जैवमंडल (Biosphere) किसे कहते हैं | परिभाषा, प्रकार, विस्तार
जैवमंडल: जब हम जीवमंडल, स्थल मण्डल तथा वायुमण्डल इन तीनों मण्डलों के साथ-साथ सम्पूर्ण जैव जीवों को सम्मिलित रूप में एक बड़ी इकाई का रूप लेते हैं ...
जैवमंडल (Biosphere) किसे कहते हैं?
जैवमंडल: जब हम जीवमंडल (jalmandal), स्थल मंडल (sthalmandal) तथा वायुमंडल (vaayumandal) इन तीनों मंडलों के साथ-साथ सम्पूर्ण जैव जीवों को सम्मिलित रूप में एक बड़ी इकाई का रूप लेते हैं तो इसे जीवमण्डल (jivmandal) के रूप में जाना जाता है. पृथ्वी पर निवास करने वाले समस्त जीव इसी मंडल में पाये जाते हैं.
What is Biosphere |
- जीवमण्डल की अपनी संरचना होती है, जो जैव एवं अजैव घटकों से मिलकर बनी है. प्रत्येक घटक एक विशिष्ट कार्य सम्पन्न करता है.
- जीवमण्डल को सबसे बड़ा जैव तन्त्र माना जाता है.
- किसी भौगोलिक क्षेत्र के समस्त पारिस्थितिकी तंत्र एक साथ मिलकर एक और भी बड़ी इकाई का निर्माण करते हैं, जिसको जीवोम या बायोम कहते हैं.
- पृथ्वी पर स्थल, जल तथा वायु जैव जीवों का पोषण करते हैं.
- जीवमण्डल के अजैव घटक बहुत से पदार्थों से बने हैं जैसे - वायु, जल, मृदा तथा खनिज.
- प्रकाश, ताप, नमी तथा वायुदाब जैसे घटक जलवायु का निर्धारण करते हैं.
- जनसंख्या, समाज (जैव), भौतिक पर्यावरण (अजैव) सभी पारिस्थितिकी तंत्र के घटक हैं. ये घटक पारिस्थितिकी तंत्र की संरचना प्रदान करते हैं.
- जीवमण्डल की संरचना सामान्य रूप से 30 किमी. से कम मोटी वायु, जल, स्थल, मिट्टी तथा शैल की पतली परत से होता है.
- सागरीय भाग में जीवों का पता 9 किमी. की गहराई तक लगाया गया है.
- जीवमण्डल एक खुला तंत्र का भी उदाहरण है क्योंकि इसमें ऊर्जा का सतत् निवेश या आगमन तथा पदार्थों का सतत् बर्हिगमन होता रहता है.
पारितन्त्र की संरचना
एक पारितन्त्र के प्रमुख घटक हैं -
अजैव घटक
अकार्बनिक व कार्बनिक पदार्थ और जलवायु कारक जैसे हवा, पानी, मिट्टी और धूप अजैव घटक हैं।
अकार्बनिक पदार्थ - ये अनेक पोषक तत्व और यौगिक जैसे- कार्बन, नाइट्रोजन, सल्फर, फास्फोरस, कार्बन डाइऑक्साइड, जल आदि हैं.
कार्बनिक पदार्थ - ये प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, ये लिपिड, खाद, मिट्टी, पदार्थ आदि हैं.
जैव घटक
ये निम्न प्रकार के होते हैं
उत्पादक - ये क्लोरोफिल हैं, जैसे युक्त पौधे होते घास या पेड़.
परभोक्ता - ये परपोषी या विषमपोषी कहलाते हैं. परभोक्ता वे जीव हैं जिनकी भोजन आवश्यकताएँ दूसरे जीवों को खाकर पूरी होती हैं.
- प्रकाश संश्लेषण के दौरान उत्पादक सौर ऊर्जा को रासायनिक ऊर्जा में बदलते हैं.
- हरे पौधे अपना भोजन स्वयं तैयार करते हैं, इनको स्वपोषी भी कहते हैं.
- जो पौधे स्वपोषी का भोजन करते हैं शाकाहारी कहलाते हैं, जैसे- खरगोश, बकरी, टिड्डा
- वे प्राणी जो शाकाहारियों को खाते हैं, माँसाहारी कहलाते हैं। जैसे- बाघ, शेर आदि
- वे जीव जो पौधों व प्राणियों दोनों का भोजन कर सकते हैं, सर्वाहारी कहलाते हैं, जैसे- लोमड़ी,मनुष्य, तिलचट्टा आदि
अपघटक
ये प्रमुखतः बैक्टीरिया व फफूंदी (कवक) हैं.
जीवमण्डल : एक पारिस्थितिकी तंत्र
- पारिस्थितिकी तन्त्र एक आधारभूत कार्यशील क्षेत्रीय इकाई होती है. जिसके अंतर्गत जैविक समुदाय, अजैविक संघटक तथा ऊर्जा संघटक के सकल रूप को शामिल करते हैं तथा निर्धारित समय के परिवेश में इन संघटकों के आपसी अन्तर्सम्बन्धों एवं अन्तर्क्रियाओं का अध्ययन करते हैं.
- जीवमण्डलीय पारिस्थितिकी तन्त्र की रचना जैविक संघटक, अजैविक संघटक तथा ऊर्जा संघटक से होती है. ये संघटक वृहदस्तरीय भू-जैव संसाधन चक्रों के माध्यम से अन्तरंग ढंग से एक-दूसरे से अन्तर्सम्बन्धित हैं.
जीवमण्डलीय पारिस्थितिकी तन्त्र
स्थलीय बायोम तन्त्र | जलीय बायोम तन्त्र |
---|---|
पादप तन्त्र | पादप तन्त्र |
जन्तु तन्त्र | जन्तु तन्त्र |
मृदा तन्त्र | मृदा तन्त्र |
जीवमण्डल के उपतन्त्र
- जीवमण्डल की रचना पार्थिव बायोम तन्त्र और जलीय बायोम तन्त्र से होती है.
- पार्थिव बायोम तन्त्र को स्थलीय तन्त्र कहते हैं.
- स्थलीय बायोम तन्त्र के तीन उपतन्त्र हैं -
- 1 पादप तन्त्र
- 2. जन्तु तन्त्र
- 3. मृदा तन्त्र
- पार्थिव उपतन्त्र आपस में ऊर्जा तथा पदार्थों के संचरण एवं स्थानान्तरण के विभिन्न चक्रीय मार्गों द्वारा अन्तरंग रूप से अन्तर्सम्बन्धित होते हैं.
- जलीय बायोम तन्त्र के तीन उपतन्त्र होते हैं
- (1) पादप तन्त्र
- (2) जन्तु तन्त्र
- (3) पोषक तन्त्र
- जलीय बायोम तन्त्र के ये तीन उपतन्त्र भी पार्थिक बायोम तन्त्र के उपतन्त्रों की तरह ऊर्जा तथा पदार्थों के संचरण के चक्रीय मार्गों द्वारा आपस में अन्तर्सम्बन्धित होते हैं.
