सौर मण्डल (Solar System) | भारत में कृत्रिम उपग्रह तथा इनका उपयोग

हमारी पृथ्वी के चारों ओर स्थित विशाल अन्तरिक्ष जिसमें नाना प्रकार के असंख्य आकाशीय पिण्ड विद्यमान हैं। ब्रह्माण्ड (Universe) कहलाता है। ब्रह्माण्ड में
जब हम रात्रि में स्वच्छ आकाश की ओर दृष्टि डालते हैं तो हमको चन्द्रमा के साथ असंख्य तारे दिखायी देते हैं। यह मनोहारी झिलमिलाते तारे सदैव से हमारे कौशल का कारण बने हुए हैं। ब्रह्माण्ड के रहस्य को बड़े-बड़े ऋषि मुनि भी नहीं जान पाये। हमारे सूर्य के चारों ओर अनेक ग्रह चक्कर लगाते हैं। आकाशी पिण्ड मिलकर एक सौरमण्डल (सौर परिवार) बनाते हैं।

ब्रह्माण्ड का अर्थ 

हमारी पृथ्वी के चारों ओर स्थित विशाल अन्तरिक्ष जिसमें नाना प्रकार के असंख्य आकाशीय पिण्ड विद्यमान हैं। ब्रह्माण्ड (Universe) कहलाता है। ब्रह्माण्ड में आते हैं- आकाश गंगाएँ, तारे, तारामण्डल, ग्रह, उपग्रह, ग्रहिकाएँ एवं उल्काएँ।

ब्रह्माण्ड की दूरियाँ तथा मापन के मात्रक

प्रकाश वर्ष (Light Year)निर्वात में प्रकाश द्वारा एक वर्ष में तय की गयी दूरी को एक प्रकाश वर्ष कहते हैं।
1 प्रकाश वर्ष = 9.46 x1012 km.

पारसैकखगोलशास्त्रियों द्वारा बहुत बड़ी आकाश दूरियो के मापन का मात्रक पारसैक कहलाता है।
1 पारसैक = 3.26 प्रकाश वर्ष

ब्रह्माण्ड का स्वरूप

जिस प्रकार हमारा शरीर विभिन्न तन्त्रों से मिलकर बना होता है, तन्त्र विभिन्न अंगों से मिलकर बने होते हैं। अंग ऊतकों से और ऊतक शिराओं से मिलकर बने हैं। प्रत्येक आकाशगंगा में सहस्र अरब 101 तारे होते हैं। सौरमण्डल अनेक (तारा) होते हैं। अनेक ग्रह, उपग्रह, तारामण्डल तथा ग्रहिकाएँ आदि आकाशीय पिण्ड होते हैं।

तारे एवं ग्रह में अन्तर

तारे एवं ग्रह में अन्तर
(Differences Between Stars and Planets)
तारे (Stars)ग्रह (Planets)
तारे किसी आकाशीय पिण्ड के चारों ओर चक्कर नहीं लगाते।ग्रह तारे (सूर्य) के चारों ओर चक्कर लगाते हैं।
तारे स्वयं के प्रकाश से प्रकाशित नहीं होते हैं।ग्रह स्वयं के प्रकाश से प्रकाशित नहीं होते हैं।
तारे, ऊष्मा एवं प्रकाश ऊर्जा के स्रोत होते हैं।ग्रह, ऊष्मा एवं प्रकाश ऊर्जा के स्रोत नहीं होते हैं।
तारे का परिक्रमण करने वाले पिण्ड ग्रह कहलाते हैं।ग्रह का परिक्रमण करने वाले पिण्ड उपग्रह कहलाते हैं।
तारे रात में झिलमिलाते हैं।ग्रह कभी नहीं झिलमिलाते हैं।
ब्रह्माण्ड में हजारों अरब तारे हैं।सौरमण्डल में केवल 9 ग्रह हैं।
तारे पूर्व से पश्चिम को गति करते दिखते हैं।शुक्र को छोड़कर ग्रह पश्चिम से पूर्व को गति करते हैं।
आकाश में तारों की स्थिति में कोई परिवर्तन नहीं होता।ग्रहों की स्थिति सदैव बदलती रहती है।
तारे का आकार बहुत बड़ा होता है।तारों की अपेक्षा ग्रहों का आकार छोटा होता है।
तारे पृथ्वी से बहुत दूर होते हैं। उदाहरण-सूर्य।ग्रह पृथ्वी से ज्यादा दूर नहीं होते। उदाहरण- पृथ्वी।

