शिक्षा में मनोवैज्ञानिक प्रयोग | Psychological Experiments in Education

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शिक्षा में मनोवैज्ञानिक प्रयोग

A psychological test is essentially an objective and standardized measure of a sample of behavior. - Anastasi

मनोवैज्ञानिक प्रयोगों का इतिहास व महत्त्व

शिक्षा मनोविज्ञान की विभिन्न पद्धतियों में प्रयोगात्मक पद्धति का अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान है। इस दिशा में सबसे पहला कदम उठाया जर्मनी के मनोवैज्ञानिक वुण्ट ने। उसने 1879 में लीपजिंग नगर में प्रथम मनोवैज्ञानिक प्रयोगशाला स्थापित करके न केवल शिक्षा मनोविज्ञान में प्रयोगात्मक पद्धति पर बल दिया, अपितु इस विज्ञान के क्षेत्र में क्रान्ति उत्पन्न कर दी। इस क्रान्ति को इंग्लैण्ड में सर फ्रान्सिस गाल्टन ने, अमरीका में जेम्स कैटल ने और इटली में फैरी ने आगे बढ़ाया। समय की गति के साथ इस क्रान्ति का क्रमशः विकास होता चला गया। फलस्वरूप, आज हमें विविध प्रकार के मनोवैज्ञानिक प्रयोग दृष्टिगत होते हैं; जैसे - वैयक्तिक परीक्षाएँ, सामूहिक परीक्षाएँ, बुद्धि परीक्षाएँ, ज्ञान परीक्षाएँ, अभिरुचि परीक्षाएँ इत्यादि ।

मनोवैज्ञानिक प्रयोगों के मुख्य कार्य पर प्रकाश डालते हुए एनास्टसी ने लिखा है - “आधार रूप में, मनोवैज्ञानिक प्रयोगों का कार्य है - व्यक्तियों में पाई जाने वाली विभिन्नताओं या एक ही व्यक्ति में विभिन्न अवसरों पर होने वाली प्रतिक्रियाओं का माप करना।"
इस कथन से स्पष्ट हो जाता है कि शिक्षक के लिए मनोवैज्ञानिक प्रयोगों का अत्यधिक महत्व है। छात्रों की व्यक्तिगत विभिन्नताओं और विभिन्न परिस्थितियों के प्रति उनकी प्रतिक्रियाओं से अनभिज्ञ रहकर वह अपने कार्य को कुशलता से सम्पन्न नहीं कर सकता है। इसी बात को ध्यान में रखकर हम प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक प्रयोगों के कुछ उदाहरण प्रस्तुत कर रहे हैं।

मनोवैज्ञानिक प्रयोगों का संचालन

मनोवैज्ञानिक प्रयोगों का संचालन करने में इन तथ्यों का ध्यान रखा जाना आवश्यक है।

1. समस्या का चयन 

प्रयोग की समस्याएँ दो प्रकार की होती हैं-
(1) अन्वेषणात्मक 
(2) संपुष्टिकारक प्रकृति के अनुसार समस्या का चयन किया जाना चाहिये। 

2. प्रयोग योजना

प्रयोग की योजना बनाने के लिये परिकल्पना, विधि, चर आदि का निर्धारण करना पड़ता है।

3. प्रयोग विधान 

प्रयोग योजना के पश्चात् प्रयोग की प्रक्रिया सम्पन्न की जाती है।

4. आँकड़ों का संकलन

प्रयोग विधान के माध्यम से आँकड़े एकत्र किये जाते हैं। 

5. आँकड़ों का निरूपण

आँकड़ों को उनकी प्रवृत्ति के अनुसार निरूपित किया जाता है 

6. विवेचना

आँकड़ों की सम्पूर्ण विवेचना की जाती है। इस स्तर पर परिकल्पना की जाँच होती है।

7. निष्कर्ष 

अन्त में प्रयोग का निष्कर्ष प्रस्तुत किया जाता है।

मनोवैज्ञानिक प्रयोगों के उदाहरण

प्रयोग संख्या 1

सोने व जागने के समय विस्मरण 

1. प्रयोगकर्त्ता 

Jenkins और Dallenbach.