जीवमण्डल के परिवर्तन कर्ता
- जीवमण्डलीय पारिस्थितिकी तंत्र कुछ निश्चित कारकों द्वारा प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित तथा बदलता रहता है।
- भौतिक कारक पारिस्थितिकी तंत्र को तापमान परिवर्तन, जल प्रवाह, अग्नि, खनन, निर्माण कार्य आदि के माध्यम से भी प्रभावित करते हैं.
- रासायनिक कारक वायुमण्डल की रासायनिक संरचना को प्रभावित करते हैं.
- परिवर्तन बदले में जलवायु को परिवर्तित करते और इस तरह परिवर्तित जल तथा मृदा
- पारिस्थितिकी तन्त्र को प्रभावित करती है.
- जीवीय कारक जैसे फसल प्रतिरूप, प्रजातियों के घनत्व तथा वितरण में हस्तक्षेप जनसंख्या की विशेषतायें तथा हेराफेरी एवं प्रजाति आनुवांशिकी पारिस्थितिकी तन्त्र को प्रभावित करते हैं.
जीवमण्डल के संघटक
- सम्पूर्ण जीवमण्डल एक पारिस्थितिक तन्त्र जिसमें जीवमण्डल एवं जीवमण्डलीय पारिस्थितिक तन्त्र के संघटक एक तरह के होते हैं.
- जीवमण्डल या पारिस्थितिक तंत्र अथवा पर्यावरण के तीन मुख्य संघटक हैं
- (1) अजैविक/भौतिक संघटक
- (2) ऊर्जा संघटक
- (3) जैविक संघटक
1. अजैविक या भौतिक संघटक
इसके अंतर्गत सम्पूर्ण जीवमण्डल या उसके किसी क्षेत्र के अजैविक पर्यावरण को शामिल किया जाता है. इसके अंतर्गत सामान्य रूप से स्थलमण्डल, वायुमण्डल तथा जलमण्डल को शामिल किया गया है.
स्थलमण्डलीय स्थल
- यह जीवमण्डल पारितन्त्र का मुख्य संघटक है.
- स्थलमण्डलीय संघटक में खनिज, शैल, तत्व, मिट्टी, गार्ज, कैनियन, सागरीय क्लिफ, सर्क, कन्दरा, जलप्रपात, इन्सेलबर्ग, बालूका स्तूप, जलोढ़ मैदान, जलोढ़ शंकु, डेल्टा, सागरीय पुलिन, पठार, पर्वत, मैदान, भ्रंश घाटी आदि सम्मिलित हैं.
- सम्पूर्ण ग्लोब के क्षेत्रफल में लगभग 29 प्रतिशत भाग स्थलमण्डल का है.
- विवर्तनिक प्रक्रमों या विवर्तन चक्र द्वारा स्थलमण्डल पर महाद्वीप, पर्वत, पठार, कगार, भूभ्रंशघाटी, झील आदि का निर्माण होता है.
- पृथ्वी पर तीन मण्डल पाये जाते हैं जिसमें प्रथम ऊपरी मण्डल को क्रास्ट कहा जाता है जिसका औसत घनत्व 2.8 से 3.0 तथा औसत गहराई 30 किमी. से 100 किमी. तक
- पृथ्वी के दूसरे मण्डल को मैण्टिल कहा जाताहै। इस मण्डल की सीमा 2900 किमी. की गहराई तक है.
- शैल स्वाभाविक रूप से निक्षेपित वह पिण्ड है, जिससे भू-पृष्ठ का ठोस भाग बना है.
शैल का वर्गीकरण
आग्नेय शैल - ग्रेनाइट, बैथोलिथ, लैकोलिथ, फैकोलिथ, लोकोलिथ, सिल, डाइका, ग्रेबो, ओबसीडियन, बेसाल्ट, डोलोराइट, डायोराइड, पेरिडोटाइट.
अवसादी शैल - बालुका पत्थर, कांग्लोमरेट, चीका मिट्टी, शैल, लोयस, चूना पत्थर, कोयला, पीट, खड़िया मिट्टी, सेलखड़ी, नमक की चट्टान.
रूपान्तरित शैल - स्लेट, संगमरमर, क्वार्टजाइट, ग्रेफाइट, नीस, सिस्ट.
- 2900 किमी. गहराई तक भूगर्भ की चट्टानें ठोस अवस्था में हैं तथा उससे अधिक गहराई पर भूगर्भ की चट्टानें तरल अवस्था में हैं.
- पृथ्वी की आन्तरिक संरचना को निम्न तीन भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है ठोस, द्रव और गैसीय।
- भूपटल का ठोस भाग 39 किमी. मोटा है.
- भूपटल का मध्यम भाग द्रव रूप में है जो 234 किमी. मोटा है.
- भूपटल का आन्तरिक भाग गैस रूप में है। इसमें लोहा उच्च तापमान के साथ पाया जाता है.
- स्वेस महोदय ने पृथ्वी की ऊपरी परत को सियाल नाम दिया है। इसकी मोटाई 50 से 300 किमी. तक है. इसमें सिलिका तथा एल्यूमीनियम तत्वों की प्रधानता है। इन तत्वों का औसत घनत्व 2.75 से 2.90 तक है. यह परत ग्रेनाइट शैलों से बनी है.
- पृथ्वी की ऊपरी परत ग्रेनाइट की तथा नीचे की परत बेसाल्ट से बनी हुई है.
- महाद्वीपों का निर्माण सियाल से हुआ है.
- सियाल की नीचे वाली परत को स्वेस ने सिमा नाम दिया है। इसका निर्माण सिलिका तथा मैग्नीशियम तत्वों के योग से हुआ है.
- पृथ्वी की सबसे निचली परत को निफे नाम से जाना जाता है.
Points to Remember
- स्थलमण्डल के अन्तर्गत उच्चावच के अन्तर्गत किन श्रेणियों का अध्ययन किया जाता है? - प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय श्रेणी के उच्चावच
- स्थलमण्डल का क्षेत्रफल कितना है? - 15 करोड़ वर्ग किमी.
- प्रथम श्रेणी के उच्चावच हैं - महाद्वीप एवं महासागर
- किस परत को प्लास्टिक दुर्बलता मण्डल कहा जाता है? - निचली मेण्टल को
- मैण्टिल से उत्पन्न होने वाली तापीय संवहन तरंगों के कारण ही किसमें संचलन होता है? - प्लेटों में
- आधुनिक विचारधारा के अनुसार पृथ्वी की आन्तरिक संरचना का संस्तर है - भू-पर्पटी, मैण्टिल और अन्तरतम
- भूपटल पर वनस्पति आवरण तथा अपक्षय से अप्रभावित आधार शैल के मध्य स्थित मृदा का आवरण किस रूप में होता है? - जैविक भट्टी
मृदा तन्त्र (Soil System)
- मृदा जीवमण्डल का महत्वपूर्ण घटक है. इस कारण मृदा को जीव मण्डल का हृदय भी कहा जाता है.
