अक्षांश एवं देशान्तर रेखाएँ तथा एशिया महाद्वीप में भारत | Latitudinal and Longitudinal Lines and India in Asia Continent

पृथ्वी की इस गति के विषय में वैज्ञानिकों ने ज्ञात किया है कि पृथ्वी की धुरी जिस पर वह घूमती है, ऊर्ध्वाधर या सीधी नहीं है।
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अक्षांश एवं देशान्तर रेखाएँ तथा एशिया महाद्वीप में भारत

अक्षांश एवं देशान्तर रेखाएँ तथा एशिया महाद्वीप में भारत

Latitudinal and  Longitudinal Lines and India in Asia Continent

अक्षांश रेखाएँ (Latitudinal Lines) 

वे रेखाएँ जो भूमध्य रेखा के समानान्तर उत्तरो तथा दक्षिणी ध्रुव के भागों में पूर्व से पश्चिम की ओर खींची मानी गयी हैं अक्षांश रेखाएँ कहलाती हैं। अक्षांश का अर्थ किसी स्थान से सूर्य की ऊँचाई से होता है। भूमध्य रेखा जो कि पृथ्वी के ठीक मध्य मानी गयी है, उसके दोनों ओर अक्षांश रेखाओं की संख्या 90-90 है। अक्षांशों का प्रारम्भ भूमध्य रेखा से होता है, अत: भूमध्य रेखा (0° पर स्थित है। एक अंश की धुरी 110 किलोमीटर मानी गयी है। 

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मुख्य अक्षांश रेखाएँ निम्नलिखित हैं -
  • 23½° उत्तरी अक्षांश अर्थात् कर्क रेखा।
  • 66½° उत्तरी अक्षांश अर्थात् उत्तरी ध्रुव। 
  • 23½° दक्षिणी अर्थात् मकर रेखा।
  • 66½° दक्षिण अक्षांश अर्थात् दक्षिणी ध्रुव (वृत्त)।

देशान्तर रेखाएँ (Longitudinal Lines) 

देशान्तर रेखाएँ, वे रेखाएँ हैं जो कि उत्तरी ध्रुव से दक्षिणी ध्रुव तक खिंची मानी गयी हैं, इन्हें मध्यान्ह रेखा के नाम से भी पुकारा जाता है क्योंकि एक देशान्तर रेखा पर स्थित सभी स्थानों का समय एक ही होता है। ध्रुवों से ये रेखाएँ एक ही बिन्दु पर मिलती हैं परन्तु भूमध्य रेखा पर इनकी परस्पर दूरी 1° होती है। मानचित्र में इन रेखाओं को 15° की दूरी पर खींचा जाता है। लन्दन के पास ग्रीनविच नामक स्थान से शून्य देशान्तर रेखा गुजरती है। यहीं पर एक विशाल वेधशाला भी है। 
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इस स्थान से ही पृथ्वी को दो गोलाद्धों में बाँटा गया है -
  • पश्चिमी गोलार्द्ध तथा
  • पूर्वी गोलार्द्ध।
दोनों गोलाद्ध में 120 पूर्वी देशान्तर रेखाएँ तथा 180 पश्चिमी देशान्तर रेखाएँ हैं।

एशिया महाद्वीप में भारत की स्थिति और विस्तार

Situation and Expansion of India in Asia Pesific
इस समय भारत की छवि एक ऐसे राष्ट्र के रूप में उभरी है, जिसने स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद 75 वर्षों में बहु-आयामी सामाजिक-आर्थिक प्रगति की है। भारत इस समय खाद्यात्र उत्पादन के क्षेत्र में आत्म-निर्भर है तथा विश्व के औद्योगिक देशों में उसका दसवाँ स्थान है। जनहित के लिये प्रकृति पर विजय पाने हेतु अन्तरिक्ष में जाने वाले देशों में इसका छठा स्थान है। 