2. प्रयोग का उद्देश्य 

सोने और जागने के समय विस्मृति की गति की तुलना करना।

3. प्रयोग की अवधि 

4 अप्रेल, 1924 से 7 जून, 1924 तक। 

4. प्रयोज्य 

प्रयोग, कॉलेज की उच्च कक्षाओं में अध्ययन करने वाले दो छात्रों के ऊपर किया गया। दिन में सामान्य रूप से वे इधर-उधर जा सकते थे और रात्रि के समय वे प्रयोगशाला के बगल के कमरे में सोते थे।

5. स्मरण की जाने वाली सामग्री 

स्मरण की जाने वाली सामग्री टाइप की हुई निरर्थक शब्दों की आठ सूचियाँ थीं। प्रत्येक सूची में दस शब्द थे। प्रत्येक शब्द में तीन अक्षर इस प्रकार थे - व्यंजन, स्वर, व्यंजन

6. स्मरण करने की विधि

प्रत्येक छात्र को सूचियाँ और उनके शब्द एक क्रम में दिखाये गये। उसे प्रत्येक शब्द सात सेकण्ड तक दिखाया गया। उसको देखने के तुरन्त बाद ही उसने जोर से बोलकर उस शब्द का उच्चारण किया। इस क्रिया को उस समय तक जारी रखा गया, जब तक उसको सब सूचियों के सब शब्द याद नहीं हो गए।

7. याद करने का समय 

छात्रों को सूचियों के शब्दों को याद करने के लिए प्रतिदिन दो अवसर दिये जाते थे - प्रातः काल 8 और 10 बजे के बीच में एवं रात्रि के समय 11½ बजे से 1 बजे के बीच में।

8. स्मरण की परीक्षा

छात्रों की प्रतिदिन यह जानने के लिए परीक्षा की जाती थी कि उनको सूचियों के कितने शब्द स्मरण थे। यह परीक्षा शब्दों के स्मरण किये जाने के बाद निश्चित समय पर चार बार ली जाती थी। यह समय स्मरण किये जाने के बाद था - 1. घण्टा, 2 घण्टे, 4 घण्टे और 8 घण्टे।

9. परिणाम 

प्रयोगकर्त्ताओं ने अपने प्रयोग के आधार पर दोनों छात्रों के सम्बन्ध में निम्नांकित परिणाम निकाले

jenkins-dallenbach

10. निष्कर्ष 

प्रयोगकर्ताओं ने अपने प्रयोग और उसके परिणामों के आधार पर दो निष्कर्ष निकाले। पहला दिन की अपेक्षा रात्रि के समय याद करने में अधिक समय लगता है। दूसरा, जाग्रत अवस्था की अपेक्षा सुप्तावस्था में विस्मरण की गति धीमी होती है।

प्रयोग संख्या 2

अधिक सीखने का धारण-शक्ति पर प्रभाव (Effect of Overlearning Upon Retention)

1. प्रयोगकर्त्ता 

W.C.F. Krueger. 

2. प्रयोग के उद्देश्य 

धारणा शक्ति पर अधिक सीखने के प्रभाव को निश्चित करना।

3. प्रयोग की अवधि 

एक माह। 

4. प्रयोज्य 

कॉलेज में अध्ययन करने वाले बीस छात्र।

5. स्मरण की जाने वाली सामग्री 

स्मरण की जाने वाली सामग्री बारह संज्ञाओं की सूचियाँ थीं। प्रत्येक छात्र के लिए अलग सूर्ची का प्रयोग किया गया था। प्रत्येक संज्ञा में केवल चार या पाँच अक्षर थे, जैसे - Barn, Lamp, Tree, Chair. 

