विशिष्ट बालक : प्रतिभाशाली बालक (Gifted Child) का अर्थ व विशेषताए

स्किनर एवं हैरीमैन – "प्रतिभाशाली" शब्द का प्रयोग उन प्रतिशत बालकों के लिए किया जाता है, जो सबसे अधिक बुद्धिमान होते हैं।
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Gifted Child

प्रतिभाशाली बालक का अर्थ

प्रतिभाशाली बालक, सामान्य बालकों से सभी बातों में श्रेष्ठतर होता है। उसके विषय में कुछ विद्वानों के विचार निम्नलिखित हैं
1. स्किनर एवं हैरीमैन – "प्रतिभाशाली" शब्द का प्रयोग उन प्रतिशत बालकों के लिए किया जाता है, जो सबसे अधिक बुद्धिमान होते हैं।

2. क्रो एवं क्रो - प्रतिभाशाली बालक दो प्रकार के होते हैं - 
(i) वे बालक, जिनकी बुद्धि-लब्धि 130 से अधिक होती है और जो असाधारण बुद्धि वाले होते हैं। 
(ii) वे बालक, जो कला, गणित, संगीत, अभिनय आदि में एक या अधिक में विशेष योग्यता रखते हैं।

3. टरमन व ओडन"प्रतिभाशाली बालक - शारीरिक गठन, सामाजिक समायोजन, व्यक्तित्व के लक्षणों, विद्यालय उपलब्धि खेल की सूचनाओं और रुचियों की बहुरूपता में सामान्य बालकों से बहुत श्रेष्ठ होते हैं।"

प्रतिभाशाली बालक की विशेषताएँ

स्किनर एवं हैरीमैन के अनुसार प्रतिभाशाली बालक में निम्नलिखित विशेषताएँ पाई जाती हैं
  1. विशाल शब्दकोश।
  2. मानसिक प्रक्रिया की तीव्रता।
  3. दैनिक कार्यों में विभिन्नता।
  4. सामान्य ज्ञान की श्रेष्ठता। 
  5. सामान्य अध्ययन में रुचि।
  6. अध्ययन में अद्वितीय सफलता।
  7. अमूर्त्त विषयों में रुचि।
  8. आश्चर्यजनक अन्तर्दृष्टि का प्रमाण।
  9. मन्दबुद्धि और सामान्य बालकों से अरुचि।
  10. पाठ्य विषयों में अत्यधिक रुचि या अरुचि।
  11. विद्यालय के कार्यों से प्रति बहुधा उदासीनता।
  12. बुद्धि परीक्षाओं में उच्च बुद्धि-लब्धि (130+ से 170 + तक)

विटी के अनुसार प्रतिभाशाली बालक खेल पसन्द करते हैं, 50% मित्र बनाने की इच्छा रखते हैं, 80% धैर्यवान होते हैं, दूसरों का सम्मान करते हैं, 96% अनुशासन प्रिय होते हैं।

प्रतिभाशाली बालक की शिक्षा

प्रतिभाशाली बालक को किस प्रकार की शिक्षा दी जानी चाहिए ? इसका उत्तर देते हुए हैविगहर्स्ट ने अपनी पुस्तक A Survey of the Education of Gifted Children में लिखा है - "प्रतिभाशाली बालकों के लिए शिक्षा का सफल कार्यक्रम वह हो सकता है, जिसका उद्देश्य उनकी विभिन्न योग्यताओं का विकास करना हो।" 

इस कथन के अनुसार, प्रतिभाशाली बालकों की शिक्षा का कार्यक्रम इस प्रकार होना चाहिये।

1. सामान्य रूप से कक्षोन्नति 

कुछ मनोवैज्ञानिकों का विचार है कि प्रतिभाशाली बालकों को एक वर्ष में दो बार कक्षोन्नति दी जानी चाहिए। उनके विपरीत, दूसरे मनोवैज्ञानिकों का विचार है कि ऐसा करना, उनको सीखने की प्रक्रिया के क्रमिक विकास के लाभ से वंचित करना है। उनका विचार यह भी है कि यह आवश्यक नहीं है कि उनकी सब विषयों में विशेष योग्यता हो। ऐसी दशा में उच्च कक्षा में पहुंचकर उनमें असमायोजन उत्पन्न हो सकता है। 

अतः क्रो व क्रो का परामर्श है - "प्रतिभाशाली बालक को सामान्य रूप से विभिन्न कक्षाओं में अध्ययन करना चाहिए।" इसका अभिप्राय यह है कि प्रतिभाशाली बालकों को वर्ष के अन्त में उसी प्रकार कक्षोन्नति दी जानी चाहिए जिस प्रकार अन्य बालकों को दी जाती है।

