हैं। सामान्य रूप से इस विषय में उन सभी सामाजिक विज्ञानों की सामग्री आती है, जो सामाजिक योग्यता प्रदान करने में सहायक हो। सभी सामाजिक विज्ञान सामाजिक कुशलता के लिए सहायक होते हैं। इसलिए सामाजिक अध्ययन में इतिहास, राजनीतिशास्त्र, भूगोल, अर्थशास्त्र और समाजशास्त्र से सम्बन्धित विषय वस्तु को लिया जाता है। इन विषयों में से केवल वे ही विषय एवं सामग्री ली जाती है, जो बालकों के सामाजिक विकास के लिए लाभदायक होती है।
सामाजिक अध्ययन के बारे में एक गलत धारणा यह है कि यह विषय ऐसा है जिसमें कुछ इतिहास से, कुछ भूगोल से, कुछ नागरिक शास्त्र से और कुछ अर्थशास्त्र से लिये हुए भाग होते हैं । इसमें इन विषयों को इस प्रकार से समन्वित किया जाता है कि ये विभिन्न विषय इसमें इस प्रकार से घुलमिल जाते हैं कि यह एक नया विषय बन जाता है।
प्राकृतिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक वातावरण
Natural, Social and Cultural Environment
मानव की असंख्य आवश्यकताएँ होती हैं और उसके स्वयं के हित होते हैं। मानव समाज के कुछ सामान्य तथा कुछ विशिष्ट हित होते हैं। कुछ आवश्यकताएँ भी सामान्य हितों की होती हैं, जिनका अस्तित्त्व समाज के लिये आवश्यक होता है। इन आवश्यकताओं अथवा हितों की मनमाने ढंग से पूर्ति की जाय तो सारी सामाजिक व्यवस्था चरमरा जाती है। इस प्रकार समाज इन आवश्यकताओं एवं हितों की पूर्ति हेतु कुछ साधन तथा कार्यविधियाँ निर्धारित करता है, जिन्हें सभी लोग मान्य करते हैं।
समाज के सभी लोग इन्हीं साधनों एवं कार्य-प्रणालियों को अपनी आवश्यकता की पूर्ति हेतु अपनाते हैं। इस प्रकार की कार्य-प्रणालियाँ एवं साधन पीढी दर पीढ़ी चलते रहते हैं। इन्हीं सर्वमान्य विधियों या कार्य प्रणालियों को ही संस्था कहा जाता है। इन संस्थाओं को इस प्रकार विभाजित किया जा सकता है
- प्राकृतिक वातावरण।
- सामाजिक वातावरण।
- सांस्कृतिक वातावरण।
प्राकृतिक वातावरण
प्राकृतिक संस्थाओं के अन्तर्गत समस्त भौतिक शक्तियों एवं तत्त्वों को सम्मिलित किया जाता है। इन सभी का प्रभाव मानव जीवन के क्रिया-कलापों पर पड़ता रहता है। इसके अतिरिक्त पृथ्वी की गतियाँ, सूर्यताप, गुरुत्वाकर्षण शक्ति, ज्वालामुखी क्रियाएँ, भूचाल की गति तथा सम्बन्धित दृश्यों को भी इन संस्थाओं में सम्मिलित किया जा सकता है। ये समस्त तत्त्व भूतल पर नवीन क्रियाओं को जन्म देते हैं। इस वातावरण के माध्यम से भौतिक शक्तियों, क्रियाओं (ताप, किरण, अपरदन, जल एवं गति) आदि का मानव जीवन पर प्रभाव पड़ता है।
सामाजिक वातावरण
जो वातावरण समाज द्वारा किसी निश्चित उद्देश्य निश्चित किया जाता है, सामाजिक वातावरण कहलाता है; जैसे-ग्राम पंचायत, जिला पंचायत, नगरपालिका, विद्यालय, राज्य एवं मानव को विभिन्न प्रकार की समस्याओं से सम्बन्धित संगठन; जैसे- श्रमिक संगठन आदि ।
सांस्कृतिक वातावरण
“एक सामाजिक संस्था समाज की संरचना है, जोकि मुख्य रूप से उचित सुस्थापित कार्यप्रणालियों के माध्यम से मानव की आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु सुगठित की जाती है।" संस्थाएँ उद्देश्यों को पूर्ण करने हेतु अपनायी गयी कार्यप्रणालियाँ हैं; जैसे- रीति-रिवाज, प्रथा, विवाह, धर्म तथा परिवार आदि।
प्राकृतिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक वातावरण अन्तः सम्बन्ध
Interrelationship between Natural, Social and Cultural Environment