6. स्मरण करने की विधि 

प्रत्येक छात्र को संज्ञाओं की सूची सदैव एक क्रम में दिखाई गई। उसको सूची का प्रत्येक शब्द दो सेकण्ड तक दिखाया गया। पहली बार उसने शब्दों को देखकर उनका उच्चारण किया। दूसरी आरे उसे पहला शब्द दिखाकर दूसरा, दूसरा शब्द दिखाकर तीसरा और इसी प्रकार अन्य शब्द दिखाकर उससे आगे का शब्द बताने के लिये कहा गया । इस क्रिया को उस समय तक जारी रखा गया, जब तक उसको सूची के सब शब्द याद नहीं हो गये। जब वह सब शब्दों को एक बार में बताने में सफल हो गया, तब यह समझ लिया गया कि उसे वे सब शब्द याद हो गये।

7. अधिक सीखना 

क्रूगर ने छात्रों द्वारा शब्दों को अधिक याद किये जाने के लिए दो विधियाँ अपनाई - ड्योढ़ी बार याद करना और दूनी बार याद करना।
उदाहरणार्थ, यदि एक छात्र एक सूची के शब्दों को 10 बार में याद कर लेता था, जो उसे उनको 5 बार या 10 बार और याद करने के लिये कहा जाता था।

8. स्मरण की परीक्षा 

यह जानने के लिये कि ड्योढ़ी और दूनी बार अधिक याद करने से छात्रों को कितना अधिक याद रहा, उसकी छः बार परीक्षा ली गई। यह परीक्षा शब्दों के स्मरण किये जाने के बाद निश्चित समय पर ली गई। यह समय था - 1, 2. 4, 7, 14 और 28 दिन के बाद।

9. परिणाम 

क्रूगर ने अपने प्रयोग के आधार पर दो परिणाम निकाले । पहला, जिन छात्रों ने सूचियों को ड्योढ़ी बार याद किया, उनको अधिक शब्द अधिक समय तक स्मरण रहे। दूसरा, जिन छात्रों ने सूचियों को दूनी बार याद किया, उनको उस अनुपात में अधिक शब्द अधिक समय तक स्मरण नहीं रहे।

10. निष्कर्ष 

क्रूगर ने अपने प्रयोग और उसके परिणामों के आधार पर दो निष्कर्ष निकाले। पहला, यदि कोई बात साधारण की अपेक्षा ड्योढ़ी बार (150 per cent) याद की जाती है, तो वह अधिक समय तक याद रहती है और इससे याद किये  जाने के समय में बचत होती है। दूसरा, यदि कोई बात दूनी बार (200 percent) की जाती है, तो उसका कोई विशेष परिणाम नहीं होता है, क्योंकि याद किये जाने में जितना अधिक समय व्यय किया जाता है, उसके अनुपात में स्मरण कम होता है।

प्रयोग संख्या 3

सहयोग व प्रतिद्वन्द्विता(CO-OPERATION AND COMPETITION)

1. प्रयोगकर्त्ता 

J. C. Maller. 

2. प्रयोग का उद्देश्य 

छात्रों और छात्राओं की कार्यकुशलता पर सहयोग और प्रतिद्वन्द्विता की भावनाओं के प्रभाव की जानकारी प्राप्त करना।

3. प्रयोज्य 

विभिन्न स्कूलों की छः कक्षाओं के बालकों और बालिकाओं के छः समूह। इनमें से चार समूह एक स्कूल के थे, एक समूह दूसरे स्कूल का था और एक तीसरे स्कूल का था।

4. कार्य पद्धति

प्रत्येक बालक और बालिका को सात अलग-अलग पृष्ठों पर लिखे हुए जोड़ के सवाल दिये गये। उनसे यह कहा गया कि वे प्रत्येक पृष्ठ पर यह लिखें कि प्रश्नों के लिए जो अंक दिये जायेंगे, उनका श्रेय वे अपने को देंगे या अपने समूह को। 