सौर परिवार का पिता - सूर्य 

सौर मण्डल में सूर्य की परिक्रमा करने वाले ग्रह और उपग्रह आते हैं। सूर्य को सौर परिवार का पिता माना जाता है। आधुनिक प्रमाणों के आधार पर सूर्य और आठ ग्रह सूर्य परिवार के सदस्य अर्थात् सौर मण्डल में आते हैं। वर्ष 2006 अगस्त में वैज्ञानिकों ने यम ग्रह का दर्जा समाप्त कर दिया। वर्ष 2006 के पहले सौर परिवार में नौ ग्रह थे लेकिन आज की स्थिति में आठ ग्रह हैं। बुध, शुक्र, पृथ्वी, मंगल, गुरु, शनि, अरुण तथा वरुण आदि इस तरह कुल आठ ग्रह हैं। यम को ग्रह से अलग कर दिया गया है।

आकाश गंगा (Milky Way of Galaxy)

दूरदर्शी से आकाश गंगा को देखने पर इसमें अनेक तारे आस-पास दिखायी देते हैं। आकाश गंगा एक लम्बी एवं चौड़ी लगभग वृत्ताकार तश्तरी जैसी होती है। आकाश गंगा अन्तरिक्ष की अनेक ग्लेक्सियों में से एक है। आकाश गंगा की वृत्ताकार तश्तरी में तारा समूह मैकर जैसे सर्पिलाकार आकाश में स्थित है। एक सिरे से दूसरे छोर तक आकाश गंगा एक लाख प्रकाश वर्ष की दूरी तक फैली हुई है।

आकाश गंगा अपने केन्द्र के चारों ओर घूमती है। यह एक चक्कर 20 करोड़ वर्ष में पूरा करती है। इसके समस्त तारे एक ही दिशा में लेकिन अलग-अलग गति से घूमते हैं। सूर्य आकाश गंगा Millkyway का सदस्य है।

आकाशीय पिण्डों की पृथ्वी से दूरी

आकाशीय पिण्डों की पृथ्वी से दूरी
(Distance of Plants from Earth)
गृह पिण्डपृथ्वी से दूरी (हजार किमी में)
बुध4.8
शुक्र12.8
पृथ्वी12.8
मंगल7.4
बृहस्पति142.4
शनि120.4
अरुण46.4
वरुण44.8
यम6.4

यम को सौर परिवार का सदस्य नहीं माना है। यह सर्पिलाकार है। हमारा सौर मण्डल इसके छोर (सिरे) पर स्थित है। इस गैलेक्सी का व्यास लगभग 100 हजार प्रकाश वर्ष तथा मोटाई 5 हजार प्रकाश वर्ष के लगभग है। हमारा सूर्य इस गैलेक्सी के केन्द्र से लगभग 30 हजार प्रकाश वर्ष की दूरी पर स्थित है।

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Image of milky way of galaxy

आकाश में असंख्य झिलमिलाते तारे दिखायी देते हैं, इनमें से बहुत से विशेष आकर्षक आकार में व्यवस्थित होते हैं। यह तारामण्डल कहलाते हैं। 

तारामण्डल (Constellation)

विशिष्ट परिचित आकार में व्यवस्थित तारों का समूह तारामण्डल कहलाता है। इन तारा मण्डलों को नक्षत्र भी कहते हैं।

तारामण्डल के प्रकार

तारामण्डलों के नाम उनकी आकृतियों के नाम पर रखे गये हैं। कुछ प्रमुख तारामण्डल निम्नलिखित हैं -
  1. व्याघ्र या मृगा (Orion or Hunter)
  2. दीर्घ सप्तर्षिमण्डल (Ursa Major or Great Bear)
  3. लघु सप्तर्षिमण्डल (Ursa Minor or Little Bear Constellation)
  4. वृश्चिक (Scorpio)
  5. कृत्रिका (Pleides)

1. व्याघ्र या मृगा नक्षत्र (Orion or Hunter)

Orion-or-Hunter-constellation
Orion or Hunter constellation

इस तारामण्डल का आकार एक शिकारी से मिलता-जुलता है। इसमें सात प्रमुख बड़े तारे होते हैं, जिनमें से बीच वाले तारे शिकारी की कमर का बेल्ट बनाते हैं। अन्य कुछ धुँधले तारों से इसका सिर, हाथ एवं पैर बनते हैं। यह शीतकाल में दिखायी देता है।

2. दीर्घ सप्तर्षिमण्डल (Ursa Major or Great Bear)

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Ursa Major or Great Bear

इसका आकार लम्बी भुजा वाली चम्मच का या प्रश्न वाचक चिह्न (?) जैसा होता है। इसमें सात चमकीले तारे होते हैं। इनमें से चार 1, 2, 3, 4 तो उसके शरीर का निर्माण करते हैं तथा शेष 5, 6, 7 उसकी पूँछ का। सिर तथा पंजों का निर्माण कुछ अन्य धुंधले तारों से होता है। यह ग्रीष्मकाल में आकाश में उत्तरी दिशा में दिखायी देता है।

