जलवायु परिवर्तन और ग्रीन हाउस प्रभाव Climate Change and Green House Effect
अद्यतन विश्व का सर्वाधिक चर्चित और सर्वाधिक प्राथमिकता वाले विषयों में जलवायु परिवर्तन एक प्रमुख स्थान रखता है।
जलवायु परिवर्तन और ग्रीन हाउस प्रभाव
Climate Change & Green House Effectअद्यतन विश्व का सर्वाधिक चर्चित और सर्वाधिक प्राथमिकता वाले विषयों में जलवायु परिवर्तन एक प्रमुख स्थान रखता है। जलवायु एक ऐसा तत्व है जो बहुत सारे तत्वों को समाहित करके बना है और इसीलिए यह प्राकृतिक रूप से सदैव परिवर्तनशील रहता है जलवायु परिवर्तन एक प्राकृतिक संवृत्तिशास्त्र है।
जलवायु किसी क्षेत्र में लम्बे समय के लिए तापमान, आर्द्रता, वायुमण्डलीय दाब, वायु, वर्षा, वायुमण्डलीय कण तथा अन्य मौसम विज्ञान सम्बन्धी चरों के विभिन्नता के औसत प्रतिरूप का मापदण्ड है वर्तमान पृथ्वी की व्यवस्था वह चाहे जीव-जंतुओं की व्यवस्था हो या मानवीय व्यवस्था हो जलीय, स्थलीय और वानस्पतिक सभी जलवायु का ही परिणाम हैं, और अगर जलवायुवीय तंत्रों में परिवर्तन होता है तो सम्पूर्ण व्यवस्था में परिवर्तन होगा।
वर्तमान व्यवस्था उतनी संवेदनशील है कि अगर वैश्विक तापमान में 1-2 सेंटीग्रेड परिवर्तन हुआ तो समूचे पृथ्वी के सम्पूर्ण जैव और अजैव जगत का विनाश ही हो जायेगा। सामान्य तौर पर ये आम धारणा होती है कि जलवायु परिवर्तन त्वरित होता है लेकिन ये सदा सत्य नहीं। जुरैसिक युग में अचानक जलवायु परिवर्तन के प्रमाण मिले हैं जिससे जलवायु में में एकाएक बदलाव से डायनासोर का सामूहिक विलोपन हुआ है।
पिछली सदी का अन्तिम दशक 1991-2000 विश्व के लिखित तापमान के इतिहास का सर्वाधिक गर्म दशक रहा है तथा वर्ष 2005 सर्वाधिक गर्म वर्ष रहा है। आज मानवीय क्रियाओं से वन विनाश, ग्रीन हाउस गैसें, तीव्र विकास, ओजोन क्षय आदि के परिणामस्वरूप संभावित जलवायु परिवर्तन की चिन्ता एक बड़ी समस्या बनी हुई है। मानवीय क्रियाओं से वैश्विक तापमान में वृद्धि होगी तो जलवायु में स्थानीय, प्रादेशिक और वैश्विक परिवर्तन होगा जिसका परिणाम भयावह होगा।
वैश्विक तापमान के कारण हिमानी एवं हिमकैपों के पिघलने की दर में वृद्धि होगी जिससे सागर तल में वृद्धि होगी और द्वीपीय देश जलमग्न हो जायेंगे। जलवायु परिवर्तन का कारण ग्रीन हाउस गैसें, ओजोन पर्त का क्षरण और प्रदूषण है। मानव द्वारा जीवाश्म ईंधन, कोयला, तेल, प्राकृतिक गैस को बड़ी मात्रा में जलाए जाने, निर्वनीकरण आदि से जलवायु परिवर्तन हो रहा है।
पृथ्वी के पिछले कालों में हुए जलवायु परिवर्तनों के प्रमाणों को जलवायु परिवर्तन के संकेतक कहते हैं।
इसका पहला चरण जवाहर लाल नेहरू राष्ट्रीय सौर मिशन के नाम से चल रहा है, इसमें 1000 - मेगावाट की क्षमता संस्थापित किये जाने की योजना है। चरण 2 में 4337 करोड़ रुपये व्यय अनुमानित है। चरण 2 के क्रियान्वयन की समीक्षा के बाद चरण 3 की आवश्यकता का आकलन किया जायेगा।
जून 1972 में हुए स्टॉकहोम के पहले पर्यावरण सम्मेलन में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम UNEP की स्थापना की गयी।
पर्यावरण संरक्षण एवं जलवायु परिवर्तन पर हुए अब तक के सम्मेलन इस प्रकार हैं -
इस सम्मेलन में तेल तथा अन्य प्रदूषणकारी पदार्थों द्वारा जलीय प्रदूषण को नियंत्रित करने के क्षेत्र में सहयोग के नियमन बल दिया गया। यह समझौता 1 जनवरी, 2000 से प्रभावी हुआ और 1974 के हेलसिंकी कन्वेंशन को निरस्त कर दिया गया।
मांट्रियल सम्मेलन के बाद दो प्रमुख संशोधन किये गये -
पेरिस करार का उद्देश्य वैश्विक तापमान वृद्धि को 2°C से नीचे रखना है। साथ ही इसमें संपोषणीय विकास की ओर अग्रसर होने के लिए 17 सम्पोषणीय विकास लक्ष्य और 169 लक्ष्यों का एक नया सेट 2015 में विश्व सरकारों द्वारा अपनाया गया।
भारतीय प्रस्ताव के तहत इस समझौते का सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह है कि 2020 से विकासशील देशों को इस पर्यावरण संकट से निपटने के लिए आर्थिक सहायता मिलेगी।
यह समझौता 2020 से लागू होगा और यह अमीर और गरीब देशों के बीच इस बारे में दशकों से जारी एक गतिरोध को समाप्त करने में सक्षम होगा।
इस समूह की शुरुआत पेरू की राजधानी लीमा में अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) और विश्व बैंक की वार्षिक बैठक के दौरान की गई। वी-20 समूह अन्तर्राष्ट्रीय, क्षेत्रीय और घरेल स्रोतों से जलवायु परिवर्तन का प्रभाव कम करने के लिए सरकारी और निजी बिल में उल्लेखनीय वृद्धि को बढ़ावा देने के लिए सामूहिक रूप से कार्य करने के लिए प्रतिबद्ध है।
आईएनडीसी स्वच्छ ऊर्जा, ऊर्जा दक्षता में अभिवृद्धि, कम कार्बन सघनता और सुलम्म शहरी केंद्रों के विकास, अपशिष्ट के धनार्जन को बढ़ावा देने, सुरक्षित, सुव्यवस्थित और सतत् और पर्यावरणीय दृष्टि से अनुकूल परिवहन, नेटवर्क, प्रदूषण उपशमन तथा वन वृक्ष आवरण के सृजन के माध्यम से कार्बन सिंक में अभिवृद्धि करने में भारत के प्रयासों से संबंधित उसकी नीतियों और कार्यक्रमों पर केंद्रित है।
वर्तमान व्यवस्था उतनी संवेदनशील है कि अगर वैश्विक तापमान में 1-2 सेंटीग्रेड परिवर्तन हुआ तो समूचे पृथ्वी के सम्पूर्ण जैव और अजैव जगत का विनाश ही हो जायेगा। सामान्य तौर पर ये आम धारणा होती है कि जलवायु परिवर्तन त्वरित होता है लेकिन ये सदा सत्य नहीं। जुरैसिक युग में अचानक जलवायु परिवर्तन के प्रमाण मिले हैं जिससे जलवायु में में एकाएक बदलाव से डायनासोर का सामूहिक विलोपन हुआ है।
पिछली सदी का अन्तिम दशक 1991-2000 विश्व के लिखित तापमान के इतिहास का सर्वाधिक गर्म दशक रहा है तथा वर्ष 2005 सर्वाधिक गर्म वर्ष रहा है। आज मानवीय क्रियाओं से वन विनाश, ग्रीन हाउस गैसें, तीव्र विकास, ओजोन क्षय आदि के परिणामस्वरूप संभावित जलवायु परिवर्तन की चिन्ता एक बड़ी समस्या बनी हुई है। मानवीय क्रियाओं से वैश्विक तापमान में वृद्धि होगी तो जलवायु में स्थानीय, प्रादेशिक और वैश्विक परिवर्तन होगा जिसका परिणाम भयावह होगा।