5. सहयोग व प्रतिद्वन्द्विता ज्ञात करने की विधियाँ 

बालकों और बालिकाओं में सहयोग और प्रतिद्वन्द्विता की भावनाओं की जानकारी प्राप्त करने के लिए निम्नलिखित पाँच विधियाँ अपनाई गई 
(i) सामूहिक कार्य - बच्चों से दो केप्टेनों का चुनाव के लिए कहा गया। जब चुनाव हो गया, तब केप्टेनों ने अपनी-अपनी टीम के सदस्यों को चुना। जोड़ के प्रश्न हल करने में इन दोनों टीमों में प्रतिद्वन्द्विता हुई। इस दशा में प्रत्येक बच्चे ने प्रश्नों को जोड़ने में अपनी टीम के सदस्यों को सहयोग दिया।
(ii) साझेदारी - प्रत्येक बच्चे से अपना साथी चुनने के लिए कहा गया। उससे अपने साथी को सहायता देने और अपने पृष्ठों पर उसका नाम लिखने के लिए कहा गया। इस दशा में बच्चों में सहयोग की पर्याप्त भावना थी।
(iii) बालकों तथा बालिकाओं के समूह - सब बच्चों के दो समूह बनाये गये। एक समूह में बालकों को और दूसरे में बालिकाओं को रखा गया। इस दशा में, दोनों समूहों ने पारस्परिक प्रतिद्वन्द्विता व्यक्त की। पर प्रत्येक बालक और बालिका ने अपने समूह के सदस्य की अनिवार्य रूप से सहायता की।
(iv) ऐच्छिक समूह - प्रयोगकर्त्ता ने अपनी स्वयं की इच्छा से सब बालकों और बालिकाओं को दो समूहों में विभाजित कर दिया। इस प्रकार, निर्मित किये हुए समूहों में परस्पर प्रतिद्वन्द्विता की भावना थी। पर साथ ही प्रत्येक समूह के सदस्यों ने एक-दूसरे को सहायता दी।
(v) कक्षाओं के समूह - प्रयोगकर्ता ने विभिन्न स्कूलों के छात्रों और छात्राओं को अपनी-अपनी कक्षाओं में स्थान देकर समूह बनाये। इस दशा में प्रत्येक बच्चे ने अपनी कक्षा के बच्चों को प्रश्नों को जोड़ने में सहयोग दिया।

6. परिणाम 

प्रयोगकर्त्ता ने अपने प्रयोग के आधार पर निम्नांकित परिणाम निकाले-
CO-OPERATION-AND-COMPETITION

7. निष्कर्ष 

प्रयोगकर्ता ने अपने प्रयोग और उसके परिणामों के आधार पर तीन निष्कर्ष निकाले। पहला, बच्चों ने कक्षाओं और प्रयोगकर्ता द्वारा निर्मित समूहों में कम सहयोग व्यक्त किया। दूसरा, उन्होंने सामूहिक कार्य, साझेदारी और बालक-बालिका समूहों में अधिक सहयोग व्यक्त किया। तीसरा, बालकों में एक-दूसरे के प्रति अत्यधिक सहयोग और बालिकाओं के प्रति अत्यधिक प्रतिद्वन्द्विता की भावना थी। इसी प्रकार की भावना बालिकाओं में एक-दूसरे के प्रति और बालकों के प्रति थी।

प्रयोग संख्या 4

पूर्ण व अपूर्ण कार्यों का पुनःस्मरण
(RECALL OF COMPLETED AND INTERRUPTED TASKS) 

1. प्रयोगकर्त्री 

Lady Zeigarnik

2. प्रयोग का उद्देश्य 

पूरे और अधूरे किए जाने वाले कार्यों का पुनः स्मरण करने की योग्यता में अन्तर ज्ञात करना।

3. प्रयोज्य 

जिन व्यक्तियों पर प्रयोग किया गया, उनकी कुल संख्या 138 थी। उनमें वयस्क, किशोर और बालक - तीनों प्रकार के व्यक्ति थे। वे चार समूहों में अग्रलिखित प्रकार से विभाजित किए गए थे 
(1) समूह, 'अ' में 32 वयस्क
(2) समूह 'ब' में 14 वयस्क
(3) समूह 'स' में कॉलेज के 47 छात्र
(4) समूह 'द' में प्राथमिक विद्यालय से 45 छात्र।