- भूपृष्ठ पर विस्तृत मृदा की परंत का जीव जगत के लिए अत्यधिक महत्व है.
- मृदा संघटक या मृदा पर्यावरण पृथ्वी पर जैविक जीवों के सबसे अधिक समूह को वास्यस्थान प्रदान करता है.
2. वायुमण्डलीय संघटक
- वायुमण्डल को सामान्यतः पृथ्वी का आवरण कहा जाता है. पृथ्वी के चारों ओर स्वादहीन, गन्धहीन एवं रंगहीन गैसों वाले आवरण को वायुमण्डल कहा जाता है.
- वायुमण्डल हमारी पृथ्वी का अभिन्न अंग है, यह गुरुत्वाकर्षण के कारण पृथ्वी से लिपटा हुआ है.
- वायुमण्डल के निम्न तथा ऊपरी भागों में हल्की गैस पायी जाती है। वायुमण्डल का 99 प्रतिशत भाग इन्हीं गैसों से बना हुआ है.
- वायुमण्डल में जलवाष्प की मात्रा भूमध्य रेखा से ध्रुवों की ओर घटती जाती है.
गैसें | वायुमण्डल में प्राप्त मात्रा (%) में | वायुमण्डल में ऊँचाई (km.) में |
---|---|---|
नाइट्रोजन | 78.03 | 100 km |
ऑक्सीजन | 20.99 | 100 km |
आर्गन | 0.94 | 250 km |
कार्बन डाइ ऑक्साइड | 0.03 | 22 km |
हाइड्रोजन | 0.01 | 150 km |
तापमान, वायुदाब तथा गैसों की भिन्नता के कारण समस्त वायुमण्डल को निम्नलिखित छः मण्डलों में विभक्त किया जा सकता है -
1. परिवर्तन मण्डल या क्षोभमण्डल (Troposphere)
2. मध्य स्तर या क्षोभ सीमा (Tropopause)
3. समताप मण्डल (Stratosphere)
4. ओजोनमण्डल (Ozonosphere)
5. आयनमण्डल (Inosphere)
6. आयतन मण्डल (Exosphere)
2. मध्य स्तर या क्षोभ सीमा (Tropopause)
3. समताप मण्डल (Stratosphere)
4. ओजोनमण्डल (Ozonosphere)
5. आयनमण्डल (Inosphere)
6. आयतन मण्डल (Exosphere)
- परिवर्तनमण्डल या क्षोभमण्डल की औसत ऊँचाई धरातल से 12 किमी. है.
- भूमध्य रेखा पर क्षोभमण्डल की ऊँचाई 18 किमी. तथा ध्रुवों पर 7 किमी. होती है.
- इस मण्डल में तापमान का परिवर्तन ऋतुओं के अनुसार होता है. दूसरी ओर प्रति 1 किमी. की ऊँचाई पर 6° सेंग्रे. या प्रति 165 मीटर पर 1°C तापमान कम हो जाता है.
- मौसम परिवर्तन की सभी प्रक्रियाएँ कुहरा, बादल, आँधी, वर्षा, विद्युत प्रकाश, जेट स्ट्रीम आदि इसी मण्डल में होती हैं.
- परिवर्तन मण्डल और समताप मण्डल के बीच में मिलने वाले मण्डल को मध्य या क्षोभ सीमा कहते हैं, इस भाग में सभी मौसमीय परिवर्तन समाप्त हो जाते हैं.
- धरातल के 16 किमी. से 80 किमी. की ऊँचाई में समताप मण्डल का स्तर मिलता है। इस मण्डल में तापक्रम या मौसमीय परिवर्तन का कोई खास परिवर्तन नहीं होता है.
- इस मण्डल में वायुदाब धरातल की अपेक्षा केवल 1/1500 रह जाता है। यहाँ वायु का औसत तापमान 55°C रहता है.
- समताप मण्डल का ऊपरी स्तर ओजोन मण्डल कहलाता है। इसकी धरातल से ऊँचाई 32 किमी. से 80 किमी. के बीच है.
- ओजोन मण्डल में सूर्य की पराबैंगनी किरणें शोषित कर लेने के कारण मानव के लिये हानिकारक यह किरणें भू-सतह पर नहीं पहुँच पातीं.
- ओजोन मण्डल के ऊपर आयनमण्डल स्थित है, इसकी ऊँचाई धरातल से 80 किमी. से 640 किमी. तक मिलती है। वायुमण्डल के इस स्तर में विस्मयकारी चुम्बकीय व विद्युत प्रक्रियाएँ सम्पन्न होती हैं.
- इस मण्डल में गैसें अत्यंत विरल आयनों के रूप में वितरित मिलती हैं.
- आयनमण्डल में निम्न तीन परतों का विस्तार मिलता है.
- D - परत - यह भूपटल से 80 किमी. से 90 किमी. के मध्य स्थित है.
- इस परत में मध्यम तथा उच्च आवृत्ति की रेडियो तरंगें परिवर्तित हो जाती हैं.
- E - परत - यह परत धरातल से 90 किमी. से 160 किमी. की ऊँचाई तक विस्तृत है. रेडियो की मध्यम तरंगें इन परतों में परिवर्तित हो जाती हैं.
- F - परत - यह परत 160 किमी. से 640 किमी. की ऊँचाई तक विस्तृत हैं. इस परत में रेडियो की लघु तरंगें लम्बी दूरियों तक परिवर्तित हो जाती हैं.
- आयनमण्डल यदि न हो तो रेडियो तरंगें परावर्तित न होकर सीधी आकाश में चली जायेंगी.
- आयतनमण्डल के ऊपर धरातल से 640 किमी. से अधिक ऊँचाई पर आयतनमण्डल या बाह्य मण्डल स्थित है.
- आयतन मण्डल में हाइड्रोजन तथा हीलियम जैसी हल्की गैसों की प्रधानता रहती है.
- आयतनमण्डल के वायु का तापमान लगभग 6000° सेंग्रे. के आसपास रहता है.
- विद्युत चुम्बकीय विकिरण में विभिन्न तरंग लम्बाई के चार वर्ग हैं.
- पराबैगनी किरणें - गामा किरण, एक्स किरण आदि.
- दृश्य प्रकाश किरणें - इनमें बैगनी, जामुनी, नीली, हरी, पीली, नारंगी, लाल किरणें आदि हैं। सूर्य से विकर्ण कुल ऊर्जा के 41 प्रतिशत भाग का प्रतिनिधित्व करती है.
- अवरक्त किरणें - ये किरणें सौर्यिक स्पेक्ट्रम की समस्त ऊर्जा के 50 प्रतिशत भाग का प्रतिनिधित्व करती हैं.
