स्किनर का क्रिया-प्रसूत अधिगम सिद्धान्त | Skinner's Operant Conditioning Theory

Skinners-Operant-Conditioning-Theory

क्रिया-प्रसूत अधिगम सिद्धान्त 

(SKINNER'S OPERANT CONDITIONING THEORY)
सीखने के सिद्धान्तों का प्रतिपादन करने में बी. एफ. स्किनर (B. F. Skinner) ने विशेष योगदान किया है। स्किनर ने दो प्रकार की क्रियाओं पर प्रकाश डाला-क्रिया-प्रसूत (Operant) तथा उद्दीपन प्रसूत (Stimulus)। जो क्रियाएँ उद्दीपन के द्वारा होती हैं वे उद्दीपन-आधारित होती हैं। क्रिया-प्रसूत का सम्बन्ध उत्तेजना से होता है।

बी. एफ. स्किनर के प्रयोग 

(Experiments by B. F. Skinner)
बी. एफ. स्किनर ने अधिगम या सीखने के क्षेत्र में अनेक प्रयोग करते हुए यह निष्कर्ष निकाला कि अभिप्रेरणा (Motivation) से उत्पन्न क्रियाशीलता (Operant) ही सीखने के लिए उत्तरदायी है।
स्किनर ने चूहों तथा कबूतरों आदि पर अनेक प्रयोग करके यह निष्कर्ष निकाला कि प्राणियों में दो प्रकार के व्यवहार पाये जाते हैं-अनुक्रिया (Respondent) तथा क्रिया-प्रसूत (Operant)। अनुक्रिया का सम्बन्ध उत्तेजना से होता है और क्रिया-प्रसूत का सम्बन्ध किसी ज्ञात उद्दीपन से नहीं होता। क्रिया-प्रसूत को केवल अनुक्रिया की दर से मापा जा सकता है।

Skinner's_Operant_Conditioning_Theory

स्किनर ने चूहों पर प्रयोग किए। उसने लीवर (Lever) वाला बक्सा बनवाया। लीवर पर चूहे का पैर पड़ते ही खट् की आवाज होती थी। इस ध्वनि को सुन चूहा आगे बढ़ता और उसे प्याले में भोजन मिलता। यह भोजन चूहे के लिए प्रबलन (Reinforcement) का कार्य करता। चूहा भूखा होने पर प्रणोदित (Drived) होता और लीवर को दबाता। इस प्रयोग से स्किनर ने यह निष्कर्ष निकाले-
  1. लीवर दबाने की क्रिया चूहे के लिये सरल हो गई। 
  2. लीवर बार-बार दबाया जाता, अत: निरीक्षण सरल हो गया।
  3. लीवर दबाने में अन्य क्रिया निहित नहीं थी।
  4. लीवर दबाने की क्रिया का आभास हो जाता था।
निष्कर्ष यह है कि-'यदि किसी क्रिया के बाद कोई बल प्रदान करने वाला उद्दीपन मिलता है तो उस क्रिया की शक्ति में वृद्धि हो जाती है।"

स्किनर ने कबूतरों पर भी क्रिया-प्रसूत अनुबंधन (Operant Conditioning) के प्रयोग किये। स्किनर द्वारा बनाये गये बक्से में कबूतरों को लीवर या कुंजी को दबाना सीखना था। पहले तो बक्से में हल्की प्रकाश व्यवस्था की गई । यह प्रयोग विभिन्न प्रकार की छः प्रकाश योजनाओं के अन्तर्गत किया गया। प्रयोगों का सामान्य सिद्धान्त यह निरूपित हुआ कि नवीन तथा पुराने, दोनों प्रकार के उद्दीपनों में क्रिया-प्रसूत की गई। प्रकाश-व्यवस्था में परिवर्तन होने पर अनुक्रिया में आनुपातिक परिवर्तन हुआ।

क्रिया-प्रसूत सिद्धान्त 

(Theory of Operant Conditioning)
एम. एल. बिगी (M. L. Bigge) ने स्किनर के क्रिया-प्रसूत सिद्धान्त के विषय में कहा है-"क्रिया-प्रसूत अनुबन्धन अधिगम की एक प्रक्रिया है जिसमें सतत् या संभावित अनुक्रिया होती है। ऐसे समय क्रिया-प्रसूतता की शक्ति बढ़ जाती है।" 

"Operant Conditioning is the learning process whereby a response is made more probable or more frequent an operant is strengthened." -M. L. Bigge

प्रयोगों के परिणामों के आधार पर बी. एफ. स्किनर (B.E Skinner) ने कहा है-व्यवहार प्राणी या उसके अंश की किसी संदर्भ में गति है, यह गति या तो प्राणी में स्वयं निहित होती है अथवा किसी बाहरी उद्देश्य या शक्ति के क्षेत्र से आती है। 
"Behaviour is the movement of an organism or of its part in a frame of reference provided by the organism itself or by external objects or field or force." -B. F. Skinner

क्रिया-प्रसूत अनुबन्ध और शिक्षा 

(Operant Conditioning and Education)
क्रिया-प्रसूत अधिगम का शिक्षा में इस प्रकार प्रयोग किया जाता है-

सीखने का स्वरूप प्रदान करना

शिक्षक, इस सिद्धान्त के द्वारा सीखे जाने वाले व्यवहार को स्वरूप प्रदान करता है। वह उद्दीपन पर नियंत्रण करके वांछित व्यवहार का सृजन करता है। 

शब्द-भण्डार

इस सिद्धान्त का प्रयोग बालकों के शब्द-भण्डार में वृद्धि के लिये किया जा सकता है। 

अभिक्रमित अधिगम

सीखने के क्षेत्र में अभिक्रमित अधिगम एक महत्वपूर्ण विधि विकसित हुई है। इस विधि को क्रिया प्रसूत अनुबंधन द्वारा गति प्रदान की जा सकती है।

निदानात्मक शिक्षण 

क्रिया-प्रसूत सिद्धान्त जटिल (Complex) व्यवहार वाले तथा मानसिक रोगियों को वांछित व्यवहार के सीखने में विशेष रूप से सहायक हुआ है।

परिणाम की जानकारी

स्किनर का विचार है कि यदि व्यक्ति को कार्य के परिणामों की जानकारी हो तो उसके सीखने के भावी व्यवहार पर प्रभाव पड़ता है। गृहकार्य के संशोधन का भी छात्र के सीखने की गति तथा गुण पर प्रभाव पड़ता है।

पुनर्बलन

क्रिया-प्रसूत अधिगम में पुनर्बलन का महत्व है। अधिकाधिक अभ्यास द्वारा क्रिया को बल मिलता है। 

संतोष

स्किनर कहता है कि जब भी काम में सफलता मिलती है तो संतोष प्राप्त होता है और यह संतोष क्रिया को बल प्रदान करता है। 

पद विभाजन

क्रिया-प्रसूत अधिगम में सीखी जाने वाली क्रिया को अनेक छोटे-छोटे पदों में विभक्त किया जाता है। शिक्षा में इस विधि के प्रयोग से सीखने में गति तथा सफलता, दोनों मिलते हैं।


क्रिया-प्रसूत अधिगम का आधार अनुकूलन (Conditioning) है। स्किनर ने क्रिया-प्रसूत (Operant) के आधार पर अनुकूलन के सिद्धान्त को आगे बढ़ाया है। यह निरीक्षणात्मक अधिगम है। यह सिद्धान्त मनोरोगियों, पशु-पक्षियों तथा बालकों पर तो लागू होता है, विवेकशील प्राणियों पर नहीं।
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