इस गैलेक्सी में तारे केन्द्रीय क्षेत्र में सघन रूप में होते हैं तथा बाहर की भुजाओं की तरफ बिखरे हुए रहते हैं।

दीर्घ वृत्ताकार गैलेक्सी (Elliptical Galaxy) 

इस प्रकार की आकाश गंगाएँ आंशिक रूप से चपटे गोले के रूप में होती हैं, जिसका एक व्यास बड़ा तथा दूसरा लम्बवत् व्यास छोटा होता है।

अनियमित या विषमाकार गैलेक्सी (Irregular Glaxy)

इन आकाश गंगाओं का कोई नियमित आकार नहीं होता है। यह सर्पिलाकार आकाश गंगाओं एवं दीर्घ वृत्ताकार आकाश गंगाओं से प्राय: छोटी होती हैं।

हमारी आकाश गंगा (Our Galaxy)

हमारी आकाश गंगा कैसी है ? यह जानने को आप उत्सुक होंगे। हमारी गैलेक्सी जिसमें हमारा सौर मण्डल विद्यमान है। आकाश गंगा या मन्दाकिनी या दूध मेखला (Milky Way Galaxy) के नाम से विख्यात है।

3. लघु सप्तर्षि तारा मण्डल (Ursa Minor or Little Bear) 

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Ursa Minor or Little Bear

यह दीर्घ सप्तर्षि तारामण्डल की तरह ही है केवल इनमें अन्तर यह है कि इसके तारे पास-पास होते हैं तथा उन तारों से यह कम चमकीले होते हैं। इसकी पूँछ के अन्त के पास एक कम चमकीला स्थिर तारा होता है, जिसे ध्रुव तारा (Pole Star) कहते हैं।

सभी तारामण्डल ध्रुव तारे के चारों ओर घूमते प्रतीत होते हैं। यह ग्रीष्मकाल के समय आकाश में उत्तरी दिशा में दिखायी देता है।

4. वृश्चिक या वृश्चिक तारामण्डल (Scorpio Constellation)

यह तारामण्डल पूँछ एवं डंक सहित किसी बिन्हू (Scorpio) की तरह दिखायी देता है। यह ग्रीष्मकाल में दिखायी देता है।

scorpius-constellation
Scorpius constellation

5. कृत्रिका नक्षत्र या कृत्रिका तारा मण्डल (Pleides Constellation)

इस तारा मण्डल में तारों की कोई विशेष व्यवस्था नहीं होती। यह आकाश में झिलमिलाते हुए रत्नों के गुच्छे (Cluster of Twinking Gems) की तरह दिखायी देते हैं। तारों का यह समूह गोलाकार तारा गुच्छा (Globular Star Cluster) कहलाता है। यह शीतकाल में दिखायी देता है।

गैलेक्सी और तारामण्डल में अन्तर

गैलेक्सी और तारामण्डल में अन्तर
Difference Between Glaxy and Constellation
आकाश गंगा (Glaxy)तारामण्डल (Constellation)
गैलेक्सी हजारों अरब तारों का समूह होता है।तारामण्डल कुछ ही तारों का समूह होता है।
इसका कोई निश्चित आकार नहीं होता।इसका आकार किसी जीव-जन्तु से मिलता-जुलता होता है।
ब्रह्माण्ड में हजारों अरब गैलेक्सी हैं।ब्रह्माण्ड में मात्र 88 तारामण्डल हैं।

ध्रुव तारा (Pole Star)

ध्रुव तारा आकाश में तारों के घूर्णन अक्ष पर सदैव स्थिर अवस्था में दिखायी देता है। सप्तर्षि सदैव तारामण्डल इसके चारों ओर चक्कर लगाते रहते हैं। ध्रुव तारा स्थित घूर्णन अक्ष पर स्थित होने के कारण गतिहीन होता है। शेष सभी तारे पृथ्वी की गति की दिशा के अनुरूप पूर्व से पश्चिम की ओर गति करते दिखायी देते हैं। 

तारे (Stars)

"वे आकाशीय पिण्ड जो अत्यधिक गर्म होते हैं तथा जो अपने स्वयं के प्रकाश से प्रकाशित होते हैं।" तारे (Stars) या सूर्य (Sun) कहलाते हैं। 

सभी तारों में हाइड्रोजन एवं हीलियम गैस होती है तथा कुछ धूल के कण भी होते हैं। हाइड्रोजन निरन्तर संलयित होती रहती है, जिसके फलस्वरूप अत्यधिक ऊर्जा उत्सर्जित होती है। इसी कारण तारे गर्म होते हैं तथा प्रकाश उत्सर्जित करते हैं।