वैश्विक तापमान के कारण हिमानी एवं हिमकैपों के पिघलने की दर में वृद्धि होगी जिससे सागर तल में वृद्धि होगी और द्वीपीय देश जलमग्न हो जायेंगे। जलवायु परिवर्तन का कारण ग्रीन हाउस गैसें, ओजोन पर्त का क्षरण और प्रदूषण है। मानव द्वारा जीवाश्म ईंधन, कोयला, तेल, प्राकृतिक गैस को बड़ी मात्रा में जलाए जाने, निर्वनीकरण आदि से जलवायु परिवर्तन हो रहा है।
जलवायु परिवर्तन के संकेतक
वैज्ञानिकों द्वारा व्यापक रूप से लगभग 1880 से पृथ्वी के सतह के तापमान का आकलन या मापन किया जा रहा है और यह निरन्तर विकास की ओर जा रहा है। वर्तमान में भी यह स्थल और जलीय भागों को मिलाकर लगभग हजारों स्थान का तापमान मापा जा रहा है।पृथ्वी के पिछले कालों में हुए जलवायु परिवर्तनों के प्रमाणों को जलवायु परिवर्तन के संकेतक कहते हैं।
पुरा जलवायु के संकेतक
जैविक संकेतक
वानस्पतिक संकेतक - पौधों के जीवाश्म, आक्सीजन आइसोटोप्स, वृक्ष के तने में पाये जाने वाले वलय में वृद्धि ।
प्राणिजात संकेतक - प्राणिजात, जीवाश्म, जंतुओं का वितरण ।
भौमिकीय संकेतक
हिमानी से बने झीलों के अवसादों का निक्षेपण, कोयला अवसादी निक्षेप, मृदीय संकेतक, उच्च अक्षांशों में हिमानियों के चिन्ह।
हिमीय संकेतक
भूगर्भीय अभिलेखों से हिमयुगों और अंतर हिमयुगों में क्रमशः परिवर्तन प्रक्रिया का प्रकट होना।
विवर्तनिक संकेतक -
प्लेट विवर्तनिकी - ध्रुवों का भ्रमण एवं महाद्वीपीय प्रवाह, पुराचुम्बकत्व एवं सागर नितल प्रसरण।
सागर तल में परिवर्तन - बाढ़ अभिलेख, - सूखा अभिलेख।
1970 के दशक में सुदूर संवेदन की शुरुआत हुई। उपग्रह सतह के यंत्रों से ज्यादा विविधतापूर्वक तापमान का आकलन करते हैं।
अब पृथ्वी द्वारा निष्कासित ऊष्मा को पार्थिव विकिरण के नाम से जाना जाता है। यह विकिरण वायुमण्डल में उपस्थित हरित गैसें अवशोषित कर लेती हैं जिससे वायुमण्डल पर्याप्त गर्म हो जाता है। वर्तमान समय में मानवीय क्रियाओं द्वारा वायुमंडल में हरित गैसों की मात्रा में वृद्धि हो रही है जिससे पृथ्वी की सतह का तापमान बढ़ रहा है। 1820 के प्रारम्भ से ही पृथ्वी तथा वायुमण्डल में हरित गृह गैसों के तापमान नियंत्रण की भूमिका को स्वीकारने लगे थे जिनमें CO2, CH, N2O और HO आदि पृथ्वी के वायुमण्डल में कम्बल की तरह कार्य करते हैं, ये गैसें पृथ्वी के समस्त जीवन प्रणाली हेतु पर्याप्त तापमान को बनाए रखती हैं।
पृथ्वी भी एक हरितगृह की तरह कार्य करती है। हम हरितगृह में रहते हैं, वायुमण्डल ही हमारा हरितगृह है जो शताब्दियों से पृथ्वी के ताप को स्थिर किये हुए है। हरितगृह सौर्य विकिरण की आने वाली लघु तरंगदैर्थ्यो को तो आने देती हैं परन्तु पृथ्वी से हैं लौटती दीर्घ तरंगदैर्ध्य विकिरण को अवशोषित कर लेती हैं।
जलवाष्प वायुमण्डल में सर्वाधिक परिवर्तनशील तथा असमान वितरण वाला घटक है, इसकी मात्रा विभिन्न ऊँचाइयों पर भिन्न-भिन्न पायी जाती है। मानव जलवाष्प उत्सर्जन के लिए प्रत्यक्ष रूप से जिम्मेदार नहीं माने जाते हैं। वैश्विक तापमान में 60% की भागीदारी कार्बन डाइऑक्साइड गैस करती है। कार्बन डाइऑक्साइड एक प्राथमिक हरितगृह गैस है जो मानव द्वारा उत्सर्जित की जाती है।
वैश्विक तापन में मीथेन गैस का 20% योगदान है। मीठे जल वाली आर्द्र भूमि में मीथेन गैस का उत्सर्जन होता है। नाइट्रस ऑक्साइड गैस का वैश्विक तापन में 6% का योगदान है। इसको लाफिंग गैस भी कहते हैं। वैश्विक तापन में फ्लूरीनेटेड गैस का योगदान 14% का है। फ्लूरीनेटेड गैसें हाइड्रोफ्लूरोकार्बन, परफ्लूरोकार्बन और सल्फर हेक्साफ्लूराइड प्रकार की होती हैं।
हरित गृह के प्रभाव का अर्थ है - वायुमंडल में ग्रीन हाउस गैसों के घनीकरण के कारण। मानव जनित कुछ कारक हैं जिनका जलवायु परिवर्तन में योगदान रहता है। वे कारक हैं नगरीकरण एवं औद्योगीकरण, ईंधन का ह्रास, बड़े पैमाने पर भू-उपयोग में परिवर्तन, तापमान में वृद्धि, संसाधनों का दुरुपयोग, वातावरण में CO2, GHGS का वार्धक्य |
जलवायु परिवर्तन का मानव पर प्रभाव इस प्रकार पड़ता है - कृषि एवं भोजन, सुरक्षा तथा आहार गुणवत्ता पर प्रभाव, ग्लेशियर का पिघलना, भूमि संसाधन पर प्रभाव, अत्यंत कठोर मौसमी घटनाएँ, मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव एवं बीमारियाँ ।
वैज्ञानिकों ने तापमान परिवर्तन की मात्रा की भविष्यवाणी और भविष्य में ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन और दुनिया भर में औसत तापमान की कैसी वृद्धि होगी, को समझने में काफी प्रगति की है।
तापमान में यह वृद्धि 1°C, 2°C, 3°C, 4°C होगी, यह प्रभावों की एक विस्तृत श्रृंखला से सम्बन्धित है। इन प्रक्षेपित प्रभावों से बहुत से खतरनाक जोखिम मानवीय समुदायों और जीवित जीवों के लिए हैं जैसे जल संसाधन, तटीय क्षेत्र, बुनियादी - ढाँचे, मानव स्वास्थ्य, खाद्य सुरक्षा और स्थल, जलीय पारितंत्र के लिए चिंताजनक हैं।
अब पृथ्वी द्वारा निष्कासित ऊष्मा को पार्थिव विकिरण के नाम से जाना जाता है। यह विकिरण वायुमण्डल में उपस्थित हरित गैसें अवशोषित कर लेती हैं जिससे वायुमण्डल पर्याप्त गर्म हो जाता है। वर्तमान समय में मानवीय क्रियाओं द्वारा वायुमंडल में हरित गैसों की मात्रा में वृद्धि हो रही है जिससे पृथ्वी की सतह का तापमान बढ़ रहा है। 1820 के प्रारम्भ से ही पृथ्वी तथा वायुमण्डल में हरित गृह गैसों के तापमान नियंत्रण की भूमिका को स्वीकारने लगे थे जिनमें CO2, CH, N2O और HO आदि पृथ्वी के वायुमण्डल में कम्बल की तरह कार्य करते हैं, ये गैसें पृथ्वी के समस्त जीवन प्रणाली हेतु पर्याप्त तापमान को बनाए रखती हैं।
परीक्षोपयोगी प्रश्नोत्तर!