4. किये जाने वाले कार्य 

चारों समूहों को करने के लिए विभिन्न प्रकार के कार्य दिए गए। इन कार्यों की संख्या इस प्रकार थी
(1) समूह 'अ' के लिए 22 कार्य
(2) समूह 'ब' के लिए 20 कार्य
(3) समूह 'स' के लिए 16 कार्य
(4) समूह 'द' के लिए 18 कार्य।

5. कार्यों के प्रकार 

प्रारम्भिक कार्य सरल और रोचक थे। वे क्रमश: कठिन और अरुचिकर होते चले गये थे। सब कार्य एक-दूसरे से भिन्न थे। वयस्कों और छात्रों के लिए भी भिन्न प्रकार के कार्य थे; यथा
(i) वयस्कों के लिए मिट्टी से किसी पशु की आकृति बनाना, कागज के पूरे शीट पर गुणा के चिन्ह बनाना, 55 से 17 तक उल्टी गिनती गिनना, पहेलियाँ हल करना, 'क' से आरम्भ होने वाले बारह नगरों के नाम बताना, माला पिरोना, ड्राइंग की आधी आकृति को पूरा करना इत्यादि ।
(ii) छात्रों के लिए अलग-अलग कागजों पर लिखे हुए प्रश्नों के उत्तर देना और आदेशानुसार आकृतियाँ बनाना। छात्रों को अपने उत्तरों को दिए हुए कागजों पर ही लिखना था और उन्हीं पर आकृतियाँ बनानी थीं। 

6. कार्यों को करने का समय 

वयस्कों, किशोरों और बालकों को दिए जाने वाले अधिकांश कार्य 3 से 5 मिनट में किए जा सकते थे। केवल कुछ ही कार्य ऐसे थे, जिनको दो मिनट से कम में समाप्त किया जा सकता था।

7. कार्य पद्धति 

सब वयस्कों और छात्रों को निर्धारित कार्यों में से कवल आधे कार्यों को करने की आज्ञा दी गई। शेष आधे कार्य अधूरे करवा कर छुड़वा दिए गए। ऐसा उनसे सहसा नया कार्य आरम्भ करने के लिए कहकर किया गया। उन्हें अधूरे कार्यों को पूरा करने की आज्ञा नहीं दी गई। उनको न तो यह मालूम होने दिया गया कि उनके कार्यों को अधूरा क्यों छुड़वा दिया गया था और न यह कि उनसे अधूरे कार्यों को पूरा करवाया जाएगा या नहीं। उनसे कार्यों को अधिकतर उस समय अधूरा छुड़वाया जाता था, जब वे उनको करने में सबसे अधिक व्यस्त होते थे। वे जिन कार्यों को पूरा या अधूरा करते थे, अर्थात् वे जिन वस्तुओं को पूरी या अधूरी बनाते थे, उनको उनके सामने से हटाकर दराज में बन्द कर दिया जाता था, ताकि वे उनको फिर देखकर स्मरण न कर लें।

8. पुनःस्मरण परीक्षा 

जब वयस्क, किशोर और बालक निर्धारित कार्यों को पूर्ण य अपूर्ण रूप से कर चुके, तब उनके पुन:स्मरण की परीक्षा ली गई। उनसे पूछा गया कि उन्होंने कौन-कौन से कार्य किये थे। जिन-जिन कार्यों को उन्होंने बताया, उनको लिख लिया गया फिर उन कार्यों की दो सूचियाँ बनाई गईं। एक सूची में पूरे किए जाने वाले और दूसरी में अधूरे किए जाने वाले कार्य लिखे गये। इन सूचियों को देखकर प्रयोगकर्त्री ने यह मालूम किया कि वयस्क, किशोर और बालकों को किन कार्यों का अधिक पुनःस्मरण हुआ - पूर्ण या अपूर्ण

