बालक का मानसिक विकास | Mental Development of Child

बालक का मानसिक विकास शैशवावस्था में मानसिक विकास बाल्यावस्था में मानसिक विकास किशोरावस्था में मानसिक विकास मानसिक विकास को प्रभावित करने वाले कारक
 
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बालक का मानसिक विकास

General mental growth is most rapid in the first 5 years of life, nearly as rapid from ages 5 to 10, less so from 10 to 15, and much less so from 15 to 20. - Sorenson.
मानसिक विकास से अभिप्राय ज्ञान भण्डार में वृद्धि एवं उसके उपयोग से है। मानसिक शक्तियों के उदय तथा वातावरण के प्रति समायोजन की क्षमता का नाम मानसिक विकास है। मानसिक विकास में अवबोध, स्मरण, ध्यान केन्द्रित करना, निरीक्षण, विचार, तर्क समस्या समाधान, चेतना आदि शक्तियाँ आती हैं।

मानसिक विकास के पक्ष इस प्रकार हैं-
  1. संवेदना (Sensation)
  2. निरीक्षण (Observation)
  3. स्मरण (Remembering)
  4. कल्पना (Imagination)
  5. चिन्तन (Thinking)
  6. निर्णय (Judgement)
  7. बुद्धि (Intelligence)
  8. रुचि एवं अभिरुचि (Interest and Attitude)
  9. प्रत्यक्षीकरण (Perception)
  10. ध्यान (Attention)
  11. तर्क (Reasoning)
  12. सीखना (Learning)
  13. भाषा (Language)
जन्म के समय शिशु का मस्तिष्क पूर्णतया अविकसित होता है, और वह अपने वातावरण एवं अपने आस-पास के व्यक्तियों के बारे में कुछ भी नहीं समझता है। जैसे-जैसे उसकी आयु में वृद्धि होती जाती है, वैसे-वैसे उसके मस्तिष्क का विकास होता जाता है और वातावरण एवं व्यक्तियों के बारे में अधिक-ही-अधिक ज्ञान प्राप्त करता जाता है। यहाँ यह बता देना आवश्यक है कि दो शिशुओं या बालकों के मानसिक विकास में समानता न होकर अन्तर होता है। इस सम्बन्ध में हरलॉक ने लिखा है- "क्योंकि दो बालकों में समान मानसिक योग्यताएँ या समान अनुभव नहीं होते हैं, इसलिए दो व्यक्तियों में किसी वस्तु या परिस्थिति का समान ज्ञान होने की आशा नहीं की जा सकती है।"

शैशवावस्था में मानसिक विकास

सोरेनसन के शब्दों में- "जैसे-जैसे शिशु प्रतिदिन, प्रति मास, प्रति वर्ष बढ़ता जाता है, वैसे-वैसे उसकी शक्तियों में परिवर्तन होता जाता है।" हम इन परिवर्तनों पर प्रकाश डाल रहे हैं-

जन्म के समय व पहला सप्ताह

जॉन लॉक का मत है- "नवजात शिशु का मस्तिष्क कोरे कागज के समान होता है, जिस पर अनुभव लिखता है।" फिर भी, शिशु जन्म के समय से ही कुछ कार्य जानता है; जैसे- छींकना, हिचकी लेना, दूध पीना, हाथ पैर हिलाना, आराम न मिलने पर रोकर कष्ट प्रकट करना और सहसा जोर की आवाज सुनकर चौंकना।

दूसरा सप्ताह

शिशु प्रकाश, चमकीली और बड़े आकार की वस्तुओं को ध्यान से देखता है।

पहला माह

शिशु कष्ट या भूख का अनुभव होने पर विभिन्न प्रकार से चिल्लाता है और हाथ में दी जाने वाली वस्तु को पकड़ने की चेष्टा करता है। 

दूसरा माह

शिशु आवाज सुनने के लिए सिर घुमाता है। सब स्वरों की ध्वनियाँ उत्पन्न करता है और वस्तुओं को अधिक ध्यान से देखता है।

चौथा माह

शिशु सब व्यंजनों की ध्वनियाँ करता है, दी जाने वाली वस्तु को दोनों हाथों से पकड़ता है और खोये हुए खिलौनों को खोजता है। 