- किसके चारों ओर व्याप्त वायुमण्डल प्राकृतिक पर्यावरण तथा जैवमंडलीय पारिस्थितिक तन्त्र का एक महत्वपूर्ण संघटक है? - पृथ्वी के
- सूर्य से आने वाली पराबैगनी किरणों को कौन सोख लेता है? - वायुमण्डल
- कौन तापमान, वर्षा, हिम एवं पवन प्रतिरूप में आए एक बड़े परिवर्तन द्वारा मापा जाता है? - जलवायु परिवर्तन
- किसने यह सुझाया था कि पृथ्वी की धुरी पर अवस्था बदलना जलवायु परिवर्तन के लिए एक कारक है? - मिलुटिन मिलान कोविच
- सूर्य की बाह्य सतह का तापमान कितना है? - 6000K
- जलवायु परिवर्तन का कारण मुख्यतया किसकी वजह से होता है? - ग्रीन हाउस गैस, ओजोन परत का अपक्षय, प्रदूषण
- कितने सेंटीग्रेड वैश्विक तापमान में परिवर्तन हुआ तो समस्त पृथ्वी पर समस्त जैव और अजैव जगत का विनाश होगा? - 1-2 सेंटीग्रेड
- जलवायु परिवर्तन का कारण है - ग्रीन हाउस गैसें, ओजोन पर्त का क्षरण, प्रदूषण
हरित गृह (Green House)
हरित गृह शीशे की दीवारों से बना होता है। ठण्डी जलवायु वाले क्षेत्रों में या ठण्डे देशों में इन हरितगृहों में पौधों के उगाने का कार्य किया जाता है। बाह्य तापमान निम्न रहने के बावजूद भी हरितगृहों के तापमान में वृद्धि होती रहती है। ठण्डे स्थानों पर फल-फूल, सब्जियाँ आदि को काँच के आवरण यानी हरितगृह में उगाया जाता है। काँच सूर्य के विकिरणों को आंशिक रूप में अवशोषित तथा शेष को परावर्तित कर देता है जिससे हरितगृह में सौर ऊर्जा संग्रहीत रहती है।पृथ्वी भी एक हरितगृह की तरह कार्य करती है। हम हरितगृह में रहते हैं, वायुमण्डल ही हमारा हरितगृह है जो शताब्दियों से पृथ्वी के ताप को स्थिर किये हुए है। हरितगृह सौर्य विकिरण की आने वाली लघु तरंगदैर्थ्यो को तो आने देती हैं परन्तु पृथ्वी से हैं लौटती दीर्घ तरंगदैर्ध्य विकिरण को अवशोषित कर लेती हैं।
हरित गृह गैसें (Green House Gases)
वायुमण्डल को गर्म करने में हरित गैसें एक फोरसिंग एजेंट का कार्य करती हैं। ग्रीन हाउस गैसों की अलग-अलग तापमान धारण करने की क्षमता होती है। जैसे मीथेन के लिए अणु 25 बार गर्म होने की शक्ति हो तो CO2 को एक अणु की तुलना में। जलवाष्प तथा CO2 वायुमण्डल में पायी जाने वाली गैसों में प्रचुर मात्रा में पायी जाती है। दूसरी ग्रीन हाउस गैसें हैं- CH, (मीथेन), N2O (नाइट्रस ऑक्साइड) तथा सी. एफ. सी.।जलवाष्प वायुमण्डल में सर्वाधिक परिवर्तनशील तथा असमान वितरण वाला घटक है, इसकी मात्रा विभिन्न ऊँचाइयों पर भिन्न-भिन्न पायी जाती है। मानव जलवाष्प उत्सर्जन के लिए प्रत्यक्ष रूप से जिम्मेदार नहीं माने जाते हैं। वैश्विक तापमान में 60% की भागीदारी कार्बन डाइऑक्साइड गैस करती है। कार्बन डाइऑक्साइड एक प्राथमिक हरितगृह गैस है जो मानव द्वारा उत्सर्जित की जाती है।
वैश्विक तापन में मीथेन गैस का 20% योगदान है। मीठे जल वाली आर्द्र भूमि में मीथेन गैस का उत्सर्जन होता है। नाइट्रस ऑक्साइड गैस का वैश्विक तापन में 6% का योगदान है। इसको लाफिंग गैस भी कहते हैं। वैश्विक तापन में फ्लूरीनेटेड गैस का योगदान 14% का है। फ्लूरीनेटेड गैसें हाइड्रोफ्लूरोकार्बन, परफ्लूरोकार्बन और सल्फर हेक्साफ्लूराइड प्रकार की होती हैं।
ग्रीन हाउस प्रभाव (Green House Effect)
ग्रीन हाउस प्रभाव प्राकृतिक रूप से घटित होने वाली एक परिघटना है जिससे पृथ्वी की सतह तथा वायुमण्डल का तापमान बढ़ता है।ग्रीन हाउस प्रभाव से जलवायु परिवर्तन तथा पारिस्थितिकी असंतुलन जैसी समस्यायें उत्पन्न हो सकती हैं। 1824 में सर्वप्रथम फ्रान्स के भौतिक विज्ञानी जोसेफ फोरियर ने यह सलाह दी कि वायुमण्डल ऊष्मारोधी का कार्य करता है। 1850 में आइरिस मूल के भौतिक वैज्ञानिक जॉन टायनडल ने पहली बार कहा कि पृथ्वी द्वारा विकीर्णित ऊष्मा को वायुमण्डल में उपस्थित जलवाष्प और अन्य गैसें अवशोषित करती हैं। HFC, यह सुपर ग्रीन हाउस गैस है। CO2 तथा जलवाष्प वायुमंडल को गर्म करने तथा पृथ्वी का तापमान बढ़ाने वाली प्रमुख ग्रीन हाउस गैसें हैं।हरित गृह के प्रभाव का अर्थ है - वायुमंडल में ग्रीन हाउस गैसों के घनीकरण के कारण। मानव जनित कुछ कारक हैं जिनका जलवायु परिवर्तन में योगदान रहता है। वे कारक हैं नगरीकरण एवं औद्योगीकरण, ईंधन का ह्रास, बड़े पैमाने पर भू-उपयोग में परिवर्तन, तापमान में वृद्धि, संसाधनों का दुरुपयोग, वातावरण में CO2, GHGS का वार्धक्य |
जलवायु परिवर्तन का मानव पर प्रभाव इस प्रकार पड़ता है - कृषि एवं भोजन, सुरक्षा तथा आहार गुणवत्ता पर प्रभाव, ग्लेशियर का पिघलना, भूमि संसाधन पर प्रभाव, अत्यंत कठोर मौसमी घटनाएँ, मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव एवं बीमारियाँ ।
वैज्ञानिकों ने तापमान परिवर्तन की मात्रा की भविष्यवाणी और भविष्य में ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन और दुनिया भर में औसत तापमान की कैसी वृद्धि होगी, को समझने में काफी प्रगति की है।
तापमान में यह वृद्धि 1°C, 2°C, 3°C, 4°C होगी, यह प्रभावों की एक विस्तृत श्रृंखला से सम्बन्धित है। इन प्रक्षेपित प्रभावों से बहुत से खतरनाक जोखिम मानवीय समुदायों और जीवित जीवों के लिए हैं जैसे जल संसाधन, तटीय क्षेत्र, बुनियादी - ढाँचे, मानव स्वास्थ्य, खाद्य सुरक्षा और स्थल, जलीय पारितंत्र के लिए चिंताजनक हैं।
जलवायु परिवर्तन के खतरे और संवेदनशीलताएँ
जलवायु परिवर्तन का प्राकृतिक संसाधनों तथा लोगों की आजीविका पर अत्यधिक प्रभाव पड़ता है। भारत में कृषि, जल, प्राकृतिक पारिस्थितिक तन्त्र, जैव विविधता तथा स्वास्थ्य जैसे अहम् क्षेत्र जलवायु परिवर्तन के प्रति संवेदनशील हैं।