हमको तारे अजर-अमर दिखायी देते हैं लेकिन ऐसा नहीं है। इन तारों का हमारी तरह जन्म भी होता है तथा ये युवावस्था फिर प्रौढ़ावस्था और फिर वृद्धावस्था को प्राप्त होकर अन्त में मृत्यु को प्राप्त होते हैं। लेकिन अब प्रश्न उठता है कि हमको अजर-अमर क्यों दिखायी देते हैं ? इसका प्रमुख कारण यह है कि तारों के जीवन काल से हमारा जीवन-काल अल्प होता है। इसलिये हमको तारे अजर-अमर दिखायी देते हैं।

तारों का जन्म और निर्माण Birth and Formation of Stars

तारों का जन्म हाइड्रोजन और हीलियम गैस के संघनन से बादल बनने से प्रारम्भ हुआ। गुरुत्वाकर्षण के कारण इनके प्रसार से इनका निपात हुआ। इससे इन बादलों के ताप में वृद्धि हुई।

जब बादल का आकार बढ़ जाता है तो उनके स्वयं का गुरुत्वाकर्षण बल बढ़ जाने से तारा सिकुड़ने लगता है। इस निपात के कारण गैस का बादल तारे में बदल जाता है। यह आदि तारा (Proto Star) कहलाता है। लगभग एक अरब वर्ष तक सिकुड़ने की प्रक्रिया के अन्तर्गत इसका आन्तरिक ताप बढ़कर 107°C हो जाता है, जिससे हाइड्रोजन के नाभिक संलयित होकर हीलियम में बदल जाते हैं। इसके कारण अपार ऊर्जा विमोचित होती है, जो हमको प्रकाश एवं ऊष्मा के रूप में प्राप्त होती है। 

इस प्रकार यह आदि तारा दीप्त होकर तारे में बदल जाता है। इस प्रकार तारे का जन्म होता है अर्थात् तारे का निर्माण होता है।

तारों का जीवन-चक्र Life Cycle of Stars

जब तारे के आन्तरिक भाग में संलयन की क्रिया होती है तब उसमें उपस्थित सम्पूर्ण हाइड्रोजन हीलियम में बदल जाती है। अब उसके क्रोड में केवल हीलियम शेष रहती है। संलयन की क्रिया रुक जाती है। बाह्य आवरण में संलयन क्रिया होती रहती है। आवरण का आकार बढ़ता जाता है तथा ऊर्जा की तीव्रता घटती जाती है। इस अवस्था में तारा लाल दानव (Red Giant) का रूप ग्रहण कर लेता है।

जब तारे का द्रव्यमान सूर्य के द्रव्यमान के बराबर होता है

तारे के अन्दर हीलियम गैस संलयन की प्रक्रिया द्वारा ऊर्जा विमोचित करती है तथा उच्च द्रव्यमान वाले नाभिक में बदल जाती है। इस प्रक्रिया में अपार ऊर्जा विमोचित होने से तारा श्वेत वामन (White Dwarf) तारे के रूप में दीप्त होता है। जब सम्पूर्ण हीलियम उच्च द्रव्यमान वाले नाभिकों में बदल जाती है तब श्वेत वामन तारा घने द्रव्य के टुकड़े के रूप में लुप्त हो जाता है।

जब तारे (सुपरनोवा तारे) का द्रव्यमान सूर्य के द्रव्यमान से अधिक होता है

इस समय तारे का अन्त अत्यन्त रोचक एवं विस्मयकारी होता है। सिकुड़ने के समय उत्पन्न हुई ऊर्जा बाह्य कवच को विस्फोट के साथ नष्ट कर देती है। अत्यधिक मात्रा में ऊर्जा मुक्त होती है। यह विस्फोट करने वाला तारा अधिनव तारा या सुपरनोवा (Supernova) कहलाता है। इस विस्फोट के बाद कवच अन्तरिक्ष में बिखर जाता है और केवल क्रोड बचता है। यह क्रोड निरन्तर सिकुड़ता चला जाता है। अत्यन्त संघनित घनत्त्व का यह द्रव्य न्यूट्रॉन तारा (Neurtron Star) कहलाता है। भारी न्यूट्रॉन तारा अन्त समय तक सिकुड़ता रह सकता है।

लाल दानव चरण (Red Giant Phase)

"जब तारे के आन्तरिक भाग में संलयन की क्रिया होती है तब उसमें उपस्थित सम्पूर्ण हाइड्रोजन संलयित होकर हीलियम में बदल जाती है। अब इसके क्रोड में केवल हीलियम शेष रहती है। संलयन की क्रिया रुक जाती है। बाह्य आवरण में संलयन की क्रिया होती रहती है। आवरण का आकार बढ़ता जाता है। तारे की सतह का क्षेत्रफल बढ़ता जाता है। इससे विकसित ऊर्जा की तीव्रता घटती जाती है। इस अवस्था में इसका वर्ण (रंग) बदल कर लाल दिखायी देने लगता है। इस अवस्था को 'लाल दानव चरण' (Red Giant Phase) कहते हैं।"

