संघर्ष का अर्थ व परिभाषा | Definition of Conflict

'संघर्ष' के अनेक रूप हो सकते हैं; जैसे - एक व्यक्ति का दूसरे से संघर्ष, व्यक्ति का उसके वातावरण से संघर्ष, पारिवारिक संघर्ष, सांस्कृतिक संघर्ष आदि।

संघर्ष का अर्थ व परिभाषा

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व्यक्ति को लक्ष्य प्राप्ति के दौरान अनेक बाधाओं का सामना करना पड़ता है। कई बार समय कम होने, अनेक विकल्पों में से एक को चुनने तथा लक्ष्य प्राप्ति के बाद अगले लक्ष्य के निर्धारण में अनेक बाधायें आती हैं। ऐसे समय में मानसिक द्वन्द्व या संघर्ष उत्पन्न होने लगता है। यह स्थिति मानसिक उथल-पुथल की स्थिति होती है।
'संघर्ष' का सामान्य अर्थ है - विपरीत विचारों, इच्छाओं, उद्देश्यों आदि का विरोध। "संघर्ष' की दशा में व्यक्ति में संवेगात्मक तनाव उत्पन्न हो जाता है, उसकी मानसिक शान्ति नष्ट हो जाती है और वह किसी प्रकार का निर्णय करने में असमर्थ होता है। 
'संघर्ष' के अनेक रूप हो सकते हैं; जैसे - एक व्यक्ति का दूसरे से संघर्ष, व्यक्ति का उसके वातावरण से संघर्ष, पारिवारिक संघर्ष, सांस्कृतिक संघर्ष आदि। इन सबसे कहीं अधिक गम्भीर और भयानक है - आन्तरिक संघर्ष यह संघर्ष, व्यक्ति के विचारों, संवेगों, इच्छाओं, भावनाओं, दृष्टिकोणों आदि में होता है।

'संघर्ष' का मुख्य आधार - उचित और अनुचित का विचार होता है। उदाहरणार्थ, बालक जानता है कि उसके पिताजी का बटुआ अल्मारी में रखा रहता है। वह उसके बारे में सोचने लगता है। वह उसमें से कुछ धन निकाल लेना चाहता है। पर वह यह समझता है कि चोरी करना अनुचित कार्य है और यदि उसकी चोरी का पता लग जायगा, तो उसको दण्ड मिलेगा। वह इन विरोधी बातों पर विचार करता है। फलस्वरूप, उसमें मानसिक संघर्ष आरम्भ हो जाता है। वह इसका अन्त केवल उत्तम और उचित कार्य को करने का निर्णय करके ही कर सकता है। 
'संघर्ष' की कुछ परिभाषाएँ दृष्टव्य हैं।

डगलस व हालैंड - "संघर्ष का अर्थ है - विशेष और विपरीत इच्छाओं में तनाव के परिणामस्वरूप उत्पन्न होने वाली कष्टदायक संवेगात्मक दशा।"
क्रो व क्रो - "संघर्ष उस समय उत्पन्न होते हैं, जब व्यक्ति को अपने वातावरण में ऐसी शक्तियों का सामना करना पड़ता है, जो उसके स्वयं के हितों और इच्छाओं के विरुद्ध कार्य करती हैं।"
क्रो एवं क्रो - "द्वन्द्व या संघर्ष उस समय उत्पन्न होते हैं जब एक व्यक्ति को पर्यावरण की उन शक्तियों का सामना करना पड़ता है जो उसकी स्वयं की रुचियों और इच्छाओं के विपरीत कार्य करती हैं।"
फ्रायड - "इद, अहम, परम, अहम् के मध्य सामंजस्य का अभाव होने से मानसिक द्वन्द्व उत्पन्न होता है।"

संघर्ष से बचने के उपाय

मन का कथन है - "निरन्तर रहने वाला संघर्ष कष्टदायक होने के साथ-साथ शारीरिक स्वास्थ्य के लिए हानिकारक भी है।"
उक्त कथन की गम्भीरता को ध्यान में रखकर हम निस्संकोच रूप से कह सकते हैं कि बालकों को मानसिक संघर्षों का शिकार नहीं बनने देना चाहिए। सोरेन्सन के अनुसार, इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए निम्नांकित विधियों का प्रयोग किया जा सकता है
  1. बालकों के समक्ष किसी प्रकार की समस्या उपस्थित नहीं होने देनी चाहिए। 
  2. बालकों को निराशाओं और असफलताओं का सामना करने के लिए प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए। 
  3. बालकों के समक्ष विरोधी बातों और विरोधी प्रश्नों में चुनाव करने की परिस्थिति नहीं आने देनी चाहिए। 
  4. बालकों को समूहों के सदस्यों के रूप में विभिन्न परिस्थितियों का सामना करने के अवसर दिए जाने चाहिए।
  5. बालकों के समक्ष न तो उच्च आदर्श प्रस्तुत किये जाने चाहिए और न उनसे उनके पालन की आशा की जानी चाहिए।
  6. बालकों को असन्तोषजनक परिस्थितियों का सामना करने और उनसे उपयुक्त समायोजन करने का प्रशिक्षण दिया जाना चाहिये।
  7. बालकों की शक्तियों को किसी लक्ष्य की प्राप्ति की दिशा में निर्देशित करना चाहिए, ताकि उनके मस्तिष्क संघर्षों के निवास स्थान न बन सकें।
  8. बालकों को अपने से सम्बन्धित मामलों पर निर्णय करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए, पर निर्णय करने के बाद उनको उसके कारणों पर विचार करने की आज्ञा नहीं देनी चाहिए।
  9. भय और चिन्ता से उत्पन्न होने वाले मानसिक और संवेगात्मक संघर्षों का निवारण करने के लिए बालकों की मानसिक चिकित्सा की जानी चाहिए।
  10. परिवार और विद्यालय का वातावरण, विवेक और समझदारी पर आधारित होना चाहिए।
  11. परिवार और विद्यालय के वातावरण में किसी प्रकार का तनाव नहीं होना चाहिए, क्योंकि तनाव-संवेगों में उथल-पुथल मचाकर संघर्ष को जन्म देता है।
नोट - संघर्ष का निवारण करने के लिए तनाव कम करने की अप्रत्यक्ष विधियों का प्रयोग किया जा सकता है।
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