छठा माह

शिशु सुनी हुई आवाज का अनुकरण करता है, अपना नाम समझने लगता है एवं प्रेम और क्रोध में अन्तर जान जाता है। 

आठवाँ माह

शिशु अपनी पसन्द का खिलौना छाँटता है और दूसरे बच्चों के साथ खेलने में आनन्द लेता है।

दसवाँ माह 

शिशु विभिन्न प्रकार की आवाजों और दूसरे शिशुओं की गतियों का अनुकरण करता है एवं अपना खिलौना छीने जाने पर विरोध करता है। 

पहला वर्ष

शिशु चार शब्द बोलता है और दूसरे व्यक्तियों की क्रियाओं का अनुकरण करता है।

दूसरा वर्ष

शिशु दो शब्दों के वाक्यों का प्रयोग करता है। वर्ष के अन्त तक उसके पास 100 से 200 तक शब्दों का भण्डार हो जाता है। 

तीसरा वर्ष

शिशु पूछे जाने पर अपना नाम बताता है और सीधी या लम्बी रेखा देखकर वैसी ही रेखा खींचने का प्रयत्न करता है।

चौथा वर्ष 

शिशु चार तक गिनती गिन लेता है, छोटी और बड़ी रेखाओं में अन्तर जान जाता है, अक्षर लिखना आरम्भ कर देता है और वस्तुओं को क्रम से रखता है। 

पाँचवाँ वर्ष

शिशु हल्की और भारी वस्तुओं एवं विभिन्न प्रकार के रंगों में अन्तर जान जाता है। वह अपना नाम लिखने लगता है, संयुक्त और जटिल वाक्य बोलने लगता है, एवं 10-11 शब्दों के वाक्यों को दोहराने लगता है।

बाल्यावस्था में मानसिक विकास

क्रो एवं क्रो के अनुसार- "जब बालक लगभग 6 वर्ष का हो जाता है, तब उसकी मानसिक योग्यताओं का लगभग पूर्ण विकास हो जाता है।" उसमें रुचि, जिज्ञासा, निर्णय, चिन्तन, स्मरण और समस्या समाधान के गुणों का पर्याप्त विकास हो जाता है। विभिन्न आयु में वह अपने इन गुणों का इस प्रकार प्रदर्शन करता है-

छठवाँ वर्ष 

बालक बिना हिचके हुए 13-14 तक की गिनती सुना देता है, सरल प्रश्नों के उत्तर दे देता है और शरीर के विभिन्न अंगों के नाम बता देता है। यदि उसे कोई चित्र दिखाया जाय, तो वह उसमें बनी हुई वस्तुओं का वर्णन कर सकता है और उनमें समानताएँ एवं असमानताएँ भी बता सकता है। 

सातवाँ वर्ष 

बालक में दो वस्तुओं में अन्तर करने की शक्ति का विकास हो जाता है। वह लकड़ी और कोयला, जहाज और मोटरकार में अन्तर बता सकता है। वह छोटी-छोटी घटनाओं का वर्णन, जटिल वाक्यों का प्रयोग और साधारण समस्याओं का समाधान खोजने का प्रयत्न करने लगता है।

आठवाँ वर्ष 

बालक में छोटी कहानियों और कविताओं को अच्छी तरह दोहराने, 16 शब्दों के वाक्यों को बिना गलती किए हुए बोलने, एक पैरा की कहानी पर 5 या 6 प्रश्नों के उत्तर देने और प्रतिदिन की साधारण समस्याओं का समाधान करने की योग्यता होती है।

नवाँ वर्ष 

बालक को दिन, समय, तारीख, वर्ष और सिक्कों का ज्ञान होता है। वह 5-6 तुकान्त शब्दों को बताने और 6-7 शब्दों को उल्टे क्रम में दोहराने में सफल होता है। वह सामान्य शब्दों का प्रयोग करने लगता है और देखी हुई फिल्म की 60% बातें बता सकता है। 