भौगोलिक रूप में इसका क्षेत्रफल 32,87,263 वर्ग किलोमीटर है, जो हिमालय की हिमाच्छादित चोटियों से लेकर दक्षिण के उष्ण कटिबन्धीय सघन वनों तक विस्तृत है। क्षेत्रीय विशालता, भाषा तथा प्राकृतिक संरचना की विविधताओं के होते हुए भी 'विविधता में एकता' का जन-विश्वास देश को दृढ़तापूर्वक जोड़े हुए है । विश्व के सातवें विशालतम देश के रूप में भारत शेष एशिया से पर्वतों तथा समुद्र द्वारा अलग है जिससे इसका स्वतन्त्र भौगोलिक अस्तित्त्व है। 

इसके उत्तर में महान् हिमालय पर्वत है, जहाँ से वह दक्षिण में बढ़ता हुआ कर्क रेखा तक जाकर, पूर्व में बंगाल की खाड़ी और पश्चिम में अरब सागर के बीच हिन्द महासागर से जा मिलता है। यह पूर्णतया उत्तरी गोलार्द्ध में स्थित है। इसकी मुख्य भूमि 8° 4' और 37°6' उत्तरी अक्षांश और 68°7' और 97° 35° पूर्वी देशान्तर के बीच फैली हुई है। इसका विस्तार उत्तर से दक्षिण तक 3,214 किलोमीटर और पूर्व से पश्चिम तक 2,933 किलोमीटर है। भारत की भू-सीमा 15,200 किलोमीटर है तथा मुख्य भूमि, लक्षद्वीप और अण्डमान एवं निकोबार द्वीप समूहों के सागर तट की कुल लम्बाई 75,166 किलोमीटर है।

पृथ्वी की रचना Creation of the Earth

पृथ्वी की उत्पत्ति और रचना के विषय में विद्वानों के विभिन्न मत हैं। चेम्बरलेन के मत के अनुसार, सूर्य और एक अन्य विशाल सितारे के पारस्पारिक आकर्षण द्वारा पृथ्वी की उत्पत्ति हुई। अन्य विद्वानों के अनुसार, हमारी पृथ्वी गैस के नाचते हुए गोले से बनी हुई है। नाचते-नाचते इस गोले का बाह्य भाग जिसको हम भू-पटल कहते हैं, ठण्डा होकर ठोस हो गया। ठण्डा होते समय इस भू-पटल पर अनेक सिकुड़न पड़ती गर्यौ। 

जिससे पर्वतों तथा घाटियों का निर्माण हुआ। विद्वानों के मतानुसार भू-पटल के निर्माण होने के पश्चात् घनघोर वर्षा हुई और वर्षा का पानी उन स्थानों में, जो नीचे थे, भर गया तथा वे स्थान जो ऊँचे थे सूखे बने रहे। इस प्रकार भू-पटल दो भागों में विभाजित हो गया - प्रथम सागर, दूसरा स्थल या महाद्वीप परन्तु भू-पटल पर सदा परिवर्तन होते रहे। इन परिवर्तनों के निम्नलिखित कारण हैं
  • जलवायु तथा सागर-जल सागर (बाह्य कारण)।
  • ज्वालामुखी और भूकम्प (आन्तरिक कारण)।