INCCA रिपोर्ट में समुद्र के बढ़ते हुए जलस्तर चक्रवाती तीव्रता में वृद्धि, वर्षा जल सिंचित फसलों में फसल पैदावार में कमी, पशुधन दबाव, दुग्ध उत्पादन में कमी, बाढ़ों में वृद्धि तथा मलेरिया के विस्तार के प्रभावों की चेतावनी दी गयी है। भारत के जंगल भी जलवायु परिवर्तन की सक्रियता और विविधता के चलते वन के स्वरूप को बदलने वाले हो जायेंगे।
INCCA रिपोर्ट में समुद्र के बढ़ते हुए जलस्तर चक्रवाती तीव्रता में वृद्धि, वर्षा जल सिंचित फसलों में फसल पैदावार में कमी, पशुधन दबाव, दुग्ध उत्पादन में कमी, बाढ़ों में वृद्धि तथा मलेरिया के विस्तार के प्रभावों की चेतावनी दी गयी है। भारत के जंगल भी जलवायु परिवर्तन की सक्रियता और विविधता के चलते वन के स्वरूप को बदलने वाले हो जायेंगे।
भारत द्वारा जलवायु परिवर्तन पर किये गये महत्त्वपूर्ण उपाय
- भारत ने 2008 में जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना को अपनाया है।
- भारत ने 2020 तक 2025 के स्तर पर 20-25 प्रतिशत तक के इसके सकल घरेलू उत्पाद के उत्सर्जन सघनता कम करने के घरेलू लक्ष्य की घोषणा की है।
- NAPCC के अलावा सभी राज्यों को भी राज्य स्तरीय कार्य योजनाओं को तैयार करने के लिए कहा गया है।
- वर्तमान परिदृश्य में जलवायु परिवर्तन में वित्त पोषण के लिए भारत में उपलब्ध दो मुख्य माध्यम घरेलू साधन और अन्तर्राष्ट्रीय साधन हैं।
जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना के तहत आठ मिशन
राष्ट्रीय सौर मिशन
इसके तहत सम्पूर्ण ऊर्जा प्रयोग में सौर ऊर्जा की हिस्सेदारी बढ़ाना तथा परमाणु ऊर्जा, पवन ऊर्जा एवं बायोमास ऊर्जा जैसे स्रोतों को महत्व प्रदान करना है। इस तहत वर्ष 2020 तक देश 20000 मेगावाट सौर बिजली क्षमता संस्थापित करने का लक्ष्य है।इसका पहला चरण जवाहर लाल नेहरू राष्ट्रीय सौर मिशन के नाम से चल रहा है, इसमें 1000 - मेगावाट की क्षमता संस्थापित किये जाने की योजना है। चरण 2 में 4337 करोड़ रुपये व्यय अनुमानित है। चरण 2 के क्रियान्वयन की समीक्षा के बाद चरण 3 की आवश्यकता का आकलन किया जायेगा।
परीक्षोपयोगी प्रश्नोत्तर!
- पृथ्वी के विगत कालों में हुए जलवायु परिवर्तनों के अनुक्रम को क्या कहा जाता है? - जलवायु कालानुक्रम
- वृक्षों के वार्षिक वलयों के अध्ययन के आधार पर तिथि निर्धारण को क्या कहते हैं? - वृक्षकालानुक्रमिकी
- पृथ्वी की आयु का निर्धारण किसके द्वारा किया जाता है? - यूरेनियम डेटिंग
- ग्रीन हाउस गैसों का सबसे बड़ा उत्पादक देश है - चीन
- उड़ीसा की गोण्डवाना काल की तलचर खान की कोयले की परतों के मध्य क्या पाया जाता है? - हिमानी बोल्डर या इरैटिक्स
- स्वच्छ विकास तंत्र के तहत वित्तीय सहायता प्राप्त करने वाला प्रथम राज्य है - पश्चिम बंगाल
- ग्रीन हाउस गैसों की संकल्पना की थी - जोसेफ फोरियर ने
- पर्यावरण में ग्रीन हाउस प्रभाव में वृद्धि किसके कारण होती है? - कार्बन डाइऑक्साइड के कारण
- द्वितीय ग्रीन हाउस गैस है - CO2
- सुपर ग्रीन हाउस गैस है - हाइड्रोफ्लोरो कार्बन
- स्वच्छ विकास तंत्र की अवधारणा का उदय हुआ - क्योटो प्रोटोकाल में
- आज कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) के उत्सर्जन में सर्वाधिक योगदान देने वाला देश है - चीन
- भारत में राष्ट्रीय क्लीन डेवलपमेंट मैकेनिज्म अथॉरिटी का गठन कब किया गया ? - दिसम्बर, 2003 में
राष्ट्रीय वर्धित ऊर्जा क्षमता मिशन
इसके तहत नयी संस्थागत प्रणालियों को सृजित करने का लक्ष्य है। इस मिशन के अंतर्गत बड़े उद्योगों की कारगरता संवर्धित करने के लिए पीएटी प्रणाली। सुपर एफिसिएंट उपकरण लगाने के कार्य को तीव्र करने के लिए सुपर एफिसिएंट उपकरण कार्यक्रम।राष्ट्रीय वहनीय पर्यावास मिशन
इस मिशन दस्तावेज में अनुमानित कुल लागत 100 करोड़ रुपये परिलक्षित की गयी है। यह मिशन नगरों में अपशिष्टों के प्रबन्धन तथा ऊर्जा कुशलता बढ़ाने में बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।राष्ट्रीय जल मिशन
इस मिशन के अंतर्गत जल के प्रयोग में 20% तक किफायत को बढ़ावा देना लक्ष्य है।राष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन संबंधी कार्यनीति
इसका उद्देश्य जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न चुनौतियों की जानकारी और स्वास्थ्य जनसांख्यिकी, प्रवास और तटीय क्षेत्रों में रहने वाले समुदायों की उपजीविका के क्षेत्रों में चुनौतियों के प्रत्युत्तर पर ज्ञान का प्रसार करना है।राष्ट्रीय ग्रीन इण्डिया मिशन
इसके तहत वन भूमियों, सामुदायिक भूमि के अलावा 10 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्रफल में वनरोपण का लक्ष्य है।राष्ट्रीय हिमालयी पारिस्थितिकी संवर्द्धन मिशन
इसके अंतर्गत हिमालयी पर्यावरण के लिए निगरानी प्रणाली की स्थापना करना है जिससे हिमालयी हिमखण्डों पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव का अनुमान लगाया जा सके।राष्ट्रीय सतत् कृषि विकास मिशन
इस मिशन का उद्देश्य नई किस्मों की ऐसी फसलों का विकास करना है जो ऊष्मा या बुरे मौसम के कुप्रभावों से स्वयं को बचा सकें तथा जलवायु परिवर्तन का अधिक कुशलता से सामना कर सकें।जलवायु परिवर्तन पर हुए सम्मेलन
जलवायु परिवर्तन से हुए दुष्परिणामों से निपटने के लिए संयुक्त राष्ट्र 1972 से प्रयासरत है।जून 1972 में हुए स्टॉकहोम के पहले पर्यावरण सम्मेलन में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम UNEP की स्थापना की गयी।