श्वेत वामन तारा (White Dwarf)

"जब तारे का द्रव्यमान सूर्य के द्रव्यमान के बराबर होता है तब लाल दानव चरण में तारे के अन्दर हीलियम गैस संलयन की प्रक्रिया द्वारा ऊर्जा विमोचित करती है तथा उच्च द्रव्यमान वाले नाभिक में बदल जाती है। इस प्रक्रिया में अपार ऊर्जा विमोचित होने से तारा श्वेत वामन के रूप में दीप्त होता है। इस अवस्था को श्वेत वामन तारा (White Dwarf) कहते हैं। जब सम्पूर्ण हीलियम उच्च द्रव्यमान वाले नाभिकों में बदल जाती है तब श्वेत वामन तारा घने द्रव्य के टुकड़े के रूप में लुप्त हो जाता है।"

सुपरनोवा या अधिनव तारा (Supernova Star)

“जब लाल दानव अवस्था में तारे का द्रव्यमान सूर्य के द्रव्यमान से अधिक होता है तब तारे का अन्त अत्यन्त रोचक एवं विस्मयकारी होता है। सिकुड़ने के समय उत्पन्न हुई ऊर्जा मुक्त होती है। इस विस्फोट के साथ अत्यन्त दीप्त दमक उत्पन्न होती है। आवरण का यह विस्फोट इतना शक्तिशाली हो सकता है कि इससे एक सेकण्ड में उतनी ही ऊर्जा विमोचित हो सकती है जितनी सूर्य लगभग एक सौ वर्षों में करता है। इसके कारण आकाश बहुत दिनों तक जगमगा उठता है। ऐसे विस्फोटक तारे का सुपरनोवा या अधिनव तारा (Supernova Star) कहते हैं। सुपरनोवा विस्फोट में गैसों के बादल अन्तरिक्ष में विमोचित हो जाते हैं।"

अभी तक कुल पाँच सुपरनोवा विस्फोट प्रेक्षित किये गये 
  • सन् 1006 में (पौराणिक लेखों के आधार पर)।
  • सन् 1054 में (पौराणिक लेखों के आधार पर)।

भारत में कृत्रिम उपग्रह तथा इनका उपयोग

भारत में कृत्रिम उपग्रह तथा इनका उपयोग निम्नलिखित हैं

आर्यभट्ट (Aryabhatta)
जे. एस. धवन और एस. राय ने आर्य भट्ट का निर्माण किया, जिसका भार 300 किलो था। यह 19 अप्रैल सन् 1975 को रूसी रॉकेट की सहायता से रूसी केन्द्र से पृथ्वी कक्ष में स्थापित किया गया है। इसमें से X किरणों एवं मौसम सम्बन्धी जानकारी प्राप्त हुई परन्तु इसने 5 दिन बाद काम करना बन्द कर दिया।

भास्कर (Bhaskar)
भारत में निर्मित 445 किलो भार वाले इस उपग्रह को रूस रॉकेट द्वारा 7 जून सन् 1979 को पृथ्वी कक्ष में स्थापित किया गया। भूसर्वेक्षण हेतु शक्तिशाली दूरदर्शन लगे थे, वे व्यर्थ रहे।

रोहिणी (Rohini)
यह भारत में निर्मित 4 खण्डीय था। इसे 18 जुलाई, वर्ष 1980 को पृथ्वी के कक्ष में स्थापित किया गया। इसका भार 35 किलो था। यह उपग्रह श्री हरिकोटा से छोड़ा गया।

एप्पल (Apple)
इसका भार 630 किलो था। यह 19 जून, सन् 1981 को यूरोपियन यान फैन्चगुयना से छोड़ा गया था। यह उपग्रह दूर संचार के क्षेत्र में सफल रहा। 

अनुराधा (Anuradha)
यह 29 अप्रैल, सन् 1985 को अमरीकी यान शटल चैलेन्जर से अनुराधा का प्रेक्षण किया गया। 
  • इन्सेट 1-A – 1-B का प्रेक्षण।
  • A.S.L.V. दुर्घटनाग्रस्त।
  • I.R.S.1-A - 17 मार्च, सन् 1988 को तत्कालीन संघ ने बैकानुर प्रक्षेपण केन्द्र से प्रथम भारतीय दूर संचार उपग्रह आई. आर. एस. IA का सफल प्रक्षेपण किया गया।
  • इन्सेट I-C
  • इन्सेट I-D
  • इन्सेट II-A
  • इन्सेट II-B
  • और अनेक उपग्रह छोड़े गये।

