प्रभावकारी अधिगम के घटक एवं अवरोधक | Effective Learning of Phenomenon and Barriers

शिक्षा एवं शिक्षण की प्रक्रिया में अधिगम का स्थान अत्यन्त महत्वपूर्ण है। अगर यों कहा जाय कि अधिगम के बिना शिक्षण अपूर्ण है, तो यह अत्युक्ति न होगी।
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प्रभावकारी अधिगम के घटक एवं अवरोधक

प्रभावकारी अधिगम: घटक एवं अवरोधक

The more the total situation in which the child finds himself when in school, is related to life, the more fruitful and permanent his learning will be. -W. M. Ryburn.
शिक्षा एवं शिक्षण की प्रक्रिया में अधिगम का स्थान अत्यन्त महत्वपूर्ण है। अगर यों कहा जाय कि अधिगम के बिना शिक्षण अपूर्ण है, तो यह अत्युक्ति न होगी। अधिगम निरन्तर चलने वाली सार्वभौम क्रिया है। मनुष्य जीवनपर्यन्त कुछ न कुछ सीखता रहता है। यह मानव के विकास के साथ-साथ विकसित होती रहती है। वुडवर्थ ने ठीक ही कहा है - सीखना विकास की प्रक्रिया है।
सीखने को अनेक ढंग से परिभाषित किया गया है। कुछ इसे अनुभव अर्जन मानते हैं कुछ इसे व्यवहार परिवर्तन कहते हैं। अधिगम या सीखना स्वयं में व्यापक शब्द है, जन्मजात प्रतिक्रियाओं के द्वारा सीखना समान होता है। सीखने की प्रक्रिया में दो तत्व हैं - परिपक्वता तथा पहले अर्जित किये गये अनुभवों से लाभ उठाना। बालक यदि जलती हुई मोमबत्ती छू लेता है तो भविष्य में वह कभी जलती हुई मोमबत्ती नहीं छूएगा क्योंकि वह जान गया है कि उसका हाथ जल जायेगा।
सीखने की परिभाषाओं का विश्लेषण करने पर इन घटकों तथा अवरोधकों की जानकारी सम्भव है। कहा जाता है कि अनुभव का लाभ उठाने की योग्यता अधिगम है और इस लाभ को उठाने के लिये जिन उपायों को अपनाया जाता है, वह अधिगम की प्रक्रिया है। इसी के द्वारा व्यक्ति सीखता है। इसीलिए कहा गया है - अधिगम वांछित अनुक्रियाओं को प्राप्त करने की प्रक्रिया है।

अधिगम की परिभाषाएँ

गेट्स तथा अन्य - "अनुभव तथा व्यवहार में रूपान्तर लाना ही सीखना है।"
पील - "सीखना व्यक्ति में एक परिवर्तन है जो उसके वातावरण के परिवर्तनों के अनुसरण में होता है।" 
वुडवर्थ - "नवीन ज्ञान और नवीन प्रतिक्रियाओं को प्राप्त करने की प्रक्रिया सीखने की प्रक्रिया है।"
स्किनर - " प्रगतिशील व्यवहार की प्रक्रिया को सीखना कहते हैं।" 
क्रो एवं क्रो - "सीखना आदतों, ज्ञान और अभिवृत्तियों का अर्जन है।" 

परिभाषाओं का विश्लेषण

अधिगम की इन परिभाषाओं का विश्लेषण करने पर प्रभावकारी एवं अवरोधक अधिगम घटकों से परिचय हो जाता है। विश्लेषण के ये बिन्दु इस प्रकार हैं
  • व्यवहार में परिवर्तन सीखने की क्रिया द्वारा होता है।
  • व्यवहार में होने वाला परिवर्तन कुछ समय तक बना रहता है। 
  • व्यवहार में परिवर्तन पूर्व अनुभवों पर आधारित होता है।
  • सीखने के द्वारा व्यक्ति में स्थायी तथा अस्थायी व्यवहार परिवर्तन होते हैं।
  • सहज क्रियायें सीखना नहीं हैं।
  • सीखना सामाजिक और जैविक अनुकूलन करता है। 
  • सीखने से सामाजिक तथा असामाजिक, दोनों प्रकार के व्यवहार उत्पन्न हो सकते हैं।
  • सीखने में त्रुटियाँ होती हैं और यह त्रुटिरहित भी होता है। 
मिलर एवं डौलर्ड ने इसीलिये कहा है - "सीखने के लिये व्यक्ति को किसी वस्तु की आवश्यकता का अनुभव होना चाहिये, उसे कुछ देखना-भालना चाहिये और अन्त में उसे कुछ प्राप्त करना चाहिये।"