- दीर्घ तरंगों के अन्तर्गत माइक्रोवेव्स सूक्ष्म तरंग राडार तथा रेडियो तरंगों को शामिल किया जाता है.
- जीवमण्डल पृथ्वी के आन्तरिक भाग से भी कुछ ऊर्जा प्राप्त करता है। इस ऊर्जा को भूतापीय ऊर्जा कहते हैं.
- पृथ्वी पर तापमान का स्रोत सूर्य है. सूर्य से प्राप्त ऊष्मा को सूर्याताप कहते हैं.
- पृथ्वी पर सूर्य के प्रकाश का दो अरबवाँ भाग ही पहुँच पाता है.
- वायुमण्डल की 3200 किमी. मोटी परत सूर्याताप को नष्ट करती है.
- ध्रुवों के पास तो 6 महीने का दिन तथा 6 महीने की रात होती है.
- सम्पूर्ण वायुमण्डलीय ऊष्मा का मात्र 14% भाग सौर्यिक विकिरण से तथा 34% ऊष्मा पृथ्वी से प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप में प्राप्त होती है.
Points to Remember
- विश्व की अधिकांश वर्षा किस तरह की होती है? - पर्वतीय वर्षा
- 60° दक्षिणी अक्षांश की पछुआ हवा को क्या कहते है - चीखती साठा
- वायु की गति धरातल पर कम रहने से वातावरण शान्त रहता है, इसलिए इसे क्या कहते हैं? - डोलड्रम या शान्त क्षेत्र
- दो स्थानों के वायुदाबों में अन्तर को दाब प्रवणता कहते हैं. इसी दाब प्रवणता के कारण क्या होता है? - पवन संचार
- किस रेखा के आस-पास शरद काल नहीं होता है? - भूमध्य रेखा
- भूतल पर तापमान में भूमध्य रेखा से ध्रुवों की ओर जाने पर क्या होता जाता है? - ह्रास
- कभी-कभी ऊँचाई के साथ तापमान बढ़ता है। इस स्थिति को क्या कहते हैं? - तापीय प्रतिलोमन
- सूर्य से ऊर्जा का उत्सर्जन किस रूप में होता है? - विद्युत विकिरण
- संसार का सबसे अधिक गतिक एवं विध्वंसक तूफान है - टॉरनैडो
- सबसे लम्बी तरंगें होती हैं - रेडियो तरंगें
- कुहरा तथा पाला की उत्पत्ति का कारण है. - तापीय प्रतिलोमन
- वायुमण्डल की अशुद्धियों में किसके कण आर्द्रताग्राही नाभिक बनाते हैं? - नमक के कण
- सम्पूर्ण पृथ्वी का क्षेत्रफल कितना है? - 51 करोड़ वर्ग किमी
हवाए
वायुदाब और नियतवाही या स्थायी या ग्रहीय हवाए
जो हवाएँ पृथ्वी पर वर्षपर्यन्त एक निश्चित दिशा में स्थायी रूप से चला करती हैं वे नियत वाहिनी या प्रचलित या ग्रहीय या स्थायी या सनातनी हवाएँ कही जाती हैं.
ग्लोब पर प्रमुख रूप से तीन प्रकार की स्थायी हवाएँ प्रचलित हैं -
1. व्यापारिक हवाएँ : प्राचीन काल में महासागरों में जलयान चलाने में सहायक होने वाले पवनों का नाम व्यापारिक पवन पड़ा है. इसका विस्तार 30° उत्तरी से 30° दक्षिणी अक्षांशों के मध्य पाया जाता है. व्यापारिक पवन मेखला को डोलड्रम भी कहा जाता है।
2. पछुआ हवाएँ : समुद्री भागों में पछुआ हवाएँ तीव्रता तथा प्रचण्ड गति से बहती हैं, जिसके कारण नाविक हवाओं को वीर पछुआ भी कहते हैं. अत्यधिक तीव्र गति के कारण पछुआ हवाएँ 40° दक्षिणी अक्षांश पर गरजती चालीसा कही जाती है. तीव्रगामी पछुआ हवाओं को 50° दक्षिणी अक्षांश पर भयंकर या प्रचण्ड पचासा तथा 60° दक्षिणी अक्षांश पर चीखती साठा भी कहते हैं.
3. ध्रुवीय हवाएँ : ध्रुवीय हवाएँ अत्यंत ठंडी होती हैं जो उपध्रुवीय निम्न वायु दबाव की पवनों के सम्पर्क में आकर चक्रवात तथा प्रतिचक्रवात उत्पन्न करती हैं.
- पर्वतीय भागों के प्रति पवन ढालों पर चलने वाली गर्म एवं शुष्क हवाएँ यूरोप में आल्पस के पर्वतीय भागों में फोहन तथा उत्तरी अमेरिका में रॉकी के पर्वतीय भागों में चिनूक कहलाती हैं.
- सिरक्को हवाएँ सहारा के मरुस्थल, इटली, स्पेन, लीवेण्ट देशों ईरान तथा इराक में चला करती हैं, सिरक्को शुष्क एवं धूल भरी गर्म मरुस्थलीय हवाएँ हैं.
- सिरक्को हवाएँ मिस्र में खमसिन सऊदी अरब तथा ईरान में सीमून या जहरीली हवाएँ, सीरिया तथा लेबनान में श्लूर, इराक में शारकी तथा फारस की खाड़ी के सहारे-सहारे काउस कहलाती हैं.
- फोहन हवाएँ स्विट्जरलैण्ड की घाटियों की बर्फ पिघलाकर मौसम सुहाना बना देती हैं.
- वायुमण्डल में विद्यमान जलवाष्प का द्रवीभूत होकर धरातल पर बूँदों के रूप में गिरना वर्षा कहलाता है.
- वायुमण्डल में ऊपर उठती हुई हवा का तापमान जैसे ही ओस बिन्दु से नीचे जाता है, वाष्प वे जलकणों में बदलकर बादलों का रूप धारण कर लेती है.
पवन के शीतल होकर घनीभूत होने के आधार पर वर्षा को निम्न तीन प्रकारों में वर्गीकृत किया जा सकता है
1. संवहनीय वर्षा - गर्मी में दोपहर के समय वायुमण्डल में संवहन धाराएँ उत्पन्न हो जाती हैं. संवहन धाराओं को जन्म देने का श्रेय भीषण गर्मी को जाता है.
- ऊपरी भागों में कम तापमान पाया जाता है अतः ऊपर पहुँचकर हवा ठण्डी हो जाती है. ठण्डी होने पर वायु में संघनन क्रिया प्रारम्भ हो जाती है और आकाश में गहरे कपासी बादल छा जाते हैं.
- संवहनीय वर्षा विद्युत की चमक तथा बादलों की गर्जन के साथ मूसलाधार रूप में होती है.
- संवहनीय वर्षा उष्ण जलवायु शीतोष्ण जलवायु के प्रदेशों में ग्रीष्म ऋतु में होती है.