पर्यावरण संरक्षण एवं जलवायु परिवर्तन पर हुए अब तक के सम्मेलन इस प्रकार हैं -
मानव पर्यावरण सम्मेलन
पर्यावरण पर केन्द्रित यह सबसे पहला और महत्वपूर्ण अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन था। इस सम्मेलन में 119 देश सम्मिलित हुए थे जिन्होंने पहली बार एक ही पृथ्वी के सिद्धान्त को स्वीकार किया था। इस सम्मेलन में पर्यावरण सुरक्षा पर स्टॉकहोम घोषणा-पत्र जारी किया गया जिसे विश्व पर्यावरण का मैग्नाकार्टा कहा जाता है।हेलसिंकी सम्मेलन
वर्ष 1974 में बाल्टिक सागर क्षेत्र के समुद्री पर्यावरण की रक्षा पर हेलसिंकी में एक अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया गया।इस सम्मेलन में तेल तथा अन्य प्रदूषणकारी पदार्थों द्वारा जलीय प्रदूषण को नियंत्रित करने के क्षेत्र में सहयोग के नियमन बल दिया गया। यह समझौता 1 जनवरी, 2000 से प्रभावी हुआ और 1974 के हेलसिंकी कन्वेंशन को निरस्त कर दिया गया।
लंदन सम्मेलन
समुद्री प्रदूषण तथा अपशिष्ट एवं अन्य पदार्थ क्षेपण निरोधक सम्मेलन जिसे लंदन सम्मेलन कहते हैं, का आयोजन 1975 में किया गया था। इस सम्मेलन का उद्देश्य जलयानों, वायुयानों या भस्मीकरण द्वारा अपशिष्टों के ऐच्छिक क्षेपण पर नियंत्रण करना है।यूरोपीय वन्य जीवन तथा प्राकृतिक निवास क्षेत्र संरक्षण सम्मेलन
यह सम्मेलन वनीय वनस्पतियाँ तथा जीव, जैविक तथा प्राकृतिक संतुलन बनाए रखने में महत्वपूर्ण योजना देते हैं।विएना सम्मेलन
इस सम्मेलन का आयोजन 1985 में किया गया था। इस सम्मेलन का उद्देश्य मानवजनित गतिविधियों से उत्सर्जित होने वाले हानिकारक पदार्थों से ओजोन संस्तर की सुरक्षा करना था।मांट्रियल प्रोटोकाल
कनाडा के मांट्रियल शहर में 16 सितम्बर, 1987 को इस प्रोटोकाल पर 47 देशों में से 33 देशों ने हस्ताक्षर किये। मांट्रियल प्रोटोकाल 1 जनवरी, 1989 से लागू हुआ। इस प्रोटोकाल के अंतर्गत विकासशील देशों की ओजोन परत को क्षति पहुँचाने वाले सीएफसी रसायनों का विकल्प तथा ओजोन संगत तकनीक विकसित करने के लिए अन्तर्राष्ट्रीय ऋण उपलब्ध कराने की व्यवस्था की गयी है।मांट्रियल सम्मेलन के बाद दो प्रमुख संशोधन किये गये -
लंदन संशोधन 1990 - में किए गए इस संशोधन के द्वारा ओजोननाशक पदार्थों पर कड़े प्रतिबन्ध लगाये गये।
इसमें कार्बन टेट्राक्लोराइड, ट्राइक्लोरोमीथेन तथा मिथाइल क्लोरोफार्म के उपयोग को पूरी तरह से समाप्त करने पर सहमति हुई। कोपनहेगेन संशोधन (1992) - इस संशोधन में पहली बार विकसित और विकासशील देशों के लिए अलग-अलग समयावधि निर्धारित की गयी।
ऐसे विकासशील देश जहाँ ओजोनभक्षी पदार्थों की प्रतिव्यक्ति खपत 0.3 किग्रा. सालाना से कम है उन्हें विकसित देशों की अपेक्षा इन रसायनों का इस्तेमाल खत्म करने के लिए दस वर्ष अधिक समय दिया। यदि संधि के प्रावधानों को संबंधित देश कड़ाई से लागू करेंगे तो 2050 तक ओजोन छिद्र स्वतः समाप्त होने की स्थिति में होंगे।
दिसम्बर 2012 के दोहा सम्मेलन में क्योटो प्रोटोकाल की अवधि को 2020 तक बढ़ाने पर सहमति व्यक्त की गयी है। संयुक्त राज्य अमेरिका ने इस संधि पर हस्ताक्षर नहीं किया।
यह सम्मेलन 26 अगस्त, 2002 से 4 सितम्बर, 2002 के दौरान आयोजित हुआ। इस दस दिवसीय सम्मेलन में 200 राष्ट्रों के 60 हजार प्रतिनिधियों के अतिरिक्त 106 राष्ट्रों के राष्ट्राध्यक्षों ने भाग लिया।
इस सम्मेलन की अध्यक्षता तत्कालीन दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति थाबोम्बेकी ने की।
इस सम्मेलन को पृथ्वी-2 सम्मेलन भी कहा जाता है।
1997 की क्योटो संधि से आगे की रणनीति के लिए इस सम्मेलन का आयोजन संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा किया गया था।
सम्मेलन में विश्व के 193 से अधिक संगठनों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। इस सम्मेलन के महासचिव शॉ जुकांग थे।
इस सम्मेलन को औपचारिक रूप से 'यूनाइटेड नेशंस ऑन सस्टेनेबल डेवलपमेंट' नाम दिया गया।
रियो + 20 सम्मेलन की मुख्य थीम दो थीं - पहली थीम थी- हरित अर्थव्यवस्था का निर्माण व गरीबी दूर करने के उपाय।
सम्मेलन की दूसरी थीम थी - सन्तुलित व सतत् विकास की अवधारणा को समझ लेना भी आवश्यक है।
इस सम्मेलन में यह निश्चित किया गया कि मीथेन, नाइट्रस ऑक्साइड, सल्फर डाई ऑक्साइड व कार्बन डाई ऑक्साइड गैसों के उत्सर्जन को घटाकर वर्ष 1990 के स्तर के नीचे लाया जाए।
इस सम्मेलन में 189 देशों के 10 हजार से अधिक प्रतिनिधियों ने भाग लिया।
इस सम्मेलन की अध्यक्षता पोलैण्ड के पर्यावरण मंत्री मार्सिन कोरोलेक ने की।
COP-12 का केंद्रीय विषय था - सतत् विकास के लिए जैव विविधता
इस सम्मेलन के साथ ही जैव सुरक्षा पर कार्टाजेना प्रोटोकॉल के पक्षकारों की बैठक का 7वाँ सत्र 29 सितम्बर से 3 अक्टूबर, 2014 के मध्य नगोया प्रोटोकॉल के पक्षकारों की बैठक का प्रथम सत्र 13 से 17 अक्टूबर, 2014 के मध्य सम्पन्न हुआ।
सीबीडी के पक्षकारों के 12वें सम्मेलन (COP 12) में वर्ष 2011-2020 हेतु जैव विविधता पर रणनीतिक योजना तथा एडची जैव विविधता लक्ष्यों के क्रियान्वयन की स्थिति पर गहन विचार किया गया।
इस बैठक में जैव विविधता पर संयुक्त राष्ट्र दशक (2011-2020) पहलों का मध्यावधि मूल्यांकन भी किया गया।
COP-12 के अंत में सभी पक्षकारों द्वारा स्वीकृत सतत् विकास के लिए जैव विविधता पर गैंगवॉन घोषणा पत्र जारी किया गया।