अधिगम: अवरोधक घटक

बेरेलाइन तथा स्टीनेर ने मानव व्यवहार के वैज्ञानिक तथ्यों का वर्णन करते हुए इस बात पर बल दिया है कि व्यवहार में परिवर्तन पूर्ण अनुभव या व्यवहार में होता है। सहज क्रियाओं में परिवर्तन अधिगम नहीं है। कौशल अर्जन; यथा - टाइम करना, लिखना, कम्प्यूटर सीखना आदि व्यवहार सीखे जाते हैं, ये व्यवहार जितने त्रुटिहीन होते हैं, उतना ही अधिगम प्रभावशाली माना जाता है।
ट्रेवर्स ने सीखने में कठिनाइयों की खोज की और यह मत निर्धारित किया कि मानव प्रकृति का कोई सर्वमान्य दृष्टिकोण नहीं है, इसलिये सीखने की परिभाषा देना अत्यन्त कठिन है। ट्रेवर्स यह मानते हैं कि सीखना एक प्रक्रिया है, परन्तु यह भी देखा जाना चाहिए कि क्या सीखा गया है और उसकी अन्तःक्रिया क्या हो रही है। सवाल यह है कि सीखना प्रक्रिया है या परिणाम; इसका उत्तर खोजना आवश्यक है। गेने की धारणा है - “मानव संस्कार अथवा क्षमता में परिवर्तन जो धारण किया जा सकता है तथा जो वृद्धि की प्रक्रिया के ऊपर हो नहीं है, अधिगम है।" इन विचारों से यह निष्कर्ष निकलता है
  • सीखना, व्यवहार में परिवर्तन है। 
  • सीखना मानव व्यवहार एवं क्षमता में परिवर्तन है।
  • सीखने में कुछ समय तक क्षमता तथा रुझान को रोकना निहित होता है। 
  • परिपक्वता के कारण जो व्यवहार प्रकट होते हैं, वे सीखने के अन्तर्गत नहीं आते।
सीखने की क्रिया में अवरोधक घटक इस प्रकार हैं- 

उद्देश्यहीनता

जो क्रिया सिखाई जानी है, उसका उद्देश्य यदि सीखने वाले के अनुकूल नहीं है अथवा उस क्रिया का कोई लक्ष्य नहीं है तो सीखने की क्रिया सम्पन्न होते हुए भी निष्फल होगी। 

अभिप्रेरणा का अभाव

अभिप्रेरणा व्यक्ति के अन्दर होने वाला शक्ति परिवर्तन है जो भावात्मक जागृति तथा पूर्णानुमान उद्देश्य प्रतिक्रियाओं द्वारा वर्णित होता है, अभिप्रेरणा का अभाव व्यक्ति को सीखने के लिये तत्पर नहीं करता। 

प्रोत्साहन का अभाव

बालकों को जो क्रियायें सिखाई जाती हैं उनमें प्रोत्साहन का होना आवश्यक है। प्रोत्साहन के अभाव में सीखने की क्रिया शिथिल हो जाती है। 

मूल प्रवृत्तियों का संतुष्ट न होना

यद्यपि मूल प्रवृत्तियों का सम्बन्ध सहज व्यवहार से है तो भी इनके प्रकाशन के लिए सीखने की क्रिया सम्पन्न की जाती है। यदि ये मूल प्रवृत्तियाँ संतुष्ट नहीं होतीं तो सीखने की क्रिया प्रभावहीन हो जाती है।

आवश्यकता की पूर्ति न होना

मनुष्य की अनेक आवश्यकतायें हैं, इन आवश्यकताओं की पूर्ति यदि सीखने की क्रिया नहीं करती है तो वह भी प्रभावहीन हो जाती है। अपमान, निष्पत्ति, अभिग्रहण, समन्वयन, आक्रमण, स्वायत्तता, दोष बचाव, विपरीत क्रिया, संज्ञान, निर्माण, सम्मान, प्रतिरक्षण, प्रभुत्व प्रदर्शन, स्पष्टीकरण आदि सीखने से आते हैं।