पृथ्वी का आकार Shape of the Earth

प्राचीनकाल में लोग पृथ्वी को चपटी मानते थे परन्तु बाद में अनेक विद्वानों ने खोज द्वारा यह सिद्ध किया कि पृथ्वी गोल है। इसका आकार नारंगी के समान है अर्थात् ऊपर तथा नीचे के सिरे चपटे हैं। इस चपटे स्थानों को उत्तरी ध्रुव और दक्षिणी ध्रुव कहते हैं। पृथ्वी के गोल होने के निम्नलिखित प्रमाण हैं
  • समुद्र के मध्य में जहाज का क्षितिज पूर्णतया गोल होता है।
  • यदि कोई एक निश्चित स्थान से एक दिशा में यात्रा करे तो यात्रा पूर्ण करके अर्थात् सम्पूर्ण पृथ्वी का चक्कर काट कर उसी स्थान पर आ जाता है।  
  • सूर्योदय तथा सूर्यास्त सभी स्थानों पर एक साथ नहीं होता, यदि पृथ्वी चपटी होती तो सूर्योदय तथा सूर्यास्त सभी स्थानों पर एक साथ होता। 
  • चन्द्रग्रहण के समय पृथ्वी की परछाईं जो चन्द्रमा पर पड़ती है, वह गोल होती है।
  • समुद्र पार स्थित पर्वतों का ऊपरी भाग पहले दिखायी देता है क्योंकि निचला भाग क्षितिज के नीचे छिपा रहता है। 
  • समुद्र के किनारे की ओर से आते समय जलयान का मस्तक ही सर्वप्रथम दिखायी देता है। जैसे-जैसे जलयान निकट आता है वैसे-वैसे उसका निचला भाग दिखायी देने लगता है।
  • यदि किसी ऊँचे स्थान पर चढ़कर चारों तरफ देखा जाये तो पृथ्वी और आकाश एक गोल आकार में मिले दिखायी देते हैं, जो कि वास्तव में अलग हैं। 
  • अन्तरिक्ष यात्रियों ने भी ऊपर से पृथ्वी को गोल गेंद के आकार के रूप में ही देखा है।

पृथ्वी की गति Speed of Rotation of Earth

  • दैनिक गति (Daily Rotation)- हमारी पृथ्वी एक लट्टू के समान धुरी पर घूमती रहती है। पृथ्वी अपनी धुरी पर 24 घण्टे में एक चक्कर पूरा कर लेती है। पृथ्वी की यह गति ही दैनिक गति कहलाती है। इस गति के कारण ही दिन और रात होते हैं। पृथ्वी की दैनिक गति के कारण सभी स्थानों पर सूर्योदय तथा सूर्यास्त एक समय में नहीं होता। 
  • वार्षिक गति (Annual Rotation)- पृथ्वी अपनी कीली पर घूमने के साथ-साथ 365 दिन, 6 घण्टा 9 मिनट अर्थात् एक वर्ष में सूर्य के चारों ओर एक चक्कर काट लेती है। इसी को पृथ्वी की वार्षिक गति कहते हैं।

दिन-रात एवं ऋतुओं का होना Existance of Day, Night and Seasons

दिन-रात का होना 

हम जानते हैं कि पृथ्वी अपनी धुरी या अक्ष पर घूमती है और 24 घण्टे में पूरा चक्कर कर लेती है। इस प्रकार अक्ष के चारों ओर घूमने के कारण पृथ्वी का आधा भाग सदैव सूर्य के सामने रहता है। पृथ्वी का जो भाग सूर्य के सामने रहता है, वहाँ सूर्य के प्रकाश के कारण दिन रहता है। शेष आधे भाग में सूर्य का प्रकाश न पहुँचने के कारण अंधेरा रहता है और हम उसे रात कहते हैं। जैसे-जैसे पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमती जाती है, प्रकाशित भाग अन्धकार में और अप्रकाशित भाग प्रकाश में आने लगता है। परिणामस्वरूप जहाँ पहले दिन था, वहाँ रात होने लगती है और जहाँ रात थी, वहाँ दिन होने लगता है।

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ऋतुओं का होना 

पृथ्वी की इस गति के विषय में वैज्ञानिकों ने ज्ञात किया है कि पृथ्वी की धुरी जिस पर वह घूमती है, ऊर्ध्वाधर या सीधी नहीं है। यह धुरी पृथ्वी के परिक्रमा पथ से 56½° कोण पर झुकी है। इस प्रकार पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा झुकी हुई स्थिति में करती है। सूर्य की परिक्रमा करने तथा अपनी धुरी पर झुकी हुई स्थिति में होने के कारण ही पृथ्वी पर अनेक प्रकार की ऋतुएँ होती हैं।
  • पृथ्वी एक वर्ष में सूर्य की परिक्रमा सम्पन्न करती है और इस अवधि में मुख्यतः चार ऋतुएँ होती हैं- बसन्त, ग्रीष्म, शिशिर और हेमन्त । 
  • तिथि के हिसाब से ये ऋतुएँ क्रमश: 21 मार्च, 21 जून, 23 सितम्बर और 22 दिसम्बर से प्रारम्भ  होती हैं।