2. विशेष व विस्तृत पाठ्यक्रम 

एक वर्ष में दो बार उन्नति देने के बजाय प्रतिभाशाली बालकों के लिए विशेष और विस्तृत पाठ्यक्रम का निर्माण किया जाना चाहिए। इस पाठ्यक्रम में अधिक और कठिन विषय होने चाहिए, ताकि वे अपनी विशेष योग्यताओं के कारण अधिक ज्ञान का अर्जन कर सकें।
प्रतिभाशाली बालकों के पाठ्यक्रम के सम्बन्ध में अपने विचार व्यक्त करते हुए स्किनर ने लिखा है - "इन बालकों के पाठ्यक्रम का निर्माण इस प्रकार किया जाना चाहिए जिससे उनकी मौखिक योग्यता, सामान्य मानसिक योग्यता और तर्क, चिन्तन एवं रचनात्मक शक्तियों का अधिकतम विकास हो सके। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए खोज, मौखिक और स्वतन्त्र कार्यों, क्रियात्मक और प्रयोगात्मक कार्यों के लिए उत्तम अवसर प्रदान किये जाने चाहिए।"

3. शिक्षक का व्यक्तिगत ध्यान 

शिक्षक को प्रतिभाशाली बालकों के प्रति व्यक्तिगत रूप से ध्यान देना चाहिए। उसे उनको नियमित रूप से परामर्श और निर्देशन देना चाहिए। इन विधियों का अनुसरण करके ही वह उनकी विशेष योग्यताओं के अनुसार प्रगति करने के लिए अनुप्राणित कर सकती है।

4. संस्कृति की शिक्षा 

हालिंगवर्थ ने अपनी पुस्तक An Enriched Curriculum for Rapid Learners में लिखा है - "प्रतिभाशाली बालकों को अपनी संस्कृति के विकास की शिक्षा दी जानी चाहिए, ताकि वे समाज में अपना उचित स्थान ग्रहण कर सकें।"

5. सामान्य बालकों के साथ शिक्षा 

कुछ मनोवैज्ञानिकों का मत है कि प्रतिभाशाली बालकों को सामान्य बालकों से अलग विशिष्ट कक्षाओं और विशिष्ट विद्यालयों में शिक्षा दी जानी चाहिए। उनके मत के विरोध में दूसरे मनोवैज्ञानिकों का तर्क है कि ऐसी कक्षायें और विद्यालय, प्रतिभाशाली बालकों में असमायोजन की दोषपूर्ण प्रवृत्ति को सबल बनाते हैं। उन्हें इस प्रवृत्ति से मुक्त रखने और उनमें समायोजन के गुण का विकास करने के लिए आवश्यक है कि उनको सामान्य बालकों के साथ ही शिक्षा प्रदान की जाय।

6. विशेष अध्ययन की सुविधाएँ 

प्रतिभाशाली बालकों को सामान्य विषयों के अध्ययन में विशेष रुचि होती है। उनकी इस रुचि का विकास करने और उनको अधिक अध्ययन के लिए प्रोत्साहित करने के विचार से प्रत्येक विद्यालय में विभिन्न विषयों से सुसज्जित पुस्तकालय होना चाहिए। इस प्रकार की शैक्षिक सुविधाएँ उनको अधिक ज्ञान का अर्जन करने में अपूर्व सहायता दे सकती हैं।

7. पाठ्यक्रम सहगामी क्रियाओं का आयोजन 

प्रतिभाशाली बालकों में रुचियों का बाहुल्य होता है। उनकी तुष्टि केवल अध्ययन से ही नहीं हो सकती है। अतः विद्यालय को अधिक से अधिक पाठ्यक्रम सहगामी क्रियाओं का उत्तम आयोजन करना चाहिए। 

8. सामाजिक अनुभवों के अवसर 

प्रतिभाशाली बालकों को सामान्य बालकों की सामाजिक क्रियाओं से पृथक् नहीं रखना चाहिये । इन क्रियाओं में भाग लेकर ही उनको सामाजिक अनुभव प्राप्त हो सकते हैं। ये अनुभव उनको निश्चित रूप से सामाजिक समायोजन करने में सहायता दे सकते हैं। इन अनुभवों के अभाव में वे असमायोजित हो सकते हैं। क्रो एवं क्रो ने लिखा है - "प्रतिभाशाली बालक को सामाजिक अनुभव प्राप्त करने के अवसर दिये जाने चाहिये, ताकि वह सामाजिक असमायोजन से अपनी रक्षा कर सके।"

9. नेतृत्व का प्रशिक्षण 

क्रो एवं क्रो का कथन है - "क्योंकि हम प्रतिभाशाली बालक से नेतृत्व की आशा करते हैं, इसलिए उसको विशिष्ट परिस्थितियों में नेतृत्व का अवसर और प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए।"

10. व्यक्तित्व का पूर्ण विकास 

शेफील ने अपनी पुस्तक The Gifted Child in the Regular Classroom में लिखा है - "प्रतिभाशाली बालक की शिक्षा का मुख्य उद्देश्य सदैव उसके व्यक्तित्व का पूर्ण विकास करना होना चाहिए। इस दिशा में परिवार, विद्यालय और समाज को एक-दूसरे को इस प्रकार सहयोग देना चाहिये कि प्रारम्भिक बाल्यावस्था से किशोरावस्था तक उसके व्यक्तित्व का पूर्ण विकास हो जाय।"
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