- विषुवतरेखीय भागों में प्रतिदिन तीसरे पहर संवहनीय वर्षा हुआ करती है.
2. पर्वतीय वर्षा - ऊष्ण तथा आर्द्र पवनों के मार्ग में जैसे ही एक ऊँचा पर्वत बाधा के रूप में उपस्थित होता है, पवन उसके सहारे ऊपर उठ जाते हैं, पर्वतों के ऊपरी भाग के नीचे तापमान के सम्पर्क क में आकर वायु ठण्डी हो जाती है तथा वर्षा कर देती है। ऐसी वर्षा 'पर्वतीय वर्षा' कहलाती है.
- जब पर्वत के पिछले ढालों पर वर्षा नहीं होती है तब ऐसे ढालों को वृष्टिछाया प्रदेश कहते हैं.
- मानसूनी प्रदेशों में ग्रीष्म ऋतु में पर्वतीय वर्षा ही होती है.
- भारत में हिमालय पर्वत से होने वाली तथा उत्तरी अमेरिका में रॉकी पर्वत से होने वाली पर्वतीय वर्षा ही है. तिब्बत हिमालय का वृष्टिछाया प्रदेश है.
- विश्व की अधिकतम वर्षा पर्वतीय वर्षा के माध्यम से ही प्राप्त होती है.
3. चक्रवातीय वर्षा - वायुराशियों के एक-दूसरे के सम्पर्क में आने के भिन्न तापमान की कारण शीतल हवाएँ उष्ण हवाओं को ऊपर ढकेलती हैं. ऊपर उठने पर गर्म हवा ठण्डी हो जाती है और वर्षा कर देती है. इसी को चक्रवातीय वर्षा कहते हैं.
- अयन रेखाओं के क्षेत्रों में तथा मध्य अक्षांशों में वर्षभर चक्रवातीय वर्षा होती है.
- उत्तरी भारत में शीत ऋतु में होने वाली वर्षा चक्रवातीय वर्षा ही होती है.
- शीतोष्ण कटिबन्धीय क्षेत्रों में चक्रवातीय वर्षा होती है। पश्चिमी यूरोप तुल्य जलवायु प्रदेश वर्ष भर चक्रवातीय वर्षा ही प्राप्त करते हैं.
- तड़ित झंझा चक्रवात तथा प्रतिचक्रवात की महत्वपूर्ण घटनायें हैं - बिजली चमकती है तथा मूसलाधार वर्षा होती है। भूमध्य रेखीय प्रदेश तड़ित झंझा से सर्वाधिक प्रभावित होते हैं.
- मध्य अक्षांशों में शीतोष्ण कटिबन्धीय चक्रवातों के साथ ही तड़ित झंझा की घटनायें होती हैं। तेज तड़ित झंझा से धन-जन की हानि होती है.
- वायुमण्डलीय तूफान टारनैडो प्रमुख रूप से दक्षिण पूर्वी संयुक्त राज्य अमेरिका में सक्रिय होते हैं.
- हरिकेन तथा टाइफून उष्ण कटिबंधीय चक्रवातीय तूफान हैं.
- हरिकेन दक्षिणी तथा दक्षिण-पूर्व संयुक्त राज्य अमेरिका और टाइफून दक्षिणी, दक्षिणी-पूर्व तथा पूर्वी एशिया के सागरीय तटीय भागों को प्रभावित करते हैं.
बादल (Clouds)
वायुमण्डल के ऊपरी भागों में जलवाष्प कोहरे की भाँति संगठित हो जाती है जिससे बादलों का जन्म होता है.
ओसांक प्राप्त विशाल वायुराशि को ही बादल कहा जाता है.
- मध्य तथा उच्च अक्षांशों में सर्वाधिक बादल पाये जाते हैं. 20° से 30° के मध्य अक्षांशीय क्षेत्रों में सबसे कम बादल पाये जाते हैं.
- विषुवतरेखीय क्षेत्रों में बादल तो अधिक बनते हैं परन्तु प्रतिदिन वर्षा हो जाने आकाश बादल से रहित रहता है.
- श्वेत, कोमल तथा रेशम की तरह चमकीले बादल पक्षाभ कहलाते हैं. ये बादल पक्षियों के श्वेत पंखों के समान प्रतीत होते हैं, इनमें वर्षा नहीं हो पाती है.
- पूरे आकाश में श्वेत चादर की तरह फैले बादल पक्षाभ स्तरी कहलाते हैं। इनके कारण सूर्य का प्रकाश दूधिया प्रतीत होता है. ये बादल सूर्य और चन्द्रमा के चारों ओर प्रभामण्डल का निर्माण कर लेते हैं.
- जो बादल गोलाकार धब्बों की तरह अथवा सागर तट पर पड़ी बालू की तरह प्रतीत होती है उन्हें पक्षाभ कपासी बादल कहा जाता है.
- श्वेत, भूरे रंग के सामान्य छायादार अथवा पतले गोलाकार धब्बों के रूप में प्रतीत होने वाले मेघ उच्च-कपासी बादल कहलाते हैं। ये बादल समूचे आकाश को एक पतली चादर के रूप में ढँक लेते हैं.
- भूरे अथवा नीले रंग के छोटे-छोटे स्तरों के मेघों को उच्च स्तरीय बादल कहा जाता है। ये बादल चादर की तरह आकाश में फैले दिखायी पड़ते हैं जिससे सूर्य और चन्द्रमा का प्रकाश धुंधला दिखाई पड़ता है। घनघोर वर्षा होती है.
- गोलाकार लहरों की भाँति एक परत में बने मेघ स्तरी कपासी बादल कहलाते हैं। इन बादलों का रंग काला होता है। ये पूरे आकाश को ढंग लेते हैं.
- धरातल को छूते हुए काले पिण्ड के समान प्रतीत होने वाले मेघ वर्षी बादल कहलाते हैं. इन बादलों के आकाश में छाने पर पृथ्वी पर अंधेरा हो जाता है। ये बादल घनघोर वर्षा प्रदान करते हैं.
- गुम्बदाकार अथवा गोभी के फूल के आकार के मेघ जिनका रंग सफेद रुई की तरह होता है, कपासी बादल कहलाते हैं.
- गहरे काले रंग वाले भारी बादल जो खूब गरजते हैं तथा मीनार की तरह ऊँचे उठे प्रतीत होते हैं कपासी वर्षी बादल कहलाते हैं। ये भारी वर्षा करते हैं और ओले भी बरसाते हैं.
- भूमि के निकट अनेक परतों में कोहरे के समान छाए मेघ स्तरीय बादल कहलाते हैं.
3. जलमण्डलीय संघटक - जल जीवमण्डल में भू-जैव रसायन चक्रों को दक्ष तथा प्रभावी बनाता है.
महाद्वीपीय मग्न तट
- महाद्वीपों के वे किनारे वाले भाग जो धीमा ढाल रखते हैं तथा महासागरीय जल में डुबे हुए हैं, महाद्वीपीय मग्न तट कहलाते हैं.