दसवाँ वर्ष 

बालक तीन मिनट में 60-70 शब्द बोल सकता है और छोटी-छोटी कहानियों को याद करके सुना सकता है। उसे दैनिक जीवन के नियमों, परम्पराओं, सूचनाओं आदि का थोड़ा-बहुत ज्ञान हो जाता है।

ग्यारहवाँ वर्ष 

बालक में तर्क, जिज्ञासा और निरीक्षण की शक्तियों का पर्याप्त विकास हो जाता है। वह दो वस्तुओं में समानता और असमानता बता सकता है। वह पशु-पक्षियों, कीड़े-मकोड़ों और कल-पुर्जों का निरीक्षण करके ज्ञान प्राप्त करना चाहता है।

बारहवाँ वर्ष 

बालक में तर्क और समस्या समाधान की शक्ति का अधिक विकास हो जाता है। उसमें कठिन शब्दों की व्याख्या करने और साधारण बातों के कारण बताने की योग्यता होती है। वह देखी हुई फिल्म की 75% बातें बता सकता है।

किशोरावस्था में मानसिक विकास

वुडवर्थ के शब्दों में- "मानसिक विकास 15 से 20 वर्ष की आयु में अपनी उच्चतम सीमा पर पहुँच जाता है।" हम इस विकास से सम्बन्धित मुख्य अंगों पर प्रकाश डाल रहे हैं-

बुद्धि का अधिकतम विकास

किशोरावस्था में बुद्धि का अधिकतम विकास हो जाता है। यह विकास हारमोन के अनुसार 15 वर्ष में, जोन्स एवं कोनार्ड के अनुसार 16 वर्ष में और स्पीयरमैन के अनुसार 14 से 16 वर्ष के बीच में होता है।
 

मानसिक स्वतन्त्रता

किशोर के मानसिक विकास का एक मुख्य लक्षण है- मानसिक स्वतन्त्रता। वह रूढ़ियों, रीति-रिवाजों, अन्धविश्वासों और पुरानी परम्पराओं को अस्वीकार करके स्वतन्त्र जीवन व्यतीत करने का प्रयास करता है। 

मानसिक योग्यताएँ

किशोर की मानसिक योग्यताओं का स्वरूप निश्चित हो जाता है। उसमें सोचने, समझने, विचार करने, अन्तर करने और समस्या का समाधान करने की योग्यताएँ उत्पन्न हो जाती हैं। एलिस क्रो के अनुसार - "किशोर में उच्च मानसिक योग्यताओं का प्रयोग करने की क्षमता उत्पन्न हो जाती है, पर वह प्रौढ़ों के समान उनका प्रयोग नहीं कर पाता है।"

ध्यान (Attention)

किशोर में ध्यान केन्द्रित करने की क्षमता का पर्याप्त विकास हो जाता है। वह किसी विषय या वस्तु पर अपने ध्यान को बहुत देर तक केन्द्रित रख सकता है। 

चिन्तन शक्ति

किशोर में चिन्तन करने की शक्ति होती है। इसकी सहायता से वह विभिन्न प्रश्नों और समस्याओं का हल खोजता है, पर उसके हल साधारणतः गलत होते हैं। इसका कारण बताते हुए, एलिस क्रो ने लिखा है- "किशोर का चिन्तन बहुधा शक्तिशाली पक्षपातों और पूर्व निर्णयों से प्रभावित रहता है।"
 

तर्क-शक्ति 

किशोर में तर्क करने की शक्ति का पर्याप्त विकास हो जाता है। तर्क किए बिना वह किसी बात को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं होता है।

कल्पना शक्ति

किशोर वास्तविक जगत में रहते हुए भी कल्पना के संसार में विचरण करता है। कल्पना के बाहुल्य के कारण उसमें दिवा स्वप्न देखने की प्रवृत्ति उत्पन्न हो जाती है। कुछ किशोर अपनी कल्पना शक्ति को कला, संगीत, साहित्य और रचनात्मक कार्यों के द्वारा व्यक्त करते हैं। बालकों की अपेक्षा बालिकाओं में कल्पना शक्ति अधिक होती है।

रुचियों की विविधता

किशोरावस्था में रुचियों का विकास बहुत तीव्र गति से होता है। बालकों और बालिकाओं में कुछ रुचियाँ समान और कुछ भिन्न होती हैं जैसे