अन्तरिक्ष अनुसन्धान के उद्देश्य 

Objectives of Indian Space Research
अन्तरिक्ष अनुसन्धान कार्यक्रमों के निम्नलिखित दो प्रमुख उद्देश्य हैं  
  • संचार एवं शिक्षा के तीव्र विकास के लिये अन्तरिक्ष तकनीक को प्रयुक्त करना।
  • देश के प्राकृतिक संसाधनों का उचित समय पर सर्वेक्षण एवं अन्तरिक्ष तकनीक को प्रयुक्त करना।

अन्तरिक्ष अनुसन्धान संगठन के कार्य 

Functions of Indians Space Research Organisation 
रॉकेट का निर्माण करना, इनके लिये उचित ईंधन (नोदक) विकसित करना, इसके निदेशक एवं नियन्त्रण तन्त्रों को विकसित करना, उपग्रह की डिजाइन को विकसित करना तथा उसका निर्माण करना। इन सबके लिये आत्मनिर्भर बनना अति आवश्यक था। 
पृथ्वी की किसी कक्ष में किसी उपग्रह को स्थापित करने के लिये समक्ष प्रक्षेपण वाहन को विकसित करना।

उपग्रहों के सम्बन्ध निर्देशन, नियन्त्रण, अनुवर्तन एवं प्रमोचन जैसे कार्य भूकेन्द्रों की अन्तरिक्ष प्रौद्योगिक द्वारा जनसंचार माध्यमों का विकास करने के लिये आवश्यक स्थापना। भूस्तरीय सुविधाओं को व्यापक पैमाने पर विकसित करना। 

उल्काएँ (Meteors)

रात में अनेक बार हम तेजी से चमकदार रेखाएँ खिचती देखते हैं। यह तारे टूटते नहीं हैं, इन्हें उल्काएँ कहते हैं। उल्काएँ बहुत तेजी से सूर्य का चक्कर लगाने वाले पत्थर एवं लोहा धातु के छोटे खण्ड हैं। इनकी संख्या करोड़ों में है। रेत के कण से लेकर अनेक टन की चट्टान के बराबर इनका आकार होता है। यह सूर्य के चक्कर लगाते हैं। यह पृथ्वी के वायुमण्डल में आ जाता है। इसलिये इन्हें अन्तरिक्ष के पर्यटक भी कहते हैं। 

पृथ्वी के वायुमण्डल में अत्यधिक तेज गति से प्रवेश के कारण वायुमण्डल के साथ घर्षण से इनका ताप अधिक हो जाता है।उल्का तेज प्रकाश देने लगते हैं तथा पृथ्वी के आकर्षण के कारण पृथ्वी की तरफ खिचे चले आते हैं। पृथ्वी तक पिण्ड के रूप में पहुँचने वाले उल्का पिण्ड कहलाते हैं। न्यूयार्क के अजायबघर में रखे उल्का पिण्ड का भार 34 टन है। इस उपग्रह का द्रव्यमान 106 किग्रा था। 

इसे पृथ्वी से 450 किलोमीटर की ऊँचाई पर कक्षा में स्थापित किया गया। बाद में इस सफलता ने उपग्रह प्रमोचन वाहनों के आधुनिकीकरण के क्षेत्र में प्रगति हेतु पथ प्रशस्त किया। अन्य उपग्रह प्रमोचन वाहन हैं 
  • ध्रुवीय उपग्रह प्रमोचन वाहन (Polar Satellite Lunch Vehicle or PSLV)।
  • भूस्थिर उपग्रह प्रमोचन वाहन (Geostaionary Satellite Lunch Vechicle or GSLV)।

इस सफलता ने अन्तरिक्ष अन्वेषण के क्षेत्र में भारत को विश्व का छटवाँ देश बना दिया।

30 वर्ष के अल्प अन्तराल में भारत को अन्तरिक्ष कार्यक्रमों में अनेक सफलताएँ एवं उपलब्धियाँ प्राप्त हुई हैं।

भूतपूर्व सोवियत यूनियन के दो अन्तरिक्ष यात्रियों के साथ अन्तरिक्ष यात्रा करके 3 अप्रैल, सन् 1984 को राकेश शर्मा को प्रथम भारतीय अन्तरिक्ष यात्री होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। 

भारत के अन्तरिक्ष केन्द्रों के नाम

Name of Space Centres in India
  • विक्रम साराभाई अन्तरिक्ष केन्द्र, थुम्बा (Virkam Sarabhai Space Centre, Thumba)।
  • श्री हरिकोटा कृत्रिम उपग्रह रेंज (Shri Harikota Artifical Satellite Range)।
  • इण्डियन स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइजेशन (Indian Space Research Organisation)।
  • स्पेस एप्लीकेशन सेन्टर, अहमदाबाद (Space Application Centre Ahmedabad)।
  • फिजीकल रिचर्स लेबोरेटरी, अहमदाबाद (Physical Research Laboratry Ahmedabad)।
 