9. परिणाम 

प्रयोगकर्त्री ने अपने प्रयोग के आधार पर अग्रांकित परिणाम निकाले-

reecall-of-completed-and-interrupted-tastks

10. निष्कर्ष 

प्रयोगकर्त्री ने अपने प्रयोग और उसके परिणामों के आधार पर तीन निष्कर्ष निकाले। पहला, वयस्कों, किशोरों और बालकों में पूर्ण कार्यों की अपेक्षा अपूर्ण कार्यों को पुनःस्मरण करने की चौगुनी योग्यता थी। दूसरा, उनको कुछ करके छोड़ने वाले कार्यों की अपेक्षा मध्य और अन्त के लगभग छोड़ने वाले कार्यों का अधिक पुनः स्मरण हुआ। तीसरा, उनको पूर्ण कार्यों की अपेक्षा अपूर्ण कार्यों का बहुत अधिक पुन:स्मरण हुआ।

प्रयोग संख्या 5

मुखाकृति से संवेग का निर्णय

1. प्रयोगकर्त्ता 

C. Landis. 

2. प्रयोग का उद्देश्य 

प्रयोग के तीन विशिष्ट उद्देश्य थे
(i) वास्तविक संवेगों के उत्पन्न होने के समय खींचे गये चित्रों को व्यक्तियों को दिखाकर संवेगों के सम्बन्ध में उनके निर्णयों को ज्ञात करना । 
(ii) यह ज्ञात करना कि क्या व्यक्ति उस स्थिति का ठीक वर्णन कर सकते हैं, जिसमें चित्र में अंकित एक विशेष प्रकार का संवेग उत्पन्न हुआ था।
(iii) यह ज्ञात करना कि व्यक्ति वास्तविक स्थिति में उत्पन्न होने वाले संवेग की अधिक अच्छी व्याख्या कर सकते हैं या काल्पनिक स्थिति में उत्पन्न होने वाले संवेग की। 

3. प्रयोज्य 

अमरीका के कानेक्टीकट वेसलियन विश्वविद्यालय में अध्ययन करने वाले मनोविज्ञान के 42 छात्र।

4. प्रयोग किये जाने वाले चित्र 

प्रयोगकर्ता ने ऐसे 77 चित्र चुने, जिनकी मुखाकृतियों से संवेग अत्यधिक स्पष्ट रूप से व्यक्त होते थे। इनमें से 56 चित्र वास्तविक परिस्थितियों में उत्पन्न होने वाले संवेगों को और 21 चित्र काल्पनिक परिस्थितियों में उत्पन्न होने वाले संवेगों को व्यक्त करते थे। ये सब चित्र 11 मनुष्यों और 11 स्त्रियों के थे। इनको काट कर इतना छोटा कर दिया गया था कि केवल सिर और कंधे ही दिखाई देते थे। चित्रों को एक निश्चित क्रम में प्रोजेक्टर की सहायता से पर्दे पर दिखाया गया।

5. छात्रों को आदेश 

प्रत्येक छात्र को एक कार्ड दिया गया। उस पर चित्रों की संख्या से 77 तक उसी क्रम में छपी हुई थी, जिस क्रम में वे दिखाये गये थे। प्रत्येक चित्र संख्या के आगे तीन खाने थे। कार्ड पर छात्रों के लिए अग्रलिखित आदेश छपा हुआ था -'पर्दे पर प्रत्येक चित्र को ध्यान से देखिये और यह मालूम कीजिए कि मुखाकृति किस संवेग या भावनां को व्यक्त करती है। इस संवेग या भावना को पहले खाने में लिखिए। फिर यह अनुमान लगाइए कि वह संवेग किस परिस्थिति में उत्पन्न हुआ था। इस परिस्थिति को दूसरे खाने में लिखिए। तीसरे खाने में अपने इन दोनों मतों के सम्बन्ध में अपने निश्चय का प्रतिशत लिखिए।