प्राकृतिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक वातावरण प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से सम्बन्धित होता है क्योंकि प्राकृतिक वातावरण के आधार पर ही उस स्थान के रीति-रिवाज एवं सांस्कृतिक परम्पराएँ निर्धारित होती हैं। प्राकृतिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक वातावरण में अन्तःसम्बन्ध पाया जाता है। इस अन्तःसम्बन्ध को निम्नलिखित रूप में अधिक स्पष्ट किया जा सकता है
- प्राकृतिक वातावरण के अनुरूप ही समाज में रहन-सहन एवं वेष-भूषा का स्तर होता है। जैसे - ठण्डे प्रदेशों में जानवरों की खाल को पहनना अशुद्ध नहीं माना जाता है।
- सामाजिक मान्यताएँ एवं परम्पराएँ सांस्कृतिक वातावरण को जन्म देती हैं तथा उस देश का साहित्य भी उन सांस्कृतिक घटनाओं से ओत-प्रोत होता है।
- प्राकृतिक वातावरण के संरक्षण एवं सुरक्षा के लिये समाज द्वारा प्रयत्न किये जाते जो कि सांस्कृतिक रूप से दृष्टिगोचर होते हैं; जैसे - वृक्षों को न काटना एवं नदियों को अपवित्र न करना आदि।
- प्राकृतिक वातावरण को मुक्त एवं स्वाभाविक रूप से संचालित करने के लिये प्रकृति स्वयं अपनी व्यवस्था समाज की परम्पराओं एवं रीतियों के रूप में करती है; जैसे पर्यावरण के प्रदूषित होने पर मानव समुदाय द्वारा पर्यावरण संरक्षण के प्रयास करना।
- प्राकृतिक वातावरण ही हमारे सामाजिक एवं सांस्कृतिक विकास का आधार बनता है; जैसे - बिहार में कोयला उद्योग, जम्मू में शॉल का उद्योग एवं आगरा में चमड़ा उद्योग आदि।
- भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति में प्राकृतिक पर्यावरण की स्पष्ट झलक मिलती है। शान्त एवं एकान्त स्थानों में मुनियों के आश्रमों का पाया जाना, जीवों के प्रति दया का भाव रखना एवं धार्मिक कार्यों का वातावरण शुद्ध करने से सम्बन्धित होना आदि।
- प्राकृतिक संसाधनों की उपलब्धता पर उस क्षेत्र का औद्योगिक विकास होता है। उद्योगों के आधार पर ही सामाजिक एवं सांस्कृतिक विकास होता है; जैसे- उत्तर प्रदेश में खादी वस्त्रों का कार्य गोण्डा, इटावा, अलीगढ़, सण्डीला, बाराबंकी, अकबरपुर, अमरोहा, गोरखपुर एवं पूना में होता है। इस कार्य से वहाँ के समाज का स्तर एवं सांस्कृतिक विकास निर्धारित होता है।
उपरोक्त विवेचन से यह स्पष्ट होता है कि प्राकृतिक वातावरण के आधार पर ही सामाजिक एवं सांस्कृतिक विकास होता है। सांस्कृतिक एवं सामाजिक वातावरण अप्रत्यक्ष रूप से प्राकृतिक वातावरण का शोषण एवं अनुकरण करता है। इससे यह स्पष्ट होता है कि प्राकृतिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक वातावरण में समन्वयवादी दृष्टिकोण पाया जाता है। अतः यह सिद्ध होता है कि उक्त तीनों वातावरण में अन्तःसम्बन्ध की स्थिति पायी जाती है।
सामाजिक अध्ययन के मुख्य अंग
Main Parts of Social Study
सामाजिक अध्ययन व्यक्ति की सामाजिक सम्पूर्ण प्रक्रियाओं के विषय का क्षेत्र है। सामाजिक अध्ययन को ज्ञान प्राप्ति हेतु निम्नलिखित भागों में विभाजित किया जा सकता है- इतिहास, भूगोल, नागरिकशास्त्र तथा अर्थशास्त्र।
इतिहास
इतिहास सामाजिक जीवन का एक आवश्यक अंग है। समाज की रचना में इतिहास का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। इतिहास का जन्म मनुष्य के इस पृथ्वी पर प्रादुर्भाव के समय से ही माना जाता है। भारतीय परम्परा के अनुसार 'इतिहास' ग्रीक शब्द 'हिस्टोरिया' से लिया गया है, जिसका अर्थ है 'वास्तविक अर्थ में क्या घटित हुआ है'? अर्थात् सार्वजनिक घटनाओं का एक क्रमबद्ध लेखा, जिसमें तीन विशेषताएँ स्पष्ट रूप से परिलक्षित होती हैं