- मग्नतट की औसत गहराई 200 मीटर या 100 फैदम तक होती है.
- समस्त महाद्वीपीय मग्नतट का क्षेत्रफल लगभग 3 करोड़ वर्ग किमी. है, जो सम्पूर्ण सागरीय नितल का 8 प्रतिशत है.
- मग्नतटों पर सागरीय निक्षेप, हिम निक्षेप तथा नदीय निक्षेप प्रधानता से मिलते हैं.
- महाद्वीपीय मग्नतटों का औसत ढाल 1° से 30 के मध्य या 0.2 प्रतिशत तथा 17 फीट प्रति मील पाया जाता है.
महाद्वीपीय मग्न ढाल
- यह एक गहन ढाल वाला महासागरीय क्षेत्र है. यह महाद्वीपीय मग्नतट तथा महासागरीय मैदान के मध्य विभिन्न गहराइयों में विस्तृत है.
- महासागरों के कुल क्षेत्रफल के लगभग 8.5 प्रतिशत भाग में महाद्वीपीय मग्नढाल का विस्तार है.
- महाद्वीपीय मग्न ढाल 200 मीटर से 2000 मीटर गहराई लिये मिलते हैं.
- मग्न ढालों पर जगह-जगह गहरी खाइयाँ तथा कंदराएँ पायी जाती हैं.
- मग्न ढालों पर सामान्यतया स्थलीय तथा सागरीय अवसादों का जमाव नहीं मिलता है.
गहरे सागरीय मैदान
- महाद्वीपीय मग्न ढालों से नीचे की ओर गहरे सागरीय मैदान विस्तृत हैं.
- क्षेत्रफल की दृष्टि से गहरे सागरीय मैदान समस्त महासागरीय तली क्षेत्रफल का 82.7 प्रतिशत रखते हैं.
- गहरे सागरीय मैदान मुख्य रूप से 20° उत्तरी तथा 60° दक्षिणी अक्षांशों के मध्य मिलते हैं, जबकि 60° उत्तरी अक्षांश से 70° उत्तरी अक्षांश के मध्य यह प्रायः नहीं मिलते.
- इन मैदानों पर कहीं-कहीं लम्बी-लम्बी कटक तथा सँकरे गर्त मिलते हैं.
- गहरे सागरीय मैदानों पर स्थलीय निक्षेपों अथवा नदियों द्वारा लाये गये निक्षेपों का पूर्णतः अभाव मिलता है.
महासागरीय गर्त
- सागरीय तली में स्थित वे गर्त जो सागरीय मैदानों से भी अधिक गहरे होते हैं, महासागरीय गर्त कहलाते हैं.
- महासागरीय गर्त महासागरीय तली के लम्बे, संकरे तथा सर्वाधिक गहरे भाग होते हैं.
- महासागरीय तली के लगभग 12 प्रतिशत भाग पर महासागरीय गर्तों की उपस्थिति मिलती है.
- कम क्षेत्रफल में विस्तृत अधिक गहरे खड्ड को गर्त तथा अपेक्षाकृत अधिक लम्बाई में विस्तृत खड्ड को खाई कहते हैं.
नाम | स्थिति | गहराई (फैदम में) |
---|---|---|
मेरियाना या चैलेंजर | उ. प्रशान्त महासागर | 5269 |
आल्डरिच या टोंगा | मध्यवर्ती- द. प्र. महासागर | 5022 |
फिलीपींस | उ. प. प्रशांत महासागर | 4767 |
पोर्टोरिको | प. द्वीप समूह के सागरीय भाग | 4662 |
टस्कारोरा या जापान | जापान का समीपवर्ती सागरीय भाग | 4655 |
तिजार्ड या रोमांचे | द. अटलांटिक महासागर | 4030 |
सुण्डा | पूर्वी हिन्द महासागर | 3828 |
मुरे | महासागर - उ. प्र. मध्यवर्ती | 3540 |
- विश्व का सबसे गहरा गत फिलीपीन्स द्वीप समूह के उत्तर-पूर्व में स्थित मेरियाना गर्त है, जिसकी गहराई 5269 फैदम है.
- गर्तों की गहराई सामान्यतया 6000 मीटर से 15000 मीटर के मध्य मिलती है.
- सागरीय भागों में सूर्य का प्रकाश 200 मीटर गहराई तक प्रवेश करता है जो सागरीय जीवों के लिए महत्वपूर्ण है। इसे प्रकाशित मण्डल कहते हैं.
- 200 मीटर से अधिक गहराई वाले भाग को अप्रकाशित मण्डल कहते हैं। यहाँ पर रहने वाले जीवों को 'नेक्टन' कहा जाता है.
- वे जीव जो सागर की तली में रहते हैं बेन्थस कहलाते हैं.
- भारत की सकल वार्षिक वर्षा का 80 प्रतिशत से अधिक भाग वर्ष के मात्र जुलाई, अगस्त, सितम्बर 3 महीनों में ही प्राप्त होते हैं.
- विश्व की अधिकतर नदियों का प्रयोग कारखानों के अपशिष्ट या उत्सर्जित पदार्थों तथा मलजल के विसर्जन के लिए किया गया है.
- विश्व की अधिकांश नदियाँ अधिकतर प्रदूषित हो गयी हैं.
- महासागरीय जल या जलमण्डल ग्लोब के सम्पूर्ण क्षेत्रफल के 71% भाग पर विस्तृत है.
- जल को निम्न रूपों में विभाजित किया गया है यथा महासागर, सागर, लघु बन्दर सागर आदि.
- सामान्य रूप से सागरीय जल की सतह का औसत तापमान लगभग 260 सेंटीग्रेड होता है.
- महासागरीय जल के सतह के तापमान का दैनिक तापान्तर बहुत कम होता है.
- महासागरीय जल का सर्वाधिक तापमान अयन अक्षांशों के समीप 30° से 40° मिलता है.
Points to Remember
- महासागरीय जल की औसत लवणता कितने प्रतिशत होती है? - 35%
- टर्की की वान झील की सर्वाधिक लवणता कितने प्रतिशत है? - 330%
- पुरानी जलोद् मृदा को कौन-सा नाम दिया गया है - बागर
- महासागर में लवणता का प्रमुख कारण है - सोडियम क्लोराइड
- सागर की तली में रहने वाले जीवों को कहते हैं - बेन्थस
- विश्व की अधिकांश वर्षा किस प्रकार की होती है? - पर्वतीय
- व्यापारिक हवाओं तथा विषुवत रेखीय पछुआ हवाओं के सम्मिलित मण्डल को क्या कहते हैं? - अन्तरा उष्ण कटिबंधीय अभिसरण
- भारत की सकल वार्षिक वर्षा का 80 प्रतिशत से अधिक किन तीन महीनों में होता है? - जुलाई, अगस्त और सितम्बर
महासागरीय जल की लवणता
- सागरीय जल में घुले हुए समस्त लवणों का योग ही सागरीय जल लवणता कहलाता है.