6. परिणाम

प्रयोगकर्त्ता ने अपने प्रयोग के आधार पर निम्नलिखित सात परिणाम निकाले-
(i) छात्रों ने सब मुखाकृतियों से व्यक्त होने वाले संवेगों को मुख्य रूप से चार प्रकार का बताया - हर्ष, दुःख, मातृत्व और आश्चर्य।
(ii) कुछ छात्रों ने एक मुखाकृति से व्यक्त होने वाले संवेग के दो विरोधी नाम बताये।
(iii) अधिकांश छात्रों ने सब संवेगों को उत्पन्न करने वाली केवल चार परिस्थितियाँ बताईं सुखद, दुःखद, धार्मिक और मातृत्व।
(iv) बीस प्रतिशत से अधिक छात्रों ने 8 चित्रों के संवेगों को दो विरोधी नाम दिए - सुखद और दुःखद।
(v) एक चित्र से व्यक्त होने वाले संवेग का कारण 46% छात्रों ने सुखद परिस्थिति और 49% छात्रों ने दुःखद परिस्थिति बताई। 
(vi) वास्तविक परिस्थितियों के कारण उत्पन्न होने वाले संवेगों में से केवल 31% संवेग ठीक बताए गये। 
(vii) काल्पनिक परिस्थितियों के कारण उत्पन्न होने वाले संवेगों में से केवल 28% संवेग ठीक बताए गए। 

7. निष्कर्ष

प्रयोगकर्त्ता ने अपने प्रयोग और उसके परिणामों के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला कि चित्र की मुखाकृति को देखकर वास्तविक संवेग को बताना कठिन है। इसे जानने के लिए मुखाकृति के अलावा कुछ अन्य बातों का भी ज्ञान होना आवश्यक है; जैसे - संवेग अनुभव करने वाले व्यक्ति का व्यवहार, उसके शारीरिक हाव-भाव, उसके द्वारा बोले जाने वाले शब्द और संवेग को उत्पन्न करने वाली परिस्थिति ।

प्रयोग प्रतिवेदन लिखना

यहाँ पर जो प्रयोग दिये गये हैं, वे अत्यन्त संक्षेप में हैं। जो प्रयोग किये जाते हैं, उनको विस्तार देना आवश्यक है। यह विस्तार प्रयोग को तीन खण्डों में बाँट कर दिया जाता है। 

खण्ड 1 : भूमिका

इस खण्ड में ये तथ्य निरूपित किये जाते हैं। 

1. प्रयोग के नाम

2. समस्या 

3. प्रयोग का संक्षिप्त इतिहास तथा परिचय 

खण्ड 2 : विधि 

इस खण्ड में इन शीर्षकों के अन्तर्गत सूचनाएँ दी जाती हैं।

1. प्रारम्भिकताएँ 

1. प्रयोज्य का नाम
2. प्रयोज्य की उम्र
3. प्रयोज्य का लिंग
4. प्रयोज्या का शैक्षिक स्तर
5. प्रयोज्य की सामान्य अवस्था 
6. प्रयोग तिथि, समय, स्थान, मौसम

2. उपकरण एवं सामग्री 

प्रयोग में काम आने वाले सामान्य तथा विशेष उपकरण। 

3. प्रयोग की योजना

4. प्रयोग विधान तथा संचालन

(1) उपकरण व्यवस्था तथा तैयारी
(2) प्रयोज्य के साथ एकात्मकता।
(3) विधि । 
(4) निर्देश।
(5) संचालन।
(6) आंकड़ों का संग्रह

खण्ड 3:

(1) आँकड़े
  • वस्तुगत
  • आत्मगत। 
  • प्रदत्त निरूपण।
  • रेखाचित्र प्रदर्शन।
  • परिणाम तथा विवेचना।
  • निष्कर्ष
इस Blog का उद्देश्य प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे प्रतियोगियों को अधिक से अधिक जानकारी एवं Notes उपलब्ध कराना है, यह जानकारी विभिन्न स्रोतों से एकत्रित किया गया है।