समान रुचियाँ

भावी जीवन और भावी व्यवसाय में रुचि, सिनेमा देखने, रेडियो सुनने और प्रेम-साहित्य पढ़ने में रुचि ।

विभिन्न रुचियाँ 

बालकों में स्वस्थ बनने और बालिकाओं में सुन्दर बनने की रुचि, बालकों की खेल-कूद में और बालिकाओं की संगीत, नृत्य, नाटक आदि में रुचि, बालकों और बालिकाओं की एक दूसरे में रुचि।

मानसिक विकास को प्रभावित करने वाले कारक 

क्रो व क्रो ने लिखा है- "विभिन्न कारक मानसिक विकास को प्रभावित करते हैं। वंशागत नाड़ी मण्डल की रचना सम्भावित विकास की गति और सीमा को निश्चित करती है। कुछ अन्य भौतिक दशाएँ या व्यक्तिगत और वातावरण सम्बन्धी कारक मानसिक प्रगति को तीव्र या मन्द कर सकते हैं।"

जिन कारकों का हमने उल्लेख किया है, उनमें से अधिक महत्वपूर्ण निम्नांकित हैं-

वंशानुक्रम (Heredity) 

थार्नडाइक और शिविजंगर ने अपने अध्ययनों द्वारा सिद्ध कर दिया है कि बालक, वंशानुक्रम से कुछ मानसिक गुण और योग्यताएँ प्राप्त करता है, जिनमें वातावरण किसी प्रकार का अन्तर नहीं कर सकता है। इसी विचार का समर्थन करते हुए, गेट्स एवं अन्य ने लिखा है- "किसी व्यक्ति का उससे अधिक विकास नहीं हो सकता है, जितना कि उसका वंशानुक्रम सम्भव बनाता है।"

परिवार का वातावरण

परिवार के वातावरण का बालक के मानसिक विकास से घनिष्ठ सम्बन्ध है। दुःखद और कलहपूर्ण वातावरण में बालक का उतना मानसिक विकास होना सम्भव नहीं है, जितना कि सुखद और शान्त वातावरण में। इस सम्बन्ध में कुप्पूस्वामी का मत है- "एक अच्छा परिवार, जिसमें माता-पिता में अच्छे सम्बन्ध होते हैं, जिसमें वे अपने बच्चों की रुचियों और आवश्यकताओं को समझते हैं, एवं जिसमें आनन्द और स्वतंत्रता का वातावरण होता है, प्रत्येक सदस्य के मानसिक विकास में अत्यधिक योग देता है।"

परिवार की सामाजिक स्थिति

उच्च सामाजिक स्थिति के परिवार के बालक का मानसिक विकास अधिक होता है। इसका कारण यह है कि उसको मानसिक विकास के जो साधन उपलब्ध होते हैं, वे निम्न सामाजिक स्थिति के परिवार के बालक के लिए दुर्लभ होते हैं। इसकी पुष्टि में स्ट्रैंग के अग्रांकित शब्द उद्धृत किये जा सकते हैं- "उच्च सामाजिक स्थिति वाले परिवार के बच्चे बुद्धि की मौखिक और लिखित परीक्षाओं में स्पष्ट रूप से श्रेष्ठ होते हैं।"

परिवार की आर्थिक स्थिति

टर्मन ने अपने परीक्षणों के आधार पर बताया है कि प्रतिभाशाली बालक दरिद्र क्षेत्रों से आने के बजाय अच्छी आर्थिक स्थिति वाले परिवारों से अधिक आते हैं। इसका कारण यह है कि इन बालकों को कुछ विशेष सुविधाएँ उपलब्ध रहती हैं; जैसे- उचित भोजन, उपचार के पर्याप्त साधन, उत्तम शैक्षिक अवसर, आर्थिक कष्ट से सुरक्षा आदि।

माता-पिता की शिक्षा

अशिक्षित माता-पिता की अपेक्षा शिक्षित माता-पिता का बालक के मानसिक विकास पर कहीं अधिक प्रभाव पड़ता है। स्ट्रैंग का कथन है- "माता-पिता की शिक्षा, बच्चों की मानसिक योग्यता से निश्चित रूप से सम्बन्धित है।"