- महासागरीय जल की लवणता 'सोडियम क्लोराइड' के कारण होती है.
- सागरों के जल में लवणता का औसत 35 प्रतिशत पाया जाता है. सामान्य रूप से 1000 ग्राम सागरीय जल में 35 ग्राम नमक पाया जाता है.
- सागरीय जल में उपस्थित समस्त लवणों का योग महासागरीय जल का खारापन कहलाता है.
- महासागरीय जल से यदि समस्त नमक पृथक् कर लिया जाये तो महासागरों का जल स्तर 30 मीटर नीचा हो जायेगा.
- सागरीय जल तथा ज्वारीय स्थल मछलियों के लिए आदर्श या अनुकूल आधार प्रस्तुत करते हैं और ये मछलियाँ मानव के लिए महत्वपूर्ण खाद्य साधन होती हैं.
- महासागरों तथा सागरों में लवण के संघटन का अनुपात प्रायः एक ही रहता है.
- ज्वारीय तरंगों का ऊर्जा संसाधन के रूप में प्रयोग किया जा सकता है.
- समुद्री लहरों से विद्युत बनाने का भारत का पहला संयंत्र केरल में विजिंगम तट पर चल रहा है.
- ज्वार के मुख्य दो भेद हैं-
- 1. उच्च ज्वार
- 2. निम्न ज्वार
- सूर्य और चन्द्रमा की आकर्षण शक्ति के कारण समुद्र तल के नियमित रूप से ऊपर उठने और नीचे गिरने की क्रिया को ज्वार-भाटा कहते हैं.
- सागरीय जल की लहरें नियमित रूप से ऊपर उठती हैं जिसे ज्वार कहा जाता है तथा उसके पुनः नीचे आने की क्रिया को भाटा कहते हैं.
- अमावस्या और पूर्णिमा की तिथियों को सूर्य, चन्द्रमा तथा पृथ्वी तीनों एक ही सीध में होते हैं। इन तिथियों को पृथ्वी पर सूर्य एवं चन्द्रमा की शक्तियों का संयुक्त प्रभाव पड़ता है.
- उच्च ज्वार अमावस्या और पूर्णमासी को आता है.
- अष्टमी और सप्तमी को सूर्य और चन्द्रमा पृथ्वी से समकोण की स्थिति में होते हैं। अतः दोनों पृथ्वी के जल को विपरीत दिशाओं से अपनी ओर खींचते हैं। इस प्रकार इन दिनों में सागर का जल अन्य दिनों की अपेक्षा कम ऊँचाई तक ही उठ पाता है। यह औसत ज्वार की अपेक्षा 20 प्रतिशत नीचा रहता है। इसे लघु ज्वार कहते हैं.
- सागर तटीय क्षेत्र के प्रत्येक स्थान पर प्रत्येक दिन दो बार ज्वार आते हैं परन्तु प्रत्येक अगला ज्वार 26 मिनट देर से आता है.
लवण | कुल मात्रा (ग्राम में) प्रति हजार ग्राम सागरीय जल में | कुल लवणों की मात्रा का प्रतिशत |
---|---|---|
सोडियम क्लोराइड | 27.2 | 77.8 |
मैग्नीशियम क्लोराइड | 3.8 | 10.9 |
मैग्नीशियम सल्फेट | 1.7 | 4.7 |
कैल्सियम सल्फेट | 1.3 | 3.6 |
कैल्सियम कार्बोनेट | 0.1 | 0.3 |
पोटैशियम सल्फेट | 0.8 | 2.4 |
मैग्नीशियम ब्रोमाइड | 0.1 | 0.3 |
योग | 35.0 | 100.0 |
महासागरीय धाराएँ
अटलाण्टिक (अन्ध) महासागर की धाराएँ
- उत्तर अटलांटिक महासागर की धाराएँ - उत्तरी भूमध्यरेखीय धारा, फ्लोरिडा धारा, गल्फस्ट्रीम या खाड़ी की धारा, उत्तरी अटलाण्टिक धारा, कनारी धारा, लेब्राडोर धारा.
- दक्षिण अटलाण्टिक महासागर की धाराएँ - दक्षिणी भूमध्य रेखीय धारा, ब्राजील धारा, फॉकलैण्ड धारा, वेनेजुएला धारा.
प्रशान्त महासागर की धाराएँ
- उत्तरी प्रशान्त महासागर की धाराएँ ( उत्तरी गोलार्द्ध में) - उत्तरी भूमध्य रेखीय धारा, क्यूरोशियो धारा, क्यूराइल धारा, उत्तरीय प्रशान्त महासागरीय धारा, कैलिफोर्निया धारा।
- दक्षिणी प्रशान्त महासागर की धाराएँ - दक्षिणी भूमध्यरेखीय धारा, पूर्वी ऑस्ट्रेलियाई जलधारा, पछुआ पवन प्रवाह या दक्षिणी प्रशान्त महासागरीय धारा, पीरू धारा, एल नीनो या प्रति प्रवाह.
हिन्द महासागर की धाराएँ
- स्थायी धाराएँ - दक्षिणी भूमध्य रेखीय धारा, मोजम्बिक तथा अगुलहास धारा, पश्चिमी ऑस्ट्रेलियन धारा.
- परिवर्तनशील धाराएँ - उत्तरी-पूर्वी मानसूनी धारा, दक्षिणी-पश्चिमी मानसूनी धारा, विपरीत धारा।
पदार्थों के चक्र
H, N, O, C, P तथा K जैसे पोषक तत्वों की जैव जीवों की अधिक मात्रा में जरूरत होती है। इनका अध्ययन निम्न तथ्यों पर किया जा सकता है.
जल चक्र
- जल में मुख्य तत्व हाइड्रोजन है जिसका चक्रण पानी के यौगिक रूप में प्रवाहित होने के साथ होता है.
- जलाशयों (सागर, नदी, झील, नदियाँ) तथा जीवों के शरीर की सतह से जल का लगातार जैव वाष्पन होता रहता है। पौधों में वाष्पोत्सर्जन द्वारा जल हानि वाष्पन का प्रमुख स्रोत है.
- जलचक्र के माध्यम से जीवों को शुद्ध जल मिलता है.
कार्बन चक्र
- कार्बन जैव जीवों का मूल घटक है। यह कार्बोहाइड्रेट, वसा, प्रोटीन तथा न्यूक्लिक अम्लों के रूप में होता है.
- गैसीय रूप में कार्बन का मुख्य भण्डार वायुमण्डल है, जबकि सागर जैव कार्बन का प्रमुख भण्डार है.
- वायुमण्डल में यह कार्बन डाइऑक्साइड के रूप में प्राप्त है जो लगभग 0.03 - 0.04 प्रतिशत है. पौधों में प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया द्वारा कार्बन डाइऑक्साइड का उपयोग करने की क्षमता होती है.