इस बैठक में सभी पक्षकारों द्वारा 12 अक्टूबर, 2014 से जेनेटिक संसाधनों पर नगोया प्रोटोकॉल के लागू होने का स्वागत किया गया तथा संयुक्त राष्ट्र महासभा से 2015 के पश्चात् विकास एजेंडा में जैव विविधता रणनीतियों और 2025 के लिए विजन को प्रभावी रूप से समन्वित करने के लिए कहा गया।
5 जून, 1992 को हस्ताक्षरित 29 दिसम्बर, 1993 से प्रभावी हुआ था। वर्तमान में इसके पक्षकारों की संख्या 195 है। इसके तीन मुख्य लक्ष्य हैं
इसमें कार्बन टेट्राक्लोराइड, ट्राइक्लोरोमीथेन तथा मिथाइल क्लोरोफार्म के उपयोग को पूरी तरह से समाप्त करने पर सहमति हुई। कोपनहेगेन संशोधन (1992) - इस संशोधन में पहली बार विकसित और विकासशील देशों के लिए अलग-अलग समयावधि निर्धारित की गयी।
ऐसे विकासशील देश जहाँ ओजोनभक्षी पदार्थों की प्रतिव्यक्ति खपत 0.3 किग्रा. सालाना से कम है उन्हें विकसित देशों की अपेक्षा इन रसायनों का इस्तेमाल खत्म करने के लिए दस वर्ष अधिक समय दिया। यदि संधि के प्रावधानों को संबंधित देश कड़ाई से लागू करेंगे तो 2050 तक ओजोन छिद्र स्वतः समाप्त होने की स्थिति में होंगे।
टोरण्टो वर्ल्ड कॉन्फ्रेंस
कनाडा के टोरण्टो नगर जून, 1988 में आयोजित टोरन्टो कॉन्फ्रेंस ने वर्ष 2025 तक कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन में स्वेच्छा से 200 प्रतिशत कटौती करने के लिए सभी देशों से आग्रह किया।विश्व पृथ्वी सम्मेलन 1992
ब्राजील के रियो डि जेनेरियों में वर्ष 1992 के जून माह में विश्व पृथ्वी सम्मेलन का आयोजन किया गया। यह आयोजन संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण एवं विकास सम्मेलन द्वारा किया गया था। रियो नामक शहर में आयोजित होने के कारण इसे रियो सम्मेलन भी कहा जाता है। इस सम्मेलन का मूल सूत्र था 'एक पृथ्वी' इसलिए यह पृथ्वी सम्मेलन कहलाया। इस सम्मेलन में मुख्य रूप से कार्बन डाईऑक्साइड (CO2) की मात्रा में हो रही बढ़ोत्तरी, प्राकृतिक संसाधनों के अनियंत्रित शोषण से उत्पन्न पर्यावरणीय समस्याओं, ओजोन परत की क्षति व इससे सम्बन्धित समस्याओं, वैश्विक ताप वृद्धि, प्रदूषण की खतरनाक स्थिति तथा जैव विविधता जैसे विषयों पर गम्भीर विचार मंथन हुआ।परीक्षोपयोगी प्रश्नोत्तर!
- ग्रो हारलेम ब्रंटलैंड की रिपोर्ट में पहली बार किस अवधारणा को प्रस्तुत किया गया? - टिकाऊ विकास
- राष्ट्रीय हरित भारत मिशन में कुल खर्च केन्द्र और राज्य का किस अनुपात में होगा? - 75:25
- UNEP ने विश्व पर्यावरण दिवस पर विश्व समुदाय को सचेत करने के लिए कौन-सा नारा दिया था? ग्लोबल वार्मिंग, ग्लोबल वार्मिंग
- किसी स्थान के दीर्घकालीन मौसमी घटनाओं के औसत को क्या कहते हैं? - जलवायु
- राष्ट्रीय सौर मिशन का पहला चरण किसके नाम से चल रहा है? - जवाहर लाल नेहरू
- विश्व पृथ्वी सम्मेलन 1992 का आयोजन किस शहर में हुआ? - रियो (ब्राजील)
- किस वर्ष को जलवायु इतिहास में ग्रीष्म ऋतु विहीन वर्ष कहते हैं? - 1816 वर्ष
- किस दौरान ग्रीनलैण्ड की जलवायु इतनी अधिक ठण्डी हो गयी कि वहाँ रहने वाले लोगों की सामूहिक मृत्यु हो गयी? - लघु हिमकाल
- राष्ट्रीय सौर मिशन के कार्यान्वयन का दायित्व किस मंत्रालय पर है? - नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय
क्योटो प्रोटाकाल
इस सम्मेलन का आयोजन 11 दिसम्बर, 1997 को जापान के क्योटो शहर में हुआ जिसमें 159 देशों ने आम सहमति से हस्ताक्षर किये। इस सम्मेलन में 6 गैसों के कटौती किये जाने के प्रस्ताव को स्वीकार किया गया। ये गैसें हैं कार्बन डाइऑक्साइड, मिथेन, नाइट्रस ऑक्साइड, हाइड्रो फ्लोरो कार्बन तथा सल्फर हेक्सा फ्लोराइड। क्योटो प्रोटोकाल में इन गैसों के उत्सर्जन के स्तर को 2012 तक 1990 के स्तर पर लाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया था। यह संधि 2006 में रूस द्वारा हस्ताक्षर के बाद प्रभावी हुई।दिसम्बर 2012 के दोहा सम्मेलन में क्योटो प्रोटोकाल की अवधि को 2020 तक बढ़ाने पर सहमति व्यक्त की गयी है। संयुक्त राज्य अमेरिका ने इस संधि पर हस्ताक्षर नहीं किया।
जोहांसबर्ग सम्मेलन
इस सम्मेलन का आयोजन जोहांसबर्ग (दक्षिण अफ्रीका) में किया गया।यह सम्मेलन 26 अगस्त, 2002 से 4 सितम्बर, 2002 के दौरान आयोजित हुआ। इस दस दिवसीय सम्मेलन में 200 राष्ट्रों के 60 हजार प्रतिनिधियों के अतिरिक्त 106 राष्ट्रों के राष्ट्राध्यक्षों ने भाग लिया।
इस सम्मेलन की अध्यक्षता तत्कालीन दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति थाबोम्बेकी ने की।
इस सम्मेलन को पृथ्वी-2 सम्मेलन भी कहा जाता है।
मांट्रियल सम्मेलन
कनाडा के मांट्रियल शहर में नवम्बर 2005 में संयुक्त राष्ट्र संघ का 11वाँ जलवायु परिवर्तन सम्मेलन हुआ।बाली सम्मेलन
विश्व के शिखर नेताओं, वैज्ञानिकों तथा शिष्टमंडलों ने दिसम्बर 2007 में UNFCCC के इस सम्मेलन में भाग लिया।1997 की क्योटो संधि से आगे की रणनीति के लिए इस सम्मेलन का आयोजन संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा किया गया था।
कोपेनहेगन सम्मेलन 2009
कोपेनहेगन (डेनमार्क) में 7 से 18 दिसम्बर, 2009 को आयोजित जलवायु परिवर्तन सम्मेलन को COP-15 के नाम से भी जाना जाता है।कानकुन सम्मेलन-2010
वर्ष 2009 में कोपेनहेगेन में हुए UNFCCC के में सम्मेलन कोप-15 की श्रृंखला का अगला सम्मेलन दिसम्बर 2010 में मैक्सिको के शहर कानकुन में सम्पन्न हुआ। इस सम्मेलन को कोप 16 भी कहा जाता है।डरबन जलवायु परिवर्तन सम्मेलन
दक्षिणी अफ्रीका के डरबन शहर में वर्ष 2011 के नवम्बर-दिसम्बर माह में संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन सम्पन्न हुआ।रियो + 20 सम्मेलन