अन्तरिक्ष विज्ञान के अनुप्रयोग 

(Applications of Space Science)
अन्तरिक्ष विज्ञान के निम्नलिखित अनेक महत्त्वपूर्ण अनुप्रयोग हैं मिलती है।
  • दूरदर्शन कार्यक्रम को समस्त भारत में प्रसारण करने में पर्याप्त सहायता। 
  • पृथ्वी पर घटने वाली घटना का सीधा प्रसारण करना सम्भव हो सका है।
  • अन्तर्राष्ट्रीय संचार व्यवस्था में पर्याप्त सहयोग मिला है।
  • मौसम का मॉनीटरण एवं मौसम की भविष्यवाणियाँ करने में। 
  • सुदूर संवेदन - इसे कृत्रिम उपग्रह की सहायता से उपलब्ध किया जा सकता है।
  • बाह्य अन्तरिक्ष तथा ग्रहों के बारे में जानकारी का संग्रहण।
  • अन्तरिक्ष विज्ञान का अनुप्रयोग विश्व के प्राकृतिक संसाधनों के अध्ययन में किया जाता है।

उपग्रह संचार की प्रक्रिया 

Process of Setellite Communication
उपग्रह अपनी विशिष्ट युक्ति प्रेषानुकर की सहायता से, पृथ्वी पर स्थित किसी केन्द्र से विद्युत चुम्बकीय तरंगों के रूप में प्रसारित दृश्य अथवा शृव्य सन्देशों को ग्रहण करता है। उपग्रह के लगे प्रेषानुकर इन सन्देशों को दोबारा या तो उसी आवृत्ति में अथवा परिवर्तित आवृत्ति में भिन्न-भिन्न दिशाओं में प्रसारित कर देता है या इन सन्देशों को पृथ्वी पर विभिन्न भागों में स्थित भू-केन्द्रों द्वारा ग्रहण कर लिया जाता है। उपग्रह से प्राप्त सन्देश अत्यन्त क्षीण होने के कारण इनका भू-केन्द्रों पर प्रसारण से पूर्व प्रवर्धन कर लिया जाता है।

उपग्रह संचार के अनुप्रयोग 

Applications of Setellite Communication
 उपग्रह संचार के निम्नलिखित अनुप्रयोग हैं
  • दूरदर्शन कार्यक्रमों के प्रसारण में।  
  • रेडियो कार्यक्रमों के प्रसारण में।
  • दूरभाष (मुख्यत: लम्बी दूरियों के लिये) में। 
  • मुद्रित सन्देश प्रेषक (टेलेक्स) के लिये।
  • मुद्रित सन्देश अथवा चित्र के प्रतिचित्रण (फैक्स) के लिये। 
  • वायरलेस द्वारा जासूसी कार्यों के लिये।

लेकिन चन्द्रमा का उपयोग संचार सम्प्रेषण उद्देश्य के लिये नहीं किया जा सकता है।
  • चन्द्रमा पृथ्वी की भूमध्य रेखा पर स्थित नहीं है।  
  • चन्द्रमा पृथ्वी से बहुत दूर है।
  • चन्द्रमा अपनी परिक्रमा 24 घण्टे में नहीं कर पाता। 

मौसम का मॉनीटरिंग एवं भविष्यवाणियाँ

(Weather Monitoring and Forecasting)
 “विभिन्न वायुमण्डलीय कारकों, जो समय-समय पर विभिन्न स्थानों पर मौसम में परिर्वतन लाते हैं, के इसी लगातार संग्रहण की प्रक्रिया को मौसम का मॉनीटरिंग (Wealther Monitoring) कहते हैं।"

मौसम मॉनीटरण के उपयोग 

Uses of Weather Monitoring
मौसम के मॉनीटरण के उपयोग निम्नलिखित हैं 
  • उपग्रह द्वारा एकत्रित आँकड़ों ने हमारे वैज्ञानिकों को निकट भविष्य के तथा दीर्घकालीन मौसम के बारे में भविष्यवाणी करने में सहायता दी। 
  • समुद्र में उठने वाले तूफान की जानकारी मिलती है। 
  • बाढ़ आने की पूर्व सूचना प्राप्त होती है। 
  • सूखे की स्थिति की पूर्व जानकारी मिलती है। 
  • आँधी, तूफान एवं वर्षा का पूर्वाभास होता है। 
इन जानकारियों से सरकार को प्राकृतिक आपदाओं से जीवन एवं सम्पत्ति की होने वाली सम्भावित हानि को कम करने के लिये उचित साधन जुटाने का अवसर प्राप्त होता है। 