- ज्वालामुखी विस्फोट से भी वायुमण्डल में कार्बन डाइऑक्साइड गैस निकलती है। वायुमण्डल एवं जल भण्डारों के मध्य CO2 का विनिमय निरन्तर चलता रहता है.
नाइट्रोजन चक्र
- वायुमण्डल नाइट्रोजन का समृद्ध भण्डार है। इसमें लगभग 78 प्रतिशत नाइट्रोजन होती है जो आण्विक रूप में उपस्थित रहती है.
- नाइट्रोजन चक्र प्रोटीनों, एमीनो अम्लों तथा न्यूक्लिक अम्लों का आवश्यक घटक है.
- यह जैव जीवों द्वारा एक तत्व के रूप में उपयोग में नहीं लायी जा सकती है.
- नाइट्रोजन स्थिरीकरण जीवाणु फलीदार फसल के पौधों की जड़ों की गाँठों में पाये जाते हैं.
- वायुमण्डल की नाइट्रोजन का स्थिरीकरण नाइट्रेटों या नाइट्राइटों के रूप में होता है.
- आजकल औद्योगिक प्रक्रियाओं द्वारा स्थिरीकृत नाइट्रोजन की मात्रा तथा जैव प्रक्रियाओं द्वारा स्थिरीकृत नाइट्रोजन की मात्रा के लगभग बराबर हो गयी है.
- जीवमण्डल में नाइट्रोजन चक्र को एक आदर्श चक्र माना जाता है.
- NPK तथा यूरिया जैसे नाइट्रोजन युक्त रासायनिक उर्वरकों के उपयोग से भी मृदा में पोषक तत्व तथा नाइट्रोजन चक्र को बनाये रखने में सहायता मिलती है.
ऑक्सीजन चक्र
- समस्त जीव, पौधे, जन्तु तथा अपघटक श्वसन हेतु वायुमण्डल में उपलब्ध ऑक्सीजन का उपयोग करते हैं.
- वायुमण्डल के गैसीय घटकों का लगभग 21% ऑक्सीजन है.
- ऑक्सीजन CO2 तथा HO के रूप में यौगिक रूप में भी जैव शरीरों में प्रवेश तथा निर्गम करती है.
3. ऊर्जा संघटक
ऊर्जा का सर्वप्रमुख स्रोत सूर्य तथा इसमें मिलने वाला सौर विकिरण है.
- हरे पेड़-पौधे प्रकाश संश्लेषण क्रिया द्वारा सौर या प्रकाश ऊर्जा को रासायनिक ऊर्जा में परिवर्तित करते हैं.
- खाद्य शृंखला में ऊर्जा का प्रवाह एक ही दिशा में होता है, प्राथमिक उत्पादक हरे पौधे, प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय श्रेणी के उपभोक्ता तथा अपघटक एक-दूसरे के भक्षक या भोज्य के रूप में सम्बद्ध रहते हैं.
- पृथ्वी तक पहुँचने वाली कुल सूर्य ऊर्जा का लगभग 1 प्रतिशत पौधों द्वारा प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया में उपभोग होता है. इस ऊर्जा को अंतर्ग्रहित करने के बाद पौधे इसे रासायनिक ऊर्जा में रूपांतरित करते हैं.
- खाद्य में भण्डारित रासायनिक ऊर्जा भोजन के साथ पौधे से शाकाहारी जन्तुओं तक स्थानान्तरित हो जाती है.
सामान्य रूप से आहार श्रृंखला प्रतिरूप
पोषण स्तर | चारागाह बायोम | तालाब बायोम | समुद्र बायोम |
---|---|---|---|
प्राथमिक उत्पादक | घास | शैवाल | पादप प्लवक |
प्राथमिक उपभोक्ता | टिड्डा | मच्छर लार्वा | प्राणी मन्द प्लवक |
द्वितीयक उपभोक्ता | चूहा | ड्रैगनफ्लाई लार्वा | मछली |
तृतीय उपभोक्ता | साँप | मछली | सील मछली |
चतुर्थ उपभोक्ता | बाज | रेकून | सफेद शाक |
आहार श्रृंखला के विभिन्न स्तर
- ऊर्जा एवं पदार्थों का स्थानान्तरण विभिन्न पारिस्थितिकी तन्त्रों में होता है, जैसे- वन, घास का मैदान, बाग, तालाब, झील, समुद्र.
- आहार श्रृंखला के विभिन्न स्तरों पर भोजन का स्थानान्तरण होता है.
3. जैविक संघटक जीवमण्डल के जैविक या कार्बनिक संघटक का निर्माण तीन उपतंत्रों द्वारा होता है -
1. उत्पादक
2. परभोक्ता
3. अपघटक जीव
1. उत्पादक : ये क्लोरोफिल युक्त पौधे होते हैं, जैसे- काई (शैवाल), घास तथा पेड़.
- प्रकाश संश्लेषण के समय ये सौर ऊर्जा को रासायनिक ऊर्जा में परिवर्तित करते हैं.
- हरे पौधे अपना भोजन स्वयं तैयार करते हैं। अतः इनको स्वपोषी भी कहते हैं.
2. परभोक्ता : ये वे जीव जो अपनी भोजन जरूरतें दूसरे जीवों को खाकर पूरी करते हैं। ये परपोषी या विषमपोषी कहलाते हैं.
- जो सीधे पौधों का भोजन करते हैं वे शाकाहारी कहलाते हैं, जैसे टिड्डा, खरगोश, भेंड़, बकरी.
- वे प्राणी शाकाहारियों को खाते हैं माँसाहारी कहलाते हैं जैसे - बाघ, शेर आदि.
- वे जीव जो पौधों व प्राणियों दोनों का भोजन कर सकते हैं सर्वाहारी कहलाते हैं, जैसे- तिलचट्टा, लोमड़ी, मनुष्य आदि.
3. अपघटक जीव : ये मुख्यतः बैक्टीरिया व फफूँदी (कवक) हैं.
- सूक्ष्म जीवों को वियोजक कहा जाता है.
- अब तक जन्तुओं को सात क्रमिक वर्गों में अभिनिर्धारित किया गया है
- 1. जन्तु जगत
- 2. संघ
- 3. वर्ग
- 4. कोटि
- 5. परिवार
- 6. वंश.
Question and Answer
Q 1. भारत में पाए जाने वाले किन्हीं 10 जीवमंडल के नाम और उनके स्थान ?.
Ans. Give Answer.
Ans. Give Answer.
Ans. Give Answer.
Q 4. भारत का काजीरंगा जीवमंडल कहाँ स्थित है?
Ans. Give Answer.
Ans. Give Answer.
Q 6. जीवमंडल शब्द किसके द्वारा दिया गया?
Ans. Give Answer.
Ans. Give Answer.
Q 8. जैव मंडल किसे कहते हैं इसका विस्तार कहां है?
Ans. Give Answer.
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