ब्राजील के रियो डि जेनेरियो शहर में वर्ष 2012 के जून माह में रियो + 20 सम्मेलन सम्पन्न हुआ।सम्मेलन में विश्व के 193 से अधिक संगठनों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। इस सम्मेलन के महासचिव शॉ जुकांग थे।
इस सम्मेलन को औपचारिक रूप से 'यूनाइटेड नेशंस ऑन सस्टेनेबल डेवलपमेंट' नाम दिया गया।
रियो + 20 सम्मेलन की मुख्य थीम दो थीं - पहली थीम थी- हरित अर्थव्यवस्था का निर्माण व गरीबी दूर करने के उपाय।
सम्मेलन की दूसरी थीम थी - सन्तुलित व सतत् विकास की अवधारणा को समझ लेना भी आवश्यक है।
संयुक्त राष्ट्र का दोहा जलवायु सम्मेलन
कतर की राजधानी दोहा में 26 नवम्बर से 7 दिसम्बर, 2012 तक संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन आयोजित हुआ जिसमें विश्व के 200 देशों ने शिरकत की।इस सम्मेलन में यह निश्चित किया गया कि मीथेन, नाइट्रस ऑक्साइड, सल्फर डाई ऑक्साइड व कार्बन डाई ऑक्साइड गैसों के उत्सर्जन को घटाकर वर्ष 1990 के स्तर के नीचे लाया जाए।
संयुक्त राष्ट्र का वारसा जलवायु सम्मेलन
संयुक्त राष्ट्र का वर्ष 2013 का वार्षिक जलवायु परिवर्तन सम्मेलन 2013 में पोलैण्ड की राजधानी वारसा में 11 से 23 नवम्बर, 2013 के दौरान आयोजित किया गया।इस सम्मेलन में 189 देशों के 10 हजार से अधिक प्रतिनिधियों ने भाग लिया।
इस सम्मेलन की अध्यक्षता पोलैण्ड के पर्यावरण मंत्री मार्सिन कोरोलेक ने की।
पर्यावरण / जैव-विविधता पर नवीनतम सम्मेलन
COP-12 : जैव विविधता अभिसमय पक्षकारों की 12वीं बैठक 6-7 अक्टूबर, 2014 के दौरान प्योंगचांग (दक्षिण कोरिया) में जैविक विविधता पर अभिसमय के पक्षकारों का 12वाँ सम्मेलन COP-12 का आयोजन किया।COP-12 का केंद्रीय विषय था - सतत् विकास के लिए जैव विविधता
इस सम्मेलन के साथ ही जैव सुरक्षा पर कार्टाजेना प्रोटोकॉल के पक्षकारों की बैठक का 7वाँ सत्र 29 सितम्बर से 3 अक्टूबर, 2014 के मध्य नगोया प्रोटोकॉल के पक्षकारों की बैठक का प्रथम सत्र 13 से 17 अक्टूबर, 2014 के मध्य सम्पन्न हुआ।
सीबीडी के पक्षकारों के 12वें सम्मेलन (COP 12) में वर्ष 2011-2020 हेतु जैव विविधता पर रणनीतिक योजना तथा एडची जैव विविधता लक्ष्यों के क्रियान्वयन की स्थिति पर गहन विचार किया गया।
इस बैठक में जैव विविधता पर संयुक्त राष्ट्र दशक (2011-2020) पहलों का मध्यावधि मूल्यांकन भी किया गया।
COP-12 के अंत में सभी पक्षकारों द्वारा स्वीकृत सतत् विकास के लिए जैव विविधता पर गैंगवॉन घोषणा पत्र जारी किया गया।
इस बैठक में सभी पक्षकारों द्वारा 12 अक्टूबर, 2014 से जेनेटिक संसाधनों पर नगोया प्रोटोकॉल के लागू होने का स्वागत किया गया तथा संयुक्त राष्ट्र महासभा से 2015 के पश्चात् विकास एजेंडा में जैव विविधता रणनीतियों और 2025 के लिए विजन को प्रभावी रूप से समन्वित करने के लिए कहा गया।
5 जून, 1992 को हस्ताक्षरित 29 दिसम्बर, 1993 से प्रभावी हुआ था। वर्तमान में इसके पक्षकारों की संख्या 195 है। इसके तीन मुख्य लक्ष्य हैं
(i) जैव विविधता का संरक्षण
(ii) इसके घटकों का संपोषणीय उपयोग
(iii) जेनेटिक संसाधनों से उद्भूत लाभों की उचित एवं निष्पक्ष साझेदारी।
इस सम्मेलन का केन्द्रीय विषय क्रियाओं को उत्प्रेरणा प्रदान करना था।
वैश्विक जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मून की मेजबानी में आयोजित इस सम्मेलन को 'लीडर्स क्लाइमेट सम्मिट' और 'बान की मून सम्मिट' भी कहा गया।
न्यूयॉर्क जलवायु शिखर सम्मेलन 2014
23 सितम्बर, 2014 को न्यूयॉर्क (अमेरिका) स्थित संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय ने संयुक्त राष्ट्र महासभा की वार्षिक बैठक से एक दिन पूर्व जलवायु शिखर सम्मेलन-2014 का आयोजन किया गया।इस सम्मेलन का केन्द्रीय विषय क्रियाओं को उत्प्रेरणा प्रदान करना था।
वैश्विक जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मून की मेजबानी में आयोजित इस सम्मेलन को 'लीडर्स क्लाइमेट सम्मिट' और 'बान की मून सम्मिट' भी कहा गया।
पेरिस समझौता: COP-21
दिसम्बर, 2015 में पेरिस में सम्पन्न जलवायु परिवर्तन पर कॉप-21 विश्व के सभी कार्य करने की योजना प्रस्तुत करता है।पेरिस करार का उद्देश्य वैश्विक तापमान वृद्धि को 2°C से नीचे रखना है। साथ ही इसमें संपोषणीय विकास की ओर अग्रसर होने के लिए 17 सम्पोषणीय विकास लक्ष्य और 169 लक्ष्यों का एक नया सेट 2015 में विश्व सरकारों द्वारा अपनाया गया।
भारतीय प्रस्ताव के तहत इस समझौते का सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह है कि 2020 से विकासशील देशों को इस पर्यावरण संकट से निपटने के लिए आर्थिक सहायता मिलेगी।
यह समझौता 2020 से लागू होगा और यह अमीर और गरीब देशों के बीच इस बारे में दशकों से जारी एक गतिरोध को समाप्त करने में सक्षम होगा।
वी-20 समूह का गठन
8 अक्टूबर, 2015 को 20 देशों के वित्त मंत्रियों ने जलवायु परिवर्तन से होने वाले प्रभावों पर नियंत्रण हेतु वी-20 समूह प्रारम्भ हुआ।इस समूह की शुरुआत पेरू की राजधानी लीमा में अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) और विश्व बैंक की वार्षिक बैठक के दौरान की गई। वी-20 समूह अन्तर्राष्ट्रीय, क्षेत्रीय और घरेल स्रोतों से जलवायु परिवर्तन का प्रभाव कम करने के लिए सरकारी और निजी बिल में उल्लेखनीय वृद्धि को बढ़ावा देने के लिए सामूहिक रूप से कार्य करने के लिए प्रतिबद्ध है।
परीक्षोपयोगी प्रश्नोत्तर!
- जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना की घोषणा 30 जून, 2008 को किसके द्वारा की गयी? - तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह
- राष्ट्रीय सौर मिशन का लक्ष्य है - 1 लाख गीगावाट
- फोटोवोल्टोइक उत्पादन में किसका उपयोग करके सौर ऊर्जा को सीधे विद्युत ऊर्जा में बदल दिया जाता है? - सेमी कंडक्टर
- खाना बनाने की सबसे बड़ी सौर ऊर्जा प्रणाली कहाँ स्थापित है? - माउंटआबू (राजस्थान) में
- राष्ट्रीय संवर्द्धित ऊर्जा बचत मिशन के कार्यान्वयन का दायित्व किस मन्त्रालय पर है? - ऊर्जा मंत्रालय
- राष्ट्रीय जल मिशन के कार्यान्वयन का दायित्व किस मंत्रालय पर है? - जल संसाधन मंत्रालय
- राष्ट्रीय हरित भारत मिशन के कार्यान्वयन का दायित्व किस मंत्रालय पर है? - पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन
- राष्ट्रीय सतत् कृषि मिशन का उद्देश्य है। - सूखा प्रतिशोध, आपदा प्रबंधन एवं कृषि अनुसंधान
- जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निपटने के लिए भारत सरकार ने किसकी अध्यक्षता में एक सलाहकार परिषद् का गठन किया है? - प्रधानमंत्री
- मानव की कौन-सी क्रिया जलवायु से सर्वाधिक प्रभावित होती है? - कृषि
2030 जलवायु कार्य योजना के महत्त्वपूर्ण लक्ष्य
भारत ने अपने अभिप्रेत राष्ट्रीय तौर पर निर्धारित योगदान जलवायु परिवर्तन सम्बन्धी संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन को प्रस्तुत कर दिया है।आईएनडीसी स्वच्छ ऊर्जा, ऊर्जा दक्षता में अभिवृद्धि, कम कार्बन सघनता और सुलम्म शहरी केंद्रों के विकास, अपशिष्ट के धनार्जन को बढ़ावा देने, सुरक्षित, सुव्यवस्थित और सतत् और पर्यावरणीय दृष्टि से अनुकूल परिवहन, नेटवर्क, प्रदूषण उपशमन तथा वन वृक्ष आवरण के सृजन के माध्यम से कार्बन सिंक में अभिवृद्धि करने में भारत के प्रयासों से संबंधित उसकी नीतियों और कार्यक्रमों पर केंद्रित है।
वैश्विक तापन (Global Warming)
- मानव क्रियाओं द्वारा उत्सर्जित हरितगृह गैसों में वृद्धि के परिणामतः उत्पन्न ताप वृद्धि को वैश्विक तापन कहते हैं ।
- ग्लोबल वार्मिंग शब्द के प्रयोक्ता ब्रिटिश वालेस ब्रोएकर हैं।
- ग्लोबल वार्मिंग को एंथोपोजेनिक क्लाइमेट चेंज भी कहा जाता है।
- भूमंडलीय तापन मुख्यतः मानवीय कृत्यों का ही परिणाम है।
- क्षोभमण्डल में पृथ्वी की सतह के करीब के वातावरण के औसत तापमान में वृद्धि को भूमंडलीय तापन कहते हैं।
- ग्लोबल वार्मिंग के कारण निम्नलिखित हैं पर्यावरण प्रदूषण, वन-विनाश, ग्रीन हाउस गैसों की बढ़ती मात्रा, ओजोन क्षरण आदि। ग्लोबल वार्मिंग के लिए सर्वाधिक उत्तरदायी गैस कार्बन डाई ऑक्साइड है।
- रेफ्रीजरेटरों तथा एयरकंडीशनरों से निकलने वाली क्लोरो-फ्लोरो कार्बन गैसें वायुमंडल के ऊपरी भाग में स्थित जीवन रक्षक ओजोन परत को नष्ट करती हैं जिससे ग्रीनहाउस प्रभाव में वृद्धि होती है।
- साइबेरिया क्षेत्र में वर्ष भर जमी रहने वाली मृदा परमोफॉस्ट के गलने से ग्लोबल वार्मिंग में वृद्धि हो रही है।
- काला कार्बन प्रकाश का अवशोषण करने वाला सबसे प्रबल पदार्थ है। यह जीवाश्म ईंधनों कोयला, पेट्रोल तथा जैव ईंधनों लकड़ी, उपले एवं बायोमास के अपूर्ण दहन से पैदा होता है।
- काला कार्बन की वैश्विक तापन क्षमता कार्बन डाइ ऑक्साइड से लाख गुना ज्यादा होती है।
- काला कार्बन उत्सर्जन कम करने के लिए केंद्र सरकार प्रोजेक्ट सूर्य और प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना चलायी है।
- भूरा कार्बन ग्लोबल वार्मिंग में योगदान देने वाला एरोसॉल है।
- ग्रीन कार्बन प्रकाश संश्लेषण की क्रिया द्वारा वायुमंडलीय कार्बन डाइऑक्साइड कार्बन पृथक होकर पौधों एवं मिट्टी में समाहित होता है।
- ब्लू कार्बन वह है जो वायुमंडलीय कार्बन समुद्री एवं तटीय परितंत्रों के मैंग्रोव वनों, लवणीय दलदलों, समुद्री घासों एवं समुद्री खरपतवारों में जमा हो जाता है।
ग्लोबल वार्मिंग से बचने के उपाय
- जीवाश्म ईंधन का उपयोग कम करना जिससे ग्रीन हाउस गैस का उत्सर्जन कम हो।
- सौर ऊर्जा का बड़े पैमाने पर प्रयोग किया जाय।
- डीजल के विकल्प के रूप में जेट्रोफा के तेल का प्रयोग किया जाय।
- प्रदूषण से सम्बन्धित राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय कानूनों का कड़ाई से पालन करना।
- सभी प्रकार के प्रदूषण के प्रति आम लोगों में सहमति लायी जाय।
- वृहद् पैमाने पर वृक्षारोपण किया जाना।
- ताप विद्युत संयंत्रों में इलेक्ट्रो स्टेटिक प्रेसीपिटेटर लगाया जाय।
- देश अपने कुल भू-भाग पर 33 प्रतिशत क्षेत्र को वनाच्छादित करे।
- ग्रामीण क्षेत्र में बायोगैस का वैकल्पिक ऊर्जा के रूप में प्रयोग किया जा सकता है।
Join the conversation