थकान 

कार्य करते-करते व्यक्ति थक जाता है, ऐसे समय में यदि उसे कार्य करते रहने के लिये बाध्य किया जाता है तो सीखना निष्फल हो जाता है। "

दण्ड एवं पुरस्कार का अनुचित प्रयोग

दण्ड तथा पुरस्कार सीखने की क्रिया के दो ऐसे घटक हैं जो नकारात्मक तथा सकारात्मक हैं। दण्ड के भय तथा पुरस्कार के लालच से व्यक्ति कार्य करता है। इनमें असंतुलन से सीखना व्यर्थ हो जाता है। 

दुश्चिता

दुश्चिता के कारण व्यक्ति किसी कार्य के करने में अपनी शक्ति का पूरा उपयोग नहीं करता। इस सीखने की क्रिया में बाधा आती है। शैशव में दुश्चिता का प्रभाव अधिक देखा गया है। एक मनोवैज्ञानिक की धारणा है कि व्यक्ति के सभी व्यवहार इसलिये सम्पन्न होते हैं कि वह दुश्चिता से बचना चाहता है। 

आदत

किसी कार्य को स्थायी प्रकार से करना आदत कहलाता है। आदत अभ्यास जनित होता है, यदि किसी कार्य को करने की गलत आदत पड़ जाती है तो वह सीखना व्यर्थ हो जाता है।

अधिगम के प्रभावशाली घटक

सीखना एक सरल क्रिया नहीं है। सीखने की क्रिया को सम्पन्न कराने में अनेक घटकों का हाथ रहता है। ये घटक मनोवैज्ञानिक, शारीरिक, पर्यावरणीय एवं सामाजिक हैं, व्यक्ति जो कुछ भी सीखता है, उसका प्रभाव न केवल उसके व्यक्तित्व पर पड़ता है अपितु उसके परिवेश पर भी पड़ता है, एक जटिल बालक पूरे परिवार एवं समुदाय को प्रभावित करता है। इस दृष्टि से सीखने में वातावरण बहुत सीमा तक बालक में कार्य शक्ति उत्पन्न करने में सहायक होता है। उच्च तापमान और अधिक नमी बालक की कार्य शक्ति को कम कर देते हैं, परन्तु यदि प्रेरणायें दृढ़ हैं तो वातावरण की दूषित दशाओं पर सीखने में विजय प्राप्त की जा सकती है। इसलिये अधिगम को प्रभावशाली बनाने वाले घटक इस प्रकार हैं

उद्देश्य निर्धारण

सीखने की क्रिया का महत्वपूर्ण घटक उद्देश्य है। ज्ञान तथा कौशल सीखने के उद्देश्य हैं, इसका स्पष्टीकरण आवश्यक है। प्रत्यक्षीकरण, प्रत्यक्ष ज्ञान, साहचर्य, रसानुभूति ज्ञान के अन्तर्गत एवं लिखना पढ़ना, सुनना, बोलना, संगीत, चित्रकला तथा मनोगत्यात्मक क्रियायें कौशल के अन्तर्गत आती हैं। 

सीखने की दशाओं की व्यवस्था

अधिगम को प्रभावशाली बनाने के लिये अधिगम सामग्री का संगठन एवं प्रस्तुतीकरण, अधिगम की क्रियायें, परीक्षण मार्ग दर्शन तथा अधिगम की संवेगात्मक एवं सामाजिक दशाओं की व्यवस्था करना अत्यन्त आवश्यक है।

प्रभावशाली अभिप्रेरणा

अधिगम को प्रभावपूर्ण बनाने में अभिप्रेरणा का महत्वपूर्ण योग है। अभिप्रेरणा से बालक के सीखने सम्बन्धी व्यवहार में गति आती है। इसका परिणाम सीखने की क्रिया की सफलता और उसके परिणाम पर पड़ता है। अभिप्रेरणा से व्यक्ति में शक्ति, जागरूकता तथा उद्देश्य प्राप्ति की आकांक्षा उत्पन्न होती है।