दिन-रात एवं ऋतुओं का होना प्रयोग द्वारा प्रदर्शित करना

सर्वप्रथम फर्श पर 1 मीटर व्यास का एक वृत्त खींचो। इस वृत्त पर दो बिन्दु ' क' और 'ख' व्यास के दोनों छोर पर लगा दो। वृत्त के केन्द्र पर एक लैम्प ग्लोब के केन्द्र की ऊँचाई पर रखो। अब ग्लोब को 'क' बिन्दु पर इस प्रकार रखो कि वह लैम्प की तरफ झुका हुआ रहे। ग्लोब को अपनी धुरी पर घुमाओ यह प्रयोग अँधेरे कमरे में किया जाना चाहिए। अब हम देखेंगे कि बल्ब का प्रकाश ग्लोब पर सामने वाले भाग पर पड़ रहा है और उसके पीछे वाला भाग अन्धकार में है। अब ग्लोब को उठाकर वृत्त के 'ख' बिन्दु पर 'क' की स्थिति के समान रखो। अब हम देखते हैं कि बल्ब के सामने वाले भाग पर बल्ब का प्रकाश पड़ रहा है और पीछे वाला भाग अन्धकार में है।

अब ग्लोब को 'ख' बिन्दु पर इसी स्थिति में रखते हुए अपनी धुरी पर धीरे-धीरे घुमाओ। ग्लोब का पीछे वाला भाग अब आगे आने पर प्रकाश में हो जाता है।

दिन-रात-एवं-ऋतुओं-का-होना
दिन-रात-एवं-ऋतुओं-का-होना

यहाँ हम बल्ब को सूर्य और ग्लोब को पृथ्वी मान लें तो दिन-रात का होना स्पष्ट समझ में आ जायेगा। यहाँ हमने ग्लोब को 'क' और 'ख' दो स्थानों पर ही रखकर देखा है, लेकिन पृथ्वी सूर्य के चारों ओर करीब-करीब वृत्ताकार पथ पर वर्ष भर में एक चक्कर पूरा करती है। ऐसा करते हुए वह अपने ही चारों ओर काल्पनिक धुरी पर घूमती है, जिससे दिन-रात और ऋतुएँ होती हैं।

21 जून की स्थिति (Position of 21th June)

इस स्थिति में उत्तरी गोलार्द्ध में सूर्य की किरणें सीधी गिरती हैं। इस समय सूर्य कर्क रेखा पर चमकता है। 30 गोलार्द्ध में सूर्य अधिक समय तक रहता है, इस कारण यहाँ ग्रीष्म ऋतु होती है।

22 की स्थिति (Position of 22nd December)

यह स्थिति 21 जून के बिल्कुल उल्टी है। इस समय सूर्य मकर रेखा पर चमकता है। मकर रेखा दक्षिणी गोलार्द्ध में होने के कारण सूर्य अधिक समय तक यहाँ रहता है। इसी कारण 90 गोलार्द्ध से 30 गोलार्द्ध में शीत ऋतु होती है।

21 मार्च तथा 23 सितम्बर की स्थिति

दोनों स्थितियों में सूर्य की किरणें भूमध्य रेखा पर सीधी पड़ती हैं। सूर्य के प्रकाश का वृत्त पृथ्वी की भू मध्य रेखा पर बनता है, जिससे पूरी पृथ्वी पर दोनों गोलार्द्ध में दिन और रात की अवधि बराबर होती है।

अघि वर्ष (Leap Year)

पृथ्वी को सूर्य की परिक्रमा करने में 365 दिन 6 घण्टे लगते हैं। 365 दिन का एक वर्ष माना जाता है। 6 घण्टे का 1/4 दिन को नहीं गिना जाता है। सामान्यतः फरवरी 28 दिन की होती है लेकिन 4 वर्ष में यह 29 दिन की होती है। इसलिये हर चौथा वर्ष 366 दिन का होता है।

दिन रात कैसे बनते हैं? 