इन्सैट उपग्रह द्वारा मौसम का मॉनीटरण

इन्सैट उपग्रह मौसम सम्बन्धी आँकड़ों को एकत्रित करके तथा हमारे देश का आकाशीय चित्र खींचकर हमारे पास प्रेषित करता है। इस चित्र को मॉनीटर पर प्रदर्शित करके हमारे वैज्ञानिक दीर्घकालीन तथा निकट भविष्य में मौसम के बारे में भविष्यवाणी करते हैं। इससे समुद्र में उठने वाले तूफान, बाढ़ तथा सूखे की पूर्व जानकारी प्राप्त होती है। इस प्रकार इन्सैट उपग्रह मौसम का मॉनीटरण करने में सहायक है। 

सुदूर संवेदन (Remote Sensing)

"किसी वस्तु के भौतिक स्पर्श के बिना उसके बारे में प्राप्त सूचनाओं का संग्रहण करने की तकनीक सुदूर संवेदन (Remote Sensing) कहलाती हैं।"

इसके लिये सुदूर संवेदी उपग्रहों को उपयोग में लाया जाता है। इन उपग्रहों की कक्षाएँ, सूर्य तुल्यकालिक कक्षाएँ होती है। 

सूर्य तुल्य कालिक कक्षाएँ (Sun Synchronous Orbits)

"वह कक्षा जिस पर कोई उपग्रह किसी निश्चित अक्षांश पर से लगभग किसी निश्चित स्थानिक समय पर ही गुजरता है, सूर्य तुल्य कालिक कक्ष कहलाती हैं।" दूसरे शब्दों में, "जब कभी भी उपग्रह किसी स्थान से ऊपर से गुजरता है तो पृथ्वी के उस से स्थान के सापेक्ष सूर्य की स्थिति सदैव लगभग वही रहती है। ऐसी कक्षा को सूर्य तुल्यकालिक कक्षा कहते हैं।"

सुदूर संवेदी उपग्रहों के प्रमुख उपयोग

Main Use of Remote Sensing
सुदूर संवेदी उपग्रहों के निम्नलिखित प्रमुख उपयोग हैं 
  • भूगर्भ जल सर्वेक्षण, (Ground Water Surveys)।
  • बंजर भूमि के मानचित्र तैयार करना (Preparing Wasteland Maps)।  
  • फसलों की उपज का आंकलन (Estimation of Crop Yield)।
  • सूखे का पूर्वानुमान (Drought Assessment)।
  • वनशास्त्र (Forestry)।
  • फसल की बीमारियों का आंकलन (Detection of Crop Diseases)
  • कृषि (Agriculture)।
  • फसलों में कीटों के ग्रसन का संसूचन (Detection of Insect Bite in Crops)। 
  • समुद्र में मछली पकड़ने के सम्बद्ध क्षेत्रों का संसूचन (Detection of Potential Fishing Zones of the Sea)। 
  • कोयला, तेल एवं अयस्क आदि के संसूचन का सर्वेक्षण (Survey for Detect ing Coal. Oil and Ore etc.)।

बाह्य अन्तरिक्ष तथा अन्य ग्रहों के बारे में जानकारी का संग्रहण 

Collection of Important Data of Exploration of Space and Other Planets
अन्तरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में हो रहे विकास से यह सम्भव हो गया है कि वैज्ञानिक सौर मण्डल के समस्त ग्रहों का बहुत निकट से अन्वेषण कर सके। अन्तरिक्ष तकनीकी के द्वारा अन्तरिक्ष के अनेक महत्त्वपूर्ण आँकड़े एकत्रित करने के अवसर प्रदान हुए हैं। अमेरिकी अन्तरिक्षयान वायेजर ने अनेक जानकारियाँ एकत्रित की, जो इस प्रकार हैं
  • वायेजर ने बहुत निकट से सौर मण्डल के समस्त ग्रहों के चित्र खींचकर पृथ्वी को प्रेषित किये।
  • इन अन्वेषकों द्वारा सूचनाओं ने दूरस्थ ग्रहों के बारे में गहन जानकारी प्रदान की।
  • वायेजर ने अपनी यात्रा के समय शनिग्रह के कुछ नये चन्द्रमाओं एवं वलयों की खोज की।
  • वायेजर के कैमरे ने नैपच्यून के चार अज्ञात चन्द्रमाओं और दो नये वलयों की खोज की।
  • वैज्ञानिकों को सौर मण्डल की संरचना एवं उत्पत्ति तथा ग्रहों के संघटन के बारे में विस्तृत जानकारी प्रदान की।

इस Blog का उद्देश्य प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे प्रतियोगियों को अधिक से अधिक जानकारी एवं Notes उपलब्ध कराना है, यह जानकारी विभिन्न स्रोतों से एकत्रित किया गया है।