प्रोत्साहन 

अभिप्रेरणा के साथ प्रोत्साहन का होना भी अधिगम को प्रभावशाली बनाने के लिये आवश्यक है। सीखने की इच्छा, आत्म संवेष्टन, स्पृहा धरातल, प्रशंसा तथा आरोप, प्रतिद्वन्द्विता, ईर्ष्या तथा पुरस्कार एवं दण्ड आदि अधिगम को प्रोत्साहन देते हैं।

प्रगति का ज्ञान 

अधिगम को प्रभावशाली बनाने के लिये आवश्यक है कि बालक को उसकी प्रगति का ज्ञान कराया जाय। इससे बालक अपने उद्देश्य प्राप्ति की ओर सदैव अग्रसर होता रहेगा। 

श्रव्य दृश्य सामग्री का उपयोग 

अनेक संकल्पनाओं को स्पष्ट करने में श्रव्य दृश्य सामग्री की उपयोगिता स्वयं सिद्ध है। इससे अवधारणाओं को स्पष्ट करने में समय तथा शक्ति की बचत होती है।

कक्षागत घटक

पाठशाला में सामाजिक तथा सम्बन्धित उपलब्धि एवं आत्मगत प्रेरकों का योग महत्वपूर्ण होता है। ये अभिप्रेरक सीखने वाले के व्यवहार को शक्तिवान बनाते हैं तथा व्यवहार का संचालन करते हैं। 

विश्राम

सीखने में निरन्तरता थकावट उत्पन्न करती है, इसलिये थकान होने पर विश्राम देना भी आवश्यक है। यह थकान माँसपेशीय भी होती है तथा संवेदनात्मक भी। मानसिक थकान भी कार्य की क्षमता, कुशलता तथा गुणवत्ता को प्रभावित करती है। इससे बोरियत पैदा होती है। कार्य में त्रुटियाँ बढ़ जाती हैं, अतः विश्राम दिया जाना अत्यन्त आवश्यक है।

दुश्चिता निवारण

दुश्चितित व्यक्ति अपनी पूर्ण शक्ति का उपयोग कार्य के सम्पादन में नहीं कर सकता, साथ ही यह भी उतना ही सत्य है कि जब तक शिक्षक कक्षा में छात्रों को सीखने के प्रति दुश्चिता उत्पन्न नहीं करता, वह सीखने का प्रभावशाली वातावरण भी उत्पन्न नहीं कर सकता। 

वातावरण निर्माण

शिक्षक के लिये आवश्यक है कि अधिगम को प्रभावशाली बनाने के लिये वातावरण का निर्माण करे। प्रकाश की व्यवस्था, दोषरहित फर्नीचर, कक्षा में छात्रों का वर्गीकरण, शिक्षण सामग्री का प्रयोग आदि ऐसी दशायें हैं जिनसे प्रभावकारी स्थितियाँ उत्पन्न होती हैं जो सीखने में सहायक हैं। 

उत्तम आदतों का निर्माण 

छात्रों में उत्तम आदतों का निर्माण भी सीखने के प्रभावपूर्ण घटकों में से एक है। आदत धारणशक्ति तथा लचीलेपन पर निर्भर करती है। यह सरल प्रतिक्रिया होती है जो कालान्तर में यांत्रिक हो जाती है। इसमें दोहराने की प्रक्रिया निरन्तर बनी रहती है। अच्छी आदत का विकास सीखने को प्रभावशाली बनाता है।

शिक्षण अधिगम की धारणा

अधिगम को प्रभावशाली बनाने के लिये आवश्यक है कि अधिगम एवं शिक्षण को पृथक न समझ कर एक प्रक्रिया समझा जाय। शिक्षण की क्रिया जितनी प्रभावशाली होगी, अधिगम भी उतना ही प्रभावशाली होगा।

अधिगम के प्रभावकारी घटकों तथा अवरोधक घटकों का यह वर्णन इस बात को स्पष्ट करता है कि अधिगम की सफलता अवरोधों को हटाना तथा प्रभावकारी घटकों के बनाने पर निर्भर करती है।
इस Blog का उद्देश्य प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे प्रतियोगियों को अधिक से अधिक जानकारी एवं Notes उपलब्ध कराना है, यह जानकारी विभिन्न स्रोतों से एकत्रित किया गया है।