दिन रात पृथ्वी की घूर्णन गति से होते हैं। पृथ्वी में स्वयं प्रकाश नहीं है। पृथ्वी को प्रकाश सूर्य से प्राप्त होता है। यदि पृथ्वी स्थिर होती तो उसका आधा भाग सामने सदैव प्रकाश में और दूसरा भाग सदैव अँधेरे में रहता है। पृथ्वी पश्चिम से पूर्व की ओर अपने अक्ष पर घूमती है। इसके कारण जो भाग सूर्य के सामने आता है वहाँ पर दिन एवं जो पीछे आता है उस भाग में रात होती है।

आटाकामा और पेटोगोनिया के मरुस्थल में अन्तर

आटाकामा मरुस्थलपेटोगोनिया मरुस्थल
इसके दक्षिण में भूमध्य सागरीय जलवायु पायी जाती है। इस प्रदेश में वर्षा शीत ऋतु में होती है और ग्रीष्म ऋतु शुष्क तथा उष्ण रहती यहाँ सदाबहार वृक्ष मिलते हैं।एन्डीज पर्वतमाला के पूर्वी भाग में पेटो गोनिया का मरुस्थल है। इसकी जलवायु शुष्क है क्योंकि यह पश्चिमी पर्वतों के वृष्टि हैं। छाया क्षेत्र में आता है।

कैंपास और पम्पास

कैंपास - दक्षिण में ब्राजील के मध्यवर्ती भाग में इन्हें कैंपास कहा जाता है।

ग्रेट बेरियर रीफ

आस्ट्रेलिया के उत्तर-पूर्वी तट के साथ-साथ समुद्र के एक प्रवालभित्ति मूंगे की चट्टानों की बहुत चौड़ी दीवार है।

महाखड्ड तथा कैनियन में अन्तर

महाखड्डकैनियन
खड़ी दीवारों वाली गहरी और सकरी घाटी महाखड्ड कहलाती है।लम्बे और गहरे महाखड्डों को जिनके किनारे दीवार के समान खड़े होते हैं, उन्हें कैनियन कहते हैं।
यहाँ शैल कठोर होते हैं।कोलेरेडो का विशाल कैनियन संसार में सबसे बड़ा है।
वर्षा कम होती है।यह प्राकृतिक सुन्दरता के लिये प्रसिद्ध है।

मौसम और जलवायु Weather and Atmosphere

'जलवायु' शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है- जल और वायु अतः किसी स्थान की जलवायु का अध्ययन करने के लिये हमें वहाँ की वर्षा और हवा की दशा को ज्ञात करना आवश्यक है। वर्ष के प्रत्येक दिन की दैनिक दशा में हमें कुछ-न-कुछ परिवर्तन मिलेगा। जुलाई या जून के मास में किसी दिन गर्मी अधिक होती है तो किसी दिन कम। किसी दिन बदली अधिक आधार पर हम छायी रहती है तो किसी दिन धूप। इस प्रकार प्रत्येक दिन की दशा कुछ भिन्न होगी। यह दैनिक दशा मौसम कहलाती है। 

मौसम प्रतिदिन बदलता रहता है परन्तु एक दिन उस स्थान की जलवायु का ज्ञान प्राप्त नहीं कर सकते। जलवायु में यह अवधि वर्षों तक बढ़ जाती है। मौसम का स्वभाव परिवर्तनशील है, वह प्रतिदिन बदलता है परन्तु जलवायु में एक लम्बी अवधि का मौसम होने से उसमें स्थायित्त्व होता है। अत: मौसम के औसत को जलवायु कहा जा सकता है।