- इसमें सार्वजनिक घटनाओं का लेखा रहता है।
- यह घटनाएँ निरन्तर होती रहती हैं।
- इन घटनाओं का वर्णन इस प्रकार से किया जाता है कि सम्पूर्ण घटनाक्रम का चित्र स्पष्ट हो जाता है।
आधुनिक इतिहासकार इतिहास को मानव जीवन के उद्विकास की कहानी मानते हैं। विकास की यह कहानी प्राचीन काल से ही चली आ रही है, जिसके द्वारा मानव सभ्यता के क्रमबद्ध विकास का दिग्दर्शन होता है ।
भूगोल
भूगोल एक अति पुरातन सामाजिक विज्ञान है। इसकी उत्पत्ति का विकास इतिहास मानव चिन्तन से जुड़ा हुआ है। मानव ने जब से चिन्तन करना प्रारम्भ किया तथा अपने परिवेश को समझा उसी समय से भूगोल विषय का प्रादुर्भाव हुआ, लेकिन इस विषय को व्यवस्थित सामाजिक विज्ञान के रूप में स्थापित करने का श्रेय यूनानी विद्वान इराटॉस्थनीज को जाता है। जिन्होंने ईसा से लगभग 200 वर्ष पूर्व सर्वप्रथम 'ज्योग्राफी' शब्द का प्रयोग किया, इसी कारण इन्हें भूगोल का जनक कहा जाता है।भूगोल शब्द हिन्दी भाषा के दो पदों भू + गोल के मिश्रण से बना है, जिसका अर्थ है, पृथ्वी गोल है। यह पृथ्वी के एक विशिष्ट गुण अर्थात् उसके गोलाकार स्वरूप का ज्ञान कराता है। भूगोल का अर्थ पृथ्वी के वर्णन से सम्बन्धित है, अतः यह कहा जा सकता है कि तत्कालीन परिस्थितियों में भूगोल विषय का अध्ययन क्षेत्र मात्र पृथ्वी अथवा पृथ्वी के वर्णन तक ही सीमित था। लेकिन मानव सभ्यता के विकास एवं मानवीय चिन्तन के कारण भूगोल विषय के अध्ययन में व्यापकता आयी।
नागरिकशास्त्र
मानव सभ्यता के विकास की कहानी, वस्तुतः उसकी सामाजिकता के की कहानी है। प्राचीनकाल से लेकर आज तक मानव जाति ने जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में जो प्रगति की है, उसके आधार में उसकी यही सामाजिकता की भावना रही है। प्राचीनकाल में मनुष्य की इसी भावना ने उसे पारिवारिक जीवन व्यतीत करने के लिए प्रेरित किया, उसकी इसी भावना ने समुदाय और राज्य की कल्पना को मूर्त रूप दिया। नागरिकशास्त्र मानव की इसी भावना के साकार रूप की कहानी है।
नागरिकशास्त्र संघर्ष, कलह एवं सामाजिक विषमता को दूर करने की कला है। नागरिकशास्त्र वह विज्ञान है, जो मनुष्यों को आपस में स्नेह, सहयोग और सौहार्द्र से जीवन बिताने की शिक्षा देता है। इसलिए नागरिकशास्त्र को शान्तिशास्त्र एवं सुखमय जीवन की आचार संहिता कहते हैं। वस्तुतः नागरिक शास्त्र सफल सामाजिक जीवन की गीता, बाइबिल या कुरान है।
अर्थशास्त्र
अर्थशास्त्र के अन्तर्गत इस तथ्य का अध्ययन किया जाता है कि मानव सीमित साधनों का मितव्ययिता के साथ प्रयोग करके अनेक वस्तुओं का उत्पादन करता है तथा उनके द्वारा आवश्यकताओं की पूर्ति करता है। इस प्रकार अर्थशास्त्र के निम्नलिखित दो आधार हैं
- साधन, जो सीमित हैं।
- आवश्यकताएँ, जो असीमित हैं।
अर्थशास्त्र में इस तथ्य का अध्ययन किया जाता है कि 'सीमित साधनों का असीमित आवश्यकताओं के साथ किस प्रकार समायोजन किया जाता है। आवश्यकताएँ अनन्त या असीमित होती हैं तथा साधन सीमित होते हैं, साधनों की सीमितता व्यक्तिगत प्रयासों द्वारा और भी बढ़ जाती है क्योंकि प्रत्येक साधन को अनेक प्रयोगों या विकल्पों में प्रयोग किया जा सकता है। साधनों के अन्तर्गत केवल भूमि, श्रम एवं पूँजी ही नहीं बल्कि समय भी आता है।
समय भी एक महत्त्वपूर्ण साधन है और वह भी सीमित है। सीमित साधनों द्वारा उत्पादित वस्तुएँ एवं सेवाएँ भी सीमित होंगी। वस्तुओं एवं सेवाओं द्वारा मनुष्यों की आवश्यकताओं की पूर्ति होती है।
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