उचित प्रकार की शिक्षा

बालक के मानसिक विकास के लिए उचित प्रकार की शिक्षा अति आवश्यक है। ऐसी शिक्षा ही उसके मानसिक गुणों और शक्तियों का विकास करती है। अरस्तू का यह कथन पूर्णतया सत्य है- "शिक्षा मनुष्य की शक्ति का विशेष रूप से उसकी मानसिक शक्ति का विकास करती है।" 

विद्यालय

अच्छा विद्यालय, बालक के मानसिक विकास का वास्तविक और महत्वपूर्ण कारक है। कुप्पूस्वामी के शब्दों में अच्छा विद्यालय ऐसा पाठ्यक्रम प्रस्तुत करता है, जो छात्रों की रुचियों और आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए विभिन्न क्रियाओं से परिपूर्ण रहता है। ऐसा विद्यालय स्वस्थ मानसिक विकास का एक वास्तविक कारण है।"

शिक्षक

बालक के मानसिक विकास में शिक्षक का स्थान बहुत महत्वपूर्ण है। यदि शिक्षक का मानसिक विकास अच्छा है, यदि वह बालक के प्रति प्रेम और सहानुभूति का व्यवहार करता है, और यदि वह उचित शिक्षण विधियों एवं उचित शिक्षण सामग्री का प्रयोग करता है, तो बालक का मानसिक विकास होना स्वाभाविक है।

शारीरिक स्वास्थ्य

शारीरिक स्वास्थ्य, मानसिक विकास का मुख्य आधार है। निर्बल और अस्वस्थ बालक की अपेक्षा सबल और स्वस्थ बालक अधिक परिश्रम करके अपने मानसिक विकास की गति और सीमा में वृद्धि कर सकता है। इसलिए, शारीरिक स्वास्थ्य पर अति प्राचीन काल से बल दिया जा रहा है। अरस्तू का कथन है - "स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क होता है।"

समाज

प्रत्येक बालक का जन्म किसी-न-किसी समाज में होता है। वही समाज उसके मानसिक विकास की गति और सीमा को निर्धारित करता है। यदि समाज में अच्छे विद्यालयों, पुस्तकालयों, वाचनालयों, बालभवनों, मनोरंजन के साधनों आदि की उत्तम व्यवस्था है, तो बालक का मस्तिष्क अविराम गति से विकसित होता चला जाता है।

हमने यहाँ बालक के मानसिक विकास के क्रम का जो वर्णन किया है, उसका ज्ञान, शिक्षक के लिए अत्यधिक उपयोगी है। इसकी पुष्टि में हम सोरेनसन के अग्रांकित शब्द उद्धृत कर सकते हैं- "शैक्षिक और मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोणों से अध्यापक मानसिक विकास के क्रम के ज्ञान को अपने हित में प्रयोग कर सकता है। वह पाठ्यक्रम और शिक्षण को छात्र की सीखने की योग्यता या मानसिक क्षमता के अनुकूल बना सकता है।"

बालक की विभिन्न अवस्थाओं में होने वाला मानसिक विकास एक सतत् प्रक्रिया है। शैशव से किशोर होने तक बालक के मानसिक विकास की प्रक्रिया में अनेक परिवर्तन होते हैं। चिन्तन, तर्क एवं कल्पना का विकास होता है। समायोजन की क्षमता उत्पन्न होती है। वस्तुओं का प्रयोग एवं कौशल का विकास होता है। एकाग्रता का विकास होता है। विचार शक्ति के कारण बालक में गुण-दोष विवेचन करने की क्षमता विकसित होने लगती है। अतः मानसिक विकास का सही दिशा में होना आवश्यक है। इसलिये शिक्षक का दायित्व और भी बढ़ जाता है।

इस Blog का उद्देश्य प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे प्रतियोगियों को अधिक से अधिक जानकारी एवं Notes उपलब्ध कराना है, यह जानकारी विभिन्न स्रोतों से एकत्रित किया गया है।