जलवायु को प्रभावित करने वाले कारक


जलवायु को प्रभावित करने वाले कारक निम्नलिखित प्रकार हैं 

अक्षांश की स्थिति

जो स्थान भूमध्य रेखा से जितना पास होगा, वह उतना ही अधिक गर्म होगा। भूमध्य रेखा से दूरवर्ती या उच्च अक्षांशों पर तापमान कम होता है। भूमध्य रेखा पर सूर्य की किरणें सीधी पड़ती हैं तथा अन्य आक्षांशों पर तिरक्षी पड़ती हैं।

समुद्र तट से दूरी

समुद्र से दूर स्थति पर गर्मी में अधिक गर्मी तथा ठण्डी में अधिक ठण्ड पड़ती है जबकि समुद्र के पास वाले भाग में तापान्तर अधिक नहीं होता है। समुद्र के किनारे के भागों में समुद्र का समकारी प्रभाव अधिक होता है।

समुद्र सतह से ऊँचाई

सूर्य की किरणों से वायुमण्डल की अपेक्षा थल अधिक गर्म होता है। गर्म थल के ऊपरी सतह की सघन वायु गर्म हो जाती है किन्तु वायुमण्डल की ऊपरी परत ठण्डी रहती है। इसी कारण ऊँचे स्थान नीचे स्थान की अपेक्षा अधिक ठण्डे रहते हैं; जैसे- इन्दौर की अपेक्षा पंचमड़ी अधिक ठण्डा रहता है।

प्रचलित वायु

ठण्डे प्रदेशों से चलने वाली वायु अपने मार्ग में पड़ने वाले सभी स्थानों को ठण्डा कर देती है; जैसे- ध्रुव से चलने वाली हवाएँ पूरे मध्य एशिया को ठण्डा कर देती हैं।

समुद्री धाराएँ

जिन स्थानों पर ठण्डी जल धाराएँ बढ़ती हैं, वहाँ का तापमान कम हो जाता है; जैसे- लेब्रोडोर धारा। इसी प्रकार वहाँ पर गर्म जलधारा बहती है वहाँ तापमान बढ़ा देती है।

मौसम और जलवायु पर प्रभाव डालने वाले कारक

किसी स्थान की जलवायु निम्नलिखित बातों पर निर्भर करती है
  • भूमध्य रेखा से दूरी - जो स्थान भूमध्य रेखा के निकट होते हैं, वे गरम होते हैं।
  • समुद्र से दूरी - समुद्र का पानी स्थल की अपेक्षा देर में गरम और ठण्डा होता है। इस कारण समुद्र के किनारे के स्थान समुद्र जल की गर्मी या सर्दी से प्रभावित होते हैं। वहाँ पर गर्मियों में कम गर्मी और जाड़ों में कम सर्दी पड़ती है। 
  • समुद्र के धरातल की ऊँचाई - जो स्थान समुद्र से जितना ऊँचा होगा, वह उतना ही ठण्डा होगा।
  • पर्वतों की स्थिति - भारत में हिमालय पर्वत इसका उदाहरण है, जिससे उत्तर की ठण्डी हवाएँ रुकती हैं तथा मानसून टकराकर वर्षा होती है। 
  • पानी की धाराएँ - गरम और ठण्डे पानी की धाराएँ किसी स्थान की जलवायु को प्रभावित करती हैं।
  • भूमि - भूमि का ढाल भी एक तत्त्व है। 
  • वनस्पति - वनस्पति वाष्पीकरण के द्वारा जलवायु को सम बनाती है।
  • दिन-रात का छोटा-बड़ा होना - जहाँ दिन बड़े होते हैं और रातें छोटी होती हैं, वहाँ का तापक्रम बढ़ जाता है और जहाँ रातें बड़ी होती हैं, वहाँ का तापक्रम गिर जाता है।

स्थानीय समय का अन्तर

पृथ्वी के जिस स्थान पर सूर्य की किरणें ठीक सीधी लम्बवत् पड़ती हैं। वहाँ दोपहर के 12 बजे हैं। ठीक विपरीत रात्रि के 12 बजे हैं। इसी प्रकार सूर्यास्त के समय शाम के 6 बजे हैं। इस प्रकार दैनिक गति से प्रत्येक स्थान पर स्थानीय समय में अन्तर होता है।

ज्वार भाटे में अन्तर

समुद्र में प्रतिदिन दो बार ज्वार-भाटा आता है। एक से दूसरे ज्वार के बीच का अन्तर 12 घण्टा और 13 मिनट का होता है। प्रथम ज्वार तब आता है, जब कोई स्थान सूर्य के सामने आता है। दूसरा ज्वार तब होता है। जब वही स्थान घूमकर विपरीत दिशा में चला जाता है। यह पृथ्वी की दैनिक गति के कारण होता है।

भारत की जलवायु Weather of India

देश की जलवायु पर उसकी स्थिति, विस्तार और प्राकृतिक रचना का बहुत प्रभाव पड़ता है। इसके फलस्वरूप देश के विभिन्न भागों में गर्मी, सर्दी तथा वर्षा की मात्रा भी विभिन्न होती हैं। हिमालय पर्वत मध्य एशिया की ओर से चलने वाली ठण्डी हवाओं को रोक लेता है। भारत के मध्य से कर्क रेखा जाती है। जब सूर्य उत्तरायण होता है तो भारत के मैदानी भाग गरम हो जाते हैं। भारत की जलवायु मानसूनी है। 

मौसम के अनुसार मानसूनी हवाओं की दिशा बदलती रहती है। ग्रीष्म ऋतु में अरब सागर की हवाएँ दक्षिण-पश्चिमी से उत्तर-पूर्व की ओर चलती हैं। लेकिन बंगाल की खाड़ी से गंगा और महानदी के मुहाने से उत्तर-पश्चिम की ओर चलती हैं। इसके विपरीत शीत ऋतु में मानसूनी हवाएँ भूमि से समुद्र की ओर चलती हैं। 

भारत में मुख्य रूप से तीन ऋतुएँ होती हैं। 
  1. शीत ऋतु (Winter Season) - यह ऋतु नवम्बर से फरवरी तक रहती है। यह 15 दिसम्बर से 15 मार्च तक रहती है।
  2. ग्रीष्म ऋतु (Summer Season) - यह ऋतु मार्च से जून तक रहती है। यह 15 मार्च से 15 जून तक रहती है। 
  3. वर्षा ऋतु (Rainy Season) - यह जुलाई से अक्टूबर तक रहती है। यह 15 जून से 15 सितम्बर तक रहती है।
  4. शरद ऋतु (Autum Season) - यह 15 सितम्बर से 15 दिसम्बर तक रहती है।

मौसम एवं जलवायु में अन्तर

मौसमजलवायु
मौसम वायुमण्डल की अल्पकालीन दशा को कहते हैं।वायुमण्डल की दीर्घ औसत दशाओं का फल है।
मौसम का क्षेत्र सीमित रहता है।जलवायु का क्षेत्र विस्तृत होता है।
मौसम परिवर्तन कुछ घण्टों के लिये भी हो सकता है।जलवायु में अल्पकालीन परिवर्तन नहीं होते हैं।
जिन स्थानों का मौसम हमेशा खराब रहता है, वहाँ की जलवायु कभी भी अच्छी नहीं होती है।जिन स्थानों की जलवायु अच्छी रहती है, वहाँ का मौसम खराब हो सकता है।
मौसम मनुष्य के दैनिक जीवन पर प्रभाव डालता है।जलवायु मनुष्य के व्यवसाय पर प्रभाव डालती है।


इस Blog का उद्देश्य प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे प्रतियोगियों को अधिक से अधिक जानकारी एवं Notes उपलब्ध कराना है, यह जानकारी विभिन्न स्रोतों से एकत्रित किया गया है।